कविता जन्म अर अनुक्रमण सिद्धांत
अरस्तु कु पेरी पोएटिक्स कु गढ़वाली अनुवाद ( शब्दानुवाद ) भाग -४
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(ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
[Garhwali Translation of Peri poietikes by Aristotle (on the Art of poetry )
Based on the Translation by INGRAM BYWATER (oxford 1920) ]
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( (ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
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यु स्पष्ट च बल कविता जन्म द्वी कारणों से ह्वे, ऊं मध्ये प्रत्येक मनिख- प्रकृति भाग च। बचपन से इ अनुकरण करण मनिखौ प्रकृति म हूंद , हमम निम्न स्तर का प्राणियों तुलना म एक सुविधा च बल संसारम हम सर्वाधिक अनुकरण करण वळ प्राणी छंवा अरहम अनुकरण से इ पैल-पैल सिखदा I अर यु बि हम कुण एक प्राकृतिक (घटना ) च बल हम तै अनुकरण कार्य म आनन्द आंदो /मिल्दो I दुसर बिंदु तै अनुभव से बताये जै सक्यांद, यद्यपि क्वी विषय या वस्तु वास्तविक धरातल म दुखदायी ह्वावन, किन्तु जब यूँ तै वास्तविक रूपम कै अन्य कला म दिखाए जान्दं तो हम आनन्दित हूंदा जनकि निम्न स्तरीय जन्तु या मुर्दा I यांको स्पष्टीकरण अग्वाड़ी का तर्कों म बि मिल सकद; जकि सिखणम सबसे बिंडी आनन्द आंदो , ना केवल दार्शनिकों तै किन्तु साधरण मनुष्य तैं बि, हालांकि कम ही संख्या सै I चित्र दिखण म आनन्द को एक कारण च बल दिखणो अतिरिक्त हम वस्तु क अर्थ बि सिखदा छा, उदाहरणार्थ , वो मनिख इन तन च (या स्यु स्यु च ) I जु कैन व वस्तु पैल नि देखि हो, वैक आनन्द अनुकरणकरण रूपम चित्र म नि होलू ( आनन्द नि मीलल ) अपितु रंग या इनि इकजनी कारकों से होलू I अनुकरण, तब , हमकूण प्राकृतिक हूंद , जन – मेलोडी/मधुर गीत या मधुर कविता /गीत, अवश्य ही छंद मीटर गीत का इ ह्वाल, मूल कौशलम, अर कई क्रमगत प्रयत्नों द्वारा सुधार /विकास से, कई , अर्थात कविता की रचना सुधार से ही हून्दी I
कविता , तथापि , शीघ्र इ , कवियों मनोदशा अनुसार द्वी भागों म बंट जांदी; ऊं मध्ये अधिक गंभीर (कवि ) भद्र कार्य का प्रतिनिधित्व करदन, अर शैली भद्र व अधम कार्यो छंटनी करद। पैल पैल अभद्र प्रतिनिधि न अपशब्द युक्त / गाली गलौज वळि अभद्र कविता रच, जन हौरुंन गेय कविता या चारण कविता। हम तै होमरक निम्न स्तरै कविता , यद्यपि संभवतया तन कवि भौत संख्या म छया; उदाहरण होमर का पैथर मिल जाला, जन कि वैक (Margites) अर इनि हौरुं कविता। इन अपशब्द युक्त कविताओंम लघुचरण युक्त मीटर (दुहराव ) प्रयोग करे गे ; इलै हमर वर्तमान ढांचो लघु गुरु चरण युक्त मीटर (दुहराव ) ऊंको मीटर छौ जु अपण लघु गुरु चरण युक्त मीटर दुसरों विरुद्ध प्रयोग करदा छा। यांक फल यु ह्वे बल यूं पुरण लिख्वारों