Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 55292 times)

Parashar Gaur

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barthwal jii...

  S W A G AT ......    MERRA PAAD MAA..

Dhani hogiimere Dhartii... ju aap ani...

parahsra

Parashar Gaur

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मरना एक मौत का !

एक तरुण  ने
जैसे ही अपनी यौबन की दहलीज  पर 
अपने पाऊ रखे ही थे कि
 मौत  उसे निगल गई !

पंखे से झूलती उसकी लाश
मौन होकर ......
 अपने ऊपर हुए  अत्याचारों का
सबूत दे रही  थी  !
उसका वो मुरझाया चेहरा
उसकी वो लटकी गर्दन
कह रही थी .......
तुम सबने मिलकर मुझे मारा है  ?

मुझे मारा है ...
मेरी माँ/बापा   कि  महत्वाकंशावोने
जो बार बार मुझ   पर  लादी जाती रही है
बिना मेरी , भावनाओं  को समझे  !

मुझे मारा है.....;
मेरे  स्कूल के माहोल ने
जिसने मुझे बार बार प्रताड़ित  किया है
कचोटा हैं , मुझे अन्दर ही अन्दर
हीन भावानौ के बीज बौ बौ  कर !

मुझे मारा है ..
मेरे सीनियरो के घमंड ने
जो मुझे सरे आम हँसी का पात्र  बनाकर
बार बा र मुझे लजित करते रहे
सब के  सामने   !

मै,
 मरना नही चाता था
परन्तु मेरे पास ....,
इसके सिवा कोई बिकल्प भी  नही   था   !

एक बिकल्प था
 " बिद्रोह का  ....//"
"बिद्रोह " .... किस किस  से करता  ?
सब के सब तो
अपने अपने चक्रब्यू  में मुझे
फसाते जा रहे थे .....
जिससे बाहर निकलना
मेरे लिए ना मुमकिन सा था ! 

मुझे मारा है ....
मेरे अंदर के झुझते  "  मै   '   ने
जो लड़ते लड़ते हार गया था
अपने आप से !

मै मर गया हूँ तो क्या ?

जीने कि लालसा और
उमीदो कि किरन  अभी भी
सेष है .................!

जब तुम सकब लोग .,
मेरी भावनाओं को और
मेरी पीड़ा को समझ लोगे
तब.....
तब , कोई नही मरेगा
और नहीं मारेगा
वो ........
जियेगा एक सुनहरे भविषय  के लिए !

पराशर गौर
५ फरबरी २०१०  ३.४५ दिन में

Parashar Gaur

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जाणु त्यारु
 
छोड़ी  हम साणी
तू जब बिटिकी गे
सूना ह्वीनी  भैर -भित्तर
चौक - डंडयाली  रूवे  !
 
         रात रा  उण्डी-उण्डी
         दिन भी छो कुछ मुरुयु मुरुयु
         छैल डाँडो कु भी  आज
         छो कुछ बूझ्यु  बू झ्यु   
         मुंड घुन्ड़ोक पेट धारी
          बिखुंन देलिम रा रूणी रै  !
 
रौली छे  उदास हुई
ज़ाद देखि त्व़े सणी
बाटा- घाटा छा बुना
दगडी लिजा हम सणी
भित्तर खाली सुनि डंडयाली
आज डंडयाली  ह्वे  ...................  !
 
        सुनू सुनू बोण छो
        सुनोपन सारयूमा
        स्वीणा रीटि रीटि  छा कण सवाल
        ब्व़े की रीती आंखयुमा
         क्याजी देदी वो जबाब  ...
         जब जबाब हर्चिगे   !
 
धुरपलिम बैठ्यु कागा
सोची सोची सुचुदु  रै
चौका तिरोली  लुल्ली  घिनडूडी
 सुस्गुरा ही भुरुदी रै
उरख्यलोंन तापना तूडिन
भित्तर सिल्वाटी   रवे  !   
 
       डाँडि काँठी गाद गदिनी
       छोया रवैनी दिड़ा तोड़ी  की
       धुरपलिम थरप्यु द्य्ब्ता  बुनू
       कन बिजोग आज पोड़ीगी
        धार पोर जान्द देखी त्वै
         गोर -बछरा , गोंडी रामीगे  !
 
