Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 728322 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1



 सम्राट पांडु का गढ़वाल वास और 'स्पर्म डोनेसन' (वीर्य दान) का मेडिकल टूरिज्म में महत्व

-

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (उत्तराखंड में पर्यटन इतिहास )   -8


   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (History Tourism )   -8  -                   

  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series--113 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 113   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
  महाभारत महाकाव्य वास्तव में कौरव -पांडवों के मध्य युद्ध पर केंद्रित महाकाव्य है।  शांतुन के पुत्र विचित्रवीर्य की कोई संतान न होने के कारण महर्षि व्यास ने विचित्रवीर्य की  दोनों पत्नियों व एक दासी को वीर्य दान ( स्पर्म डोनेसन ) दिया और उन स्त्रियों से जन्मांध धृतराष्ट्र , पांडु रोग ग्रसित पांडु व दासी पुत्र विदुर पैदा हुए (१, २ ) . कालांतर में पांडु को हस्तिनापुर  सिंघसन मिला।. एक बार गढ़वाल भाभर (पांडुवालासोत ) में शिकार करते वक्त  पाण्डु ने एक हिरणी को मार डाला और श्राप का शिकार हो गया (२ ). पांडु रोग पीड़ित हुआ और पांडु अपनी दोनों पत्नियों को लेकर गढ़वाल भ्रमण पर चल पड़ा।
    संभवत: पांडु पांडुवालासोत  से नागशत (नागथात ) पर्वत श्रेणी से चैत्ररथ , कालकूट (कालसी ) होते हुए कई हिमालय श्रेणियां पर कर गनधमाधन , बदरी केदार श्रेणियों के पास शतश्रृंग पर्वत (वर्तमान पांडुकेश्वर ) में तपस्या करने लगा याने स्वास्थ्य  लाभ करने लगा (3 ) . अपनी मृत्यु के समय पांडु संभवतया मंदाकिनी घाटी में वास कर रहा था जहां आम व पलाश वृक्ष मिलते हैं।  महाभारत में पांडु को नागपुरश्रिप व नागपुर  सिंह कहा गया है।  हो सकता है नागपुर क्षेत्र का नाम पांडु के कारण पड़ा हो
         पांडु के स्वास्थ्य में लाभ हुआ किंतु वह स्त्री समागम व पुत्र देने में नाक़ायम ही रहा।
      पांडु के बार बार आग्रह से कुंती ने बारी बारी धर्मदेव , वायु व इंद्र से वीर्य दान लिया और युधिष्ठिर , भीम व अर्जुन पुत्रों को जन्म दिया।  पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने अश्वनीकुमारों से वीर्य दान प्राप्त किया और नकुल सहदेव को जन्म दिया।  (4 )
     पांडु व माद्री के स्वर्गारोहण पश्चात पंचों पुत्रों का लालन पोषण कुंती ने किया और पांडु पुत्रों की शिक्षा दीक्षा ऋषियों ने की। जब युधिष्ठिर सोलह वर्ष के हो गए तो कुंती अपने पुत्रों व शतशृंग के ऋषियों को साथ लेकर सत्रहवें दिन  हस्तिनापुर पंहुची।  (5 )
     महाभारत के आदिपर्व के इन अध्याय वाचन व विश्लेषण कि पांडु काल में गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म हेतु एक प्रसिद्ध क्षेत्र था तभी तो  सम्राट पांडु ने गढ़वाल को चिकित्सा प्रवास हेतु चुना।
     आदि पर्व में कुछ वृक्षों का वर्णन है जो औषधि हेतु आज भी प्रयोग में आते हैं।  पांडु एक सम्राट था  तो वः वहीं गया होगा जहां चिकत्सा व चिकित्स्क उपलब्ध रहे होंगे।  इसका सीधा अर्थ है कि पांडु की  चिकत्सा व चिकित्सा सलाह हेतु गढ़वाल में चिकत्सा व चिकत्स्क उपलब्ध थे।  पांडु काल में गढ़वाल में मेडिकल टूरिज्म विद्यमान था।
       कुंती व माद्री ने वीर्य दान लेकर पुत्रों को जन्म दिया।  माह्भारत का यह प्रकरण भी सिद्ध करता है कि गढ़वाल , उत्तराखंड में वीर्य दान या स्पर्म डोनेसन हेतु एक सशक्त संस्कृति थी।  यदि पांडु पत्नियों ने स्पर्म डोनेसन संस्कृति हेतु पुत्र प्राप्त किये तो अन्य लोगों ने भी वीर्य दान का सहारा लिया ही होगा। वाह्य लोगों द्वारा वीर्य दान से संतति जन्मना कुछ नहीं मेडिकल टूरिज्म ही है।
        फिर आदिपर्व स्पर्म डोनेसन तक ही सीमित नहीं रहा अपितु आदि पर्व में पांडु पुत्रों की स्थानीय ऋषियों द्वारा देख रेख, शिक्षा  का भी पूरा वर्णन मिलता है. आजकल डबल इनकम ग्रुप के पति -पत्नियों के बच्चों को क्रेश में भर्ती किया जाता है जहां बच्चों का लालन पोषण होता है।  पाण्डु काल में गढ़वाल में ऋषियों द्वारा पांडु पुत्रों का लालन पोषण में सहायता देना भी मेडिकल टूरिज्म का ही हिस्सा है।  पोषण शब्द ही स्वास्थ्य रक्षा का पर्यायवाची है।
 स्पर्म डोनेसन संस्कृति को भारत में संवैधानिक आज्ञा मिली हुयी है।  तथापि अभी भी वीर्य दान पर बहस बंद नहीं हुयी कि यह कार्य सही है या गलत। 
     महाभारत के आदिपर्व में पांडु प्रकरण से सिद्ध होता है कि पांडु काल में गढ़वाल -उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म में समृद्ध क्षेत्र था।
   



संदर्भ -

1 - आदिपर्व 63 , 95

2 - आदिपर्व 111 /8 -9

3 -  आदिपर्व 111 , 112 , 124

4 - आदिपर्व - 122 -123

5 - आदिपर्व 125 , 129

Copyright @ Bhishma Kukreti  9 /2 //2018

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

 
 Tourism History of Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History of Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of  Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History of Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History of Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1



 कृपाचार्य , कृपी व द्रोणाचार्य जन्मकथा और उत्तराखंड में संतानोतपत्ति पर्यटन (फर्टिलिटी टूरिज्म )

-

    Fertility Tourism in Uttarakhand in Mahabharata Era

-


उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन  -9


   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (History Tourism )     -9                   

  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series--114 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 114   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--

 महाभारत के आदिपर्व के 129 वें अध्याय में गुरु कृपाचार्य , कृपाचार्य भगनी कृपी और गुरु  द्रोणाचार्य जन्मकथाओं का उल्लेख है।
  एक आश्रम जहाँ कुरु सम्राट शांतनु आखेट हेतु आते थे वहां महर्षि गौतम पुत्र शरद्वान तपस्या करते थे। शरद्वान सरकंडे के साथ पैदा हुए थे और हर समय धनुर्वेद अध्यन , परीक्षण में लग्न रहते थे व भारी तपस्या भी करते थे । देवराज इंद्र ने जलन बस शरद्वान ऋषि की तपस्या भंग हेतु जानपदी नाम की एक देवकन्या को शरद्वान ऋषि के आश्रम में भेजा। जानपदी एक वस्त्र पहनकर ऋषि शरद्वान को रिझाने लगी।  देवकन्या देखकर ऋषि शरद्वान अति आकर्षित हुए और उनका  वीर्य स्खलन हो गया. मुनि को पता भी नहीं चला और वीर्य सरकंडों पर गिर गया, मुनि शरद्वाज  वहां से चले गए।  मुनि का वीर्य  दो भागों में बंट गया।  उस वीर्य से एक पुत्र हुआ और दुसरा पुत्री। इसी समय सम्राट शांतनु उधर आये और दोनों बच्चों को उठाकर अपने महल ले गए।  ततपश्चात ये बच्चे गुरु कृपाचार्य व कृपी नाम से प्रशिद्ध हए।
    गुरु द्रोणाचार्य की भी तकरीबन इसी तरह की कथा आदिपर्व के इसी अध्याय में है।
     गंगाद्वार (हरिद्वार ) में महर्षि भरद्वाज का आश्रम था।  एक बार महर्षि भारद्वाज अन्य ऋषियों के साथ किसी  कठोर अनुष्ठान हेतु गंगातट पर  आये ।  वहां कामवासना वशीभूत कोई अप्सरा गंगा में पहले से ही स्नान कर रही थी। उस अप्सरा के शरीर को देख भारद्वाज ऋषि आपा  खो बैठे और उनका वीर्य स्खलित हो गया।  उन्होंने उस वीर्य को यज्ञकलश (द्रोण, डुलण ) में रख दिया।  उस कलश के वीर्य से  पुत्र हुआ जिसका नाम भारद्वाज ऋषि ने द्रोण रखा। बालक द्रोण  ही बाद में कौरव पांडवों के गुरु हुए। इतिहासकार मानते हैं कि द्रोण (कलस या डुलण ) में जन्म लेने के कारण गुरु द्रोणाचार्य का नाम द्रोण नहीं पड़ा अपितु द्रोण  घाटी ( पहले सदी से पहले द्रोणी  घाटी नाम सिक्कों में मिलते हैं -डबराल उ.इ. भाग 2  , पृष्ठ 308 ) . भारद्वाज ने द्रोण को पाला व अस्त्र शस्त्र शिक्षा मुनि परुशराम से दिलवाई।
          दोनों ऋषियों (शरद्वान व भारद्वाज ) का संबंध उत्तराखंड से है।  शरद्वान आश्रम शायद सहारनपुर में कहीं  था जो जौनसार से निकट था।  भारद्वाज की कर्मस्थली तो हरिद्वार , देहरादून व भाभर था ही।
       तीनो का जन्म वीर्य  स्खलन से हुआ।  माना कि महाभारत  के समय में टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक व संस्कृति थी तो वह  तकनीक कैसे विलुप्त हो गयी ? यदि थी और जैसे सिंध सभ्यता (उत्तराखंड संदर्भ में सहारनपुर व निकट क्षेत्र ) समाप्त हुयी और विभिन्न तकनीक भी सभ्यता  समाप्ति के साथ खो गए।  पर मैं इस सिद्धांत पर विश्वास नहीं कर पाता  हूँ कि माह्भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक थी।
      मेरा अपना अनुमान है कि वीर्य दान संस्कृति के तहत ही कृपाचार्य , कृपी और द्रोणाचार्य का जन्म हुआ।  हो सकता है शकुंतला प्रकरण में विश्वामित्र जैसे ही शरद्वाज  ऋषि ने अपने बच्चों को छोड़ा हो और मुनि भारद्वाज ने लोकलाज के कारण बच्चा पैदा होने के बाद अप्सरा का त्याग किया हो।  वीर्य दान अधिक तार्किक लग रहा है कि  उन अप्सराओं/स्त्रियों  को इन मुनियों ने वीर्य दान दिया हो।  वीर्य दान के साथ अंड दान भी तो फर्टिलिटी का अंग है।  हो सकता है कि  शरद्वाज व भारद्वाज ऋषियों ने संतान प्राप्ति हेतु उन स्त्रियों से गर्भाशय प्राप्ति हेतु कोई लेन  देन  किया हो।  गर्भाशय दान में स्त्री अन्य पुरुष का बच्चा रखती है। 
    यदि टेस्ट ट्यूब तकनीक महाभारत काल में विद्यमान थी तो भी यह तय है कि उत्तराखंड में टेस्ट ट्यूब या टिस्यू कल्चर तकनीक विद्यमान था और मेडकल टूरिज्म हेतु एक प्रोडक्ट  या सेवा थी।
-
             उत्तराखंड में फर्टिलिटी टूरिज्म के तंतु

