कच्ची
उत्तराखंड आंदोलन पर हिन्दी मा ल्यख्यूँ “उत्तराखंड जल उठा” प्रबंध काव्य कु बाढ़ “”कच्ची” गढवली मा दुसरु काव्य प्रस्तुत कन्नु छौ। यो गढ़वाली मा म्यारू पैलू प्रयास चा। ये काव्य थै पढ़ ना मा अर सामझणम दिक्कत भी हवेली पर फिर भी धीरे धीरे पैढ़ी की समझ भी आ जाली।
(1)
क्वादु – झुंगरु-जौ की मेरि
आज बणा कै ल्यही कच्ची,
द्वी घूंट पे कि जैथै
खड़ा घुंजा ह्वे जाला सच्ची,
पैलु आचमन पटवरी कु
फिर वेकु चपड़सी कु,
तिसरु आचमन पंच, प्रधान कु
तब हौ र्यूँ कु मेरि कच्ची।
(2)
क्वादु – झुंगरु – जौ – अनाज
सड़ाकी बणान्दु मि कच्ची,
वेका दगड़ा जलुड़ा – बुट्ला
नौसादर भी चा सच्ची,
नि मिल्दु नौसादर त
बैटरी का स्यल थिंची,
नशा जर्रा भी कम नि ह्वा
ध्यान बणान्द दा कच्ची।
(3)
स्वाद – सवाद- सवादी लग
यो भि सोचदु मि सच्ची,
लिम्बा – नारंगी का छिलका
वाखुण मिलान्दु मि कच्ची,
हिंसरा – किनग्वड़ा का जलुड़ा
खैणी ल्यान्दु मि तज्जा,
खुर्सी – खर्सी, थींच-थांची कि
रालि बणान्दु मी कच्ची।
(4)
सब्बि कुछ कनस्तरुन्द भोरी कि
मारि बुजिनु मोल कु कच्ची,
रौलों – रौलों खड्वला खैणी
लुका कै आन्दु मि सच्ची,
पटवरी, प्रधान, पुलिस कु
डौरल लुक्यूँ रैन्दु कखी-कखी,
कभि रौलों थड़कान्दु
कभि उबर नितरदु कच्ची।
(5)
कभि रौलों, कभि पुंगड़ा ढीस
भट्टि बणान्दु मि सच्ची,
जंक जोड़ जन्नि-कन्नि कै
दारू थड़कान्दु कच्ची,
जब तक दारू चून्दी नी चा
कंदूड़ खड़ा रन्दी सच्ची,
जिकुड़ी झुरणी रैन्द दगड़ी
क्वी द्यख्णू त नीच ईं कच्ची।
(6)
भारि मुश्किल हुयीं रैन्द
अकलकंट लगीं रैन्द सच्ची,
इत्गा सौंगु नि रयूँ चा
तैयार कन्नु ईं कच्ची,
तैयार कैकि लुकाण प्वड़द
कभि कखि, कभि कखि,
तंग ह्वे जांदु लुकान्द-लुकान्द
इनै – उनै ईं कच्ची।
क्रमश....