पराशर गौर
फरबरी ७ २०१०   ०७०
रात ११ बजे

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,

We are getting very good feedback on your poems. I personaly go through every post article or poem. All of these articles has depth meaning.

We would like to sincerely thank u for sharing the same with us.



जाणु त्यारु
 
छोड़ी  हम साणी
तू जब बिटिकी गे
सूना ह्वीनी  भैर -भित्तर
चौक - डंडयाली  रूवे  !
 
         रात रा  उण्डी-उण्डी
         दिन भी छो कुछ मुरुयु मुरुयु
         छैल डाँडो कु भी  आज
         छो कुछ बूझ्यु  बू झ्यु   
         मुंड घुन्ड़ोक पेट धारी
          बिखुंन देलिम रा रूणी रै  !
 
रौली छे  उदास हुई
ज़ाद देखि त्व़े सणी
बाटा- घाटा छा बुना
दगडी लिजा हम सणी
भित्तर खाली सुनि डंडयाली
आज डंडयाली  ह्वे  ...................  !
 
        सुनू सुनू बोण छो
        सुनोपन सारयूमा
        स्वीणा रीटि रीटि  छा कण सवाल
        ब्व़े की रीती आंखयुमा
         क्याजी देदी वो जबाब  ...
         जब जबाब हर्चिगे   !
 
धुरपलिम बैठ्यु कागा
सोची सोची सुचुदु  रै
चौका तिरोली  लुल्ली  घिनडूडी
 सुस्गुरा ही भुरुदी रै
उरख्यलोंन तापना तूडिन
भित्तर सिल्वाटी   रवे  !   
 
       डाँडि काँठी गाद गदिनी
       छोया रवैनी दिड़ा तोड़ी  की
       धुरपलिम थरप्यु द्य्ब्ता  बुनू
       कन बिजोग आज पोड़ीगी
        धार पोर जान्द देखी त्वै
         गोर -बछरा , गोंडी रामीगे  !
 
पराशर गौर
फरबरी ७ २०१०   ०७०
रात ११ बजे


Parashar Gaur

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वेलन टाइनडे

 ब्रकिंग न्यूज  एक स म स ......
     
    धनिया को बीज : त्वे फर क्या तर्सेन् तू छे बिराणी चीज ..
 
        जनि यु समस  वी  थै पुह्न्ची !  वीकू  बैल्टाइन डे,   कचल्या कचेलिम बदली गे !  उ द्वी झणो खिर्तु  मचिगे  खिर्तु ... आदमी बुन  बैठी  ,  "  ये बत्ता ..., को च यु????     जैन यु,  समस  भेजी !  मी जनुदु छो,  की,   कोच वो,,,,, , पर मी त्यारा गिच्ला सुन चदु !  वोल अब क्या हवाई ... गिछु पर म्वालू किले लगी गे ! दे थिच्च्म  थिचाई ....... ///////

    अभी अभी खबर मिली की एक  स.म.सल  एक   अछु  जलदु, बस्यु - बसायु  घरम  भारी कोहराम मचे दे .. हमरा बिशेष सम्बदाता  खबरची राम जिल  बताई की
वे स मस  थै पोडी,  छुमा कु आदमी  गुस्स्म   बोल्या बणी  सस्तो आसमान पर  पौंची,  वे मोबाइल जू चुमम छो लकी सीध वे आदिमा घौर गे आर वेल  वे आदमी घरवाली का साम वो स मस पोडी  जनी सुनई वो बुन बैठी भेजी  युकी हरकत त इनी छान !  ई नि ,  समस   यूँ मिखुनी भी भेजी ..  दिखाऊ  ! जनी  वेल देखि ... उ बुन बैठी     " यार,   यु आदिम .क्या आदिम च  !  .. यु आदिम नि ...  युत कवी पौच्यु  च पौच्यु   !  '   माफ़ कारिणी   बहिन जी  , बोलिकी वो आदिम अपना घोर  चलीगे ! पर  छुमो क्या हवे ,   अबी तक पता नि  चली  !  जी .... भीष्म जी ....  !     मी कैमरा मैन एक अन्ख्वाला  का दगड  खबरची राम  बीच बाजार बीटी  !   

