Author Topic: Articles & Poem on Uttarakhand By Brijendra Negi-ब्रिजेन्द्र नेगी की कविताये  (Read 29138 times)

Brijendra Negi

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गिरता रुपया


कौन कहता है कि
रुपया गिर रहा है
पहले
एक डालर के
पचास रुपये मिलते थे
अब
सत्तर मिल रहे हैं।

......

Brijendra Negi

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हे आशा के राम


      (1)

तृण-तृण समेट कर, भक्त बन गए गरीब।
दशवंत कोई भेंट मांगता, किस्सा बड़ा अजीब।
किस्सा बड़ा अजीब, धन का लाचच छोड़ो।
धन-रिस्ते-नाते मोह जगाते, सबको तोड़ो।
सबकुछ गुरु के चरणों में, जा अर्पित कर दो।
फाके खाओ खुद, गुरु को मालामाल कर दो।


      (2)

भौतिक सुख की लालसा, लिये संत महान।
अंधविश्वासी पूजन लगे, सुनने लगा जहान।
सुनने लगा जहान, धूर्त, पाखंडी बाबाओं को।
भक्तशिरोमणि निकले, मिटाने भव-बाधाओं को।
हर तरह के कष्ट हरण का, भरते दंभ बड़े।
अर्पण कर सर्वस्व अपना, साष्टांग हुए पड़े।


      (3)

कपट-कुटिया एकांत में, बैठे गुरु कुसंत।
मतिभ्रम-अंधविश्वासियों का, होता यहीं पर अंत।
होता यहीं पर अंत, जिसका विभ्रम हुआ था । 
छाया भूत-प्रेत की होती, वह भ्रम मिथ्या था।
स्वच्छ लिबासी दिन में, जो महान आत्मा थी।
घनघोर रात्रि में वही आत्मा, प्रेतात्मा बनी थी।


      (4)

आशाएँ कुचली-मसलीं, हे आशा के राम।
जीवन कलंकित कर दिया, कैसा तेरा काम ?
कैसा तेरा काम, सुबह-शाम कथा बाँचता।
मध्य रात्रि के अंधकार में, रास रचाता।
छदम भेष में कैसा, तेरा रूप ये बसता।
हर भक्तन को देख, जिसका लार टपकता।


      (5)

महान संतों की आत्माएं, आज बिलखती।
कैसा ये छद्म बढ़ा है,  चिंतन करती।
चिंतन करती, कैसा ये अनाचार फैलाया।
संतो के चोले में कैसे, दुराचार समाया।
संत समाज के प्रथा थी, नव-जागरण की।
कैसे अब इज्जत बचेगी, इस आवरण की।


      (6)

आशा है सदबुद्धी देंगे, तुमको मेरे राम।
मर्यादा का पाठ मिलेगा, शांत होगा काम।
शांत होगा काम, तुम्हारी राह सुधरें।
उत्तर-जीवन के तुम्हारे, दिवस न बिखरें।
युगों-युगों तक ये,  अपयश अमिट रहे।
ताकि भविष्य के संत, सदैव सजग रहे।

........


Brijendra Negi

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ट्वपलि फरकै कि


कालि-कलचुंडी ट्वपलि पर,
सफ़ेद अस्तर लगैकि,
गल्लादार बणी नेता जि,
मुंडलि मा ट्वपलि फरकै कि।


पैलि भैर-भित्र कालि,
अब भैर सफ़ेद, भित्र कालि,
कंडलि कु पात जन्नि,
द्वी-तर्फी झीस वलि।


गल्लादरी, नेतागिरी मा,
सौं-करार हजार करीं,
पैल मवसि कि मवसि चटीं,
अब सरकरि फ़ंड फुंजी।


झूठि-फीठी, रूणि-गाणि,
झाड़-झपोड़ी कूणा-काणि,
चाट-फूंजी सब्बि-धाणि,
नेताजि प्वड़ी लंबी ताणि।


ट्वपि दे-दे कि जनता रूणी,
ठगेणा छीं अब भि उन्नी,
विकास हूणू तन्नि-मन्नि,
सौं-करार उन्नि-का-उन्नि।


नकटंटा ट्वपलि फरकै कि,
चुनौ कु बक्त कर्दी रग्ग-बग।
पैलि छा ठगणी-क-ठग,
अब जाति-क-भि-ठग।
     .....

