Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 29517 times)

Brijendra Negi

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कच्ची


    (19)

बराती पेकि मदमस्त हुन्दी
व्हिस्की, रम या कच्ची,
घराति पैली टुंड रन्दी
पेकि कच्ची-पक्की सच्ची,

ब्योला-ब्योलि की चिंता नि रैन्दि
चिंता बस नशा नि उतर,
घरती-बरती लड़ना रन्दी
पेकि पक्की-कच्ची।

   
    (20)

ब्योला ब्वल्द अप्णु दोस्त मा
जल्दी बणा पैग सच्ची,
व्हिस्की, राम यदि नि बचीं
जल्दी पिला  सीं कच्ची,

आज सर्या राति जागरण
कनक्वे कटण बिना पियाँ,
बार - बार   पिलाणू रै
चाय-पत्ती पाणि मा कच्ची।

   
    (21)

चाय-पत्ती कु पाणि बणवा ले
स्यालि मा बोलि की सच्ची,
ब्योला कु गालु मा खरास चा
ब्याली राति बटी सच्ची,

चाय-पत्ती कु पाणि मा
मिला कै बोतल कच्ची,
बार - बार   पिलाणू रै
दवै कु बाना सीं कच्ची।


क्रमश......

Brijendra Negi

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कच्ची


   (22)

पंडत  ब्वल्द पूजा से पैलि
सोमरस चा या कच्ची,
ये थै पेकि पूजा हून्द
सुंदर, सुफल सच्ची,

बिना पियाँ जुबान लड़खड़ान्द
बैठेन्दु भी नी चा सच्ची,
पैलि त रम, व्हिस्की पिलादी
नाथर पिला सीं कच्ची।

   
    (23)

छवणु ब्वाडा आँखा नि द्यखुदु
हिंस्वरे- हिंस्वरे चल्द सच्ची,
सकस्याट कैरि लालू चुवान्द
पीणा खुण ई कच्ची,

डग-डग कर्द कौंपदा हथूँ मा
गिलास थामि नि सक्दु,
घबलाट कैकि ब्वल्द छूछावो
मिथै भी पिलाओ कच्ची।
   

    (24)

छवणी बोडी कमर नवाकि
ख्वला गिच्चा ल ब्वल्द सच्ची,
हवा लगीं छज्जा मा बैठी
जड्डा ल म्वनु मि सच्ची,

गगदाट कन्नू म्यारु पुटुग
भितर बैठ ग्या जड्डु,
गुनुगुनु पाणी कैकी पिलावो
मिला कै द्वी बूंद कच्ची।

क्रमश..........

Brijendra Negi

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कच्ची


    (25)

डरैबर भाजि गाड़ि चलान्द
सीट मूड़ बोतल धैरि सच्ची,
कभि कोकाकोला दगड़ मिलान्द
कभि पाणी तमलेट मा सच्ची,

डगड्याट कैकि गाड़ी चलान्द
कभि तीर - कभि ढीस,
भगवान भरस्वूँ पौछान्द
सवर्यूँ थै पेकि सच्ची।


    (26)

कंडक्टर भाजि बोनट मा बैठी
हथ मा नमकीन सच्ची,
घुन्डो कु बीच मा अध्धा अड़ाकि
डरैबर थै पिलान्द सच्ची,

खुद भी घुटकि लगान्द- लगान्द
टिकिट बणान्द सच्ची,
सवरी उतर्द, चड़ान्द रस्ता मा
पीन्द-पीन्द ईं कच्ची।


    (27)

सवरी बस मा टोप टिकाकि
पिन्दी  पक्की - कच्ची,
बस कु भितर मुख नि घलेंदु
भारि बदबू  आन्द   सच्ची,

क्वी पीन्द, कै रिंग उठ्द
टोप द्वियूँ टिकई  रैन्द,
उल्टी कैकि पुटिगी खालि कर्द
क्वी पुटिगी भ्वर्द पेकि कच्ची।

क्रमश.......

