Author Topic: Religious Chants & Facts -धार्मिक तथ्य एव मंत्र आदि  (Read 45508 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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व्यावहारिक जीवन में कई मौकों पर केवल पैसों की तंगी ही सुकून नहीं छीनती, बल्कि पास में ज्यादा धन होना भी अशांति लाने वाला होता है। यही वजह है कि हर इंसान सुखी होने के लिए पैसों के साथ सुख-शांति की भी चाहत रखता है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में इंसान की ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए भगवान गणेश की पूजा बहुत ही अचूक मानी गई है। भगवान गणेश की उपासना विघ्रों को शांत कर तन, मन और धन के सुख देने वाली मानी गई है।
शास्त्रों में खासतौर पर बुधवार या चतुर्थी के शुभ संयोग में भगवान श्रीगणेश की पूजा के लिए सवेरे इस मंत्र का जप धन, ऐश्वर्य देने के साथ सुख और शांति देने वाला माना गया है। जानिए यह विशेष श्रीगणेश मंत्र -
- सुबह स्नान के बाद पवित्र होकर देवालय में श्रीगणेश की पूजा करें।
- भगवान गणेश की पूजा में गंध, अक्षत, दूर्वा, पीले फूल, गुड़, धनिया व मोदक का भोग अर्पित करें।
- पूजा के बाद भगवान श्रीगणेश के इन मंत्रों का यथाशक्ति जप करें-
त्वमेव ब्रह्मा विष्णुश्र्च महेशो भानुरेव च।
त्वमेव पृथ्वी वायुरन्तरिक्षं दिशो द्रुमा:। पर्वतै: सहिता: सिद्धा गन्धर्वा यक्षराक्षसा:।।
मुनयो मानवाश्चापि स्थावरं जङ्गम जगत्। त्वमेव सर्वं देवेश सचेतनमचेतनम्।।
जन्मान्तरीययपुण्येन दृष्टोसि कश्यपात्मज।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शिवलिंग को जल, दूध, बिल्वपत्र और सफेद आंकड़ा समर्पित कर इस मंत्र स्तुति का श्रद्धा से पाठ करें -

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय

कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।

कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय

दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय

कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।

गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥2॥

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय

उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।

ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥3॥

चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय

भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।

मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥4॥

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय

हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।

आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥5॥

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय

कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥6॥

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय

नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥7॥

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय

गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।

मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥8॥

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।

सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।

त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रोज इस मंत्र से लगाएं भगवान को मिठाई का भोग, मिलेंगी मनचाही खुशियां

हिन्दू धर्म परंपराओं में भगवान को भोग लगाने यानी नैवेद्य में मीठे व्यंजनों, फलों को चढ़ाने का विशेष महत्व है।  व्यावहारिक नजरिए से इस परंपरा के पीछे छुपा दर्शन सरल शब्दों में समझें तो जिस तरह मीठा खाना आनंदित और सुख देने के साथ ऊर्जा भी बढ़ाता है, उसी तरह भक्ति से जुड़ी श्रद्धा, समर्पण और आस्था सुखों की मिठास जीवन में घोल देती है।
सुख देने वाले इसी नैवेद्य विधान के लिए विशेष मंत्र का महत्व बताया गया है। विशेष मंत्र शक्तियां देवशक्तियों को वशीभूत करती है और मनचाहे सुखों को देने वाली होती है। इसलिए यहां बताया जा रहा है दैनिक पूजा में भगवान को नैवेद्य खासतौर पर मिश्री या मिठाई चढ़ाते वक्त बोले जाने वाला मंत्र विशेष-
आप जिस देवता की भी उपासना कर रहे हैं, उस देव विशेष का नाम लेकर मिश्री या मीठे पकवान अर्पित कर जल समर्पित करें -


शर्कराखण्ड खाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्य प्रतिगृह्यताम्।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मां लक्ष्मी को इस मंत्र से चंदन लगाएं, घर में नहीं होंगे कलह व अभाव

