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भोजन ही रोग उतपन्न व रोग समाप्त करद
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 28 th  अठाईसवाँ  अध्याय   ( विविधशित पीतीय   अध्याय   )   पद  ४   
  अनुवाद भाग -  २५१
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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ये आहारन तीन वस्तु बणदन -  प्रसाद रूपी रस ,किट्टं या आहार भाग अर  मल।  यामादे किट्ट  भागन पसीना , मूत , मल , वायु , पित्त , कफ अर कन्दूड़ , आँख , दुःख , आज , कूप , प्रजनन का उपमान हूंद।  अर दाड़ी , बाळ , रोम , मूछ , नंग आदि तै पुष्ट कारी हूंद। 
आहारक रस रुपए प्रसादन रस , रक्त मांस , मेद , अस्थि , मज्जा , शुक्र , ओज तथा पृथ्वी - तेज , २ वायु , आकाश पंचभूत त  इन्द्रिय निर्मित करदन।  अत्यंत शुद्ध रूप म वायु , शरीर तै बंधण वळ स्नायु , शिरा अदि संधियां , आर्तव व दूध निम्रं करदन।  यी सब मल नामक धातु या प्रसाद रूप धातु , रस अर मल द्वारा पुष्ट हूंदा आयु अनुसार परिणाम से निर्मित हूंदन।  ये अनुसार शरीर क आपण  स्वरुप स्थिर हूण पर धातु साम्यवस्था म रौंदन।  प्रसाद रूप धातुओं क क्षय व वृद्धि जु निमित्त लेकि हूंदी वो आहार क कारण ही हूंद।  इलै  आहार द्वारा क्षय व वृद्धि का समय उतपन ह्वेका आरोग्यता उतपन्न हूंद।  इनि किट  व मल बि आरोग्य सम्पादन म सहायक हूंदन।  अपण परिमाण से बिंडी वड़ यां किट  अर  मल बि भैर निकाळि शीत  से उतपन्न मल तै उष्ण , उष्ण से उतपन्न हुयुं मल तै शीतपरिचर्या से मल शरीर क धातुओं तै समान्यवस्था म रखद।  मल का धातुओं सोत्र गमन करण का मार्ग छन अर सत्र जु जै  जैक छन  वो धातुओं तै पूर्ण करदन ।   ये प्रकार से  पूरो शरीर खायुं , पियुं , चाट्यूं , दन्तं काटयूं , आहार रुपया रस से भरपूर हूंद. रोग बि ये शरीर म खाइक , पैक , चाटिक , कातिक ही हूंद।  यूं  मदे हितकारी धातुओं सेवन हितकारी व अहितकारी धातु सेवन अहितकारी हूंदन। ४।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३७५ -३७६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

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नौडी (थलीसैण पौड़ी गढ़वाल  ) के एक भवन  की  काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन

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    Tibari, Traditional  House Wood Art in House of, Naudi village, Thalisain,  Pauri Garhwal      

पौड़ी गढ़वाल, के  भवनों  (तिबारी,निमदारी,जंगलेदार मकान,,,खोली ,मोरी,कोटिबनाल ) में  गढवाली  शैली   की  काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन -628 


 संकलन - भीष्म कुकरेती    

-बालकृष्ण चमोली  द्वारा प्रस्तुत छायाचित्र में भवन दुपुर है व तल तल (ग्राउंड फ्लोर ) में काष्ठ  कला कोई विशेष नहीं है क्योंकि सभी स्पॉट व ज्यामितीय कटान के द्वार व सिंगाड़ (स्तम्भ ) दिख रहे हैं।  काष्ठ कला दृष्टि से भवन के प्रथम तल पर दो भागों में कष्ट कला विशेष है।  छायाचित्र से लगता है है प्रथम तल पर दो तिबारियां हैं।  एक तिबारी में सिंगाड़ , द्वार सभी सपाट व ज्यामितीय कटान के ही हैं।  समानांतर में दुसरी र  पारम्परिक   गढ़वाली शैली के सिंगाड़ युक्त तिबारी स्थापित है।  इस तिबारी के चाओं सिंगाड़  (स्तम्भ ) के आधार में अधोगामी पद्म पुष्प दल , फिर ड्यूल ऊपर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल की कला अंकन हुआ है।  इसके ऊपर स्तम्भ  फिर यही कला कर्मवत पुनरावृति होती है।  पद्म दलों ड्यूल में भी कला उत्क्रीर्ण हुआ है।  ऊपरी सीधे कमल दल के ऊपर स्तम्भ थांत में परिवर्तित होता है व यहीं से तोरणम (Arch , मेहराब ) भी अवतरित होते हैं।  तोरणम के स्कंध में फूल पत्तियों व लताओं का उकीर्ण हुआ है व किनारे पर सूरजमुखी पुष्प शगुन के रूप में अंकित हुआ है।  तिबारी में तोरणम के ऊपर चित्रकारी युक्त पत्तियां (शीर्ष पट्टी ) हैं।  ऐसा लगता है इस पट्टी पर कोई दैवी या शगुन चिन्ह लगा था।  तिबारी भव्य व सुडोल है व नौडी की शान थी।  भवन की देखरेख सही ढंग से रखने के कारण कला जीवंत है।  भवन की काष्ठ कला भव्य है व ज्यामितीय , प्राकृतिक व संभवतया मानवीय अलंकरण वाली चित्रकारियुक्त है।  