     यदि टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक केवल कल्पना है तो यह सिद्ध होता है कि उत्तराखंड में वीर्य दान का प्रसार प्रचार बाहरी क्षेत्रों में  था और जैसे पांडवों का जन्म वीर्य दान से हुआ वैसे ही कृपाचार्य , कृपी और द्रोणाचार्य का जन्म वीर्य दान से हुआ।  अगर देखें तो जौनसार भाभर या आस पास हिडम्बा से भीम पुत्र घटोत्कच , गंगाद्वार (हरिद्वार ) उलूपी से अर्जुन पुत्र बभ्रुवाहन का जन्म वीर्य दान संस्कृति के तहत ही हुआ। चूँकि इतिहास तो राजाओं का लिखा जाता है सामन्य जनता का नहीं तो यह तय है कि उत्तराखंड में वीर्य दान प्राप्ति हेतु आम लोग भी उत्तराखंड आते थे। और अगर टेस्ट ट्यूब तकनीक थी तो भी पर्यटक इस तकनीक  लाभ हेतु उत्तराखंड आते थे। 
         जो भी सत्य रहा होगा वह इतिहासकारों के जिम्मे छोड़ हम कह सकते हैं कि  संतान उत्पति हेतु अन्य क्षेत्रों से लोग उत्तराखंड आते थे और मेडिकल टूरिज्म से लाभ उठाते थे.
         फर्टिलिटी टूरिज्म में संतान इच्छुक या तो वीर्य दान देकर किसी अन्य महिला से अपनी संतान चाहता है या कोई महिला अन्य पुरुष से वीर्य दान प्राप्त कर अपनी संतान उत्पति  हेतु यात्रा करती है।
     यदि महाभारत काल में उत्तराखंड में फर्टिलिटी टूरिज्म आम बात थी तो उसके निम्न कारण रहे होंगे -
   1 - हृष्ट -पुष्ट संतान की गारंटी
    2 - स्थानीय संस्कृति में फर्टिलिटी दान को सामजिक , सांस्कृतिक व वैधानिक स्वीकृति
    3  - फर्टिलिटी /संतानोतपत्ति में सफलता का प्रतिशत अधिक होना
    4 - फर्टिलिटी /सन्तानोत्पति में दानदाता व ग्राहक का निरोग होने की गारंटी
     5  - लागत - महाभारत काल हो या वर्तमान काल हो हर कार्य की कीमत होती है।  फर्टिलिटी टूरिज्म में क्वालिटी अनुसार तुलनात्मक लागत कम होनी चाहिए
    6 - माता पिता का संतान पर अधिकार हेतु साफ़ साफ़ नियम - यदि हम शकुंतला जन्म , कृपाचार्य व कृपी जन्म का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि माता -पिताओं ने अपनी संतान ही छोड़ दी थी वहीं द्रोणाचार्य जन्म का विश्लेषण करेंगे तो इसमें माता ने संतान पर अधिकार छोड़ दिया और वह  अधिकार पिता ने लिया। शकुंतला को छोड़ कृपाचार्य , कृपी व द्रोण की माताओं की कोई पहचान नहीं मिलती है।
      कुंती और माद्री के संदर्भ में संतान का पूरा अधिकार माताओं ने लिया और वीर्यदाता पिताओं ने संतान पर अधिकार छोड़ दिया था।  किन्तु सभी पिताओं ने भविष्य में अपने पुत्रों की सहायता  की थी जैसे सूर्य व इंद्र ने।  और समाज में विदित था कि कौन किस पुरुष का पुत्र है।
   7 -उच्च वंश वीर्य प्राप्ति - हिडम्बा व उलूपी द्वारा क्रमश:  भीम व अर्जुन से संसर्ग केवल प्रेम हेतु नहीं था अपितु उच्च कुल वीर्य प्राप्ति भी था।  तभी तो भीम व अर्जुन ने अपनी संतान छोड़ दी थी।  उन संतानों पर अधिकार  माताओं का था।
   8 -सूचनाओं  की गोपनीयता  - फर्टिलिटी टूरिज्म में दानदाता/विक्रेता  व ग्राहक आपस में सूचना को गुप्त रखने या न रखने का पूरा समझौता करते हैं।  महाभारत के उत्तराखंड फर्टिलिटी टूरिज्म संदर्भ में भी सूचना की गोपनीयता हेतु समझौता हुआ दिखता है।
    महाभारत काल में उत्तराखंड में उपरोक्त फर्टिलिटी टूरिज्म  प्रिंसिपल तकरीबन वर्तमान फर्टिलिटी टूरिज्म विकास सिद्धांतो  के निकट ही थे। 
 


Copyright @ Bhishma Kukreti  10 /2 //2018 



Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

 
 Tourism History of Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History of Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of  Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History of Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History of Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Fertility Tourism in Uttarakhand, Fertility Tourism in Mahabharata     



Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

वारणावत  और मेडिकल टुरिज्म में छवि निर्माण का महत्व


उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म इतिहास व  विकास विपणन  -10



   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (History Tourism )     - 10                   

  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series--115 )   

  उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 115   

 

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
 दो दशक पहले मैंने जब विपणन प्रबंध पर लिखने की ठानी तो सर्वप्रथम महाभारत का ही अध्ययन हाथ में लिया।  महाभारत में ब्रैंडिंग व मार्केटिंग /विपणन प्रबंधन के कई आश्चर्यजनक सिद्धांत मिलते हैं। 
 माह्भारत के आदिपर्व के 142 भाग में वारणावत प्रकरण  है जो टूरिज्म  ब्रैंडिंग द्वारा छवि निर्माण का अनूठा उदाहरण है।
जब युधिष्ठिर की प्रसिद्धि ऊंचाई पर पंहुचने लगी तो दुयोधन को चिंता होने लगी कि यही हाल रहा तो उसे हस्तिनापुर राज नहीं मिलेगा। दुर्योधन ने पण्डवों की हत्त्या हेतु अपने पिता से बात की और पांडवों को वारणावत भेजने की योजना बनाई। वारणावत की पहचान जौनसार भाभर (देहरादून ,उत्तराखंड )  से की जाती है जहां दुर्योधन के समर्थक राजा थे।  पांडव वारणावत तभी जा सकते थे जब उनके मन में वारणावत के प्रति अच्छी ,आकर्षक छवि/ धारणा  बनती। 
   मेरा मानना  है कि राजा दुर्योधन बुद्धिमान थे उनकी बुद्धिमता महाभारत , आदि पर्व 142 /1 से 11 से भी पुष्टहोती है। बुद्धिमान राजा दुर्योधन व उसके भाइयों ने धन व समुचित सत्कार द्वारा आमात्यों वपरभावशाली लोगों को अपने वश में किया।  वे आमात्य व प्रभावशाली लोग चारों ओर वारणावत की चर्चाकरने लगे कि---" वारणावत एक चित्तार्शक स्थल है , वारणावत नगर बहुत  सुंदर  नगर है , वारणावत में इस समय भगवान शिव पूजा हेतु एक बड़ा मेला लग रहा है।  यह मेला पृथ्वी में सबसे मनोहर मेला है। "
      आमात्य व प्रभावशाली जन यत्र तत्र चर्चा करने लगे कि वारणावत पवित्र नगर तो है , नगर में रत्नों की कोई कमी नहीं है और वारणावत मनुष्य को मोहने  वाला स्थल है।
      जब चर्चा शीर्ष (peek ) पर पंहुच गयी तो पांडवों के मन में  भी वारणावत जाने की प्रबल इच्छा हुयी। चर्चाएं वारणावत के प्रति अच्छी , मनमोहक  सकारात्मक धारणा बनाने में सफल हुईं।
    कथ्यमाने तथा रम्ये नगरे वारणावते।
   गमने पाण्डुपुत्राणां जज्ञे तत्र  मतिनृर्प।।
        बुद्धिमान दुर्योधन ने जन सम्पर्क या मॉउथ पब्लिसिटी द्वारा  पांडवों के मन , बुद्धि व अहम् (चित्त ) में सकारात्मक वारणावत की छवि(Brand Image )  बनाई और विपणन शास्त्र(मार्केटिंग साइंस ) में यह उदाहरण सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में से एक उदाहरण है।   पांडवों के चित्त (मन , बुद्धि व अहम् ) में  वारणावत एक सर्वश्रेष्ठ पर्यटक स्थल है की छवि/धारणा   दुर्योधन ने राजाज्ञा (विज्ञापन ) द्वारा न बनाकर अपितु मुंहजवानी /माउथ पब्लिसिटी द्वारा निर्मित हुयी ।
   उत्तराखंड टूरिज्म ब्रैंडिंग इतिहास दृष्टि से भी यह अध्याय महत्वपूर्ण है।  इस अध्याय से साफ़ जाहिर है कि वारणावत की पब्लिसिटी/बाइंडिंग  हस्तिनापुर राजधानी में हुआ।  राजधानी में किसी टूरिस्ट प्लेस की ब्रैंडिंग का अर्थ है टूरिस्ट प्लेस का प्रीमियम ब्रैंड में गिनती होना।  राजधानी में छवि निर्माण धीरे धीरे छोटे शहरों में गया होगा और उत्तराखंड  टूरिज्म को लाभ पंहुचा होगा।

