Author Topic: ON-LINE KAVI SAMMELAN - ऑनलाइन कवि सम्मेलन दिखाए, अपना हुनर (कवि के रूप में)  (Read 76206 times)

jagmohan singh jayara

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"नया साल"

इन्तजार है आएगा,
क्या सौगात लाएगा?
लेकिन! साल-२०१०,
उसके आने से पहले,
कड़वी यादें छोड़,
चला जाएगा.

उत्तराखंड में,
बरसात का उत्पात,
दरकते पहाड़,
लौटा लालटेन युग,
आफत भुगत चुके,
प्यारे पर्वतजन,
भयभीत हुआ,
प्रकृति के रौद्र रूप को देख.

जनकवि "गिर्दा" जी का,
अचानक चले जाना,
नागाड़ों  का,
खामोश हो जाना,
आज हमारे पास,
उनकी रचनाओं का,
रह जाना.

जा रहा है,
२०१० का साल,
कामना है,
मिले ख़ुशी सबको,
जब आए,
"नया साल".

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु"

dramanainital

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फोरम पर सभी मित्रों को नव वर्ष की शुभकामनाएँ.

बरसों लगे.

आदमी को

जानवर से

आदमी

बन जाने में

बरसों लगे.

लेकिन

अब भी

उसे

आदमी से

जानवर

बन जाने में

लगता है

एक पल.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दस साल
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आज आयेगी, कल आयेगी
उत्तराखंड में विकास की बाड़ आयेगी

विकास की बाड़ तो नहीं आयी,
पर कुदरत का कहर जरुर आया!
हज़ारो के घर उजाड़े,
जलते हुए चिराग भुझाये!

राजधानी के मुद्दे पर
सरकार को आंच नहीं आयी
हाय हाय के नारे लगाते
जनता परेशान हुयी !

डामो के निर्माण ने खूब सुर्खिया बटोरी
पर तरसते रहे लोग, बिजली और पानी के लिए
कहाँ नौकरी, कहाँ विकास
जनता भागती रही पेट के वास्ते !



दीपक पनेरू

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म्यार पहाड़ ये हालत इन नेताओ की देन छु,
  अब ये पहाड़ कनी बचाना लिजी एक कसम लिन छू,
  घर में बाट घाटा में, गधेरों में या ऊँचा डांडा में,
  खत्म ह्वेगा सब पेड़, हाय यस की ह्वेगो यो अंधेर,
  कोई अपन नि होए ये पहाडा लिजी,
  कोई काटन लगी रई पैसे हाँ,
  तो कोई लकड़ अपनी भाडा लिजी,
  गाड, रूनी गधेरो रूनी अब रूनी लगी यो ऊँचा डान,
  बेरोजगारी की मार पड़ी भ्यार भाजी सब पड़ी लिखी नान,
  को देखौल को करौल यो सोची बेर रूनो आज यो पहाड़,
  ना नेताओ पर भरोशा रे गयो ना अपनी राज्य की आड़,
  मै नि क्या कर सकनी तू ले के कर पाले रे भुला,
 राजधानी मामला की आग जली रे, तू ले आपन रोटी फुला...
 टूटी बेर छुटी गयान पहाड़, जाग जागा बे फूटी पानी धार,
 घर ले पानी भर गया, कोई खबर लीनी नि आया,
 इजा रूनी, आमा रुनी रोये रोये बेर ह्वेगा बुरा हाल,
 सब लोगो मुखुड़ी में बेबसी बाकि रेगे,
 और पुछुण लगी बस एक सवाल की भूली,
 हमर भाल दिन कब आल, हमर भाल दिन कब आल.
 क्या कोई नेता इन पहाड़ो को चाल, क्या कोई करौल इनकी देखभाल
 हमर छो यो एक सवाल हमर भाल दिन कब आल हमर भाल दिन कब आल.......
 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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हमार भाल दिन उ दिन आल,
जो दिन पहाड़ मे सब मिल-जुल बेर राल।

एक दुसराक काम आल, तबै सबुक काम हाल।

देखी लीयूल, देख ल्ये कै बेर,
न तुमर भल हल न म्यर नाम आल।

जायदा क्ये लिखनु इजा, समझणी लोग समझी ल्याल।

सुन्दर सिंह नेगी- 10-03-2011

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भौत भाल लिखी महराज तुमिल..

यो कविता सटीक बैठी जैक लीजी उत्तराखंड राज्य क निर्माण करी गियो !

हम के यो दिनों आजी ले इन्तेजार छो !

हमार भाल दिन उ दिन आल,
जो दिन पहाड़ मे सब मिल-जुल बेर राल।

एक दुसराक काम आल, तबै सबुक काम हाल।

देखी लीयूल, देख ल्ये कै बेर,
न तुमर भल हल न म्यर नाम आल।

जायदा क्ये लिखनु इजा, समझणी लोग समझी ल्याल।

सुन्दर सिंह नेगी- 10-03-2011

सत्यदेव सिंह नेगी

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सभी मित्र गणों को देता हूँ
भेटं अपना प्रेम सादर नमस्ते

दूरी अधिक ही हो गयी शायद
भूल थी दे भी दो माफ़ी आहिस्ते

जय उत्तराखंड
जय भारत

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 बड़े दिनों के बाद  वतन के लोगो को याद,  वतन के फोरम में  एक बार पुनः स्वागत है  भेजी !    बहुत दिनों के खुद / नराई  अब batange होली के कविताओ के संग !   
सभी मित्र गणों को देता हूँ
भेटं अपना प्रेम सादर नमस्ते

दूरी अधिक ही हो गयी शायद
भूल थी दे भी दो माफ़ी आहिस्ते

जय उत्तराखंड
जय भारत

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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तनहाइयों के आंकडो़ से, लगता है,
शब्दो की गरीबी से गुजर रहे है हर कवि।
आनलाईन तो दूर की बात है, आफलाईन भी अब कभी-कभी।

भावनाओ का मेल-जोल पुराना, गुजर क्यो न जाये कोई जन कवि।
ढूंडते रहैगे हम जन-मन कवियों को, हर दिन, हर साल, और सदियों सदि।
 
सुन्दर सिंह नेगी-21-03-2011

 

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