Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 62539 times)

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                   दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                        ३१ मई तमाकु- धूम्रपान निषेध दिवस

       हर साल ३१ मई हुणि पुर दुनिय में तमाकु ल हुणी नुकसानों क बार में जनजागृति क लिजी धूम्रपान निषेध (तमाकु निषेध ) दिवस मनाई जांछ | यै हुणि WNTD आर्थात world no tobacco day (वर्ल्ड नो टोबाकू डे ) लै कई जांछ | संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) कि संस्था, विश्व स्वाथ्य संगठन (WHO) क अनुसार दुनिय में हर साल साठ लाख लोग कैंसर सहित तमाकु  जनित रोगों ल बेमौत मारी जानी जबकि छै लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप ल  धूम्रपान क शिकार है जानी | वर्ष १९८९ में विश्व स्वास्थ्य संगठन ल एक प्रस्ताव पास करि बेर हर साल ३१ मई हुणि तमाकु निषेध दिवस मनै बेर  जनजागृति करण क निर्णय ल्हेछ | य दिन हर साल एक नयी नार दिई जांछ | वर्ष २०१६ क लिजी नार छ – तम्बाकू रहित युवा ( tobacco free youth) जैक उद्देश्य छ नौजवानों में धूम्रपान कि लत रोकण |
 
     तमाकु क सबै उत्पादों में जो चार हजार रसायन हुनी उनु में कुछ यास जहरिल हुनी जैक वजैल सेवनकर्ता कैं नश हुंछ | जब लै यूं रसायनिक तत्वों कि वीक खून में कमी ऐंछ उ तमाकु या धूम्रपान ढूँढण लागि जांछ | यूं जहरिल तत्वों में निकोटिन, टार और कार्बन -मोनो- आक्साइड मुख्य हिंछ  जो मनुष्य क लिजी भौत घातक हुनीं | तमाकु क सेवन ल हमूकैं शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक नुकसान हुंछ | हर रोज दस बटि पचास रुपै तक धूम्रपान पर खर्च करणी मैंस साल में आपणि  जेबा क चार हजार बटि बीस हजार रुपै तक भष्म करि द्यूंछ और बद्याल में गिच, मसुड़, गव, फेफड़ सहित शरीर क कएक अंगों में कैंसर जास भयंकर  रोगों क शिकार है जांछ |
 
     क्वे लै मैंस कोई नश, धूम्रपान, तमाकु, गुटखा, सुरती, खैनी, जर्दा, गांज, चरस, अत्तर, नश्वार क प्रयोग करण आपण मितुरों, दगडियों, सहपाठियों, सहकर्मियों, सहयात्रियों और संगत बटि सिखूँ | कुछ लोग त तमाकु -नश- धूम्रपान कैं महिमामंडित लै करनी | देवभूमि में ‘जागर’ में डंगरियों कैं ‘भंगड़ी’ क रूप में सुल्प या ह्वाक में तमाकु या चरस- गांज भरि बेर दिई जांछ, (अब शराब लै दिई जांरै) जैक य मतलब बतायी जांछ कि  डंगरिय में नश पी बेर आत्मज्ञान पैद हुंछ | कीर्तन मंडलि में लै सिगरट या सुल्प में भरि बेर ‘शिवजी की बूटी’ क नाम ल चरस पीई जैंछ जैकैं बाबाओं क खुलि बेर समर्थन और संरक्षण प्राप्त छ | यूं लोग खुद त पीनी और दुसार लोगों कैं लै अप्रत्यक्ष रूप ल नश पेउनी |
 
      क्वे बैठक या चौपाल में एक ठुलि चिलम (फरसी) में एक साथ कएक  लोग तमाकु दगाड़ में पीनी |  इनुमें अगर एक कैं लै टी बी (क्षय) ह्वली तो  चिलम दगाड में पीण ल सबू में फ़ैल सकीं | देवभूमि में बारातों में लै बीड़ी- सिगरट बड़ी शान ल बांटी जानीं | बरेतियों या घरेतियों कैं नाश्ता और भोजन क बाद एक ट्रे या थाइ में बीड़ी- सिगरट लै परोसी जानीं | मुफ्त में मिलनी तो सबै पीनी | नान लै लुकि-लुकि बेर पीनी | नि पिणी लै गिच पर लगै ल्हिनी | ‘मुफ्त क चन्दन घैंस म्यर नंदन’ वालि कहावत क प्रैक्टीकल देखण में औंछ | यसिकै मजाक में या मुफ्त में हाम धूम्रपान करण सिखि जानूं |
 
       धूम्रपान क विरोध में आयोजित एक जनजागृति कक्षा में कुछ लोगों ल पुछौ, “सर भोजन करण बाद एकदम धूम्रपान क चटांग या हुड़क क्यलै उठीं?” यह सवाल सही छ | यस अक्सर हुंछ | धूम्रपान करणियां क खून में    निकोटिन जब तक एक निश्चित मात्रा में रांछ, उनुकैं क्ये लै परेशानी नि हुनि | भोजन करते ही उनर खून में निकोटिन क स्तर घटण फै जांछ क्यलै कि  निकोटिन कैं कल्ज (लीवर) निष्क्रिय करि द्यूंछ और भोजन क पश्चात लीवर में खून कि बढ़ोतरी हुण फै जींछ | लीवर में ज्यादै खून पुजण क वजैल उमें  निकोटिन क स्तर निष्क्रिय हुण फै जांछ और धूम्रपान करणी कैं परेशानी अर्थात निकोटिन कि जरवत महसूस हुण फै जींछ ज्ये क वजैल उ भोजन क तुरंत बाद धूम्रपान क लिजी या तमाकु या गुट्ख (या अन्य नशा) क लिजी तड़फण फै जांछ | 
   
     य विषय भौत ठुल छ | बात ख़तम करण चानू | जब जागो तब सवेरा | अगर आपूं, आपण क्वे मितुर, परिजन, संबंधी, सहकर्मी या कोई अनजान आपूं कैं धूम्रपान करते या गुटखा- तमाकु खाते हुए नजर ऐ जो तो एक बार विनम्रता क साथ जरूर कौ, “आपण कल्ज नि फुक, फेफड़ में छेद नि कर,   कैंसर कैं नि बला, आपण शरीर नि सुखा, ख़म-ख़म करनै हूं त्यार आंख वड्यार न्हैगीं, आपण नान और घरवाइ क उज्यां चा |” धूम्रपान क सेवन करणी या गुट्ख खणी एक ता जरूर सोचल | मील प्रयास करौ और कतुक्वा कैं नश है मुक्ति मिलि गे | एक ता आपूं लै करि बेर देखो त सही |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
2.6.१६
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                         दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                                  मैंस शराबि तो स्यैणि क्ये करो ?
 
