Author Topic: Folk Songs Of Uttarakhand : उत्तराखण्ड के लोक गीत  (Read 88019 times)

Bhishma Kukreti

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                      राजस्थानी और गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में नारी पीड़ा

                  राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- 2


                             
                      भीष्म कुकरेती


  भारत  में तकरीबन सभी समाज में स्त्रियों को विशेष भौतिक और मानसिक कष्ट सहने पड़ते हैं । मानव जनित सामजिक कष्ट कहीं अधिक दुखदाई होते हैं ।
 लोक गीत या लोक साहित्य रचयिता की आँखें सभी कुछ देखता है और उन घटनाओं को अनुभव करता है फिर वः यथार्थ चित्रित कर डालता है और अपने अनुभवों को लोक गीतों या लोक कथनों में ढाल देता है ।
  राजस्थानी और
            राजस्थानी और  गढ़वाली-कुमाउंनी लोक गीतों में बहुओं की विभिन्न पीडाएं ह्रदय विदारक ढंग से चित्रित गया है ।



                                               राजस्थानी  लोक गीत में बहू भेदभाव पीड़ा
और सहेलिया माँ झूलण जाय, खेलण जाय ।
म्हने मण रो माँ पीसणो ।
पीसत -पीसत दुख्याँ मां मोर  ।
पीवत दुखिया माँ पैरवा  । ।
औरों ने दिया माँ बुल्का च्यार
म्हने बटल्यो मां एकलो
औरों ने मां घप्सां घप्सां खांड
म्हने घप्सों मां लूण रो
औरों माँ  पली  पली घी
मने मोरियों मां तेल रो
औरों ने मां बाटकिया बाटकिया खीर ,
म्हने बाटकी मां राब की

(गीत संकलन - श्रीमती रानी लक्ष्मी कुमारी 'चूड़ावत ' राजस्थानी लोक गीत )
उपरोक्त राजस्थानी लोक गीत में एक लडकी अपनी माँ से अपने ससुराल में उस के साथ किये गये भेदभाव, दुराव छुपाव और अन्य कष्टों की कहानी बताती है कि
हे मां ! अन्य सहेलियां तो झूलने जाती हैं , खेलने जाती हैं किन्तु मुझे मन भर अनाज पीसने और मन भर आता रोटी पकाने दिया जाता है । अनाज पीसते पीसते मेरा मोर (पृष्ठ भाग ) दर्द करने लगा है । रोटी पकाते पकाते मेरी अंगुलियाँ दर्द करने लगी हैं ।  हे मां ! ससुराल में औरों को चार चार फुल्के दिए जाते हैं जबकि मुझे छोटा फुल्का दिया जाता है । दूसरों को भर भर कर शक्कर  दिया जाता है तो मुझे केवल नमक । औरों को कटोरी भर कर घी दिया जाता है तो मुझे बूंद भर तेल । औरों को कटोरे भर भर कर खीर दी जाती है और मुझे केवल कटोरी में दलिया दिया जाता है ।
   
                          गढवाली -कुमाउंनी लोक गीतों में  बहू पीड़ा


            गढ़वाली और कुमाउंनी लोक गीतों में भी नारी खाशकर बहू पीड़ा को दर्शाने वाले दर्जनों गीत हैं और कई क्षेत्रीय गीतों का संकलन अभी बाकी है ।
निम्न गढ़वाली लोक गीत में नारी पीड़ा के कई  पक्ष दर्शाए गए हैं ।

 केकु बाबाजीन मिडिल पढायो
केकु बाबाजीन मिडिल पढायो
केकु बाबाजीन राठ  बिवायो
बाबाजीन देनी सैंडल बूट
भागन बोली झंगोरा कूट ।
बाबाजीन दे छई मखमली साड़ी
सासू नी देंदी पेट भर बाड़ी ।
जौं बैण्योंन साड़ी रौल्यों क पाणी
वा बैणि ह्वे गए राजों क राणी ।
जौं बैण्योंन काटे रौल्यों को घास
वा भूली गै राजों का पास ।
मै छंऊ बाबा राजों का लेख
तब मी पाए सौंजड्या बैख ।
दगड्या भग्यानो की जोड़ी सौंज्यड़ी
मेरी किस्मत मा बुड्या कोढ़ी ।
बांठा पुंगड़ा लड़बड़ी तोर
नी जैन बुड्या संगरादी पोर ।
बाबाजीन दे छई सोना की कांघी
सासू ना राखी छै मैना राखी ।
(गीत संकलन : डा कुसुम नौटियाल , गढ़वाली नारी : एक लोकगीतात्मक पहचान)

इस लोक गीत में दिखाया गया है कि एक आठवीं पास (जिस युग में  लडकियाँ स्कूल भी नही जाती थीं )लडकी की शादी उसके पिताजी ने लोभ में एक बुद्धे के साथ कर दी । फिर वह लडकी कह  रही है कि पिताजी ने भेंट में सैंडल दी हैं किन्तु उसके भाग्य में झंगोरा कूटना  लिखा है । द्यपि उसने आठ पास किया है किन्तु उसकी शादी अविकसित देस में हुआ है । उसके पिता  जी ने मखमली साडी दी किन्तु उसकी सास उसे पेट भर बाड़ी भी नही देती है ।
पिताजी ने भेंट में सैंडल दी हैं किन्तु उसके भाग्य में झंगोरा कुटना लिखा है । जो  बहिन दूर नदी से  पानी लाती थी उसे राजा दुल्हा मिला । जो बहिन घास लाती थी वह राजमहल में वास करती है । मेरे हाथ में राजयोग लिखा था तो मुझे बुड्ढा पति मिला । मेरी सहेलियों को जवान पति मिले तो मुझे कोढ़ी जैसा पति । मई चाहती हूँ यह बुड्ढा मर ही जाय । पिताजी ने मुझे सोने की कंघी दी किन्तु मेरी सास ने मुझे छह माह तक नंगा ही रखा
 इस तरह हम पाते हैं की राजस्थानी व गढवाली  भाषाओं के लोक गीतों में स्त्री पीड़ा या नारी के साथ दुराव -भेदभाव एक समान दर्शाए गए हैं । ऐआ लगता है कि नारी पीड़ा सभी जगह एक जैसी ही है ।
दोनों लोक गीतों में करुण रस उभर कर आया है । दोनों ही भाषाओं के लोक गीत स्त्री विमर्श पर ह्रदय विदारक चित्र उभारने में सफल हैं ।राजस्थानी और गढ़वाली के लोक गीत नारी व्यथा चित्रित करने में यथार्थ को सामने लाते हैं और ये लोक गीत अपने युग का आयना सिद्ध होते हैं ।