पराशर गौर
फरबरी ११५ १० रात १०.३५ पर

Parashar Gaur

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    {   कौथीक माँ,     यु के  का चीफ  मिनिस्टर कु  उद्घाटन दिवस का समय पर , नि आण पर }

ब्यौली  कु मामा

       सुन्दरी कु ब्यू क   दिन जनी नाजिखू  आंदा गिनी ,   वीका ब्व़े- बबन ,  गौ भयात, आस पडोस  दूर- दराज का नाता रिसतादरु  थे न्यूत भिजण शुरू कैदे ! सुन्दरी कु ममा  देहरादून माँ छो काम कनु  स्यु साब वीथी तक लगे की पीली त फोन से , फिर चिठ्ठी , फिर निमंत्र्ण पत्र भेजी वोद नाद कैकी बोली गई की १९ २० को  भाणजी ब्यू च  वेल उभरी बोली की   .... हा हां ह .. मी  पहंचु  एक स्फ्ता पैली !
     सहरु  माँ खाशकर मुम्बे जन सहरुमा हर चीज मैंगी ! खैर , सुन्दरी का बब्ल अपनी औखात क अनुसार हर चीज कोरी  !   कै भी  चीम कमी नि रेजो  वें अपणी समणी ,  अपणी आंख्यु  न करी ! पंडाल .  साजो  सामान   ,  खाणी- पैनी  सब कुछ  !  जनी तारीख नाजिखू आई  वनी पौणा न्युतेर भी आणा शुरू  ह्व़ाय  !  एक हफ्ता पेल बीटी उनका घरमा  रौनक ही रौनक  ...!   घर सजी, पंडाल सजी,  बेदी सजी , ! बरातों दिन भी आगई  !  बरात भी आई  !  आवा भगत का बाद बेदी माँ फ्यारा फौरा ह्वेनी !  पंडाजिल बोली  ' -------  ये भाई नौनी कु मम्मा थे बुलावा ,  " सब लगी मामा थे खुज्याँ पर ! ममा देख्या त आई नि !  तभी कैल बोली  ' अजी ई त  गे छा पर यखना अपणा ससुरास्म "  ! वो ... , सरकरी खर्च्मा होलू आयु ,    तभी कैल बीचम  व्यंग माँ बोली !   " हां भाई .. भांजी थे थै कभी मिली जै सकद  आर मिली भी जालू पर स्याल सायली  हे बाबा  .. कनी बात छा कना  .. ???   
      एक बुजर्गल बोली पंडा जी  सरासरी मन्त्र पडा !  कख छा लगया ! ब्युली गे,  बरात ग़े,  न्युते गया  पर ममा अभी तक  नि आयु !

पराशर गौड़
दिनाक २१ फरबरी २०१० दिन्म

Parashar Gaur

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  प्रबास   में   उत्तराखंडी होली

 
ब्रैम्पटन  , टोरंटो   ओंटारियो  कनाडा  में गोरे रोड स्तिथ संत ज्ञानेश्वर मंदिर के भूतल सभागार में दिनाक ६ मार्च २०१० को   प्रवास में बसे उत्तराखंडियो  की एक संस्था  उत्तराखंड  कल्चरल  एशो .  ने होली के उत्सव पर होली का आयोजन किया जिसमे लगभग १२० से ज्यादा परिवार सामिल हुए !  सात समंदर पार अपने वतन से जुडी उन यादो को ताजा  किया गया !  पर्वतीय परिवेश में खेली गई होली का रंग जब धीरे धीरे उभरा तो उसे देखते ही बनता था !  सबसे पहले वहा पर आये सब ऊताराखंडियो  ने एक दुसरे पर गुलाल  मल कर रंगो के इस होली के तोहार का श्री गणेश किया  साथ में एक दुसरे को होली की   मुबारक बाद भी दी !

