Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 29137 times)

Brijendra Negi

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कच्ची


    (48)

पैसा कमौण कु प्रवासि ह्वेई
भांडा मुंज्याणू रैगे सच्ची,
दिनभर जत्गा कमौन्दी तू
राति पे जान्दी सच्ची,

कत्गा कमाई, कत्गा हरचाई
हिसाब-किताब नि लगान्दु तू,
नफा-नुकसान कु पता नि लग्णू
आज भि गणित तेरि कच्ची।


    (49)

झ्वपड़ी शैर कु कूणा बणाई
बिजली, पाणि न सड़क सच्ची,
शहरूँ मा रैकै गाँव से भि तेरि
गईं-गुजरीं ज़िंदगी सच्ची,

ग्यड़िकि मारि ध्वतुड़ चलाणी
कज्याण तेरि कूणा बैठि की,
ठोकर खान्द-खान्द पौंछदी
राति पेकी तु पक्की-कच्ची।

क्रमश........

Brijendra Negi

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कच्ची


    (50)

नौकरि कर्दी दफ्तर मा
घर-गुदड्या बण कै सच्ची,
भुरत्या बण्यू रैन्दी दिनभर
हौर्यूँ काम कर्द-कर्द सच्ची,

खुद ऐश-आराम कर्दी
त्वे उल्लू  बणन्दी सब्बी,
पखड़ा की त्यारू हत्थ मा
ब्यखुंदा द्वी बोतल कच्ची।


    (51)

त्यारू कर्या मा वूंल कमा कि
भित्रा भोर दीं सच्ची,
तू अलझ्यूँ रैगे सदनी
द्वी बोतल मा कच्ची,

तेरी अकल पर ताला प्वड़ीं
कर्ज भी गडणू रै वूमै,
तेरी झ्वपड़ी पर ताला लगै वूंल
पिला-पिला की त्वे कच्ची।


    (52)

पुस्तैनि कूड़ी-पुंगड़ी थै तू
बांजि कैकि ऐ परदेश सच्ची,
प्रवास मा बणई झ्वपड़ी हर्चा
रात-दिन पेकी पक्की-कच्ची,

न भितरखण्ड कु राई तू
न भैरखंड कु अब तू,
मवासि तेरी घाम लग ग्या
दारू पे कि पक्की-कच्ची।


क्रमश......... 

Brijendra Negi

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कच्ची


    (53)

विदेश जान्दी कै-कै साल कु
मेनत मजूरि कर्दी सच्ची,
थैला भोरी कि पैसा कमाकि
वापस आन्दी तू  सच्ची,

घार पौंछदी रस्ता पखड़दी
सीधा दारू कि भट्टी कु,
दिन-रात ट्वटुकु प्वड्यू रैन्दी
पेकि दारू पक्की-कच्ची।


    (54)

जत्गा ल्यान्दी तीन साल मा
तीन मैना मा फुकदी सच्ची,
तीन ब्रांड दिन-रात पीन्दी
देसि, विदेसी, कच्ची सच्ची,

तीन मैना कि दैल-फैल
फिर ढाक का वी तीन पात,
जननी दगड़ा सौं-करार अर
खईं कसम ह्वे जंदी कच्ची।

क्रमश..........

Brijendra Negi

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कच्ची


    (55)

आंदोलन मा जौंल खैं
गालि, डंडा, गोलि सच्ची,
अलग उत्तराखंड बणदी
कुनिन्द प्वड़ी पेकि कच्ची,

जौ  गौला  उबाणा रैं
रात-दिन चिल्ला-चिल्ला कि,
अलग राज्य बणदी वो
तर ह्वेगीं पेकि पक्की-कच्ची।


    (56)

जो हत्थ मशाल ल्हेकि
रिंगी डाँड-गाड़, गौं-गालों सच्ची,
मशाल की जग्गा वूँ हत्थू मा
आज ऐगीं बोतल पक्कि-कच्ची,

नयू राज्य ल आँखा ख्वल्दी
दारू की दुकनि खुल्द द्यखीं,
जग्गा – जग्गा ठ्यक्या खुलीं
गौं-गौं मा खुलीं भट्टी कच्ची।


    (57)

कुनिंद प्वड़ीं कुछ दारू पेकि
अलग राज्य मिल्दी सच्ची,
सब्बि-धाणि मिलग्या जन्न
माँ-भैण्यू इज्जत मा सच्ची,

कूणा बैठी कुछ चिंतन कर्दी
ये आंदोलन से क्या पाई ?
माँ-भैण्यू की इज्जत से जादा
आज प्यारि ह्वा पक्की-कच्ची ?

क्रमश........

