बिरखांत-98 : सत्यनाराय कथा में क्विज कांटेस्ट २८.०६.२०१६
‘चनरदा’ इन पंक्तियों के लेखक का एक बहुत पुराना जाना-पहचाना किरदार है | इनका नाम चन्द्र मणी, चंद्रा दत्त, चन्द्र प्रकाश, चनर देव, चनर सिंह, चान सिंह, चन्दन सिंह, चनर राम, चनराम, चनिका, चनरी आदि कुछ भी हो सकता है परन्तु लोग उन्हें चनरदा ही कहते हैं | चनरदा मसमसाने के बजाय गिच खोलते हैं, कडुआहट में मिठास घोलते हैं, बोलने से पहले तोलते हैं और सच- झूठ की परत खोलते हैं | मेरी कई रचनाओं में चनरदा कई बार आ धमके हैं | इस बार वे एक सत्यनायण कथा सुनकर लौटे हैं |
राम- रमो के बाद मैंने चनरदा से पूछा, “बहुत दिनों में नजर आ रहे हैं चनरदा आज, लगता है कहीं दूर चले गए थे और वहीं रम गये ?” “कहां जाऊंगा यार, यहीं था | राजकपूर कह गया है, ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ?’ कथा के निमंत्रण से आ रहा हूँ | सत्यनारायण कथा थी मित्र के यहां”, चनरदा ने मुस्कराते हुए कहा | “कथा का ताजा ज्ञान से सराबोर हो, तभी खुश नजर आ रहे हो,” मैंने चुटकी ली | “तुम जो समझो यार, कोई ताजा ज्ञान नहीं हुआ | वर्षों से सुनते आ रहे हैं, बस एक ही ज्ञान ठैरा- लालच से वशीभूत होकर पूजा का संकल्प करो, ब्राहमणों को भोजन कराओ, संकल्प नहीं निभाओगे तो उस व्यौपारी की तरह बेक़सूर दुख पाओगे...आदि | कथा के बहाने मित्र मिलन हो जाता है और ‘उसने कथा कराई’ का प्रचार तो हो ही जाता है |”
“कथा है तो ब्राहमण और बाबा तो आये ही होंगे, उनको खिलाने- पिलाने में पुण्य मिलने वाला ठैरा बल | जजमान के साथ श्रोताओं को भी तो पुण्य कमाया होगा”, मैंने प्रश्न उठाया | चनरदा सहमत नहीं हुए और तुरंत बोले, “श्रोता तो थे परन्तु किसी का भी कथा में ध्यान नहीं था | ऐसे में पंडित जी भी टोटल पूरा कर रहे थे | ‘जैसी तेरी जाग्द्यो वैसी मेरी भेट-पखोव |’ शोर-शराबा देख मैंने श्रोताओं से निवेदन किया, “ देखो कथा ध्यान से सुनो, कथा के अंत में पांच सवाल पूछे जायेंगे | जो सही उत्तर देगा उसे हर सही उत्तर का बीस रुपया इनाम दिया जाएगा | मैंने दस-दस के दस नोट पूजास्थल पर रख दिए | कुछ कम शोर के साथ कथा चलते रही | कथा पूर्ण होते ही आरती से पहले श्रोताओं से पांच साधारण सवाल पूछे –‘लीलावती और कलावती कौन थीं, सूत जी कौन थे, सदानंद कौन थे, किन ऋषियों ने किस जगह पर सूत जी से बात पूछी और वर किस नगर का था ?’ हैरानी तब हुई जब एक भी प्रश्न का उत्तर ठीक से नहीं मिल पाया | स्पष्ट हो गया कि किसी का ध्यान कथा में नहीं था | पंडित जी से सवाल नहीं पूछे गए ताकि व्यास गद्दी का सम्मान बना रहे और पंडित जी में भी स्वयं उत्तर देने की कोई पहल नहीं दिखाई दी | सौ रुपये की जमा राशि तत्काल पंडित जी के सुपुर्द कर दी |”
चनरदा आगे बोलते गए, “मुझे किसी की आस्था- श्रधा पर कुछ नहीं कहना, मैं तो केवल अंधश्रद्धा या अंधविश्वास का विरोध करता हूँ | कथा में किसी गरीब को भोजन कराने या कर्म करने की चर्चा कहीं पर भी नहीं आयी | ब्राहमणों को भोजन कराने तथा पूजा करने से पुण्य और वांच्छित फल मिलने की कई बार चर्चा की गई | ‘श्रीमद भागवद गीता’ में केवल कर्म करने का संदेश है जबकि ‘इस कथा’ और ‘गरुड पुराण’ में केवल ब्राह्मण भोजन को ही पुण्य प्राप्ति का द्वार बताया गया है | अंत में एक युवक ने सवाल किया, “ इस कथा में पूजा करने की बात कई बार कही गई है, कथा करने की बात भी कही गई है परन्तु सत्यनारायण की कथा क्या थी यह तो बताया ही नहीं गया ?” चनरदा बोले, “उस युवक का प्रश्न मुझे उचित लगा जो आज भी अनुतरित है | आखिर कथा क्या थी जिसे नहीं करने पर कई लोगों को दण्डित होना पड़ा बताया गया ? इस कथा को ‘कथा’ की जगह ‘पूजा’ कहना उत्तम प्रतीत होता है | अगली बिरखांत में कुछ और...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
२८.०६.२०१६