Copyright@ Bhishma  Kukreti 16 /8/2013


सन्दर्भ
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा शिवा नन्द नौटियाल , 1981 ,गढवाली लोकनृत्य -गीत , हिंदी साहित्य सम्मेलन , प्रयाग
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून
(राजस्थानी लोक गीतों में स्त्री पहचान ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में स्त्री पहचान ; राजस्थानी लोक गीतों में  बहू पीड़ा ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में बहू पीड़ा ;राजस्थानी लोक गीतों में करुण रस ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में करुण रस   ;राजस्थानी लोक गीतों में स्त्री दुःख ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में स्त्री दुःख ; राजस्थानी लोक गीतों में नारी पीड़ा ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में नारी पीड़ा ; राजस्थानी लोक गीतों में स्त्रियों के साथ दुराव ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में स्त्रियों के साथ दुराव ; राजस्थानी लोक गीतों में स्त्रियों के साथ भेदभाव ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में स्त्रियों के साथ भेदभाव ;राजस्थानी लोक गीतों में नारी वेदना ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में नारी बेदना ;राजस्थानी लोक गीतों में नारी कष्ट ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में नारी कष्ट ;राजस्थानी लोक गीतों में नारी विषयक हृदय विदारक चित्र ; गढ़वाली -कुमाऊंनी लोक गीतों में नारी विषयक ह्रदय विदारक चित्र - राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन श्रृखला भाग 3 में जारी … )

Bhishma Kukreti

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                  राजस्थानी गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतोंमें पूर्बज पूजा लोक गीत

                     राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- 3


                                           भीष्म कुकरेती

                   राजस्थानी लोकगीतों में पूर्बज पूजा लोक गीत


           राजस्थानी लोक गीत मर्मग्य डा जगमल सिंह लिखते हैं कि लोक जीवन में मृत व्यक्तियों की पूजा की जाती है ।  झुंझार जी की पूजा भी इसी परंपरा में आती है ।  राजस्थानी लोक गीतों के दूसरे  विद्वान व्याख्याकार मोहन लाल व्यास शास्त्री ने भी राह्स्थान में  पूर्वजों की पूजा संम्बन्धी लोक  गीतों का संकलन किया और इन लोक गीतों की व्याख्या व्याख्या भी की ।
 पूर्वजों की आत्मा का पूजन लोक परम्परा में रत जगा किया जाता है और रात्रि जागरण में पूर्वजों अथवा पितरों की गीत गाये जाते हैं ।
राजस्थानी जन मानस  विश्वास होता है कि पूर्वज पुन्ह उसी घर में जन्म लेते हैं । निम्न लोक गीत जो की पितृ  पूजा में गाया जाता है उस लोक गीत में में पूर्वज द्वारा पुनर्जनम लेने की बात की गयी है
धरम दवारे ओ रूड़ी पीपला जी
जठे पूरवज करे विचार
    xxx                 xx

जास्यां -जास्यां शंकर  पेट
तो वांरी बहु लाड्यां की खुंखां हुलस्यां जी

यह गीत रात्रि जागरण में गाया जाता है  ।
गीत का मंतव्य है कि पीपल वृक्ष के नीचे खड़े पूर्वज विचार विमर्श  करते हैं कि वे शंकर जी की पत्नी के गर्भ में जाने की बात करते हैं और कहते हैं कि उनकी पत्नी की कोख में जन्म लेकर हुलसेंगे ।
 
     पूर्वजों की पूजा हेतु राजस्थान या पौराणिक वीर पुरुषों या वीरांगनाओं के गीत भी गाये जाते हैं । इन्हें झुंझार जी गीत भी कहा जाता है (J . Kamphrst , 2008 )। पाबू जी झुंझार लोक गीतों में चौदहवीं सड़ी के वीर नायक पाबू जी लक्ष्मण के अवतार माने गए हैं याने कि पाबू जी लोक कथाओं में भी पुनर्जन्म का समावेश है ।
मेवाड़ में झुंझार देवता उसे कहा जाता है जिसने गाँव की रक्षा या गाँव के पशु रक्षा हेतु बलिदान दिया हो और मृत्यु को प्राप्त हुआ हो । जैसलमेर में झुंझार देव्ताअप्ने समय में समाज हेतु संघर्ष करता है और संघर्ष रत मृत्यु प्राप्त होता है । राजस्थान में झुंझार , भूमियो , भूमिपाल और क्षेत्रपाल या खेत्रपाल एक ही श्रेणी के देवता हैं याने ये सभी ग्राम रक्षक देवता है ।

पाबू जी  लोक गाथा की  निम्न पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि वीर पुरषों की याद में पूर्वज पूजा सम्पन होती है जैसे गढ़वाल -कुमाऊँ में 'हंत्या घडेला -  जागर' में समाज या उत्तराखंड के वीर पुरुषो को याद कर र पूजा अनुष्ठान सम्पन होता है ।


जिमदा पाला विमनाई जगजीती जुद्ध जैवमाता जगजीति
याने कि तुम दोनों (जिमदा और पाबू जी ) वीर हो , नायक हो और युद्ध जीतने में माहिर हो !
राजस्थान में भी पूर्वज पूजा का एक उदेश्य पूर्वजों की भटकती आत्माओं या अतृप्त आत्माओं को परम स्थान हेतु अनुष्ठान किये जाते हैं और वे अनुष्ठान लोक गीत शैली में होते हैं ।


                      गढ़वाली -कुमाऊनी लोक गीतों में पूर्वज पूजा
 

गढ़वाल -कुमाऊँ में पुव्जों का पूजन एक विशेष धार्मिक , अनुष्ठान और आयोजन होता है जिसे हंत्या घड्यळ कहते हैं। हंत्या घड़ेला अनुष्ठान  पूर्वज की भटकती आत्मा की शान्ति या अतृप्त आत्मा को यथोचित संतोष हेतु होता है । घडेला में जो लोक गीत गाये जाते हैं उन्हें जागर कहते हैं । घडेला का अर्थ है देवता को नचाना । जागरी डमरू और थाली बजाने के साथ जागर (धार्मिक लोक गीत ) गाते हैं और एक या कई मनुषों के शरीर पर मृतक की आत्मा घुस आती है और वह (पश्वा ) नाचता है
इन जागरों में जागर किसी ख़ास पौराणिक व्यक्ति जैसे अभिमन्यु मरण जैसी लोक गाथाओं के गायन , संगीत व नृत्य होते हैं होता है ।
मृत पूर्वजों की आत्मा शान्ति हेतु   लोक गीत रणभुत भी होते हैं जैसे कि राजस्थानी मे पाबू गीत पूजा होती है । रणभुत लोक गीतों  में क्षेत्रीय वीर पुरषों का गान होता है जैसे जीतू बगड्वाल जागर या रणरौत अथवा कैंतुरा जागर  आदि ।


