भूल भी हो जाती है, मेरे स्नेही दोसतो,फिर भी इन्सान ही इन्सान के पास जाता है,इन्सान ही इन्सान के काम आता है।
"थामी जा चौमास थामी जा ! (कुमांउनी कविता )""असमान में बादलोक घरघाट पड़ गो,खेत-धूर-जंगल ले हरी-भरी हूण भगो !हमर पाथर वाल *पाख ले फिर *चूड़ भगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!गाड़-घदेरों में ले सरसराट पड़ गो,नानथीनाक स्कूल जाण ले मुश्किल हे गो !बूबुक गोरू गाँव जाड़क ले भेत हे गो...!किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!गाड़-घदेरुक पाड़ी ले *सरक पूज गो,पाल बखाई खीम दा घट ले बंद हए गो !जाग-जगां खेतों-भीड़ों में *छोई फूट गो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!अल्बेर चौमास दागे डरी ले लागन भगों,किले की पिछाड बार हमर पहाडक भोते नुकसान कर गो !हे इष्ट देवा हे चितई का गोल ज्यू मी बिनती लीबे फिर ए गो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!"*पाख -(छत)*चूड़- (टपकना)*सरक (असमान)*छोई- (बरसात में निकलने वाला जल श्रोत)(ये कविता में अपने प्यारे पहाड़ को समर्पित करता हूँ ! )सर्वाधिकार सुरक्षित !http://musafirhunyaro.blogspot.com/Blog Link :- http://musafirhunyaro.blogspot.com/2011/07/blog-post.html(१५/०७/२०११ )मनीष मेहता !
Excellentpoem Manish Bhai... Hat off for u. Quote from: Manish Mehta on July 21, 2011, 05:37:18 AM"थामी जा चौमास थामी जा ! (कुमांउनी कविता )""असमान में बादलोक घरघाट पड़ गो,खेत-धूर-जंगल ले हरी-भरी हूण भगो !हमर पाथर वाल *पाख ले फिर *चूड़ भगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!गाड़-घदेरों में ले सरसराट पड़ गो,नानथीनाक स्कूल जाण ले मुश्किल हे गो !बूबुक गोरू गाँव जाड़क ले भेत हे गो...!किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!गाड़-घदेरुक पाड़ी ले *सरक पूज गो,पाल बखाई खीम दा घट ले बंद हए गो !जाग-जगां खेतों-भीड़ों में *छोई फूट गो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!अल्बेर चौमास दागे डरी ले लागन भगों,किले की पिछाड बार हमर पहाडक भोते नुकसान कर गो !हे इष्ट देवा हे चितई का गोल ज्यू मी बिनती लीबे फिर ए गो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!"*पाख -(छत)*चूड़- (टपकना)*सरक (असमान)*छोई- (बरसात में निकलने वाला जल श्रोत)(ये कविता में अपने प्यारे पहाड़ को समर्पित करता हूँ ! )सर्वाधिकार सुरक्षित !http://musafirhunyaro.blogspot.com/Blog Link :- http://musafirhunyaro.blogspot.com/2011/07/blog-post.html(१५/०७/२०११ )मनीष मेहता !