Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 43079 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  • Shailendra Joshi
  • ऋतू बसंत छाया है
    धरती उगल रही है फूल
    कैसी सुंदर ऋतू बसंत
    मिटी धूल मे  भी सुगंद
    हिर्दय मे छाया है ऋतू बसंत
    धुप हो गयी कुछ अब गुनगुनी
    रंगों से रंगी है धरती
    खेल रही है होली रंग रही तन बदन
    छाया सारा जीवन ऋतू बसंत
    रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बज रहे है शादी के ढ़ोल

चमक रहे वर वधू के कपोल

हाय कैसे माहौल

ये शादी के माहौल

बज रहा कही रॉक एंड रोल

कह सिंगार संग बैठी है नार

चल रहा ढोलक संग उनका नाच

सब के अलग अलग मिजाज

कही बज रहा है बैंड बाजो का साज

किसी को आती नहीं लाज

कोई आता नहीं शैतानियो से बाज

कही लग रहे बडे बूढो तक के किस्से

खुल रहे बातो ही बातो मे जीवन के बीते हिस्सै

कही दिखा रही औरते एक दुसरे को साड़ी

कही चल रही गीतो की अंताछरी

सजी है लडकिय ऐसी जय से आशमान से उतरी हो परि

सखिया चहका रही है सुन री सुन री के मीठे बोल से शोर मचा रही है

कोई राघनी किसी राघ को ढूंड रही है

कोई राघ किसी राघनी को ढूंड रहा है

नये संग संगनी बन रहे है

बरसो से ना मिले रिश्तेदार भी ऐसे माहौल मे मिल रहे है

पाक पकवान पक रहे है

बच्चे सिर्फ मीठी चीजों पर देखा राहे है

रच रही हाथो मे मेहन्दी

झुम रहे झाजी

कई जाम मे जाम

कोई लड़ रहा ख़ामोखाम

चल रहे फेरे

वर वधू के सिर पे सेहरे

चमक रहे सभी के चेहरे

चल रहा पंडित का मंत्र

कोई नाच गाना कर रहे धवनि यंत्र

हाय कई महौल तंत्र

हाय जीवन के ये कई से महौल

ये शादी कई महौल

रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हे इस्कुलिया बांधा रचना शैलेन्द्र जोशी
by Shailendra Joshi on Tuesday, February 19, 2013 
जख भी तू जांदी दग्दियो कु दगडा तुवैकू चैदू
हे इस्कुलिया बांधा
कुई बैख देखी झट खौली जांदी
मन मा कुछ नि रैंदु फैर मूल हैस जांदी
हे इस्कुलिया बांधा
बिराना पीठी का ठंगरा मा लगुली सी छाई तू
बथोउ मा हलंदी फौंगी रे तू
जैन जिथे ढलकै उथै ढलक जांदी तू
बिना मेकप का जुनी सी दमकणी छाई तू
फयोली सी मुखड़ी मा  रिबन का दुई फूल खिलिया दुई लटलियो मा
गर मीठी नींद मा
कचि उमर मा पकी उमर का सुपनिया देखती तू हज़ार
बिखरा लटुला जुनी मुखडा मा
कालू काजल पस्यु मा
गलोड़ी मा बादल सी घिरुयु
ना चदरी ओदणु कु सगोर
लाज से बैफीकर
फैर भी सर्म चा  भिन्डी तुवे मा इस्कुलिया बांधा
रुढ़ सी झौल तुवे मा
हुयुन्दी सी सैली चा शरारत चौमास तुवे मा
बसंत कु मौलियार छाई तू
खूबसूरती कु भण्डार
निर्मल चित कु कोठार
जवानी कु उदंकार छाई तू
है इस्कुलिया बांधा
रचना शैलेन्द्र जोशी

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जख भी तू जांदी दग्दियो कु दगडा तुवैकू चैदू
 
 हे इस्कुलिया बांधा
 
 कुई बैख देखी झट खौली जांदी
 
 मन मा कुछ नि रैंदु फैर मूल हैस जांदी
 
 हे इस्कुलिया बांधा
 
 बिराना पीठी का ठंगरा मा लगुली सी छाई तू
 
 बथोउ मा हलंदी फौंगी रे तू
 
 जैन जिथे ढलकै उथै ढलक जांदी तू
 
 बिना मेकप का जुनी सी दमकणी छाई तू
 
 फयोली सी मुखड़ी मा  रिबन का दुई फूल खिलिया दुई लटलियो मा
 
 गर मीठी नींद मा
 
 कचि उमर मा पकी उमर का सुपनिया देखती तू हज़ार
 
 बिखरा लटुला जुनी मुखडा मा
 
 कालू काजल पस्यु मा
 
 गलोड़ी मा बादल सी घिरुयु
 
 ना चदरी ओदणु कु सगोर
 
 लाज से बैफीकर
 
 फैर भी सर्म चा  भिन्डी तुवे मा इस्कुलिया बांधा
 
 रुढ़ सी झौल तुवे मा
 
 हुयुन्दी सी सैली चा शरारत चौमास तुवे मा
 
 बसंत कु मौलियार छाई तू
 
 खूबसूरती कु भण्डार
 
 निर्मल चित कु कोठार
 
 जवानी कु उदंकार छाई तू
 
 है इस्कुलिया बांधा
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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जब मै और तुम नहीं रह जाता हम हो जाता रंगों मे
 
