Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 723975 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
पारम्परिक आयुर्वेदक कच्ची मकई का  पळ्यो पकाने की रेसिपी

पारम्परिक  आयुर्वेदिक कच्ची मुंगरिक  पळ्यो  पकाणो  विधि



   
-
Recipe for cooking Traditional Mungri  Palyo( Curd Curry of raw maize seeds  )
उत्तराखंड के   आयुर्वेदीय  पारपम्परिक भोजन व्यंजन विधि /पाक विधि/ पाक कला  श्रृंखला  भाग - 11
Recipe of Ayurvedic Traditional Food of Garhwal, Kumaon (Uttarakhand)part- 11
-
रुसाळ-  एस. पी. जोशी (यमकेश्वर )

आवश्यक सामग्री एक कडै वास्ता 
१.खट्टी छांछ 1LTR.
२.द्वी तीन मुंगरी कच्ची उधाडिक अर सिल्वट मा पिसिक रखणन
३. मुर्या क चटणी
पाक विधि
सबसे पैली कड़ही
 चुल्हा मा धरिक छांछ डाली द्याओ जतुक खट्टु आप खै सकदन उतुक रखणक बान कुछ पाणि भी डालो अर आंच हल्की हुण चयाणा।
फिर मुंगरिक मस्यट छांछ मा‌ डाली द्याओ, वेक बाद थुडा आंच बढै द्याओ अर लगातार छांच तै कर्चि पल्टा से चलाणा राओ, जब पल्यो थडकण बैठी जाल त दस मिनट हल्की आंच मा‌ पकण द्याओ अर वेक बाद भीम उतारि द्याओ, पल्यो तैयार च....थाली मा सौंरिक आप दे सकदो अर पल्यो मा‌ मुर्या की चटणी डालिक‌ सपडा सपोड करि सकदो यदि कुई‌ ज्यादा खट्टु नी खान्द त उंकुन गुड या चीनी डाली सकदो।

सर्वाधिकार - एस पी जोशी
बुकण्डी यमकेश्वर
  उत्तरखंड की   आयुर्वैदिक पारम्परिक भोजन  पका कला , Recipe for Ayurvedic  Traditional Cuisine of   Uttarakhand  , गढ़वाल की आयुर्वेदिक   पारम्परिक पाक कला, कुमाऊं की  आयुर्वेदीय पारम्परिक भोजन  पाक कला निरंतर , बुकंडी  वालों द्वारा आयुर्वैदिक कच्ची मकई की कढ़ी पाकविधि , आयुर्वैदिक कच्चे भुट्टों की कढ़ी , 


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

  स्वस्थ  और सुखी जीवन  हेतु भोजन  करने के सनातनी नियम

स्वस्थ व सुखी  रौणो  हेतु  भोजन जीमणो सनातनी नियम  


-
संकलन / अनुवृत - भीष्म कुकरेती
-
  भारत म कुछ दशाब्दियों से परिवर्तन दिख्याणु  च निथर भोजन मामला म भारतीय बड़ा नियमि छा।  आज हम  भोजन जीमणो कुछ सनातनी नियमों बत्रा म जणनै  कोशिस करला -
१- रुसाळ  तै नवै -धुएक ही भोजन पकाण चयेंद . रुस्वड़ क्षेत्र बी साफ़ , लिप्युं  हूण  चयेंद। 
२- भोजन जीमण से पंच इन्द्रियों  (हाथ , खुट , मुख ) तै धूण -सुखाण जरूरी हूंद।
३- जीमण  से पैल अन्न देवता , अन्न माता क ध्यान व स्मरण करणो अलावा धन्यवाद दीण जीमण  से अधिक जरूरी च।
४- भोजन  खाण  से पैल मन शुद्धि वा शांत कर लीण  चयेंद .
५- परिवार जनों तै दगड़ी  भोजन जीमण  चयेंद।  एक दिन म एक दैं  तो अवश्य।
६-  आयुर्वेद या प्राचीन भारत म भोजन का समय - द्वी समय - प्रातः काल व दुफरा म।   
भोजन जीमणौ दिशा -
१  - पूर्व व उत्तर दिशा सही दिशा छन।
कखम नि  जीमण -
१ -  खाट , टूटा फूटा वर्तनों म नि  जीमण
२- मल मूत्र या अन्य वेग का समय , झगड़ा , संभोग समय ,अर धार्मिक वृक्ष तौळ - बौड़ , पिपुळ तौळ  नि जिमण
३- खड़ा -खड़ी
  कुछ बर्जना सही छन
१- जलन , मोह भी , दीं भाव आदि म भोजन नि  खाण।
२-परोस्यूं भोजन की काट /निंदा नि करण
३- चबै -चबैक  खाण  चयेंद
कुछ हौर  वर्जना -
 १- गरिष्ठ व तीखो भोजन नि जिमण
२- तिरष्कृत , छोड्यूं ,  गर्व से. लापरवी से  परोस्युं /दियुं  भोजन नि  जिमण जुठ , भ्युं  गिर्युं  भोजन व पशुओं जुठ / भिड्यूं  भोजन  बि वर्ज्य च।
३- अधा  खाणक नि  छुड़न ,  खांद  दै रामा रूमी नि करण  ना ही हथ मिलाण  या सिवा लगाण , गाळी  नि  दीण।
भोजन जीमणो उपरान्त -
१-  जीमणों  परान्त एक दम  नि  सीण
२ - घुमणो  अवसर खुज्यावो किन्तु तेज भगण , घुड़सवारी नि  करण
३- अपण  शरीर अनुसार  आसान या ब्रजासन हभ्यास कारो

  क्षेत्रीय नियमुं  पालन -
प्रत्येक क्षेत्र का अपण  जलवायु अनुसार भोजन करणो  पारम्परिक  हिदायत हूंदन  यूंका   पालन  हूण  चयेंद। 
-
यी नियम चरक संहिता , अन्य नीति शास्त्रों व अन्य  स्रोतों  से  लिए गेन।   
 
 Copyright @  अनुवृत   च तो मेरो क्वी  मौलिक अधिकार नी च .
उत्तराखंड में भोजन करने के सनातनी नियम; गढ़वाल  में भोजन करने के सनातनी नियम;  कुमाऊं में भोजन करने के सनातनी नियम;  हरिद्वार में भोजन करने के सनातनी नियम;  देहरादून में भोजन करने के सनातनी नियम;