   रवाईं में हंत्या  जागर -भाग

मामी तेरी छुटी पड़ी चाखोल्युं की टोल।
तेरो होलो केसों मामी इजा को पराण।
तेरो होलो केसों मामी इजा को पराण।
त्वेको आयो पड़ी मामी काल सी ओ बाण।
काल सी छिपदो मामी रीट दो सी ओ बाण।
सोची होलो मामी तै हरस देखऊं।
यख मं बैठी रो तेरो बांको माणिस।
के कालन डालि मामी जोड़ी मां बिछाऊँ।
भैर  भीतर मामी देखी ज तू अ क्वैक।
देखी भाळी जाई मामी आपड़ो बागीचा।

इस लोक गीत में एक औरत की अकाल मृत्यु  हुयी है और उस  मृतक आत्मा की शांति हेतु घड़ेला रखा जाता है । जागरी मृतक के बारे में हृदय विदारक  गाथा इस प्रकार सुनाता है -
हे प्रिय (मामी -प्रिय सूचक शब्द ) ! पक्षियों का झुण्ड अब तेरे से छूट  गया है । हे प्रिय ! तेरा माँ का ममत्व युक्त प्राण कैसा होगा  । तेरे लिए वह काल बाण कैसे आया  । यह काल छिपकर और घूम घूम कर कैसे आया होगा  । यह काल तुझे ढूंढता रहा  । तूने सोचा होगा मै अपने परिवार में सबका हर्ष देखूंगी  । यहाँ तेरा सुन्दर पति बैठा है  । किस काल ने तेरी जोड़ी में बिछोह डाला  । हे प्रिय ! तू बाहर भीतर सुदर तरह से सब जगह देख जा और भाव से अपने बगीचे (परिवार ) को देख जा  ।
इस तरह हम पाते हैं कि राजस्थानी , गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में पूर्वजों की पूजा के कई प्रकार के गीत हैं। कुछ गीत पौराणिक हैं , कुछ गीत लोक इतिहास पर आधारित है,कुछ गीत स्थानीय वीरों-नायक -नायिकाओं जो  देव तुल्य हो गये हैं या लोक देव बन गए हैं पर आधारित है और कुछ गीत अत्यंत स्थानीय  होते हैं। अतृप्त परियों आदि के गीत भी पूर्वज गीतों में आ जाते हैं ।

Copyright@ Bhishma  Kukreti 19/8/2013


सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा शिवा नन्द नौटियाल , 1981 ,गढवाली लोकनृत्य -गीत , हिंदी साहित्य सम्मेलन , प्रयाग
मोहन लाल व्यास 'शास्त्री '  (सम्पादन ) राजस्थानी लोक गीत
डा जगदीश नौडियाल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर

Bhishma Kukreti

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राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों  स्त्रैण्य शहर भ्रमण  इच्छा

                          राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- 4 


                                           भीष्म कुकरेती

                      गाँव सुंदर होते हैं । गाँव का हवा पानी साफ़ कहा जाता है । शहर  रहस्यमय  करता है । तकरीबन हरेक ग्रामवासी शहर देखने की इच्छा रखता ही है । एक स्त्री की भी इच्छा शहर घुमने की इच्छा होती ही है । राजस्थानी और गढ़वाली-कुमाउंनी ग्रामीण समाज में भी शहर भ्रमण  की इच्छा अवश्य रहती है । लोक साहित्य रचयिता तो समाज को देखता रहता है । लोक गीत रचयिता की नजरें हर समय समाज की आकांक्षाओं , , इच्छाओं , दमित इच्छाओं , प्रेम , क्रोध , आदि पर हर समय आँखें लगाये होता है और लिक गीत रचयिता की नजरों से कोई भी इच्छा छुप नही सकती हैं ।
                                 राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में स्त्रियों की शहर भ्रमण इच्छाओं का सुन्दर वर्णन हुआ है ।

                              राजस्थानी   लोकगीतों में स्त्रैण्य  शहर भ्रमण इच्छा गीत

           घर के काम काज से विवाहिता स्त्री के हाथों पर छाले पड़  गए हैं और वह अपने पति से शहर घुमने की इच्छा  व्यक्त करती है । निम्न गीत में नारी मानसिकता का पक्ष उभर कर आया है -


                 
म्हारे हाथड़िया रे बीच,
छाला पड़ गया म्हारे जी ।
मैं पालो कईयां काटूँगी ?
राखडी तो म्हारे बाप के सूंआई
तो जुठणारी गाड़ी   आवे म्हारा मारू जी । मैं पालो कईयां काटूँगी ?
जयपुर भी दिखायियो मैंने दिल्ली भी दिखायियो,
म्हाने आगरे की सैर करायियो म्हारा महारु जी । मैं …
लाडू नही भावे , मैंने बरफी नहीं भावे,
घेवरिया रे गेरी मन में आवे म्हारा मारू जी । मैं पालो कईयां काटूँगी ?
गाडी नही बैठूं मै तो मोटर नहीं बैठूं ,
मैंने फिटफिटया की सैर करायियो । मैं पालो कईयां काटूँगी ?
(पाल = खेतों में खडी  फसल या पुआल ; मारू =पति )
इस प्रचलित  राजस्थानी लोक गीत में नायिका द्वारा पाल काटने से हाथों पर छाले पड़ गए हैं और वह अपने पति से जयपुर, दिल्ली , आगरा घुमने की इच्छा व्यक्त करती है साथ में घेवरिया खाने की इच्छा व्यक्त करती है । साथ में आग्रह करती है कि उसे मोटर या गाडी से भ्रमण नही करना है अपितु फिटफिटया से शहर घूमना है । इस राजस्थानी लोक गीत में स्त्री इच्छा का सामयिक वर्णन हुआ है ।


                         गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों  स्त्रैण्य शहर भ्रमण  इच्छा

 गढवाली -कुमाऊंनी समाज में भी कृषि कार्य स्त्रियों के हाथ में ही होता है । मंगसिर और पूष महीने ही  स्त्रियों के लिए थोड़ा राहत के महीने होते हैं और इस किंचित विश्राम के समय में स्त्री अपने दिल्ली में रह रहे पति के साथ घूमना चाहती और अपना निर्णय सभी रिश्ते के सासुओं को इस प्रकार सुनाती है
कब आलो ह्यूंद  मंगसिर मैना ,
हे ज्योरू ! हे ज्योरू घुमणा कु  मीन दिल्ली जाण ।
प्यायी सिगरेट फींकि चिल्ला, घुमणा कु जाण मीन  लाल किल्ला
हे बड्या सासू , हे कक्या सासू ! घुमणा कु  मिन दिल्ली जाण ।
आलु प्याजो कु बणा इ साग आलु प्याजो कु बणाइ साग
घुमणा कु जाण मीन करोल बाग़ घुमणा कु जाण मीन करोल बाग़ ।
हे ज्योरू ! हे ज्योरू घुमणा कु  मीन दिल्ली जाण
होटल की रुटि खाण , होटल की रुटि खाण।
हे ज्योरू घुमणा कु  मीन दिल्ली जाण ।
 