      उत्तराखंड  कल्चरल  एसो का स्वरुप यु तो सन १९८८ -८९ के समय से आने लगा था जब भारत से आये एक दूरदर्शी  अपनी माँ बोली के लिए समर्पित पराशर गौड़   कनाडा आये !  उन्होंने देखा  की  कुछ  चंद लोग ही आपस में बैठते है   जिनमे स्वर्गीय  भूपेंदर असवाल, जे  पी गौड़ , बिरेंदर नेगी , जेपी जोशी , जगदीश  गोसाई अवम शिव कोटनाल आदि ..  उन्होंने सबसे मिलकर एक  योजना  बनाई की क्यों ना   सब  पहाडियों को भी जोड़कर एक संस्था बननी जाये ! जिसके फलस्वरूप आज उत्तराखंड  कल्चरल एसो  ,   सन १९8९ से लेकर सन  १९९4  में  एक लंबा सफ़र तय करने के बाद यह संस्था  अपने परिपक्वा  रूप में आज सामने आ  पाई  है ! पहली बार    सन १९९०- ९१ पहली बार  बिधिबत रूप से    हरेंदर सजवान  के घर पर जिसमे पराशर गौड़, जगदम्बा जोशी , गैरोला जी , जेपी गौड़ , बिरंदर नेगी उपस्थित थे इस  संस्था की  शुरुव्वत हुई !  जिसमे   जगदम्बा जोशी .प्रधान,   हरेंदर सजवान   उप प्रधान ,  परासर  गौड़ सचिब  अवम  बिरेंदर नेगी   कोसाध्य्क्ष   चुने गए  गए  थे !  तब से अबतक संथा ने कनाडा में बहुत से कार्यक्रम किये ! जिसमे न १९९४ में पहली बार नार्थ अमेरिका में  अमेरिका व कनाडा के  तमाम पहडियो   का एक  एक जगह इकठा किया गया था !  सन २००७ में पहाड़ के  प्रसिद्ध  गायक नरेंदर नेगी जी  को यहाँ आमंत्रित  कर उनकी गीत संध्या का आयोजन किया गया !
 
     होली के  इस उत्सब में  बहुत  से  कार्यक्रम की प्रस्तुती हुई .. न्रत्य , गीत-संगीत , कबिता ,  हास्य  चुटकले  आदि  आदि !  सर्व प्रथम  संस्था के सचिब  हरीश  कंडवाल  ने  उत्तराखंड की जानी मानी सस्ती श्री परसहर गौड़ जी को आमंत्रित करते हुए उनसे आज के कार्यकर्म की शुएवात के लिए आगाह किया,  साथ में  देहली में ब्रेन हम्रेज से ग्रस्त एक नन्ही   बालिका के लिए धन जुटाने  के लिए एक अपील  करने  को भी कहा    !  दर्शको ने  करतल ध्वनि के साथ उनका स्वागत  किया !  पराशर जी ने इस मौके पर सब को होली की  बधाई  देते हए कहा " जीवन बिबिध रगों  से  भरा  पड़ा है ! वेसे  इसमें की किस्मे के गुलाल है लेकिन सबसे साफ़ दिखने वाले दो रंग  है  सुख और दुःख  .... !  अपनी अपील की भूमिका बाँधने  के बाद उन्होंने उस बची के बारेमे बोला और उसके माता-पिता की संघर्ष करती जिन्दगी के बारे में भी कहा की कैसे वे उस का जीवन बचाने का  पृयास कर रहे है ..  इतना ही नहीं  वे माइक को वही छोड़कर सबके आगे  धन मागने गए .. जिसका सीधा असर इतना हुआ की एक मिनट में लगभग ५०० डालर इकठा होगये  !  ये आज के कार्यकर्म की सबसे बड़ी उपलब्धि थी.!
 