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

वृद्धावस्था में आनंदमय जीवन बिताने के  सिद्ध  सिद्धांत   

वृद्धावस्था म आनंदमय जीवन   बिताणो  सिद्ध सिद्धांत


 वृद्धावस्था : अर्थात सर्वोच्च  आनंद का स्वर्णिम अवसर बुढ़ापा : याने ख़ुशी का  दिन
-
संकलन - भीष्म कुकरेती
-
 वृद्धावस्था क्वी  दुखदायी अवस्था नि  हूंद अपितु सर्वोच्च आनंद प्राप्ति अवस्था हूंद।  प्रसन्न्तापूर्बक वृद्धावस्था बिताणो  कुछ सास्वत  कर्तव्य निभाण  आवश्यक च।  भारत म भौत सा नया शास्त्र व सिद्धांत वृद्धावस्था म ही रचे गेन  जन पंचतंत्र , महाभारत आदि।
१- अहम हीनता - अपण  सब अहम समाप्त कर द्यावो।   बिलकुल बिसर  जावो कि  तुम हौरों  से आयु म बड़ा छन ,  बिंडी ज्ञानी , बिंडी अनुभवी छा।  अहमहीन  हूण  ही सबसे बड़ो कर्तव्य च आनंदमय वृद्धाव्था वास्ता।  घमंड तो आनंद विरोधी च। 
२- दिन म तीन दै    (एक दैं बिजद ही ) अपण  जिंदगी का पांच आनंद माय क्षणों तै याद कारो।
३- सब कार्य सामजिक कल्याण हेतु ही कारो . जु  कर्म समाज कल्याण का नई होवन  वो नि  करण। परिवार,  समाज , देश , मानव हित  ही अब ध्येय हूण  चयेंद। एक इन शौक पाळो  जु समाज हितैषी ही हो।
४-  क्रिया शील जीवन अर्थात    नया शौक पाळो  जु  तुमन पैल  कबि  नि कौर होवन।
५- हर समय मुस्कराण  आनंद की  गारंटी च।  हर समय सकारात्मक ही सुचण। 
६- निंदा , मोह , व्यक्तिगत लाभ , हिंसा , चोरी , इर्ष्य  जन नकारात्मक मनोभावों से दूर रावो। 
७- शारीरिक व्यायाम व योग , प्रणायाम तै जवीन का भाग बणै  द्यावो।  स्वस्थ जीवन ही आनंदमय जिंदगी की गारंटी च। 
८- घुमण   तै एक हॉबी बणै  द्यावो। 
९-  रोज आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ो
१०- मित्रों से रोज मिलो व दूर का मित्रों से ह्वे  सौक तो बात कारो।
११- रोज सुबेर जोर से  तीन दै ब्वालो  "  मनुष्य १०० साल तक जीता है ,  मनुष्य १०० साल तक जीता है ,  मनुष्य १०० साल तक जीता है  "
१२ - बच्चों दगड़   ख्यालो।   बच्चों दगड़  (दस वर्ष से तौळ ) खिलणो  हर अवसर खुज्याओ
 भारतीय वानप्रस्थ  सिद्धांत से  आनंदमय जिंदगी बिताओ।   
-
क्वी copyright  नी  च
कैसे वृद्धावस्था में आनंदमय जिंदगी बितायी जाय , आनंदमय वृद्धावस्था जीवन बिताने के सिद्ध सिद्धांत। 
 यु लेख मौलिक नी  च , केवल गढ़वाली म ललित या लोकप्रिय साहित्य प्रचलन हेतु लिखे गे। 


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


गैरजुम्मेवार  कजै की    बुरी आदत
     बुरे  पति   की पहचान
 भला कजे  हूण  आवश्यक च

-
अनुवृत - भीष्म कुकरेती
-
 जखम बि  जनानी मिल्दन , उखम  एक विषय हमेशा चर्चा म रौंद  बल म्यार या फलणी कजै  बुरु च या घरवळ  लैक  नी च . सि जनानी पीटीआई म बुरा गुणों  तै गणन मिसे जांदन।
 चला दिखला कि घरवळ म ७ बुराई क्या क्या हूंद न कि वै  तै 'बुरा परइ ', बुरु कजै ', बुर घरवळ' क उपाधि मिलदी -
१- घरवळि काट  करण - अधिकतर  चार आदिमों समिण अपण  घरवळि काट करण (आलोचना , बुराई गिणन) ।   कबि कबि स्थिति बेज्जती तक पौंच  जांद।
२- काम रोक टोकाटोकी करण  अर  व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवहेलना करण  ।
३- कज्याण  तै मशीन समजण  अर  मानवीयता क अनदेखी करण।     
४- हर काम म निक्स निकलण , भगार लगाण अर  घरवळि  प्रशंसा नि  करण।
५- प्यार दिखाण /जताण बिसर जाण - चूँकि घरवळि  तै मशीन समजण तो घरवळि  तै नि  जताण  कि  वु  अपण  घरवळि  से प्रेम बि करद।
६- घरवळि  प्रति इमानदार नि  .हूण /ईमानदारी नि  निभाण।  पत्नी से . झूठ बुलण  आदि। 
७- ज्यादा उम्मीद रखण  अर  घरवळि कमजोरी पर  इ  ध्यान    दीण  ।
८- घरवळि  दगड़ तुनकमिजाजी म बात करण। 
9- टैम-कुटैम पर पत्नी सहायता नि करण I
 . हर पति  तै  अपण  गुणों  या लक्षणों पर ध्यान दीण  चयेंद कि  घरवळि  दगड़ संबंध नि  बिगड़न। 
-
 अनुवृत  लेख - गढ़वाली म लोक प्रिय साहित्य रचन रचणो  उद्देश्य से यि  लेख लिखे गेन अर  मौलिक नि  छन।

बुरे पति  की विशेष पहचान , बुरा  पति   कैसे होता है ? कैसे जाने कि  तुम बुरे पति हो। 



Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
-
वात्सायन कृत कामसूत्र का गढ़वाली अनिवाद )भाग -१

 संस्कृत व गढ़वाली भाषा में काम शास्त्र का संक्षिप्त  इतिहास
-
संस्कृत अर  गढ़वळिम कामशास्त्र विषयक शाश्त्र इतिहास
 
