(हास्य भी )
छन्द
छन्द-छन्द कविता बणद, छन्द-छन्द मकरंद
सुणदी इत्गा कक्षा मा, ब्वल्ण बैठ मतिमंद
छन्द-छन्द का चक्कर मा, भारी हुईं कुछन्द
छन्द नी यख खुद कु, कनखै ल्यखणी छन्द।
रस
कविता थै पढ़ण मा, आंद तभी रौंस
जब व्वग्णी ह्वे वेमा, क्वी भी रस की धार
सुणदी इत्गा कक्षा मा, ब्वल्ण बैठ मतिमंद
रस निचट्ट नि-रस छीं, फिर कनखै व्वगण रस धार।
अलंकार
कविता की शोभा, बढ़ान्दा छीं अलंकार
सुणदी इत्गा कक्षा मा, ब्वल्ण बैठ मतिमंद
निश्चित कविता कि, शोभा बढ़ान्दा अलंकार
हम त कविता अलंकार, देखि की ह्वेग्यो जलंकार।