      होली के सुरवात " होली आई र कान्हा  " जिसमे निर्मल राणा ,सुरुभी  जसमी शर्मा,  अर्चना त्यागी ने  बहुत ही सुंदर ठंग न्रत्य कर सब को लुभाया ! तत पश्च्यात कृष्ण मिश्र ने अपने भाव भंगिना व   अदाउओ  से  "राधा क्यूना जले "  न्रत्य पर सब को आकर्षित करके बहा बह लुटी !  ठोला रे  ठोला  पर नूतन और मयंक की थिरकन देखती ही बनती थी ! इसके बाद आये वो लम्हा जिसने सके ह्रदय को जीत लिया   एक नन्हा सा  भाबी कलाकार आर्यन कंडवाल    जिसने अपनी मधुर आवाज से सबको चकित कर दिया ! असल में आज की स्याम उसके ही नाम रही !  राजेंदर कोठियाल ने पाने चुटकिलो से दर्शको को  को गुद गुदाया !  एक नी प्रतिभा   कुमारी  नारंग जिसने बड़े अंदाज में हिंदी  कबिता  बोली  ! उसके बाद  माहोल  को थोड़ा  और  हल्का बाने के लिए पराशर जी को मंच पर बुलाया गया  ! पराशर जी कनाडा में हास्य व्यंग की के जाने माने हक़स्ताकक्षर है  उन्होंने अपनी सम सायकि कबिता " होली और मै "  जिसमे हश्या और व्यंग का समिश्रण था जिसे सुन सुनकर दर्शक अपने हसी को दबा नहीं पाए और  ठाके मार मार आकर  हँसते   चले गए . ! और अंत में शगुन गुप्ता और इसा गुप्ता  के न्रत्य   का सब ने भरपूर  आनन्द उठाया !
 
     
     सचिन गौर

Parashar Gaur

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  खैन्च्म खैंच --- टांग खैंच

         केदारखंड की किसी गुफा में  सूत जी  ध्यान मगन  थे ! सोच रहे थे की कालान्तर में इस खंड का नाम क्या होगा  ! ये खंड , खंड खंड होगा या अखंड रहेगा ?  अगर कभी अखंड होगा भी तो वो कौन  होगा  और कौन  करेगा  ?  इसी च्निन्ता में थे की , तभी  दो चार ऋषी मुनी उधर से गुजरे ! उन्होंने देखा की सूत जी  ध्यान   मगन है शायद वो किसी  नई कथा सुनाने पर बिचार कर रहे है !

       सूत जी की तिन्द्रा टूटी  !   ऋषीओ ने  प्रणाम करते हुए कहा---  " ऋषीबर , बहुत दिनों से आपके दर्शन नही हुए और नहीं आपने हमको कोई  नई कथा ही सुनाई ! कृपा करके आज हमको एक नई कथा सुनाने की क्रपा कीजिएगा !      "हां .."  आप को याद दिला दे की पीछे जबाप  आप कथा सूना रहे थे तब आपने यह कह कर कथा को बिराम  दिया था की आगे मै जब भी कथा सुनाऊ तो मुझे याद दिला दे की  कोई खंड कलयुग में उत्तराखंड के नाम से जाना जाएगा  और सबसे बड़ी बात ये होगी की  वहा के लोग  एक दुसरे की टांग खींचेगे  !   उस पर आप बिस्तार से कथा सुनाये  साथ में आप से अनुरोध है की कौन किसकी टांग खींचेगा इस पर जरा रोशनी डाले तो  हम आपके  आभारी  होंगे !

       सूत जी .. बोले ..." आपने,  मुझे , सच में धन्य किया क्योंकि मेरे पास कथा सुनाने के लिए कोई नई कथा नहीं थी ! बस इसी सोच में डूबा था की आप आगये !  भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है ! जिसमे तरह तरह के लोग/जाती बॉस करती है ! जो  अपने अपने धर्म , अपनी २ रीती रिवाजो के अनुसार जीते है और जियेगे ! आज मै आपको कालान्तर याने कलयुग में जी रहे उत्तराखंडियो की कथा सुनाता हु !  ये इलाका पहले उत्तर प्रदेश में  रहेगा बाद में अलग होकर उत्तराँचल के नाम से बनेगा परन्तु  ५ साल बाद फिर उत्तराखंड  में बदल जाएगा  !
यहाँ के लोग वेसे बड़े भोले और सीधे साधे होंगे ( औरो के लिए, अपने लिए नहीं )  इनका ये बर्ताव दूर दूर तक जाना जाएगा ! लेकिन जब इनी के बीच में कोई आगे बदने का प्रयास करेगा तो ये उसकी टांग खीचने में जरा भी देरी नहीं करेंगे !  तभी किसी ऋषी ने सवाल किया     ---------     " एसा क्यों ? "

       सूत जी बोले  "   .. सुभाऊ .. सुभाऊ   ..... / "     एसा उनकी संस्कार में होगा ?    वो ना चाहते हुए भी एसा करगे ही ///    -----  गुण ... का  प्रभाव  होगा ????

