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वात्सायन कृत कामसूत्र का गढ़वाली अनिवाद )भाग -१
संस्कृत व गढ़वाली भाषा में काम शास्त्र का संक्षिप्त इतिहास
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संस्कृत अर गढ़वळिम कामशास्त्र विषयक शाश्त्र इतिहास
संकलन - भीष्म कुकरेती
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कामसूत्र अनुशीलन का रचियिता -वाचस्पति गैरोला तै समर्पित
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भारतीय नीति शास्त्रों या भारतीय जीवन सिद्धांत अनुसार म सुखी मानव जीवन यापन कुण चार उद्देश्य प्राप्ति अवहसिक छन - धर्म (आचरण व नीति ) , अर्थ (आर्थिक व कर्म ) , काम (प्रेम ) अर मोक्ष (आध्यात्मिक) । काम अर्थात प्रेम व श्रृंगार या रतिक्रिया जीवन हेतु अति महत्वपूर्ण छन अर प्रजनन हेतु तो अत्यावश्यक छन है। जै शास्त्र म में प्रेम , श्रृंगार , रति क्रिया , आकर्षण हेतु कलौं बारा म चर्चा ह्वावो वाई तै आम तौर पर कामसूत्र बुल्दन या कामशास्त्र।
. महर्षि वात्सायन कृत काम सूत्र आधार पीठिका -
काम शास्त्र साहित्य कु आधार पीठिका च महर्षि वात्सायन कृत 'काम सूत्र'। वात्सायन कृत काम सूत्र सूत्र ब्यूंतम च अर बड़ो व्यापक व कुछ सरल बि च। इलै काम सूत्र साहित्य इतिहास तीन काल खंडों म बांटे जांद -
अ - वात्सायन काल से पैलाक काम सूत्र साहित्य ( पूर्व वात्सायन काल)
ब - वात्सायन कालौ काम सूत्र साहित्य (वात्सायन काल )
स - वात्सायन कालौ पैथरो काम सूत्र साहित्य (पश्च वात्सायन काम सूत्र काल )
पूर्व वात्सायन काल ( वात्सायन काल से पैलक काल )
कैपणि बोल च बल प्रजापतिन प्रणयन विधि से एक लाख अध्यायों म कामसुत्रो पवाण लगाई। अर कुछ समौ उपरान्त मनुष्य हिट साधन उद्देश्य से एक संक्षिप्त रूप तैयार करे गेन।
पुराण संदर्भ बतांदन बल महादेवौ इच्छानुसार नंदीन एक सहस्त्र अध्यायों म कामसूत्रो सक्षिप्तीकरण कौर त ये तै हौर बि उपयोगी बणानो कुण उद्दालक पुत्र श्वेतकेतु न ५०० अध्यायों म (सुखशास्त्र कामशास्त्र ) क्रांतिकारी बदलाव ल्हैक संक्छिप्त करि प्रसिद्ध कार। (वात्सायन कामसूत्र ०१ /१ /९ )
यांक उपरान्त आचार्य बाभ्रव्य पांचाल नपुनः सुखशास्त्र म बदलाव लायी, डेढ़ सौ अध्याय अर सात अधिकरणों ( साधारण , साम्प्रयोगिक , कन्या स्नम्प्रयुक्तक , भार्याधिकरण , पारदारिक , वैशिक औपनिषदिक ) मा निर्माण करी वै तै आम लोगों लैक क बणाी अर प्रसिद्ध कार (कामसूत्र १ /१ /१० ) ।
कालांतर म आचार्य बाभ्रव्य पांचाल का अधिकरणों पर आधारित महान आचार्यों न स्वतंत्र अधिकरण ग्रंथों निर्माण कार। बाभ्रव्य क बारे म वात्सायन न बड़ो सम्मान से उल्लेख कार।