Brijendra Negi

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    (58)

शराब का ठ्यकादारू कि
जीप बुक करीं छीं सच्ची,
हर सड़क पर गौं-गौं मा
ब्याखुंदा ब्यच्दी पक्की-कच्ची,

सूर्य अस्त उत्तराखंड मस्त
झुठला द्या यूं नशेड्यू ला,
हर बक्त मदमस्त रैकि
दारू पेकि पक्की-कच्ची।


    (59)

जै दिन दारू कि जीप नि आन्दि
हडका म्यारा वो थिच्चदी सच्ची,
रातभर तब जननी मेरि
लूण पाणि ल स्यक्द सच्ची,

नकद ह्वा यदि कीसन्द त
जीप कु जग्वाल कर्दी,
खाली रैन्द कीसा जै दिन
ख्वजदी वे दिन मेरि कच्ची।

क्रमश.........

Brijendra Negi

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    (60)

ब्यखुंदा आई पीणा खुण
जब म्यारु घार वो कच्ची,
अप्णु पिशाब पिला मिल
दगड़ मिलाकै  पव्वा कच्ची,

पैलि कभि नि प्याई इन्ही
गड़बड़ कुछ लग्णी चा,
कलतण्या किल्लै हूणी रे
आज छुछा तेरि य कच्ची ? 


    (61)

अब्बि तज्जि-तज्जि निथरीं
इल्लै गुतमुति चा या कच्ची,
ठन्ड़ु हूण मा बक्त लग्द
माँ-कसम ब्वल्दु मि सच्ची,

नशा हून्द बल जादा दादा
जब गुतमुति रैन्द कच्ची,
नाक बंद कैकि सड़का ल्हेदी
जल्दी-जल्दी सीं कच्ची।

क्रमश........

Brijendra Negi

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    (62)

म्वाड़ा म्वरीं यूँ शरब्यू का
कुछ भि पे जंदी सच्ची,
कलच्वणी, पिशाब, गौंत
सड़का जंदी समझी कच्ची,

कलत्याण, चर्याण, गौत्याण
गन्द-बास कुछ नि समझदा,
चट्ट बंद कै कि नकप्वड़ी
गटका जंदी ईं कच्ची।


    (63)

पंचैत सचिव, ग्राम सेवक भैजि
पोस्टमास्टर, पोस्टमैन भि सच्ची,
म्यारा रोज का गैक छन
जो नकद लिजंदी  कच्ची,

डाक्टर, मास्टर, चपड़सि, बाबु,
बिजली-पाणि वला भैजि,
यूँ खुण धरी रैन्द मेरि
अलग लुका कै कच्ची।

क्रमश.........
   

Brijendra Negi

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    (64)

गुंडा, बदमाश, लुच्चा, लफंगा
घर-गुदड्या, लौंडा-लफाड़ी सच्ची,
दिनभर रिंगणा रंदी सब्बि,
पीणा खुण ईं कच्ची,

ग्वेर-बछेर, कौथगेर, मजदूर
दाना-दिवना, इसक्वल्या नौना,
बक्त-कुबक्त पर आ कैकि
मगणा रंदी बस कच्ची।


    (65)

भेंट-डड्वार, नगद-नारैण
दगड़ द्वी बोतल कच्ची,
देकि भि निझर्को नि छौं
माँ-कसम ब्वल्दु मि सच्ची,

बिना सिंगूँ का लुच्चा-लफंगा
जौंका खालि कीसा झटका भारि,
सिंगाणा रंदी बक्त-बेबक्त
लूछी ली जंदी कच्ची।

क्रमश........

Brijendra Negi

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    (66)

म्यारी ड्यारम दारू पेकि
प्याज खा जंदी कच्ची,
पैसा जब भि वूंमा मांगो
घपरोल कै दिन्दी सच्ची,

मेरि जननि पर नजर रैन्द
तौं निर्भग्यू कि भारि,
ब्वल्दी तब पैसा द्यूला
जब ‘बौ’ पिलाली कच्ची।


    (67)

सींग वल कु बल सिंग पखड़
ल्वालु मुंडकु क्य पखडन सच्ची ?
जौंका कीसा पैली रीता
वूँमै क्य झप्वड़न सच्ची ?

घुंड-घुंड फुकेगीं पर
तौं किराण नि आणी चा,
बाल-बाल डुबै कि कर्ज मा
पीणा छीं ईं कच्ची।


क्रमश........

Brijendra Negi

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    (68)

खत्यूँ – बित्यूँ, गयु – गुजर्यूँ
पढ़यूँ – ल्यख्यूँ, चंट-चलाक सच्ची,
सब्बि पीणा छीं इन्नै-उन्नै बटी
टिंचरि – थैलि कि कच्ची,

आग लगाकि टिंचरि पीणा
जिकुड़ी फुकेगीं तौंकि,
कत्गै स्वर्ग सिधार गीं
दारू पेकि यख कच्ची।


    (69)

वल्या-पल्या गाँ बटी ल्यन्दी
लोग दारू पक्की-कच्ची,
गाँ - गाँ मा  पौंछदा
प्लास्टिक की थैल्यूँ मा कच्ची,

क्य ज्वान, क्य बुढ्या
सब्यूंकी टक्क लगी रैन्द,
लैन लगाकि लिंदी सब्बि
गाँ मा पौंछद जब कच्ची।


क्रमश........

 

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