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hum kyun nahi sikhate apne bacchon ka pahari

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Author Topic: Why Do We Hesitate in Speaking our Language? अपनी भाषा बोलने में क्यों शरमाते हम  (Read 43819 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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मेहता जी या बात ता ठीक बोली आपल घर म छुट्टा बच्चा ता हिंदी म बच्यान्दी हम दगडी पर बड़ा व्हेकि बढ़िया अपुरी भाषा बच्यान्दी

भाषा के बचाई राखन ले एक बहुत ही ठुली समस्या छो!  उत्तराखंड भे बाहर रूनी वाल परदेशी के लीजी यो एक ठुल चुनौती छो!

आपुन बोली एव आपुन भाषा क प्रचार एव प्रसार क लीजी प्रयास जारी रखन चैनी!

  १) जब ले हम लोग आपुन में मिलुँनु एव बात करनू हमें आपुन बोली मा बात कारन क कोशिश कारन चै!

  २) लोक संगीत क मंचो में ली आपुन बोली क प्रचार एव प्रसार उन चै !



Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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ek baat batao kail ko ki hum sarmanu apud bhasa boli bulan mai.. jo sarma ya phir bhal ni lagan uge to rahn diyo ne.. tumuge ke farak padno..

kam se kam tum to bulao.. tum log le ghar fan aapu nantina dage angrezi mai baat karcha yaar.. kai galat to ni kai di mil..

सत्यदेव सिंह नेगी

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सही बोलना छावा मोहन दा पर नना नौना नौनी त अभी नि बोली जन्दा वूनका दगडी कई दा हिंदी माँ बच्याण पोडंद अभी
ek baat batao kail ko ki hum samanu apud bhasa boli bulan mai.. jo sarma ya phir bhal ni lagan uge to rahn diyo ne.. tumuge ke farak padno..

kam se kam tum to bulao.. tum log le ghar fan aapu nantina dage angrezi mai baat karcha yaar.. kai galat to ni kai di mil..

Devbhoomi,Uttarakhand

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अपनि भाषा का सम्बन्ध म

आदरणीय
उत्तराखंड कि गढ़वाली कुमाउनी भाषा क सम्बन्ध म कुछ सकारात्मत प्रयाश हुणा छीं ! ब्वन म  अर कन म बहुत अंतर छ ! हमरु उद्देश्य छ कि हमरी भाषा पठान पाठन क रूप म स्कूलों म पढये जाऊ ! उत्तराखंड कि गढ़वाली कुमाउनी भाषा क जतगा भि कवि, साहित्यकार छीं ऊँ से हाथ जोडिक सेवा छ कि उ संपर्क करीं ! अपनि भाषा का देश विदेश माँ जतगा भि गढ़वाली कुमाउनी भाषा क कवि व साहित्यकार छीं हम ऊँ थाई देहरादून म हूँ वलु साहित्य सम्मेलन म आमंत्रित करण चंदव !
आप सभि थई एक बात कि जानकारी दीन चंदू कि उत्तराखंड कि गढ़वाली कुमाउनी भाषा क स्थानीय ध्वनियाँ कि खोज गढ़वाल  विश्व विद्यालय बटी "गऊं आखरों" क रूप म ह्वे छुकी ग्याई ! भविष्यम देवनागरी लिपि दगडी यों ध्वनि चिन्हों कु प्रयोग करे जालु, यु हमारू विशष छ !
 
धन्यवाद
 
डॉ बिहारीलाल जलंधरी

Devbhoomi,Uttarakhand

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शहरों में आज कल लोग अपनी बिरादरी, गाँव के लोगों से मेल जोल कम रखते हैं और अपने ऑफिस या पड़ोसियों से ज्यादा मिल जोल रहता है . अगर लोग अपने बच्चों को अपनी बिरादरी और गाँव, रिश्तेदारों के शम्पर्क में ज्यादा रखे तो अपनी संस्कृति और भाषा को बढ़ावा मिल सकता है..
 
आज अधिकतर लोग गढ़वाली पूरी समझ लेते हैं लेकिन बोलने में झिझकते है...कोई भी ब्यक्ति अगर किसी भाषा को पूरा समझ सकता है तो बोल भी सकता है, जिनसे कि हम लोग अंग्रेजी हरयाणवी पंजाबी समझ लेते हैं और अक्षर बोलते भी है... खासकर हरयाणवी और पंजाबी भी कई  गढ़वालियों को बोलते सुना जा सकता है तो गढ़वाली क्यों नहीं....
 
