Poll

Do you feel that the Capital of Uttarakhand should be shifted Gairsain ?

Yes
97 (70.8%)
No
26 (19%)
Yes But at later stage
9 (6.6%)
Can't say
5 (3.6%)

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Voting closed: March 21, 2024, 12:04:57 PM

Author Topic: Should Gairsain Be Capital? - क्या उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होनी चाहिए?  (Read 194540 times)

umeshbani

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 आन्दोलनों में उलझाना नेताओं का काम है जिसमे वे सफल भी हो रहे है कोई तो मुदा होना चाहिय जनता के बिच में जाने के लिए ? राजधानी का मुदा भी वेसा ही है . मेरे विचार से राजधानी का मुदा भी UKD का प्रमुख मुदा था है जो भी ......
लेकन जनता ने शायद नकार दिया था जिसका मतलब शायद अधिकार जनता को राजधानी के मुदे से कुछ खास लेना देना नहीं है उनको तो बस विकाश चाहिय बस जो उनके लिए या हमारे लिए जरुरी है ................. विकास बस विकाश चतुर्मुखी विकास......
राजधानी का मुदा ........................



क्या उत्तराखंड की जनता आन्दोलनों में ही उलझी रहेगी? कभी राज्य आन्दोलन, कभी राजधानी के लिए आन्दोलन कभी मूलभूत सुबिधाओं के लिए और कभी........... 
कब सुधरेंगे हमारे राजनेता ??? :-[  ::)  :o

हुक्का बू

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I would request my fellow members to first form an opinion about the issue and then suggest some concrete steps so that our views reach the चोरों की जमात.  May be our combined voice makes an impact.  Aameen!!




सत्य वचन,
    नातियो, अपने विचार लिखो पैल्ली

Rajen

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बुबू, पैलग.
अब क्या बिचार लिखने ठैरे?   गैरसैंण ही एक होनी चाहिए हमारी राजधानी.  इतने वर्षों से चिल्ला रहे हैं सभी.  बिचार बिमर्स तो बहुत हो गया अब तो फैसला होना ही चाहिए| 

हेम पन्त

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देहरादून। मुख्य सूचना आयुक्त ने राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट न देने के मामले में याची की अपील स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री दफ्तर को नोटिस जारी किए हैं। माना जा रहा है कि अगर आयुक्त ने आदेश किया तो दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का पिटारा खुल सकता है।

सूचना अधिकार विशेषज्ञ व वरिष्ठ अधिवक्ता नदीमुद्दीन ने मुख्यमंत्री दफ्तर के लोक सूचना अधिकारी से स्थायी राजधानी के मामले में गठित दीक्षित आयोग पर हुए कुल खर्च के साथ ही आयोग की रिपोर्ट मांगी थी। लोक सूचना अधिकारी की ओर से श्री नदीम का यह पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया गया था। इस विभाग से आयोग पर किए गए व्यय का ब्योरा तो उपलब्ध करा दिया गया पर रिपोर्ट के बारे में बताया गया कि इसे सीधे मुख्यमंत्री को सौंपा गया था। अब मुख्य सचिव स्तर से इसका परीक्षण और अध्ययन किया जा रहा है। अधिवक्ता ने इस सूचना से संतुष्ट न होते हुए विभागीय अपीलीय अधिकारी से संपर्क किया। यहां से भी लोक सूचना अधिकारी को जवाब को सही ठहराया गया। अब अधिवक्ता की ओर से मुख्य सूचना आयुक्त के यहां अपील दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री दफ्तर में सूचना पत्रों का समय पर निपटारा नहीं किया जा रहा है। इतना ही नहीं, इरादतन सूचना अधिकार के तहत जानकारियां नहीं दी जा रही है। उन्होंने आयोग ने दाक्षित आयोग की रिपोर्ट दिलवाने, सूचना देने में हीलाहवाली करने वाले अफसरों के खिलाफ जुर्माना लगाने की मांग की है। आयोग ने इस अपील को विचारार्थ स्वीकार करके मुख्यमंत्री दफ्तर से लोक सूचना अधिकारी और विभागीय अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी कर आयोग में पेश होने को कहा है। माना जा रहा है कि अगर आयोग ने निर्णय दिया तो दीक्षित आयोग का पिटारा खुल सकता है। यहां बता दें कि सूबे के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के कार्यकाल में गठित इस एक सदस्यीय दीक्षित आयोग ने साढ़े छह सालों तक काम किया। इसके बाद गत जुलाई माह में आयोग ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी थी। सरकार ने इस रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया और हर बार यही बताया गया कि मुख्य सचिव स्तर से इसका परीक्षण किया जा रहा है। राजनीतिक कारणों से इस रिपोर्ट का पिटारा बंद रखा गया था। अब अगर आयुक्त ने निर्देश पर इसका खुलासा होता है तो लोकसभा चुनाव के दौरान सूबे में सियासी माहौल खासा गर्म हो सकता है।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। मुख्य सूचना आयुक्त ने राजधानी चयन आयोग की रिपोर्ट न देने के मामले में याची की अपील स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री दफ्तर को नोटिस जारी किए हैं। माना जा रहा है कि अगर आयुक्त ने आदेश किया तो दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का पिटारा खुल सकता है।

