Author Topic: Poems Written by Shailendra Joshi- शैलेन्द्र जोशी की कवितायें  (Read 43078 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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तुम मेरा गीत हो सुर हो सुंदरी हो रचना शैलेन्द्र जोशी
by Shailendra Joshi on Monday, March 4, 2013 
सूरज की तपन के  नीचे बैठी है चंदा
गोरी धूप मे  तू बैठी गोरी और गोरा हो गया नज़ारा
आती है तू हिर्दय मे उजाला
जाती दिखती तो मन अंधेरा सा
आती दिखती जाती दिखती पर कब होगी मुलाकात
रंग बिरंगे सूटो पर बहुत भाती हो गोरी
अलग अलग स्टाइलों मे बालो को बनाती हो गोरी
जब जुल्फों का पैहरा खुल जाता है
बाल बिखर जाते है तब
रात और दिवस दिखता एक पल पर
तुम्हारी कुछ कहने वाली हँसी का ये असर है
मेरे ह्रदय से कविताये फूट पड़ती है
तुम मेरा गीत हो सुर हो सुंदरी हो
स्वप्न हो तुम मेरी स्वपनसुंदरी हो
रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हर एक सोच रहा है
 
  वो देख रही है तो किसको एक टक
 
 कही मुझे तो नहीं कही मुझे तो नहीं
 
 लड़किया मौहल्ले की हमारी सोच रही है
 
 ये देख रही है किसको
 
 कोई कहती  पढती है मेरे कालेज  मे
 
 कोई उस को देख हैऱा हो थी
 
 कोई उसको देख मुस्कुराती 
 
 कोई कहती  अपने को हूर समाझाती है
 
 कोई कहती  सुंदर है क्या इतनी
 
 कोई कहती सुंदर तो है ही
 
 पर सब लड़कियों प्रशन ये ही है देख किस को रही है
 
 लड़कियो की इस वार्तालाप के बीच मौहल्ले के और लड़के है अनुपस्थित
 
 है उपस्थति दर्ज हमारी  तो लड़की तो देखेगी  ही लड़के को
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कब तक गंगा गोमुख मा जमी राली
 
 झौल चा इतगा मैमा तू पौछी की राली अपणा सागर मा
 
 चदरिल कब तक मुखड़ी ढाकाली छोरी
 
 इतगा त मेरी ज्वनि मा बथो चा
 
 उड़ीकि राली मुखडी बीटी तेरा पल्लू का ढकेण
 
 कब तक राली गिचि मा तेरा ना
 
 इतगा माया चा मैमा छोरी
 
 दैणी करदू तेरा गिचा मा तेरी निहोणिया हां
 
 कब तक राली मै तरसाणी
 
 इतगा प्रेम चा मैमा
 
 खुद ही करली मेरी तू गाणी स्याणी
 
 कब तक गंगा गोमुख मा जमी राली
 
 झौल चा इतगा मैमा तू पौछी की राली  अपणा सागर मा
 
  रचना  शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi ऐसु बरस मेरा मुल्क नंदाजात होली
 
  बाराबरस मा  नंदाजात    अपणा मुलूक बौड़ाली
 
 दीदी भूली नंदा का गीत गाली
 
 ध्याणी अपणा मैत जाली वख नाचली गाली
 
 मै कनी अभागी छोऊ रमियु देस मा मन मेरु पौच्यु हिमालय
 
 नौटी कासुवा ईधा बधाणी की दीदी भूली नंदा  गीत गाली
 
 चौसिंघ्या खाडू का पैथर छातोलियो तै लेकी जात्रा का जत्रोई जाला
 
 सेम कोटी भगोती कुलसारी की दीदी भूली नंदा गीत गाली
 
 मेरु मन पौच्यु वख
 
 चैपड़ो नन्दकेसरी फल्दिया गोउ मुन्दोली
 
 कण भैटुली होली अपणी मैत बैटूली
 
 कुरुड़ बाधण वाला भी पौचिया होला नन्दकेसरी
 
 नंदा जात कु कनु मिलन देखा
 
 कुरुड़ दसोली दसमद्वार डोली दगडी
 
 गैरोली पाताल पातर नाचोणिया
 
 सिलासमुद्र च्न्दनियाघाट
 
 वख बुग्यालो लोग हिटणा होला
 
 मेरु मन पौचियु वख
 
 घाट माँ कानी भारी करुणा
 
 नंदा मैत से विदा होली मै यख परदेश मा खुदेणु छोऊ
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shailendra Joshi
क़ाठन डाडा से बोली
ज़िन्दगी की छवी बात मा एक गीत मा लौला
एक भला गीत बणोला
वी गीत मा एक बात तेरी होली एक बात मेरी
वी गीत मा एक बात मेरा सुख दुख की
एक बात तेरा सुख दुख की
वी गीत मा तेरी खैरी भी लौला मेरी खैरी भी लौला
वी गीत माँ एक हैके की छवीबात लौला
डाडान बोली काठ से लाटा धरतल मा किलै बटणू चै तू
तू भी माटो ढेर चा मै माटो ढेर छोऊ
हमरा सुख दुख एक छन लाटा
हमरी पीड़ा भी एक चा
तब गीत मा अपणी छवीबात अलग अलग किलै लाण लाटा
हम दुवी माटा का ढेर चा
हम दुवी एक छा धरातल मा नि बाटण लाटा
रचना शैलेन्द्र जोशी