अगर यही झिझक हमारे लोगों के अन्दर से हट जाये तो भाषा अपने आप उन्नति करेगी. और झिजक को हटाने के लिए हमें अपने नई पीढ़ी को गढ़वाली फिल्म्स, कवितायेँ गीत, इत्यादि की तरफ ले जाना होगा. और ये तभी हो सकता जब हम अपनी भाषा बोलने में कोई झिझक नहीं करेंगें !

लोग वेदेशों में रहकर जाप्निज,रसियन और स्पेनिस सीख सकते हैं और कभी किसी उत्तराखंडी से मुलाक़ात होती है तो उससे वो अंग्रेजी में बात करना शुरू हो जाते हैं चाहे अंग्रेजी आये या नहीं आते हुए भी उल्टा सीधा बोलते है लेकिन ये जानने के बाबजूद भी की सामने वाला उत्तराखंड से बिलोंग करता है तो भी अंग्रेजी फेंकते है,जबकि उत्तराखंडी भाषा उनको आती है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरा मानना है, हमारे सामाजिक प्रोग्रामो में भी अपनी भाषा का प्रयोग होना चाहिए! अगर हमारे राज नेता चुनाव प्रचार में भी स्थानीय भाषा का प्रयोग करे तो भाषा का प्रचार एव प्रसार में इससे मदद मिलेगी !


KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Greatd daju,

Jish tarah apne bataya ki Kukreti ji Garwali Bhasha ke sath Angreji aur Hindi me bhi sasakht lekhan karte hain.....Jo ish Nimantran Patra ko dekhane se bhi spasth ho jata hai kyonki isme bhi teeno (Garwali, Angreji & Hindi) kaa mishran hai.....

हमारे फोरम के सदस्य श्री भीष्म कुकरेती जी गढवाली भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी और हिन्दी में भी सशक्त लेखन करते हैं. अपनी दुधबोली के लिये उनका लगाव इतना अधिक है कि उन्होंने अपने पुत्र के विवाह का निमन्त्रण पत्र भी गढवाली बोली में छपवाया.. 





एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरा मानना है बिना बोली के संस्कर्ती का विकास नहीं हो सकता!

कभी-२ मुझे ख़ुशी होती है उत्तराखंड के bahut लोग जिनकी पैदयास दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और अन्य महा शहरों में हुयी है, लेकिन वो बहुत अच्छी पहाड़ी बोलते है, इसके पीछे सिर्फ उनके माँ बाप का योगदान है और इन लोगो की रूचि भी !

हमारा सदा प्रयास रहना चाहिए ही अपनी बोली में ही ज्यादे बात करे अब आपस में मिले !

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Ekdam sahi kuno chha ho daju.... meel le ek patrika me ken pado ki aaj Bangala bhasaa bharatak teesar numbrek bhasha chhu kaber...jo bharat me hindi aur angreji baad sabse jyada balayi jen......

मेरा मानना है बिना बोली के संस्कर्ती का विकास नहीं हो सकता!

कभी-२ मुझे ख़ुशी होती है उत्तराखंड के bahut लोग जिनकी पैदयास दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और अन्य महा शहरों में हुयी है, लेकिन वो बहुत अच्छी पहाड़ी बोलते है, इसके पीछे सिर्फ उनके माँ बाप का योगदान है और इन लोगो की रूचि भी !

हमारा सदा प्रयास रहना चाहिए ही अपनी बोली में ही ज्यादे बात करे अब आपस में मिले !

Devbhoomi,Uttarakhand

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मेहता जी नेताओं की बात की हैं आपने की नेताओं को अपनी भाषा का प्रयोग करना चाहिए,क्या उत्तराखंड की सरकार मैं एक भी ऐसा नेता है जो की अपनी दुद्बोली भाषा जनता हो सायद ही होगा कोई ,अब तो गांवों में रहने वाले ग्राम वासी भी आजकल अपनी लोकल भाषा बोलने में हिचकिचाते हैं शहरों की तो बात ही अलग है !

 

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