                  बुद्धिमान राजा दुर्योधन ने पर्यटक स्थल वारणावत छवि निर्माण में निम्न सिद्धांतो का प्रयोग किया -

                          माउथ पब्लिसिटी से विश्वास जगता है

 राजाज्ञा या विज्ञापन से जरूरी नहीं है कि ग्राहक के मन में विश्वास  जगे किन्तु वर्ड -ऑफ़ -मार्केटिंग से ग्राहक के मन , बुद्धि व अहम्  (चित्त ) में सकारात्मक विश्वास या सकारात्मक धारणा बनती है ही है।
   माउथ पब्लिसिटी से चर्चा निरंतर चलती ही रहती है।  माउथ पब्लिसिटी प्रभावशाली व ग्राहक सरलता से ब्रैंड को स्वीकारते हैं।
  वर्ड ऑफ मार्केटिंग शीघ्र ही शुरुवात हो जाती है।
   माउथ पब्लिसिटी सस्ती होती है। 
      इस अध्याय से जाहिर होता है हस्तिनापुर (हरियाणा व आस पास ) में उत्तराखंड पर्यटन के प्रति सकारात्मक भाव था। 

Copyright @ Bhishma Kukreti  11 /2 //2018   




Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

 
 Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; 

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
    उत्तराखंडियों के कुछ पारम्परिक  व चेहते  पकोड़ों की  रस्याण     
-
   रुसाळ --  भीष्म  कुकरेती
-

 पंडित  नेहरू , श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद श्री नरेंद्र मोदी ही ऐसे प्रधान मंत्री हुए हैं जिनके हर शब्द आम भारतीयों के पास पंहुच जाते हैं और ये शब्द जनमानस में अपना    प्रभाव छोड़ने में कामयाब हुए हैं।श्री नरेंद्र मोदी  के शब्द डिजिटल क्रान्ति के कारण अधिक खलबली मचाने में अधिक कामयाब हुए हैं। मोदी जी के शब्द चाय पर चर्चा , पहले देवालय   फिर शौचालय ; पकोड़े  शब्दों  ने वास्तव में हर तबके  के भारतीयों को  सोचने पर  मजबूर किया है।

    आजकल ऑफलाइन ऑन लाइन में पकोड़े चर्चे में हैं  . मैं इतिहास पर कलम चलाता हूँ तो  मुझे पकोड़े के इतिहास व पकोड़ों  की किस्मों हेतु आदेस आने लगे हैं।  अभी परसों ही गाँव से व ऋषिकेश  से कुछ रिस्तेदार  एक शादी में सम्मलित होने मुंबई आये तो चर्चा पकोड़े पर अटक गयी . आश्चर्य यह है कि गाँवों में भी पकोड़ों पर नई नई कहावतें गढ़ी जा रहे हैं . ब्वारी सवोर पकोड़ा बणाण से भी प्रयोग होने लगे हैं . एक और आश्चर्य कि गाँव व ऋषिकेश या भानियावाला या थानों भोगपुर में बन वनस्पति से पकोड़े बनाने पर भी चर्चा होने लगी है और कुछ ने अभी अभी वन बनस्पति के पकोड़े भी तले व खाए .

  इसका साफ़ साफ़ अर्थ है कि जनमानस में पकोड़ों के प्रति अधिक जिज्ञासा जागी है .

  इस श्रृंखला में मैं उन पहाड़ी पकोड़ों की छ्वीं लगाउंगा जो सामान्य हैं ,  कुछ प्राचीन पकोड़े हैं  और कुछ आधुनिक पकोड़े हैं –

                      दाल के मस्यट का  गोला बनाकर भूड़ा  (पकौड़े , भजिया ) बनाना

  1-आम भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

-

उड़द के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

सूंटके भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

गहथ के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

मूँग के भूड़े  (पकोड़े , भजिया ) – भूतकाल में बिरले अब प्रचलन में हैं

2- पट्यूड़ /पटुड़ी(अधिकतर तवे में या फाणु बनाते वक्त )

गहथ के पट्यूड़

उड़द के पट्यूड़ बिरला

कच्चे मक्का के दानों से पट्यूड़ किन्तु इसे लगुड़ कहते हैं किन्तु है यह पट्युड़ ही या इन्हें टिकिया या कटलेट भी  कहा जा सकता है

-

 3-  पत्तियां , डंठल व आलण (आटा) के साथ बनने वाले पकोड़े , पत्यूड

-

  अ – गेंहू , मकई , जौ के आटे के आलणसे बनाये जाने वाली पत्यूड़

पिंडालू के पत्तों को काटकर

पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़

कद्दू , ओगळ, या अन्य  वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़

 ब – बेसन के आलण से बनने वाले पत्यूड़

पिंडालू के पत्तों को काटकर

पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़

कद्दू , ओगळ, या एनी वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़

कई फूलों  से भी पत्यूड़ बनाये जाते  हैं

स – गहथ के मस्यट से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़

विभिन्न पत्तियों, फूलों  से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़

-

   4 ----बेसन की  पकोड़ियाँ (भजिया )

 

         अ ---फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

कचनार की  पकोड़ियाँ (भजिया )

कद्दू के फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया)

 केला फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

 ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

सरसों फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

गोभी फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

बन बनस्पति फूलों  की  पकोड़ियाँ (भजिया )

ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

धनिया अदि के फूलों पकोड़े (भजिया )

    ब- फल के पकोड़े  (भजिया )

बैंगन फल के पकोड़े  (भजिया )

मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )

शिमला मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )

कच्चा केला के फल के पकोड़े  (भजिया )

कटहल के फल के पकोड़े  (भजिया )

तेंडुल  के फल के पकोड़े  (भजिया ) (बिरला )

करेला के फल के पकोड़े  (भजिया )

भिन्डी के फल के पकोड़े  (भजिया )

  स –पत्तियों , डंठल के  पकोड़े (भजिया )

पालक पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

मेथी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

राई पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

आलू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया) बिरला

धनिया पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

प्याज पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

पिंडालू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

कद्दू के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

मूला /मूली के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

ओगळ पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

फूलगोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

तैडू की पत्तियों के पकौड़े , भजिया

छीमी के पत्तों के  पकौड़े

 गाँठ  गोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

गंद्यल /कड़ी पत्ते के पकौड़े

 

दसियों वन बनस्पति की पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

   द- कंद मूल ,जड़ों के पकोड़े ( भजिया )

आलू

प्याज

अन्य कंद बंद  के  पकोड़े (भजिया)

   ध-मांसाहारी पकोड़े (भजिया )

अण्डों के पकोड़े (भजिया)

मच्छी पकोड़े (भजिया )

प्राऊन पकोड़े (भजिया )

 च -अन्य पकोड़े

 

 

 

पनीर

मशरूम

   5-  विभिन्न टिकया

आलू टिकिया

पिंडालू टिकिया

 6- बिना आलण के तली पकोड़ी या फ्राई

आलू फ्राई

पिंडालू फ्राई

मिर्च फ्राई

लहसुन फ्राई

गोभी फ्राई

अंडा फ्राई

मछली फ्राई

प्राऊन फ्राई

 

 

 

 

में सम्मलित होने मुंबई आये तो चर्चा पकोड़े पर अटक गयी . आश्चर्य यह है कि गाँवों में भी पकोड़ों पर नई नई कहावतें गढ़ी जा रहे हैं . ब्वारी सवोर पकोड़ा बणाण से भी प्रयोग होने लगे हैं . एक और आश्चर्य कि गाँव व ऋषिकेश या भानियावाला या थानों भोगपुर में बन वनस्पति से पकोड़े बनाने पर भी चर्चा होने लगी है और कुछ ने अभी अभी वन बनस्पति के पकोड़े भी तले व खाए .

  इसका साफ़ साफ़ अर्थ है कि जनमानस में पकोड़ों के प्रति अधिक जिज्ञासा जागी है .

  इस श्रृंखला में मैं उन पहाड़ी पकोड़ों की छ्वीं लगाउंगा जो सामान्य हैं व कुछ प्राचीन पकोड़े हैं –

                      दाल के मस्यट का  गोला बनाकर भूड़ा  (पकोड़े , भजिया ) बनाना

  1-आम भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

-

उड़द के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

सूंटके भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

गहथ के भूड़े  (पकोड़े , भजिया )

मूँग के भूड़े  (पकोड़े , भजिया ) – भूतकाल में बिरले अब प्रचलन में हैं

2- पट्यूड़ /पटुड़ी(अधिकतर तवे में या फाणु बनाते वक्त )

गहथ के पट्यूड़

उड़द के पट्यूड़ बिरला

कच्चे मक्का के दानों से पट्यूड़ किन्तु इसे लगुड़ कहते हैं किन्तु है यह पट्युड़ ही या इन्हें टिकिया या कटलेट भी  कहा जा सकता है

-

 3-  पत्तियां , डंठल व आलण (आटा) के साथ बनने वाले पकोड़े , पत्यूड

-

  अ – गेंहू , मकई , जौ के आटे के आलणसे बनाये जाने वाली पत्यूड़

पिंडालू के पत्तों को काटकर

पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़

कद्दू , ओगळ, या अन्य  वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़

 ब – बेसन के आलण से बनने वाले पत्यूड़

पिंडालू के पत्तों को काटकर

पिंडालू के पत्ते व कद्दू के पत्तों के पत्यूड़

कद्दू , ओगळ, या एनी वन बनस्पति के पत्तों से पत्यूड़

कई फूलों  से भी पत्यूड़ बनाये जाते  हैं

स – गहथ के मस्यट से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़

विभिन्न पत्तियों, फूलों  से बनाये जाने वाले पत्यूड़ व पट्यूड़

-

   4 ----बेसन की  पकोड़ियाँ (भजिया )

 

         अ ---फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

कचनार की  पकोड़ियाँ (भजिया )

कद्दू के फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया)

