Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 62642 times)

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ए रै   

सुवर- बानरों ल उजाड़ी है खेति

    अगर तुमूल आपण खून- पसिण ल सिंचि बेर फसल उगाई हो और अचानक सुवर, बानर, नीलगाय या क्वे लै जंगली जानवर उकैं उजाड़ि द्यो तो तुमु कैं कस लागल ? आज हम उ मोड़ पर ऐ गोयूं जां अन्न सबूं कैं चैंछ पर किसान क्वे नि बनण चान | वर्तमान दौर में किसान क आपण पुश्तैनी धंध छोड़ण क कारण प्राकृतिक आपदाओं क अलावा जंगली जानवरों क भीषण उत्पात लै छ | कुछ लोग किसान क पैद करी अन्न त खानीं पर किसान कि ऊँ अणगणत समस्याओं कि तरफ नि चान जमें एक समस्या जंगली जानवरों द्वारा उनरि फसल नष्ट करण छ | किसान कि छाति फाड़णी यूं जंगली जानवरों कि जल्दि -जल्दि पैद हुणी संख्या क लै यूं पैरोकारों कैं आभास न्हैति | एक अबारा कुकुर कि वकालत करण आसान छ पर उई कुकुर कैं घर ल्हीजै बेर पाउण शैद वकालत करणी नि जाणन |
 

    अच्याल पहाड़ि राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, असम आदि देशा क कएक राज्यों में जंगली जानवरों क आतंक भौत बढ़ि गो |  देशा क द्वि पहाड़ि राज्य दशकों बटि बानर और सुवरों कि दांग द्वारा फसल नष्ट करण क  कारण फसल उगूण में उदासीन होते जां रईं | याद औंछ उ बचपन जब स्कूल बै ऐ बेर झलू कुकुरा क दगाड़ बानर हकूण क लिजी सब काम छोड़ि बेर जाण पड़छी या बानर हकूण कि बारि क दिन घरवाव स्कूल जाण क लिजी मना करि दिंछी | उई बानर- सुवर समस्या ल आज बिकराल रूप ल्ही है | उत्तराखंड क किसानों क अंधाधुंध पलायन क एक कारण सुवर और बानरों क आतंक लै छ | यांक किसान असहाय छ और वीकि क्वे नि सुणन |

 
     हालों में बिहार क मोकामा में नीलगायों कि दांग द्वारा किसानों की लगी -लगाई फसल तहज-नहज हैगे | किसानों कि फ़रियाद पर पर्यावरण मंत्रालय ल उनुकैं नर नीलगाय मारण कि इजाजत दि दी | परिणाम स्वरुप शूटर आईं और कएक नर नीलगायों क बध करि दे | एकतरफा सोचणी तथाकथित पशुप्रेमियों ल यैक विरोध करौ | पर्यावरण मंत्री ल स्पष्ट करौ  कि राज्य सरकार क प्रस्ताव कैं किसानों कि समस्या मानते हुए एक निश्चित समय क लिजी मंजूरी दि रैछ | फिलहाल एक साल क लिजी १४ मार्च २०१६ बटि हिमाचल प्रदेश में बानर मारण, ३ फरवरी २०१६ बटि उत्तराखंड में फसल में आई सुवर मारण कि और ३० नवम्बर २०१६ तक बिहार क कएक जिल्लों में नीलगाय मारण कि इजाजत मिलि रैछ बतायी जांरौ जैल किसानों कैं थ्वाड़ राहत महसूस है रैछ |

    वन्यजीओं दगै सबू कैं प्रेम छ, उनुकैं बेवजह क्वे लै मारण नि चान | अंधाधुन्द बढ़णी बानर- सुवर- नीलगायों कि संख्या कैं नजरअंदाज करि बेर कुछ पशुप्रेमियों ल कभैं लै किसानों क पक्ष कैं नि जाण और न उनरि फसल बरबादी कि पीड़ कैं समझ | लोकहित क विपरीत में पशुप्रेम कैक लिजी छ ?  यूं पशुप्रेमियों में क्वे लै किसान न्हैति और न इनुकैं  अन्नदाता किसान क परिश्रम क क्वे ज्ञान छ | इनूल कएक ता शोध संस्थाओं में मिनुक, मुस, गिनीपिग, भेड़, बकार और सुवर पर शोध करण क लै विरोध करौ जबकि प्रयोगशाला में यूं जानवरों कि भौत भलि देखभाल हिंछ | यसि हालत में शोध कार्य अघिल कसिक बढ़ल, इनुकैं वीकि चिंता न्हैति | यूं लोगों ल य समस्या क क्वे यस विकल्प बतूण चैंछ जो क्रियान्वित है सको |
 
      बानर, सुवर और नीलगाय जास जंगली जानवरों कि संख्या दिनोदिन ज्यादै बढ़ते जां रै जबकि देश क ग्रामीण क्षेत्र में जंगल क्षेत्र घटि नि रय | जो जंगली जानवर आज किसान क दुश्मन बन गईं उनरि संख्या नसबंदी ल नि घटि सकनि जस कि कुछ लोग सुझाव दीं रईं क्यलै कि नसबंदी क प्रयोग शहरों में अबारा कुकुरों पर फेल हैगो | यैक प्रमाण अबारा कुकुरों  क काटण पर उपयोग करी जणी इन्जेक्सनों ल मिलें रौ जनरि देश भर में भौत बिक्री हूं रै | अत: पर्यावरण मंत्रालय क वन्यजीव नियंत्रण क लिजी वर्तमान में उठाई कदम ठीक छ  | आज घडियाली आंसू बगूण क बजाय किसान कि फाटी छाति कैं देखनै और वीक फसल प्रेम कैं समझण कि जरवत छ की | काश ! हम किसान क पसिण ल जामी फसल कि बरबाद हुण कि पीड़ कैं समझि सकछिया !!
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली
२३.०६.२०१६



Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै   

देहदान, महादान ३०.०६.२०१६ 
 
    कुछ दिन पैली एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में देखौ कि जानी– मानी कवि एवं लेखक अशोक चक्रधर (पद्मश्री) ज्यूल आपणि मौत का बाद देह क दान करि है | यै है पैली विख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर ज्यूल लै देहदान करौ | भौत लोग देहदान या अंगदान करन हुनाल, सबू क पत् नि लागन जबकि हमार देश में देहदान करणियाँ कि संख्या कम  बतायी जैंछ | मरण क बाद आपणी देह क दान करण भौत ठुल पुण्य- कर्म छ और अगर मोक्ष छ त य ई छ | मरण क बाद य शरीर कैकै काम ऐ जो तो ये है भलि बात और क्ये है सकीं ? अंततः शरीर ल त राख बनि बेर पंचतत्व में मिलण हय | हमार देश में कएक धर्मों क अनुयायी छीं जमें बतायी जांछ कि जोरास्टर लोग शव कैं एक टावर में धरनी जां  चील, काव और गिद्धों क य सुलभ भोजन बनूं |