          खैर , अब आगे मै एक उदाहरण देकर आपको समझने की कोशिश करूंगा ...// एक मया नगरी होगी ( आज की मुम्बई ) जिसमे महाभारत की तरह जुआ का आयोजन तो नहीं होगा लेकिन गयान का आयोजन होगा जिसमे महा भारत की द्रोपदी की त्तरह एक स्त्री ( आज की जानी मानी हस्ती प्रतिभा जी ) होंगी जहा दुषाषन होगे ( ई मेल में लेखक) दुसरे गुट के लोग( कोरबो की तरह ) जो उस आयोजन को या तो पचा नहीं पा रहे होगे या फिर उस स्त्री के आयोजन पर उसे को लेकर  एक  महा युद्ध की रचना करेगे महा भारत की तरह  !    इस गायन के आयोजन में !   गायन के भीष्म पितामहा ( नरेंदर नेगी जी ) पर सवालिया निशाँ लगा लगा कर उसे घेरेगे ! एक दो ( मेल लिखने वाले ) तो, अर्जुन की तरह इ मेल रूपी बानो से उन्हें घयाल भी करेगे !   तब छिड़ेगा  सम्बादो का, आदान-प्रदानो, एक दुसरे की चिच्लेदारी  , छीटा कशी  करने का कार्या  क्रम  !   ! मतलब ये, की , बाद में दोनों गुट एक दुसरे की टांग खीता नजर आयेगा ! ये तो रक किसा है ये से किस्से की होगे जिनका बाद में मै जिक्र करूंगा !


पराशर गौर
दिनाक २० मार्च २०१० दिन में ११ ४४ पर
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Parashar Gaur

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यु कनु क्वे हवे सकद !

 
खैंच खैच  अरे ....
तैकि टांग  खैंच 
दिखुणु नि   छै
वो चलिगे  ऐंच  ... खैंच  खैंच ...

 
यु कंक्वे  हवे सकद
की,    वो ऐंच अर  तू ताल
वो सैणम  अर तू भ्याल
जाणीके भी बणु छे  अजाण
कुजाण  कुजाण ..........
त्वेमु सबी गुण छीन अर छैच ... खैंच खैंच ,..

हमारी परम्परा
हमरा संस्कार
हमरी सोच
मजाल च कवी
मी से अग्वाडि बड़जा
भीतरी भित्तर फुकिंदा 
जू कवी ज्यादा तार्कि कैजा
कैथी देखि नि सकदा
जरा कवी बणग्या   त,
सै नि सकदा ....,
 वे की तरकी थै
 देखि नि सकदा
जलने की आग
अभी हमारा भीतर    छैच .. खैंच खैंच ..

 
भैर ..दिख्नण से हम
सीधा साध  भोला भाला
भीतर म्वारै  पे त ण
पता नि चलालू कब डंक  मला   
हरेक का कामम  टांग अडाणी
 भला  हम, कभी  बिसरी सकला
नै जी नै ....
अपनी परम्परा थै हम छोड़ी नि सकदा
 जमा...,  ना,   बाप दादों से चली पर्था
हम बदली नि सकदा
यु  संस्कार हमुम,  अभी ज़िंदा  छैच .. खैंच खैंच ,,

 
पराशर गौर
शनिबार २० मार्च २०१० , ७ ३५ पर



Parashar Gaur

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"    अभी, मन- यु------   "        (  अभिमन्यु    )
 
                 जब ऋषीयो ने सूतजी से  कलयुग में जी रहे उत्तराखंडियो के बारे में व उनके अचार-बिचार, शुभाऊ, गुण और संस्कारों के बारे में सूना और जाना तबसे  वे इन प्राणियों के बार में और भी जानने के लिए  उत्सुक्त  हुए !  उन्होंने सूतजी से इसी श्रृखला में  उनके बारे में एक  और नई कथा सुनाने का आग्रह किया ,बिनती की , ज़ोदडी  की !
 
