उस कोरे पन्ने पर लिख जाती हो तुम
भावों विचारों में तुम
सम्बंधों परिस्थितियों में मैं
तेरे लिए खोया हुआ
मैं खोया हुआ
सुख दुःख क्लेश अनुभव हुआ मुझे
आनंद यथार्थ स्वरूप मिला मुझे
संसार के सभी सुखों ने मुँह मोड़ लिया
तभी तेरे हे शब्द साक्षत्कार हुआ मुझे
हर कोने के हिस्से में तुम
खिड़की दरवाजों गलियारों में मै
तेरे लिए खोया हुआ
मैं खोया हुआ
हृदय को मेरे उन्नत करेगी
मैं जंहा चलों मेरे साथ साथ बहेगी
बनकर हवा मेरे स्वास संग
हे कविता बस तो बहेगी , बस तो बहेगी
आकाश भूमि पाताल में तुम
अपने आप से ही मैं
तेरे लिए खोया हुआ
मैं खोया हुआ
मेरे साधारण बोली का अन्तर है तू
इस हृदय के उदगारों का सागर है तू
सृष्टि की अपार संपदा की स्वमिनी तुम
अलंकार रूपक की गामिनी हो तुम
अपने ही आप बन जाती हो तुम
शब्दों शब्दों में सजकर उतर आती हो तुम
लिखना नहीं आता कुछ भी मुझे
आकर उस कोरे पन्ने पर लिख जाती हो तुम
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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