     देहदान ल क्ये ह्वल ? आज लै समाज में य प्रश्न कि चर्चा लै भलि नि समझी जानि जसिके आज बै पचास साल पैली वीमा करण कि चर्चा क अर्थ हुंछी कि ‘य आदिम मरण कि बात करें रौ |’ आज समझदार लोग वीमा अवश्य करनीं | जीते जी जमा राशि मिलि तो आपण लिजी भल और मरण क बाद आपण लोगों क लिजी भल | हमार समाज में शरीर दान त छोड़ो, नेत्र दान कि बात लै लोगों कैं भलि नि लागनि | हाँ, लोगों कैं कैक मरण पर ‘उ यतू अंग दान करि गो’ कि खबर शैद भलि लागीं | अब कुछ लोग नेत्रदान करण फैगीं पर य मरण क छै घंटा क अन्दर में है जाण चैंछ | मरण क बाद देहदान समाज क लिजी भौत उपयोगी छ | शरीरा क भौत अंग जस कि दिल, दिमाग, गुर्द, लीवर, पित्ताशय, आँख, आंत, फेफड़, पेट कि झिल्ली, कार्टिलेज, कौर्ड, वाल्व, पंक्रियाज, हड्डि, मज्जा, खाल आदि मरण क कुछ घंट बाद लै कैकै काम ऐ सकनीं | कौमा में जाई व्यक्ति (ब्रेन डेथ) क त अंग-अंग उपयोग में लियी जै सकूं बसर्ते वीक वारिस तैयार है जाण |
 
    कसी करी जो देहदान ? देहदान हम जीते जी स्वयं लै करि सकनूं और कैकै वारिस लै य पुण्य- कर्म करि सकनीं | क्वे लै मेडिकल कालेज क अनाटॉमी विभाग में जै बेर फार्म भरी जांछ या फ़ार्म घर लै मंगाई जै सकूं | मरण बाद शव कैं दाह करूं हैं ल्ही जाण क बजाय मेडिकल कालेज कैं सूचित करी जांछ | वां बै अम्बुलेंस स्टाफ सहित ऐंछ जो शव कैं ल्ही जैंछ | शव कैं वां पुजुहूँ कुछ परिजन जानी जो वां कुछ कागजों में दस्तखत करि बेर शव क दान करि दिनीं | देशा क मेडिकल कालेजों में भावी चिकित्सकों क प्रशिक्षण क लिजी शवों कि भौत कमी छ जबकि श्मशान घाटों में अणगणत चिता रोज जलाई जानी | मेडिकल कालेज लै प्रशिक्षण क बाद अंत में शव कैं आपण इंसीनिरेटर (स्वचालित भट्टी ) में आपण  स्टाफ द्वारा अग्नि क सुपुर्द करि बेर उ राख कैं क्वे डाव- बोटा क तलि जमीन में दबै दिनीं  |
 
     हम य नि जाणन कि को कब, कां और कसिक य शरीर क त्याग करल ? फिर लै  हरेक व्यक्ति कि य इच्छा हिंछ कि उ जिन्दगी क आख़िरी दिनों में आपण लोगों क बीच में रै बेर य शरीर क त्याग करो | वीक मरण बाद वीक शरीर पर वीक वारिसों क हक़ हुंछ जो आपणी इच्छा ल वीक अंतिम संस्कार करनीं | य संस्कार में कर्मकांडा क ठेकदार वीक  अनाधून शोषण करनी और उकैं आपण कर्मकांड दगै बादि बेर धरण क भरपूर प्रयास करनीं, उकैं धर्म या यम क नाम ल डराते रौनी | अगर मृतक द्वारा आपण परिवार दगै आपण देहदान कि चर्चा करी ह्वली तो ऊँ य नेक काम जरूर कराल और क्वे लै किस्म क अंधविश्वास क चक्कर में नि फंसा | अगर मोक्ष नाम कि क्वे चीज य दुनिय में छ तो उ देहदान छ | य महादान क लिजी आजि भौत जन-जागृति कि जरवत छ | देहदान क बार में आपण नजदीकी क्वे लै अस्पताल या मेडिकल कालेज बै जानकारी प्राप्त है सकीं | यूं पंक्तियों क लेखक हुण क नात ल य बतूण चानूं कि मी उई बात कौनूं या लेखनूं जैक मी खुद क्रियान्वयन करि सकनूं | म्यर संकेत स्पष्ट छ |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
 ३०.०६.२०१६
 



Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
सत्यनारायण काथ में क्विज कांटेस्ट 

     ‘चनरदा’ यूं पंक्तियों क लेखक क एक भौत पुराण जाणी- पछ्याणी किरदार छ | इनर   नाम चन्द्र मणी, चंद्रा दत्त, चन्द्र प्रकाश, चनर देव, चनर सिंह, चान सिंह, चन्दन सिंह, चनर राम, चनराम, चनिका, चनरी आदि कुछ लै है सकूं पर लोग उनुहें चनरदा ई कौनी | चनरदा मसमसाण क बजाय गिच खोलनीं, कडुआहट में मिठास घोउनीं, बलाण है पैली भली-भांत तोलनीं और सच- झूठ कि परख लै करनीं | म्येरि कएक रचनाओं में चनरदा कतू ता ऐ गईं | आज ऊँ एक सत्यनायण कि काथ सुणि बेर ऐ रईं |

    राम- रमो क बाद मील चनरदा हैं पुछौ, “भौत दिनों में नजर औं रौछा चनरदा आज, लागें रौ कैं दूर जै रौछिया और वै रमि गछा ?”  “कां जनूं यार, यै छी | राजकपूर कै गो, ‘जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां ?’ काथ क न्यौत खै बेर औं रयूं | सत्यनारायण ज्यू कि काथ छी एक मितुर क घर”, चनरदा ल मुलमुलै बेर कौ |  “अच्छा काथ क ताज ज्ञान ल सराबोर है रौछ, तबै भौत खुशि नजर औं रौछा,” मील मजाक करी | “तुम जे समझो यार, क्वे ताज ज्ञान वालि बात नि हइ | वर्षों बटि सुणते औं रयूं, बस एकै  ज्ञान हय- लालच ल वशीभूत है बेर पुज क संकल्प करो, बामणों कैं भोजन खांहूँ खवौ, संकल्प नि निभाला तो उ व्यौपारी क चार बेक़सूर दुख पाला...आदि | काथ क बहानै ल इष्ट- मितुरों दगै भेट है जींछ और ‘वील काथ करै’ क प्रचार त है ई जांछ |”

