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hum kyun nahi sikhate apne bacchon ka pahari

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Author Topic: Why Do We Hesitate in Speaking our Language? अपनी भाषा बोलने में क्यों शरमाते हम  (Read 43825 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Mukund Dhoundiyal <ml.dhoundiyal@gmail.com>

     

    प्रिय बंधुवो
     
      जब भी... हम   लोग  आपस माँ  मिल्दां   ता  हम   तैं  हमारी अपणी  बोली कु इस्तेमाल करण चएँदु ..

    हमारी   अपणी  बोली कु     "लोप"       तेजी से  होन्दा जाणू  च और   हमारी अपणी  बोली  बोलणा  वाला    भी  तेजी कम   होन्दा  जाना छीं

     वू दिन दूर नि च    की  जब   हम  अपणी  अपणी बोली सुणना का वास्ता  तरसी जौंला

      हमारा मुल्क      माँ        यद्यापि  .......हर ५ किलोमीटर की दूर माँ बोली माँ  परिवर्तान    ह्वेई जंद

    लेकिन  वू ता स्वाभाविक ही च 

     हमारा प्रदेश  की   सबबी   बोली    आसानी से समझी जय सकदी ...  वी माँ कवी    कठिनाई   नि  च

    पहाड़ी    बोली    कवी भी  हो  ...   समझ   माँ आसानी से  एई जांद

    एक बार .... हम तैं अपणी झिझक  .    दूर करना    पोड्ली
    केवल   एक  बार.....
     हमारू अपणु आत्म विश्वास हम तैं    धीरे धीरे   एक  " गति "  प्रदान जरूर करलू 
    और  तब  होलू  महसूस   एक  विशेष  और विशिष्ट आनंद कु अनुभव  .....
    जैकू तैं  बोल्दीना  " गूंगे का  गुड"
    यु मेरु पक्कू   विश्वास  च ......

    ता  फिर करा   भै .... फिर   शुरू ..हमारी अपणी  बोली ....आज  बीटी ...........

    न .....न......आज  बीटी   न... न  .......

    अभी बीटी   भै ...

    शुभ काम माँ.......... देर किलई  ? 

Devbhoomi,Uttarakhand

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हमारी द्वि बोलीयों कु लोप होन्दा जाणु च रे


*ये भै बन्धो *
*म्यारा पर्वतीय नौनिहालों** *
**
*ये भूलौ ....ये बेटो .... , ...*

*अपना आपस माँ जब भी वार्तालाप करदां ता अप्नि भाषा बोली कु प्रयोग कारा
रे...*
**
***ये बेटो ...* *हमारी बोली कु लोप होन्दा जाणु च रे*
**
*ये नौनो ... हमारी बोली कु लोप होन्दा जाणु च रे*
**
*ये संसार माँ क्वी भी "जाती" अपनी बोली का भरोसा ही जिन्दा रै
सकदी .... *
**
*बिना बोली का मनिख्यों की पछ्याण नि च और अप्नि पछ्याण का वास्ता "बोली" कु
जिंदु रेणु ज़रूरी च *
*

आप्णि बोली थैं जिंदु रख्णु पोढ़दू.. ....

जै की बोली भाषा माँ जतना भी मिठास ह्वेइली वीं बोली का लोगु की उतना ही
इज्ज़त हवेली
*
*हमारू यु प्रयास...हर दिन.. हर पल.. रेणु चैयंदु की हम वार्तालाप अपनी
सीधी सरल बोली माँ करां..*
*गद्वोली आदिम गद्वोली माँ और कुमाओं आदिम कुमाओं बोली माँ बोल्यां.. *
**
*हमारी द्वि भाषा गड्वाली अर्र कुमैयाँ सब्बी लोगो की समझ माँ आसानी से
एई जांदी थोडा बहुत प्रयास कर्ना से बोलाणु भी एई जालू *
**
*यु द्वि बोली उत्तराँचल की ही ता छीन और यु माँ मामूली फर्क च..*
*शुरू शुर माँ थोड़ा सी दिक्कत महसूस जरूर होली लेकिन एक द्वि बगत बोलान चालान
से वू भी जरूर आसानी ह्वेई जाली
*
**
*यु मेरु विश्वास च.. *
**
*ता भूलों और नौनियालो आज बीटी.... ना ना अब्बी बीटी....यु भलु काम शुरू कैरी
दीयो
*
**
*और हाँ एक बात और विशेष च की हमारी भाषा माँ जख एक मिठास च ताखी वेई माँ
अपना विचार की सरलता, सौम्यता और साथ ही साथ गोपनीयता भी ...*
*जरा एक बोला ता सही ..फ़िर देखो कतना मिठास महसूस होंदी कत्गा अछू
लगदु और कत्गा आनंद औंदु

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हामी सब लोगो के आपुन बोली कै प्रमोट कर चे!


Narendra Singh Bisht

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pahari bolana
« Reply #153 on: January 16, 2011, 02:50:55 AM »
जब कि हम पहाडी हैं फिर भी हम यदा-कदा ही पहाडी बोलते हैं मम्मी को इज्या, पापा को बाबा, दादा - दादी को बूबू- आमा आदि कुछ भी शब्दों को हम नहीं सिखा पा रहे हैं बच्चों को अपनें. सोचिये......

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जब कि हम पहाडी हैं फिर भी हम यदा-कदा ही पहाडी बोलते हैं मम्मी को इज्या, पापा को बाबा, दादा - दादी को बूबू- आमा आदि कुछ भी शब्दों को हम नहीं सिखा पा रहे हैं बच्चों को अपनें. सोचिये......

बिष्ट जी.... बिलकुल सही कहा आपने.. ..

हामी लोग ते यो विषय में काम करण क जरूरत छा !  भाषा नाना नौनी ते सीखूंन क सबसे बढ़िया उपाय आपुन ग़ोर बाटी छा !

Devbhoomi,Uttarakhand

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ऑफिस एक ऐसी जगह, जहां आपको विभिन्न पदों के साथ तालमेल बनाए रखते हुए कार्य करना होता है। यह तालमेल ही आपकी सफलता और कॅरियर प्रगति में मुख्य आधार बनता है। सही तरीके से अच्छी छवि बनाए हुए आगे बढ़ना कुछ विशेष सोच-विचार की मांग करता है। जिसमें आपकी भाषा भी अहम है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I would request to all, please teach your children your regional languages then only culture will also survive.

Devbhoomi,Uttarakhand

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हम अपने बच्चों को तभी अपनी भाषा और बोली सिखा पायेंगें जब हम खुद,जानते हों,बोलते हों ये तभी संभव है,और हमें अपनी भाषा और बोली को बोलने और सिखाने मैं कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आपुन बोली जीवित छो तो, आपुन संस्कृति जीवित छो!

हिंदी, अग्रेजी क अलावा आपुन बच्चो के आपुन मात्र भाषा क ज्ञान दिण ले जरुरी छो! यीक लीजी परिवार में यस किसम क माहौल बनूँ जरुरी छो!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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