क - आचार्य चारायण द्वारा साधारण अधिकरण पर ग्रंथ निर्माण कार ( विषय प्रस्तावना अर जीवन शैली )
ख - आचार्य सुवर्णनाभ न साम्प्रयोगिक पर स्वतंत्र ग्रंथ रच (संभोज से पैल प्रयोग या आनंद ) -
ग - आचार्य घोटकमुख न कन्या स्नम्प्रयुक्तक पर ग्रंथ निर्माण करि ( जीवन साथी चुनौ ) कामसूत्र अर कौटिल्य कु अर्थ शास्त्र म संदर्भ मिल्दो।
घ - विद्वान गोनर्दीय (पतांजलि ) न भार्याधिकरण पर रचना करि ( पत्नी विषयक ) कामसूत्र अर कौटिल्य कु अर्थ शास्त्र म संदर्भ मिल्दो।
च - गोणिकापुत्र न पारदारिक पर ग्रंथ रची ( परनारी संबंध ) - वत्स्यण का कामसूत्र म चौथो अध्याय म संदर्भ मिल्दो।
छ - दत्तक द्वारा वैशिक पर स्वतंत्र ग्रंथ रचे गे। दत्तक कु संदर्भ कामसूत्र टीका जय मंगला म च
छ- कुचुमार न औपनिषदिक पर ग्रंथ रची ( आनंदित संभोग हेतु कृत्रिम प्रयोग ) I मद्रासँ पाण्डुलिपि उपलब्ध।
यूं पृथक रचनाओं क कारण कामसूत्र विद्या तै लाभ नि ह्वे अपितु उच्छिन्न ह्वेक गलतफहमी ही उतपन्न ह्वे। वात्सायन न यूं सात अधिकरणों सारांश 'कामसूत्र म करि अर अन्वश्य्क भ्रान्ति छे वा दूर करी।
---- वात्सायन कु कामसूत्र काल ----
वात्सायन न सब बिखर्यां अधिकरणों तै इकबटोळ करि काम सूत्र ग्रंथ की रचना करि। इन मने जांद बल कामसूत्र क रचना काल ३ सदी को च।
कामसूत्र म निम्नी अध्याय छन -
१- साधारण अधिकरण
२- रतिशास्त्र (साम्प्रयोगिक )- सर्वाधिक महत्वपूर्ण अध्याय
३- कन्यासम्प्रयुक्तक
४- भार्याधिकारिक
५- पारदारिक
६- वैशिक - वैश्या आदि वर्णन
७- औपनिषद्क - औषधि आदि।
---------------कामसूत्र पर टीकाएँ -----------
वात्सायन कु 'कामसूत्र' पर चार टेका उपलब्ध छन -
१- आचार्य यशोधर कृत 'जय मंगला (१२४३- १२६१) ई
२- वीरभद्र देव विरचित पद्यबद्ध टीका ' कंदर्पचूड़ामणि (१५७६ ई ) ।
३- भास्कर नरसिंघ द्वारा रचित ' प्रौढ़प्रिया (१७८८ ई )। द्वी टीकाएँ छन
४- आचार्य मल्ल देव रचित कामसूत्र व्याख्या
------------------------वात्सायन पश्चात रति शास्त्र रचना ----------------
मध्य युग म रति शास्त्र संबंधी भौत सा ग्रंथों रचना ह्वे अर कुछ नया प्रयोग बी जोड़े गेन। निम्न ग्रंथ महत्वपूर्ण ग्रंथ छन -
१- पद्मश्रीग्यान कृत 'नागरसर्वस्व ( १० वीं सदी, ३१३ श्लोक , ३८ परिच्छेद )।
२- कल्याण मल्ल कृत 'अनंगरंग (१५ -१६ सदी , ४२० श्लोक , १० स्थलरूप अध्याय )।
३- प्रसिद्ध रति आचार्य कोक्कोम कृत 'रतिरहस्य ' (७ वीं -१० वीं सदी मध्य , ५५५ श्लोक अर १५ परिच्छेद ) या कोकशास्त्र । यु ग्रंथ इथगा प्रसिद्ध ह्वे बल लोक ये तै इ असली कामसूत्र समजदन।
४- कविशेखर ज्योतिरीश्वर कृत ' पंचसायक (१३ वीं सदी , ३९६ श्लोक , ७ सायक )।
५- जयदेव कृत 'रति मंजरी ( ६० श्लोक , ७ प्रकरण ) । .
