Author Topic: Rajula Malushahi Immortal Love Story - राजुला मालूशाही: अमर प्रेम गाथा  (Read 79378 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Charu Da,

Thanx a lot for giving this information about Rajula Malushahi.

I belive Rajula Malushahi was the dauther of Sunpati Sauka.

There is song mentioning about Mallu..

Paar we bheena Ko Chho Ghasyaari
Mallu re, to Mallu na kaatu.

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार हेा कुमांउ के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी हैा उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थीा जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब दुलाशाह शासन करते थेा उनकी कोई संतान नहीं थीा इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाईा अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती हेा वह बागनाथ के मंदिर गयेा वहां उनकी मुलाकात भेाट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुईा वह भी संतान की चाह में वहां आये थेा  दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगेा ऐसा ही हुआा बागनाथ की कपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआा उसका नाम मालूशाही रखा गयाा सुनपित शौका के घर में लडकी हुईा उसका नाम राजुला रखा गयाा  समय बीतता गयाा जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भेट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का िवषय बन गयाा वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता थाा

जारी,,,,,,,,

Risky Pathak

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सुनपति शौक व गांगुली की पुत्री थी राजुला| सुनपति शौक मल्ला दारमा का १ समृद्ध व्यापारी था|

मालुसाही बैराठ नगर के राजा दुलासाही व रानी धर्मादेवी के पुत्र थे|
दोनों संतान हीन थे| मकर संक्रांति के दिन सुनपति शौक अपनी पत्नी के संग व दुलासाही अपनी रानी के संग बागनाथ पहुंचकर भगवान आशुतोष से संतान की कामना करते है|
वही दोनों स्त्रियों का मिलन होता है| दोनों अपनी व्यथा कहती है| दोनों मन्दिर में आपस में वचन देती है की अगर इश्वर की कृपा से एक को पुत्र व दुसरे को पुत्री होगी तो, समय आने पर वो दोनों का विवाह कर देंगे|

समय आने पर दोनों गर्भवती होती है| और धर्मावती को पुत्र व गांगुली को पुत्री की प्राप्ति होती है| एक दिन राजुला अपनी माँ से धर्मा वती से किए गये वचन के बारे में सुनती है| बस यही से शुरू होता है राजुला के मन में प्रेम उस राजा के लिए जो उसने कभी देखा तक नही था|

एक दिन सुनपति शौक व्यापार के सिलसिले में बैराठ नगर जाता है| तो राजुला भी अपने मालुसाही के दर्शन के लिए बैराठ जाने की जिद करती है| पिता पुत्री हठ के आगे झुक जाता है और राजुला को भी अपने साथ ले जाता है|
बैराठ के द्रोनगिरी  मदिर में राजुला व मालुसाही का प्रथम मिलन होता है| यही से प्रेम परवान चड़ता है| और यही से गुप चुप मिलने का क्रम शुरू होता है|

सुनपति शौक को ये बात पता चल जाती है| वह भड़क उठता है और व्यापार को बीच में  ही छोड़कर मल्ला दारमा वापस आ जाता है| वह राजुला की शादी तिब्बत के हुन राजा  ऋषि पाल से कराना चाहता है|

घर आकर जब माँ को बेटी के प्रेम का पता चलता है तो उसे भी दुःख होता है|

और माँ ही बेटी को गुपचुप तरीके से बैराठ पहुचने को कहती है|
और यही से शुरू होती है राजुला का दारमा से बैराठ तक का सफर|

हेम पन्त

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Mehta ji ye Maalu alag hai..

Is gaane mein Maalu se Tatpary Maalu ke patto(Maalu-Paat) se hain. jo mahilayein chaare ke roop mein kaatati hain..
Yeh gaana Van-Sanrakshan par aadharit hai..




Paar we bheena Ko Chho Ghasyaari
Mallu re, to Mallu na kaatu.