सूचना व फोटो आभार: बालकृष्ण चमोली 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022 

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी श्रृंखला  जारी रहेगी,पौड़ी गढ़वाल के भवनों की काष्ठ कला , उत्तराखंड भवनों की काष्ठ कला    * पौड़ी की लकड़ी  नक्कासी 
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योगिनी एकादशी व्रत कथा
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सर्वप्रिय लेखिका अनिता नैथानी ढौंडियाल
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हिन्दू धर्म ग्रंथों मा हर इगादसी कु अलग-अलग महत्व बतयेगी यांका हि वजा से यूं कु नौं भि अलग अलग रखे गी।हर साल मा चौबीस इगादसी होंदंन। मलमास कि इगादस्यूं तैं मिलैकि इ छब्बीस ह्वे जंदन।यूं इगादस्यूं मा एक इगादसीअसाड़ा मैना कि कृष्ण पक्ष की इगादसी च जैंतै योगिनी इगादसी बोल्दन।यांकू बर्त लेण से सौब पापूं कु नास ह्वे जांद अर ये लोक मा भि सुख अर परलोक मुक्ति मिल जांदी। बर्त कथा माभारत क टैमै बात च एक बार धर्मराज युधिष्ठिर न भगवान श्री कृष्ण म बोली कि हे त्रिलोकीनाथ मिन जेटा मैना कि शुक्ल पक्ष कि निर्जला इगादसी की कथा सुणी। अब कृपा करी असाड़ा मैनै कृष्ण पक्षै इगादसी कथा सुणावा। श्रीकृष्ण भगवान न बोली हे पांडु पुत्र असाड़ा मैनै कृष्ण पक्षै इगादसी कु नौ योगिनी इगादसी च ये बर्त से सौब पाप खतम ह्वे जंदन।यु बर्त ये लोक भोगी परलोक मा मुक्ति देण वालू होंद।हे धरमराज या इगादसी तिन्नी लोकूं मा प्रसिद्ध च तुम तैं मि परणौं कि कथा सणौदु, ध्यान से सुणा। कुबेर नौ कु एक राजा अलकापुरी नौ की नगरी मा राज करदू छौ।वु शिव भक्त छौ। वेकु हेममाली नौ कु एक यक्ष सेवक छौ जु पूजा कु तैं फूल लौदु छौ।हेममाली की विशालाक्षी नौ की भौत सुंदर स्त्री छै। एक दिन वु मानसरोवर से फूल लेकि ऐ। पर फूलूं तैं रखी अपणी घौरवली दगड़ रमण कन लगी अर दुफरु ह्वेगी राजा कुबेर हेममाली का सारा लग्यूं रै जब द्वफरा ह्वेगी त वेन भौत नाराज ह्वेकि अपणा सेवकों तैं आदेश दे कि पता लगावा कि हेममाली अबी तक फूल लेकि किलै नि ऐ। जब सेवकोंन पता करी त राजा तैं सब बात बतै।य बात सूणी राजा कुबेरन हेममाली तैं बुलै।डौरन कंबदू कंबदू हेममाली राजा समण ऐ। वे देखी राजा तैं भौत गुस्सा ऐ वेकाओंट गुस्सन फफरौंणा छा। राजन बोली हे पापी तिन मेरा पूजनीय देबतौं की बेजत्ती कै देबतौं क देव शिवजी कु अपमान कैरी, मि त्वे तैं शराप देंदू कि तू स्त्री क बिछोह मा तड़पी मृत्युलोक मा जैकी कोड़ी कु जीवन जी कुबेरा शरापन वु धरती मा पोड़ी अर कोड़ी ह्वेगी।वेन भौत कष्ट भोगनी पर शिव की किरपा से वैकी बुद्धि खतम नि ह्वे अर वे तैं पूर्व जनमै भि याद रै। अपरा पुरणा जनमै याद करी वु हिमालै पहाड़ क तरफ चल गी।चलदा चलदा वु ऋषि मार्कण्डेय क आश्रम मा पौंच गी वु ऋषि भौऔत बड़ा तपस्वी छा व ब्रम्मा जन दिखेणा छा। ऋषि तैं देखी हेममाली वख गै अर वूंका खूट्टौं मा पोड़ गी। मार्कण्डेय ऋषि न पूछी कि तिन इना क्य करम कन्नी कि तेरी य दसा हूईं च। हेममाली न सैरी बात बतै अर बोली कि कृपा करी क्वी उपाय बता जासे मेरी मुक्ति होव। मार्कण्डेय ऋषि न बोली कि तिन सब सच सच बतै ये वास्ता मि तेरा उद्धारौ एक बर्त बतौंदू। यदि तू असाड़ा मैनै कृष्ण पक्षै योगिनी इगादसी कु बर्त बिधि बिदान से कल्लू त तेरा सौब पाप खतम ह्वे जाला। ऋषि की बात सुणी हेममाली भौत खुश ह्वे अर वेन बिधी बिदान से योगिनी इगादसी कु बर्त करी।जांसे वे तैं सौब सुख प्राप्त ह्वैनी। भगवान श्रीकृष्ण न बोली हे राजन ये बर्त कथा कु फल अट्ठासी हजार बामण जिमौंणा क बराबर होंदूं।ये बर्त नसब पाप खतम ह्वे जंदन अर प्राणी मोक्ष प्राप्त करी स्वर्ग कु अधिकारी बण जांदू।
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सूर्य देव बर्त कथा
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अनिता नैथानी ढौंडियाल