Brijendra Negi

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कच्ची


    (28)

उत्तराखंड का हाल कुहाल
तुम थै बथान्दु मि सच्ची,
इस्कोल का मास्टर फजल ल्हेकि
खुज़्यंदी पैलि कच्ची,

ईस्कूल जाणा कु तैयार ह्वेकि
सीधा  पौंछदी  भट्टी,
काचु प्याज अर लूणा गारि
चाटिकि पे जंदी कच्ची।

    (29)

इसकूलूँ मा सब्या पिंदी
निझर्को ह्वेकि कच्ची,
दारू पेकि मास्टर पढ़ान्द
दारुबाज़ बच्चों थै सच्ची,

न मास्टर समझुदु क्य पढ़ाणू
न विध्यार्थी कुछ समझुदु,
द्विया का द्विया मस्त रन्दी
पेकि पक्की – कच्ची।

    (30)

चपड़सि बाबू टुंड रन्दी
सुबर ल्हेकि पेकि कच्ची,
कत्गा बजि को घंटी बजाण
पता नि रैन्दु सच्ची,

बाबू ब्वल्द घंटी बजा दे
चपड़सि बजा दीन्द छुट्टी कि,
प्रिन्सिपल ब्वल्द अभि छुट्टी निह्वा रे
ये कि पिई रैन्द कच्ची।

क्रमश... 

Brijendra Negi

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कच्ची


    (31)

बुबा ब्यखुन्दा बौलेन्द
रोज पेकि सच्ची,
नौनु अलग लटकेणु रैन्द
दिनभर पेकि कच्ची,

ट्वटका मुंड द्विया रंदी
ब्वे दीन्द गाली भारि,
जलुड़ा घाम लग्या यूंका
जौंकि पिई रैन्द कच्ची।
 

    (32)

ग्वेर बैठी धरड़ मा
ताश ख्यल्णा छा सच्ची,
प्याज-मूला कि कचब्वलि दगड़
पैग चलणा छा सच्ची,

गौड़ि चर्द-चर्द भ्यटक चलग्या
बाघ ल मारि द्या वक्खी,
गौड़ी रमणी कंदूड़  बयाणा
समझणू पेकि कच्ची।


    (33)

अड़ाट कर्द-कर्द गौड़ी चुपने ग्या
तिल भी सूण रे बच्ची ?
म्यारा कंदूड़ बयाणा छीं क्य
आज पेकि ईं कच्ची,

हममै से कैल नि सूणु
कंदूड़ त्यारा बयाणा छीं,
आज नीन पुटिगी पे द्याई
त्वे जादा चैड़ ग्या कच्ची।

क्रमश..................

Brijendra Negi

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कच्ची


   

       (34)

पुटुग म्यारु गगदाट कर्द
गालु कर्द घघराट सच्ची,
भारि-भारि कि रिंग उठ्द
बुखार ल कपाल तच्ची,

डाक्टर थै बिमरि गिणान्द
एक-एक कै फजल ल्हेकि,
दगड़ी बथान्द भैजि ब्यालि मिल
प्याई छा द्वी अध्या कच्ची।


    (35)

डाक्टर भाजि इलाज कर्द
पैग लगाकि कच्ची,
पेट खराब कि दवै बथान्द
द्वी पैग लगा कि सच्ची,

दारू पेकि पेट खराब यदि
दारू पेकि खूब हून्द,
अफु थै यदि चान्दु निरोगि
रोज पे तू कच्ची।


    (36)

पोस्टमैन दादा चिट्ठी ल्हेकि
सीधा भट्टी पौंछद सच्ची,
अध्या – पव्वा कच्ची चढ़ाकि
रौलौं प्वड्यू रैन्द सच्ची,

कखि थैला, कखि चिट्ठी प्वडीं
फर-फर हवा मा उड़दीं,
खुद किस्मत चिट्ठी पौंछ्दी
बाकि भेंट ईं कच्ची।

क्रमश.................