सूचना अधिकार विशेषज्ञ व वरिष्ठ अधिवक्ता नदीमुद्दीन ने मुख्यमंत्री दफ्तर के लोक सूचना अधिकारी से स्थायी राजधानी के मामले में गठित दीक्षित आयोग पर हुए कुल खर्च के साथ ही आयोग की रिपोर्ट मांगी थी। लोक सूचना अधिकारी की ओर से श्री नदीम का यह पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दिया गया था। इस विभाग से आयोग पर किए गए व्यय का ब्योरा तो उपलब्ध करा दिया गया पर रिपोर्ट के बारे में बताया गया कि इसे सीधे मुख्यमंत्री को सौंपा गया था। अब मुख्य सचिव स्तर से इसका परीक्षण और अध्ययन किया जा रहा है। अधिवक्ता ने इस सूचना से संतुष्ट न होते हुए विभागीय अपीलीय अधिकारी से संपर्क किया। यहां से भी लोक सूचना अधिकारी को जवाब को सही ठहराया गया। अब अधिवक्ता की ओर से मुख्य सूचना आयुक्त के यहां अपील दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री दफ्तर में सूचना पत्रों का समय पर निपटारा नहीं किया जा रहा है। इतना ही नहीं, इरादतन सूचना अधिकार के तहत जानकारियां नहीं दी जा रही है। उन्होंने आयोग ने दाक्षित आयोग की रिपोर्ट दिलवाने, सूचना देने में हीलाहवाली करने वाले अफसरों के खिलाफ जुर्माना लगाने की मांग की है। आयोग ने इस अपील को विचारार्थ स्वीकार करके मुख्यमंत्री दफ्तर से लोक सूचना अधिकारी और विभागीय अपीलीय अधिकारी को नोटिस जारी कर आयोग में पेश होने को कहा है। माना जा रहा है कि अगर आयोग ने निर्णय दिया तो दीक्षित आयोग का पिटारा खुल सकता है। यहां बता दें कि सूबे के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के कार्यकाल में गठित इस एक सदस्यीय दीक्षित आयोग ने साढ़े छह सालों तक काम किया। इसके बाद गत जुलाई माह में आयोग ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी थी। सरकार ने इस रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया और हर बार यही बताया गया कि मुख्य सचिव स्तर से इसका परीक्षण किया जा रहा है। राजनीतिक कारणों से इस रिपोर्ट का पिटारा बंद रखा गया था। अब अगर आयुक्त ने निर्देश पर इसका खुलासा होता है तो लोकसभा चुनाव के दौरान सूबे में सियासी माहौल खासा गर्म हो सकता है।

हुक्का बू

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गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिये भूगोल और विग्यान पर आधारित मेरे विचार
नोट- इस विचार में गलती भी हो सकती है, क्योंकि इसे एक अल्प शिक्षित व्यक्ति लिख रहा है।