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शास्त्रों क अनुसार एक साल तक लगातार हर ऐत्वारौ ये बर्त कन से सब तरै कि शरीर क पीड़ा से मुक्ति मिलदी। शास्त्रों मा लिख्यूं च कि सूर्य कु बर्त कन से शरीर निरोगु होंद अर अशुभ फल भि शुभ ह्वे जंदन। ये दिन बर्त कथा सुणण से सबी मनोकामना पूरी होंदन अर मान सम्मान धन यश अर तब्यत भी भली रैंद।यांका अलावा कैकी कुंडली मा सूर्य दोष हो त यु बर्त जरुर कन चैंद। बर्त कन्नै बिधि ये बर्त करण से पैली यु संकलप लेण जरुरी च कदगा ऐत्वार बर्त करे जाव।यांका बाद आण वाला ऐत्वार से शुरू कर सगदां। ऐत्वार सुबेर लाल कपड़ा पैरी सूर्य मंत्र कु जाप कन चैंद यांका बाद सूर्य देव तैं पाणी ,लाल चंदन,अक्षत,लाल फूल अर दुबलन अर्ध देकि पूजा कन चैंद।खाणू सूर्य असलेकी खण चैंद। खाणू मा ग्यूं क रव्ट्टी,दलिया,दूध,दै अर घी जरुर होण चैंदीं। बर्त रखी अच्छू खाणू खाण चैंद जांसे शरीर तैं तागद मिल्द।खाणू मा लोण ऐंच मा डाली नि खाण अर घाम असलेणक बाद त लोण बिल्कुल नि खाण। ये दिन चौंल मा दूद, गुड़ मिलैकि खाण से सुर्यक बुरा असर नि पोड़़द। कथा पुरणा जमनै बात च।
          एक बुढड़ी छै ज्वा हमेशा घाम औण से पैली उठी भैर जैकी अपणा चौक तैं मोलन लीपी साफ करदी छै।यांकां बाद सूर्य देव क पूजा अर्चना करदी छै अर बर्त कथा भि सुणदी छै।ये दिन सूर्य देव तैं भोग लगैकि एक बार खाणू खांदि छै। सूर्य देव वीं बुडड़ी से भौत खुश छा। जै कारण वीं तैं क्वी कष्ट नि छौ अर धन दौलत से भी भरपूर छै। जब वींकी पड़ोसनी न देखी कि वा सब तरै से सुखी च त वा वींसे जलण लगी। बुडड़ी गौड़ी नि छै इलै वा वीं पड़ोसनी क चौक बटी मोल लौंदी छै। पड़ोसी न बुडड़ी तैं परेशान कन्नू अपड़ी गौड़ी भितर बांद दे।अगला ऐत्वारौ बुडड़ी तैं चौक लिपणू मोल नि मिली त वींन सूर्य देव तैं भोग नि लगै अर ना अफू हि खाणू खै ।सैरा दिन भूकी तीसी रैकि से गी।
          अगला दिन जब वा से कि उठी त वीन देखी कि वींका चौकम एक सुंदर गौड़ी अर एक बछरू बंंध्यूं छौ वा हकबक रैगी।वीन गौड़ी तैं घास पात खलै।य देखी वींकी पड़ोसन हौर जलण लगी।पड़ोसणीन गौड़ी क समण सोना मोल देखी त वींन उ मोल उठैकि अपड़ा गौड़ा मोल वखम धैर दे।सोना मोलन पड़ोसणी भौत मलामाल ह्वेगी।बुडड़ी तैं सोना मोला बारा मा कुछ पता नि छौऔ।वा पैली तरां पूजा पाठ कथा करणी रै। जब सूर्य देव तैं पता लगी त ऊन भारी बथौं चलै दे जांसे बुडड़ीन अपणी गौड़ी भितर बांद दे। तब बुडड़ी तैं सोना मोलौ पता लगी। तब से वींन अपड़ी गौड़ी भितरी बांदी रखी। कुछ दिन मा बुडड़ी भौत र ईस ह्वेगी। अब पड़ोसणी हौर जलण लगी।वींन अपणा मालिक तैं सिखै पड़ैकि राजम भैजी।