              सूतजी बोले अगर आप सुनना ही चाहते है तो ,   तो सुनिए ........  और कहने लगे ,       जैसा की आपने पिछली  कथा  में सूना और जाना,   की मया नगरी ( मुम्बई) में जहा उत्तराखंडियो के द्वारा गायन का आयोजन किया गया था !  इस आयोजन की समाप्ति के बाद जो हाल हुआ वो आप से छुपा नहीं !  इस आयोजन में गायकी के भीष्म पितामह ( नरेंदर सिंह नेगी)  पर   ई मेल रूपी बाणों से चारो ओरसे हमला किया गया था !  साथ में इन्ही बाणों से आयाजको व उनकी कार्यशैली ( कार्यक्रम फ्लाप होना  जैसे )  पर भी निशाने दागे गए थे !  एसे बाण  हमारे  सतयुग में अभी इजाद  न ही  हुए है और न होंगे  जैसे .. एक दुसरे पर छिछलेदरी  कर उसे नीचे दिखाना , व्यंग बाण  चलाना ,   कटाक्ष करना , एक दुसरे की टांग खींचना आदि आदि !   वहा,   एक दुसरे  महाभारत की शुरवात हो चुकी थी !  पात्र अपने अपने सस्त्रो के साथ मैदान में आ चुके थे !  उस माहाभारत में कई लाशे बिछी थी !  कइयों की हत्या हुई थी  लेकिन इस मया नगरी   हो रहे माहाभारत में भी किसी  अभिमन्यु  की हत्या तो नहीं होगी   "हां "   उसको  घेर कर उसके उसके चरित्र की हत्या होगी !
 
              कथा बाचने से पूर्ब में इस "  अभिमन्यु   " का पहाड़ी में   इसका उचारण करके आप सब को  समझा दू ,  ताकि ,, आप आगे चलकर इस कथा को  आसानी से समझ सके !
 "  अभिमन्यु    "     माने ...,    पहाड़ी में    ऐसा  होगा और बोला जाएगा       "  अभी ... मन .. यु  "    मतलब  ( ज्यादा देर नि कनी , अभी मरा दया  ये थै  )   बस ,  कथा आगे की यही से शरू होती है   !
 
            इ मेल की मार से आयोजक ( पांडव पक्ष )  हताश निराश हो चुका था  !  बिरोधी  ( कोरब पक्ष ) हमले पे हमला  बोले जा रहे थे ! पांडव पक्ष के कुह हिमायती  भी चुपचाप बैठे थे  और इन्तजार कर रहे थे बिरोधी पक्ष की नी चाल की चाल का !     आयोजको पर चारो ओरसे हमला होते देख   उनके कुछ हिम्सायती /समर्थक बिदुर  ( भिष जी )  खुलकर उनके पक्ष में बोव्लने  लगे   तो आयोजक (  पांडव  ) लाश गृह  से बच पाने में कामयाब हो गए  उनको जीवन दान मिल  तो सही  परन्तु कहते  है की  कोइ भी घटना का आधार पहले से ही घटा होता है इसी बीच  नादान /अबुज  अभिमन्यु  ( रजनीश अग्नहोत्री )  ने बौखलाहट  में एक बात  कह  दी,   जो कही तक सच भी थी ,   लेकिन ,  वो बिधुर  जैसे  बड़े बाबा  से सलाह लेना भूल गया  और उसने  यह   कह  डाला  की बिरोधी ( पहाड़ी ग्रुप )  को  गायन या कर्यक्रमो के लए हाल नही मिलते  क्योंकि  वो ( जो उसे नहीं कहने चाहिए    था )   पीकर हाल में हुडदंग करते है !  बस यही से होती है इस अभिमन्यु  की हत्या ( याने  सामाजिक बहिस्कार की योजना )  की रचना बिरोध्यो के द्वारा !
 