     शराब क विरोध में पैली लै कएक ता चिठ्ठी में जिगर है रै | जब क्वे स्यैणि क मैंस पियक्कड़ है जांछ तो वील क्ये करण चैंछ, आज कि चिठ्ठी में य बात कि चर्च करण चानू | हम सब जाणनू कि क्वे लै स्यैणि क बाप, मैंस, या च्यल शराब पींछ तो मुसीबत हर हाल में एक च्येलि, स्यैणि या मै कैं झेलण पड़ीं | जो स्यैणि क मैंस पियक्कड़ है जांछ तो स्यैणि पर क्ये गुजरीं य केवल उ स्यैणि जाणि सकीं | शराबी मैंस दगै जुझि बेर आपणि जिन्दगी और घर बचूणी वीरांगनाओं कैं आज कि य चिठ्ठी समर्पित छ |
 
     स्वभाव ल हरेक स्यैणि चैंछ कि वीक मैंस वीक नखार उठो, वीकि खुशामत करो, रुठण पर उकैं मनो, वीकि परवा करो, वी पर आकर्षित रो और वीकि हर बात कैं मानो | एक चुस्त- दुरुस्त, फुर्तिल, योग्य, तंदुरुस्त, सब ऐबों है दूर, सब गुणों ल भरपूर, सुन्दर मैंस कि कामना सबै स्यैणिय आपण मन में करनीं | यैक विपरीत जब क्वे स्यैणि क शराबि मैंस दगै पल्लू बदी जो तो यै हुणि विषम परिस्थिति कई जाल और य परिस्थिति दगै निबटण क लिजी उकैं असाधारण बनण पड़ल | असाधारण अर्थात अथाह धैर्य और भौत हिम्मत आपू में जुटूण पड़लि | यास स्यैणिय आपणि घर- कुड़ी क रथ कैं बरबादी है बचै बेर सुखद जीवन कि तरफ मोड़ि ल्हिनी |
 
     शराब कि लत रूपी जंजीर में जकड़ी हुयी कुछ यास मैंस लै हुनी जनू पर स्यैणि क धैर्य, सहिष्णुता और प्रार्थना का ज़रा लै असर नि पड़न | येसि हालत में स्यैणि क्ये करो ? उ पर वीक करीबी लोग य लांछन लै लगूं हैं तैयार ठाड़ छीं कि उ आपण मैंस कैं समाइ नि सकैं रइ | येसि हालत में भौत सयंम कि जरूरत छ | क्वे लै क़िस्म क झगड़, अनशन या द्वन्द ल त पारिवारिक कलह बढ़ते जाल | शराब और गुस्सा क दुखित करणी यास अनेकों उदाहरण छीं | जब क्वे नश क प्रभाव में हुंछ तो उ शराब या आपणी बुराई सहन नि करि सकन भलेही वीक पुर विनाश हैजो |
 
     कुछ टोटका मास्टरों ल लै यास दुखित स्यैणियों कैं भैम क चक्कर में डाइ रौछ | उनुकैं नीम-हकीम, झाड़ू- मंतर जास टोटकों कैं अपनूण कि सलाह दिनी | यैल समस्या सुलझण क बजाय ज्यादै उलझि गे | टोटकों ल मैंस ‘वश’ में नि है सकन | मैंस कैं वश में करण क सबूं है ठुल रामबाण तरिक छ प्यार क | असहाय, निराश और तनाव दगै जुझणी यास स्यैणियों ल प्यार ल य समस्या दगै निबटण चैंछ | प्यार रूपी य रामबाण ल भौत स्यैणियों कैं फैद हैरौ | विषम परिस्थितियों में खुश राण या हंसण आसान न्हैति | य उसै छ जस क्वे हमूकैं स्यूड़ बुड़ो और रूण-चिल्लाण क बजाय हंसण कि बात करो | यस करण कठिन छ पर करण पड़ल क्यलै कि उकैं आपण डूबणी जहाज कैं बचूण छ |
 
     य समस्या क एकमात्र हल छ कि अगर स्यैणि य ठान ल्यो कि उ आपण मैंस कैं शराब रूपी सौत है अलग करि बेरै चैन ल्येलि तो उकैं एक निश्छल रणनीति बनूण पड़लि जैकैं अंजाम दी हुणि उकैं खुद आपूं कैं तयार करण पड़ल | विनम्रता, शालीनता, सहनशीलता और समर्पण क भाव ल हिम्मत करि आपणि हार नि मानते हुए आपण पियक्कड़ मैंस कैं सही बाट में ल्योण पड़ल | आपण मैंस दगै शराब नि पीण कि बात तब करण पड़लि जब उ शराब में नि डूबी हो | नश में डूबी हुई हालात में शराब नि पीण कि बात करण आग में घ्यूं डावण वालि बात हइ | स्यैणि कैं ऊँ क्षणों कि तलाश करण पड़लि जब वीक मैंस वीकि बात कैं ज्यादै है ज्यादै सुणि सको | स्यैणि कैं उ वातावरण बनूण पड़ल जमें य पटरी बै उतरी मैंस दुबार पटरी पर ऐ जो | स्यैणि में यतू ताकत हिंछ कि उ परिवार कैं टुटण है बचै बेर नना क भविष्य ध्यान में धरनै आपण मैंस कैं शराब कि लत है छूटै सकीं और सावित्री बनि बेर उकैं शराब ल मरण है बचै सकीं |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
०९.०६.२०१६

 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                             बिरखांत-९४ : किसान की छाती रौंदते जंगली जानवर
 
    यदि आपने अपने खून –पसीने से सींच कर खेत में फसल उगाई हो और अचानक बन्दर, सुवर, नीलगाय या कोई अन्य जंगली जानवर उसे उजाड़ दे तो आपको कैसा लगेगा ? आज हम उस मोड़ पर आ गए हैं जहां अन्न सबको चाहिए परन्तु किसान कोई नहीं बनाना चाहता | वर्तमान दौर में किसान का अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ने का कारण प्राकृतिक आपदाओं के अलावा जंगली जानवरों का भीषण उत्पात भी है | कुछ लोग किसान का उगाया अन्न तो खाते हैं परन्तु किसान की उन अनगिनत समस्याओं की ओर झांकते तक नहीं जिसमें एक समस्या जंगली जानवरों द्वारा उसकी फसल नष्ट करना है | किसान की छाती फाड़ने वाले इन जानवरों की तीब्र प्रजनन गति एवं संख्या का भी इन पैरोकारों को आभास नहीं है | एक अबारा कुत्ते की वकालत करना आसान है परन्तु उसी कुत्ते को घर लेजाकर पालतू बनाना शायद वकालत करने वाला नहीं जानता |
 