 केला फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

 ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

सरसों फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

गोभी फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

बन बनस्पति फूलों  की  पकोड़ियाँ (भजिया )

ड्रमस्टिक फूल की  पकोड़ियाँ (भजिया )

धनिया अदि के फूलों पकोड़े (भजिया )

    ब- फल के पकोड़े  (भजिया )

बैंगन फल के पकोड़े  (भजिया )

मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )

शिमला मिर्च के फल के पकोड़े  (भजिया )

कच्चा केला के फल के पकोड़े  (भजिया )

कटहल के फल के पकोड़े  (भजिया )

तेंडुल  के फल के पकोड़े  (भजिया ) (बिरला )

करेला के फल के पकोड़े  (भजिया )

भिन्डी के फल के पकोड़े  (भजिया )

  स –पत्तियों , डंठल के  पकोड़े (भजिया )

पालक पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

मेथी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

राई पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

आलू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया) बिरला

धनिया पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

प्याज पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

पिंडालू पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

कद्दू के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

मूला /मूली के पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

ओगळ पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

फूलगोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

 बंद गोभी पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

 

 

दसियों वन बनस्पति की पत्तियों के  पकोड़े (भजिया)

   द- कंद मूल ,जड़ों के पकोड़े ( भजिया )

आलू

प्याज

अन्य कंद बंद  के  पकोड़े (भजिया)

   ध-मांसाहारी पकोड़े (भजिया )

अण्डों के पकोड़े (भजिया)

मच्छी पकोड़े (भजिया )

प्राऊन पकोड़े (भजिया )

 च -अन्य पकोड़े

 

 

 

 

 

पनीर

मशरूम

   5-  विभिन्न टिकया

आलू टिकिया

पिंडालू टिकिया

 6- बिना आलण के तली पकोड़ी या फ्राई

आलू फ्राई

पिंडालू फ्राई

मिर्च फ्राई

लहसुन फ्राई

गोभी फ्राई

अंडा फ्राई

मछली फ्राई

प्राऊन फ्राई

 

 


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

  पांडवो के गढ़वाली पुरोहित धौम्य और आज के पंडे व बद्रीनाथ -केदारनाथ  के धर्माधिकारी
-
(महाभारत  काल में उत्तराखंड में मेडकल टूरिज्म )
  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -11



   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )     - 11                   

  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--116 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 116   

 

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
  महाभारत में जतुगृह पर्व में पांडवों द्वारा दुर्योधन नियोजित  लाक्षागृह में ठहरना , वारणावत में शिव पूजन मेले का आनंद लेना व लाक्षागृह के जलने व पांडवों का बच निकलने का उल्लेख है।  यहां से पांडव कुंती सहित उत्तराखंड के वनों में छुप गए व विचरण करते रहे। हिडम्बवध पर्व में पांडव दक्षिण पश्चिम उत्तराखंड के जंगलों में गमन करते रहे।  यहां भीम द्वारा हिडम्ब  का वध करना , हिडम्बा के आग्रह पर भीम द्वारा हिडम्बा से विवाह करना प्रकरण है और फिर मत्स्य , त्रिगत , पंचाल , कीचक जनपदों से होते हुए एकाचक्र नगरी  (वर्तमान चकरौता ) पंहुचने की कथा है।  बकवध पर्व में एकचक्र नगरी में भीम द्वारा बकासुर वध का वर्णन है। 
               चैत्र रथ पर्व में पांडवों का एकचक्र में ब्राह्मणों द्वारा पांडवों को विभिन्न नीतियों का वर्णन है।  द्रौपदी स्वयंबर की सूचना मिलने पर पांडवों का द्रौपदी स्वयंबर में भाग लेने का संकल्प की कथा भी इसी पर्व में है।
                                  राजघराना परिवार का एकचक्र में ठहरना याने चिकित्सा व्यवस्था होना

      पांडव राजघराने के सदस्य थे।  वे आदतन वहीं ठहरे होंगे जहां मेडिकल फैसिलिटी रही होंगीं।  जैसे आज के अमीर व सभ्रांत उत्तराखंड में यात्रा करते एमी वहीं ठहरते हैं जहां चिकत्सा सुविधा भी उपलब्ध हो। बहुत काल तक पांडवों का एकचक्र में ठहरने का साफ़ अर्थ है तब चकरोता में मेडिकल फैसिलिटी थीं।
-
                           पांडवो के गढ़वाली पुरोहित धौम्य और आज के पंडे व बद्रीनाथ -केदारनाथ  के धर्माधिकारी

-
   चैत्ररथ पर्व में 182 /1 -12 ) में  ऋषि देवल के भाई धौम्य ऋषि को पांडवों द्वारा पुरोहित बनाने की कथा है।  पांडवों का द्रौपदी स्वयंबर यात्रा से पहले पांडवों को पुरोहित की आवश्यकता पड़ी।  स्थानीय राजा गंधर्वराज की सूचना पर पांडव ऋषि धौम्य के आश्रम उत्कोचक तीर्थ क्षेत्र में धौम्य आश्रम पंहुचे और गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य को पुरोहित बनाया। आगे जाकर धौम्य ने  पांडव -द्रौपदी विवाह , इंद्रप्रस्थ में यज्ञ में पुरोहिती ही नहीं निभायी अपितु जब पांडवों के 13 साल वनवास में भी साथ निभाया।
            धौम्य आश्रम का सीधा अर्थ है जहां ज्ञान (मनोविज्ञान ) , विज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान ) व अज्ञान ( भौतिक ज्ञान जैसे शरीर ज्ञान , सामाजिक ज्ञान , राजनीति ज्ञान समाज शास्त्र आदि ) की शिक्षा दी जाती हो।  एकचक्र (चकरौता  )के पास आश्रमों के होने से हम स्पष्टतः अनुमान लगा सकते हैं कि तब गढ़वाल में चिकित्सा शास्त्र के शिक्षण शास्त्र के संस्थान भी थे।  आज के संदर्भ में देखें तो कह सकते हैं कि चिकित्सा शास्त्र शालाओं के होने से स्वतः ही पर्यटक आकर्षित होते हैं।
                                गढ़वाली पुरोहित धौम्य द्वारा पांडवों का पुरोहित बनने का अर्थ है कि उत्तराखंड पर्यटन , उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म को एक प्रबल जनसम्पर्क आधार मिलना।  ऋषि धौम्य पांडवों के आजीवन पूजहित रहे।  गढवाली पुरोहित ऋषि धौम्य का पांडवों का आजीवन पुरोहित बनने का अर्थ है  कि उत्तराखंड टूरिज्म का हस्तिनापुर ही नही अन्य क्षेत्रों में भी मुंह जवानी (वर्ड टु माउथ) प्रचार हुआ होगा।  प्रीमियम ग्राहकों का पुरोहित बनने का सीधा अर्थ प्रीमियम ग्राहकों के मध्य सकारात्मक छवि /धारणा बनना है।
     किसी भी पर्यटक क्षेत्र को हर समय ब्रैंड ऐम्बेस्डर की आवश्यकता पड़ती है।  पांडव काल में गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य उत्तराखंड टूरिज्म के ब्रैंड ऐम्बेस्डरों में से एक प्रभावशली राजदूत थे।
              वर्तमान संदर्भ में देखें तो आज भी चार धामों के धर्माधिकारी , फिक्वाळ  ( दक्षिण गढ़वाल में गंगोत्री -यमनोत्री के पंडों को कहा जाता है )  , पंडे व अन्य पुरोहित उत्तराखंड टूरिज्म (मेडिकल सह ) के आवश्यक अंग हैं और जनसम्पर्क हेतु आवश्यक कड़ी हैं।  मैं अपने सेल्स लाइन में कई स्थानों जैसे जलगांव महाराष्ट्र , विशाखा पटनम (आंध्र ), चेन्नई , गुजरात , इंदौर में फिक्वाळों से मला हूँ जो पुरहिति करने अपने जजमानों के यहाँ आये थे।
              बद्रीनाथ के राजकीय व पारम्परिक मुख्य धर्माधिकारी स्व देवी प्रसाद बहगुणा (पोखरि ) जाड़ों में जजमानों के विशेष अनुष्ठान हेतु भारत के विभिन्न शहरों में जाते थे।  बहुगुणा जी तब भी जाते थे जब परिवहन साधन बहुत कम थे।  बहगुणा जी के प्रीमियम ग्राहक ही होते थे।
       देव प्रयाग के स्व चक्रधर जोशी कई जाने माने व्यापार घरानों  के पुरोहित थे व  घरानों  प्रयाग वेध शाला बनाने में योगदान दिया। 
            आज बद्रीनाथ के धर्माधिकारी मंडल सदस्य श्री  सती जी व उनियाल जी भी अपने जजमानों को मिलने देश के विभिन्न भागों में जाते हैं।
             पंडों का तो उत्तराखंड पर्यटन विकास में सर्वाधिक योगदान रहा है।  परिहवन साधन बिहीन  युग में पंडे वास्तव में पूजा अर्चना के अलावा टूरिस्ट एजेंसी का सम्पूर्ण कार्य संभालते थे। हरिद्वार से धाम तक  और फिर धामों से हरिद्वार तक यात्री जजमानों के आवास -निवास  (चट्टियों में व्यवस्था ) , भोजन , परिहवन (कंडे , घोड़े , कुली ) व मेडिकल सुविधा आदि का पूरा इंतजाम पंडे याने उनके गुमास्ते ही देखते थे।   पंडों द्वारा पर्यटक को भूतकाल में उनके कौन से पुरखे उत्तराखंड आये थी की सूचना देना पर्यटन विकास की प्रतिष्ठा वृद्धि हेतु एक बड़ा जनसम्पर्कीय माध्यम है। 
    जनसम्पर्क के मामले व अच्छी छवि बनाने में आज भी  फिक्वाळ , पंडे , धर्माधिकारी , मंदिरों में विभिन्न पूजा अर्चना करने वाले पुरोहित उत्तराखंड पर्यटन के प्रतिष्ठा प्रचार -प्रसार में महत्ती भुमका निभाते हैं। 

                 ऋषि धौम्य से उत्तराखंड पर्यटन को प्रतिष्ठा लाभ

मेडिकल पर्यटन या अन्य प्रकार के टूरिज्म में प्रतिष्ठा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  अवश्य ही ऋषि धौम्य के पांडव पुरोहित बनने से उत्तराखंड को प्रतिष्ठा लाभ मिला होगा।  पांडव काल में ही नहीं आज भी पुरोहित धौम्य महाभारत द्वारा उत्तराखंड को प्रतिष्ठा दिला ही रहे हैं।
     ऋषि धौम्य के पांडव  पुरोहित बनने से  लोगों के मध्य उत्तराखंड के प्रति विश्वास जगा होगा और बढ़ा होगा।
     ऋषि धौम्य  ऋषि धौम्य के पांडव  पुरोहित बनने से उत्तराखंड पर्यटन आकांक्षियों में आसंजस्य की स्थति समाप्त हुयी होगी और उन्होंने  उत्तराखंड भ्रमण योजना बनाने में कोई देरी नहीं की होगी।

                     



Copyright @ Bhishma Kukreti   /2 //2018   




Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...


उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia; 

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
पांडवों द्वारा कालसी आदि विजय याने विशाल से  विशालतम की ओर और लघु से लघुतम की ओर
(महाभारत महाकाव्य में उत्तराखंड पर्यटन )
  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -12



   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )     -  12                 

  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--117 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 117   

 

    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--

     अर्जुन द्वारा पांचाल में द्रौपदी स्वयंबर में द्रौपदी जीतने व पांडवों की द्रौपदी से विवाह के के बाद पांडव  हस्तिनापुर आ  गए।  विवाह भी गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य ने सम्पन किया।  द्रौपदी पुत्रों व पांडवों के अन्य पुत्रों के विभिन्न कर्मकांड भी ऋषि धौम्य ने ही सम्पन किये ( आदि पर्व 220 /87 -88 ).
     पांडवों के हस्तिनापुर पंहुचने के बाद कौरव -पांडव अंतर्कलह रोकने हेतु राज्य का बंटवारा हुआ और पांडवों को अलग से उजाड़ बिजाड़ प्रदेश दे दिया गया जिसे पांडवों ने सहयोगियों की सहायता से ठीक प्रदेश में परिवर्तित किया व अपनी राजधानी इन्द्रप्रस्थ  में स्थापित की। युधिष्ठिर ने इन्द्रप्रस्ठ में अद्भुत सभा का निर्माण किया और राजसुत यज्ञ का आयोजन किया।  भीमसेन , अर्जुन , नकुल सहदेव को क्रमश: पूर्व , उत्तर , दक्षिण व पश्चिम दिशा दिग्विजय का भार मिला। (सभापर्व 25 ) .

   अर्जुन ने सबसे पहले निकटस्थ राज्य कुलिंद (सहारनपुर व आज के देहरादून का कुछ भाग ) सरलता से जीता व उसके बाद कालकूट (कालसी ) , आलले (तराई ) के जितने के बाद जम्मू , कश्मीर जीतकर आगे प्रस्थान किया।
-
पूर्व कुलिंदविषये बशे चक्रे महिपतीन।
धनञ्जयो महाबाहुर्नातितीब्रेण कर्मणा।। 
आनर्तान कालकूटन्श्च कुलिंदांश्च विजित्य स : ।
 सुमंडल च विजितं कृतवान सह सैनिकम। ।  (सभापर्व 26 /3 -4 )
 ग्लोबलाइजेशन प्रत्येक युग में भिन्न रूप में दृष्टिगोचर होता रहता है। पांडव -कौरव युग में ग्लोबलाइजेशन राजसत्ता के रूप मि मिलता है न कि आज के व्यापार रूप में।  पांडवों द्वारा अन्य छोटे बड़े राज्य जीतने का आज के मेडिकल टूरिज्म के संदर्भ में अर्थ है बड़ा  ब्रैंड छोटे ब्रैंड को निगलता जाएगा।
     सभापर्व के संदर्भ में कालकूट व तराई को अर्जुन ने जीता किंतु उत्तराखंड के गढ़वाल भाग के बारे में महाभारत चुप नहीं है।  गढ़वाल राजा सुभाहु पहले ही  पांडवों के पक्ष में था तो अर्जुन को गढ़वाल जीतने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
      मेडिकल टूरिज्म में भी बड़ा ब्रैंड छोटे ब्रैंड को निगलता रहता है।  यदि हम निकटम भूतकाल में जाएँ तो पाएंगे कि  बाबा कमली वाले धर्मशाला छोटे दुकानदारों याने चट्टी मालिकों को बिना कोई प्रतियोगिता के भी दर्द देते थे।  बाबा कमली वाले बड़ा धार्मिक संस्थान था तो वे आयुर्वेदिक दवाईयां भी निर्माण करते थे।  कमली वाले की दवाईयां स्वर्गाश्रम व ऋषिकेह में निर्मित होती थीं व धर्म शालाओं में जगह के साथ साथ मुफ्त में देते थे।  बड़ा संस्थान था तो उनके पास संसाधन थे तो श्रद्धालुओं को अधिक सेवा उपलब्ध करा पाने में सक्षम थे। 
     मैक्सवेल या अपोलो हॉस्पिटल्स के सामने छोटे डाक्टरों के नर्सिंग होम कमजोर साबित होंगे ही तो डॉक्टरों को भी एक्सक्लूसिव प्रोडक्ट व स्थान खोज कर व्यापार चलाना ही सही कदम माना  जायेगा।
     बैद्यनाथ , डाबर और पंतजली संस्थाओं के सामने छोटे आयुर्वेदिक व्यापारिक संस्थान असहाय  महसूस करते हैं तो अवश्य ही ये संस्थान या तो बड़ेआयुर्वैदिक संस्थानों को बड़े ब्रैंडों के  नाम पर दवाईयां निर्माण कर बड़े ब्रैंडों के सप्लायर बन गए होंगे।  या छोटे संस्थान बड़े संस्थानों के डिस्ट्रीब्यूटर बन गए होंगे।  यह भी होता है कि छोटे संस्थान उन दवाईयों का निर्माण करने लगते हैं जो बड़े ब्रैंड नहीं बना सकते हैं और एक्सक्लूजिव प्रोडक्ट बनाने से प्रतियोगिता से दूर रह पाते हैं।  अमृतधारा ब्रैंड बस एक ही प्रोडक्ट बनाकर बड़ा ब्रैंड बना है।  फिर छोटे ब्रैंड कमोडिटी प्रोडक्ट की कीमतें इतना नीचे रखते हैं कि कम प्राइस के बल पर अस्तित्व में रहते हैं। 
      उत्तराखंड ही नहीं भारत में हर चार पांच गावों के मध्य एक दो पारम्परिक पुरोहित व वैद होते थे जो मेडिकल टूरिज्म के अंग  भी थे। ऐलोपैथी के जोर के आगे न चलने से अब ु प्रकार की वैदकी नहीं चलने से पारम्परिक वैदकी संस्कृति समाप्ति की ओर है। 
      हर व्यापार का नियम है कि विशाल व्यापारी विशालतम की ओर अग्रसर होता जाता है और लघु व्यापारी लघुतम की ओर।  लघु को सदा ही वह व्यापार नहीं करना चाहिए जिसमे बड़े व्यापारी मुख्य प्रतियोगी हों अपितु उन प्रोडक्ट को चुनना चाहिए जसिमें बड़े प्रतियोगी न हों। 
  मेडिकल टूरिज्म में भी उत्तराखंड दिल्ली की नकल करेगा तो उत्तराखंड दिल्ली से प्रतियोगिता न कर पायेगा।  अतः उत्तराखंड टूरिज्म को वे प्रोडक्ट व सेवाओं में प्रवेश करना पड़ेगा जो जिन्हें अन्य प्रदेश न अपना सकें। 






                   




Copyright @ Bhishma Kukreti   13/2 //2018   

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Plants used in Lord Shiva Rituals and Worships in Uttarakhand
-
Plant Myths, Religious Importance, and Traditions in Uttarakhand (Himalaya) - 31
By: Bhishma Kukreti, M.Sc. (Botany) (Mythology, Culture Research Scholar)
-
  Mahabharata and Lord Shiva influenced the most Uttarakhand in terms of religious rituals, culture and society.
   There are following important plants for worshipping or performing Lord Shiva Rituals.-
                     Bel or Wood Apple
-
Botanical name –Aegle marmelos correa
Local name – Bel
Hindi Name –Bel, Bael
Sanskrit Name –Vilva, Bilva
Economic benefits –Fruits are used for pickle and medical uses.

                   Myths, Religious Importance and Traditions
  Bel or Wood apple is a sacred tree. The three leaves together of Wood Apple or Vilva or Bel look like trident (Trishul ) the emblem of Lord Shiva.  It is belief that these three leaves represent Shiva for s ‘Creation’, Preservation’ and ‘Destruction’.  The three leaves of Bel or wood apple as Sin removers too. People pay tribute to Lord Shiva in his temple by offering Vilva/bel leaves as bilpatri/belpatri on Shiv Linga
 Shiva devotees worship bel tree in moths as Marshirsha and  Falgun. .
  In Banhadadharma Puran, the sacred tree came in existence from the cut breast of Lakshmi while she was worshiping Shiva.That is why bel fruit is called fruit of destiny.
 As Banhi Puran, Lakshmi was cow in a birth and from her dung, Bel tree was born.
 There are stories about bel related to Lord Rama too.
In Skand Puran, the tree merged from sweat from  Parvati forehaed.
        Likewise, there are many other region wise folk stories and stories of  legends connected with Bel tree in Shiv Puran, Garur Purans,.
  Ritual Performers use Bel wood for Homa or havan.
 There are more than 108 mantras for offering belpatra on Shiva Linga.