    “काथ छी तो ब्राहमण और बाबा त आयै हुनाल, उनुकैं खउण –पेउण में पुण्य मिलनेर हय बल | जजमान क दगाड़ सुणणियां ल पुण्य कमा हुनल”, मील सवाल उठा मैंने | चनरदा सहमत नि हाय और झट बलाईं, “काथ सुणणी त छी पर कैक ध्यान काथ में नि छी | यास में पंडिज्यू लै टोटल पुर करें रौछी | ‘जसी तेरी जाग्द्यो उसी म्येरि भेट-पखोव |’ शोर-शराबा देखि मील सुणणियां हैं हाथ जोड़ नै कौ, “ देखो काथ ध्यान ल सुनो, कथा क आखिर में  पांच सवाल पुछी जाल | जो सही उत्तर द्यल उकैं हर सही उत्तर पर बीस रुपै क इनाम दिई जाल | मील दस-दसा क दस नौट थान में धरि देईं | कुछ कम शोर साथ काथ चलते रै | काथ पुरि होते ही आरती है पैली मील सुणणियां हैं पांच साधारण सवाल पुछीं –‘लीलावती और कलावती को छी, सूत जी को छी, सदानंद को छी, को ऋषियों ल को जाग पर सूत ज्यू हैं बात पुछी और बर को नगर क छी ?’ हैरानी तब है जब एक लै सवाल क उत्तर ठीक नि मिल | स्पष्ट है गो छी कि कैक लै ध्यान काथ में नि छी | पंडिज्यू हैं जी सवाल नि पुछ  ताकि व्यास गद्दी क सम्मान बनी रौ और पंडिज्यू ल लै खुद उत्तर दीण कि क्वे पहल नि करि | सौ रुपै कि जमा राशि तत्काल पंडिज्यू क सुपुर्द करि दी |”

     चनरदा अघिल बतूनै गईं, “मीकैं कैकि आस्था- श्रधा पर क्ये कौण न्हैति, मी त  अंधश्रद्धा या अंधविश्वास क विरोध करनूं | काथ में किसी क्वे गरीब कैं भोजन करूण या कर्म करण कि चर्चा कैं लै न्हैति | बामणों कैं भोजन करूण ल और पुज करण ल पुण्य और वांच्छित फल  मिलण कि चर्चा कतू ता छ | ‘श्रीमद भागवद गीता’ में केवल कर्म करण क संदेश जबकि ‘य काथ’ और ‘गरुड पुराण’ में केवल बामण कैं भोजन करूण ल पुण्य प्राप्ति क द्वार बताई रौछ | अंत में एक लौंड सवाल पुछौ, “य काथ में पुज करण कि बात कतू ता बतायी गे, काथ करण कि बात लै कई गे पर सत्यनारायण कि काथ क्ये छी य त बतैयै ना  ?” चनरदा बलाय, “उ लौंड क सवाल मीकैं ठीक लागौ जैक जबाब आज लै नि मिलि रय | आखिर काथ क्ये छी जैकैं नि करण ल कएक लोगों कैं सजा भुगतण पड़ी ? य काथ कैं ‘कथा’ कि जागि पर ‘पुज’ कौण ठीक रौल  |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
०७.०७.२०१६



Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत – १०१  :फिल्म ‘उड़ता उत्तराखंड’ (व्यंग्य)

     कुछ दिन पहले देश में एक फिल्म प्रदर्शित हुई “उड़ता पंजाब” जिसके रिलीज होने से पहले ही बहुत हो-हल्ला हो गया | पंजाब में जो कुर्सी में थे वे बोले इस पिक्चर से पंजाब की बदनामी होगी कि पंजाब नशे में उड़ रहा है | पंजाब किस तरह नशे के शिकंजे में फंस गया है यह जग जाहिर है फिर नशे के विरोध में जनजागृति करने के लिए फिल्म बनी तो उस पर बेकार का रोना शुरू हो गया | सेंसर बोर्ड ने इस पर छियासी कट लगा दिए और ‘पंजाब’ शब्द को हटाने की बात भी कह दी | इसके विरोध में देश एकजुट हो गया क्योंकि फिल्म देशहित में थी | अंत में फिल्म ‘ए’ प्रमाणपत्र के साथ रिलीज हुयी और फिल्म ने बॉक्स आफिस पर उत्तम प्रदर्शन किया |

     फिल्म रिलीज होते ही उत्तराखंड के एक जानेमाने फिल्मकार (नाम बतूण क लिजी धमकै बेर मना करि गईं ) मेरे पास आये और इसी तर्ज पर उत्तराखंड के बारे कोई फ़िल्मी पटकथा लिखने की बात कहने लगे | मैंने बड़ी विनम्रता से पूछा ( मन में डर था कि बड़ी मुश्किल से एक फिल्मकार मुझ जैसे टटपुजिये (तुच्छ) लेखक के पास आया है, कहीं रूठ कर चला न जाय और पटकथा लिखने का चांस कोई अन्य लेखक न झपट ले ), “सर आप पहले ही बता दो कि फिल्म में किस बात की चर्चा नहीं करनी है ताकि सेंसर बोर्ड से एक झटके में प्रमाणपत्र उछल कर जेब में आ जाए |”

     फ़िल्मकार भृकुटी तानते -मूंछें डौराते हुए बोले, “ हाँ भइ तुमने ठीक कहा, अच्छी याद दिला दी वरना फिल्म बनाने के बाद मुझे ‘उड़ता पंजाब’ की तरह सबका साथ भी नहीं मिलेगा |” मैंने पूछा, “सर, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं ?” वे बोले, “मैंने सुना है देश की राजधानी महानगरी दिल्ली में उत्तराखंडियों के संख्या १५ से २५ लाख तक बतायी जाती है जिनकी सैकड़ों  संस्थाएं भी हैं परन्तु ये एकजुट नहीं होते क्योंकि एकता के अहवान पर न इनका संख्या बल जंतर- मंतर पर दिखा और न बुराड़ी दिल्ली में |” पटकथा मेरे हाथ से स्लिप न हो जाय मैंने मुद्दा बदला, “सर आप स्पष्ट बता दें कि किस बात की चर्चा पटकथा में नहीं होनी चाहिए ताकि मैं ध्यान रखूँ ?”