राजा सोना मोल करण वली गौड़ी देखी भौत खुश ह्वे अर गौड़ी लीग्गी। अब बुडड़ी भूकी तीसी सूर्य देव से प्रार्थना करणी छै। सूर्य देव तैं वीं पर भौत दया ऐ। वीं रात सूर्य देव राजा सुप्यन मा ऐनी अर बोली कि हे राजा बुडड़ी गौड़ी बछरु जल्दी वापस कर निथर त्वे पर भौत परेशानी ऐ जाली। राजा भौत डौर गी अर बुडड़ी गौड़ी बछरु वापस कर दे।दगड़म भौत धन दौलत देकी माफी बि मांगी।उनैं पड़ोसणी अर वींका मालिक तैं सजा बि दे।यांका बाद राजा न सैरा राज्य मा घोषणा करी कि ऐतबारौ हर क्वी बर्त करु। सूर्य देव क बर्त करण से हर क्वी धन धान्य से परिपूर्ण ह्वै जांद अर घौर बि खुशहाल ह्वै जंदन।
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शनिवार  व्रत  कथा
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सर्वप्रिय लेखिका अनिता नैथानी ढौंडियाल
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 एक बार सब्या नौग्रहौं सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, वृहस्पति ,शुक्र,शनि, राहु और केतु मा बहस ह्वेगी कि सम्मा बड़ु कु छ।सबी आपस मा लड़ण लग्गैं अर क्वी फैसला नि होण पर देवराज इन्द्र म फैसला करणू पौंछ गेनी। इन्द्र ईं बात से घबरैं गेनी अर फैसला करणू ना बोल दे। पर ऊन सला दे कि इबरी धरती मा भौत सच्चू राजा बिक्रमादित्य छ,वी ईं बातौं फैसला कर सकदन। सब्या ग्रह एक दगड़ राजम पौंच गेनी अर अपण बात बतै।अर फैसला करणू बोली।राजा भौत परेशान ह्वेगी कि कैतैं बि छ्वटु बतै त वु नाराज ह्वे सकदू।तब राजा दिमाग मा एक तरकीब ए। वेन सोना चांदी,कांसा,पितलु,कांच,रांगा ,जस्ता, अभ्रग अर लुआ सिंगासण बणवैनी अर सब्यूं तै अपणा अपणा सिंगासण मा बैठणू बोली। जु आखिरी सिंगासण मा बैठलू वी सबसे छ्वटू होलू। अब लुआ सिंगासण सबसे बादम होण से शनिदेव सबसे बाद मा बैठिनी।ए वास्ता वी सबसे छ्वटा मनै गेनी।ऊन सोची कि यु राजन जाणबूजी करी।ऊन नाराज ह्वेकि राजम बोली कि हे राजा तू मैं तैं नि जणदू। सूरज एक राश मा एक मैना, चन्द्रमा सवा द्वी मैना द्वी दिन, मंगल डेढ़ मैना, वृहस्पति तेरा मैना,बुध अर शुक्र एक एक मैना घुमदन, पर मी ढै से सड़े सात साल तक रौंदु। बड़ौ बड़ौ कु बिणास कर्यूं च मेरू। श्री राम की साढ़ेसाती औंण पर ऊंतै बणवास ह्वे,रावण तैं बांदरौं कि सेना से हरण पोड़, अब तू सावधान रै। इन बोली शनिदेव नाराज ह्वे किवख बटीचल गेनी। कुछ टैम बाद राजा की साढ़ेसाती ए ।तब शनिदेव घोणौं कु ब्यपारी बणी वख ऐ ऊं दगड़ी भौत कै बड़ियां घोड़ा छा। जब राजा तैं पता चली त वेन अपड़ा घोड़ा वाला तैं बड़िया बड़ियां घोड़ा लेणू बोली त वेन कै बड़िया घोड़ा लेनी अर एक सबसे बड़िया घोड़ा राजा तैं दे।जन्नी राजा वे घोड़ा मा बैठि वु घोड़ा जंगल मा भाग गि अर गैब ह्वेगी अर राजा भूकु तीसू भटगुणूं रै।तब एक ग्वेरन वे तैं पाणी पिलै।राजन खुश ह्वेकि वेतैं अपणी गुंठी देदे। अर अफु नगरौ चल गी वख वेन अपणु नौ उज्जैनौ रौण वालू वीका बतै। वख एक सेठा दुकानम पाणी पेकि आराम करी ।