Myths, Religious Uses and Traditions about Plant Ak , Milk Weed  for Lord Shiva rituals

Botanical name –Calotropis procera
Local Name – Ank, Ak
Hindi Name –Ak
Sanskrit Name – Madar
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- used in stomach ulcer, diarrhea, constipation, toothache, cramps, joint pains etc.
Furniture, Agriculture Instruments, wood etc.- Fibers from stem and was sued in making ropes, bags and paper. The plant is useful for soil fertility too.
                                            Ak for Rituals
  Ak has white flowers with blueish color touch, Therefore, the Ak is connected with the blue throat of Lord Shiva by gulping and stopping poison at the time of Samudra Manthan or ocean Churning. 
Myths, Religious Uses and Traditions about Rudraksha, Utrasum Bead Plant for Lord Shiva Rituals
      Rudrakasha beads are called tears of l Lord Shiva and people perceive Rudrakasha beads as auspeciou  beads and use in Shiva worshipping
Botanical name – Elaeocarpus granitus
Local Name – Rudraksha
Hindi Name –Rudraksha
Sanskrit Name – Rudrakasha
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- As Electromagnetic and inductive uses
         Myths, Religious Uses and Traditions about Datura Plant for Lord Shiva rituals
  Datura plants are symbolic to Lord Shiva for
Botanical name – Datura metel
Local Name – Dhatura
Hindi Name – Dhattura
Sanskrit Name –Dhattura
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- Ayurveda medicines used in curing asthma, impotency, glaucoma, urine troubles and anesthetic uses.
Myths, Religious Uses  and Traditions  about Peeli Kaner, Lucky Nut Plant for Lord Shiva rituals
   Lord Shiva liked Peeli Kaner and people offer Peele Kaner flowers to Lord Shiva
Botanical name –Thevitia peruviana
Local Name – Peeli Kaner
Hindi Name – Peeli Kaner
Sanskrit Name – Haripriya
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- A poison plant but its parts are used in Ayurveda medicines
Antifungal uses for painting trees base

Myths, Religious Uses and Traditions about Chandan, Sandal Plant for Lord Shiva rituals
             Apart from Chandan wood being used in funeral, homa /yagya, in various social functions, making agarbattis; Hindus  paste Chandan paste to Shiva Linga in three lines, People also use Chandan paste on putting on forehead. It is believed that Lord Shiva is always in highly inflammable state and it is essential to paste Chandan paste on Shiv Linga for calming down Lord Shiva.   
Botanical name – Santalum album
Local Name –Chandan
Hindi Name – Chandan
Sanskrit Name – Anindita
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- Sandal oil is used in treating skin disorder, acne, dysentery , gonorrhea and other disorder   
Myths, Religious Uses  and Traditions  about  Hemp , Cannabis Plant for Lord Shiva rituals
  People believe that Lord Shiva uses Bhang for anti-cold purpose. People also believe that Lord take hemp for lowering down his anger and for long meditation.
  On Shiv Ratri day, people take hemp juice (crushed seeds with milk and other spices).  People also take Bhang leaves Pakaude on that auspicious day.
Botanical name – Canabis sativa
Local Name –Bhang
Hindi Name –Bhang
Sanskrit Name – Bahuvadini
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- used in various Ayurveda medicines.
Furniture, Agriculture Instruments, wood etc. wood, fibers for various uses. In past hemp fiber clothing was very common In Uttarakhand
Food Uses – Important and a must spices of Uttarakhand.
Decoration -
Myths, Religious Uses and Traditions  about Ber, Jujube  Plant for Lord Shiva rituals
   People offer Jujube fruits to Lord Shiva, especially is compulsory on Shiva Ratri. People offer ber /Jujube as jujube fruit is symbolic for longevity and gratification of desire.
Botanical name –Zizyphus mauritiana
Local Name – Ber
Hindi Name –Ber
Sanskrit Name – Badari
                                           ---Economic benefits –--
Medical uses- Fruits are used as sedative in cuts and injuries. Ber parts are  used in various medicines
Furniture, Agriculture Instruments, wood etc.--hard wood for various wood uses .
Food Uses – Fruits as fruits and for making beverages and making pickles too.
-
Copyright@ Bhishma Kukreti, Mumbai 2017
-
Plant Myths  , Religious Plants, Religious Importance, Traditions , Garhwal, Uttarakhand ; Plant Myths , Religious Importance, Traditions , Kumaon, Uttarakhand ;Plant Myths , Religious Importance, Traditions , Uttarakhand; Plant Myths , Religious Importance, Traditions , Uttarakhand, Himalaya; Plant Myths , Religious Importance, Traditions , Uttarakhand, North India; Plant Myths , Religious Importance, Traditions , Uttarakhand, South Asia, Religious Plants Garhwal, Religious Plants Kumaon, Religious Plants Dehradun , Religious Plant Haridwar .वनस्पति ज्योतिष , वनस्पति तंत्र, वनस्पति मंत्र




Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


महाभारत काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म की अति विशेष छवि

(महाभारत काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -13

-

   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )     - 13                   

  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--118 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 1118   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
  महाभारत महकाव्य अनुसार पण्डवों द्वारा राजसूय यज्ञ निहित सैकड़ों देशों को जीतने के बाद चक्रवर्ती  सम्राट युधिष्ठिर ने यज्ञ किया (सभापर्व )
 .    चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर  ने यज्ञ में सम्मलित होने कुलिंद नरेश  सुमुख (सुबाहु ) खस , जोहरी, दीर्घ वेणिक , प्रदर , कुलिंद आदि जाति के नायकों को भी आमंत्रण दिया था।
     सुबाहु ने एक रत्न जड़ित दिव्य शंख दिया था जो अपने आप में  अति विशेष था (सभा पर्व 51/  5से 7 व आगे ) .
    राजा दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को सूचना दी कि हिमय राजा अथवा उत्तराखंड के खस , जौहरी , कुलिंद , दीर्घ वेणुक , प्रदर , जौहरी , तंगण , परतंगण जातियों के नायकों ने चींटियों द्वारा निकाले स्वर्ण चूर्ण (दूण के दूण थैलों  में भर कर ) युधिष्ठिर को भेंट दिए। (सभापर्व   52  /4 -6 )
    दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को यह भी बताया कि उपरोक्त नायक सुंदर काले चंवर व स्वेत चामर , हिमालयी पुष्पों से उत्तपन स्वादिस्ट मधु भी प्रचुर मात्रा में लाये थे।  उत्तर कुरु देश से गंगाजल और कई रत्न लाये थे।  दुर्योधन ने अपन पिता को आगे सूचित किया कि उन्होंने उत्तर कैलास से प्राप्त अतीव बल सम्पन औषधि व अन्य पदार्थ भी भेंट के लिए लाये थे
' .....
उत्तरादपि कैलासादोषधी: सुममहाबला। ...  (सभापर्व 52 , 5 -7 )
   वास्तव में दुर्योधन ने यह बातें धृतराष्ट्र को ईर्ष्या बस कहीं कि उत्तराखंड के विभिन्न नायकों ने , गंगाजल , मधु , महाबल सम्पन ओषधियाँ आदि वस्तुएं युधिष्ठिर को भेंट में दीं।
       हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि दुर्योधन -युधिष्ठिर काल में मैदानों में प्रभावयुक्त माहबली हिमालयी औषधियां दुर्लभ थीं और तभी एक राजा इन औषधियों का वर्णन इतनी तल्लीनता से करता पाया गया है।
    सभा पर्व के वर्णन से साफ़ है कि गंगाजल का भी दुर्योधन -युधिष्ठिर काल में बड़ा महत्व था।
    हिमालयी वनस्पतियों   के फूलों से विशेष शहद  की भी मैदानों में विशेष छवि व मांग थी।  शहद केवल मीठे के लिए ही उपयुक्त न था अपितु औषधि निर्माण व  चिकित्सा उपचार में हिमालयी शहद का बड़ा महत्व था।
         दुर्योधन ने हिमालयी औषधियों को एक विशेष नाम दिया है - ' कैलासादोषधी: सुममहाबला' । या तो दुर्योधन ने यह नाम दिया है या उत्तराखंडी औषधियों की ख्याति '  कैलासादोषधी: सुममहाबला'   नाम से जन में प्रचलित थी ।
               सभापर्व में उत्तराखंड के कुलिंद राजा सुमुख (सुबाहु) द्वारा शंख भेंट व अन्य नायकों द्वारा औषधि समेत अनेक तरह की भेंट आज की परिस्थिति  में स्थान छविकरण (प्लेस ब्रैंडिंग ) में प्रासंगिक हैं। सभापर्व के इस प्रकरण से साफ पता चलता है कि उत्तराखंड की औषधि प्रसिद्ध थीं व इनका निर्यात भी होता था।  औषधि निर्यात या चिकित्सा निर्यात भी मेडिकल टूरिज्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
-
                राजनैयिक विशेष उपहार  का औचित्य स्थान छविकरण /प्लेस ब्रैंडिंग हेतु आवश्यक है

-
      प्लेस ब्रैंडिंग में राजनायकों द्वारा दूसरे राजनायकों को अपने स्थान की विशेष उपहार वास्तव में राजनैतिक चातुर्य हेतु ही आवश्यक नहीं है अपितु स्थान छविकरण , स्थान छविवर्धन या प्लेस ब्रैंडिंग के लिए भी अत्त्यावस्यक है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में विभिन्न देशों से सैकड़ों शीर्ष राजनैयिक उपस्थित थे।  हिमालयी नायकों द्वारा गंगाजल , शहद व महाबली औषधियों का उपहार देकर उन नायकों ने हिमालयी औषधि अथवा  हिमालयी चिकित्सा का समुचित प्रचार प्रसार किया।  प्लेस ब्रैंडिंग में भी प्रभावशाली व्यक्तियों को स्थान विशेष वस्तु उपहार प्लेस ब्रिंग हेतु कई प्रकार के लाभ पंहुचाता है। प्रभावशाली को दी गयी भेंट से वर्ड - ऑफ़ -माउथ पब्लिसिटी का लाभ मिलता है।
-
       उपहार देने में नाटकीयता आवश्यक है

  महाभारत के सभापर्व के इस प्रकरण में दुर्योधन द्वारा उत्तराखंडी औषधियों व अन्य उपहारों का इस तरह से वणर्न करता है कि जैसे सभा में उत्तराखंडी नायकों ने उपहार देते समय उच्च सौम्य  नाटक किया थे कि दुर्योधन को हर पल का वर्णन धृतराष्ट्र से करना पड़ा। उच्च -सौम्य नाटक प्लेस ब्रैंडिंग के लिए एक वश्य्क अवयव है।  उपहार देते समय हाइ ड्रामा किन्तु सफोस्टीकेटेड  ड्रामा आवश्यक है।
 -       
     पत्रकार अथवा लेखकों को स्थान वस्तु की सूचना व्यवस्था