    आजकल पर्वतीय राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, असम तथा देश के कई अन्य राज्यों में जंगली जानवरों का आतंक बहुत बढ़ गया है | देश के दो पहाड़ी राज्य दशकों से बन्दर और सुवर के झुंडों द्वारा फसल नष्ट करने के कारण फसल लगाने में उदासीन होते जा रहे हैं | याद आता है वह बचपन जब स्कूल से आते ही कालू कुत्ते के साथ बानर हकाने के लिए सब काम छोड़कर भागते हए जाना पड़ता था या बानर हकाने की बारी के दिन घरवाले स्कूल जाने के लिए मना कर देते थे | उसी बंदर- सुवर समस्या ने आज बिकराल रूप ले लिया है | उत्तराखंड से किसानों के अंधाधुंध पलायन का एक कारण सुवर और बंदरों का आतंक भी है | वहाँ का किसान असहाय है | उसकी कोई नहीं सुनता |
 
     हाल ही में बिहार के मोकामा में नीलगाय के झुंडों द्वारा किसानों की लगी लगाई फसल तहज-नहज हो गई | किसानों के फ़रियाद पर पर्यावरण मंत्रालय ने उन्हें नर नीलगाय का बध करने की अनुमति दे दी | परिणाम स्वरुप शूटर आये और कई नर नीलगायों का बध कर दिया गया | एकतरफा सोचने वाले तथाकथित पशुप्रेमी इसके विरोध में आ गए | पर्यावरण मंत्री ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के प्रस्ताव को किसानों की समस्या को समझते हुए एक निश्चित काल तक के लिए मंजूरी दी गई है | फिलहाल एक वर्ष के लिए १४ मार्च २०१६ से हिमाचल प्रदेश में बन्दर मारने, ३ फरवरी २०१६ से उत्तराखंड में खेत में आये सुवर मारने और ३० नवम्बर २०१६ तक बिहार के कई जिलों में नीलगाय मारने की अनुमति मिल गई है बताया जा रहा है जिससे किसानों ने थोड़ी राहत महसूस की है |
 
    वन्यजीओं से तो सभी को प्रेम है, उन्हें बेवजह कोई भी मारना नहीं चाहता | अंधाधुन्द बढ़ती हुयी बन्दर- सुवर- नीलगाय की संख्या को नजरअंदाज करते हुए कुछ पशुप्रेमियों ने कभी भी किसान के पक्ष को नहीं जाना और न उसकी फसल रौंदने के दर्द को समझा | लोकहित के विपरीत का पशुप्रेम किसके लिए है | इन पशुप्रेमियों में कोई किसान नहीं है और न इन्हें अन्नदाता कृषक के परिश्रम का कोई ज्ञान है | इन्होंने कई बार शोध संस्थाओं में मेंढक, चूहे, गिनीपिग, भेड़, बकरी और सुवर पर शोध करने का भी विरोध किया है जबकि प्रयोगशाला में इन जानवरों की उचित देखभाल होती है | ऐसी परिस्थिति में शोध कैसे आगे बढ़ेगा, इसकी इन्हें चिंता नहीं है ? इन लोगों को कोई ऐसा विकल्प बताना चाहिए जो क्रियान्वित हो सके |
 
      बन्दर, सुवर और नीलगाय जैसे जंगली जानवरों की संख्या दिनोदिन अत्यधिक बढ़ते जा रही है जबकि देश के ग्रामीण क्षेत्र में जंगल क्षेत्र घटा नहीं है | जो जंगली जानवर आज किसान के दुश्मन बन चुके हैं उनकी संख्या नसबंदी से नहीं घट सकती जैसा कि कुछ लोग सुझाव दे रहे हैं क्योंकि नसबंदी का प्रयोग शहरों में अबारा कुत्तों पर असफल सिद्ध हुआ है | इसका प्रमाण अबारा कुत्तों के काटने पर उपयोग किये जाने वाले इन्जेक्सनों से मिलता है जिनकी देश भर में बहुतायत बिक्री हुयी है | अत: पर्यावरण मंत्रालय का वन्यजीव नियंत्रण हेतु वर्तमान में उठाया गया कदम उचित है | आज घडियाली आंसू बहाने के बजाय किसान की फटती छाती की ओर देखने तथा अन्नदाता के फसल प्रेम को समझने की अधिक जरूरत है | काश ! हम किसान के पसीने से उगी फसल के नष्ट होने की पीड़ा को समझ सकते !! अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१२.6.१६

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                  बिरखांत-९५ : न केदारनाथ भूला और न उपहार काण्ड

 
     हर साल जून का महीना आते ही १६ तारीख को केदारनाथ की वह त्रासदी याद आ जाती है जिसमें सरकारी आकंड़ों के मुताबिक ५८०० लोग मारे गए या लापता हुए जिसमें ९२४ उत्तराखंड के बताये जाते हैं | अपुष्ट में यह आकंड़ा हजारों में है जिसमें सैकड़ों तो घोड़े- खच्चर और बिना पंजीयन के मजदूर, कुली और गाइड थे | यह प्राकृतिक आपदा १६ और १७ जून की दरम्यानी रात्रि को अचानक बादल फटने के कारण मंदाकिनी के उग्र होने से आयी | उस क्षेत्र में यह इंतनी भयंकर आपदा थी कि जिसमें उत्तराखंड के ४२१९ गावों की बिजली, ११८७ पेयजल योजनाएं और २२२९ सड़क मार्ग अवरुद्ध हो गए | पर्वतीय क्षेत्र के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग जिले अधिक प्रभावित हुए | आज इस घटना के तीन वर्ष बाद परिस्थिति बहुत कुछ बदल गई है परन्तु आये दिन बादल फटने की घटनायें होती रहती हैं जबकि उत्तराखंड के चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का धार्मिक पर्यटन एवं प्रकृति दर्शन सुचारू रूप से चल रहा है |
 
     उत्तराखंड एक पर्वतीय भगौलिक संरचना का राज्य होने के कारण यहां कुदरती आपदाएं कभी भी आ सकती हैं | यहां बादल फटने, भूचाल आने और भूस्खलन होने जैसी घटनाएं एक आम बात है | चातुरमास में यहां छोटे-मोटे गाड़-गधेरे भी भबक कर बिकराल रूप धारण कर लेते हैं | १६ जून २०१३ की आपदा को मानव जनित आपदा भी कहा जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में लोगों ने नदी के घर (सूख गए बहाव क्षेत्र ) में मकान, होटल, धर्मशाला, सड़क सहित कई अवैध निर्माण भी कर दिए थे | धार्मिक पर्यटन ने पिकनिक का रूप ले लिया था तथा वाहन संख्या अत्यधिक बढ़ गई थी | इस घटना से बहुत कुछ सीखा जा चुका है जिससे आपदा आने पर जनहानि न हो | उस आपदा में हमारी सेना के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता जिसने आपदा में घिरे हजारों तीर्थयात्रियों को दिन-रात परिश्रम करके बचाया था | हम सेना का आभार प्रकट करते हुए दिवंगतों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं |
 