 इस गीत में भी मंगसिर  महीने में फुर्सत के दिनों चर्चा है   और दिल्ली शहर का चित्र उभारा गया है साथ में होटल में खाना खाने की बात बड़े आनन्द के साथ कही गयी है ।
वास्तव में दोनों भाषाओं के इन लोक गीतों में मानवीय मनोविज्ञान का परिपूर्ण चित्रं मिलता है । किसी भी उस ग्रामीण जिसने शहर नही देखा हो उस ग्रामीण के मन में शहर के प्रति मन में जो चित्र उभरते हैं उन चित्रों और मुख्य बिम्बों को इन लोक गीतों में उभारा गया है ।

Copyright@ Bhishma  Kukreti 20/8/2013

सन्दर्भ - लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
गढवाली गीत संकलन - भीष्म कुकरेती

( राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन; राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों  स्त्रैण्य शहर भ्रमण  इच्छा; राजस्थानी लोकगीतों में स्त्री सुलभ इच्छाएं ;गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में स्त्री सुलभ इच्छाएं ; राजस्थानी  लोकगीतों में दिल्ली भ्रमण इच्छा ; गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में दिल्ली भ्रमण इच्छा )


Bhishma Kukreti

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Woman wishing her Husband Death in British English and Garhwali Folk Song

 Comparative Studies in British English and Garhwali-Kumaoni Folks Songs -1

                     Bhishma Kukreti

         The geography may differ, the color will be different in each region, the season may differ but human nature is same all across the world.
 The folk poem creators are genius in finding the inner views of their society and its members.  The following folk songs from British English and Garhwali-Kumaoni languages prove that human wishes are same.
In following British English folk song is about a woman explaining as –
Every Night when I goes to bed
I lie and throw my leg o’er his him
And my hand I clap between his thighs
But I can’t put any courage on him
I wish my husband he was dead
And in the grave I’d quickly lay him
And then I‘d try another one
That’s got a little courage in him
(From The Female Frolic, 1968)

Though, the situation is different but the same psychology comes out from a Garhwali folk song as under –
 केकु बाबाजीन मिडिल पढायो
केकु बाबाजीन मिडिल पढायो
केकु बाबाजीन राठ  बिवायो
बाबाजीन देनी सैंडल बूट
भागन बोली झंगोरा कूट ।
बाबाजीन दे छई मखमली साड़ी
सासू नी देंदी पेट भर बाड़ी ।
जौं बैण्योंन साड़ी रौल्यों क पाणी
वा बैणि ह्वे गए राजों क राणी ।
जौं बैण्योंन काटे रौल्यों को घास
वा भूली गै राजों का पास ।
मै छंऊ बाबा राजों का लेख
तब मी पाए सौंजड्या बैख ।
दगड्या भग्यानो की जोड़ी सौंज्यड़ी
मेरी किस्मत मा बुड्या कोढ़ी ।
बांठा पुंगड़ा लड़बड़ी तोर
नी जैन बुड्या संगरादी पोर ।
बाबाजीन दे छई सोना की कांघी
सासू ना राखी छै मैना राखी ।
(गीत संकलन : डा कुसुम नौटियाल , गढ़वाली नारी : एक लोकगीतात्मक पहचान)
 
The folk song states as –
O Father! Why did you make me study eighth class?
O Father! Why did you marry me to Rath region (undeveloped region) ?
My father gifted me Sandal
But my luck forced me for pounding cereal   
My father gifted me in marriage a silk Sari
But my in mother law offered me just course food
The sisters were uneducated and were busy in labor works
Those sisters are queen
The sisters did cut grass from jungle
Those sisters are queens
I was father’s darling
My husband is aged old man
My other friends got compatible husband
My husband is Old and weak as leprosy man 
I am sure my husband would not cross first of coming month
My father gifted me golden comb
My mother in law do not offer me clothing

                          Conclusion

Both the British-English folk song and Garhwali folk song are hyperbolic.
When played as drama or sung the above British-English folk song and Garhwali Traditional Song are hilarious and entertaining.
The British-English Traditional song and Garhwali folk song suggest an unhappy marriage.
The British-English Folk Song discusses bodily pleasure directly but Garhwali traditional song does not talk directly the bodily pleasure from mismatched marriage.
Wishing death for husband is just for creating witty situation in British-English Traditional Song and Garhwali folk song.

Reference for British English Folk Song
Kerry Firth, 2012 In Search of a Voice: Women in British Folk Music 1880-2011
 Copyright@ Bhishma Kukreti  bckukreti@gmail.com   20/8/2013
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Bhishma Kukreti

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 गढ़वाली-कुमाउंनी  और राजस्थानी लोकगीतों में  देवी देवताओं का  आम मानवीय आचरण
                      राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-5 


                                           भीष्म कुकरेती

   भारत में सभी देवताओं को महा नायक  प्राप्त है । फिर भी लोक साहित्य में देवताओं को मानवीय व्यवहार करते दिखाया जाता है । राजस्थानी और गढवाली लोक गीतों में  देवताओं को मानव भूमिका निभाते  दिखाया जाता है । लोक गीतों में देवता अपनी अलौकिकता छोड़  में क्षेत्रीय भौगोलिक और सामाजिक हिसाब से में मिल गये हैं । लोक गीतों में शिवजी -पार्वती , ब्रह्मा , विष्णु सभी देवगण साधारण मानव  हो जाते है । लोक साहित्य विद्वान् श्री विद्या निवास मिश्र का कथन सटीक है कि "शिव , राम , कृष्ण , सीता , कौशल्या या देवकी जैसे चरित्र भी लोक साहित्य के चौरस  उतरते ही अपनी गौरव गरिमा भूल   कर लोक बाना धारण करके लोक में ही मिल जाते हैं । यहाँ तक कि लोक का सुख -दुःख भी वे अपने ऊपर ओढ़ने लगते  हैं । उसी से लोक साहित्य की देव सृष्ठि भी , अमानवीय और अपार्थिव नहीं लगती "