,

      महाभारत दुर्योधन या युधिष्ठिर ने नहीं रचा अपितु लेखकों द्वारा रचा गया था। यदि इन रचनाकारों (विभिन्न व्यास जिन्होंने महाभारत की रचना की ) को उत्तराखंड की औषधियों के बारे में सूचना नहीं होती तो वे व्यास उत्तराखंड की औषधियों का वणर्न करते ही नहीं।  इसलिए उस समय भी और आज भी स्थान छविकरण'प्लेस ब्रैंडिंग हेतु यह आवश्यक है कि लेखकों , सम्पादकों व पत्रकारों को स्थान की विशेष वस्तुओं की पूरी सूचना का प्रबंध हो। 



Copyright @ Bhishma Kukreti  14  /2 //2018   



Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;       



Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
  पकौड़े ने पूछा " समोसा क्यों नहीं खाया ? जूता क्यों नहीं पहना ? "
-
 उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   82

   History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand - 82

खव्वाबीर - भीष्म कुकरेती
-
    एक समय देहरादून में समोसा संस्कृति थी (संक्षिप्त समोसा इतिहास की चटनी )
-

 मोदी जी ने पकौड़ों में जान डाल दी है।  कोई जल रहा है तो कोई जला रहा है।  भाजपा -कॉंग्रेस के पास  लकड़ी कम होने से या LPG  मंहगी होने से उत्तराखंड फेसबुक संसार में पकौड़ों का तलना  बंद  हुआ पर श्री मनोज इष्टवाल और भीष्म कुकरेती फिर भी अपनी अपनी रसोई में कुछ न कुछ पका ही  रहे हैं। 
       पकौड़ा रोजगार की खिल्ली उड़ाने वाले एक मेरे FB मित्र ने मेरी  खिल्ली उड़ाई कि अब तो पकौड़ों की गरमाहट खत्म हो गयी है फिर मैं चटनी पर क्यों आ गया।  मुझे खिन्न होकर उत्तर देने पड़ा कि भाई उनके ! हम सूंघने -चखने के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं और तभी FB सरीखे माध्यम में भोजन पर सबकी नजर पड़ती है , सदस्य पढ़ते हैं। मनोज इष्टवाल जी अवश्य मेरा साथ देंगे।
        आज पकौड़ों से मुझे मेरा सबसे पसंदीदा शहर (तब का ) देहरादून याद आ गया जहां  एक समय समोसा राज करते थे।  चाय या मिठाईओं की दूकान की असली पहचान समोसे से होती थी।  सन 72 -74 में कई चाय दुकानों ने अपने होटल में केवल चाय व समोसे तक सीमित कर दिया था और ग्राहक की पसंद के गाने रिकॉर्ड से सुनवाते थे व गाने के पैसे लेते थे।  जनता टी स्टाल पलटन बजार (कॉंग्रेस नेता सुरेंद्र अग्रवाल की मिठाई की दुकान के बगल में ) व शायद जनता टी स्टाल ही नाम था  चकरोता रोड डा चांदना के बगल में दो ही मेरे फेवरेट टी हाउस थे जहाँ तकरीबन रोज ही हम दोस्त लोग चाय समोसे के साथ दूसरों की पसंदीदा फ़िल्मी गानों का स्वाद लेते थे।  जब मणि राम भाई याने  मनी ऑर्डर आता था तो उस दिन या दो एक दिन में या तो नेपोलियन या क्वालिटी होटल में समोसा कॉफी पीनी जाते थे। हम क्वालिटी या नेपोलियन रेस्टोरेंट में समोसे का स्वाद लेने नहीं जाते थे अपितु देखने सीखने जाते थे कि सभ्रांत -सभ्य व कल्चर्ड लोग कैसे व्यवहार करते हैं।  पर 80 प्रतिशत लोग हमारे जैसे सभ्यता सीखने ही आते थे इन दोनों होटलों में। 
'मेहमानों का स्वागत समोसों से हो ' कई कारणों से ही चलती थी।             
     गढ़वाली जनानी तब समोसे घर में नहीं बनाती थीं।  कारण साफ़ था कि गढ़वाली समोसा संस्कृति में पले  बढ़े नहीं होते थे फिर समोसा तलने में कई ताम झाम करने पड़ते हैं तो समोसा आज भी  (मिठाई ) दुकान से लेने में ही आर्थिक व परिश्रम बचत होती है।
          मुंबई आने पर समोसा खाने की इच्छा कम ही हो गयी , यद्यपि घर में आज भी हर हफ्ते समोसे आते हैं किन्तु मैं कम ही खाता हूँ।  मुझे सन 74 -75 में समोसों का वह स्वाद नहीं मिल सका  जो देहरादून में था।  हाँ गेलॉर्ड होटल (मंहगा ) चर्चगेट में मुझे वह  स्वाद मिलता था।  गेलॉर्ड में मटन समोसा बहुत ही स्वादिस्ट होता था। अब मुझे बटाटा बड़ा समोसे के मुकाबले अधिक भाता है।  मतलब अब मैं सही माने में महाराष्ट्रियन हो चुका हूँ।
         देहरादून या मुंबई में वास्तव में समोसा संस्कृति पंजाबी -सिंधियों ने प्रचारित -प्रसारित किया।  जी हाँ इसमें दो राय नहीं सकती कि मुंबई में या देहरादून में समोसा संस्कृति प्रचार प्रसार में पंजाबी -सिंधियों का हाथ है।  आज भी मुंबई के नजदीक उल्हासनगर जो सिंधियों का सबसे बड़ा शर है वहां समोसा संस्कृति व वही देहरादून वाला स्वाद बचा है. मैं जब भी व्यापारिक विजिट पर उल्हासनगर गया हूँ मेरे डीलर मित्रों ने मेरा स्वागत संसा -गुलाब जामन या आलू टिकिया से किया।  सिंधी लोग भोजन के मामले में बड़े खव्वा बीर होते  हैं व खातिरदारी भी बड़ी तबियत  से करते हैं। पर अब कुछ बदल गया है अब उल्हासनगर व्यापरी मेरा स्वागत  होटल में ले जाकर दिन में जिन व मटन चिकन कबाब से करते हैं।
-
                  समोसे का भारत में इतिहास
-
             मुझे नहीं पता आज देहरादून में समोसा संस्कृति कितनी ज़िंदा है पर यह पता है कि समोसा भारत में नहीं जन्मे।  पर हम जब भारत की कल्पना करते हैं तो हमें आज का भारत ही याद आता है।  कभी भारत बहुत बड़ा क्षेत्र था। 
   कहा जाता है कि समोसे का जन्म मिडल ईस्ट में हुआ।  बात में दम है समोसे में नमक कम है  क्योंकि अमूनन आम भारतीय आज भी मैदे से दूर रहता है केवल विशेष  पकवान छोड़कर।
  कहा जाता है कि ईरान में यह पकवान 9 या 10 सदी में  सम्बुसक ,  या सम्बोसाग के नाम से जानता जाता है।  ईरानी साहित्य में संबोसग , संबोसाग , सम्बुसक का सबसे पहले संदर्भ 10 वीं सदी में मिलता है।  ईरानी इतिहासकार की किताब 'तारीख -ए -बेयहागी ' ( दसवीं सदी ) में मिलता है।  और माना जाता है कि घुमन्तु व्यापारियों ने इस तिकोने  मीठे भोज्य पदार्थ को दुनिया के अन्य कोनों में पंहुचाया। 
 भारत में समोसा शायद 12 वीं या 13 वीं में व्यापारी या खानसामों द्वारा भारत में  आय व सुल्तान के रसोई के शान बन गया।  मोरोका यात्री इब्न बटाटा ने अपनी यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि सुलतान बिन तुगलक के शाही भोजन गृह में उसे तिकोने सम्बुसक भोजन में दिए गए जिसके अंदर मस्यट , मटर , पिस्ता , बादाम व अन्य स्वादिस्ट पदार्थ भरे थे।
 तेरवीं सदी में महान सूफी विद्वान् अमीर खुसरो ने लिखा है कि समोसा भद्र लोग खाते थे। मटन , मसालों व अन्य पदार्थों से समोसा बनता था।
               अमीर खुसरों ने एक पहेली भी दी -
    समोसा क्यों नहीं खाया ? जूता क्यों नहीं पहना ? ताला न था।  (जूते  के सोल  ताला कहा जाता है )

              अकबर के रत्न अबुल फजल ने 'आइना -ए -अकबरी में लिखा है कि बादशाह अकबर को समोसे पसंद थे।
                       ब्रिटिश या यूरोपियन लोगों को भी समोसा  गया तो उन्होंने भी समोसे को गले नहीं लगाया अपितु गले में उतार दिया। 
-
               गढ़वाल -कुमाऊं में समोसा
-
      गढ़वाल कुमाऊं इतिहास में समोसे का जिक्र नहीं मिलता है। हरिद्वार पर  कभी इतिहास लिखा ही नहीं गया तो हमे हरिद्वार में समोसा विकास की कहानी नहीं पता है।  मुझे लगता है कि यदि गढ़वाल कुमाऊं में समोसा आया भी होगा तो रोहिला ही दक्षिण उत्तराखंड में लूट के समय लाते होंगे  और चूँकि वे जल्दीबाजी में रहे होंगे तो लोट समय समोसा नहीं पकाया गया होगा।  यही कारण है कि समोसा गढ़वाल कुमाऊं का खाद्य पदार्थ ब्रिटिश काल से पहले नहीं बन सका होगा।   
                            श्रीनगर में मुसलमान थे किन्तु गढ़वाल राजा केवल सर्यूळों के हाथ का बना भोजन खाते थे तो  मुस्लिम खानसामों ने समोसा बनाये भी होंगे तो भी यह भोज्य पदार्थ जगह नहीं बना सका।  फिर गढ़वाल कुमाऊं में स्वाळ संस्कृति विद्यमान थी तो समोसा संस्कृति पलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। 
      श्री गुरु राम राय दरबार आने वाले यात्रीय भी शायद समोसे नहीं खाते थे तभी समोसा का जिक्र देहरादून के इतिहास में नहीं मिलता।  सिख लुटेरे देहरादून व हरिद्वार को ऐसे लूटते थे जैसे रोहिला , इतिहास में उत्तराखंड के लुटेरे सिख समोसे खाते थे का जिक्र नहीं मिलता है।
-
                     ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में समोसा   प्रवेश
-
  यदि समोसे ने  उत्तराखंड में प्रवेश किया होगा तो ब्रिटिश शासन में प्रवेश किया होगा।  हरिद्वार भी समोसे का प्रवेश द्वार हो सकता है।  सबसे पहले देहरादून , मसूरी , नैनीताल या लैंसडाउन में समोसे बने होंगे।  ब्रिटिश राज में समोसे में आलू ने प्रवेश किया।
-
                  उत्तराखंड में   पंजाबी -सिंधियों शरणार्थियों ने समोसा प्रचार -प्रसार किया
-
  इसमें इतिहास  पुस्तकें खंगालने की आवश्यकता नहीं है कि स्वतंत्रता बाद उत्तराखंड में समोसा संस्कृति को पंजाबी -सिंधी मिठाई दुकानदारों ने सर्वाधिक पचार प्रसार किया ,
 -
     आज समोसा उत्तराखंड ही नहीं पूरे  भारत में फ़ैल चुका  है।  हाँ प्रत्येक क्षेत्र में समोसा बनाने की पद्धति व स्वाद अलग अलग है। 



