Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 76202 times)

दीपक पनेरू

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बहुत बहुत धन्यवाद विनोद जी एवं कोठारी जी....

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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दीपक जी बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने ऐसे ही लिखते रहें

dramanainital

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सत्यदेव सिंह नेगी

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दस साल के उत्तराखंड पर लिखा क्या बढ़िया
आप ही ऐसा कर सकते हैं था मुझे भी आइडिया

आप होंगे अगिम पंक्ति में बने यहाँ सिपहसलार
बढ़ते रहें आप युहीं आगे आपके पीछे लम्बी कतार

न रहम करना इस बेरहमों पर खोद लाओ सारे राज
बहुत लहू लुहान हुआ कलेजा तुम करो जंग का आगाज

बहुत नौछमी नौछमी हुयी लगादी इन्होंने सत्ता पर सेंध
देख रही असहाय जनता ठहरे ये भी लोटे बिन पेंद

कौन भ्रष्ट है कौन चोर है इन्हें तुम बतादो दीपक
किस्मे बची है राष्ट्रभक्ति कौन सत्ता से गया है चिपक

कमाया इन्होने जल से थल से न छोड़ा कोइ तीरथ
देख रही लाचार पलायित भीड़ इनकी नाकामी अधीरत
[/q]
दस साल का उत्तराखंड

आज विकास के लिए, फिर रोता मेरा पहाड़ है,
  कही नदी बनी कहर, तो कही पहाड़ो की दहाड़ है,

    दस साल का उत्तराखंड, अब लगा है बोलने, 
  धीरे धीरे पर अब सब, राज लगा है खोलने,

  कि किसने बसाया है इसे, कौन उजाड़ने को है तैयार, 
  कौन बना बैठा है दुश्मन, कौन बना बैठा है प्यार,

  शिक्षा का बाजारीकरण, और गरीबी कि मार, 
  फिर पहाड़ो से पलायन, फिर वही अत्याचार,

  कोई दबा स्कूल के नीचे, कोई नदियों का बना निवाला, 
  कोई गिरा चट्टानों से और, कोई नहीं देखने वाला,

  बस साल दर साल,  इसके खंड खंड होते रहे, 
  अपनी पवित्र देव भूमि को, अब पवित्र कौन कहे ?

  चोरी यहाँ मक्कारी यहाँ, हर चीज कि बाजारी यहाँ, 
  पानी भी लगा है बिकने, गरीब आदमी जाए कहा ?

  चीख चीख कर  ये सड़के, और छोटे छोटे रास्ते, 
  दम तोड़ रहे है सब, कोई जल्दी कोई आस्ते,

  क्या निशंक क्या खंडूरी, विकाश से रही सभी कि दूरी, 
  अपने लिए है लड़े है सब, कौन करे जरूरतें पूरी,

  केंद्र से करें उधारी, इन पर उधारी का पाप चड़ा, 
  डकार गए विकाश का पैसा, कौन इनमें हक़ के लिए लड़ा,

  इस पांच सौ करोड़ का, क्या हिसाब ये बताएँगे, 
  छीन लिए जिन गरीबो के आशियाने, क्या फिर से ये बसायेंगे,

  टिहरी डूबाकर इनके मन को, अभी तक ना चैन मिला, 
  पता नहीं क्या डूबेगा अब, कोई शहर या कोई जिला,

  दीपक यही अब सोचकर, क्या क्या इनके बारे में लिखे, 
  कुछ करनी कुछ करतूत इनकी, सारी करनी यही दिखे,

  उत्तराखंड अब बचपन से, कुछ समझदार होने को आया है, 
  अब थोडा मुस्कराने दो इसे, नेताओं ने खूब सताया है,

dramanainital

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दस साल के उत्तराखंड पर लिखा क्या बढ़िया
आप ही ऐसा कर सकते हैं था मुझे भी आइडिया

आप होंगे अगिम पंक्ति में बने यहाँ सिपहसलार
बढ़ते रहें आप युहीं आगे आपके पीछे लम्बी कतार