       फिल्म निर्माता बोले, “ध्यान से सुन लो जो मुद्दे मैं तुम्हें बता रहा हूँ उनकी चर्चा नहीं करते हुए तुमने हिट होने वाली पटकथा लिखनी है | सुनो- सबसे पहले तो तुम राज्य बनते ही सही व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बना इसकी चर्चा मत करना और राज्य आन्दोलनकारियों एवं ४२ शहीदों का नाम भी मत लेना तथा अब तक के आठ मुख्यमंत्रियों की कमियाँ भी मत बताना | राज्य में व्याप्त अन्धविश्वास, पशु बलि, दास- डंगरियों, गणतुओं, पुछारों, तांत्रिकों और जागर-मसाण की चर्चा भी न हो | शराब, धूम्रपान, नशा, गुटका, अत्तर, चरस, गांजा सहित सूर्य- अस्त...वाली बात भी नहीं होनी चाहिए | शिक्षा, रोजगार, पानी, सड़क, बिजली, बाँध और स्वास्थ्य का तनिक भी जिक्र नहीं हो | स्कूलों में अध्यापकों की कमी और शिक्षा की गुणवता की कमी भी मत बताना और शिक्षा विभाग पर कोई कटाक्ष भी नहीं होना चाहिए |”

     लम्बी सांस लेते हुए वे बोलते गए, “राजधानी गैरसैण बनाने और पलायन के मुद्दे पर तो गलती से भी मत लिख देना | जल- जंगल- जमीन और खनन माफिया तथा आग माफिया सहित बिगड़ते पर्यावरण पर भी कुछ  नहीं लिखोगे | कागजी एन जी ओ और पुलिस सहित सरकारी दफ्तरों एवं पंचायती राज के तीनों स्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी चुप रहोगे | रेलमार्गों में निर्माण, पर्यटन स्थलों में लूट और अवैध कब्जे पर चुप्पी साधोगे | सुवर-बानर- नीलगाय- मनखीबाग़ –गुलदाड़ पर भी कुछ नहीं कहोगे | दलित और महिला शोषण पर भी कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए | तुम उत्तराखंडी भाषाओँ को मान्यता दिलाने सहित किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर कुछ भी नहीं लिखोगे |”                                            इतना कह कर फिल्मकार चला गया | मैं तब से लगातार सोच रहा हूँ कि उत्तराखंड के किस मुद्दे पर पटकथा लिखूं ताकि फिल्म को सेंसर सार्टीफिकेट भी मिल जाए और फिल्म हिट भी हो जाए | हो सके तो बताने का कष्ट करें | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 
११ .०७.२०१६

 

Pooran Chandra Kandpal

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                                                 बिरखांत- १०२ : इंडिया पोस्ट का न्याय

     हमारे डाक विभाग का पूरे देश को भरोसा है | वहाँ नकदी जमा से लेकर सभी डाक संबधी कई कार्य होते हैं | इन्हीं कार्यों में रजिस्टर्ड पैकेट भी सम्मिलित है | मैंने १० जुलाई २०१५ को ( आज से एक वर्ष पूर्व ) रोहिणी सेक्टर १५ दिल्ली के डाकघर से उत्तराखंड में अपने घर के नजदीकी राजकीय इंटर कालेज जैनोली के प्रधानाचार्य को एक पजीकृत पैकेट भेजा जिसमें विद्यालय के मेधावी विद्यार्थियों को स्वतंत्रता दिवस २०१५ को पुरस्कार में दी जाने वाले नौ पुस्तकें थीं | इस पैकेट का वजन १२९५ ग्राम था और इसे भेजने का खर्च तीस रुपया दिया गया | पुस्तकों का मूल्य ९००/- (नौ सौ) रुपये था |

     पूछताछ करने पर पता चला कि प्रधानाचार्य को यह पैकेट नहीं मिला | ५ अगस्त २०१५ को मौखिक शिकायत पोस्टमास्टर रोहिणी (बुकिंग ऑफिस ) को की | जब शिकायत के बाद भी पैकेट नहीं पहुंचा तो पहली लिखित शिकायत २१ अगस्त २०१५ को की | सुनवाई नहीं हुयी | ७ सितम्बर २०१५ को आर टी आई प्रस्तुत की जिसका खर्च २७ रुपया दिया | १५ सितम्बर को पता चला कि मेरी आर टी आई अल्मोड़ा डिविजन को भेज दी है | १२ अक्टूबर को पत्र द्वारा बताया गया कि पंजीकृत पैकेट स्थानीय डाकघर नहीं पहुंचा | साथ में यह भी बताया कि “आप पैकेट नहीं पहुचने का कारण नहीं पूछ सकते, यह आपका अधिकार नहीं है |” १३ अक्टूबर को मैंने चीफ पोस्टमास्टर जनरल को अपील दायर कर दी |

     २ अक्टूबर २०१५ को वरिष्ठ अधीक्षक डाकघर दिल्ली उत्तरी मंडल ने रेल डाक सेवा बरेली से कारण पूछा और १०० दिन के अन्दर केस को निपटाने को कहा | इस तरह कई बार डाकखाने के चक्कर लगाए और लगातार स्मरण पत्र देते रहा | कई बार तो डाकखाने में घंटों प्रतीक्षा भी की | पत्र व्यवहार की एक मोटी फ़ाइल बन गई | अंत में १५ जून २०१६ को ग्यारह महीने के बाद मुझे सूचित किया गया कि “इस मूल पत्र को लेकर रोहिणी पोस्ट ऑफिस से एक सौ रुपये का भुगतान ले सकते हैं |” उस पत्र का अनुच्छेद प्रस्तुत है – “आपके पैकेट को प्रेषण से वितरण के दौरान खोया मानते हुए डाक विभाग की डाकघर गाइड भाग-१ की धारा १७० के तहत दिए गए निर्देश अनुसार प्रेषक के पक्ष में रुपये १०० (एक सौ रुपये मात्र) के भुगतान की स्वीकृति प्रदान की जाती है जिसे तीन माह के भीतर प्रेषक डाकघर से मूल ज्ञापन के प्रति दे कर प्राप्त किया जा सकता है |”

     इस पैकेट पर अब तक नौ सौ रुपये की पुस्तक सहित कुल  रु.९६७/-    (९००+४०+१०+१७ ) खर्च हो गया था | मुझे २७ जून २०१६ को रु. १००/- का भुगतान किया गया | मेरा समय तो बर्बाद हुआ ही, पुस्तक बच्चों को स्वतंत्रता दिवस पर नहीं मिलने से मेरी साख पर भी चोट आयी और मुझे आत्मग्लानि भी हुयी | शेष राशि (९६७-१००)= ८६७ रुपये कि लिए किससे फ़रियाद की जाय ? अब इस बिरखांत (कथा- व्यथा- गाथा) को किससे कहा जाय जो मुझे न्याय मिले | पूछने पर पता चला कि डाक विभाग में १८९८ के ( गुलामी के समय के )क़ानून चलते हैं जिसके मुताबिक ही फैसला हुआ  होगा | डाक विभाग की इस लापरवाही से जो हानि हुई उसका डाक विभाग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा | लोग डाक विभाग पर कैसे भरोसा करेंगे, यह गूंजता  प्रश्न बहरे कानों को नहीं सुनाई देता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१४.०७.२०१६

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                                                                     दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै

                                                           कुर्मांचल अखबार की छठूँ वर्ष में लमक्याव 

     अल्माड़ (उत्तराखंड) बै कुमाउनी में छपणी पैल साप्ताहिक समाचार पत्र    ‘कुर्मांचल अखबार’ क पैल अंक २५ जुलाई २०११ हुणि प्रकाशित हौछ | उ दिन जां एक तरफ अख़बार क संपादक डा. चन्द्र प्रकाश फुलोरिया कैं भौत ख़ुशि है हुनलि, वां य फिकर लै है हुनलि कि अखबार चालु त करि है पर य उरातार छपल कसिक ? लेकिन देखन- देखनै आज पांच वर्ष पुर हैगीं और १८ जुलाई २०१६ हुणि छठूँ वर्ष क पैल अंक हमार सामणि छ |