Brijendra Negi

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हिंदी  दिवस


आगया है माह सितम्बर,
हिंदी को स्मरण करने का।
ग्यारह मास से नींद में सोई,
राजभाषा जागृत करने का।


ढूंढ पुराने बिल्ले-बैनर
हिंदी दिवस आयोजित होगा।
गतवर्ष का संदेश पुनः 
काट-छाँट कर प्रस्तुत होगा।


एक बार बन गया जो बैनर,
कई वर्ष तक वही चलेंगा।
हर साल का माह सितम्बर
वर्ष की चिप्पी बदलेगा।

झाड़-पोंछ कर वर्ष सजाकर,
हर संस्था के द्वार टंगेगा।
सप्ताह, पखवाड़ा, मास मनाकर,
फिर अलमारी की धूल फांकेगा।


हिंदी दिवस के आयोजन का
अंग्रेजी में नोट बनेगा।
हिंदी दिवस की कार्यशाला में
वेलकम, थैन्क्स का बोर्ड लगेगा।


हिंदी दिवस के समापन पर,
कुछ को प्रशस्ति-सम्मान मिलेंगे।
वर्ष-भर की उपलब्धियों का,
उस दिन खूब बखान करेंगे।


भूल जाएँगे फिर हम हिंदी,
अंग्रेजी की राह पकड़ेंगे।
हिंदी में यदि लिखी टिप्पणी,
अंग्रेजी में अनुवाद करेंगे।


अंग्रेजी का ओढ़ आवरण, हिंदी की थामे मशाल।
जोत प्रज्वलित करते हैं, सिर्फ सितम्बर में हर साल॥

अंग्रेजी की बभूति सजती, बचपन से जिनके भाल।
हिंदी उनके दर पर, होगी अपने आप निढाल॥

यद्धपि रस, छंद, अलंकारो से, हिंदी सुसज्जित है।
अंग्रेजी भाषा के सम्मुख, फिर भी लज्जित है॥

Brijendra Negi

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पितृ पक्ष


जीवनपर्यंत दिया नहीं दाना,
मृत्योपरांत पितृ-देव माना।
पितृ-पक्ष में व्यंजन नाना,
अर्पण-तर्पण याचना नाना।


लो आया फिर पितृ-पक्ष,
बारह मास में एक पक्ष।
भय-भाव से होगा श्राद्ध,
सारे संकट संग में याद।


पितृ-प्रसाद सुरिचिपूर्ण,
दान-दक्षिणा कर सम्पूर्ण।
दूर होंगें सब पितृ-दोष,
भरते रहेंगें वर्ष भर कोष।


संकट मोचक बनेगें वो,
संकट में हर बक्त जिये जो।
जीवन में जो रहे उपेक्षित,
मृत्योपरांत हो गए परीक्षित।


मृत्यु-मृत्यु में कैसा भेद, संतान-निसंतान में विभेद। 
संतानयुक्त को पितृ-दोष, निसंतान को सीधे मोक्ष।


जीवन भर जो रहे अतृप्त, श्रद्धों में हो रहे तृप्त,
मानस तेरा कैसा भाव, जो जीवित से अच्छा मृत।

Brijendra Negi

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खादी का भेष


खोट युक्त इस खादी से, त्रस्त हुआ ये देश।
हर तरह बदनाम हुआ, खादी का ये भेष।। 
खादी का ये भेष बना, नित-नित रूप अनेक।
सब धर्मों में जा मिलता, माथा अपना टेक।
धर्म-जाति की भावना पर, करके हरदम चोट।
आहत ऐसे करता जिससे, उपजे मन में खोट।1.


देखी इनकी हमदर्दी, जो फैलाती है क्लेश।
मानवता के नाम पर, कुछ भी बचे न शेष।।
कुछ भी बचे न शेष, जग में हो इतना विद्वेष।
भाई की गर्दन काट कर, खादी को कर दे पेश।
मलिन न हो मन, ऊपर से खूब बखारें शेख़ी।
कहो कहाँ ऐसी तुमने, मिसाल अनूठी देखी ? 2.


सीमा पर जवानों के, जब भी कटते शीश।
घर-घर में मातम, दर्द से सीने फटते ईश।
दर्द से सीने फटते ईश, ऊपर नमक छिड़कते। 
भर्ती होते हैं सेना में, शीश कटाने बकते।
लाख-दो लाख की कीमत, कटे शीश की हे माँ।
शहादत की भी नाप-तोल, और तय होती सीमा।3.   


खादी सुरक्षा में जिनकी, गोली होती सीना पार।
खादी ही उनको ठुकराती, तत्पर नहीं थे यार ।
तत्पर नहीं थे यार, सुरक्षा में अति खामी थी।
आतंकवाद ने इसीलिए, सीने में गोली मारी थी।
शहीद हो गए इनके, अब फोटो टांगेगी खादी ।
हर वर्ष अब इस दिन, फूल चढ़ाएगी खादी। 4.