संकलन - भीष्म कुकरेती
-
   कामसूत्र अनुशीलन का रचियिता -वाचस्पति गैरोला तै समर्पित
-
 भारतीय नीति शास्त्रों या भारतीय जीवन सिद्धांत अनुसार  म  सुखी मानव जीवन यापन कुण चार उद्देश्य प्राप्ति अवहसिक छन - धर्म (आचरण व नीति ) , अर्थ (आर्थिक व कर्म ) , काम (प्रेम ) अर  मोक्ष (आध्यात्मिक) । काम अर्थात प्रेम व श्रृंगार या  रतिक्रिया  जीवन हेतु अति महत्वपूर्ण  छन अर प्रजनन हेतु  तो अत्यावश्यक  छन है।  जै   शास्त्र म में प्रेम , श्रृंगार ,  रति क्रिया  , आकर्षण  हेतु कलौं    बारा म  चर्चा ह्वावो वाई तै आम तौर  पर कामसूत्र बुल्दन या कामशास्त्र। 
.   महर्षि वात्सायन कृत काम सूत्र आधार पीठिका -
काम शास्त्र  साहित्य कु आधार पीठिका च महर्षि वात्सायन कृत 'काम सूत्र'।   वात्सायन कृत काम सूत्र सूत्र ब्यूंतम च अर बड़ो व्यापक व कुछ सरल बि च।  इलै काम सूत्र साहित्य इतिहास तीन काल खंडों म बांटे जांद -
 अ -      वात्सायन   काल से पैलाक काम सूत्र साहित्य  (  पूर्व वात्सायन काल)
ब - वात्सायन कालौ     काम सूत्र साहित्य   (वात्सायन काल )
स - वात्सायन कालौ  पैथरो  काम सूत्र साहित्य (पश्च वात्सायन काम सूत्र काल )
            पूर्व वात्सायन काल ( वात्सायन काल से पैलक  काल )
   कैपणि  बोल च बल प्रजापतिन  प्रणयन विधि से एक लाख अध्यायों म कामसुत्रो  पवाण  लगाई।  अर  कुछ समौ  उपरान्त मनुष्य हिट साधन उद्देश्य से एक संक्षिप्त रूप तैयार करे गेन। 
पुराण संदर्भ बतांदन बल महादेवौ इच्छानुसार नंदीन एक सहस्त्र अध्यायों म  कामसूत्रो  सक्षिप्तीकरण  कौर त  ये तै हौर  बि उपयोगी बणानो कुण उद्दालक पुत्र श्वेतकेतु न ५०० अध्यायों म  (सुखशास्त्र कामशास्त्र ) क्रांतिकारी बदलाव ल्हैक  संक्छिप्त करि प्रसिद्ध कार।  (वात्सायन कामसूत्र ०१ /१ /९ )
यांक उपरान्त आचार्य बाभ्रव्य  पांचाल नपुनः सुखशास्त्र म बदलाव लायी, डेढ़ सौ अध्याय अर सात अधिकरणों  (   साधारण , साम्प्रयोगिक , कन्या स्नम्प्रयुक्तक , भार्याधिकरण , पारदारिक , वैशिक  औपनिषदिक ) मा   निर्माण करी  वै  तै आम लोगों  लैक  क बणाी अर प्रसिद्ध कार (कामसूत्र १ /१ /१० ) । 
कालांतर म आचार्य बाभ्रव्य पांचाल का अधिकरणों पर आधारित महान आचार्यों न स्वतंत्र अधिकरण  ग्रंथों निर्माण कार। बाभ्रव्य क बारे म वात्सायन न बड़ो सम्मान से उल्लेख कार।
क - आचार्य चारायण द्वारा साधारण अधिकरण पर ग्रंथ निर्माण कार  ( विषय प्रस्तावना  अर  जीवन शैली )
ख - आचार्य सुवर्णनाभ   न साम्प्रयोगिक पर स्वतंत्र ग्रंथ रच  (संभोज से पैल प्रयोग या आनंद ) -
ग - आचार्य घोटकमुख न कन्या स्नम्प्रयुक्तक पर ग्रंथ निर्माण करि ( जीवन साथी चुनौ )  कामसूत्र अर  कौटिल्य कु  अर्थ शास्त्र म  संदर्भ  मिल्दो।   
घ -  विद्वान गोनर्दीय (पतांजलि )  न भार्याधिकरण  पर रचना करि ( पत्नी विषयक )  कामसूत्र अर  कौटिल्य कु  अर्थ शास्त्र म  संदर्भ  मिल्दो।   
च - गोणिकापुत्र न  पारदारिक पर ग्रंथ रची ( परनारी संबंध ) - वत्स्यण का कामसूत्र म  चौथो अध्याय म  संदर्भ मिल्दो।
छ - दत्तक द्वारा वैशिक  पर स्वतंत्र ग्रंथ रचे गे।   दत्तक कु  संदर्भ कामसूत्र टीका जय मंगला म च
छ- कुचुमार न  औपनिषदिक पर ग्रंथ रची (  आनंदित    संभोग हेतु कृत्रिम प्रयोग )  I  मद्रासँ पाण्डुलिपि उपलब्ध। 
 यूं  पृथक रचनाओं क कारण कामसूत्र विद्या तै लाभ नि  ह्वे  अपितु  उच्छिन्न ह्वेक गलतफहमी ही उतपन्न ह्वे।  वात्सायन न यूं सात अधिकरणों सारांश 'कामसूत्र म करि  अर  अन्वश्य्क भ्रान्ति छे वा दूर करी।
 ---- वात्सायन कु  कामसूत्र काल ----
 वात्सायन न सब बिखर्यां  अधिकरणों तै इकबटोळ  करि  काम सूत्र ग्रंथ की रचना करि।  इन मने जांद बल कामसूत्र क रचना काल ३ सदी को च। 
कामसूत्र म निम्नी अध्याय छन -
१- साधारण अधिकरण
२- रतिशास्त्र (साम्प्रयोगिक )- सर्वाधिक महत्वपूर्ण अध्याय
३-  कन्यासम्प्रयुक्तक
४- भार्याधिकारिक
५- पारदारिक
६- वैशिक  - वैश्या आदि वर्णन
७- औपनिषद्क - औषधि आदि। 
  ---------------कामसूत्र पर टीकाएँ -----------
 वात्सायन कु 'कामसूत्र' पर चार टेका उपलब्ध छन -
१- आचार्य यशोधर कृत 'जय मंगला (१२४३- १२६१) ई 
२- वीरभद्र देव विरचित पद्यबद्ध टीका ' कंदर्पचूड़ामणि  (१५७६ ई ) । 
३- भास्कर नरसिंघ द्वारा रचित ' प्रौढ़प्रिया (१७८८ ई )।  द्वी  टीकाएँ छन
४-   आचार्य मल्ल देव रचित  कामसूत्र व्याख्या
   ------------------------वात्सायन पश्चात रति शास्त्र रचना ----------------
 मध्य युग म रति शास्त्र संबंधी भौत सा ग्रंथों रचना ह्वे  अर  कुछ नया प्रयोग बी जोड़े गेन।  निम्न ग्रंथ महत्वपूर्ण ग्रंथ छन -
१- पद्मश्रीग्यान कृत 'नागरसर्वस्व ( १० वीं सदी, ३१३ श्लोक , ३८ परिच्छेद  )।   
२- कल्याण मल्ल कृत 'अनंगरंग (१५ -१६ सदी , ४२० श्लोक , १० स्थलरूप अध्याय )। 
३- प्रसिद्ध रति  आचार्य कोक्कोम कृत 'रतिरहस्य ' (७ वीं -१० वीं सदी मध्य , ५५५ श्लोक अर  १५ परिच्छेद  )   या कोकशास्त्र ।  यु ग्रंथ इथगा प्रसिद्ध ह्वे  बल लोक ये तै इ असली कामसूत्र समजदन। 
४- कविशेखर ज्योतिरीश्वर कृत ' पंचसायक (१३ वीं सदी , ३९६ श्लोक , ७ सायक )। 
५- जयदेव कृत 'रति मंजरी ( ६० श्लोक , ७ प्रकरण ) ।  .
६- मीननाथ कृत 'समर दीपिका' (२१६ श्लोक ) ।
७- साम्राज्य दीक्षित कृत ' रतिकल्लोलिनी' (१६८९, ई  १९३ श्लोक )।
८- राजर्षि पुरुरवा कृत पौरुरवसमनसिज सूत्र 
९-  राजर्षि पुरुरवा कृत कादंबरस्वीकरणसूत्र
१०- हरिहर कृत  श्रृंगारदीपिका  ( २९४ श्लोक , ४ परिच्छेद ) । 
११- प्रौढ़देव रे कृत 'रतिरत्नदीपिका (१४२२-१४४८  ई , ४७६ श्लोक , ७ अध्याय )  । 
 यांक आलावा १५ १६ ग्रंथों प्रकाशन (याने प्रेस प्रकाशन ) नि  ह्वे  किन्तु रचना हुईं च। जनकि -
१- राजशाह जी कृत ' श्रृंगारमंजरी  (१६६४- १७१०) । 
२- नित्यानंद नाथ कृत 'कंकाओतुकम् '
३- रतिनाथ चक्रवर्ती कृत कामकौमदी
४- जनार्दन व्यास रचित कामप्रबोध
५- केशव कृत कामप्राभऋत
६- राणा कुम्भा रचित कामराज रतिसार
७-वरदार्य  रचित कामानन्द
८- बुक्क शर्मा निर्मित काम्नीकलाकोलाहल
९- सबल  सिंह कृत  कामोल्लास
१०- अनंत रचित काम समूह
११- माधव सिंह देव निर्मित कामोद्दीपनकौमदी

