म्यार पहाड़ ये हालत इन नेताओ की देन छु,
अब ये पहाड़ कनी बचाना लिजी एक कसम लिन छू,
घर में बाट घाटा में, गधेरों में या ऊँचा डांडा में,
खत्म ह्वेगा सब पेड़, हाय यस की ह्वेगो यो अंधेर,
कोई अपन नि होए ये पहाडा लिजी,
कोई काटन लगी रई पैसे हाँ,
तो कोई लकड़ अपनी भाडा लिजी,
गाड, रूनी गधेरो रूनी अब रूनी लगी यो ऊँचा डान,
बेरोजगारी की मार पड़ी भ्यार भाजी सब पड़ी लिखी नान,
को देखौल को करौल यो सोची बेर रूनो आज यो पहाड़,
ना नेताओ पर भरोशा रे गयो ना अपनी राज्य की आड़,
मै नि क्या कर सकनी तू ले के कर पाले रे भुला,
राजधानी मामला की आग जली रे, तू ले आपन रोटी फुला...
टूटी बेर छुटी गयान पहाड़, जाग जागा बे फूटी पानी धार,
घर ले पानी भर गया, कोई खबर लीनी नि आया,
इजा रूनी, आमा रुनी रोये रोये बेर ह्वेगा बुरा हाल,
सब लोगो मुखुड़ी में बेबसी बाकि रेगे,
और पुछुण लगी बस एक सवाल की भूली,
हमर भाल दिन कब आल, हमर भाल दिन कब आल.
क्या कोई नेता इन पहाड़ो को चाल, क्या कोई करौल इनकी देखभाल
हमर छो यो एक सवाल हमर भाल दिन कब आल हमर भाल दिन कब आल.......