किसमत से वेदिन सेठै भौत बड़ी बिक्री ह्वे।सेठ खुश ह्वेकि वेतैं अफु दगड़ अपणा घौर लीगी अर खाणू पेणू खलै। वख वे तैं खूंटी पर हार टग्यूं दिखे जैतैं व खूंटी घुलणी छै । थोड़ा देरम वु हार गैब ह्वेगी । जब सेठन देखी कि हार गैब ह्वेगी त वेन समजी कि वीका नी चोरी होलू। वेन वीका तैं कोतवाल म पकड़वै दे। फिर राजान भि वेतैं चोर समजी हाथ खुट्टा कटवैकी नगर से भैर फिंकवै दे।वख एक तेली तैं वे पर दया ऐ अर वेन वीका तैं अपड़ी गाड़ी मा बैठै दे।वु अपणी जीबन बल्दूं तैं हंकण लग गी। वे टैम राजा की शनि दशा खतम ह्वेगी बषगाल औंण पर वु मल्हार गाण बैठ गी।उबरी वु जै नगर मा छौ वखै राजकुमारी मनभावनी तैं वु इतगा अच्छू लगी कि वीन मन ही मन कसम खै कि वा वे राग गाण वाला दगड़ हि ब्यो कल्ली।वीन दासी तैं वे तैं ढुंढणू भेजी। दासी न बतै कि वु एक चौरंगिया च। पर राजकुमारी नि मानी।अगला दिन वा अनशन पर बैठ गी कि ब्यो कल्ली त वे ही दगड़। जब भौत समझौण पर भी नि मानी त राजन वे तेली तैं बुलै अर ब्यो की तैय्यरी करणू बोली। तब वेकू ब्यो वीं राजकुमारी दगड़ ह्वे। एक दिन सैदीं दां सुपिना मा शनिदेव न राजा मा बोली कि देखी तुमुन मैं तैं छ्वटु बतै कि कतगा दुःख झेली। तब राजन वूंसे माफी मांगी प्रार्थना करी कि हे शनिदेव जन दुःख मैं तैं दे कै हौर तैं नि देनी। शनिदेव मान गेनी अर बोली कि जु मेरी कथा अर बर्त करलू वेतैं मेरी कै भि दशा मा क्वी दुःख नि होलु।जु हमेशा मेरू ध्यान करलू,अर किरमोलौं तैं आटू देलू वेका सब मनोरथ परा होला। तब राजा हाथ खुट्टा भी वापस कर देनी। सुबेर राजकुमारीन देखी त वा हकबक रैगी। तब वीकन वींतै बतै कि वु उज्जैन कु राजा विक्रमादित्य च। सब्या भौत खुश ह्वेनी।सेठन जब सुणी त वु खटृटौं मा पोड़ी माफी मंगण लगी।राजन बोली कि यु त शनिदेवौ प्रकोप छौऔ। या मा कैकू क्वी दोस नी च। तब सेठन निवेदन करी कि मै तैं शान्ति तबी मिलली जब तुम मरा घौर चली खाणू खैला।सेठन राजै खूब आवभगत करी तब सबुन देखी कि जु खूंटी हार घुलणी छै वै अब वे तैं उबलणी च।सेठन कै मोहरैं देकी राजौ कु धन्यवाद करी अर अपणी नौनी श्रीकंवरी दगड़ ब्यो करणू निवेदन करी।राजन भी खुशी से हां बोली। कुछ टैम बाद राजा अपणी द्वी राणीयूं मनभावनी अर श्रीकंवरी अरकै साजो-सामान लेकी उज्जैन नगरी तैं चली।वख भी पुरवासियौंन सीमा पर हु वेकु स्वागत करी।सैरा नगर तैं खूब सजै की सबुन खुशी मनै।राजन घोषणा करी कि मिन शनिदेव तैं छ्वटु बतै जबकि असल मा वु ही सबसे बड़ा छन। तब बटी सैरा राज्य मा शनिदेव की कथा अर पूजा नियम से होण लगी।सैरी प्रजा न भौत टैम खुशी अर आनन्द से बितै।जू क्वी बि शनिदेव की ईं कथा तैं सुणदु अर पड़दू च वेका सैरा दुःख दूर ह्वे जंदन। बर्ता दिन ईं कथा तैं जरूर पणन चैंदी।

