पावक ज्वाला
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उत्पत्ति से अवसान तक
है सोलह संस्कार की माला,
हर संस्कार को पूर्ण कराती
तेरी ये पावक ज्वाला,
इन सोलह संस्कारों से मानव
सोलह कला सम्पन्न हुआ,
सोलह कलाओं के कौशलता में
उत्पन्न हुई एक अन्य ज्वाला।
26
ज्वाला के दो रूप हो गए
भिन्न हो गई दोनो ज्वाला,
एक पार्थिव रूप में प्रकट
दूसरी अदृश हो गई ज्वाला,
एक लपटों के रूप में दिखती
दूसरी अन्तर्मन में धधकी,
एक भौतिक रूप में उपस्थित
दूसरी अदृशरूपी ज्वाला।
27
भौतिक ज्वाला ऊष्मा देती
अदृश जगाती विभिन्न ज्वाला,
काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ
अन्याय, अत्याचार की ज्वाला,
पहली धधकती अशांत होती
पृथ्वी पर तृण-तृण जला डालती,
दूसरी धधकती अशांत होती
जला डालती जीवन के ज्वाला।
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पहली से दूसरी अति घातक
जिसने जीवन नर्क कर डाला,
विभिन्न व्याधियों की उसने
तन में जला डाली ज्वाला,
कहीं अन्याय, अपराध, अनीति की
कहीं अधिकार, अनाचार, अतिक्रमण,
कहीं कुमति, कुकर्म, कुसंगति की
धधक रही है भीषण ज्वाला।
क्रमश.....