उत्तराखण्ड की राजधानी अभी देहरादून है, जो कि पहाड़ों से नीचे घाटी में है, जिस कारण प्रदेश सरकारें जो विकास की गंगायें बहा रही हैं (समाचार पत्रों के विग्यापन, इलेक्ट्रानिक मीडिया में चल रहे विग्यापनों के अनुसार) वह पहाड़ों तक नहीं पहुंच पा रही है। क्योंकि देहरादून से जो विकास की गंगा सरकार बगाती है वो मैदानी एरिया में थोड़ा-थोड़ा सरक पाती है और देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल के कुछ हिस्सों तक ही उस विकास का पानी पहुंच पाता है।
        अब भाई बात भी सही ठैरी, अब पानी नीचे से ऊपर को तो जायेगा नहीं, अब सरकार बडी़ मुश्किल से कर्जा मांग-मूंग करके गंगा बहा दे रही है, अब पहाड़ में इस गंगा का पानी पहुंचाने के लिये सरकार पम्पिंग योजना कैसे बनाये। यह तो प्रकृति का नियम ठेरा कि कोई चीज नीचे से ऊपर की ओर नहीं जा सकती। गलती पहाड़ में रह रहे लोगों की है, और वहां से खाली बर्तन के तले का पानी दिखा-दिखा कर कोस रहे हो कि विकास की गंगा के कुछ छींटे हमारी ओर ले फेंको, सरकार बिचारी क्या करे, जिस दिन से सत्ता आयी, उस दिन से ले चुनाव, दे चुनाव। कभी ददा रिसा जाता है, कभी भाया रिसा के दिल्ली चला जाता है। इनको सम्भालें कि तुम्हारे यहां पानी नहीं आ रहा उसको देखें। पहले तो अपने भाया-ददा को देखना होगा, हैलीकाप्टर में विकास की गंगा का पानी भर-भर कर इन रिसाये ददाओं-भुलाओं के घर तक भी पहुंचाना ठेरा। भई! कुसीं रहेगी तो तुमको भी देख सकेंगे ना, किसी दिन।
        अब मोरी में रहने वाले कह रहे हैं कि देहरादून में डामर वाली अच्छी-खासी सड़क पर दोबारा डामर पोत रहे हो और हमारे यहां आज तक डामर नहीं हुआ, एक बार कर दो। अरे भाई! किसने कहा तुम्हारे पुरखों से कि ऊंच्चा डाणा में जा के बैठो, हैं! अब ये पानी कसिके पहुंचाये तुम्हारे यहां।
        मेरा तो सरकार से, नीति नियंताओं से अनुरोध है कि इस प्रदेश की राजधानी पहाड पर ही यानी गैरसैंण में बना दे, ताकि वहां से विकास की गाड़ का पानी थोड़ा पहाड़ों पर भी जा सके और कुछ छींटे ऊपर तक भी पहुंच सकें, नीचे तो वह अपने आप आ ही जायेगा।

हलिया

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बुबू पैलाग हो.
बात आपकी बिलकुल ठीक ठैरी, वो हमारे यहाँ कहते हैं ना की "पैली आत्मा फिरि परमात्मा" | अब इन नेताओं को हम क्योँ बुरा कहें अभी तो इन्होने अपना ही भला पूरी तरह नहीं किया, जनता की बारी कहाँ से आयेगी.  भोट दो और खुश रहो और हाँ भोट के लिए मार-पीट करो अपनों से कि अमुक को ही भोट देना है अब ये बात अलग ठैरी की जिसको भोट देने के लिए तुम लाठी चला रहे हो वो न तो आपको जानता है और नहीं आपके गों को लेकिन ये लोग ठैरे हो बिद्वान देहरादून में बैठ कर ही आपको/हमको चला रहे हैं......