                -गढ़वाली लोक साहित्य  म कामशास्त्र एक भ्रामक स्थिति च-

गढ़वाल म  कामसूत्र संबंधी क्वी  औपचारिक  लोक  साहित्य (folk literature  )  उपलब्ध नी च ना हि  मंत्र साहित्य जन जन जन मध्य क्वी साहित्य उपलब्ध च।   
प्रजननांग शब्द द्रविड़ का छन
गढ़वाली म अधिकतर  जननेन्द्रिय व रति क्रिया शब्द खस भाषा ना अपितु द्रविड़ भाषा का छन।  कुछ शब्द जन ब्वरड़ (मर्द लिंग )  , पुस्सी  (वीर्य ) अद्रविड़ शब्द होला। 
यु एक आश्चर्य च जै  देश म कामसूत्र जन साहित्य रचे गे उख  रति विषय पर  औपचारिक चर्चा करण पाप या बुरु मने  जांद।  उनी  गढ़वाल म बि रति , रति क्रिया पर औपचारिक व खुले आम चर्चा नि  ह्वे सकदी अर  ना ही समाज म रति साहित्य की शिक्षा क प्रबंध ही च।  त  इन मा   गढ़वाली समज म  जु  बि  रति शास्त्र विषय म जो बि  शिक्छा दीक्छा हून्द वो भ्रामक , अपरिपक्व व अवैज्ञानिक हूंद।  एक उदाहरण - मि जब छुट छौ  त एक बड़ा न मै  बताई बल मर्द का वीर्य जब स्त्री का जनंन्दिर्य माँ जांद तो वीर्य धुंवा बण  जांद अर  वाई धुंवा से ही बच्चा पैदा हूंदन।  इनि  कु मर्द स्त्री तै रति सुख अधिक दे सकुद पर बि भ्रान्ति ही च। 
स्त्री क माहवारी बारा म भ्रान्ति ही अधिक च समाज म बजाय वैज्ञानिक धारणा का।  माहवारी बाद कब रतिक्रिया हो कि  स्वस्थ बच्चा पैदा होवण बारा म क्वी वैज्ञानिक व स्थिर धारणा नी  उपलब्ध।  सन  १९६० से पैल  या आज बि  ब्यौ से पैल  वर वधु तै वैगेनिक व अपौचारिक शिक्षा क क्वी प्रबंध नी।  बस शहरों म या गाँवों म शहरों से लीजायी पोर्न साहित्य ही  रति विज्ञानं की भ्रान्ति पूर्ण शिक्षा माध्यम च। 
   समाज म खुले आम रतिशास्त्र  पर  चर्चा नि  ह्वे  सकद  तो रति विषयक शब्दावली अधिकतर पर्तीकात्मक शब्दों से अभिव्यक्त हूंद जनकि  kiss कुण मीर बुखाण आदि। 
-
                     औपचारिक रूप म भीष्म कुकरेती द्वारा कामसूत्र कु  गढ़वाली अनुवाद की शुरुवात
-
लगभग २०१० म भीष्म कुकरेती न इंटरनेट म कामसूत्र का गढ़वाली अनुवाद शरू कार किन्तु भारी चर्चा व विरोध (यद्यपि समर्थन बि कम नि  छौ ) भीष्म कुकरेती न द्वी लघु अध्याय का बाद काम सूत्र कु अनुवाद बंध कर दे।
 अब  वात्सायन कृत काम सूत्र  कु गढ़वाली अनुवाद निरंतर चलदो रालो। 

Copyright@ Bhishma Kukreti 2021
.






Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


आखिर कोक शास्त्र  काम सूत्र से अधिक  प्रसिद्ध क्यों  हुआ ?
 कामसूत्र की  तुलनाम कोक शास्त्र  की प्रसिद्धि रहस्य 
-
संस्कृत अर  गढ़वळिम कामशास्त्र विषयक शास्त्र इतिहास
  वात्सायन कृत कामसूत्र का गढ़वाली अनिवाद  भाग  - २
   कामसूत्र अनुशीलन का रचियिता वाचस्पति गैरोला तै समर्पित
-
संकलन - भीष्म कुकरेती
-
 
- विशेषता ,  शास्त्रौ  वास्तविक नाम रतिरहस्य च।  अब जब सिद्ध पट पंडित कोक्कोका न रची त आम जन मध्य  शास्त्रौ नाम कोक शास्त्र पड़  गे। रतिरहस्य (कोक शास्त्र ) को रचना काल ११ या १२ वीं सदी मने गे।  इन बुल्दन बल  पंडित कोक्ककोन रज्जा वेणुदत्त तै पुळ्येणो  बान  यु काव्य ग्रंथ रची।  कोका पंडित द्वारा कोक शास्त्र रचण  पर द्वी तीन अलग अलग कथा छन।
इन  कथा च बल एक दिन राजा वेणुदत्त की राज सभाम एक नंगी/ महीन वस्त्रों म  जनानी  आयी अर  वीं चुनौती दे बल छह क्वी भद्र पुरुष जु  वींक रति/ यौन भूख  आवश्यकता दूर कर  साको।  कोक शास्त्रीन  वीं स्त्री क यौन भूख शांत करी।  राजां पुळएक कोक शास्त्री तै एक यौन /रति शास्त्र रचणो  आज्ञा दिनी अर कोक शास्त्री न 'रति रहस्य' कु  निर्माण कार। 

      यु ग्रंथ मध्य युग म समाज तै रति/ यौन  शिक्षा (औपचारिक ) दीणो  ध्येय वास्ता रचे गे।  यु कारण च बल रतिरहस्य (कोक शास्त्र)  पुरण प्रसिद्ध रति ज्ञान दायी ग्रंथों से बिगळ्यूं  ग्रंथ च।  सामयिक आवश्यकता पूर  करणो बान ये ग्रंथ की अति आवश्यकता व प्रासंगगिता सिद्ध हूंद।  वात्सायन समय भारतीय समाज  उदार , स्त्री स्वतन्त्रता व अभिव्यक्ति दृष्टि से एक  उदार  समज छौ व  महिलाओं तै बड़ो सम्मान दिए जांद छौ ।  जबकि कोक्कका क समय (मध्य युग ) म समाज रूढ़िवादी , स्त्री स्वंतन्त्रता- अभियक्ति  मामला म रूढ़ अनुदार ह्वे गे  छौ।  इन समय म वात्सायन कृत कामसूत्र या वांसे पाइलाक़ रति शास्त्र अप्रासंगिक ह्वे गे  छा।  कोक्कका न यीं युगीन आवश्यकता पछ्याण  अर  रूढ़िवादी  युग वास्ता 'रति रहस्य' (कोक शास्त्र ) की रचना कार।  चूँकि भारत म ये काल से रूढ़िवाद बढ़दो  इ  गे  तो ब्रिटिश राज म बि  काम सूत्र क तुलना म कोक शास्त्र आम  समाजौ  बान अधिक प्रासंगिक राई।   इलै आम तबका म कोक शास्त्र अति लोक प्रिय च। 
   रति रहस्य म  भौत सी इन  विषय छन जु  काम सूत्रम नि  छन जनकि चार स्त्री प्रकार व ऊंको उत्तेजित हूणो  विशेष दिन।  रतिरहस्य ( कोकशास्त्र)  म गोणिकापुत्र,  नंदीकेश्वरा ,  वात्सायन ,  रावण  महुका  को पूरो प्रभाव  च तो आपनी छाप पूरी  च अर  अभिनवता बि  च । 
    रति रहस्य (कोक शास्त्र ) म १५ परिच्छेद अर  ८०० श्लोक छन।  १५ परिच्छेद इन छन -
प्रवेश
चार प्रकारै आधारभूत  स्त्री
चंद्र कला अनुसार प्रेम करणो प्रकरण /प्रेम मामला
सुरत भेद
सामान्य धर्माधिकार
क्षेत्र (देस ) ज्ञान
आलिंगन प्रकार
चुंबन भेद /भुकी पीणो प्रकार
नंग रंग करणो  भेद (बाह्य रताधिकार )
दंत आकर्षण
रति भोग सुख
स्त्री विश्वास प्राप्ति क्रिया
पत्नी प्रकरण
अपछ्याणक स्त्री दगड़  संबंध
शिकायत प्रकरण 
  पुरण  विषयों अनुसरण व समय क आवश्यकता पूर्ति हेतु नव विषयों कारण   आम समाजम कोक शास्त्र कामसूत्र से अधिक प्रचलित ह्वे , कामसूत्र वास्तव म भद्र/सभ्य / प्रबुद्ध  पुरुषों म अधिक रम्य छौ तो कोक शास्त्र आम लोकूं मध्य गम्य राई आज बबी।  कामसूत्र  सम्पूर्ण जीवन शैली पर ध्यान  देंदो  (इखम  रति विषय केवल २० % च ) जबकि  कोक शास्त्र रति/ या यौन विषय तक सीमित रौंद अर  जीवन शैली कम पर कम ध्यान च।     .     