                                    राजस्थानी लोकगीत  में गणेश की मानवीय भूमिका
 राजस्थान में  हैं जिसमें भगवान, देवी -देवता मनुष्य की तरह  दिखाए गए हैं । शिवजी -पार्वती प्रकरण हो या कृष्ण जीवनी संबंधित गीत हों अधिसंख्य  गीतों  में  देवी -देवताओं द्वारा मानवीय भूमिका निभाई जाती है ।
 निम्न राजस्थानी  लोक गीत मांगल्य गीत है और गीत लग्न लिखवाने के वक्त का समय वर्णन करता है। गीत में गणेश जी से अच्छा सा लगन लिखवाने से लेकर विवाह सामग्री खरीदने के लिए आग्रह किया गया है । ऐसा लगता है जैसे गणेश एक आम बराती या घराती हों -
हालो विनायक , आयां जोसी है हालां
चोखा सा लगन लिखासां ,  म्हारो बिड़द विनायक
चालो विनायक , आयां बजाज रै हालां
चोखा सा सालूड़ा मोलावसां  बिड़द विनायक



'हल हांको महादेव हल हांको ईसर '… राजस्थानी लोक गीत ( रानी चूड़ावत द्वारा सम्पादित ) में पार्वती -शिव कृषि कार्यरत हैं।

डा 'जगमल सिंह द्वारा संकलित जीमो जीमो म्हारा कान्हा   …" लोक गीत में कृष्ण का मानवीय रूप निखर कर आया है।
विवाह के अवसर पर कई राजस्थानी लोक गीतों में कई देवी देवताओं को मानव रूप में आने का न्योता दिया जाता है और  अनुष्ठान युक्त कृत्य जाता है जो साधारण मनुष्य करता है ।
 
                              गढ़वाली -कुमाउंनी लोकगीत  में देवताओं  की मानवीय भूमिका


 गढ़वाली -कुमाउंनी लोक गीतों में भी देवी -देवता साधारण मनुष्यों जैसे वर्ताव करते दीखते हैं ।
निम्न गीतों में देवताओं को मनुष्य जैसा ही माना गया है और उत्तराखंड में बसने का सुभाव दिया गया है ।
चला मेरा देवतों भै जै मै को ।
उत्तराखंड जौलां भै ।
बद्री केदार , हरी हरिद्वार ।
धौळी देवप्रयाग भै जै मै को ।
देश की धरती , मलीच ह्वे गये ।
दिल्ली का तख्त रुइलो पैदा ह्वेगे।
    अनुवाद
चलो मेरे देवताओं भै जै मै को ।
उत्तराखंड जायेंगे
बद्री केदार , हरी हरिद्वार ।
धौळी देवप्रयाग
देश की धरती अपवित्र हो गयी है ।
दिल्ली के तख्त पर रुहिले पैदा हो गये हैं ।
 गढ़वाली -कुमाउंनी लोक गीतों में अधिसंख्य लोक गीतों में भगवान और देवी -देवता मानवीय आचरण निभाते हैं जैसे - खेल गिंदवा … ' जागर लोक गीत में कृष्ण का चरवाहा वाला रूप या नंदा जात जागर लोक गीतों में नंदा और शिव आम मनुष्यों की तरह वर्ताव करते हैं ।
          इस  प्रकार के गढ़वाली -कुमाउंनी व राजस्थानी  लोक गीत दर्शाते हैं कि भक्ति का अर्थ है मिल जाना और इन लोक गीतों में भक्त व भगवान में अंतर मिट जाता है । भगवान व देवियों को भी लोक जीवन की  पर आना पड़ता है ।
विवाह के अवसर पर कई गढ़वाली -कुमाउंनी और राजस्थानी लोक गीतों में कई देवी देवताओं को मानव रूप में आने का न्योता दिया जाता है और  अनुष्ठान युक्त कृत्य जाता है जो साधारण मनुष्य करता है ।
 
Copyright@ Bhishma  Kukreti 21/8/2013



सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा -नंद किशोर हटवाल , 2009 , विनसर पब्लिशिंग कं . देहरादून (गीत अनुवाद सहित -आभार )
राजस्थानी लोक गीत में इश्वर का  मानव रूप; राजस्थानी लोक गीत में देवी देवताओं का आम मानव रूप;राजस्थानी लोक गीत में शिव  का आम मानव रूप; राजस्थानी लोक गीत में पार्वती  का आम मानव रूप; राजस्थानी लोक गीत में राम  का आम मानव रूप;राजस्थानी लोक गीत में सीता का  आम मानव रूप;राजस्थानी लोक गीत में कृष्ण का मानव रूप; राजस्थानी लोक गीत में कृष्ण का आम मानव रूप; राजस्थानी लोक गीत में गणेश का आम मानव रूप; कुमाउंनी , गढ़वाली लोक गीत में  इश्वर का आम मानव रूप; गढ़वाली लोक गीत में  शिव का आम मानव रूप; गढ़वाली लोक गीत में  पार्वती का आम मानव रूप; गढ़वाली लोक गीत में  कृष्ण का आम मानव रूप; गढ़वाली लोक गीत में राम का  आम मानव रूप; गढ़वाली लोक गीत में देवी देवताओं का आम मानव रूप; गढ़वाली लोक गीत में सीता का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में देवी देवताओं का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में देवी का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में शिव का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में नंदा देवी का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में राम का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में सीता का आम मानव रूप; कुमाउंनी  लोक गीत में कृष्ण का  आम मानव रूप श्रृंखला ……

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गढ़वाली-कुमाउंनी  व राजस्थानी लोकगीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि

                       राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-6 


                                           भीष्म कुकरेती

         बहुदेव वाद भारतीय धर्म के अपनी विशेष विशेषता है । हिन्दुओं के देवी -देवताओं की अपने अपने  प्रिय भोज्य भी हैं और भक्त उसी भाँती नैवेद्य , फूल और पत्तियाँ क्म्न्दिर में चढाते हैं ।कुछ देवता निरामिष हैं तो जुछ देवता -देवियाँ मान्शाहारी हैं ।


                                         
                                       राजस्थानी लोक भक्ति गीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि


राजस्थान में कुछ  देवी -देवता यथा भैरूं जी , माता जी ऐसे देव हैं  जो सामिष भोगी हैं और उन्हें पशु बलि चढ़ाई जाती है । निम्न लोक गीत माता जी की अर्चना संबंधित गीत है । इस राजस्थानी लोक गीत में पशु बलि याने बकरियां व पशु बलि चढ़ावा की बात लोक गीत में कही गयी है ।
थारा तो मंदरिया में कोई बाजे ए ! धोला में' लारी धारणी !
थारा तो मन्दिर में काईं बाजे ए गढ़ दांता री धारणी !
xxx                          xx
बूटिया तो कानों रे बकरियों , काला तो माथा रो भैंसों चाढूँ !
  थारे तो शरण आयोड़ो ने होरा राखि ए ! धोला में' लारी धारणी !