Brijendra Negi

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कच्ची


    (37)

नौना भूखा पेट रिंगणा
भितर अन्न नी चा सच्ची,
बुबा कमांद जत्गा दिनभर
राति पे जांद कच्ची,

ब्वेल निकालि हथ-पैछी
राशन मंगाण कु दीं,
पैसा मिल्दी भट्टि पौंछ
पेग्या वांकि भी कच्ची।


    (38)

पुजरी जी आशीर्वाद दिन्दी
दारू  पेकि  कच्ची,
मुंड मा फूल धर्द-धर्द
गिच्चु कुच्यांदी सच्ची,

कौंप्द अंग्वठल पिठै नि लग्दि
कपाल लप्वडदीं सर्या,
हत्थ-खुट्टा तंगत्याट कर्दी
पेकि पक्की-कच्ची।


    (39)

औजि भि बाजा बजान्द
द्वी बोतल पेकि कच्ची,
ढोल-दमौ उठेन्दु नीचा,
लाकुड़ थमेन्दि नि सच्ची,

कै बक्त को बजै कन्न
समझ नि आंदी जम्मा,
अप्णु बदला कु संग्रान्द बजंदी
छकै पेकि पक्की-कच्ची।

क्रमश........


Brijendra Negi

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    (40)

दर्जी बैठी कपड़ा सिल्द
छ्क्कै पेकि कच्ची,
दादा कि कमीज का बौंला
बौकु ब्लौज पर सिल्द सच्ची,

उल्टा-सुल्टा सीलि कि बौंला
इन्नै-उन्नै फरकान्द,
अफी-अफी बबड़ान्द हर्बी
बरमण्ड घुमान्द य कच्ची।


    (41)

हल्या हैल नि लगान्दु अब
जब तक नि मिल्दी कच्ची,
रुप्या-पैसा धर्या एक तरफ
यदि नि द्या कच्ची,

कल्यो कि कंडी मा चाहे
भले धर्यू ह्वा ध्यू-दूध-नौणी,
स्वाद पर तब तक नि आन्दु
जब तक नि मिल्दी कच्ची।


    (42)

बिजली-पाणि कु दफ्तर मा
काम नि हून्दु सच्ची,
ब्यो-कारिजूँ का दिन जरूर
बंद कैर दिन्दी सच्ची,

घूस, रिस्पत, जाण-पछयाण
काम नि आन्दी कुछ भी,
दिन-रात बिजली-पाणि मिल्द
द्वी बोतल देकि कच्ची।

क्रमश......

Brijendra Negi

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    (43)

दिन मा प्रवचन दीक्षा
रात मा शुरू हुन्दी सच्ची,
गीत, गजल, शेर सुणन्दी
पेकी ह्वीस्की, शेम्पेन सच्ची,

चेला-चपाटों का मुंड नवया
भक्त खुट्टों मा लमलेट रंदी,
आशिर्वाद दीन्द लालु चून्द
तौं गुरुजी कि लंगोट भि कच्ची।


    (44)

नै-नै जग्गा शिविर लग्दी
नै-नै भक्त बणदी सच्ची,
क्वी कुंडलिनी जागृत करान्द
क्वी कुंडली बणवान्द सच्ची,

भक्त भावुक भौत हुन्दी
प्रवचन सूणी-सूणि की,
रात-दिन गुरुजी कि सेवा मा
लगीं रैन्द भक्ति पक्की-कच्ची।


   (45)

नेताजि जीतीं चुनौ मा
भट्टी गौं-गौं खोली सच्ची,
उदघाटन कु दिन बटीं
सबथै एक-एक अध्या सच्ची,

तब बटि भट्टी सुलगणी छीं
कभि निमझण्या, कभि घबघ्याट कैकि,
व भट्टी उत्गै पक्की चा
जत्गा जादा चुवाणी कच्ची।

क्रमश........


Brijendra Negi

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    (46)

मेमानदारि कत्गै कैर ल्यो
खुश नि हून्दु क्वी सच्ची,
जब तक गालु तर नि कैरो
ब्यखुंदा पिलाकि पक्की-कच्ची,

छप्पन ब्यंजन स्वाद नि दीन्दा
जब तक नि मिल्दी पीणा खुण,
एक प्याज मा स्वाद आ जांद
मिल्दी पीणा कु पक्की-कच्ची।


    (47)

आवभगत वलु रैन्द परेशान
खुज्याणू रैन्द पक्की- कच्ची,
जिकुड़ी झर-झर कन्नी रैन्द
मेमान नराज निह्वा सच्ची,

पैसा ल्हेकै फिर्णू रैन्द
वल्या-पल्या गाँ कखि-कखि,
साग-भुज्जी ह्वा-निह्वा पर
मिल जा कखि पक्की-कच्ची।


क्रमश........

 

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