  Copyright@ Bhishma Kukreti 2021   
 रति रहस्य (कोक शास्त्र में क्या है; गढ़वाल म प्रसिद्ध कोक शास्त्र  के मुख्य विषय; कुमाऊं में प्रसिद्ध कोक शास्त्र के परिच्छेद सूचना ।  हरिद्वार में प्रसिद्ध रति रहस्य (कोक शास्त्र) की विशेषताएं


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
अनंग रंग : एक महत्वपूर्ण काम शास्त्रीय ग्रंथ
-
संस्कृत अर  गढ़वळिम कामशास्त्र विषयक शास्त्र इतिहास
  वात्सायन कृत कामसूत्र का गढ़वाली अनिवाद  भाग  - 3
-
संकलन - भीष्म कुकरेती
  कामसूत्र अनुशीलन का रचियिता वाचस्पति गैरोला तै समर्पित

-
   कामसूत्र अनुशीलन का रचियिता वाचस्पति गैरोला तै समर्पित
-
   भारतम काम तै  जीवन म  अति महत्वपुर्ण स्थान दिए गे  छै। औपचारिक रति शिक्षा की पद्धति रही होगी तभी २ सरी  सदी से ही रति व काम विषयक ग्रंथों की रचना हुयी।   ये क्रम  मे मध्य युग म  १५ वीं १६ वीं सदी मा  अनंग रंग: - काम ग्रंथ कु  बड़ा महत्व छ । 
अनंग रंग की रचना क्षत्रिय कवि कल्याण मल्ल न लोदी वंश को   अपण  शासक  लाड  खान (लोदी वंश राज्य काल दिल्ली १४५१ -१५२६ ) तै पुळेणु   बान  एक रति ग्रंथ की रचना करी।  टिपण्णी कारों टिप्पणी च बल यु ग्रंथ कजे अर कज्याणी  मध्य  अलगाव रुकणो उद्देश्य से रचे गे बल। 
अनुवादक बर्टन  क किताब अनुसार अंग राग : मा  तौळ क अद्ध्याय छन -
 प्राकथन
अध्याय १ मा  महिलाओं चार वर्ग पर विचार
  अध्याय  २ मा  महिलाओं म जूनून /excitement अर   आसनों पर विचार
  अध्याय  ३ महिला अर  पुरुषों  का बनि बनि  प्रकार
   अध्याय ४ महिलाओं सामन्य गुण , चरित्र , स्वभाव आदि चर्चा
  अध्याय  ५ मा विभिन्न देस /क्षेत्र म महिलाओं  विशेषता
  अध्याय  ६ मा वशीकरण कु उपचार
   अध्याय  ७ म पुरुषो अर  महिलाओं लक्षण
  अध्याय ८ म भैरो आनंद कु  इलाज
   अध्याय  ९ मा आंतरिक आनंद  का प्रकार अर   उपचार
परिशिष्ट १ बौ अर  ज्योतिष
 परिशिष्ट २ बनि बनि  रसायन व्यंजन विचार


  Copyright@ Bhishma Kukreti 2021 


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
   उत्तराखंड में स्टेनलेस स्टील बर्तन  ब्रिटिश अधिकारी व प्रवासियों ने प्रचारित किया होगा
(स्टील भांड व कटलरी का सौ साल का इतहास )
 उत्तराखंडौ  परिपेक्षम स्टेनलेस स्टील भांडुं , कटलरी  इत्यास

