भगवान सिंह जयाड़ा आज उत्तराखंड की हकीकत पर मेरु यु छोटू सी प्रयाश ,कन लगी आप तै मेरी या रचना ,,,,
******लाटू बौडी घौर******
कु होलू धारउद स्यू नौन्याल औणू ,
स्यु त मेरु अपुरु लाटू जन छ दिखेणू ,
भिन्डी साल बीटी छ स्यू घौर औणू ,
तभी त ठीक सी निछ स्यु पछन्याणु ,
बचपन मा चलिगी धौउ स्यु घौर छोड़ी ,
अब ज्वाँन व्हेकि तै आई स्यु घर बौडी ,
लाटू जब अपर घर गुठ्यारा माँ जांदू ,
ब्वॆइ बाबू का चरणु मा अपरी सेवा लांदु ,
कख चलेगी थैइ मेरा लाटा ,बोलदी ब्वॆइ,
खूब भिंटेंदी गला ,बुड्या आँखी रोई रोई ,
ब्वॆइ बाबू कु त्वे कभी ख्याल नि आई ,
तेरा बिना काटि रात हमुन घर रोई रोई ,
जै भूमि मा त्वेंन अपरू बचपन काटी ,
भूली गैई थै क्या वीं अपरी पवित्र माटी ,
सौजड्या तेरा घौर सदा औन्दु जांदा रैन ,
त्वेसण यु बुढया आँखी सदा हेरदु रैन ,
मेरी भी ब्वॆइ कुछ अपरी मजबूरी रैन ,
नी त अपर घौर किलै नि औण थौ मैन ,
बेरोजगार शाहरू मा पैली भटकणु रैंयो ,
कैई दिन भूखा पेट रातू सड़क्यों मा सेयों ,
प्रदेश दुःख बिपदा ब्वॆइ बहुत उठैन मैंन ,
निर्भैइ शहरू मा कभी नि मिलादु चैन ,
अपर भी दुःख बिपदा मा मुख मोड़ी गैन ,
अब कुछ खाणी कमौणी का दिन ऐन ,
अब द्वि बक्त की रोटी चैन सी खै सकदू ,
शुख दुःख ब्वॆइ बाबू कु अब देखि सकदू ,
भगवान् अब जू मै राजी ख़ुशी राखलू ,
घौर बौण बराबर अब औणु जाणु राखलू ,
दुःख शुख मा ब्वॆइ बाबू कु ख्याल रखलु ,
अपरी जन्म भूमि सी सदा जुड्यु रौलु ,
बार त्योहारु मा ब्वॆइ अब जरूर घर औलू ,
तेरा हाथ का पकवान तुम्हारा दगड़ा खौलू ,
कु होलू धारउद स्यू नौन्याल औणू ,
स्यु त मेरु अपुरु लाटू जन छ दिखेणू ,
द्वारा रचित >भगवान् सिंह जयाड़ा
दिनांक >१४ /०४ /२०१३
फोटो साभार >पहाड़ी दगड्या — with
सुनीता शर्मा and
20 others.
भगवान् सिंह जयाड़ा दिनांक >१४ /०४ /२०१३ फोटो साभार >पहाड़ी दगड्या" height="264" width="398">