     एक भौत पुराणि कहावत छ की य दुनिय में तीन किस्माक मैंस हुनी | पैल किस्माक ऊँ हुनी जो क्ये बिघन ऐ जाल कै डरा क मारि काम शुरू नि करन, उनुहैं मूरख कई जांछ | दुसार मैंस ऊँ हुनी जो काम कैं शुरू त करनी पर बिघन या रुकावट आते ही काम कैं बीच में छोडि दिनी, यूं मध्यम किस्माक लोग कई जानीं | तिसार किस्माक ऊँ उत्तम लोग हुनी जो रुकावटों क बारबार औण पर लै काम कैं नि छोड़न और पुर करि बेर देखूनीं | अगर डा. फुलोरिया ज्यू कैं तिसरि श्रेणी में डाई जो तो क्वे बड़बोल (अतिशयोक्ति) वालि बात नि हइ  | हर साल ५२ अखबार सम्पादित करण, छपूण और पाठकों तक पुजूण य क्वे खेल बात नि हइ | भौत ख़ुशि कि बात छ कि आज डा. फुलोरिया ज्यू द्वारा सम्पादित य ‘कुर्मांचल अखबार’ ल सश्रंगार सजि-धजि बेर छठूँ वर्ष में लमक्याव मारि है | 

     य चिठ्ठी क लेखक ‘कुर्मांचल अखबार’ दगै अक्टूबर २०११ में जुडौ और तब बटि य लेखका क आंखरों कैं य अखबार में उरातार जागि मिलैं रै | ‘दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै’ कॉलम क माध्यम ल य लेखक आपण दिल क उमाव पाठकों क सामणि फेड़ते जाँरौ | पाठकों कि मन कि बात लै य चिठ्ठी में अक्सर जोडण क प्रयास करी जांछ | य त पाठक जाणन हुनाल की लेखक कि कलम घैंसायी उनुकैं कसि लागीं ? कएक ता पाठक फौन द्वारा लेखक क  पुठ लै थपथपूनी | चिठ्ठी में ‘चनरदा’ नाम क किरदार लै कएक ता देखौव है जांछ जैकि कुशोबात लै पाठक कभतै- कभतै पूछते रौनी | उम्मीद छ ‘चनरदा’ जब तली हिटि सकल अखबार में औनै रौल | लेखक कैं य लै उम्मीद छ कि पाठकों कैं य कॉलम कस लागूं, यैकि चर्चा लै क्वे न क्वे पाठक जरूर अखबार में कराल |

     कुर्मांचल अखबार क सम्पादकीय कालम में डा. फुलोरिया ज्यू लै आपण दिल कि बात कैते रौनी और समाज में व्याप्त विषमता, अंधविश्वास, गैरबराबरी, अन्याय, भ्रष्टाचार और शासन- प्रशासन सहित काएक मुद्दों पर आपणि बात लै पाठकों कैं बताते रौनी | सबूं है ठुलि बात त य छ कि य अखबार ल हमरि मातृभाषा कुमाउनी कैं ऊँ लोगों तक लै पुजै है जोयकैं पढ़ि नि सकछी या पढ़ण में देर लगूंछी | कुछ दिन पैली दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट में नना कैं कुमाउनी भाषा सीखूणता नना ल पुछौ, “सर क्या कुमाउनी में अखबार भी आते हैं ?” मील बैग में बै झट ‘कुर्मांचल अख़बार’ निकाइ बेर उनार सामणि धरि दे | ( कुर्मांचल अखबार, पहरू और कुमगढ़, यूं तीनें मी अक्सर आपण बैग में धरी करनूं ) हमरि भाषा क पत्र- पत्रिका देखि नान ख़ुशि हईं और उनुमें हमरि भाषा क प्रति विश्वास जागौ |

     लेखक कैं पुरि उम्मीद छ कि अघिल हुणि लै कुर्मांचल अखबार यसिके छपते रौल और ऊँ पाठकों तक पुजते रौल जो आब यैक इन्तजार में आँख ताणी चै रौनी | ‘कुर्मांचल अखबार’ क छठूँ वर्ष में लमक्याव मारण पर य  लेखक अखबार क संपादक, पाठक, कलमकार और विज्ञापन दिणियाँ कैं भौत भौत बधाई दीण चांछ | सबूं हैं दिल बटि शुभकामना |

पूरन चन्द्र कांडपाल, रोहिणी दिल्ली
१४.०७.२०१६


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                                                                बिरखांत-१०३ : कुर्मांचल अखबार कि छठूँ वर्ष में लमक्याव

     (अल्मोड़ा, उत्तराखंड से कुमाउनी में प्रकाशित प्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र ‘कुर्मांचल अखबार’ में भी बिरखांत का लेखक विगत पांच वर्ष से एक नियमित कालम ‘दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै’ लिखता है | यह अखबार १८ जुलाई २०१६ को अपने छठे वर्ष में प्रवेश कर रहा है | बिरखांत -१०३ जो कुमाउनी में लिखी गयी है, कुर्मांचल अखबार को समर्पित है | )

     अल्माड़ (उत्तराखंड) बै कुमाउनी में छपणी पैल साप्ताहिक समाचार पत्र  ‘कुर्मांचल अखबार’ क पैल अंक २५ जुलाई २०११ हुणि प्रकाशित हौछ | उ दिन जां एक तरफ अख़बार क संपादक डा. चन्द्र प्रकाश फुलोरिया कैं भौत ख़ुशि है हुनलि, वां य फिकर लै है हुनलि कि अखबार चालु त करि है पर य उरातार छपल कसिक ? लेकिन देखन- देखनै आज पांच वर्ष पुर हैगीं और १८ जुलाई २०१६ हुणि छठूँ वर्ष क पैल अंक हमार सामणि छ |

     एक भौत पुराणि कहावत छ की य दुनिय में तीन किस्माक मैंस हुनी | पैल किस्माक ऊँ हुनी जो क्ये बिघन ऐ जाल कै डरा क मारि काम शुरू नि करन, उनुहैं मूरख कई जांछ | दुसार मैंस ऊँ हुनी जो काम कैं शुरू त करनी पर बिघन या रुकावट आते ही काम कैं बीच में छोडि दिनी, यूं मध्यम किस्माक लोग कई जानीं | तिसार किस्माक ऊँ उत्तम लोग हुनी जो रुकावटों क बारबार औण पर लै काम कैं नि छोड़न और पुर करि बेर देखूनीं | अगर डा. फुलोरिया ज्यू कैं तिसरि श्रेणी में डाई जो तो क्वे बड़बोल (अतिशयोक्ति) वालि बात नि हइ  | हर साल ५२ अखबार सम्पादित करण, छपूण और पाठकों तक पुजूण य क्वे खेल बात नि हइ | भौत ख़ुशि कि बात छ कि आज डा. फुलोरिया ज्यू द्वारा सम्पादित य ‘कुर्मांचल अखबार’ ल सश्रंगार सजि-धजि बेर छठूँ वर्ष में लमक्याव मारि है | 

