Author Topic: Kumaun Regiment & Garhwal Rifle - कुमाऊँ रेजिमेंट एवं गढ़वाल राइफल  (Read 101254 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This the photograph of first Indian Solider who received highest Gallery Award "Param Vir Chakra. He was from Kumaun Regiment.


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1971 के युद्व में गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजिमेंट की वीरता

भारत-पाकिस्तान के बीच 38 साल पहले हुई जंग भले ही इतिहास के पन्नों में खो गयी हो, लेकिन सैनिक बहुल उत्तराखंड में इस जंग के किस्से आज भी गर्व से सुने और सुनाये जाते हैं। गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजिमेंट की करीब डेढ़ दर्जन बटालियनों ने 1971 के इस युद्ध में हिस्सा लेकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये थे। सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. मोहन चंद भंडारी युद्ध की यादें ताजा करते हुए बताते हैं वे तब मेजर थे और पश्चिमी सीमा के छम्ब सेक्टर में तैनात सातवीं गढ़वाल राइफल्स की एक कंपनी को कमान कर रहे थे।

 गढ़वाल राइफल्स की 10 बटालियों ने इस युद्ध में भाग लिया, जिसमें 74 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। जनरल भंडारी गर्व से बताते हैं वैसे तो विभिन्न देशों के बीच में लड़ाइयां होती रही हैं, लेकिन इस लड़ाई का परिणाम ऐसा था, जिसने दुनिया का भूगोल ही बदल दिया था। एक नये राष्ट्र को जन्म दिया था। जनरल भंडारी के अनुसार यह लड़ाई एक और मायने में अलग थी। विश्वयुद्ध के बाद यह ऐसी अकेली लड़ाई थी, जिसमें दुश्मन के 93000 सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया था।

इस युद्ध की यादें उत्तराखंड के बहादुर योद्धाओं के जेहन में तो हैं ही, इसके अवशेष भी यहां हैं। भारतीय सैन्य अकादमी के संग्रहालय में रखी पाकिस्तानी जनरल एके नियाजी की वह पिस्टल भी आज भी जैटेलमैन कैडे्टस को इस महान विजय की याद दिलाकर नया जोश भर देती है। पूर्वी कमान के आर्मी कमांडर ले. जन. जगजीत सिंह अरोड़ा के नेतृत्व में नियाजी को अपने 93 हजार सैनिकों के आत्मसमर्पण करने को बाध्य होने की एक विशाल ऐतिहासिक तस्वीर भी अकादमी के संग्रहालय में लगी है।

 गढ़वाल राइफल्स की दूसरी, पांचवीं और 11वीं बटालियन ने पूर्वी सेक्टर में नियाजी की सेनाओं से मोर्चा लिया जबकि पहली, तीसरी, चौथी, छठी, सातवीं, आठवीं व दसवीं बटालियन ने पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान को धूल चटायी। रेजिमेंट की नौवीं बटालियन नेफा में चीन सीमा पर तैनात रही। युद्ध शुरू होने के दूसरे दिन ही पांचवीं गढ़वाल राइफल्स ने बांग्लादेश के हिली नामक स्थान पर दुश्मनों के जो छक्के छुड़ाये वह इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। इस अदम्य वीरता के लिए बटालियन को हिली डे बैटिल आनर से सम्मानित किया गया।

आज भी पांचवीं गढ़वाल राइफल्स इस दिन की कहानी को रोमांचक तरीके से दोहराती है। हालांकि बांग्लादेश में शेख मुजीबुर्रहमान की आवामी लीग पार्टी की जीत के बाद ही पाकिस्तानी सेना ने वहां 25 मार्च 1971 से कत्लेआम कर दिया था, लेकिन 3 दिसंबर को पाकिस्तान द्वारा पश्चिमी सीमा पर हवाई अड्डों पर बमबारी शुरू कर दी। उसके अगले ही दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने युद्ध की घोषणा कर दी।

ऐसे में यह युद्ध मात्र 14 दिन तक चला और भारतीय सेना ने पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। इस युद्ध में भारत 2998 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए जबकि पाकिस्तान को 12455 सैनिक गंवाने पड़े। भारत के घायल सैनिकों की संख्या 7986 थी जबकि पाकिस्तान के 20347 सैनिक घायल हुए।


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गौरवशाली इतिहास है 17वीं गढ़वाल राइफल का

स्थापना के पच्चीस वर्ष पूरे कर चुकी 17वीं गढ़वाल राइफल का इतिहास गौरवशाली रहा है। अपने छोटे से सफर में इस बटालियन के जवानों ने देश की रक्षा के लिए वह कर दिखाया जो एक सच्चा देश भक्त करता है। कारगिल युद्ध के दौरान इस बटालियन के 19 सिपाही और दो अधिकारी जन्म भूमि के लिए शहीद हो गए।

एक मई 1982 को 17वीं गढ़वाल राइफल का गठन किया गया। इसके बाद सेना की टुकड़ी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। सेना की बटालियन ने अभी तक केवल कारगिल के युद्ध में शामिल हुई। जिसमें पाकिस्तान के कई बंकरों को पर कब्जा जमाया तथा चोटी 5285 पर कब्जा करने में सफल रही। इस लड़ाई में 19 जवानों के साथ ही एक अधिकारी व एक जेसीओ को अपनी जान गंवानी पड़ी।

 इसके साथ ही इस बटालियन ने अब तक कई आपरेशन जिनमें गरम हवा वर्ष 1985, आपरेशन बजरंग वर्ष 1991, आपरेशन राइनो वर्ष 1996 और इसके बाद वर्ष 1999 में आपरेशन विजय के लिए कारगिल में कूच किया।

 वीरता के लिए अब तक बटालियन को एक वीर चक्र, एक शौर्य चक्र, आठ सेना मेडल, 12 चीफ आप आर्मी स्टाफ कोमेडेशन एवं 19 जनरल आफ आफीसर्स कमांड़िग कोमेडेशन अवार्ड से नवाजा गया है। बटालियन के सूबेदार मेजर रणवीर सिंह नेगी बताता कि स्थापना के सिल्वर जुबली के अवसर पर रुद्रप्रयाग में स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। जिसमें उन वीर शहीदों को याद किया जाएगा जो अभी तक की लड़ाई में शहीद हुए हैं।

 कार्यक्रम में पूर्व सैनिक भी शामिल होंगे। कारगिल में विपरीत परिस्थितियों के बाद भी सत्रहवीं गढ़वाल राइफल के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को बंकरों से हटा कर उन पर कब्जा किया। भारतीय सेना की सत्रहवीं गढ़वाल राइफल के जवानों ने विपरीत परिस्थितियों में भी दुश्मन के बंकरों पर कब्जा जमा कर साबित किया कि भारतीय सेना किसी से कम नहीं।

 

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