     जून में ही प्रतिवर्ष १३ तारिख को दिल्ली में घटी एक दिल दहलाने वाली घटना भूलकर भी नहीं भूली जाती | इस दिन १९९७ को ‘बोर्डर’ फिल्म के प्रथम शो पर दिल्ली के ‘उपहार’ सिनेमाघर में भयंकर आग लगाने के कारण ५९ दर्शकों की दम घुटने से अकाल मृत्यु हो गई | १९ वर्ष बीत जाने की बाद भी अपनों को खोने वाले पीड़ित परिवारों को अभी तक न्याय नहीं मिला है | अपना दुख बांटने और न्याय की गुहार लगाने के लिए इन पीड़ित परिवारों ने एक संघ भी बनाया है जो प्रतिवर्ष विगत १९ वर्षों से अपने स्वजनों के लिए एक साथ मिलकर आंसू बहाते हैं और सिसकियां भरते हुए न्याय की उम्मीद पर जीवित हैं |
 
     ‘उपहार’ सिनेमा अग्नि काण्ड आदालती दांवपेंच में फंसा हुआ है | १८ अगस्त २०१५ को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार मुख्य अपराधी अंसल बंधुओं को दो- दो साल की सजा और तीस- तीस करोड़ रुपये का जुर्माना किया गया जो उन्होंने जमा कर दिया बताया जाता है | पीड़ित संघ ने इसे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन मानते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की है | इस घटना ने देश के सिनामघरों की दशा पर सबका ध्यान केन्द्रित किया | घटना के बाद सिनेमाघरों के लिए कड़ी नियमावली बनाई गई जिसमें ट्रांसफार्मर ठीक रखने, अग्निशमन के दुरुस्त साधन रखने तथा नियम से अधिक सीट नहीं रखने आदि संबंधी जनहित में कई बातें हैं | हम उम्मीद करते हैं कि देश के सभी सिनेमाघरों में ये नियम क्रियान्वित हो रहे होंगे |
 
     उक्त दोनों ही घटनाएं मानव जनित हैं | यदि हम अपने लालच- स्वार्थ- रातोंरात आसमान छूने की भूख को रोक लें, अपने को भ्रष्ट होने से बचा लें, सिर्फ अपने ही बारे में सोचना छोड़ दें तथा ‘जीओ और जीने दो’ के आदर्श सिद्धांत को अपना लें तो हम बहुत हद तक इन त्रासदियों से मानव को बचा सकते हैं | काश ! ऐसा हो | आज दो अंसल बंधुओं सहित अन्य पाँचों आरोपी जिन्दी लाश बन मरमर कर जी रहे हैं | अगली बिरखांत में कुछ और...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
१६.६.१६
 
 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                                                 दिल्ली बै चिट्ठी ऐ रै १६.०६.२०१६

                                                                                 सड़क दुर्घटना में बेमौत कि मौत 

    एक सर्वे क अनुसार हमार देश में हर साल सड़क दुर्घटना में करीब एक लाख तीस हजार (३५० मौत रोजाना अर्थात हर चार मिनट में एक मौत ) लोग आपणी ज्यान है हात ध्वे दिनी | यसि बेमौत कि मौत में हमर देश दुनिय में सबू है अघिल बतायी जांछ | कैंसर, क्षय रोग, मधुमेह, हृदय गति व्यवधान आदि रोंगों क बाद देश में सड़क दुर्घटना में मरणियां कि संख्या ऐंछ | य बेमौत कि मौत में दुपहिया वाहन चालक/सवार सबू है ज्यादै छीं जमें  १८ वर्ष है कम उम्रा क किशोरों कि मृत्यु दर १२ % छ | सड़क दुर्घटना में करीब पांच लाख लोग घैल है जानी जनू में ज्यादातर अपंग है जानी | द्वि वर्ष पैली केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे कि अकाल मृत्यु लै ३ जून २०१४ हुणि एक सड़क दुर्घटना में हैछ | वर्तमान में क्वे लै दिन यस नि जां रय जब हाम टी वी में क्षत-विक्षत शव और चकनाचूर हई वाहनों के दृश्य नि देखें राय |

     देश कि राजधानी में रोजाना सड़क दुर्घटना में पांच लोग मरनीं जनू में औसतन द्वि  पैदल यात्री और द्वि दुपहिया चालक हुनी | हर हफ्त द्वि साइकिल चालक और एक कार चालक सड़क दुर्घटना में मरनीं | सड़क दुर्घटनाओं क मुख्य कारण हुंछ बिन लाइसेंस वाहन चलूण, वाहन चलूण कि कम जानकारी, सिग्नल जम्पिंग, वाहन बै सिग्नल नि दीण, ओवर स्पीड (गति सीमा है ज्यादा ), ओवर लोड, शराब पी बेर वाहन चलूण, रोड रेस (एक दुसर है अघिल निकवण कि दौड़ ), सड़क पर गलत पार्किंग, चालक कि थकान या झपकी औण, लापरवाही, डेक क शोर या मोबाइल पर ध्यान बटण आदि | विपरीत दिशा बै औणी वाहन कि गलती, हेलमेट लगूण में कोताही, सड़क में बनीं खड्ड और मशीनी खराबी आदि लै भीषण दुर्घटना क अन्य कारण छीं | 

     यों सब दुर्घटनाओं क मुख्य कारण छ लोगों में क़ानून क डर नि हुण | हमार देशा क लोग विदेश जानीं और वांक नियम-क़ानून क पालन बखूबी करनीं | स्वदेश आते ही यांक  क़ानून कैं घुत्त द्यख़ै दिनी क्यलै कि यां उनुकैं क़ानून क डर न्हैति | सब जाणनीं कि शराब पी बेर वाहन चलूण सहित सबै सड़क सुरक्षा क नियमों कि अवहेलना में जुर्मान हुंछ पर  लोगों कैं जुर्मान कि फ़िकर नि हुनि |  उनुकैं घूस दी बेर छुटण क पक्क भरौस हुंछ या जुर्मान कि रकम भुगतान करण कि उनुकैं फिकर नि हुनि | हर साल लाखों चालान लै काटी जानीं | हमार देश में नान आपण अभिभावकों क वाहन खुलेआम चलै बेर दुर्घटना में कएक  निर्दोषों कैं मारि दिनी | कएक ता भौत तेजी ल हाव में उड़णी मोटरबाइक में एक साथ भैटी छै- सात नान सड़क में जोर जोर ल हौरन बजाते हुए देखण में औनी | यूं दुपहियों में कार या ट्रक क हौरन लगै बेर, रात हो या दिन जोर जोर ल हौरन बजूनै रफूचक्कर है जाण यूं बिगडैल नना क फैशन बनि गो | पुलिस या तो उ जागि पर नि हुनि या देखियक अणदेखी करि दींछ | आब जब दुर्घटनाओं कि अति है गे तब यूं नाबालिगों द्वारा वाहन चलूण पर अभिभावकों को दण्डित करण कि मांग उठें रै |