गृहस्थ जीवन गुजारते हुए कर्म, व्यवहार में आई कोई भी विकृति या गंदगी दु:ख-दरिद्रता व अभाव का कारण बनती है। वहीं शरीर, मन, विचार या व्यवहार की पवित्रता सुख-संपन्नता देने वाली होती है, जिसे धार्मिक नजरिए से लक्ष्मी कृपा के रूप में भी जाना जाता है।   अगर आप भी चाहते हैं कि घर-परिवार कलह व अभाव से दूर रहे तो देवी लक्ष्मी की उपासना के विशेष दिन शुक्रवार के लिए यहां बताया जा रहा एक सरल उपाय न चूकें। माता लक्ष्मी सुख-समृद्धि, धन और ऐश्वर्य की देवी मानी गई है। इस सरल उपाय से लक्ष्मी को प्रसन्न कर सुख-संपन्नता की कामना भी पूरी की जा सकती है -  - शुक्रवार के दिन शाम के वक्त स्नान कर लक्ष्मी मंदिर या घर के देवालय में माता लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करें।  - देवी लक्ष्मी पूजा में लाल सामग्रियों का विशेष महत्व है। इसी कड़ी में देवी लक्ष्मी को अन्य पूजा सामग्रियों के अर्पण से पहले नीचे लिखें मंत्र के साथ विशेष रूप से लाल चंदन लगाएं -  रक्तचंदनंसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्। मयादत्तं महालक्ष्मी चन्दनं प्रतिग्रह्यताम्।। - लाल चंदन लगाने के बाद शेष पूजा सामग्री, लाल फूल, लाल अक्षत, लाल वस्त्र, नारियल, नैवेद्य अर्पित करें।  - लक्ष्मी स्तुति या लक्ष्मी मंत्रों का स्मरण कर देवी की सुगंधित धूप व गोघृत के दीप से आरती करें।  - अंत में अपार सुख-समृद्धि की कामना करते हुए पूजा, मंत्र जप, आरती में हुई त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें।

(source) http://religion.bhaskar.com
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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इस शिव मंत्र से शुरू करें शिव पूजा, फटाफट बनेंगे काम वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्मकारणम्।[/font][/color][/size]वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम्। वन्दे सूर्यशंशाकवह्निनयनं वन्दे मुकंदप्रियम्। वन्दे भक्तजनायं च वरदं शिवं शंकरम्।।[/font][/color]

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नित्य-पूजा

    मंत्र का अर्थ इस प्रकार है कि-जिसका मनन करने से संसार का यथार्थ स्वरूप विदित हो, भव-बन्धनों से मुक्ति मिले और जो सफलता के मार्ग पर अग्रसर करे उसे ‘मन्त्र’ कहते हैं। इसी प्रकार ‘जप’ का अर्थ है- ‘ज’ का अर्थ है, जन्म का रुक जाना और ‘प’ का अर्थ है, पाप का नाश होना। इसीलिए पाप को मिटाने वाले और पुनर्जन्म प्रक्रिया रोकने वाले को ‘जप’ कहा जाता है। मन्त्र शक्ति ही देवमाता- कामधेनु है, परावाक् देवी है, विश्व-रूपिणी है, देवताओं की जननी है। देवता मन्त्रात्मक ही हैं। यही विज्ञान है। इस कामधेनु रूपी वाक्-शक्ति से हम जीवित हैं। इसके कारण ही हम बोलते और जानते हैं। मन्त्र-विद्या के महान सामर्थ्य को यदि ठीक तरह समझा जा सके और उसका समुचित प्रयोग किया जा सके तो यह आध्यात्मिक प्रयास, किसी भी भौतिक उन्नति के प्रयास से कम महत्वपूर्ण और कम लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता। मन्त्र की शक्ति का विकास जप से होता है।

    मन्त्रों की रचना विशिष्ट पद्धति से मन्त्र-शक्ति के विशेषज्ञ अनुभवी महात्माओं द्वारा की हुई होती है। उनका अर्थ गहन होता है और मन्त्र-शास्त्र के नियमों के अनुसार ही अक्षर जोड़कर मन्त्र बनाये जाते हैं और ये मन्त्र परम्परा जप के कारण से सिद्ध और अमोघ फलदायक होते हैं। ऐसे मन्त्रों को साम्प्रदायिक रीति से ग्रहण करके विशेष पद्धति से उनका जप करना होता है। पुस्तकों से मन्त्रों को पढ़ लेने मात्र से कोई विशेष लाभ नहीं होता। कुछ साधक पुस्तकों में से कोई भी मन्त्र पढ़कर कुछ दिन उसका जाप करते हैं और कुछ लाभ ना होता देखकर उसे छोड़ देते हैं और इसी तरह नये-नये मन्त्र जपते रहते हैं और फायदा ना मिलने पर निराश होते हैं। कुछ साधक कई मन्त्र एक साथ ही जपते हैं, पर इससे भी उन्हे कोई लाभ नहीं होता। कुछ साधक माला जपने को मन्त्र जाप समझते हैं और माला को यन्त्रवत् घुमाकर यह समझते हैं कि हमने हजरों या लाखों की सँख्या में जाप कर लिया, पर इतने जाप का प्रभाव पुछिये तो वह नहीं के बराबर होता है।

