Author Topic: Pilgrimages In Uttarakhand - उत्तराखंड के देवी देवता एव प्रसिद्ध तीर्थस्थल  (Read 64857 times)

Anil Arya / अनिल आर्य

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Anil Arya / अनिल आर्य

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Mahipal Ji, Photos pasand karne ke liye dhanyavad.
Hamare Devi Devtao ki aseem kripa se mujhe merapahad mai bar bar daura karane ka avsar prapt hota hai.
 
Jab bhi mujhe server busy nahi milega, aj ki tarah, mai apke kathananusar or bhi photos post karta rahunga
 
Sadar, 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नवीन जोशी

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लोक देवताओं की विधानसभा है ब्यानधूरा
नैनीताल : उत्तराखंड की देवभूम में स्थापित लोक देवताओं के मंदिरों के बाबत जानने सुनने के बाद आश्चर्य ही नहीं होता बल्कि आस्था से सिर भी झुक जाते हैं। जनपद नैनीताल व चम्पावत की सीमा में स्थित ब्यानधूरा का ऐड़ी देवता मंदिर भी इन्हीं मंदिरों में शामिल है। सड़क से 35 किमी दूर इस मंदिर परिसर में अकूत लोहे के धनुष-वाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र चढ़ाये गये हैं। आज भी मंदिर जाने वाले लोग धनुष-वाण चढ़ाते हैं। इस ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान सभा भी माना जाता है, जबकि ऐड़ी को महाभारत के अर्जुन के स्वरूप भी माना जाता है। ब्यानधूरा में मंदिर कितना पुराना है इसकी पुष्टि नहीं हो पायी, लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-वाणों के अकूत ढेर से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह ऐड़ी देवता का यह पौराणिक मंदिर बताया जाता है। बताया जाता है कि ऐड़ी नाम के राजा ने ब्यानधूरा में तपस्या की और देवत्व प्राप्त किया। कालान्तर में यह लोक देवताओं के राजा के रूप में पूजे जाने लगे। ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे। उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में माना जाने लगा। यहां ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-वाण तो चढ़ाये जाते हैं वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है। बताया जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी है। मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरख नाथ की धुनी भी है जहां लगातार धुनी चलती है। मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है, जिसमें जागर आयोजित होती है। मंदिर के पुजारी दयाकिशन जोशी के मुताबिक यहां तराई से लेकर पूरे कुमाऊं क्षेत्र के लोग पूजा करने आते हैं। कई लोग मंदिर को गाय दान करते हैं। मकर संक्रांति के अलावा चैत्र नवरात्र, माघी पूर्णमासी को यहां भव्य मेला लगता है। मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है। उन्होंने बताया कि मान्यता होने के बावजूद यहां आज तक यातायात की सुविधा नहीं मिल पायी है।


विनोद सिंह गढ़िया

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आस्था का केंद्र है झांकरसैम मंदिर

अल्मोड़ा। धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से झांकरसैम मंदिर प्रसिद्ध है। यहां वर्ष भर काफी संख्या में श्रद्धालु तथा पर्यटक पहुंचते हैं। विशेषकर माघ, सावन, भादो और बैशाख के महीनों में पूजा-अर्चना के लिए यहां लोगों की अधिक भीड़ रहती है। शिव रूपी सैम के इस मंदिर की मान्यता है कि सच्चे मन से की गई पूजा अर्चना से भक्तों की मुराद पूरी होती है।

प्रसिद्ध जागेश्वर धाम के निकट झांकर सैम मंदिर स्थित है। जागेश्वरधाम स्थित मंदिरों के दर्शन कर श्रद्धालु सैम देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने अवश्य ही झांकर सैम मंदिर जाते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव रूपी सैम देवता भक्तों की हर मुराद को पूरी करते हैं। झांकरसैम मंदिर का निर्माण काल जागेश्वरधाम के मंदिरों के निर्माण से पहले का (सातवीं सदी पूर्व) माना जाता है।
कहा जाता है कि जागेश्वरधाम में मंदिर निर्माण के दौरान कारीगर दिनभर जितना निर्माण करते थे अगले दिन वह ढहा मिलता था। तब भगवान महादेव ने सपने में किसी स्थानीय निवासी को जागेश्वरधाम की पूर्व दिशा में निर्जन वन में झांकर सैम की स्थापना करने का हुक्म दिया।



 

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