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श्री वृहस्पतिवार बर्त कथा
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अनिता नैथानी ढौंडियाल
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-हिन्दू धर्म शास्त्रों मा गुरुवार वृहस्पति देव कु दिन मनै जान्द।नौ ग्रहों मा वृहस्पति सबसे भारी मनै गी।ये वास्ता ये दिन क्वी भारी काम करणै मनाही च। किले कि इन मनै जांद कि भारी काम करण से जीवन मा वृहस्पति ग्रह कु असर हलकू या कम ह्वे जांद।यांकां अलावा ज्योतिष मा वृहस्पति ग्रह तैं गुरु , शिक्षा अर धर्म कु कारक भि मने गी। गुरु ग्रह कमजोर होण पर पढै लिखै अर धर्म-कर्म मा लगाव कम होंद। हिन्दू धर्म की मान्यताओं क अनुसार ये दिन बाल धोण ठीक नि मनै जांद,किलै कि जनन्यूं कि कुंडली मा गुरु ग्रह पति अर संतान कु कारक होंद जां से बाल धोणन दुय्यूं क जीवन पर अशुभ प्रभाव पड़दू।ये दिन बाल अर नंग कटण भि अशुभ मनै गी।जन वृहस्पति ग्रह कु असर शरीर पर पड़दू उनी येकु असर घौर पर भि पड़दू कथा भारत वर्ष मा एक प्रतापी राजा राज करदू छौ।वु भौत दानी,गरीबौं अर बामणौं की मदद करदू छौ। य बात वेकी रानी तैं अच्छी नि लगदी छै।वा दान धरम, पूजा पाठ कुछ नि करदी छै। एक दिन राजा शिकारौ जंगल मा गै अर रानी महल मा यखुली छै।वे टैम वृहस्पति देव जोगी भेसम महल मा भीख मगणूं ऐनी पर रानीन भीख देणू ना बोल दे अर बोली कि हे जोगी माराज मि दान पून्न से परेशान ह्वे ग्यूं मेरु मालिक भी भौत दान कैरी सौब रुप्या पैसा लुटयनी।मेरी इच्छा च कि यु धन धान्य सौब खतम ह्वे जाव फिर न रालू बांस न बजली बांसुरी। जोगीन बोली देवी तु बड़ी अजीब छै। धन संतान तसबी चांदन। पुत्र अर लक्ष्मी त पापी क घरम भि होण चैंदीं। यदि तुमुम जादा च त गरीबौं तैं खाणू द्यावा,प्याव बणावा,धरमशाला बणावा , गरीब कुंवारी नौन्यूं कु ब्यो करावा अर इना भौत काम छन जांसे तुम लोक परलोक मा परसिदह्वे जैला।पर राणी पर क्वी फरक नि प्वाड़।वीन बोली मी तैं इनु धन नि चैंदु जैतैं मि जगा जगा बटणू रौं जोगीन बोली जन तेरी इच्छा।तू इन कर वृहस्पतिवरौ घौर लीपी पीला माटन मुंड ध्वैकी नहे खूब कपड़ा ध्वे,इन कन्न से सब धन धान्य खतम ह्वे जालू। इतगा बोली जोगी गायब ह्वेगी। जोगीन जन बतै राणीन उनी करी। केवल तीन वृहस्पतिवार मा ही वींकू सौब धन संपत्ति खतम ह्वेगी खाणू क भी लाला पड़ ग्यनी। एक दिन राजन राणी तैं बोली तू यखी रौ मि हैंका देश जांदूं किलैकि यख मैं तैं सब पछणदन इलै मि क्वी छोट्टू काम नि कर सकदू अर राजा परदेस चल गी। वख वु जंगल बटी लखड़ा काटी शैरम बेची अपणु जीवन जींण लगी। इना राणी अर वींकी दासी दुःखी ह्वे गैनी। एक बार राणी अर दासीन सात दिन तक खाणू नि खै त राणीन दासी मा बोली यख नजीकम मेरी बैण रौंदी तु वीम जैकी कुछ लिऔ वा भौत धनवान च। दासी राणीक बैणीम गै। वे दिन गुरुवार छौ अर राणीकी बैण वृहस्पतिवारै बर्त कथा सुणणी छै।दासी न राणी कु रैबार दे पर बैणीन क्वी जवाब नि दे त दासी दुःखी ह्वे जांद अर गुस्सा भी। दासी नराणी तैं सब बतै।राणी भि अपड़ा भाग तैं दोष देंदी। उना राणी कि बैणी न सोची कि मेरी बैणी दासी ऐ पर मिन वींतै क्वी जवाब नि दे यांसे वा दुःखी ह्वे होली। कथा अर पूजा पूरी कैकी वाअपणी बैणी क घौर गै अर बोली कि हे बैणी मि वृहस्पतिवारै बर्त कथा करणू छौ त मि दासी दगड़ नि बचै सक्यूं किलै कि जब तक कथा पूरी होंदी तबरि तक न उठद छन न बच्योंदा छन इलै अब बतौ क्य बात छ तब राणीन सैरी बात बतै। राणी कि बैणीन बोली देख भगवान वृहस्पति देव सब्यों की मनोकामना पूरी करदन।देख सैद तुमरा घौरम अनाज रख्यूं हो। पैली त राणी तैं विश्वास नि ह्वे पर बैणी क बोन्न पर वीन दासी तैं भितर भेजी त सच माभितर अनाजौ घौड़ू भ्वर्यूं छौ।इ देखी दासी झक रै गे। तब दासी न राणी मा बोली कि हे राणी जब हम खाणू नि खादां त हम बर्त ही त करदां त किलै न हम यूं से बर्त कथा की विधि पूछी कि हम भी बर्त करां।
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अनुपान क गुण व हित
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान
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विधि   अध्याय   )   पद  ३१७  बिटेन  ३२३   तक
  अनुवाद भाग -  २४५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अनुपान  (जु कै औषधि तै शक्ति प्रदान करद ) - जु पदार्थ आहार गुण का विपरीत ,अर जु  धातु  विरोधी नि होवन अपितु सास्म्य रखद  होवन सि अनुपान प्रशस्त छन।  यव: पुरुषीय अध्याय म ८४ प्रकारक आसव छन।  जल पीण या नि विचार कोरी हितकारी जल पीण  चयेंद। वायुदोष म स्निग्ध अर उष्ण , पित्तविकारम मधुर अर शीतल , कफ म रुखो अर उष्ण अर क्षय म रस उपयोगी च। 
उपवास से , मार्ग चलण से , बिंडी या उच्च बुलण से , अति स्त्री संग वायु धुप , पंचकर्मों या अन्य कारणों से थकान म अनुपान दीण से अनुपान म दूध अमृत जन पथ्य व हितकारी हूंद।  म्वाट शरीर वळ तैं पाणि म शाद सेवन उत्तम च।  जौं तै मंदाग्नि ह्वावो , अनिद्रा ह्वावो , तंद्रा शोक , भय , कलम से थक्यां , मद्य मांस सेवन करण वळुं कुण मद्य अनुपान उपयोगी च।
अनुपान क गुण - अनुपान शरीर क क तर्पण /तृप्ति करद , शरीर अर  जीवन तै पुष्ट करद , तेज बढ़ांद , खायुं भोजन से मिलिक शरीर म मिल जान्दो, खायें भोजन तै पचांद ।  मिल्युं अन्न तै तुड़द अर अलग अलग करद।  शरीर म कोमलता लांद , आहार तै क्लिन्न करद , पचांद अर सुखपूर्वक पचैक, शीघ्र शरीर म पंहुचायी दीन्द।   ३१७ -३२३। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३७०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022