    मन्त्र जाप में माला का महत्त्व अधिक नहीं होता। स्मरण दिलाना और जाप सँख्या का मालूम होना, ये ही दो काम ही माला के हैं। माला स्वयं में पवित्र होती है। इसलिए साधक इसे धारण भी करते हैं। कुछ साधक माला को सम्प्रदाय का चिन्ह और पाप-नाश का साधन भी मानते हैं।

    मन्त्र जाप का अधिकार दीक्षा-विधि से ही प्राप्त होता है, यह वैदिक नियम है। इसलिये किसी योग्य गुरू से ही मन्त्र की दीक्षा लेकर ही जाप करना चाहिये। शैव-वैष्णवादि सम्प्रदायों में अनादि-काल से ही दीक्षा-विधि चली आ रही है। बहुत से व्यक्ति दीक्षा लेने को सही नहीं मानते, पर यह उनकी भूल है। कुछ साधकों कि तो यह हालत होती है कि वह मन्त्र तो किसी अन्य देवता का जपते हैं और ध्यान किसी अन्य देवता का करते हैं। इससे सिद्धि कैसे मिलेगी? यद्यपि भगवान तो एक ही है, तो भी उनके अभिव्यक्त रूप तो अलग-अलग हैं।

    अपनी अभिरुचि के अनुसार, परन्तु शास्त्र-विधि को छोड़े बिना किसी भी मार्ग का अवलम्बन करने से हमें शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। इसलिऐ मन्त्र-दीक्षा, विधि-विधान से ही लेनी चाहिये। मन्त्र-दीक्षा के लिये शुभ-समय, पवित्र-स्थान और चित्त में उत्साह होने की बड़ी आवश्यकता है। मन्त्र-दीक्षा लेने के पश्चात मन्त्र-जाप को प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में अवश्य जपें।

    महर्षि-पातञ्जलि ने अपने योग-सूत्रों में मन्त्र-सिद्धि को माना है, और यह कहा है कि इष्ट-मन्त्र के जाप से इष्ट-देव के दर्शन सम्भव होते हैं। प्रणव(ॐ) मुख्य मन्त्र है और उसके अर्थ की भावना करते हुऐ उसका जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है, यह महर्षि-पातञ्जलि बतलाते हैं।

    प्रणव-जाप का महत्व भगवान-मनु ने भी बतलाया है। कारण, प्रणव वेदों का मूल हैं। श्रुति में भी प्रणव की महिमा गायी गयी है। प्रणव के बाद गायत्री-मन्त्र का महत्व है। यह वैदिक मन्त्र है और सभी ने इसकी महिमा बतलाई है। यह मन्त्र सब सिद्धियों को देने वाला है, और द्विज-जातिमात्र को इसका अधिकार है।

    इसके बाद विभिन्न मन्त्र आते हैं और इन्हीं का आजकल विशेष प्रचार-प्रसार है। कारण, इनका उच्चारण सुगम है और इनका अर्थ भी जल्दी समझ में आ जाता है। नियम-आदि भी कोई विशेष नहीं हैं। किन्तु इन मन्त्रो का जाप करने वाले ही बता सकते है कि उन्हे किताना फायदा मिला है। मन्त्र चाहे वैदिक हो, पौराणिक हो या तान्त्रिक हो, बिना नियम के किसी भी मन्त्र का कोई फायदा नहीं है। जो साधक निष्काम-भक्ति एवं मोक्ष-प्राप्ति को अपना लक्ष्य मानते है, उन के लिऐ कोई विशेष नियम नहीं है, परन्तु जो साधक सकाम भक्ति, भौतिक सुखों कि प्राप्ति एवं सिद्धि प्राप्ति हेतु मंत्र-साधना करना चहाते हैं या करते हैं, उनके लिऐ नियम बहुत आवश्यक है।