मादे कुछ ओजपूर्ण /वीर रसौ लिख्वार ह्वेन तो बाकि अपशब्दों साहित्यो लिख्वार ह्वेन। होमर की स्तिथि , तथापि , बिगळीं च: जन कि वैकि शैली गंभीर छे , कवियों का कवि, वु केवल साहित्यिक श्रेष्टता म सबसे बिगळ्यूं /अलग नि छौ, किन्तु अनुकरणम बि नाटकीयता वळ छौ, अर वी हम कुण प्रहसनौ शैली बि लै , जो अपशब्दों नाटकीयता प्रयोग से ना अपितु बेतुका नाटकीयतौ प्रयोग से; वैक Margites हमर प्रहसन म ऊनि च जन हमर करुणा (tragedy ) म Iliad अर Odyssey छन। जनि , तथापि , त्रासदी अर प्रहसन धरातल म पसर , ऊंन एक पंक्ति का कवियों तै आकर्षित कार अर एक पंक्ति का लिख्वार लघु गुरु छोड़ि प्रहसन का रचनाकार ह्वे गेन अर महाकव्य का स्थान पर हौर त्रासदी म आकर्षित ह्वे गेन, किलैकि यी द्वी नया कला माध्यम पुरण कला माध्यम से अधिक सुंदर व अधिक सम्मानजनक छा।
अब जु पूछे जाल बल रचनात्मक दृष्टि से त्रासदी कन च तो नाटकीयता दृष्टि से दिखण पोड़ल।
जन कि प्रहसन म बि ह्वे , त्रासदी बि कामचलाऊ व्यवस्था (आशु रचना ) से शुरू ह्वे अर प्रहसन व चारण गीतों रचनाकारों दगड़ लैंगिक गीत जो अबि बि हमर संस्थाओं म नगरों म ज़िंदा च । फिर यांक विकास धीरे धीरे , जु बी ऊंम छा (प्राचीन ) म हर कदम पर सुधार करिक ह्वे। वास्तव म लम्बो अवधि म परिवर्तन से पुराणी त्रासदी रुक अर आजौ प्राकृतिक रूप प्राप्त ह्वे। अस्चाइल्स द्वारा रंगमंच कलाकारों संख्या एक से द्वी कराई गे अर सामूहिक गान तै छुट/सीमित कौरिक मुख्य कलाकार कुण वार्तालाप पक्का करे गे। सोफ़ोकलस की दृश्य अर तिसरु कलाकार च। त्रासदी न महत्ता बि पायी। छुटि कथाओं अर आकर्षक स्थान पर व्यंग्यत्मक मंच न स्थान पायी, विकासौ पैंथरौ भाग म अर द्विमात्रिक चतुष्पदी से लघु गुरु चरण वळम परिवर्तन ह्वे । चतुष्पदिक प्रयोग को मुख्य कारण छौ बल या काव्य शैली व्यंग्यौ कुण उपयुक्त छे अर नाचौ कुण उपयक्त छे । जनि वाच्य माध्यम से जुड़ तनि प्राकृतिक रूप से यु सही उपयुक्त मीटर आयी। लघु गुरु चरण युक्त कविता सबसे अधिक वाच्य माध्यम च, ार हम आम बोल चल म बि प्रयोग करदां , जबकि हम भौत कम इ हेक्जामीटर (षट्पदी ) म बचल्यांदा , वो बि जब आवाज म परिवर्तन करदां । हैंको परिवर्तन छै श्रृंखला /episode म संख्या वृद्धि का। अलंकरण जुड़न, प्रवेश क विषय बड़ो च ार विस्तार की आवश्यकता च ।
चौथो भाग समाप्त
शेष अग्वाड़ी भाग - म
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
First Authentic Garhwali Translation of Peri Poetikses by Aristotle, First Ever Translation of Peri Poetikses by Aristotle in Garhwali Language., First Ever Garhwali Translation of a Greece Classics; गढ़वाली भाषा में प्रथम बार अरस्तु /अरिस्टोटल के पेरी पोएटिक्स का सुगढ़ अनुवाद , यूनानी साहित्य का प्रथम बार गढ़वाली में अनुवाद ,