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शुकधान्य , शमी धान्य , मांस रसक गुण 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ३०७  बिटेन ३१३   तक
  अनुवाद भाग -  २४३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शूकधान (चौंळ , ग्यूं आदि ) , शमीधान (मूंग , मसूर , उड़द आदि ) यी एक वर्ष पुरण म प्रशस्त हूंदन।  प्रायः पुरण धान्य रखा हूंदन।  जु धान्य बूणम शीघ्र जम जावो स्यु हळका हूंदन।  मूंग आदि क छुकल उतारी भून दिए जाय तो सि लघु ह्वे जांदन। ३०७-३०८।
ताज्य मांस - मर्यूं , कमजोर प्राणी क , भौत चर्बी वळ , बुड्या पशु , बाल पशु क , विष से मर्यूं , अपण प्राकृतिक स्थल छोड़ि अप्राकृतिक दुसर जगा म पळ्यूं , (जलीय देश का पशु तै मरुस्थल म पळ्युं ) , बाग़ आदि क मर्यूं पशु , ताज्य हूंदन।  यांसे विपरीत क मांस हितकारी, पोषक , बलशाली  हूंदन।   मांस रस पुष्टिकारी , सब प्राणियों कुण हितकारी , अर हृदय प्रिय हूंदन।  कृष हूंद , शुक द रोग से उठ्युं , निर्बल , बल चाहि पुरुष वास्ता मांस रस्सा अमृत जन हूंद।  मांस रस्सा सब रोगुं तै शांत करदार हूंद, स्वर कुण ठीक , आयु वर्धन ,बुद्धि अर इन्द्रियों कुण हितकारी व बलकारी हूंदन ।  जो पुरुष नित्य व्यायाम करदो , स्त्री संग शराब सेवन करद , नित्य मांस रस्सा सेवन करदन , लम्बी उमर पांदन, निर्बल नि हूंदन । ३०९ -३१३ 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३६७-३६८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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मासौ सैंण नैली बाजार रामलीला हवाई
पब्लिका बीच मंजू भली बांद राई। 