माता जी के ही नही भैरूं जी  बकरे लेकर भक्तों की मनोवांछा पूर्ण करते हैं और बकरे के साथ मदिरा भी नैवेद्य में चढ़ाया जाता है -
एक झडूल्या रे कारणै म्हारो जी बोले म्हाने बोल
सरतालों भैरूं अणवट नूतिया
भैरूं दूध पीजै न मदड़ो (मदिरा ) छोड़ दे
xxx
भैरूं बोकड़िया रा देवूं थानै भोग
चरतालो ओ भैरूं अणवट नूतिया ।
उपरोक्त लोक गीत में एक बंध्या स्त्री पुत्र प्राप्ति कामना से भैरव के पास गयी और मदिरा व बकरे का भोग देने को तैयार है ।

                                     गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों में नैवेद्य चढ़ावा व पशु बलि


गढ़वाली संस्कृति में कई देवी -देवताओं को सामिष व शाकाहारी नैवेद्य चढाने का रिवाज है । अठ्वाड़ में तो आठ तरह के जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है ।
निम्न लोक भक्ति गीत में देवताओं को शाकाहारी नैवद्य चढाने की बात कही गयी है ।
रे नरु फरस्वाण, मै घुघती । 
कै देवु जातरा ? मै घुघती ।
केदार जातरा ,  मैं घुघती ।
भेंटुला  क्या पांजी ? मै घुघती । 
मोरी को कंळदार , मै घुघती ।
कलेऊ क्या पांजी ? मै घुघती । 
वो च्यूड़ा -भुजला , मै घुघती । 
सामल क्या पांजी ? मै घुघती ।
कै देवू जातरा ? मै घुघती । 
भुम्याले जातरा , मै घुघती । 


रे  नरु फरस्वाण, मै घुघती ।
किस देवता की यात्रा ?मै घुघती ।
केदार की यात्रा , मै घुघती ।
भेंट क्या रखी ? मै घुघती ।
मोरी का कंलदार (पैसे ), मै घुघती ।
कलेवा क्या रखा ? मै घुघती ।
भूजे हुए चूड़े ,मै घुघती । 
सामग्री क्या रखी ? मै घुघती ।
किस देवता की यात्रा ? मै घुघती ।
भूमिपाल की यात्रा , मै घुघती । 
  रवाई क्षेत्र में प्रचलित दुर्योधन जागर में दुर्योधन देवता को बकरा और भेड़ चढ़ाने की बात इस प्रकार कही गयी है -

                  दुर्योधन पूजा लोक गीत

 

तू लाइ सच्ची हामू, देव दुर्योधन

हामू देई ताई भेड़ी, देव दुर्योधन

चार सिंगा खाडू ,देव दुर्योधन

बात रीत लाणी , देव दुर्योधन

भेड़ी देऊ भौत ,देव दुर्योधन

रवाइं क्षेत्र में दुर्योधन एक देव की तरह पूजा जाता है और उपरोक्त  भक्ति गीत इस बात का परिचायक है -

तू सच्ची बात बताना,  हे देव दुर्योधन

हम तुम्हे भेड़  देंगे , हे देव दुर्योधन

हम तुम्हे चार सीग वाला खाडू -मेढ़ा देंगे , हे देव दुर्योधन

तेरे मन्दिर में लाऊंगा ,हे देव दुर्योधन

तुम हमारे बारे में बताना , हे देव दुर्योधन

मई तुम्हे बहुत सारी भेद दूंगा , हे देव दुर्योधन

मेरी कुशलता के बारे में मालूम करते रहना  , हे देव दुर्योधन

इस प्रकार हम पाते हैं कि क्षेत्र के भक्ति लोक गीतों में शाकाहारी व मान्शाहारी नैवेद्य व बलि के गीत पाए जाते हैं



Copyright@ Bhishma  Kukreti 22/8/2013



सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा -नंद किशोर हटवाल , 2009 , विनसर पब्लिशिंग कं . देहरादून (गीत अनुवाद सहित -आभार )
सन्दर्भ: डा जगदीश नौडियाल , 2011 उत्तराखंड कि सांस्कृतिक धरोहर,विनसर पब्लिशिंग कं . देहरादून

(राजस्थानी भैरूं जी पूजा लोक गीत  पशु बलि ; राजस्थानी माता जी पूजा लोक गीत में पशु बलि ; राजस्थानी माता जी पूजा लोक गीत में नैवेद्य विषय ;राजस्थानी भैरूं जी पूजा लोक गीत में नैवेद्य ; गढ़वाली कुमाऊँ लोक गीत में नैवेद्य ;गढ़वाली कुमाऊँ लोक गीत में पशु बलि ; रवाइं -गढ़वाली लोक गीत में पशु बलि; रवाइं -गढ़वाली दुर्योधन पूजा लोक गीत में पशु बलि; गढ़वाली कुमाऊँ केदार जातरा लोक गीत में नैवेद्य ; गढ़वाली कुमाऊँ क्षेत्रपाल पूजा लोक गीत में नैवेद्य।; उत्तराखंडी पूजा लोक गीत में नैवेद्य; उत्तराखंडी पूजा लोक गीत में पशु बलि, हिमालयी पूजा लोक गीत में नैवेद्य; हिमालयी पूजा लोक गीत में पशु बलि , उत्तर भारतीय पूजा लोक गीत में पशु बलि, उत्तर भारतीय पूजा लोक गीत में नैवेद्य )


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 गढ़वाली-कुमाउंनी  व राजस्थानी धार्मिक लोकगीतों और संस्कृति पर इस्लामी धर्म प्रभाव

                       राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-7 


                                           भीष्म कुकरेती


                   भारत बहुदेव पूजक देस है । भारत में मुसलमान संतों  विभिन्न तरह से भी करता है और  परिचय धार्मिक लोक गीतों में मिलता है ।

                                  राजस्थानी धार्मिक लोकगीतों और संस्कृति पर इस्लामी धर्म प्रभाव


 राजस्थानी समाज ने भी अन्य   तरह विदेसी आकारंताओं , शासकों की सभ्यता , संस्कृति , दार्शनिकता और आध्यात्म को अपने में समाया ।  का निम्न पीर जी के  श्रद्धायुक्त , भक्ति भावना भरा से सरोवर लोक गीत इस बात का उदाहरण है कि हिन्दू  धर्म  निरप्रेक्ष धर्म है और इस धर्म में पर्याप्त लचीलापन है -
 पांचू हीरां का हाथ में गुलाब की छड़ी ।
पीरां दो न रुजगार मूं तो काल की खड़ी ।।
सातूं  पीरां हाथ में गुलाब की छड़ी ।
पीरां दो न रुजगार बंदी रात की खड़ी ।।
इस राजस्थानी लोग गीत में  पीर बाबा के लक्षण के अलावा उनसे -सुख समृद्धि की प्रार्थना की गयी है  ।
                       गढ़वाली-कुमाउंनी धार्मिक लोकगीतों और संस्कृति पर इस्लामी धर्म प्रभाव