     य बीच उत्तराखंड में लै सड़क दुर्घटनाओं की गाड़ जसि ऐगे जैल कएक घर उजड़ि गई | बरयात, पर्यटन, तीर्थाटन, व्यवसाय आदि दगै जुडी कएक वाहन आये दिन दुर्घटनाग्रस्त हूँ रईं | यैक कारण लै सड़क सुरक्षा नियमों कि अवहेलना छ | यूं सबै दुर्घटनाओं कैं रोकण कि शुरुआत हमूकैं आपण घर बै करण पड़लि | आपण नाबालिग नना कैं भुलि बेर लै क्वे वाहन नि दीण चैन ताकि सड़क में क्वे अनहोनी नि हो | लाइसेंस प्राप्त बालिंग नना क प्रशिक्षण लै भौत भल हुण चैंछ | हमूल खुद लै वाहन चलूण ता भौत संयम धरण चैंछ क्य लै कि  दुर्घटना है देर भलि | हमूकैं हमेशा याद धरण चैंछ कि हमर परिवार हमरि घर वापसी क  इंतज़ार में हमूकैं चै रौ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल,  रोहिणी दिल्ली 
१६.०६.२०१६   



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                                                                             बिरखांत -९६ : देहदान, महादान
 
    कुछ दिन पहले एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में पढ़ा कि जाने- माने कवि एवं लेखक अशोक चक्रधर (पद्मश्री) जी ने भी मृत्युपरांत अपनी देह का दान कर दिया है | इससे पहले विख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी ने भी देहदान किया था | कितने ही लोग देहदान या अंगदान करते होंगे, सबका पता नहीं लग पाता जबकि हमारे देश में देहदान करने वालों के संख्या कम ही बतायी जाती है | मृत्यु के बाद अपनी देह का दान करना बहुत बड़ा पुण्य-  कर्म है और यदि मोक्ष है तो यही है | मरने के बाद यह शरीर किसी के काम आ जाए तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है ? अंततः शरीर ने तो राख होकर पंचतत्व में मिलना ही है | हमारे देश में कई धर्मों के अनुयायी हैं जिनमें बताया जाता है कि जोरास्टर लोग शव को एक टावर में रखते हैं जहां वह चील, कौवे और गिद्धों का सुलभ भोजन बन जाता है |
 
     देहदान से क्या होगा ? अभी तक समाज में इस प्रश्न की चर्चा भी अच्छी नहीं समझी जाती जैसे आज से पचास वर्ष पहले वीमा करने की चर्चा का अर्थ होता था कि ‘ये आदमी मरने की बात कर रहा है |’ आज समझदार लोग वीमा अवश्य करते हैं | जीते जी जमा राशि मिल जाय तो अपने लिए उत्तम और मरने के बाद अपनों के लिए उत्तम | हमारे समाज में शरीर दान तो छोड़ो, नेत्र दान की बात भी लोगों को अच्छी नहीं लगती | हाँ, लोगों को किसी के मरने पर ‘वह इतने अंग दान कर गया’ की खबर शायद अच्छी लगती है | अब कुछ लोग नेत्रदान करने लगे हैं परन्तु यह मृत्यु के छै घंटे के अन्दर हो जाना चाहिए | मृत्यु के बाद देहदान समाज के लिए बहुत उपयोगी है | शरीर के बहुत से अंग जैसे दिल, दिमाग, गुर्दे, लीवर, पित्ताशय, आँख, आंत, फेफड़े, पेट के झिल्ली, कार्टिलेज, कौर्ड, वाल्व, पंक्रियाज, हड्डियाँ, मज्जा, त्वचा आदि मृत्यु के कुछ घंटे बाद भी किसी अन्य के काम आ सकते हैं | कौमा में गए व्यक्ति (ब्रेन डेथ) का तो अंग-अंग उपयोग में लाया जा सकता है बसर्ते उसके स्वजन तैयार हो जाएं |
 
    कैसे करें देहदान ? देहदान हम जीते जी स्वयं भी कर सकते हैं और किसी के वारिस भी यह पुण्य- कर्म कर सकते हैं | किसी भी मेडिकल कालेज (जैसे के मौलाना आजाद मेडिकल कालेज) के अनाटॉमी विभाग में जाकर फार्म भर दीजिये या फार्म घर भी मांगाया जा सकता है | मृत्यु में बाद जो परिजन शव को दाह के लिए ले जाने के बजाय इस कालेज को सूचित करते हैं | वहाँ से अम्बुलेंस स्टाफ सहित आती है जो शव को ले जाती है | शव को वहाँ पहुंचाने के लिए कुछ परिजन जाते हैं जो वहां कुछ कागजों में हस्ताक्षर करते हैं | देश के मेडिकल कालेजों में भावी चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने के लिए शवों के बहुत कमी है जबकि श्मशान घाटों में अनगिनत चिताएं रोज जलती हैं | मेडिकल कालेज भी प्रशिक्षण के बाद अंत में शव को स्वयं के इंसीनिरेटर (स्वचालित भट्टी ) में अपने स्टाफ द्वारा अग्नि को सुपुर्द कर उस राख को किसी वृक्ष के तले धरा में विसर्जित कर देते हैं |
 
     हम यह नहीं जानते कि कौन कब, कहां और कैसे इस शरीर का त्याग करेगा ? फिर भी हरेक व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि वह जीवन के अंतिम दिनों में अपनों के बीच रह कर इस देह को छोड़े | उसके मरने के बाद उसके शरीर पर उसके परिजनों (वारिसों) का हक़ होता है जो स्वेच्छा से उसका अंतिम संस्कार करते हैं | इस संस्कार में कर्मकांड के ठेकेदार उसका अंधाधुंध शोषण भी करते हैं और उसे अपनी ही परिधि में बांधे रखने का भरपूर प्रयास करते हैं, उसे धर्म या यम के नाम से डराते हैं | यदि मृतक द्वारा अपनों से अपने देहदान की चर्चा की गई होगी तो वे अवश्य ही उस नेक कर्म को पूरा करेंगे और किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास का शिकार नहीं होंगे | यदि मोक्ष नाम की कोई चीज है तो वह देहदान ही है | इस महादान के लिए अभी बहुत जनजागृति की आवश्यकता है | देहदान के बारे में एम ए एम सी फोन नंबर ०११-२२७१४६८९ से संपर्क भी किया जा सकता है | इन पंक्तियों का लेखक होने के नाते बताना चाहूंगा कि मैं वही कहता या लिखता हूँ जिसे मैं स्वयं क्रियान्वित कर सकता हूँ | मेरा संकेत स्पष्ट है | अगली बिरखांत में कुछ और ...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
 २०.०६.२०१६
 