जूनी को गरण  हे मंजू , जूनी को गरण  हे मंजू
राति बारा बजी हवाई सीता कु हरण।
 
मसौ सैंण नैली बाजार रामलीला हवाई
पब्लिका बीच मंजू भली बांद राई। 

खाई जाला आम हे मंजू, खाई जाला आम
मासो सैंण ऐकी मंजू ह्वेगे बदनाम।

मसौ सैंण नैली बाजार रामलीला हवाई
पब्लिका बीच मंजू भली बांद राई। 

कपड़ों को थान हे मंजू, कपड़ों को थान
नैली बाजार आंदि मंजू रामलीला का बान।

मसौ सैंण नैली बाजार रामलीला हवाई
पब्लिका बीच मंजू भली बांद राई। 

पाणी को गिलास हे मंजू पाटीसैण प्यूला
म्यारु यनु विचार चा मंजू ब्याऊ कैरी द्यूला।

 मसौ सैंण नैली बाजार रामलीला हवाई
पब्लिका बीच मंजू भली बांद राई। 

- लोक गीत।
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 द्वी बीजुं  कथा
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गढ़वळि  बाल कथा (सांख्य योग से प्रेरित )
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प्र . भीष्म कुकरेती
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बरखा शुरू हूण इ  वळ  छे।  तैबारी इ डक्खू  एक पक्यूं  पपीता खांद खांद  अपण  रुस्वड़ से भैर आयी।  पपीता खांद खांद  डक्खू  का हाथ म द्वी पपीता क बीज दिखेन।  डक्खून द्वी बीज   तौळ क उपजाऊ  सग्वड़ म चुलै  देन।  पपीता भौत मिट्ठु  अर पूरा पक्यूं छौ।  द्वी बीज बि जमण लैक  हुयां  छा। 
एक बीजन अपण मन इ मनम  ब्वाल -" मीन जमण च , मीन जमण च।  मि अपण जलड़ भूमि पुटुक  भिजलु अर तख म्यार जलड़ शक्ति से जम जाला. मि तब मथि  तरफ अपण कोम्पल उगौलु।  मेरी सुंदर कमल कली तब धीरे धीरे  मेरी पत्ती आली अर फिर डंठल बि ाली धीरे धीरे मि एक छुट पेड़ बण जौलु।  अर  कुछ वर्षों उपरान्त मि परिपक्व पेड़ बण जौलू।  में पर खूब बड़ा बड़ा  फल आला।  फिर लोग फल खाला अर  बीज इना ऊना चुलाला तो म्यार नया नया पेड़ उग जाला।  मि  तै जमीन पुटुक धंसण  चयेंद। "
 इथगा म बरखा आयी अर  यू  बीज जमीन पुटुक जनमणो  तयारी म लग गे।  कुछ वर्ष बाद यु बड़ो पेड़ बण गे  छौ।
 दुसर  तरफ हैंको बीज बि जमीन म पड्यूं  छौ  पर घंघतोळ (विभ्रांति ) म छौ तैन  मन म ब्वाल " जु मि अपण जलड़  भूमि पुटुक  लिजौलू अर  जु तौळ  माट स्थान पर  पौड़   ऐ  जाल , तौळ  अंध्यर  बि  होलु  हि  अर  अंध्यर मने अणभर्वस , फिर पौड़  आयी गे  तो  मेरो परिश्रम  अनर्थक चल जालो।  म्यार खोळ  से कोम्पल  आइ  गे  अर  गंडेळन खाइ  दे  तो बि  म्यार परिश्रम निष्फल ह्वे  जालो।  माना कि  मि  जामि  बि  गे  अर  क्वी बच्चा पत्तों तै तोड़ि  द्यावो त बि म्यार परिश्रम निष्फल हि  ह्वालो।  मि कुछ दिन जग्वाळ  करदो तब जमुल     "
यु नकारत्मक बीज नकारत्मक इ  सुचणु  राइ  अर  समौ  रौंद  नि  जाम।  एक दिन कुखड़  पिंजरा से फूची  ऐन  अर माट तै रदबदोलण लग गेन अर एक कुखुड़  तै स्यु पपीता बीज दिखे अर  वैन  स्यु बीज घू ळ  दे।  एक संभावना इनम  समाप्त ह्वे गे।
 कथा क सार च - जु सकारात्मक अर  बड़  सुचद  स्यु हि सफलता पांद।  नकारात्मक सोच वळ असफल ही हूंद। 




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