प्रसिद्ध लेखक पण्डित बद्रीदत्त पाण्डे अपनी कुमाँऊ का इतिहास में लिखा है, कि नन्दा देवी (देवी) का मूल निवास स्थान नन्दगिरि की चोटी पर था। यह कहा जाता है कि चन्द वंश की प्रथम राजधानी चम्पावत में थी। 1563 में तत्कालीन राजा भीष्म चन्द ने राजधानी बदल कर अल्मोडा नगर में स्थानान्तरित पर दी। उनके वंशज राजा बाज बहादुर चन्द ने 1638 से 1678 तक राज्य किया तथा 1673 में गढवाल पर विजय प्राप्त की, ऐसा कहा जाता है कि जूनागढ किले पर अधिकार करने के उपरान्त नन्दादेवी की मूर्ति ले जाई गई। एक पौराणिक कथा के अनुसार विजयी सेना नन्दा की देवी (पालकी) सहित रात्रि के लिए सीमा पर स्थित कोट नामक स्थान पर रुके, दूसरे दिन सुबह जब देखा तो नन्दा की मूर्ति दो भागो में बँटी थी। सभी लोग आश्चर्य चकित रह गये, काफी विचार विमर्श के पश्चात् यह निश्चय किया गया कि मूर्ति का आधा भाग कोट में स्थापित पर दिया जाय जबकि आधा भाग अल्मोडा ले जाया जाय। इस प्रकार से कोट बैजनाथ वब स्थान है जहाँ नन्दा देवी कोट की माई (कोट की माँ) कहलाती है।
नन्दादेवी महोत्सव सर्व प्रथम 1903 में लाला मोतीराम साह द्धारा प्रराम्भ कराया गया। इस समय तथा बाद कुछ वर्षो तक यह उत्सव छोटे पैमाने पर मनाया जाता रहा। 1926 के बाद यह मेला राम सेवक सभा द्धारा आयोजित किया जाता रहा है। अब इसका वृहद रुप देखने को मिलता है। 2007 में इस मेले के आयोजन के 104 वर्ष हो चुके है। यह नैनीताल में आयोजित किया जाने वाला एकंमात्र मेला है। यह अगस्त – सितम्बर में आयोजित किया जाता है।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि नन्दादेवी अपने भक्तो को आर्शिवाद प्रदान करती है। विवादित महिलायें अपने पूरे परिधान व रुकावट के साथ देवी की पूजा करते है। मेले में कई प्रकार के नृत्य तथा सास्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है, जैसै:- झोडा, छपेली आदि। नैनीताल एक धर्म निरपेक्ष नगर है।यह सभी धर्मो एव विश्वासो के लोग साथ-साथ रहते है। नन्दादेवी महोत्सव सभी धर्मो के लोगो द्धारा मनाया जाता है।