श्री त्रिलोक चन्द्र भट्ट द्वारा लिखित "उत्तरांचल के देवालय" में भी इसका वर्णन है, जो आपके सम्मुख प्रस्तुत है-
शिखर मन्दिर-
बागेश्वर-बेरीनाग मार्ग पर धरमघर के लगभग १० कि०मी० की दूरी पर शिखर पर्वत पर भगवान मूलनारायण का प्राचीन मंदिर है। इसी को शिखर मन्दिर भी कहा जाता है, जनश्रुति के अनुसार भगवती नन्दा ने भगवान मूलनारायण से हिमालय में नन्दादेवी की चोटी पर निवास करने का आग्रह किया। उनके आग्रह पर नारायण को वह स्थान पसन्द आ गया। शिखर से कुछ दूरी पर एक गुफा में शीतल जल का स्रोत है, जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। जनश्रुति के अनुसार एक बार नन्दा देवी इस जल स्रोत को देखने के लिये गई थी। जब वह लौट कर शिखर पर पहुंची तो मूल नारायण अदृश्य हो चुके थे। काफी खोजने के बाद जब उन्हें मूल नारायण नहीं मिले तो उन्होंने रुष्ट होकर श्राप दिया कि आज के बाद न तो हमारी-तुम्हारी मुलाकात होगी और न ही हिमालय में तुम्हारा निवास होगा, तुम यहीं शिखर में ही रहोगे। इसके बाद क्रोधित नन्दा नन्दाघूंघटी वापस चली गई।
एक अन्य जन्श्रुति है कि मालूशाही की प्रेमिका राजुला का पिता सुनपत शौक अपनी भेड़-बकरियों को लेकर इस पर्वत पर रुका हुआ था। यहा के मनोहारे दृश्य से मोहित सुनपत भगवान के ध्याने में लीन हो गया। इसी अवस्था में उसे दैविक आदेश हुआ कि वह तुरन्त अपने देश लौट जाये। जब उसकी तन्द्रा टूटी तो उसने देखा कि जहां उसकी बकरियों के करबोझे रखे थे, वहां पर अब शिला की आकृति बन गई है और बकरियां गायब हैं। आनन-फानन में वह अपने घर के लिये चल पड़ा, लेकिन घर पहुंच के उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि बकरियां उससे पहले ही घर पहुंच गई थी और उनके पीठ पर लदे करबोझे मुल्यवान रत्न और सोने से भरे हुये थे।
सन १९८१-८२ में जनता के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार कर इसे भव्य रुप प्रदान कर यहां भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवाई गई है। इस मंदिर से पुजारी धामी लोग हैं और गौखुरी के पन्त परम्परागत रुप से कथा वाचन करते हैं।