Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 76200 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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मुस्किलो मे भी सहारे मिल जाते है।
तुफानो मे भी किनारे मिल जाते है।
हम हार जायै जिन्दगी के इन्तहां मे तो गम नही।
क्योकी आशाओ के दिये हम रोज जलाते है।

सुन्दर एस नेगी दिनांक 01 03 09

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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जिन्दगी कि राहो मे, अनेको आने लगे है।
फूल हो या काँटे, सब अपनाने लगे है।
मै हु कि अपनी हद मे रहता हु।
वो हद से जायदा, हमै चाहने लगे है।
 
एस एस नेगी दिनांक 12-05-08

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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कुछ पाने के इरादो से उतरते है, दिलो के मैदाने लोग।
लुटते है मैदाने जंग मे, अक्सर दिल के दरमियां लोग।
लुटते ही कुछ छूट जाते है, तनहाई के सन्नाटे मे लोग।
नफरत करने लगते है फिर,अपनी ही किसमत से लोग।
 
सुन्दर एस नेगी 07 11, 2008

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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कविता मै इस जहा मे जो कुछ भी अधुरा छोड जाउंगा।
हो सके तो तुम उसे पुरा कर देना।
मै तुमहारी कल्पना के सिवा और सोच भी क्या सकता हु।
मगर यह सत्य है कि मै तुममै बिखर सकता हु।
कविता मै तुमहै कागज मे कलम से लिख रहा हु।
तुमहारी कल्पना मे डूब रहा हु।

सुनदर एस नेगी 12 -07-08

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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भूल भी हो जाती है, मेरे स्नेही दोसतो,
फिर भी इन्सान ही इन्सान के पास जाता है,
इन्सान ही इन्सान के काम आता है।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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तो अश्क अपने आप मे  खामोस है।
लेकिन  किनारा बहता रहता है,
जीवन चलता रहता है।
तब न माँया रोती है,
न सामने ममता होती है।

दोसतो
बीना दॅद की  चिता जल्ती है ।

सुनदर एस नेगी
दिनांक 26-10-2007

Raje Singh Karakoti

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जिस तरह बारिश के बाद फिर सुनहरी धूप आई है,
मेरापहाड़ फोरम को पुनः अपनी सुन्दर कविताओं से सजाने के लिए नेगी जी आपको मेरी ओर से कोटि - कोटि बधाई है!!

मेरापहाड़ फोरम के सभी सदस्यों को सुप्रभात


भूल भी हो जाती है, मेरे स्नेही दोसतो,
फिर भी इन्सान ही इन्सान के पास जाता है,
इन्सान ही इन्सान के काम आता है।

Manish Mehta

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"थामी जा चौमास थामी जा ! (कुमांउनी कविता )"

"असमान में बादलोक घरघाट पड़ गो,
खेत-धूर-जंगल ले हरी-भरी हूण भगो !
हमर पाथर वाल *पाख ले फिर *चूड़ भगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरों में ले सरसराट पड़ गो,
नानथीनाक स्कूल जाण ले मुश्किल हे गो !
बूबुक गोरू गाँव जाड़क ले भेत हे गो...!
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरुक पाड़ी ले *सरक पूज गो,
पाल बखाई खीम दा घट ले बंद हए गो !
जाग-जगां खेतों-भीड़ों में *छोई फूट गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

अल्बेर चौमास दागे डरी ले लागन भगों,
किले की पिछाड बार हमर पहाडक भोते नुकसान कर गो !
हे इष्ट देवा हे चितई का गोल ज्यू मी बिनती लीबे फिर ए गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!"

*पाख -(छत)
*चूड़- (टपकना)
*सरक (असमान)
*छोई- (बरसात में निकलने वाला जल श्रोत)

(ये कविता में अपने प्यारे पहाड़ को समर्पित करता हूँ ! )

सर्वाधिकार सुरक्षित !
http://musafirhunyaro.blogspot​.com/
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(१५/०७/२०११ )

मनीष मेहता !




Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Excellentpoem Manish Bhai...

Hat off for u.

"थामी जा चौमास थामी जा ! (कुमांउनी कविता )"

"असमान में बादलोक घरघाट पड़ गो,
खेत-धूर-जंगल ले हरी-भरी हूण भगो !
हमर पाथर वाल *पाख ले फिर *चूड़ भगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरों में ले सरसराट पड़ गो,
नानथीनाक स्कूल जाण ले मुश्किल हे गो !
बूबुक गोरू गाँव जाड़क ले भेत हे गो...!
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरुक पाड़ी ले *सरक पूज गो,
पाल बखाई खीम दा घट ले बंद हए गो !
जाग-जगां खेतों-भीड़ों में *छोई फूट गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

अल्बेर चौमास दागे डरी ले लागन भगों,
किले की पिछाड बार हमर पहाडक भोते नुकसान कर गो !
हे इष्ट देवा हे चितई का गोल ज्यू मी बिनती लीबे फिर ए गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!"

*पाख -(छत)
*चूड़- (टपकना)
*सरक (असमान)
*छोई- (बरसात में निकलने वाला जल श्रोत)

(ये कविता में अपने प्यारे पहाड़ को समर्पित करता हूँ ! )

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(१५/०७/२०११ )

मनीष मेहता !





Manish Mehta

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धन्यवाद हो दाज्यू !! सब गोल ज्यू की कृपा छू !!


Excellentpoem Manish Bhai...

Hat off for u.

"थामी जा चौमास थामी जा ! (कुमांउनी कविता )"

"असमान में बादलोक घरघाट पड़ गो,
खेत-धूर-जंगल ले हरी-भरी हूण भगो !
हमर पाथर वाल *पाख ले फिर *चूड़ भगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरों में ले सरसराट पड़ गो,
नानथीनाक स्कूल जाण ले मुश्किल हे गो !
बूबुक गोरू गाँव जाड़क ले भेत हे गो...!
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरुक पाड़ी ले *सरक पूज गो,
पाल बखाई खीम दा घट ले बंद हए गो !
जाग-जगां खेतों-भीड़ों में *छोई फूट गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

अल्बेर चौमास दागे डरी ले लागन भगों,
किले की पिछाड बार हमर पहाडक भोते नुकसान कर गो !
हे इष्ट देवा हे चितई का गोल ज्यू मी बिनती लीबे फिर ए गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!"

*पाख -(छत)
*चूड़- (टपकना)
*सरक (असमान)
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(ये कविता में अपने प्यारे पहाड़ को समर्पित करता हूँ ! )

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मनीष मेहता !





 

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