Copyright@ Bhishma Kukreti , 2018

समोसे का उत्तराखंड में इतिहास ;  समोसे का गढ़वाल ,उत्तराखंड में इतिहास ;  समोसे का कुमाऊं ,उत्तराखंड में इतिहास ;  समोसे का हरिद्वार , उत्तराखंड में इतिहास ;  समोसे का उत्तराखंड , उत्तरी भारत में इतिहास ; Samosa History , Uttarakhand , north India ;  Samosa History , Garhwal, Uttarakhand , north India ; Samosa History , Kumaon, Uttarakhand , north India ; Samosa History , Haridwar Uttarakhand , north India ;




Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


पांडवों का वनवास हेतु उत्तराखंड भ्रमण और स्थानीय टूरिस्ट गाइड का महत्व


(महाभारत काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -


उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  14


-


   Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Medical Tourism History  )  -14               

  (Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--119 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 119   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
   महाभारत माहाकाव्य में उल्लेख है कि दुर्योधन के प्रेरणा से ग्रसित हो धृतराष्ट्र ने सम्राट युधिष्ठिर को द्यूतक्रीड़ा हेतु हस्तिनापुर बुलाया। द्यूतक्रीड़ा में पांडव सब कुछ हार गए , द्रौपदी चीरहरण हुआ  को 12 वर्ष का वनवास व 13 वे वर्ष में अज्ञातवास हेतु वनों में जाना पड़ा।
               पांडवों ने द्रौपदी के साथ वनवास भोगने बगैर कुंती उत्तराखंड की ओर  कूच  किया। पुरोहित धौम्य के साथ पांडव गंगा तट पर प्रमाणकोटि महान बट वृक्ष के समीप गए (वनपर्व 1 /41 )
            तदनुसार पांडव सरस्वती तट पर काम्यक वन में कुछ समय रहे , वहां से वे द्वैत वन गए और फिर काम्यक वन आ गए।  ऋषि धौम्य पांडवों के साथ रहकर यज्ञ -योग , पितृ श्राद्ध व अन्य कर्मकांड कार्य सम्पन कराते रहते थे (वनपर्व 25 /3 ) .
                  इसी दौरान अर्जुन दिव्यास्त्र लेने तपस्या करने उत्तराखंड चले गए (वनपर्व 37 /39 ) . वहां अर्जुन गंधमाधन पर्वत से आगे इन्द्रकील पर्वत में  इंद्र से मिले।  फिर इंद्र की आज्ञा से गंगा तट पर भगवान शिव की तपस्या से पाशुपातास्त्र प्राप्त किया (वनपर्व 20 /20 -21 ) . फिर सदेह पंहुचकर स्वर्ग से इंद्र से दिव्यास्त्र प्राप्त किये
                           उत्तराखंड में स्वर्ग , दियास्त्र व पाशुपातास्त्र
               
            यह लेखक स्वर्ग और नर्क को केवल कल्पना मानता है।  स्वर्ग का यहां पर अर्थ है दुर्गम स्थल जहां अस्त्र निर्माण शाला हो।  उत्तर -पूर्व गढ़वाल और उत्तर पश्चिम कुमाऊं में ताम्बे की खाने, ताम्बा प्राप्त करने की भट्टियां व टकसाल सैकड़ों साल तक रही हैं और ब्रिटिश काल में जाकर ही बंद हुईं।  मेरा मानना है कि अर्जुन ने इन अणु शालाओं  पर जाकर ताम्बे के अस्त्र (दूर फेंके जाने वाले घातक युद्ध उपकरण ) व शस्त्र (बाण आदि ) प्राप्त किये।  संभवतया अर्जुन को अस्त्र शस्त्र डिजाइन व निर्माण ज्ञान भी था तभी वह अकेला इन्द्रकील पर्वत गया। महाभारत काल में बाणों आदि में विष भी लगाया जाता था और तब विष केवल वनस्पति से ही प्राप्त होता था।  महाभारत में हर बार घोसित किया गया है कि बांस -रिंगाळ के बाण प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।  इसका तातपर्य यह भी है कि अर्जुन धनुष,  बाण , भाला , गदा आदि बनवाने इन पर्वत श्रृंखलाओं में गया।  इन वन श्रृंखलाओं में धातु ही नहीं , विष व अन्य वनस्पति  के हथियार हेतु कच्चा माल भी उपलब्ध था और इन्हे बनाने हेतु सिद्धहस्त कारीगर भी उपलब्ध थे।
     यदि तब उत्तराखंड में अस्त्र शस्त्र  अणु शालाएं (अणसाळ ) थीं तो उत्तराखंड में  विशेष टूरिज्म भी था याने धातु टूरिज्म।  स्वीडन में कई प्रकार के युद्ध हथियार बनाये जाते हैं तो स्वीडन मे  युद्ध सामग्री खरीदने वाले स्वीडन में यात्रा करने के कारण विशेष टूरिज्म निर्मित  हुआ है।  टूरिज्म हो तो स्वयं  ही मेडिकल टूरिज्म स्थापित होता जाता है।  मनुष्य गत चेतना हमेशा कहीं भी जाने हेतु सुरक्षा के बारे में सोचती है।  यदि शरीर सुरक्षा  का अंदेशा होता है तो मनुष्यगत चेतना मन , बुद्धि  व अहम में कई बहाने बनाती है और टूर  न करने की सलाह देताी  है।
   अर्जुन को दुर्गम रास्तों में चलने व अपने स्वास्थ्य हेतु प्राथमिक चिकित्सा का भी ज्ञान था।  मेरा दृढ विचार है कि दिव्यास्त्र का अर्थ है जो अस्त्र -शस्त्र सरलता से प्राप्त न हों।   विशेष, दुर्लभ  व असामान्य अस्त्र शस्त्र लेने उत्तराखंड की उत्तरी पहाड़ियों में जाना पड़ा था।
-
                        धौम्य व इंद्र   टूरिस्ट गाइड भी थे
       
 पांडवों ने  वनवास   हेतु उत्तराखंड चुना तो उसके पीछे कई कारण भी थे।  सर्वपर्थम कुलिंद राज व अन्य छोटे बड़े राजा पांडवों के हितैषी नायक थे।  दूसरा धौम्य ऋषि गढ़वाल के बारे में विज्ञ विद्वान् थे।  पांडवों द्वारा ऋषि धौम्य को साथ ले जाना वास्तव में अपने लिए एक स्थानीय गाइड ले जाना भी थे।
        महाभारत में उल्लेख नहीं है कि कैसे अर्जुन उत्तरी गढ़वाल (इंद्रकील पर्वत ) पंहुचा।  निसंदेह धौम्य ऋषि ने एक या कई टूरिस्ट गाइडों का इंतजाम भी अर्जुन हेतु किया होगा।
         इंद्रजीत पर्वत में इंद्र अर्जुन को पाशुपातास्त्र लेने शिव के पास भेजता  हैं।  इससे साफ़ पता चलता है कि इंद्र दिव्यास्त्रों का ट्रेडर्स या निर्माता था और शिव दिव्यास्त्रों का निर्माता था जो इंद्र जैसे प्रतियोगी को अपने अस्त्र निर्माण शाला नहीं देखने देता था ना ही उन्हें दियास्त्र ट्रेडिंग हेतु देता था।  या हो सकता है इंद्र व शिव में समझौता रहा होगा कि वे अलग अलग विशेष अस्त्र -शस्त्र बनाएंगे और एक दूसरे के ग्राहक एक दूसरे के पास भेजेंगे।

                          वनपर्व में धौम्य व इंद्र के टूरिस्ट गाइड जैसे कायकलाप

             वनपर्व से हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऋषि धौम्य आज के पंडों जैसे  टूरिस्ट गाइड था व इंद्र ट्रेडिंग टूरिस्ट गाइड था। 
   धौम्य व इंद्र के चरित्र से साफ़ पता चलता है कि उन्होंने टूरिस्ट गाइड की सही भूमिका निभायी।
  दोनों ने स्थानीय स्थलों व अन्य जानकारी बड़ी ईमानदारी से पांडवों को दिया।
    जब आवश्यकता पड़ी स्थान विशेष की जानकारी भी दी।  जैसे  धौम्य द्वारा इन्द्रकील पर्वत की जानकारी अर्जुन को देना (यद्यपि महाभारत मौन है ) व इंद्र द्वारा अर्जुन को दिव्यास्त्र शिव के पास भेजना।
    दोनों के कायकलाप बतलाते हैं कि वे ज्ञान /सूचना देते वक्त पक्षहीन थे।
    दोनों सूचना देने में व्यवहारकुशल थे।
  धौम्य व इंद्र ने पांडवों की कमजोरी  और अज्ञानता का कभी भी नाजायज फायदा नहीं उठाया।
 यद्यपि महाभारत मौन है किन्तु हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि धौम्य व इंद्र ने पांडवों को नुकसानदेय या विकट परिस्थितियों  के बारे में भी बताया होगा जिससे पांडव सावधानी वरत सकें।
    अवश्य ही धौम्य व इंद्र ने पांडवों को स्वास्थ्य संबंधी सूचना भी दी होगी।



Copyright @ Bhishma Kukreti  15 /2 //2018 


संदर्भ -

शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -2 , पृष्ठ 314 -315

Tourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
-
========स्वच्छ भारत , स्वस्थ  भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22