Shailendra Joshi .
May 15 at 2:21pm ·
मै लोगो अक्शर कहते सुनता हु नरेन्द्र सिंह नेगी का गला चन्द्र सिंह राही गोपाल गोस्वामी जैसा सुरीला नहीं है उनके गले वो मुरखी खटके नहीं है कही लोग कहते उनसे अच्छा गीत कन्हैया लाल डंडरियाल या गिरीश तिवारी गिर्दा के है खैर लोगो अपना आकलन है मै तो कला साहित्य संस्कृति को न्युमेरिकल अंदाज नहीं देखता हु हर कलाकार और रचनाकार अपनी शैली है . भले नरेन्द्र सिंह नेगी गला बहुत सुरीला न हो उनको सहित्यकार न माना जाये उनको भले बडे संगीतकार कमत्तर देखा जाये . किन्तु जब गले सुर मे भाव् अधिक मजबूत होजाते है गीत के समाज का दर्शन होता है संगीत कंपोज लोगो हँसाने और रुलाने मे मजबूर कर देती है तो जब सुर शब्द और संगीत बनारस बनता तब नरेन्द्र सिंह नेगी बनता है तब साहित्य अलंकार हो गले मूर्खे खटके या संगीत के राग इन सब भारी पड़ता है वो भाव जो जीवन छुई बात है वो गीत बनजाते है उनके गीत लाइन है वो दिन वा रात वा छवी वा बात गीत बणगिन गितेर गाला . नरेन्द्र सिंह नेगी बारे गड्वाली साहित्य सिंह भजन सिंह सिंह अपने निबंधो कही सालो पहले लिख दिया नरेन्द्र सिंह नेगी के गीत उत्तरखंड गीत साहित्य संगीत एकनई दिशा देगे . ये निबंध इतिहासकार यशवंत सिंह कठौच सम्पादित पुस्तक सिंह भारती मे छपी है , कहने आशय है नरेन्द्र सिंह नेगी अपनी धारा अपनी शैली अपनी गायकी अपने तरह एक कलाकार है जो तबले कि ताल से जुड़ा फिर रामलीला अभिनय और सुर से फिर संगीत से फिर लोकगीत से और गायन से और इसी बीच एक कलाकार अन्दर कवि जागता है वो लोक भाषा अन्दोलन और संसकृति को बचाकार देश दुनिया तक ले जाता बन जाता है गढ़ गौरव गढ़ रतन इसलिये नेगी दा पर आप एक गायक नहीं एक साहित्यकार नहीं एक संगीतकार नहीं एक युग एक काल देखो ऐसा संस्कृति पुरुष युगों मे पैदा होता उसका मुझे लगता वो तुलानाताम्क अध्यन से परे क्युकी वो अपनी धारा अपनी शैली का एक कालजयी कलाकार है जब उनको सुनो तो ऐसा लगता जैसे उसी लोक समाज पहुच गए हो चाहे आप कही भी उनको सुन रहे हो