     य चिठ्ठी क लेखक ‘कुर्मांचल अखबार’ दगै अक्टूबर २०११ में जुडौ और तब बटि य लेखका क आंखरों कैं य अखबार में उरातार जागि मिलैं रै | ‘दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै’ कॉलम क माध्यम ल य लेखक आपण दिल क उमाव पाठकों क सामणि फेड़ते जाँरौ | पाठकों कि मन कि बात लै य चिठ्ठी में अक्सर जोडण क प्रयास करी जांछ | य त पाठक जाणन हुनाल की लेखक कि कलम घैंसाई उनुकैं कसि लागीं ? कएक ता पाठक फौन द्वारा लेखक क पुठ लै थपथपूनी | चिठ्ठी में ‘चनरदा’ नाम क किरदार लै कएक ता देखौव है जांछ जैकि कुशोबात लै पाठक कभतै- कभतै पूछते रौनी | उम्मीद छ ‘चनरदा’ जब तली हिटि सकल अखबार में औनै रौल | लेखक कैं य लै उम्मीद छ कि पाठकों कैं य कॉलम कस लागूं, यैकि चर्चा लै क्वे न क्वे पाठक जरूर अखबार में कराल |

     कुर्मांचल अखबार क सम्पादकीय कालम में डा. फुलोरिया ज्यू लै आपण दिल कि बात कैते रौनी और समाज में व्याप्त विषमता, अंधविश्वास, गैरबराबरी, अन्याय, भ्रष्टाचार और शासन- प्रशासन सहित काएक मुद्दों पर आपणि बात लै पाठकों कैं बताते रौनी | सबूं है ठुलि बात त य छ कि य अखबार ल हमरि मातृभाषा कुमाउनी कैं ऊँ लोगों तक लै पुजै है जो यकैं पढ़ि नि सकछी या पढ़ण में देर लगूंछी | कुछ दिन पैली दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इन्स्टीट्यूट में नना कैं कुमाउनी भाषा सीखूणता नना ल पुछौ, “सर क्या कुमाउनी में अखबार भी आते हैं ?” मील बैग में बै झट ‘कुर्मांचल अख़बार’ निकाइ बेर उनार सामणि धरि दे | ( कुर्मांचल अखबार, पहरू और कुमगढ़, यूं तीनें मी अक्सर आपण बैग में धरी करनूं ) हमरि भाषा क पत्र- पत्रिका देखि नान ख़ुशि हईं और उनुमें हमरि भाषा क प्रति विश्वास जागौ |

     लेखक कैं पुरि उम्मीद छ कि अघिल हुणि लै कुर्मांचल अखबार यसिके छपते रौल और ऊँ पाठकों तक पुजते रौल जो आब यैक इन्तजार में आँख ताणी चै रौनी | ‘कुर्मांचल अखबार’ क छठूँ वर्ष में लमक्याव मारण पर य  लेखक अखबार क संपादक, पाठक, कलमकार और विज्ञापन दिणियाँ कैं भौत भौत बधाई दीण चांछ | सबूं हैं दिल बटि शुभकामना | कुर्मांचल अखबार क पत् छ – संपादक डा चन्द्र प्रकाश फुलोरिया, द्वारा नवल प्रिंटर्स, नंदादेवी बाजार, अल्मोड़ा-२६३६०१ | अघिल बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
१८.०७.२०१६

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै २१.०७.२०१६
 इंडिया पोस्ट क न्याय

     हमार डाक विभाग क पुर देश कैं भरौस छ | डाकखाण में नकद जमा सहित सबै डाक संबधी काम हुनी | यूं कामों में रजिस्टर्ड पैकेट लै शामिल छ | मील १० जुलाई २०१५ हुणि ( आज है एक साल पैली ) रोहिणी सेक्टर १५ दिल्ली क डाकघर बै उत्तराखंड में आपण घर क नजदीकी राजकीय इंटर कालेज जैनोली क प्रधानाचार्य क नाम पर एक पजीकृत पैकेट भेजौ जमें विद्यालय क मेधावी विद्यार्थियों कैं स्वतंत्रता दिवस २०१५ हुणि पुरस्कार में दीई जाणी नौ किताब छी | य पैकेट क वजन १२९५ ग्राम छी और यैकैं भेजण का खर्च तीस रुपै दे | किताबों क मूल्य ९००/- (नौ सौ) रुपै छी |

     पूछताछ करण पर पत् चलौ कि प्रधानाचार्य कैं य पैकेट नि मिल | ५ अगस्त २०१५ हुणि मौखिक शिकैत पोस्टमास्टर रोहिणी (बुकिंग ऑफिस ) हैं करी | जब शिकैत क बाद लै  पैकेट वां नि पुज तो पैल लिखित शिकैत २१ अगस्त २०१५ हुणि करि दी | पर क्ये खबर नि आइ | ७ सितम्बर २०१५ हुणि आर टी आई डाई जैक खर्च २७ रुपै दे | १५ सितम्बर हुणि पत् चलौ कि म्येरि आर टी आई अल्माड़ डिविजन हुणि भेजि है | १२ अक्टूबर हुणि एक चिठ्ठी द्वारा मीकैं बताइगो कि पंजीकृत पैकेट स्थानीय डाकघर में नि पुज | दगाड़ में उनूल य लै बता कि “तुम पैकेट नि पुजण क कारण नि पुछि सकना क्यलै कि य तुमर अधिकार न्हैति |” १३ अक्टूबर हुणि मील चीफ पोस्टमास्टर जनरल हुणि अपील दायर करि दी |

     २९ अक्टूबर २०१५ हुणि वरिष्ठ अधीक्षक डाकघर दिल्ली उत्तरी मंडल ल रेल डाक सेवा  हुणि कारण पुछौ और १०० दिना क अन्दर केस कैं निपटूण क आदेश दे | यसिके कतू ता डाकखाण क चक्कर लगाईं और लगातार उनुकैं याद द्यउनै रयूं | कतू ता त डाकखाण में घंटों इंतज़ार लै करौ | पत्र व्यवहार करन- करनै एक मोटि फ़ाइल बनि गेइ | अंत में १५ जून २०१६ हुणि इग्यार महैण बाद मीकैं बताइगो कि “य मूल पत्र कैं ल्हीबेर रोहिणी पोस्ट ऑफिस बटि एक सौ रुपै क भुगतान ल्ही सकछा |” उ चिठ्ठी कैं ल्हीबेर मी डाकखाण गोयूं जैक अनुच्छेद प्रस्तुत छ – “तुमर पैकेट कैं प्रेषण बटि वितरण क दौरान हराई मानते हुए डाक विभाग कि डाकघर गाइड भाग-१ कि धारा १७० के तहत दिई गई निर्देश क अनुसार प्रेषक क पक्ष में रुपै १०० (एक सौ रुपै मात्र) क भुगतान कि स्वीकृति प्रदान करी जैंछ जैकैं तीन महैण क अन्दर प्रेषक डाकखाण बटि मूल ज्ञापन कि कौपि दि बेर प्राप्त करी जै सकूं |”

