कच्ची
(91)
पद, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा हर्च
कुछ नि बच्यूँ बाकि सच्ची,
तिमला का त्यारा तिमला खत्येन
अर नंगि का नंगि दिखेई सच्ची,
हे ! अवगुणी अबेर हूणी चा
अब त सुधर जा सच्ची,
न अलझ अब रे अभागी
फुण्ड फूक सीं पक्की-कच्ची।
(92)
न सेवा-सौंलि मा दे कच्ची,
न सौं-करार मा पे कच्ची,
न तड़क-भड़क मा दिखा कच्ची,
न दैल-फैल मा पिला कच्ची,
न घूस-रिस्पत मा दे कच्ची,
न सुविधा पाणा कु पिला कच्ची,
न अतै-बितै कि आर-सार कच्ची,
न उदेल-उखेल कु रस्ता कच्ची।
क्रमश........