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बिरखांत-९७  : अन्नदाता कृषक २४ .६.१६
 
 
      अन्नदाता कृषक की यह गाथा पिछली बिरखांत-९४ (जंगली पशुवों द्वारा फसल की बरबादी) के क्रम में है | वायु और जल के बाद मनुष्य को उदर पूर्ति के लिए अन्न और तन ढकने के लिए वस्त्र की मूलभूत आवश्यकता है | यदि ये दोनों वस्तुएं नहीं होतीं तो शायद मनुष्य का अस्तित्व नहीं होता और यदि होता भी तो वह अकल्पनीय होता | आज जब हम अन्न और वस्त्र का सेवन करते हैं तो हमारी मन में यह सोच तक नहीं आता कि ये अन्न के दाने हमारे लिए कौन पैदा कर रहा है, यह तन ढकने के लिए सूत कहां से आ रहा है ? यह सब हमें देता है कृषक | कृषक वह तपस्वी है जो आठों पहर, ऋतु, मौसम, जलवायु को साधकर, हमारे लिए तप करता है, अन्न उगाता है और हमारी भूख मिटाता है | वह हमारा जीवन दाता है | मानवता ऋणी है उस अन्नदाता कृषक की जो केवल जीये जा रहा है तो औरों के लिए | अन्न के अम्बार लगा रहा है केवल हमारी उदर-अग्नि को शांत करने के लिए |
 
      कृषक के तप को देखकर अपनी पुस्तक ‘स्मृति लहर (२००४) में मैंने ‘अन्नदाता कृषक’ कविता के शीर्षक से कुछ शब्द पिरोयें हैं जिसके कुछ छंद देश में डीएवी स्कूल की कक्षा सात की ‘ज्ञान सागर’ पुस्तक से यहां उद्धृत हैं –
 
पौ फटते ही ज्यों मचाये विहंग डाल पर शोर,
शीतल मंद बयार जगाती चल उठ हो गई भोर |
 
कांधे रख हल चल पड़ा वह वृषभ सखा संग ले अपने,
जा पहुंचा निज कर्म क्षेत्र में प्रात: लालिमा से पहले |
 
परिश्रम मेरा दीन धरम है मंदिर हें मेरे खलिहान,
पूजा वन्दना खेत हैं मेरे माटी में पाऊं भगवान् |
 
तन धरती का बिछौना मेरा ओढ़नी आकाश है,
अट्टालिका सा सुख पा जाऊं छप्पर का अवास है |
 
हलधर तुझे यह पता नहीं है कार्य तू करता कितना महान,
तन ढकता, पशु- धन देता, उदर- पूर्ति, फल- पुष्प का दान |
 
 
कर्मभूमि के रण में संग हैं सुत बित बनिता और परिवार,
अन्न की बाल का दर्शन कर पा जाता तू हर्ष अपार |
 
 
मानवता का तू है मसीहा सबकी भूख मिटाता है,
अवतारी तू इस मही पर परमेश्वर अन्नदाता है |
 
कृषक तेरी ऋणी रहेगी सकल जगत की मानवता,
यदि न बोता अन्न बीज तू, क्या मानव कहीं टिक पाता ?
 
जीवन अपना मिटा के देता है तू जीवन औरों को,
सुर संत सन्यासी गुरु सम, है अराध्य तू इस जग को |
 
धन्य है तेरे पञ्च तत्व को जिससे रचा है तन तेरा,
नर रूप नारायण है तू तुझे नमन शत-शत मेरा |
 
अगली बिरखांत में कुछ और...
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल
२४ .६.१६


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बिरखांत-98 : सत्यनाराय कथा में क्विज कांटेस्ट २८.०६.२०१६

     ‘चनरदा’ इन पंक्तियों के लेखक का एक बहुत पुराना जाना-पहचाना किरदार है | इनका नाम चन्द्र मणी, चंद्रा दत्त, चन्द्र प्रकाश, चनर देव, चनर सिंह, चान सिंह, चन्दन सिंह, चनर राम, चनराम, चनिका, चनरी आदि कुछ भी हो सकता है परन्तु लोग उन्हें चनरदा ही कहते हैं | चनरदा मसमसाने के बजाय गिच खोलते हैं, कडुआहट में मिठास घोलते हैं, बोलने से पहले तोलते हैं और सच- झूठ की परत खोलते हैं | मेरी कई रचनाओं में चनरदा कई बार आ धमके हैं | इस बार वे एक सत्यनायण कथा सुनकर लौटे हैं |

    राम- रमो के बाद मैंने चनरदा से पूछा, “बहुत दिनों में नजर आ रहे हैं चनरदा आज, लगता है कहीं दूर चले गए थे और वहीं रम गये ?”  “कहां जाऊंगा यार, यहीं था | राजकपूर कह गया है, ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ?’ कथा के निमंत्रण से आ रहा हूँ | सत्यनारायण कथा थी मित्र के यहां”, चनरदा ने मुस्कराते हुए कहा |  “कथा का ताजा ज्ञान से सराबोर हो, तभी खुश नजर आ रहे हो,” मैंने चुटकी ली | “तुम जो समझो यार, कोई ताजा ज्ञान नहीं हुआ | वर्षों से सुनते आ रहे हैं, बस एक ही ज्ञान ठैरा- लालच से वशीभूत होकर पूजा का संकल्प करो, ब्राहमणों को भोजन कराओ, संकल्प नहीं निभाओगे तो उस व्यौपारी की तरह बेक़सूर दुख पाओगे...आदि | कथा के बहाने मित्र मिलन हो जाता है और ‘उसने कथा कराई’ का प्रचार तो हो ही जाता है |”

    “कथा है तो ब्राहमण और बाबा तो आये ही होंगे, उनको खिलाने- पिलाने  में पुण्य मिलने वाला ठैरा बल | जजमान के साथ श्रोताओं को भी तो पुण्य कमाया होगा”, मैंने प्रश्न उठाया | चनरदा सहमत नहीं हुए और तुरंत बोले, “श्रोता तो थे परन्तु किसी का भी कथा में ध्यान नहीं था | ऐसे में पंडित जी भी टोटल पूरा कर रहे थे | ‘जैसी तेरी जाग्द्यो वैसी मेरी भेट-पखोव |’ शोर-शराबा देख मैंने श्रोताओं से निवेदन किया, “ देखो कथा ध्यान से सुनो, कथा के अंत में पांच सवाल पूछे जायेंगे | जो सही उत्तर देगा उसे हर सही उत्तर का बीस रुपया इनाम दिया जाएगा | मैंने दस-दस के दस नोट पूजास्थल पर रख दिए | कुछ कम शोर के साथ कथा चलते रही | कथा पूर्ण होते ही आरती से पहले श्रोताओं से पांच साधारण सवाल पूछे –‘लीलावती और कलावती कौन थीं, सूत जी कौन थे, सदानंद कौन थे, किन ऋषियों ने किस जगह पर सूत जी से बात पूछी और वर किस नगर का था ?’ हैरानी तब हुई जब एक भी प्रश्न का उत्तर ठीक से नहीं मिल पाया | स्पष्ट हो गया कि किसी का ध्यान कथा में नहीं था | पंडित जी से सवाल नहीं पूछे गए ताकि व्यास गद्दी का सम्मान बना रहे और पंडित जी में भी स्वयं उत्तर देने की कोई पहल नहीं दिखाई दी | सौ रुपये की जमा राशि तत्काल पंडित जी के सुपुर्द कर दी |”

