12 Dec 2008, नवभारत टाईम्स
देहरादून : उत्तराखंड की स्थायी राजधानी को लेकर सरकार का असमंजस बरकरार है। राजधानी स्थल चयन के
लिए गठित दीक्षित आयोग की रिपोर्ट मिलने के महीनों बाद भी सरकार राजधानी की घोषणा नहीं कर पा रही है। इसके कारण केंद्र से मिले सौ करोड़ रुपये लैप्स हो जाने की आशंका है। दूसरी तरफ, राजधानी की घोषणा में हो रहे विलंब के कारण कई संगठन आंदोलन तेज कर रहे हैं। उनका कहना है कि 15 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के दौरान राजधानी स्थल चयन आयोग की रिपोर्ट सदन पटल पर रखी जाए।
राजधानी का रुतबा पाने के लिए मुख्य रूप से कार्यकारी राजधानी देहरादून और पर्वतीय स्थल गैरसैंण के बीच प्रतिस्पर्द्धा है। पर्वतीय क्षेत्र के हितों की रक्षा के लिए लंबे आंदोलन के बाद 9 नवंबर, 2000 को इस राज्य की स्थापना हुई। आंदोलन के दौरान ही गैरसैंण को भावी राजधानी के रूप में देखा जाने लगा था। लेकिन न तो पिछली कांग्रेस सरकार ने इस दिशा में पहल की और न ही मौजूदा बीजेपी सरकार कोई निर्णय ले पा रही है।
राजधानी स्थल चयन के नाम पर आयोग बिठा दिया गया, जो तकनीकी कारणों से लंबे समय तक अपनी रिपोर्ट नहीं दे पाया। पिछली कांग्रेस सरकार आयोग की रिपोर्ट के नाम पर इस मुद्दे से बचती रही, लेकिन अब जब राजधानी स्थल चयन आयोग की रिपोर्ट मिले चार महीने से भी अधिक समय बीत गया है, बीजेपी सरकार पशोपेश में है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूरी ने पिछले दिनों इस मुद्दे पर अधिकारियों और अपने मंत्रियों से भी चर्चा की, लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आया। कार्यकारी राजधानी देहरादून में व्यापक पैमाने पर हो रहे विकास कार्य को देखते हुए लगता है कि यही स्थायी राजधानी रहेगी। पिछले दिनों देहरादून के साल 2020 तक के मास्टरप्लान की पत्रकारों के सामने घोषणा के समय मुख्यमंत्री खंडूरी ने मास्टरप्लान का संबंध राजधानी से नहीं कहकर अटकलों पर विराम लगा दिया था, लेकिन राजधानी का सवाल अनसुलझा ही रहा।
उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) गैरसेण को राजधानी बनाने को लेकर सबसे अधिक जोर देता रहा है। इस दल ने इसको चुनावी मुद्दा भी बनाया, लेकिन सरकार में शामिल होने के बाद इसके तेवर कुछ ढीले पड़ गए हैं। इसके कारण इसके नेताओं को कार्यकर्ताओं और पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ रहा है और नेता अपनी पैठ खो रहे हैं। इनके अलावा कई महिला संगठन भी गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग को लेकर समय-समय पर धरने प्रदर्शन करते रहे हैं। यहां तक कि इन लोगों ने विधानसभा सत्र के दौरान सदन में पर्चे भी फेंके।
इस मुददे को लेकर संयुक्त संघर्ष समिति ने अब अपना आंदोलन तेज किया है। जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन के साथ ही आगामी विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा कूच करने का भी इनका कार्यक्रम है।
राजधानी स्थल चयन आयोग की रिपोर्ट में क्या है यह तो अभी रहस्य ही है, लेकिन मिली जानकारी के अनुसार नौकरशाह देहरादून को छोड़कर कहीं और राजधानी बनने देने के पक्ष में नहीं लगते। कई अधिकारियों ने अपने लिए बंगले भी यहीं बनवा लिए हैं। हालांकि, यहां कई सालों से रह रहे लोगों को देहरादून को राजधानी बनाया जाना रास नहीं आ रहा। विकास के नाम पर देहरादून कंक्रीट का जंगल बन गया है। पेड़ों से आच्छादित रहने वाले शहर में धड़ल्ले से कई मंजिला मकान बन गए हैं। भूमाफिया सक्रिय है। वाहनों की बढ़ती संख्या से हवा में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। मास्टरप्लान के आने के बाद लगता है यहां का विश्वप्रसिद्ध बासमती चावल और लीची की पैदावार पुराने दिनों की बात बन कर रह जाएगी।