     य पैकेट पर अब तली नौ सौ रुपै किताबों सहित कुल रु. ९६७/- (९००+४०+१०+१७ ) खर्च है गाछी | मीकैं २७ जून २०१६ हुणि रु. १००/- क भुगतान करि है | म्यर टैम त बरबाद हौछै, किताब लै स्वतंत्रता दिवस हुणि नना कैं नि मिलण पर म्येरि साख पर लै चोट ऐछ  और मीकैं आत्मग्लानि लै हैछ | बांकि राशि (९६७-१००)= ८६७ रु. क लिजी कैहुणि फ़रियाद करी जो, य बात समझ में नि औं रइ ? अब य बिरखांत (कथा- व्यथा- गाथा) कैं कैहुणि कई जो जैल मीकैं न्याय मिलो | पुछण पर पत् चलौ कि डाक विभाग में १८९८ क ( गुलामी क दिना क )क़ानून चलनीं जैक मुताबिक य फैसाल हौ हुनल | डाक विभाग कि य लापरवाही ल  जो नुकसान हौछ वीक डाक विभाग पर क्ये लै प्रभाव नि पड़ | लोग डाक विभाग पर कसी  भरौस कराल, य हाव में गूंजणी सवाल काल कानों क सुणण में नि औंन |  डाक विभागा क माथ भैटी ठुल सैबों ल य बात पर जरूर सोचण चैंछ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, रोहिणी दिल्ली 
२१.०७.२०१६


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बिरखांत- १०४ : मुस्लिम महिलाओं की ईदगाह में नमाज

     अस्सी के दशक में बरेली (उ.प्र.) में एक स्वास्थ्य कैम्प में मैं अपने सहकर्मी सहित बच्चों को बी सी जी (टी बी से बचने का टीका) का टीका लगाने पहुंचा |  मैं बच्चों को टीका लगा रहा था और सहकर्मी नाम लिख रहा था | एक मुस्लिम महिला ने अपने छै बच्चों के नाम लिखाए | सहकर्मी के मुंह से मजाक में अनायास ही निकल गया “पूरी वॉलीबाल टीम है आपकी |” महिला को यह अच्छा नहीं लगा और वह भन्नाते हुए बोली, “जब मुझे पैदा करने में परेशानी नहीं हुई तो तेरे को नाम लिखने में दर्द क्यों हो रिया है ? खांमखां मेरे बच्चों पर नजर लगा रिया है |” वह आगे कुछ और बोलने ही वाली थी मैंने उसे रोकते हुए कहा, “आपको बुरा लगा तो माफ़ कर दें | उसने एक माँ- बाप के इतने बच्चे एकसाथ पहली बार देखे हैं |” सहकर्मी ने भी तुरंत ‘सौरी बहनजी’ कह दिया और मैंने बिना देर किये बच्चों को टीका लगाकर उन्हें शीघ्र रुख्शत कर दिया | आज चार दशक बाद परिवर्तन देखने को मिल रहा है क्योंकि अपवाद को छोड़कर अब मुस्लिम महिलाएं परिवार नियंत्रित करने लगीं हैं और रुढ़िवादी सोच से परहेज करने लगीं हैं |

     नब्बे के दशक में फैज रोड दिल्ली की बैंक शाखा में एक मुस्लिम युवती पी ओ (प्रोबेसनरी ऑफिसर ) बन कर आई | वह हमेशा ही सिर में स्कार्फ बांधे रखती थी | शाखा प्रबंधक ने उसे प्रशिक्षण का जिम्मा मुझे दिया | यह शायद उस बैंक में पहली मुस्लिम महिला आई होगी |  मेरे लिए तो एक मुस्लिम महिला का बैंक ज्वाइन करना, एक सुखद आश्चर्य था | वह बड़ी शालीन, विनम्र और सीखने के जज्बे से सराबोर थी | यदा- कदा में उससे मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक दशा और अधिक बच्चों पर चर्चा करता था | वह बताती थी, ‘सर अच्छी हालत नहीं है मुस्लिम महिलाओं की | जल्दी शादी और फिर बच्चे | मजहबी क़ानून भी महिलाओं के लिए सख्त हैं | मुझे यहाँ तक पहुंचने के लिए मेरे अम्मी- अब्बा का बहुत बड़ा सहयोग रहा है |’ उस युवती की सोच बड़ी प्रगतिशील और महिला उत्थान की थी | प्रशिक्षण के बाद जब वह चली गई तो पूरा स्टाफ और ग्राहक उसे बड़ी श्रद्धा से याद करते थे | हम सबने बतौर सहकर्मी पहली बार एक मुस्लिम महिला देखी थी जो हमारे  कई भ्रम और मिथक तोड़ कर बड़े सौहार्द के साथ वहाँ से विदा हुई थी |

     परिवर्तन का एक सुखद क्षण ७ जुलाई २०१६ को भी देखने को मिला जब ईद-उल-फितर के मौके पर ऐशबाग लखनऊ में पहली बार मुस्लिम महिलाओं ने ईदगाह में नमाज अता की | उनके लिए नमाज अता करने हेतु अलग से प्रबध किया गया था | वहाँ के मौलाना ने भी बताया कि इस्लाम में कहीं भी नहीं लिखा है कि महिलाएं मस्जिद या ईदगाह में नमाज अता नहीं कर सकती | यह देर से आरम्भ की गयी एक नई पहल है, नई रोशनी है और मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय और बराबरी का स्वीकार्य हक़ है | हाल ही में शनि- सिगनापुर में महिलाएं मंदिर में प्रवेश हुई हैं जबकि सबरीमाला में उनके लिए अभी भी मंदिर के द्वार बंद हैं | मुस्लिम महिलाएं मजारों पर जाती थी परन्तु उनके लिए मस्जिद या ईदगाह प्रवेश पर प्रतिबंधित था | पूरा देश इस नई रोशनी का स्वागत करता है | यह एक प्रगतिशील कदम है |