   उत्तराखंड परिपेक्ष म रसोई यंत्र/उपकरण  इतिहास - भाग - ४
   आलेख : भीष्म कुकरेती 
-
 आज सुचे  इ नि  सक्यांद  बल भोजन बिन स्टील या स्टेनलेस स्टील का बि बण  सकेंद।  यिन शताब्दी को एक आश्चर्यजनक व महा लाभदायी अनशन च स्टेनलेस स्टील को अन्वेषण।  इस्पातम क्रोमियम  अर  निकिल मिलाण  से नई धातु म कुछ गुण  बढ़ जांदन , ये नीव धातु स्टील पर जनक नि लगद , हवा से ओक्सीडेसन नि  हूंद। 
- सन १८७२ म वुड्स अर  क्लार्कन बताई बल लोहा म क्रोमियम मिलाये जाव त नव धातु  क्षरण /जंक/ अम्ल  प्रतिरोधी ह्वे जांद। 
जख तलक स्टेनलेस स्टील बर्तनों इतियासौ प्रश्न च त  ब्रिटेन अर  जर्मनी द्वी  अपण धज गडदन . ब्रिटेन म कटलरी केंद्र म १९१३ म हरि ब्रेयरली न क्रियमियम युक्त लोहा क खोज करी।  हरी ब्रेयरली वास्तव म गन बैरल म जनक लगणो  समस्या तै दूर  करणम व्यस्त छौ।  तो इनम  वास्तव म स्टेनलेस स्टील की खोज ह्वे। जर्मनी वळ  बुल्दन  युद्ध का कारण  ही जर्मनी म स्टेनलेस स्टील की खोज १९१२ म ह्वे। १९१२ म डाक्टर बेनो स्ट्रॉस व दगड़्या वैज्ञानिक न क्रूप  उद्योग म एक धातु  क खोज कार जो अम्ल व जंक  प्रतिरोधी छौ। 
 भारत म स्टेनलेस स्टील बर्तनों स्वागत गुजरात , महाराष्ट्र व दक्षिण म अधिक ह्वे  कारण इख सबसे अधिक इमली , दही खाये जांद  तो इन बर्तन की आवश्यकता बि  छे जो बर्तन खट्टो  चीज से खराब नि हो या जो बर्तन खट्टो  पदार्थ खराब नि कारन।
यद्यपि भरत म  वुट्ज   तलवार भी कुछ हद तक स्टील की  सि  हूंदी छे।
१९१९ - १९२३ मध्य शेफील्ड कम्पनी न  स्टेनलेस स्टील का कटलरी , टूल्स अर सर्जिकल छुर्री निर्मित ह्वेन।
१९२४ म अमेरिका म स्टील की छत बणाए गे।
१९२९ म स्टीलो पाणी  टैंकर निर्मित ह्वे।
१९३३ म स्टेनलेस स्टील   किचन  सिंक निर्मित ह्वेन ।
१९६३ म स्टील ब्लेड निर्मित ह्वे।
 भारत  म फरवरी १९१२ से टाटा स्टील न स्टील निर्माण शुरू कार।
भारत व उत्तराखंड म संभवतया ब्रिटिश अधिकारी अपण उपयोग का वास्ता स्टेनलेस स्टील कटलरी ल्है  होला। 
  भारत म स्टेनलेस स्टील वर्तनों /भांडों   खुले आम प्रचलन  १९७५ ७६ उपरान्त ही ह्वे  जब भारत म बिहार एलॉयज कम्पनी न उत्पादन शुरू कार।  टाइबर तक भद्रावती अर दुर्गापुर म इ उत्पादन हूंद छौ अर  सीमित मात्रा म ही उत्पादन हूंद छौ  त स्टनलेस स्टील बर्तनों बजार बि  सीमित हि  छौ।
विदेशी बजार से ह भारतम मॉल आंद  छौ तो बजार बड़ो शहरों व धनी लोगुं  मध्य सीमित छौ।
 उत्तराखंड म स्तेन लेस स्टील कु  प्रचलन प्रवास्यूं द्वारा ही अधिक ह्वे  जब प्रवासी मुंबई , दिल्ली ब्रिटेन स्टेनलेस स्टील के थाळी  यूं  शहरों से अपण  गाँव लिगिन।  पैल पैल प्रवासी स्टेनलेस स्टील की थाळी लिगिन अर  एक थाळी  गांवम सामूहिक भोजन समय सूंटिया धरणो काम आण  शुरू ह्वे।  यांसे  स्टेनलेस स्टील कु  प्रचार ह्वे  लोगों म स्टेनलेस स्टील घरम रखणो,  प्रयोग करणो इच्छा जागृत ह्वै , पहाड़ी उत्तराखंड ही ना मैदानी उत्तराखंड म बि पैलो  रिवाज कटलरी व फिर थाळी  रिवाज शुरू ह्वे।
 मुम्बई , दिल्ली म स्टेनलेस स्टील बर्तन बिचण वळी  घर घर आंदी  छे अर  पुरण  झुल्लों बदल बर्तन दींदा छा।  यां  से  बि खपत व विक्री बढ़। 
 १९७६ उपरान्त मुंबई म प्रवासी स्त्रियों कुण  एक अवसर आयी छौ कि  स्टील बिक्रेता गली का दुकानदार हर मैना ५ सात रुपया लींद छौ अर  फिर कुछ मैनो बाद यी स्त्री स्टेनलेस स्टील भाफ ख़रीददा छ।  अर्थत इन्स्टालमेन्ट जन ही रिवाज से मुंबई म प्रावस्यूं न स्टेनलेस स्टील बर्तन खरीदेन।  तब दिवाली म ही अधिकतर स्टेनलेस स्टील का बर्तन खरीदे जांद छा।  बयाओं म  सगा संबंधियों द्वारा वर वधु तै स्टेनलेस स्टील बर्तनों भेंट दीणो रिवाज  बि १९८० बाद ही चल जु आज बि च। 
   उत्तराखंडम भौत वर्षों तक याने १९९० तक लोगुंम पीतल -कासो का प्रति प्रेम राय च (उन आज बी च ) तो धीरे धीरे १९९० बाद स्टेनलेस स्टील  वर्तनों को प्रचलन बढ़। भिन्न भिन्न बर्तनों  म विविधता व उत्पादन न बि  बजार बढ़ाण  युगाड़न दे।    १९९० बाद स्टेनलेस स्टील  कटलरी व थाली से अग्वाड़ी  बढ़ अर  जन भारत म स्टेनलेस स्टील भांडों कु प्रचलन म वृद्धि ह्वे  तनि  उत्तराखंड म बि। 
अब  त हम सोचि नि  सकदा कि  बिन स्टेनलेस स्टील बर्तनों क भि  रुस्वड़  हूंद। 
अर्थात १९९० का बाद ही उत्तराखंड म स्टेनलेस स्टील क्रान्ति (अधिक बजार बणन ) आयी। 
-
 Copyright@ Bhishma Kukreti
भोळ  दुसर उपकरणौ विषय म, History Kitchen Utensils in Uttarakhand; History of   A utensil in Uttarakhand, उत्तराखंड में   रसोई उपकरण  का इतिहास , गढ़वाल में स्टील वर्त्तन प्रवेश इतिहास , कुमाऊं में स्टील वर्त्तन इतिहास , हरिद्वार में स्टील वर्त्तन इतिहास


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


फ़ूड फोटोग्राफीम स्टाइलिंगौ  महत्व

 फ़ूड  फोटोग्राफी वास्ता  फ़ूड स्टाइलिंग पर कुछ   ध्यान दीण  लैक बथ
 फ़ूड फोटोग्रॉफी वास्ता  फ़ूड स्टाइलिंग , भाग १ 
जसपुर तैं  छायाचित्रों द्वारा प्रसिद्धि दिलाण वळ फोटोग्राफर श्री चंद्र मोहन जखमोला तैं  समर्पित
-
   भीष्म कुकरेती 
-
 आजकाल लगभग सबि  सोशल मीडिया म अपण क्षेत्रौ भोजन छायाचित्रों द्वारा क्षेत्र की विशेष छवि बढाणा छन अर लाखों फोटो सोशल मीडिया म लोड हूणु च।  याने लगभग प्रत्येक सोशल मीडिया यूजर फ़ूड फोटो लोड करणु इ च।  अब इन  मा जु सही व आकर्षक फोटो नि  लोड हो तो फोटो क क्वी लाभ नी।  फ़ूड फोटो वी भलो च जु वाइरल ह्वेका क्षेत्र तैं छवि प्रदान कार। 
फूड   फोटोग्राफी वास्ता मुख्य अंग च फ़ूड स्टाइलिंग।
फूड  फोटोग्राफी वास्ता फ़ूड स्टाइलिंग वास्ता  निम्न मुख्य केंद्र विन्दु छन जु  महत्वपूर्ण छन -
१- भोजन पकाण
२-   फोटोग्राफी से पहले भोजन , अवयव का प्रबंधीकरण/व्यवस्था करण
३- प्लेटिंग  सजावट (स्टाइलिंग )
४-   अलग अलग कैमरा वास्ता अलग अलग स्टाइलिंग /सजावट
५- भोजन तै तरोताजा दिखौणो  तरकीब
६ -  गार्निशिंग  अवयवों  तै  कब अर  कन  सजाण
 ७ -  जटिल तरीदार  भोजन की  फोटो   लींद  विशेष ध्यान व सावधानी
८ - सलाद ड्रेसिंग म ध्यान
९- आइस क्रीम की फोटोग्रैफी म सावधानी
१०- केकों की फोटोग्राफी म ध्यान लैक  बथ
११- कलात्मक फोटोग्राफी
-
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती



Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

 फूड  फोटो बान  फूड   स्टाइलिंग करण  या नि  करण

फ़ूड  फोटोग्राफी वास्ता  फ़ूड स्टाइलिंग पर कुछ   ध्यान दीण  लैक बथ
 फ़ूड फोटोग्रॉफी वास्ता  फ़ूड स्टाइलिंग , भाग - 3
जसपुर तैं  छायाचित्रों द्वारा प्रसिद्धि दिलाण वळ  फोटोग्राफर श्री चंद्र मोहन जखमोला तैं  समर्पित
-
   भीष्म कुकरेती
-
 बार बार यु सवाल पूछे जांद  बल फूड  फोटोग्राफी वास्ता भोजन सजावट जरूरी च या नी।  फूड फोटोग्राफी अर्थ यो नी च बल  तुम  भोजन की मौलिकता बिगाड़ि बाह्य या अभोज्य तत्व मिलैक  भोजन चमकाओ या
कुछ चीज /केमिकल आदि मिलैक भोजन तै चमकाओ या   फोटो म भोजन की क्षेत्रीयता ही समाप्त कर द्यावो।
 अधिकतर सोशल मीडिया म यु  पाए गे कि  अधिसंख्यों तै फ़ूड स्टाइलिंग व फोटो खिंचणो  ज्ञान नि  हूण से आकर्षक भोजन बि  या तो नीरस भोजन जन दिखेंद  या वो आकर्षण पैदा नि करद  जो थोड़ा सि  स्टाइलिंग करी भोजन आकर्षक करे  जै  सक्यांद।  उदाहरण गहथ की भरीं  रोट म घी की  या नौणी की  डळी  धरण  व रोटि तै  थोड़ा सि  फाड़ि दिखैक आकर्षक फोटो खिंचे  जै  सक्यांद।  सादा लिम्बु सोळि  की जगह सोळि  पर लाल मर्च घुसी फोटो आकर्षक ह्वे  जालि अर अवयव बि  पता  चल जांद।  रोटी बगल म हरो या लाल  लूण धरी बि रुटि क फोटो आकर्षक ह्वे  जांद। 
भौत सा समय बर्तनों चुनाव गलत हूण  से बि  फोटोम आकर्षक भोजन अनाकर्षक दिखेंद। उदाहरण झंगोरा की खीर या झंगोरा क पळयो म सफेद बर्तन झंगोरा की आकर्षण कम करी दींदन किलैकि दुयुं (कटोरी /प्लेट अर  झंगोरा की खीर कु  रंग सफेद जि च।  तो इखम बर्तन का स्टाइलिंग अर खीर या पळयो मथि  कुछ अवयव धरी बि फोटो व भोजन आकर्षक बणाये जै सक्यांदन जनकि पळयो मथि धणिया पत्ता , हरी भुजी ंथी भुनीं  काळी  हुईं  लाल मर्च , रायता मथि  लाल मर्च को स्टाइल से लाल मरचो चूरा से आकर्षण बढ़ाये जांद। 
उदाहरण जन कि   लोखरो   कड़ैम   गहथका  फाणु  उथगा सुंदर नि दिखेंद  कि भैर लोगों तै आकर्षित करे जाव।  इनि थिंच्वणि , बाड़ी म बि  समस्या हूंद अर  भौत दैं  गुंडळ /पत्युड़  म बि  भोजन रंग या आकर आकर्षक नि हूंद किन्तु  प्रोफेसनल फोटोग्राफी मतलब यि  नि  कि  भोजन म गैर उत्तराखंडी पन  घुसाए जाय अर  तब  फोटो खैंचे जाय।  या क्वी  रसायन से फाणु , बाड़ी , थिंच्वणि क मौलिक लक्षण ही बदले जावन। 
  एक उदाहरण च उत्तराखंड रसोई का सदस्य  फ़ूड फोटो पोस्ट करदन।  एक सदस्य बिमला शर्मा न ढोकला क फोटो पोस्ट कार वै  समय ही  दुसर  सदस्य न बि  ढोकला क फोटो पोस्ट कार।  बिमला शर्मा न फोटो अळग बिटेन फोटो ले किंतु  ढोकला मथि छौंक्युं राई बीज बि नि छा।  जबकि दुसर सदस्य न फोटो जंगल ही नि  बदल  अपितु राई का बड़ा बड़ा बीज बी  दिखैन।  एक ही भोजन म आकर्षण भेद ह्वे केवल स्टाइलिंग व फोटो ऐंगल /कोण से। 
 भौत  दैं  भोजन का साथ कट्युं छुट लिम्बु  बि  धरे जांद।  हरा लिम्बु  धरे जाय या पीलो लिम्बु धरे जाय से बि  आकर्षण म फरक पड़  जांद।  हरी मिर्च या लाल मर्च या भुनी लाल मर्च धरण  से बि आकर्षण पर फरक पड़द। 
    भौत सा लोक एकि  थाळी या प्लेटम  कई प्रकारौ भोजन धर दींदन अर मुख्य भोजन की थीम ही लुप्त ह्वे जांद।  इनम भोजन का स्थान व स्टाइलिंग से  भोजन म आकर्षण आंद।  कु  भोजन कखम धरण चयेंद बी फ़ूड स्टाइलिंग कु  हिस्सा च।  भौत सा समय रसोई उपकरण , भोजन परोसण उपकरण , भोजन खाणो कटलरी दिखाण से भोजन म आकर्षण अंतर् आयी जांद।  या भोजन की थाळी बगल म फ्लावर पॉट म फूल धरी फोटो लेकि बि  भोजन म आकर्षण बढ़द  जनकि  जै  भोजनम गुलाब इत्र प्रयोग हो उखम प्लेट म या पासम गुलाब पंखुड़ी भोजन आकर्षण तै नया आयाम दींदन।
 
   

 सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22