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार हेा कुमांउ के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी हैा उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थीा जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब दुलाशाह शासन करते थेा उनकी कोई संतान नहीं थीा इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाईा अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती हेा वह बागनाथ के मंदिर गयेा वहां उनकी मुलाकात भेाट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुईा वह भी संतान की चाह में वहां आये थेा  दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगेा ऐसा ही हुआा बागनाथ की कपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआा उसका नाम मालूशाही रखा गयाा सुनपित शौका के घर में लडकी हुईा उसका नाम राजुला रखा गयाा  समय बीतता गयाा जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भेट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का िवषय बन गयाा वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता थाा

जारी,,,,,,,,

Charu Tiwari

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मेहता जी आपने जिस मालू का जिक्र किया है उसका इस कथा और पात्र से कोई संबंध नहीं है असल में मालूशाही बैराठ का राजकुमार है पार का भीड्ा जो लोक गीत है वह बहुत बाद में पेड्ो को न काटने के लिए एक गीत बना है जिसमें किसी साली का नाम मालू है जिसका जीजा उसे मालू के पेड्ों को न काटने के लिए कहता हैा

Charu Da,

Thanx a lot for giving this information about Rajula Malushahi.

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Mallu re, to Mallu na kaatu.

राजुला मालूशाही की जो लोकगाथा प्रचिलत है वह इस प्रकार हेा कुमांउ के पहले राजवंश कत्‍यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी हैा उस समय कत्‍यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया थीा जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब दुलाशाह शासन करते थेा उनकी कोई संतान नहीं थीा इसके लिए उन्‍होंने कई मनौतियां मनाईा अन्‍त में उन्‍हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ में शिव की अराधना करे तो उन्‍हें संतान की प्राप्‍ति हो सकती हेा वह बागनाथ के मंदिर गयेा वहां उनकी मुलाकात भेाट के व्‍यापारी सुनपत शौका और उसकी पत्‍नी गांगुली से हुईा वह भी संतान की चाह में वहां आये थेा  दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड्का और लड्की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देंगेा ऐसा ही हुआा बागनाथ की कपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआा उसका नाम मालूशाही रखा गयाा सुनपित शौका के घर में लडकी हुईा उसका नाम राजुला रखा गयाा  समय बीतता गयाा जहां बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा वहीं भेट में राजुला का सौन्‍दर्य लोगों में चर्चा का िवषय बन गयाा वह जिधर भी निकलती उसका लावण्‍य सबको अपनी ओर खींचता थाा

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Risky Pathak

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Rajula ke Bhot Desh se Baijnaath Pahuchne tak ka kisaa aap yha sun sakte hai.

http://www.esnips.com/doc/7b6b772d-3314-4dbf-96af-25ae44dd4028/Rajul-Hirda

This song is from hirda casstess.

पंकज सिंह महर

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चारु दा कि कथा से आगे-

ईश्वर की कृपा से वैराठ के राजा दोलूशाही को मालूशाही के रुप में पुत्र और सुनपति शौका को राजुला के रुप में पुत्री प्राप्त हुई। पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करने को कहा। ज्योतिषी ने बताया कि "हे राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है, इसका निवारण करने के लिये जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करना होगा।"  राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपति तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही के साथ कर दिया।
     लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिये मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाये।...जारी

पंकज सिंह महर

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धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे....राजुला जब युवा हो गई तो सुनपति शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली वैराट में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था, लेकिन वहां से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
    एक दिन राजुला ने अपनी मां से पूछा कि
 " मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश?"
उसकी मां ने उत्तर दिया " दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीली वैराट"

तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी मां से कहा कि " हे मां! मेरा ब्याह रंगीले वैराट में ही करना।

पंकज सिंह महर

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इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौक के यहां आया और उसने अपने लिये राजुला का हाथ मांगा और सुनपति को धमकाया कि अगर तुमने अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इस बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊंगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालूशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विखीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्च्य किया कि वह स्व्यं वैराट देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी मां से वैराट का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी मां ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, वैराट के रास्ते से तुझे क्या मतलब। तो रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली वैराट की ओर चल पड़ी।

हलिया

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कौ महाराज कौ भल लागुनो.

पंकज सिंह महर

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वह पहाड़ों को पारकर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुंची, वहां से उसे कफू पक्षी ने वैराट का रास्ता दिखाया। लेकिन इस बीच जब मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया।  लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निद्रा जड़ी सुंघा दी गई, जिससे वह गहरी निद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालूशाही के पास पहुंची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, सो नहीं उठ पाया, निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने में रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निद्रा खोल दी गई, जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और उसे वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था कि " हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।"   यह सब देखकर राजा मालू अपना सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाना चाहिये, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये..........।

 

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