Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 43815 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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छोटी छोरी कु लम्बू धौपैलु
द्वी गज की बांद
नौ गजो लम्बू धौपेलु
छोटी छोरी कु सज धज
बांदो से नयारू पायरु
गुन्द्ख्याली सि हथ खुटी
गोल गाती नारंगी सि दाणी
छोटी छोरी कु बडू तमासू
रूपे कि हाम चौ दिसू
छोटी छोरी कि बड़ी बात
छोटी छोरी बब्कीबात सि
सुण सि गात मा धागा सि लम्बी धौपेली
छोटी छोरी कु लम्बू धौपैलु
द्वी गज की बांद
नौ गजो लम्बू धौपेलु......................शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बचपन मे टांग की चोट लग
तीन दिन तक ऐसा
रोया अभास गांगुली
उसका बेसुरा गला
सुरीला हो गया
रोयु तो ऐसा रोओं
बेसुरा अभास गांगुली भी
सुरीला किशोर कुमार हो गया ..................शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फर्स्ट अप्रैल खिल रहे
फूल भी बसन्त के
और कही बन भी रहे होंगे फूल
फर्स्ट अप्रैल वो दिन जब
स्कूल का नया सिजन
पहला दिन
जब कही बच्चे
जा रहे होंगे स्कूल
बच्चों को उनके मम्मी बता रहे होंगे
शैतानी कम करना सर मैडम
जो पूछै उसका जवाब देना
टायलेट लगे तो मैडम को बता देना
टिफिन खा लेना
ये सब बताते हुए उनके मम्मी पापा
छोड़ आये नन्ने मुन्ने
बच्चो को स्कूल ।........शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi with B Mohan Negi and 24 others.
21 hrs ·
मैने लोक मुहावरा प्रयोग कर अपने उत्तरखंड सभी नारंगी दाणी सि बांदो को समर्पित ये रचना इस रचना एक फ्लोस्पी आज की छोटी बच्चियों या बच्चो कि बड़ी बात या व्यस्को से भी ज्यादा स्मार्ट होते उन बच्चो को समर्पित कविता पर कविता एक चा भाव द्वि छन
छोटी छोरी कु लम्बू धौपैलु
द्वी गज की बांद
नौ गजो लम्बू धौपेलु
छोटी छोरी कु सज धज
बांदो से नयारू पायरु
गुन्द्ख्याली सि हथ खुटी
गोल गाती नारंगी सि दाणी
छोटी छोरी कु बडू तमासू
रूपे कि हाम चौ दिसू
छोटी छोरी कि बड़ी बात
छोटी छोरी बब्कीबात सि
सुण सि गात मा धागा सि लम्बी धौपेली
छोटी छोरी कु लम्बू धौपैलु
द्वी गज की बांद
नौ गजो लम्बू धौपेलु......................शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi 

हम उत्तरखंड़ी ज्यु
इतगा ईमानदार हुँदा
टेड़ा बाटा भि मा सीदा दिखदा
लाटा काला भला मनखी हुँदा
घर्या आलू सि अपणी मिटटी
जना मिट्ठा मायला हुँदा
पर जब हम उत्तरखंड़ी नेता बण जांदी
त चकडेत छलबली
किल्हे हवे जांदा ।..............शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi

ढलती जवानी का यौवन जब ढलता है तो पुराने भौरे भी फूलों नहीं मंडराते नरेन्द्र कठैत जी गंभीर हास्य से जुड़ी इसी प्रकार अन्या रचनाओ का उपहार बहुत जल्द उनकी काव्य पुस्तक "' आभारी तबरी"" मे पढने को मिलेगा ये पुस्तक विनसर पब्लिकेसन देहरादून प्रकाशन जल्द आप सभी साहित्य प्रेमियों के हाथ/
वरिष्ठ अग्रज भाईयो की सखियों को लोक भाषा की ये मौलिक साहित्यिक रचना क्षमा याचना एवं हिन्दी साहित्य पे्रमीयों को भावार्थ सहित - नरेन्द्र कठैत
तब अर अब
अहा !
यूंकि ज्वन्या बि
वो क्य दिन छया
हरीं - भ्वरीं
गात पर
हवा फफराट मा
फर्र - फर्र
उडणीं रौंदि छै धौंप्येली
नजर जमा नि
टिक्ण देंदि छै भुयां
अब त बग्तै मारन
सूखी-साखी
ह्वे ग्येनी सौब
खरसण्यां- पिंगलण्यां
कैका साबुत छन
कैका घुंणदा-सूटौं का सि
अदबळखा खयां
हे रां !
बिचारि मुंगर्यूं का
दांत हि दांत रयां !
हिंदी
(भावार्थ)
तब और अब
अहा !/इनकी जवानी के भी/
वे क्या दिन थे/हरी - भरी/देह पर/
हवा की फरफराहट में/
फर्र - फर्र/उड़ती रहती थी चुटिया/
नजर बिल्कुल नहीं
/टिकती थी जमीन पर/
अब तो वक्त की मार से/
सूख कर/हो गई सब/
जर्जर-पित वदन/किसी के साबुत हैं/
किसी के बिमारीयों से आधे - अधूरे खाये/
हे राम!/बेचारी मकईयों के/दांत ही दांत रहे

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi 
April 17 at 6:24pm ·
तिमला का डाला
सुरिज भैजि पार जाला
स्यू सीन अँखियु का तीर
जब देखी घौर बिटि आज
खिस्सा बिटि
मुबेल निकाली तस्बीर खिंची ।।....शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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रच के भी जिसमे ना है
हाँ की जिसमे कोई गुंजाइश नहीं
ये ना ही रचना है
जिस दिन रच के
हाँ हो जाती है
ना रच शुरू हो जाती है
किसी रचनाकार की
क्रेटिविटी का अंत
यही है शायद
रच के ना है मन में
कुछ बाकि है रचने को
ये रच के साथ ना की
गंगा ही रचना है ।।.........शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi 
April 15 at 8:28am ·
गीतू का संत अर दीपा पंत
जब गीत गांदीन
इंन्नु लगदु जन
गीतू का भगीरथ दगड़ी
गंगा ही युगल गीत गाणी हो

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नवरात्री पावन अवसर पर देश कि सभी बेटियों को समर्पित जो देवी का स्वरूप है एक काफी पुरानी रचना मेरी लिखी
मुझको वो दिन याद है
मुझ पगली को वो दिन याद है
वो दिन काश फिर मुझ को मिल जाये
ऐसी मेरी फरयाद है
वो सुबह देर से उठना
वो बिस्तर से अंगडाइ ले हुए उठना
वो मम्मी की डांट खाना
वो स्कूल कॉलेज तैयारी मे हडबडाट करना
सभी सहेलियो के साथ स्कूल कॉलेज जाना
वो एक जैसे सूट सिलवाना
एक जैसे से हेयर कटिंग करवाना
कभी दुपट्टटे पर
कभी स्वेटर पर
कभी नेलपोलिश लिपस्टिक क्रिम पर
कभी टीवी सीरियल फिल्मों पर
कभी किसी पर तो कभी किसी पर
बाते करना याद है
वो पिकनिक ट्रिप
वो बर्थडे पार्टीया
वो न्यू इयर मस्तीया
नाच वो हँसी
वो फ्रेंड के गिफ्ट वो ग्रीटिंग
क्या थे वो दिन मुझको वो दिन याद है
मुझ पगली को वो दिन याद है
कविता शैलेन्द्र जोशी

 

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