पंकज सिंह महर

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उत्तराखंड को पृथक राज्य बने लंबा अरसा हो गया है, लेकिन अब तक इसकी स्थायी राजधानी तय नहीं हो पायी है। इसके लिए दीक्षित आयोग का गठन किया गया। आयोग ने तकरीबन साढ़े छह साल तक कार्य किया और अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी, लेकिन इस रिपोर्ट में क्या है, इस बात का खुलासा अभी तक नहीं हुआ है। वस्तुत: स्थायी राजधानी को लेकर सभी राजनीतिक दलों के अपने-अपने राजनीतिक मकसद हैं। कोई भी दल राज्य हित में नहीं सोच रहा है। सभी इसे अपने-अपने हिसाब से देख रहे हैं। शायद यही कारण है कि दीक्षित आयोग की रिपोर्ट शासन की फाइलों में दबी पड़ी है। सरकार दीक्षित आयोग की रिपोर्ट स्वीकार करे या न करे, कम से कम यह बात तो सामने आनी ही चाहिए कि आखिर साढ़े छह वर्ष में दीक्षित आयोग ने क्या तय किया है। अगर आयोग की रिपोर्ट गोपनीय ही रखनी थी तो आयोग के गठन का औचित्य ही क्या था। कई बार ऐसा होता है कि सरकार आयोग तो गठित कर देती है, समय-समय पर इसका कार्यकाल बढ़ाया जाता रहता है, अंतत: आयोग रिपोर्ट भी दे देता है, लेकिन कई तरह के कारण बताकर इसे फाइलों के बीच दबा दिया जाता है। इससे ऐसा आभास होता है कि शायद आयोग का गठन समय पास करने के लिए किया गया है। कभी-कभी तो आयोग की रिपोर्ट इतने विलंब से सार्वजनिक होती है कि निरर्थक साबित होती है। अब एक अधिवक्ता की याचिका पर मुख्य सूचना आयुक्त ने सक्रियता दर्शायी है। लगता है कि अब सरकार ज्यादा समय तक दीक्षित आयोग की रिपोर्ट गोपनीय नहीं रख सकेगी। फिलहाल सरकार ने अध्ययन के नाम पर रिपोर्ट रोक रखी है। बेहतर हो कि सरकार स्वयं ही जल्द से जल्द इसका अध्ययन कर इसे सार्वजनिक कर दे। अगर यह रिपोर्ट राज्य हित में है तो बजाय रोकने के इसे तत्काल लागू किया जाना चाहिए। जो भी निर्णय हो, उसे राज्य के हित में जल्द से जल्द अमल में लाया जाना चाहिए।
 

हेम पन्त

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सही बात कही है पंकज दा! रिपोर्ट मिल जाने पर उसे दबा कर ही रखना था तो आयोग पर इतना समय व धन खर्च करना तो निरर्थक हो गया. तो क्या आयोग सिर्फ लोगों की भावनाओं को दबाने के लिये एक झुनझुना था?

और रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाने पर क्या कोई विस्फोट हो जायेगा? फिर इसको लोगों के सामने रखने में विलम्ब करने का क्या औचित्य है?

लगता है कि गैरसैंण के समर्थन में ही आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी है, और अगर रिपोर्ट जनता के सामने रख दी गई तो फिर सरकार के सफेदपोश नेताओं और टाईधारी अफसरों को गैरसैंण का मुद्दा टालने के लिये कोई नया चक्कर चलाना पङेगा. अब कैसे टलेगा राजधानी का मुद्दा? यही सोचने में तो समय लग रहा है सरकार को.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hem Da,

Govt is quite on this issue whereas the election winds is blowing on high hills for Lok Sabha.

Govt must forget this issue and there is fear of lossing 1000 crore which has already been allotted to UK for shifting the capital. This amount will get lapsed if the capital is not shifted by 2010.



सही बात कही है पंकज दा! रिपोर्ट मिल जाने पर उसे दबा कर ही रखना था तो आयोग पर इतना समय व धन खर्च करना तो निरर्थक हो गया. तो क्या आयोग सिर्फ लोगों की भावनाओं को दबाने के लिये एक झुनझुना था?

और रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाने पर क्या कोई विस्फोट हो जायेगा? फिर इसको लोगों के सामने रखने में विलम्ब करने का क्या औचित्य है?

लगता है कि गैरसैंण के समर्थन में ही आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी है, और अगर रिपोर्ट जनता के सामने रख दी गई तो फिर सरकार के सफेदपोश नेताओं और टाईधारी अफसरों को गैरसैंण का मुद्दा टालने के लिये कोई नया चक्कर चलाना पङेगा. अब कैसे टलेगा राजधानी का मुद्दा? यही सोचने में तो समय लग रहा है सरकार को.


 

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