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अर वीकू क्या कसूर जू पैदा हुवे दुर्गम मा रचना शैलेन्द्र जोशी
by Shailendra Joshi on Tuesday, March 12, 2013 
सोना चाँदी की होणी चा बरखा सुगम मा
अर जोग देखा दुर्गम कू यख पाणी की भि नी हो पाणी बरखा
गुरु जी नि हिट सकदा दुर्गम
भारी पैसा खते की पौचिया छिन सुगम मा
पर  प्रशन आज यू चा मन मा
आज भी किल्है  क्वी जगा दुर्गम उत्तराखड मा
क्या ये खातिर राज बाने छोऊ
अर वीकू क्या कसूर जू पैदा हुवे दुर्गम मा
रचना शैलेन्द्र जोशी

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सोना चाँदी की होणी चा बरखा सुगम मा
 
 अर जोग देखा दुर्गम कू यख पाणी की भि नी हो पाणी बरखा
 
 गुरु जी नि हिट सकदा दुर्गम
 
 भारी पैसा खते की पौचिया छिन सुगम मा
 
 पर  प्रशन आज यू चा मन मा
 
 आज भी किल्है  क्वी जगा दुर्गम उत्तराखड मा
 
 क्या ये खातिर राज बाने छोऊ
 
 अर वीकू क्या कसूर जू पैदा हुवे दुर्गम मा
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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Shailendra Joshi पानी की पीड़ा
 
         पीड़ा मे पानी
 
 तरसा गला एक बूंद पानी
 
             पानी की पीड़ा
 
 पीड़ा मे पानी
 
 प्रकृति प्रक्रिया थी जो पिघलते थे हिमालय से गिलेशियर  गल गल
 
 गंगा बहे घर घर पहुंचे पानी
 
 ये सब हो जाये गी बीती कहानी
 
 आप्राकृतिक हो गया मानव
 
      धर लिया रूप उस ने दानव
 
 काट डाले वन कैसे करे झरने छन छन
 
 मन मे रह गया पानी स्रोत सब सुखे
 
 विश्व शव हो रहा पानी
 
 बचे कैसे पानी अभी तो घर मे थी लड़ाई 
 
 तैयार खड़ा विश्व युध पानी
 
 मुखडे से पानी छीन लेगे पडोसी
 
 ज़रूरत है सब को पानी
 
 जाहा देखेगे पानी पागल हो जायेगा आदमी
 
 तस्वीर मे भी देखेगे नदी झरने सागर
 
 फाड़ देगा चीर देगा
 
 दीवाना हुआ जो पानी के लिये आदमी
 
 पानी पानी सारे कषट कालेष घुम रहे है पानी
 
 सारी सुख संपदा है पानी
 
 रचना शैलेन्द्र जोशी

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चैत नया साल मा फूलदेई आली

कै बौंण ग्वीराल होलू सोचणू

कू फुलारी ले जाली आज मैकू

कै बीटा फ़्योलि देखणी होली बाटा कै फुलारी कू

सोचणी होली मन मा मेरा कुंगला गात पड़ला कै फुलारी गुन्द्ख्याला हात

कखी बुरांस तै होली आस कै फुलारी की

लैया का फूल सोचणा होला कू भगि  फुलारी

ज्यू मेडो मा हीटी आली आज  मेरा धोरा

कखी पैया कखी आडू चोलों का फूल सोचणा

कू भगि  फ़ुल्वरि ले जाली कै भग्यानी की दैली मैकू

रचना शैलेंन्द्र जोशी

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मै उसकी याद मे उसे जगह जगह ढुढती हू

लोग समझते है कि मै अपने अपने मे रहती हू

पर मै तो उसके ख़यालो के संग रहती हू

इतना इन्तजार कभी मै ने अपनी सहेली का न किया हो

जितनी फरियाद उसकी मुलाकात के लिए करती हू

उसे दुंढती हू कभी अनजानों मे

कभी पहचानो मे

मै उसे ढूंढती ढुढती रह जाती हू

अशिकी के आशियाने के लिए तरस जाती हू

मै उसे ढूंढने के लिए अपनी सहेलियों को इतल्हा भी करू

तो सोचती हू कही वो मेरी खिल्ली ना उडाये

कही मुझसे सवालों की पहेलियाँ ना बुझाये

मुझ प्यासी को कोई पनघट दिखाये

मै तरसी हु बहुत कोई झटपट दिखाये

मै चारपाई मे बैठे उसकी दुहाई करती हू

उसको पाने की दवाई चाहती हू

मै बैठे बैठे आँखों मे उसकी तस्वीर रखती हू

पलंग मे हिलडुल तकिया सीने मे रखती हू

मै उसकी याद मे उसे जगह जगह ढुढती हू

रचना शैलेन्द्र जोशी

 

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