 तब रंग रंग नहीं लोकरंग हो जाता जीवन मे
 
 अपनी धरती अपना आशमा लोकरंग मे
 
 अपने फूल अपनी माटी लोकरंग मे
 
 अपना गीत अपना संगीत लोकरंग मे
 
 अपने शबद अपनी सम्पदा लोकरंग मे
 
 अपनी संस्किर्ति अपनी सभ्यता लोकरंग मे
 
 रंग जाता है हिया माटी के लोकरंग मे
 
                   रचना शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshiposted to ना कुई संस्किर्ती संस्कार बच्णु रे
 
 हिन्गलिस बच्याणा अब सब ओर
 
 गढ़वाली कुमौनी कुई नि बोनू बच्याणु
 
 थोडा थोडा गढ़वाली कुमौनी लोग बोलना बच्याणा छन
 
 पर यूनिस्को वालो का कन्दुरो माथोडा थोडा भी नी सुनाई देनी हमरी बोली भाषा
 
 यूनिस्को वाला बोलना मोरगी गढ़वाली कुमौनी बोली भाषा
 
 हमन बोली नी मोरया अभी वैनटीलैटर मा छआ
 
 गिनी चुनी साँस बंचि छन अभी दुई चार
 
 ना ओबरा ना पांडा न धैपुरा ना चोक न डीण्ड्य़ीय़ाळा
 
 ना पाठला ना धुर्पला जब हुवैगिन लैंटारा घर कूड़ा
 
 हमरी माईंड वैकुलाबरी मा निछ यी सब्द सम्पदा
 
 नोंण नि बंदी अब पौरोठा
 
 कुटी पीसी धाण ना उर्ख्याला गंजेला
 
 गंजेला बनी मुछीयाला हुवैगिन अब अंगार
 
 यी अंगार सी बची चा हमरी संस्किरीती यी धार
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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From - Shailendra Joshi
नई पौध मे अधखिली कली को फूल बनते देखा है

तेरे बचकाने अंदाज मे जवानी का रंग चढ़ते देखा है

हम ने एक उम्र का अंत होते होते देखा है

और एक उम्र की शुरुवात होते होते देखी है

सब कुछ नहीं कह सकते पर कुछ देखा है

हमने तुझमे वो काल देखा है

बचपन का छुटना और जवानी का चढना

मेरी ये बाते साधरण लगे संसार को

पर हम ने तेरी तरुणायी मे सागर की गहराई को देखा है

उलझे उलझे बालो को बढाना उन को सहेजना

एक छोटी सी किशोरी मे  शोभनी नारी के गुणों का इजाफा देखा है

हम ने कुदरत की कला को तुझमे उतरते देखा है

जिस बदन के लिये उलझन थी ये आंचल

उस बदन कई हाथो को अजनबियों के सामने दुपट्टा सभालते सभालते देखा है

उभारो मे आंचल की शोभा को बड़ते देखा है

हम ने तुझे जो देखा जो स्वपनसुंदरी

जीवन के अनुभव का एक स्वाद चखा

तुझे जो  देखा आगन  मे तेरे  तो हिरदय से कविताये फुट पड़ी

रचना शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi आख्यु की बोली गात की भाषा तेरी छोरी
 
 जुकुड़ी मा लुकाई तेरी माया का सैरा भैद खोनिच
 
 तेरी मुखुड़ी की हैसिन नुयूतू दैयलि माया कू 
 
 तेरु यन चीफलू मिज्याज छोरि जिंनो नि दैलू मैकू
 
 बाली उमर मा तूवैकू माया कू यनु खेल कैन सीखे
 
 भलु सौ सिंगार तेरु मिजयाजा मायादार
 
 मुखुड़ी  का ऐथर लटलियो की रात
 
 लटलियो का बीच तेरी चोर नज़र कुजणी कब लिगि दिल मेरु लुछी
 
 माया का यनु सगोर यी बलि उमर क्या बुन भै
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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ना घार ना बौण की
 
 लबार होंदी बस बाज़ार की
 
 ना प्रेम की ना माया की
 
 लबार होंदी बस मायाजाल की
 
 जोग कू चक्रचाल मा फंसी जांदा भला लोग
 
 हैका रुलै की मुल हैसदी लबार
 
 ना पलिया पार की ना गंगा पार की
 
 सिर्फ डमडमा क़िस्सों की होंदी लबार
 
 तेरी नी हवे सकदी मेरी नी ह्वे सकदी लबार
 
 कभि कैकी भि नी ह्वे सकदी लबार
 
 राड़ादी चिफला बाटो मा
 
 भला लोगो ते ठस लबार
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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तेरे इक गाल से गुलाल निकालू कोरे हाथ मे
 
 दुसरे गाल को गुलाल करू
 
 तोरा ही रंग तुझमे रंगू गोरी
 
 बाज़ार मे रंग बेरंग है मिलावट का अलग डर है
 
 बाज़ार के अंग अंग मे  छाई  महँगाई
 
    सस्ते मे खेलू होली तोरा रंग तुझ मे रंगु गोरी
 
  तेरे ही गालो से चोरु रंग
 
 तुझ मे ही रंगु गोरी
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

 

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