   यद्यपि   का कुछ भाग छोड़ कर गढ़वाल और कुमाऊं पर मुसलमानी बादशाहों का राज किन्तु इस्लामी सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव गढ़वाली -कुमाउंनी समाज व संस्कृति पर पड़ा ।
निम्न सैद लोक गीत इस बात का प्रतीक है कि हिंदू धर्म कई  संस्कृतियों  का महासागर है ।
गढ़वाल कुमाऊं में मुसलमान पीरों या सैयदों को भुत के रूप में पूजा जाता है और  तम्बाकू भेंट दिया जाता है ।  प्रकार के सैयद गीत गढ़वाल -कुमाउंनी में प्रचलित हैं । एक सैद्वाळी लोक गीत की झांकी इस प्रकार है । यह एक  गीत है जिसे मुख्या जागरी गाता है व साथ में  जागरी भौण पूजते हैं । डमरू और थाली के संगीत में सैयद पश्वा  (जिस पर सैयद अत है ) नाचता है ।
                       सैद्वाळी लोक गीत

 मुख्य गायक ----------------------------------------------सहयोगी गायक

सल्लाम  वाले कुम -------------------------------------------सल्लाम वाले कुम
त्यारा वै गौड़ गाजिना ---------------------------------------सल्लाम वाले कुम
म्यारा मिंयाँ रतनागाजी ------------------------------------सल्लाम वाले कुम
तेरी वो बीबी फातिमा ----------------------------------------सल्लाम वाले कुम
तेरो वो कलमा कुरान ---------------------------------------सल्लाम वाले कुम ।
नर्तन व गीत समाप्ति के बाद जागरी या झाड़खंडी उस आत्मा से कहता है कि तुम्हारे  तुम्हारी पूजा दी गयी है , तुम्हारी इच्छानुसार भोजन व तंबाकू दिया गया है अत:  से बाहर चले जावो ।
इस तरह कहा जा सकता है की राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी समाज पर मुसलमानी संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव पड़ा जो कि लोक गीतों में भी उभर कर आया है ।




Copyright@ Bhishma  Kukreti 23/8/2013



सन्दर्भ
 
डा जगमल सिंह , 1987 ,राजस्थानी लोक गीतों के विविध रूप , विनसर प्रकाशन , दिल्ली
डा।  शिवा नन्द नौटियाल , 1981 , गढ़वाली लोकनृत्य-गीत
केशव अनुरागी , नाद नन्दिनी (अप्रकाशित )

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    गढ़वाली-कुमाउंनी  व राजस्थानी  लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय

              राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-8   


                                           भीष्म कुकरेती


                   एशिया में ढोल , ढोलक लोक  संगीत का मुख्य अंग हैं । इसीलिए लोक  ढोल या ढोलक   विषयी गीत बहुतायत से मिलते हैं । यहाँ तक कि फिल्मों में भी ढोल /ढोल विषयी गीत मिलते हैं ।



                                  राजस्थानी  लोकगीतों में ढोलक विषय


   राजस्थानी लोक गीत तन और मन से सुन्दर नारी में सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति करने कला  प्रति स्वाभाविक आकर्षण का उक सुन्दर उदाहरण है । राजस्थानी लोक गीत इंगित करता है कि गीत , संगीत और नृत्य का मानसिक प्रवृति के साथ घनिष्ठ संबंध है। एक सौन्दर्य   उपासक नारी अपने प्रिय से ढोलक बजाने का  करती है । ढोलक  बजाने के आग्रह में स्वाभाविक समर्थन भरा है । नारी कहती है कि हे प्रिय तू ढोलक ढमका और मै  तरह के श्रृंगार कर साथ चलूंगी ।



थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
मै वारी जाऊं सा। मै वारी जाऊं सा।
बलिहारी जाऊं सा । थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
बादल म्हारो लंहगा जी , किरण है मारी मगजी ।
मै तारागण रा झुमकां झुमकती चलूंसा ।।थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
चालूं तो कहियाँ चालूँ चंद्रमा म्हारे लारे,
मै कोयल कूक सुनाती चलूंसा । थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
मैं  निर्मल पानी थे म्हारो छो किनारा
मैं कामणजारी नैनों मिलाती चलूंसा  ।।
थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो ,मै वारी जाऊं सा।



                       गढ़वाली   लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय


               
             कुमाऊं- गढ़वाल में संगीत वाद्य यंत्र बजाने वाले औजी /दास, हुडक्या   व बादी व्यावसायिक जाती के होते थे । दास या औजी ढोल -दमाऊ के विशेषज्ञ होते हैं , हुडक्या हुडकी व बादी ढोलक के ज्ञाता होते थे। ढोल धार्मिक अनुष्ठानो में एक आवश्यक वाद्य यंत्र है ।
 निम्न गढ़वाली लोक गीत साक्षी है कि ढोल की थाप पर हिमालय थिरकता है ।

 ढोल बाजी , त धिम्म त धिम्म ।
 ढोल बाजी , त छन्न त छन्न ।
ढोल बाजी , त धम्म धम्म ।
ढोल बाजी , त थर्रा  त थर्रा ।
ढोल बाजी , त आजी बजै द्ये ।
ढोल बाजी , भलु प्यारु मान्यन ।
ढोल बाजी , म्येरा कान खुलीग्या ।
ढोल बाजी , म्यरा मन हरीग्यो …… ….

-------अनुवाद ------
ढोल बजा,  त  घिम्मा त घिम्मा ।
ढोल बजा,  त छन्ना त छन्ना ।
ढोल बजा,  त  घिम्मा त घिम्मा ।
ढोल बजा,  त थर्रा त थर्रा ।
ढोल बजा,  त फिर बजा दे ।
ढोल बजा,  त अच्छा प्यारा प्रतीत होता ।
ढोल बजा,  त मेरे कान खुल गए ।
ढोल बजा,  त मेरे मन का हरण हो गया । ……


कुमाउंनी  लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय
इसी तरह एक कुमाउंनी लोक गीत भी ढोल के बारे में इस प्रकार कहता है -

बिजैसार ढोल क्या बाजो ,
यो घूम -घूमा ढोल क्या बाजो
ढोल की शबद जो सुन ,
खोली को गणेश जो नाचे
बिजौ सार ढोल क्या बाजो ,
अनुवाद --

बिजैसार ढोल क्या बजा
 घूम घूमा ढोल क्या बजा
ढोल के शब्द सुनकर खोली का गणेश नाचा


संगीत में वाद्य यंत्र व उनकी धुनों का उपयोग और प्रभाव पर  राजस्थानी , गढवाली -कुमाउंनी क्षेत्रों में लोक गीत  हैं ।

Copyright@ Bhishma  Kukreti 24/8/2013


सन्दर्भ - लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून
डा शेर सिंह पांगती , जोहार के स्वर