६- मीननाथ कृत 'समर दीपिका' (२१६ श्लोक ) ।
७- साम्राज्य दीक्षित कृत ' रतिकल्लोलिनी' (१६८९, ई १९३ श्लोक )।
८- राजर्षि पुरुरवा कृत पौरुरवसमनसिज सूत्र
९- राजर्षि पुरुरवा कृत कादंबरस्वीकरणसूत्र
१०- हरिहर कृत श्रृंगारदीपिका ( २९४ श्लोक , ४ परिच्छेद ) ।
११- प्रौढ़देव रे कृत 'रतिरत्नदीपिका (१४२२-१४४८ ई , ४७६ श्लोक , ७ अध्याय ) ।
यांक आलावा १५ १६ ग्रंथों प्रकाशन (याने प्रेस प्रकाशन ) नि ह्वे किन्तु रचना हुईं च। जनकि -
१- राजशाह जी कृत ' श्रृंगारमंजरी (१६६४- १७१०) ।
२- नित्यानंद नाथ कृत 'कंकाओतुकम् '
३- रतिनाथ चक्रवर्ती कृत कामकौमदी
४- जनार्दन व्यास रचित कामप्रबोध
५- केशव कृत कामप्राभऋत
६- राणा कुम्भा रचित कामराज रतिसार
७-वरदार्य रचित कामानन्द
८- बुक्क शर्मा निर्मित काम्नीकलाकोलाहल
९- सबल सिंह कृत कामोल्लास
१०- अनंत रचित काम समूह
११- माधव सिंह देव निर्मित कामोद्दीपनकौमदी
-गढ़वाली लोक साहित्य म कामशास्त्र एक भ्रामक स्थिति च-
गढ़वाल म कामसूत्र संबंधी क्वी औपचारिक लोक साहित्य (folk literature ) उपलब्ध नी च ना हि मंत्र साहित्य जन जन जन मध्य क्वी साहित्य उपलब्ध च।
प्रजननांग शब्द द्रविड़ का छन
गढ़वाली म अधिकतर जननेन्द्रिय व रति क्रिया शब्द खस भाषा ना अपितु द्रविड़ भाषा का छन। कुछ शब्द जन ब्वरड़ (मर्द लिंग ) , पुस्सी (वीर्य ) अद्रविड़ शब्द होला।
यु एक आश्चर्य च जै देश म कामसूत्र जन साहित्य रचे गे उख रति विषय पर औपचारिक चर्चा करण पाप या बुरु मने जांद। उनी गढ़वाल म बि रति , रति क्रिया पर औपचारिक व खुले आम चर्चा नि ह्वे सकदी अर ना ही समाज म रति साहित्य की शिक्षा क प्रबंध ही च। त इन मा गढ़वाली समज म जु बि रति शास्त्र विषय म जो बि शिक्छा दीक्छा हून्द वो भ्रामक , अपरिपक्व व अवैज्ञानिक हूंद। एक उदाहरण - मि जब छुट छौ त एक बड़ा न मै बताई बल मर्द का वीर्य जब स्त्री का जनंन्दिर्य माँ जांद तो वीर्य धुंवा बण जांद अर वाई धुंवा से ही बच्चा पैदा हूंदन। इनि कु मर्द स्त्री तै रति सुख अधिक दे सकुद पर बि भ्रान्ति ही च।
स्त्री क माहवारी बारा म भ्रान्ति ही अधिक च समाज म बजाय वैज्ञानिक धारणा का। माहवारी बाद कब रतिक्रिया हो कि स्वस्थ बच्चा पैदा होवण बारा म क्वी वैज्ञानिक व स्थिर धारणा नी उपलब्ध। सन १९६० से पैल या आज बि ब्यौ से पैल वर वधु तै वैगेनिक व अपौचारिक शिक्षा क क्वी प्रबंध नी। बस शहरों म या गाँवों म शहरों से लीजायी पोर्न साहित्य ही रति विज्ञानं की भ्रान्ति पूर्ण शिक्षा माध्यम च।
समाज म खुले आम रतिशास्त्र पर चर्चा नि ह्वे सकद तो रति विषयक शब्दावली अधिकतर पर्तीकात्मक शब्दों से अभिव्यक्त हूंद जनकि kiss कुण मीर बुखाण आदि।
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औपचारिक रूप म भीष्म कुकरेती द्वारा कामसूत्र कु गढ़वाली अनुवाद की शुरुवात
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लगभग २०१० म भीष्म कुकरेती न इंटरनेट म कामसूत्र का गढ़वाली अनुवाद शरू कार किन्तु भारी चर्चा व विरोध (यद्यपि समर्थन बि कम नि छौ ) भीष्म कुकरेती न द्वी लघु अध्याय का बाद काम सूत्र कु अनुवाद बंध कर दे।
अब वात्सायन कृत काम सूत्र कु गढ़वाली अनुवाद निरंतर चलदो रालो।
Copyright@ Bhishma Kukreti 2021
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