ढाल बन जनप्रतिनिधि का, करते भ्रष्टाचार।
पांच वर्ष तक करते,  निरंकुश कदाचार।
निरंकुश कदाचार, मत पूछो क्या-क्या करते।
थल-जल-नभ -भूगर्भ, अपनी जेब में रखते।
धरती के सब अलंकार, सजते इनके भाल।
गाली बकते-बकते ये, पस्पर बनते ढाल। 5.


स्वयं सुरक्षा के लिए, बनाते हर कानून ।
वेतन-भत्ते-सुविधाएं, मन-माफिक कानून ।
अपनी इच्छानुरूप, विदेश भ्रमण पर जाते ।
वहाँ विदेशी बैंको में, देशी धन भर आते।   
संसद में मिल बैठ कर, बनाते ऐसे नियम।
जनता पर लागू हों, पर बचे रहें स्वयं। 6.


आवाम को दिया, सूचना का अधिकार ।
खुद संसद में किया, सब दलों ने प्रतिकार ।
साब दलों ने प्रतिकार, फिर ऐसा कानून बनाया।
राजनीतिक दलों को, कानून से दूर हटाया।
दल-दलों के खर्चे से, जनता का क्या काम।
चुनाव के वक्त भरें जो, उसे देखे आवाम ।7.


आप यदि अपशब्द कहे, खादी के खिलाफ।
विशेषाधिकार के हनन का, खादी करे विलाप।
खादी करे विलाप,  खुद संसंद में बकते।
महिला शक्ति को परकटी, महिमामंडित करते।
होता फिर कार्यवाही से, शब्द हटाओ का जाप।
आहत महिला शक्ति होती, क्षीण अपने आप ।8.   

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Brijendra Negi

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मैं निशब्द हूँ


(17)

देश की राजनीति में
नित बढ़ती हिंसा से
स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।

हिंसा की राजनीति में
नित बहते रक्त से
स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।


(18)

नेताओं के वक्तव्यों में
नित बढ़ती अमर्यादा से
स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।

अमर्यादित वक्तव्यों में
नित बढ़ती निकृष्टता से
स्तब्ध हूँ
        मैं निशब्द हूँ।
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Brijendra Negi

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कच्ची


        (97)

म्वरण बैठला जब भि ये,
कल्वड़ि नि ख्वज्याणी सच्ची।
यूंका हथूँ मा पखड़ा दीण
बोतल भोरी कच्ची।

यूंका गिच्च घ्यू नि डलुणु
कच्ची डाल दीण नीट,
नवाण कु गंगाजल निल्हाणु
कंट्री मंगा दीण  कच्ची।


       (98)

दारू पिईं ह्वे जौंकि छक्के
इन्ना म्वड़े ल्ह्यणी सच्ची।
सांग उठवाण पैलि वूँमा
जौंकि भट्टी थड़काणी कच्ची।

पिंड-दान जम्मा नि कन्ना
ढूंगु मा यूखुण कुछ नि धन्नु
आत्मा तृप्त कन्न यूंकि
तुमड़ी मा धैरि कच्ची।

क्रमश.....


Brijendra Negi

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कच्ची


    (99)

दारू पिईं ह्वे जौंकि छक्के
इन्ना म्वड़े ल्ह्यणी सच्ची।
सांग उठवाण पैलि वूँमा
जौंकि भट्टी थड़काणी कच्ची।

पिंड-दान जम्मा नि कन्ना
ढूंगु मा यूखुण कुछ नि धन्नु
आत्मा तृप्त कन्न यूंकि
तुमड़ी मा धैरि कच्ची।


      (100)

मड़घट मा कच्ची छिड़िकि
चिता बणणी यूंकि सच्ची,
मुखाग्नि दीण से पैली
गंगाजल सि छिड़कण कच्ची।

चिता ठंडी कन्न कु
पाणि नि कन्नु गंदु,
द्विया हत्थू ल उंडेल दीण,
अंज्वली भोरि-भोरि कच्ची।


क्रमश............

Brijendra Negi

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 कच्ची


           (101)

आग दीन्द आँसू नि ढल्की
पैग लगणी याखुण सच्ची,
चिता का चक्कर लग्वणी वूमा
जो तंगत्याट कन्ना हवीं सच्ची।

चिता कु चौछ्वड़ि बैठाकि
म्वड़यूँ, बामण, आपतस्नौ थै,
पिला-पिला कै छका दिणी
छम्वटु लगा-लगाकै कच्ची।


(102)

इकादसी दिन कटुड्यों थै
छ्क्कै पिला दीण सच्ची,
द्वादस खुण ब्रमभोज मा
पैलि पिला दीण कच्ची।

बर्षी का दिन सब्यू खुण
बार लगा दीण सच्ची,
जो जत्गा घतेल साकु
उत्गा पिला दीण कच्ची।

क्रमश----

 

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