न रहम करना इस बेरहमों पर खोद लाओ सारे राज
बहुत लहू लुहान हुआ कलेजा तुम करो जंग का आगाज

बहुत नौछमी नौछमी हुयी लगादी इन्होंने सत्ता पर सेंध
देख रही असहाय जनता ठहरे ये भी लोटे बिन पेंद

कौन भ्रष्ट है कौन चोर है इन्हें तुम बतादो दीपक
किस्मे बची है राष्ट्रभक्ति कौन सत्ता से गया है चिपक

कमाया इन्होने जल से थल से न छोड़ा कोइ तीरथ
देख रही लाचार पलायित भीड़ इनकी नाकामी अधीरत

 
बढ़िया
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दीपक
 चिपक

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wah negi saab.wah wah wah

dramanainital

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दिल की फ़र्माइश है सर आँखों मगर,
एक पूरी हो तो फ़िर इक और है.
 
ख़त्म सुनता था हुए राजा नवाब,
पर हक़ीक़ी वाक़या कुछ और है.
 
आदमी अब क्या करे शर्मो लिहाज,
जिस भी सूरत जीतने का दौर है.

तुम भले इन्कार कर लो आग से,
कह रहा उठता धुवाँ कुछ और है.

बेअसर है झिंगुरों का सा रियाज़,
सुर को साधे जो गला कुछ और है.

खुश वो,जो बिक जाए ऊँचे दाम में,
आज तो बाज़ार ही सिरमौर है.

dramanainital

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Tumko aur mujhko.

इंसानियत के नाते,अपनी ख़ुदी से प्यार,
तुमको भी बेशुमार है,मुझको भी बेशुमार.
 
चोर और लुटेरे में एक को चुन लें,
तुमको भी इख़्तियार है, मुझको भी इख़्तियार.
 
राज करने वाले,आला दिमाग़ पर,
तुमको भी ऐतबार है, मुझको भी ऐतबार.
 
हम पे चोट कुछ नहीं,मैं पे एक वार,
तुमको भी नागवार है,मुझको भी नागवार.
 
हालात को सुधारने आएगा मसीहा,
तुमको भी इन्तज़ार है,मुझको भी इन्तज़ार.
 
 
 
 
 
 
 
 

dramanainital

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म्यार नई गजल "बेअसर है." तक पुजानेर बाट छु हो महाराज.

http://dramanainital.blogspot.com/2010/12/blog-post_27.html

दीपक पनेरू

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नव वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं
 
 इस दौर की दरियादिली,
 उस दौर से कुछ और है,
 इंतजार की इन्तहा,
 इस दौर में भी सिरमौर है,

 वक़्त भी चलता गया,

 और राही भी चलते रहे,
 राहें और मंजिलें,
 बस ये बदलते रहे,

 तू वक़्त भी अच्छा है,

 ओ वक़्त भी गुलजार था,
 मुझे तुमसे भी प्यार है,
 मुझे उससे भी प्यार था,

 जो चला गया है छोड़कर,

 उसका जाना भी स्वीकार है,
 तू जल्दी आजा नव वर्ष,
 बस तेरा ही इन्तजार है,

 बस तेरा ही इन्तजार है,

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thank u Deepak.. Very nice poem.

New year good wishes to you and your family.

नव वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं
 
 इस दौर की दरियादिली,
 उस दौर से कुछ और है,
 इंतजार की इन्तहा,
 इस दौर में भी सिरमौर है,

 वक़्त भी चलता गया,

 और राही भी चलते रहे,
 राहें और मंजिलें,
 बस ये बदलते रहे,

 तू वक़्त भी अच्छा है,

 ओ वक़्त भी गुलजार था,
 मुझे तुमसे भी प्यार है,
 मुझे उससे भी प्यार था,

 जो चला गया है छोड़कर,

 उसका जाना भी स्वीकार है,
 तू जल्दी आजा नव वर्ष,
 बस तेरा ही इन्तजार है,

 बस तेरा ही इन्तजार है,

 

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