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गढ़वाली-कुमाउंनी  व राजस्थानी  लोकगीतों में  नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण   

                                    राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-9   


                                           भीष्म कुकरेती

   सौन्दर्य नारी का प्रदत्त गुण है । सुंदर नारी में सौन्दर्य  प्रति सजकता एक स्वाभाविक गुण है । सौन्दर्य  वाले साधन आभूषण व वस्त्र प्रति आकर्षण लाजमी है । यही कारण है कि गढ़वाली -कुमाउंनी और राजस्थानी लोक गीतों में सौन्दर्य प्रसाधन माध्यमों  की मांग के गीत मिलते हैं । आभूषण  अपने व दुसरे के मन मोहित करते हैं । आभूषणो को अंग-भाग  ही मान कर चला जाता है अत: लोक में आभूषणो के प्रति आकर्षण  गीत स्वाभाविक हैं ।

                                          राजस्थानी  लोकगीतों में  नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण       

 निम्न रास्थानी लोक गीत में पति से एक नवविवाहिता सौन्दर्य साधनों की मांग करती है और बदले में समपर्ण देने की सौगंध भी खाती है ।

म्हाने , चूंदण मंगा दे ओ,  ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ घूंघट पै राखूँगी , ओ ननदी के वीरा
म्हाने बोर लो घड़ा दे ओ ,ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ माथे पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा
म्हाने हंसूली घड़ा दे ओ ,ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ छाती पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा
म्हाने चूड़लो पहरा देओ , ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ
थाने यूँ हाथां पै राखूंगी ओ ननदी के वीरा
म्हाने घाघरो सीमा दे ओ ननदी के वीरा
थाने यूँ थाने यूँ, थाने यूँ थाने यूँ
चाली पै राखूँगी ओ ननदी के वीरा

( ननदी = नणद, वीरा = भाई ,थाने =-तुम्हें, सीमा =सिलवा, हंसुली = गले का जेवर )

 इस राजस्थानी  लोक गीत में  प्रमाणित भी होता है कि प्रत्येक प्राणी अपने आकर्षण विन्दु-चिन्ह भी विकरणित करता जाता है ।


                गढ़वाली-कुमाउंनी  में नारियों का आभूषण -वस्त्र आकर्षण


  कुमाउंनी-गढ़वाली लोक गीतों ,इ आभूषण -वस्त्र आकर्षण संबंधी कई प्राचीन गीत आज भी प्रचलित हैं ।
  ----------------- चल बिंदा साइ मेरी पधानि ---------------


चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै नाक की नथुली ।
चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै आंग की अंगिया ।
तब भिना मै तेरि पधानि
 चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै कान मुनाड़ा ।
तब भिना मै तेरि पधानि।
 चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै गाळ की सूतिया ।
तब भिना मै तेरि पधानि।
 चल बिंदा साइ मेरी पधानि ।
जब ल्यालै हाथुं की चूड़ियाँ ।
तब भिना मै तेरि पधानि।

---------------------अनुवाद --------------------
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब नाक की नाथ लाओगे
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब शरीर की अंगिया लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब कान के मूंदड़े लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब गले की सुतिया लाओगे।
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
चल बिंदा  साली मेरी पधानि ।
जब हाथ की चूड़ियाँ लाओगे
तब जीजा मैं तेरी पधानि ।
 इस  हैं कि राजस्थानी और गढ़वाली-कुमाउंनी लोक गीतों में मानवीय मनोविज्ञान जैसे सौन्दर्य वृद्धि में आभूषण व वस्त्रों का योगदान , मानवीय  जन्य आभूषण आकर्षण आदि का पूरा ख़याल रखा गया है।




Copyright@ Bhishma  Kukreti 25/8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून

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कुमाउंनी-  गढ़वाली  व राजस्थानी  लोकगीतों में  पानी और पानी लाने की समस्या

                                    राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-10   


                                           भीष्म कुकरेती

                 जल जीवन है । सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने  परम्परा होती थी । राजस्थान हो या गढ़वाल -कुमाऊं  का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य होता था। भौगोलिक विशेषताओं के कारण   दोनों क्षेत्रों में पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग अलग हैं।

                               राजस्थानी  लोकगीतों में  पानी और पानी लेन की समस्या
              राजस्थान में पानी की कमी है . पानी भरने दूर कुँएँ तक जाना होता है और पानी लेन की क्या क्या समस्याएं हैं वः इस गीत में दर्शाया गया है ।

 सागर पानी लेने जाऊं ।
सागर पानी लेने जाऊं ।।
म्हारो इंगरू लो टीको , रंग उड़ उड़ जाए । सागर पानी लेने जाऊं ।
म्हारो बाजू बंद डोरा , लूमा खुल खुल जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
रतन जड़त म्हारो लूगड़ी मोती झर झर जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
हरी छींट को घाघरो मैलो होय होय जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
म्हारो कासनी सा डोला फीको पड़ -पड़ जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।

 


                         गढ़वाली-कुमाउंनी  व राजस्थानी  लोकगीतों में  पानी और पानी लाने की समस्या

 गढ़वाल -कुमाऊँ की पहाड़ियों में पानी की समस्या नही है , किन्तु दूरी एक समस्या तो थी । इसके अतिरिक्त पानी सोत्र के पास पानी अधिक होने से फिसलन भरा रास्ता एक विकट समस्या तो थी ही । गढ़वाल -कुमाऊं में पानी भरने के कई गीत प्रसिद्ध हैं। एक प्रचलित लोक गीत को देखिये
द्वी बालों को मै छै, पानी नै जाए ।
बुवारी गमस्वाली,पानी नै जाए ।
जल चिफालो , तू रड़ी  मरललै ।
भट भूटी खौंल , पानी नै जाए ।
चौमास को दिन , पानी नै जाए ।
छेपड़ा छ्ल्याल , तू छली मरलै।
भूख रै जौंल , पानी नै जाए ।
द्वी बालों को मै छै, पानी नै जाए ।
बुवारी गमस्वाली,पानी नै जाए ।
----------------अनुवाद -----------------------
दो बच्चों की मां  है , पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली , पानी भरने न जा।
रास्ता फिसलन भरा है तू फिसल कर मर जायेगी।
भट भूजकर खायेंगे , पानी भरने न जा।
मेंढक छल्याएंगे तू डॉ कर मर जायेगी।
चौमास का समय है , पानी भरने न जा।
भूखे रह जायेंगे , पानी भरने न जा।
दो बच्चों की मां  है , पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली , पानी भरने न जा।



Copyright@ Bhishma  Kukreti 26 /8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी  गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
K.S Pangti , Lonely Furrows of Borderland -गीत संकलन
 

 

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