     चनरदा आगे बोलते गए, “मुझे किसी की आस्था- श्रधा पर कुछ नहीं कहना, मैं तो केवल अंधश्रद्धा या अंधविश्वास का विरोध करता हूँ | कथा में किसी गरीब को भोजन कराने या कर्म करने की चर्चा कहीं पर भी नहीं आयी | ब्राहमणों को भोजन कराने तथा पूजा करने से पुण्य और वांच्छित फल  मिलने की कई बार चर्चा की गई | ‘श्रीमद भागवद गीता’ में केवल कर्म करने का संदेश है जबकि ‘इस कथा’ और ‘गरुड पुराण’ में केवल ब्राह्मण भोजन को  ही पुण्य प्राप्ति का द्वार बताया गया है | अंत में एक युवक ने सवाल किया, “ इस कथा में पूजा करने की बात कई बार कही गई है, कथा करने की बात भी कही गई है परन्तु सत्यनारायण की कथा क्या थी यह तो बताया ही नहीं गया ?” चनरदा बोले, “उस युवक का प्रश्न मुझे उचित लगा जो आज भी अनुतरित है | आखिर कथा क्या थी जिसे नहीं करने पर कई लोगों को दण्डित होना पड़ा बताया गया ? इस कथा को ‘कथा’ की जगह ‘पूजा’ कहना उत्तम प्रतीत होता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
२८.०६.२०१६




     

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-९९ : चनरदा का चौथा आप्सन ०२.०७.२०१६

     ये चनरदा कौन है ? पिछली बिरखांत 98 (सत्यनारायण कथा में क्विज कांटेस्ट) में भी चनरदा की चर्चा कर चुका हूँ |समाज में अधविश्वास और भ्रष्टाचार के विरोध में गिच खोलने की हिम्मत करने वाला प्रत्यक कर्म-पुजारी ‘चनरदा’ है | चनरदा भ्रष्टाचार और अंधविश्वास का विरोध हर जगह करते हैं परन्तु उन्हें वांच्छित सहयोग नहीं मिलता | लोग भ्रष्टों से डरते हैं परन्तु मसमसाते जरूर हैं | घूस लेना, बिना काम किये वेतन लेना, अपने कर्त्यव्य को भूल जाना ये सब भ्रष्टाचार के ही रूप हैं | सरकारी कर्मचारियों के छवि हमारे देश में ठीक नहीं है | उन्हें कुछ लोग द्वारा ‘सरकारी सांड’ या ‘सरकारी दामाद’ कहते सुना गया है | कर्म के बाद वेतन लेने वालों और भ्रष्टों का साथ नहीं देने वालों को यह बदनाम चुभता है | पुलिस में अच्छे लोग भी हैं परन्तु कुछ लोगों  ने पूरे महकमे को कलंकित कर दिया है |

     कुछ ही दिन पहले आये चनरदा को अपना नया कार्यालय अखरने लगा | वहाँ अकर्मण्यता तो थी ही, कई प्रकार का भ्रष्टाचार भी व्याप्त था | एक दिन कार्यालय के समय के बाद चनरदा अपने बौस से मिले, “सर मेरे लिए यहां काम करना मुश्किल है | खुलेआम सबकुछ हो रहा है, हम भी बदनाम हो गए हैं | पूरा विभाग कलंकित हो चुका है | आपको पता है या नहीं ? चनरदा की पूरी बात सुनने के बाद बौस बोला, “देख भइ चनर मुझे सब पता है और ऊपर वालों को भी पता है | यह लाइलाज बीमारी आजकल सब जगह संक्रामक रोग की तरह फ़ैल चुकी है | अपना काम कर और समय पास कर |” चनरदा बोले, “सर, मेरे से यह सब बरदास्त नहीं होगा | लोग सबको चोर, नमक हराम और पता नहीं क्या-क्या कहते हैं | मेरा तो यहां दम घुट रहा है |

     इस कार्यालय का बौस भ्रष्ट नहीं था परन्तु भ्रश्तोंब को रोकने में हाथ खड़े कर चुका था | जब बहुत समझाने पर भी चनरदा नहीं माने तो बौस बोला, “देख भइ चनर, अब तू नहीं समझ रहा है तो तेरे सामने तीन आप्सन (विकल्प) हैं | पहला- तू इनमें शामिल हो जा, दूसरा- देखे का अनदेखा करते हुए पीठ फेर ले और तीसरा- अपनी बदली करवा ले जिसमें मैं तेरी मदद करने का प्रयास करूंगा, ले- दे के सब कुछ हो जाता है | बर्ना न दुखी हो और न दुखी कर | सब जगह ऐसे ही चल रहा है | देर हो गई थी | बौस को अकेले छोड़ कर चनरदा अपना मूड ऑफ मोड में घर की ओर चल पड़े |

      दूसरे दें सुबह रोज की तरह चनरदा समय से पहले कार्यालय पहुँच गए | बौस ने आते ही चनरदा से सीधा सवाल किया, “ हाँ भइ चनर, बता कौन सा आप्सन टिक किया तूने ? मूड तो ठीक है ? रात ठीक से सोया कि नहीं ? खुश रह मेरे यार, ये चलता रहेगा | कयेकों ने इसे रोकने के लिए बड़े- बड़े वायदे किये परन्तु ढाक के तीन पात |”  चनरदा ने जेब से एक कागज़ निकालते हुए बौस की तरफ बढ़ाया, “सर, एक चौथा आप्सन भी है | लिख कर दे रहा हूँ आपको इस काग़ज में |” बौस ने पत्र पढ़ा और एक लम्बी संस के बाद भृकुटी तानते हुए बोला, “ ये क्या है ? तू तो चीफ को पूरे कार्यालय की रिपोट कर रहा है | इन्क्वारी बैठ जायेगी | मैं भी मरूंगा और तू सबकी आँख में आ जाएगा |” “सर, घुटन में जीने से आँख में आना अच्छा है | देख लूँगा जो होगा,”  चनरदा ने विनम्रता से कहा | बौस धीरे से बोला, “मुझे एक मौक़ा दे | मैं इन्हें समझाऊंगा | पत्र अपने पास रख | जरवत पड़ने पर पत्र तेरे से लेकर चीफ को भेज दूंगा |”