    देश तभी उन्नति करेगा जब देश की ‘आधी दुनिया’ (महिला शक्ति) को संविधान के अनुसार बराबरी का हक़ मिलेगा | जब तक देश के सभी सम्प्रदायों में महिलाओं को हर जगह बराबरी का हक नहीं मिलेगा, देश तरक्की नहीं कर सकता | सबके सहयोग से ही तो हमने चेचक, प्लेग और पोलियो पर विजय पाई है | लघु परिवार का सपना भी ऐसे ही पूरा होगा | देश को बड़े परिवार की जरूरत नहीं है बल्कि स्वस्थ और शिक्षित लघु परिवार की जरूरत है | आज कुछ युवा लड़का या लड़की जो भी हो केवल दो बच्चों के ही परिवार से खुश हैं | आज देश की सबसे बड़ी समस्या ही जनसँख्या वृद्धि है | साथ ही हम किसी भी सम्प्रदाय द्वारा ईश्वर या अल्लाह के नाम पर पशुबलि को भी उचित नहीं मानते | कोई मांसाहार करे या न करे यह उसकी मर्जी है परन्तु धर्म, भगवान् या अल्लाह के नाम पर निरीह पशु की बलि गलत है | बदलाव की बयार चल पड़ी है | मंदिरों में तो पशुबलि निषेध पूर्ण रूपेण लागू हो चुका है | आशा है सभी सम्प्रदाय इस तथ्य को समझने का प्रयास करेंगे | अगली बिरखांत में कुछ और ...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
२२.०७.२०१६     


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१०५ : कारगिल के रणबांकुरे ( विजय दिवस : २६ जुलाई ) 

     प्रतिवर्ष २६ जुलाई को हम ‘विजय दिवस’ १९९९ के कारगिल युद्ध की जीत के उपलक्ष्य में मनाते हैं | कारगिल भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में श्रीनगर से २०५ कि. मी. दूरी पर श्रीनगर -लेह राष्ट्रीय राजमार्ग पर शिंगो नदी के दक्षिण में समुद्र सतह से दस हजार फुट से अधिक ऊँचाई पर स्थित है |  मई १९९९ में हमारी सेना को कारगिल में घुसपैठ का पता चला | घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए १४ मई को आपरेशन ‘फ़्लैश आउट’ तथा २६ मई को आपरेशन ‘विजय’ और कुछ दिन बाद भारतीय वायुसेना द्वारा आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ आरम्भ किया गया | इन दोनों आपरेशन से कारगिल से उग्रवादियों के वेश में आयी पाक सेना का सफाया किया गया | इस युद्ध का वृतांत मैंने अपनी पुस्तक ‘कारगिल के रणबांकुरे’ ( संस्करण २०००) में लिखने का प्रयास किया है |

     यह युद्ध ग्यारह ११००० से १७००० फुट की ऊँचाई वाले दुर्गम रणक्षेत्र मश्कोह, दरास, टाइगर हिल, तोलोलिंग, जुबेर, तुर्तुक तथा काकसार सहित कई अन्य हिमाच्छादित चोटियों पर लड़ा गया | इस दौरान सेना की कमान जनरल वेद प्रकाश मलिक और वायुसेना के कमान एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस के हाथ थी | इस युद्ध में भारतीय सेना ने निर्विवाद युद्ध क्षमता, अदम्य साहस, निष्ठा, बेजोड़ रणकौशल और जूझने की अपार शक्ति का परिचय दिया | हमारी सेना में मौजूद फौलादी इरादे, बलिदान की भावना, शौर्य, अनुशासन और स्वअर्पण की अद्भुत मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और देखने को मिलती हो | इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने न केवल बहादुरी की पिछली परम्पराओं को बनाये रखा बल्कि सेना को देशभक्ति, वीरता, साहस और बलिदान की नयी बुलंदियों तक पहुँचाया | ७४ दिन के इस युद्ध में हमारे पांच सौ से भी अधिक सैनिक शहीद हुए जिनमें उत्तराखंड के ७३ शहीद थे तथा लगभग एक हजार चार सौ सैनिक घायल भी हुए थे |

     कारगिल युद्ध के दौरान हमारी वायुसेना ने भी आपरेशन ‘सफ़ेद सागर’ के अंतर्गत अद्वितीय कार्य किया | आरम्भ में वायुसेना ने कुछ नुकसान अवश्य उठाया परन्तु आरम्भिक झटकों के बाद हमारे आकाश के प्रहरी ततैयों की तरह दुश्मन पर चिपट पड़े | हमारे पाइलटों ने आसमान से दुश्मन के खेमे में ऐसा बज्रपात किया जिसकी कल्पना दुश्मन ने कभी भी नहीं की होगी जिससे इस युद्ध की दशा और दिशा में पूर्ण परिवर्तन आ गया | वायुसेना की सधी और सटीक बम- वर्षा से दुश्मन के सभी आधार शिविर तहस-नहस हो गए | हमारे जांबाज फाइटरों ने नियंत्रण रेखा को भी नहीं लांघा और जोखिम भरा सनसनी खेज करतब दिखाकर अपरिमित गगन को भी भेदते हुए करशिमा कर दिखाया | हमारी वायुसेना ने सैकड़ों आक्रमक, टोही, अनुरक्षक युद्धक विमानों और हेलिकोप्टरों ने नौ सौ घंटों से भी अधिक की उड़ानें भरी | युद्ध क्षेत्र की विषमताओं और मौसम की विसंगतियों के बावजूद हमारी पारंगत वायुसेना ने न केवल दुश्मन को मटियामेट किया बल्कि हमारी स्थल सेना के हौसले भी बुलंद किये |

     कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता, कर्तव्य के प्रति अपने को न्योछवर करने के लिए १५ अगस्त १९९९ को भारत के राष्ट्रपति ने ४ परमवीर चक्र (कैप्टन विक्रम बतरा (मरणोपरांत), कैप्टन मनोज पाण्डेय (मरणोपरांत), राइफल मैन संजय कुमार और ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव ( पुस्तक ‘महामनखी’ में इनकी लघु वीर-गाथा तीन भाषाओं में एक साथ है ), ९ महावीर चक्र, ५३ वीर चक्र सहित २६५ से भी अधिक पदक भारतीय सैन्य बल को प्रदान किये | कारगिल युद्ध से पहले जम्मू -कश्मीर में छद्मयुद्ध से लड़ने के लिए आपरेशन  ‘जीवन रक्षक’ चल रहा था जिसके अंतर्गत उग्रवादियों पर नकेल डाली जाती थी और स्थानीय जनता की रक्षा की जाती थी |

     हमारी तीनों सेनाओं का मनोबल हमेशा की तरह आज भी बहुत ऊँचा है | वे दुश्मन की हर चुनौती से बखूबी जूझ कर उसे मुहतोड़ जबाब देने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं | उनका एक ही लक्ष्य है, “युद्ध में जीत और दुश्मन की पराजय |” आज इस विजय दिवस के अवसर पर हम अपने अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर शहीद परिवारों का सम्मान करते हुए अपने सैन्य बल और उनके परिजनों को बहुत बहुत शुभकामना देते हैं और हर चुनौती में उनके साथ डट कर खड़े रहने का बचन देते हैं |  अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
 २६.०७.२०१६ 

 

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