पावक ज्वाला
मैंने भ्रष्टाचार, धर्म जाति की राजनीति, तथाकथित धर्मगुरु इत्यादि के भ्रष्ट कारनामो की आहुति के लिए एक काव्य लिखा है। मैंने पावक (अग्नि) देवता जिसके बिना ये देह नहीं है और जो मनुष्य के हर शुभ-अशुभ कार्यों का साक्षी होता है या ये कहिए की अग्नि की बिना कोई कर्म होता ही नहीं है और जिसकी ज्वालाओं के विभिन्न रूप है उन्हे आपतक पहुंचाने का कार्य किया है। मेरा ये प्रयास कहाँ तक सफल होगा ये आप लोगो पर निर्भर है।
अपनी प्रतिकृया देते रहना जिससे इसे परिमार्जित करने मे सुविधा होगी।
1
शुद्ध भाव और पावन मन से
आज ले आया पावक ज्वाला,
यज्ञ विधि व्यवस्था स्वामी
अर्पित तुझको अक्षमाला,
हवन कुंड की शुद्धि करके
प्रज्वलित करता तेरी ज्वाला,
हे अग्नि देव तुम प्रकट होना
बन कर के दिव्य ज्वाला।
2
हे सर्वज्ञाता, यज्ञ विधाता
देवों को हवि पहुंचाने वाला,
मेरे दर पर हर प्रहर
प्रज्वलित रहे तेरी ज्वाला,
स्वार्थ निमित्त हवन कुंड में
प्रज्वलित करता तेरी ज्वाला,
रहे प्रज्वलित अखंड ज्योति
मेरे दर पर तेरी ज्वाला।
3
हे देवमंडल के प्रथम देव
देवों को तुष्ट करने वाला,
पावन मन से आह्वान करके
प्रज्वलित करता तेरी ज्वाला,
पहले मेरा गृहपति बनना
फिर जग का बन पाएगा,
अर्पण घृत, हवन सामग्री
खूब धधके तेरी ज्वाला।
4
पूजन विधि पूर्वक करता
गृहपति तू मेरा रखवाला,
हवनीय मंत्र उच्चारित कर
आहुति देता तुझको ज्वाला,
मैं निरीह याचक हूँ स्वामी
मेरी याचना अवश्य सुनना,
जितनी आहुति दूँ मैं तुझको
उतनी धधके तेरी ज्वाला।
क्रमश.....