    मन्त्र-जाप में नियमों का अर्थ ये नहीं है कि आप हठ-योग के कठिन आसनों एवं मुद्राओं का प्रयोग करे। हमने अपने सालो के अनुभव में यह पाया कि साधक थोड़े से साधारण नियम और सबसे जरूरी- मन्त्रों का लयबद्ध होना, इसके द्वारा साधक बहुत कम समय में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। हमने अनेकों साधकों को ये प्रयोग करवाये, जिससे उन्हे बहुत ही ज्यादा लाभ हुआ। पहले जो वो अपने तरीके से साधना करते थे, और उस साधना से अनेकों साधकों को अनेकों प्रकार कि मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। जहाँ वह लम्बे-चोड़े विधानों में उलझ हुऐ थे, वहीं हमारे द्वारा बताऐ हुऐ नियमों से उनकी तमाम परेशानी हमेशा-हमेशा के लिऐ समाप्त हो गई। सभी साधकों के हितों का ख्याल रखते हुऐ, पहली बार हम उन सभी नियमों और तरीकों को लिख रहे है, जो आज तक न तो कहीं लिखे गऐ और न ही कोई भी गुरू अपने शिष्यों को बताना चाहता है। हम अपने सभी साधकों के लिये सबसे सरल कुछ विधान लिख रहें हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार उनका चुनाव कर सकते है।

    पहला विधान-
    1 पद्मासन या सुखासन में बैठें।
    2 अपने दायें हाथ को घी का दीपक एवं जल का पात्र (लोटा) रखें।
    3 गुरू मन्त्र का 5 बार जाप करें।
    4 गणेश मंत्र का 5 बार जाप करें।
    5 गायत्री मंत्र का 28/108 बार जाप करें।
    6 अपने इष्ट के मंत्र का आवश्यकता अनुसार जाप करें।
    7 अपने इष्ट देव की आरती करें।
    8 क्षमा प्रार्थना एवं शान्ति पाठ करें।

    दूसरा विधान-
    1 पद्मासन या सुखासन में बैठें।
    2 अपने दायें हाथ को घी का दीपक एवं जल का पात्र (लोटा) रखें।
    3 गुरू मन्त्र का 5 बार जाप करें।
    4 गणेश मंत्र का 5 बार जाप करें।
    5 रक्षा मंत्र का 11 बार जाप करें।
    6 नवग्रह मंत्र का 3 बार जाप करें।
    7 गायत्री मंत्र का 28/108 बार जाप करें।
    8 अपने इष्ट के मंत्र का आवश्यकता अनुसार जाप करें।
    9 अपने इष्ट देव की आरती करें।
    10 क्षमा प्रार्थना स्तुति एवं शान्ति पाठ करें।

    तीसरा विधान-
    1 पद्मासन या सुखासन में बैठें।
    2 अपने दायें हाथ को घी का दीपक एवं जल का पात्र (लोटा) रखें।
    3 आचमन और संकल्प करें।
    4 गुरू मन्त्र का 5 बार जाप करें।
    5 श्री संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् का 1 बार पाठ करें।
    6 श्रीबटुक भैरव अष्टोत्तरशत नामावलिः का 1 बार पाठ करें।
    7 नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें।
    8 गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करें।
    9 अपने इष्ट के मंत्र का आवश्यकता अनुसार जाप करें।
    10अपने इष्ट देव की आरती करे एवं पुष्पाँजलि करें।
    11 क्षमा प्रार्थना स्तुति एवं शान्ति पाठ करें।

    पूजा से संबधित विभिन्न मन्त्र
    आचमन मंत्र
    निम्न मंत्र का जाप करके तीन बार जल पीये एवं हाथ धो ले।
    ॥शन्नो देवीर अभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभि स्त्रवन्तु नः॥

http://www.alakhniranjan.org/NityaPooja.html

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संकल्प-मन्त्र

हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र को पढ़कर संकल्प करें।
ॐ विष्णुर्विष्णुविर्ष्णुः ॐ तत्सत् अद्यैतस्य विष्णोराज्ञया जगत् सृष्टि कर्मणि प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीय परार्द्वे श्रीश्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत् प्रथम चरने जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे अमुक क्षेत्रे अमुक स्थाने बौद्धावतारे अमुक नाम संवत्सरे उत्तरायणे/दक्षिणायने अमुक ॠतौ अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुक गौत्रे अमुक नाम शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्ति अर्थे अमुक देव (अपने इष्ट देव या जिस देव की पूजा करनी हो उसके नाम का उच्चारण करें।) पूजनम् करिष्ये।
संकल्प मंत्र को पढ़कर हाथ का जल भूमि पर छोड़ दे।

        ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ गुरू मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
        ॐ श्री गुरूवे नमः ॥
        या
        ॐ गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूदेवो महेश्वरः।
        गुरूर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः॥

        ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ श्रीगणेश मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
        ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
        या
        ॐ गणानाम् त्वा गणपतिम् हवामहे प्रियाणाम्।
        त्वा प्रियपतिम् हवामहे निधीनाम् त्वा निधिपतिम् हवामहे वसोमम्।
        आहम जानि गर्ब्भधम् त्वम् अजासि गर्ब्भधम्॥
        या
        ॐ नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्य वो नमो नमो व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्य
        वो नमो नमो विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः॥

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ॐ ॐ ॐ ॥ श्री संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् ॥ ॐ ॐ ॐ
 
 प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
 भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुष्कामार्थ सिद्धये॥१॥
 प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
 तृतीयं कृष्ण-पिंगलाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥२॥
 लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
 सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
 नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
 एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥


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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ रक्षा मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ खं ब्रह्म नमः॥
या
ॐ ॐ ॐ ॥ श्रीबटुक भैरवाष्टोत्तर शतनामवलिः ॥ ॐ ॐ ॐ

ॐ ह्रीं भैरवो भूतनाथाशच भूतात्मा भूतभावन।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्॥१॥
श्मशान वासी मांसाशी खर्पराशी स्मरांतकः।
रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धिसेवित॥२॥
कंकालः कालशमनः कलाकाष्टातनु कविः।
त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः॥३॥
शूलपाणिः खङ्गपाणिः कंकाली धूम्रलोचनः।
अभीरूर भैरवीनाथो भूतपो योगिनीपतिः॥४॥
धनदो अधनहारी च धनवान् प्रतिभानवान्।
नागहारो नागपाशो व्योमकेशः कपालभृत्॥५॥
कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः।
त्रिलोचनो ज्वलन्नेत्रः त्रिशिखी च त्रिलोचनः॥६॥
त्रिनेत्र तनयो डिम्भशान्तः शान्तजनप्रियः।
बटुको बहुवेशश्च खट्वांगो वरधारकः॥७॥
भूताध्यक्षः पशुपतिः भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शूरो हरिणः पांडुलोचनः॥८॥
प्रशांतः शांतिदः शुद्धः शंकर-प्रियबांधवः।
अष्टमूर्तिः निधीशश्च ज्ञान-चक्षुः तपोमयः॥९॥
अष्टाधारः षडाधारः सर्पयुक्तः शिखिसखः।
भूधरो भुधराधीशो भूपतिर भूधरात्मजः॥१०॥
कंकालधारी मुण्डी च नागयज्ञोपवीतवान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी मारणः क्षोभणः तथा॥११॥
शुद्धनीलांजन प्रख्यो दैत्यहा मुण्डभूषितः।
बलिभुग् बलिभुङ्नाथो बालो अबालपराक्रमः॥१२॥
सर्वापित्तारणो दुर्गे दुष्टभूत-निषेवितः।
कामी कलानिधि कान्तः कामिनी वशकृद् वशी॥१३॥
जगद् रक्षा करो अनन्तो माया मंत्र औषधीमयः।
सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यः प्रभविष्णुः करोतु शम्॥१४॥
ॐ ॐ ॐ ॥ इति श्री बटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामं समाप्तम् ॥ ॐ ॐ ॐ

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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रह मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

 ॐ ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमि-सुतो बुधश्च।
 गुरूश्च शुक्रः शनि राहु केतवेः सर्वे ग्रहाः शान्तिः करा भवन्तु॥
 ॐ सुर्यः शौर्यमथेन्दुर उच्च पदवीं सं मंगलः सद् बुद्धिं च बुधो
 गुरूश्च गुरूतां शुक्रः सुखं शं शनिः राहुः बाहुबलं करोतु सततं
 केतुः  कुलस्यः  उन्नतिं नित्यं  प्रीतिकरा  भवन्तु
 मम  ते  सर्वे  अनुकूला  ग्रहाः॥

 

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