     बिरखांत खत्म करता हूँ | चनरदा के इस कदम से बहुत कुछ बदल गया | यह सत्य है, काल्पनिक बिलकुल नहीं | चनरदा बनिये, मसमसाने से घुटन होती है और घुटन से बी पी बिगड़ता है जो घातक भी हो सकता है | स्वयं को डराओ मत, ललकारो परन्तु इसके लिए हमको ईमानदार बनना पड़ेगा | कुछ ईमानदारी के पहरुओं ने यह सब करके दिखाया है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल ,०२.०७.२०१६         

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१०० : सौ बिरखांतों की एक बिरखांत

     मित्रो, पहली बिरखांत ६ जुलाई २०१५ को (शराब के यार) से आरम्भ हुयी थी और आज पूरे एक बर्ष बाद ६ जुलाई २०१६ को सौवीं बिरखांत आपके सामने है | ‘बिरखांत’ एक कुमाउनी शब्द है जिसका अर्थ है ‘वह सत्य कहानी, कथा, व्यथा, गाथा या वेदना जिसे दिल से सुना जाय |’ इन एक सौ बिरखांतों को आप सभी मित्रों ने व्हाट्सैप और फेसबुक पर भरपूर स्नेह दिया और अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ भी दी, आलोचना- समालोचना भी हुयी जो लेखक के लिए बहुत जरूरी है | कई बार उचित मार्गदर्शन भी मुझ तक पहुंचा |

     ‘किसने क्या कहा’ यह चर्चा करूंगा तो एक बहुत ही विशाल बिरखांत बन जायेगी | फिर भी आप लोगों द्वारा भेजा गया कुछ ज्ञान मुझे बहुत पसंद आया जैसे- ‘जीवन में तकलीफ उसी को आती है जो जिम्मेदारी उठाने को तैयार रहते हैं’; ‘न हमने उसे कभी देखा, न उससे मिले फिर भी हर परेशानी में उसी को याद करते हैं’; ‘भिखारी मंदिर के अन्दर अधिक और मंदिर के बहार कम हैं’; और ‘जिन्दगी गुजर गई सब को खुश करने में, जो खुश हुए वे अपने नहीं थे और जो अपने थे वे कभी खुश नहीं हुए’, आदि आदि | हास्य तो बहुत पसंद आये फिर भी दो कुछ अधिक ही पसंद आये- पति पत्नी से कह रहा है, “तेरी बिखरी हुयी जुल्फों ने हंगामा मचा रखा है, कभी दाल में, कभी सब्जी में तो कभी रोटी में नजर आती हैं |” दूसरा हास्य- ‘बीवी के डर से खुद के घर में किया गया झाड़ू-पोछा “स्वच्छ भारत” अभियान में शामिल नहीं माना जाएगा |’ जिन लोगों ने ये उक्त वाक्य भेजे यदि अपनी दावेदारी प्रस्तुत करें तो उन्हें स्वरचित पुस्तक ‘उपहार’ स्वरुप भेजूंगा |

     हम इस बिरखांत में कुछ विषयों- मुद्दों पर चिंतन- मंथन करके हो सके तो अपने हिस्से का क्रियान्वयन करने का भी संकल्प लें | ये कुछ मुद्दे हैं-१. ‘राष्ट्र की सम्पति हमारी अपनी सम्पति है फिर भी हम बस, रेल और सरकारी सम्पति को क्यों नष्ट करते हैं ?’; २. ‘पूजा के नाम पर नदियों में हम कब तक दूध बहाते रहेंगे ? नदी या मूर्ति में बहाया जाने वाला दूध उन बच्चों के मुंह में जाना चाहिए जिन्होंने कभी दूध नहीं देखा;’ ३. ‘पूजा- प्रार्थना पर हम कितना समय व्ययतीत करते हैं ? यदि किसान, मजदूर या सैनिक भी ऐसा ही करेंगे तो हमारा क्या होगा ? पूजा- अर्चना के समय स्वयं से पूछें कि क्या हम परिश्रम और ईमानदरी से जीविका चला रहे हैं ?;’ ४. ‘रास्ता रोक कर, शोर मचाकर और किसी को दुःख देकर तथा चोरी की बिजली से हम किस भगवान् की रात्रि अराधना कर रहे हैं? यह प्रभु स्मरण नहीं, आडम्बर और पाप है ;’ ५. ‘हम आज भी अपने घर, मंदिर, कुंआ, चौपाल-चबूतरे से ‘चौथे वर्ण’ को दूर क्यों रख रहे हैं ?’; ६. ‘हम अंधविश्वास के सांकलों में आज भी बंधे हैं और इन सांकलों को तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं |’

     चिंतन –मंथन के साथ हमें इस सच को भी स्वीकारना होगा | क्या यह सच नहीं है ?- १. हम में से कुछ लोग आज भी पुत्र और पुत्री में अंतर मानते हैं और लड़के की चाह में परिवार भी बढ़ा रहे हैं या डाक्टर रूपी कसाई से कन्याभ्रूण हत्या करवा रहे हैं? 2. कानूनी निषेध के बाद भी रात्रि में लाउडस्पीकरों, हार्नो और पटाखों का शोर कर रहे हैं तथा सार्वजानिक स्थान पर खुल्लम-खुल्ला धूम्रपान कर रहे हैं ? ३. होली में प्रयुक्त कई टन रंग-गुलाल और दीपावली में जलने वाला कई टन बारूद और रसायन हमें अँधा, बहरा या लाइलाज रोंगों का ग्रास बना रहा है ? ४. हम अपने जल स्त्रोतों को बचाने के लिए जल में विसर्जन की जगह भू-विसर्जन (वस्तुओं को जमीन में दबाना ) की परम्परा नहीं अपना रहे हैं ? ५. जाति, धर्म और भूमिपुत्र के नाम पर हमारा सामाजिक सौहार्द बिगाड़ा जा रहा है जो देश के हित में नहीं है ? ६. भीख देना हमारे देश में कानूनी जुर्म है फिर भी हम भिखारियों को धार्मिक स्थलों पर अक्सर भीख देते हैं जिससे भिक्षावृति को बढ़ावा मिलता है ?  इसी तरह के सैकड़ों प्रश्न हमारे इर्द-गिर्द गूँज रहे हैं | हमें इन प्रश्नों को हल करने में अपने हिस्से का योगदान देना ही चाहिए | बिरखांत में शामिल होने के लिए आप सभी का धन्यवाद एवं आभार | १०० बिरखांत के बाद भी यह क्रम विविध मुद्दों पर चलता रहेगा | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०६.०७.२०१५ 

 



 

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