यह बात बहुत पहले की है, जब गावू मै बहुत गरीबी हुआ करती थी और लोगु के पास खाने को कुछ ज्यादा नही हुआ करता था, और बच्चू को भी कभी कभार ही अच्छा खाना मिला करता था...
हमारे गाव के पास मै ही एक मन्दिर है जयंती माता ka (ध्व्यज मन्दिर), वहा पे शिवरात्रि के दिन मेला लगता है. इस मन्दिर मै जाने के दिन वर्त (फास्ट) रखना जरुरी होता है. तो हमारे गाव से एक बच्चा इस मेले मै जा रहा था, दूसरे दिन फास्ट होने की वजह से पहली रात को उसे घर मै भरपूर खाना मिला . जो की नोर्मल्ली अभी भी होता है भाई कल वर्त है तो आज पेट भर खा ले वाली बात. और वर्त वाले दिन वो सुबह शैच के लिए भी नही गया की पेट खली हो जाएगा तो भूख लगने लगेगी सोच के.
अब मन्दिर पंहुचा तो वहा बहुत भीड़ थी और दरसन करके मै बहुत टाइम लग गया, इस बीच वो अपनी लैटिन को रोक नही पाया और धोती मै ही थोड़ा बहुत निकल गया. फ़िर वो वो हिम्मत करके और जैसे तैसे रोक के खड़ा रहा और मन्दिर तक पंहुचा, तो पुजारी को बहुत बदबू आई तो पुजारी चिलाया की ये बदबू क्यों आ रही है... किसी के पैर मै लैटिन तो नही लगी है.. सब अपने पैर देखने लगे... तो पुजारी को पता चल गया की इस बच्चे ने तो धोती मै ही लैटिन कर रखी है... और पुजारी ने बच्चे को धक्के मारते हुए कहा की " दूर जा मुल्या तो भट्टे बास रैछ" (बास = बदबू). भाई शाहब एक तो लैटिन का जोर उप्पर से पंडित का धक्का दोनु साथ मै बच्चा सम्भाल ना पाया और पूरी लैटिन धोती मै ही निकल आई और वैसे ही उसे घर तक आना पड़ा. और उस बेचारे का नाम हमेशा के लिए हगवा पड़ गया