          युद्ध की घोषणा हो चुकी थी !  दोनों पक्ष आमने सामने अपनी अपनी   अस्त्र सस्त्र    ( सफल-असफल की  दलीलों )  को लेकर खड़े हो चुके थे !  कार्यक्रम के सफल और बिफल के मुड़े पर आपसे में तलव्वारे  खिची जाने लगी !    इस माहाभारत  के युद्ध का  शंख  बज  चुका  था !  एक दुसरे के तरकाशो  ( ई मेल )  की कटाक्ष की काट  सोची जाने लगी  थी  साथ ही साथ इस   खुले मैदान  ( उत्तराखंड समाज में )  में कैसे एक दुसरे पर लाछन लगाकर उन्हें  नीचा दिखाया जाये पर  मन्त्र्नाये  होनी शुरू हो गई थी  !  आरोप , प्रति आरोप  एक दुसरे पे  जड़े जाने लगे थे,   की तभी आचार्य  द्ररोंण   (  मान्यबर श्री डॉ  उनियाल )  के एक संदेश ने आग में घी का काम कर दिया !   जिसकी तपन दूर बैठे  ध्रिस्टराष्ट्र   ( जो आँखों से अंधा नहीं है वो देख सकता है )  तक भी पहुंची गई !  वो देख रहा था , क्योंकि देखना उसकी नियति थी !  वो चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता था ! उसने संजय ( लेखनी ) का सहारा लिया और दोनों पक्षों को सन्देश देकर  समझाने  का प्रयास भी किया लेकिन नियति को तो कुछ और ही  मंजूर था !

    मामा सकुनी द्वारा  अभिमन्यु की हत्या ( सामाजिक बहिस्कार )  की रचना ....... की नीव !

       भीष्म ( नरेंदर सिंह नेगी)  जा चुके थे ! बिधुर ( भीष्म  जी ) चुपचाप  थे ! मामा शकुनी और उनके सभापद इस  चुपी  का भरपूर  फायदा उठा रहे थे !   वे  द्रोपदी और उसके बेटे अभिमन्यु ( रजनीश )  पर  सीधे निशाना  लगाकर घात   करने की तयारी में जुट गए !   अभिमन्यु  ( रजनीश ) को आयोजन के सारे गुर आते थे ! उसे आयोजन , जनसंपक जैसे बिधा पर महारथ था !  बिष्म पितामहा का उस पर अपार स्नेह व  वरदहस्त था !  कहते है की    " जिसका मामा कृष्ण वो किसीसे क्यूं डरे "  इस अभिमन्यु का दोष केवल इतना था की ये   कर्ण  की ही तरह था इन पांडव के नजरो में  सूतपुत्र  जैसा    (  सूतपुत्र बोले  तो,  नाना पहाड़ी )   था !  इस अभिमन्यु की दो पीडिया वही याने पहाड़ में जन्मी  लेकिन इनके नजरो में थो वो बहरी था जैसे  मराठा वालो के लिए  सब बाहरवाले है महाराष्ट्र  में भले , वहा  हमारे पहाडियों   की चार पीडी क्युओं न हो गई हो  !
 
        चाले चली जाने लगी ! बिशादे बिछी जाने लगी ! मामा शकुनी कहा चुप बैठने वाले थे ! उन्होंने अपने पासो को हाथो पर रगड़ते हुए अपने पक्ष के सभी सभाप्दो को कहा  ..." मेरे पास अभी भी एक पासा शेष है उसकी काट किसी के पास भी नहीं .. भारत के सम्भिधन में भी नहीं !  क्युओं इस सारे प्रकरण में जुड़े इस अभिमन्यु को नान पहाडी के  चक्रव्ह्यु में घेरे कर  इसकी सामाजिक हत्या कर दी जाए ! ये कह कर उन्होंने पहाडी वनाम नान पहाडी का पांसा  ( इ मेल   ) सब को भेज दिया !

        पहाड़ी वनाम नान पहाड़ी का तीर छोड़ दिया गया निशाना बैठते बैठे रह गया ! उसकी सामाजिक हत्या होते होते रह गई !  अभिमन्यु ने उनपर उलटा  दाव फेंका एक नये गायन के आयोजन की घोषणा  करके ! बिरोधी गुट   इस घोषणा को सुनकर  अगल बगल झकने लगे ! जब कुछ न बना तो वे भी उसकी इस योजन की तारीफ करने लग गये !

      तभी किशी ऋषी ने उठ कर सवाल किया " गुरुदेब क्या इस आयोजन में भी किसकी का नादा या पैंट खिंची जायेगी ???????   सूत जी बोली .. " थोड़ा प्रतीक्षा कीजिये  .. " आगे की कथा में मई सब बिबरण  दे दूंगा ! कह कर चल दिए  !

पराशर गौर
२४ मार्च २०१०  दिन में २.५९ पर 
   

 

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