Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 52579 times)

Bhishma Kukreti

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        फा शीन यात्रा व गुप्त युगीन  विशेषताएं व हरिद्वार ,  बिजनौर व सहारनपुर इतिहास

 Characteristics of Gupta Era & Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur  -215
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 215               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 प्राचीन भारत के इतिहास में डेढ़ सौ वर्ष के गुप्त काल को भारत का स्वर्ण काल कहा  जाता है इस काल में भारत में कई मायनों में विकास हुआ।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय चीनी धार्मिक यात्री फाही यान /फा -शीन  भारत यात्रा पर आया (गाइल्स , ट्रेवल्स ऑफ फा -शीन ). फा शीन ने 322 ईश्वी में यात्रा शुरू की और गोबी रेगिस्तान , खोतान , शंशान , तारतर , कासागरा गांधार होते हुए 400 ईशवी  में भारत पंहुचा व भारत में वह 411 ईशवी  तक विभिन्न स्थानों की यात्रा करता रहा। फा शीन  ने पेशवर ,तक्षिला , पाटलिपुत्र , मथुरा , कन्नौज , पाटलिपुत्र , मालवा , श्रावस्ती , कपिलवस्तु , टॉमलिप्ति -बंगाल बंदरगाह व श्रीलंका की यात्रा की।  फा शीन 411 ईशवी में जावा होते हुए चीन पंहुचा।
    मगध के संबंध में फा शीन के उदगार
मध्यदेश में अन्य प्रदेशों की तुलना में इस प्रदेश में सबसे अधिक विशाल नगर  व कस्बे हैं। मगध में धनी लोग सहायता करते हैं।  पड़ोसियों के साथ लोगों के मधुर सबंध होते हैं व वे एक दूसरे की सहायता करते हैं।
 
       





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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       गुप्त काल में चिकित्सा सुविधाएं

Medical Facilities/Healthcare  in Ancient  Gupta Era and  History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur  216
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  216               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

   गुप्त काल के बारे में फाही यान /फा शीन सूचना देता है कि नगरों में धनी व्यक्तियों ने निशुल्क चिकित्सालय खोले हैं जहां निर्धन व धनी सभी रोगियों की निशुल्क सेवायें दी जाती हैं। रोगियों की सावधानी से देखरेख होती है।
 चरक संहिता व शुश्रुता संहिता का संकलन सम्पादन भी इसी काल में हुआ।  इस काल में शल्य उपकरण भी बनाये जाते थे।
       





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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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 गुप्त  काल का प्रशासनिक चरित्र और हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास
     
Characteristics of  Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   217             


         इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

     अपराधियों के साथ राज्य व्यवहार
गुप्त काल में अपराधियों को मृत्यु दंड  नहीं दिया जाता था अपितु आर्थिक दंड दिया जाता था।  फा  शीन अनुसार राज्य में जिव हत्या नहीं होती थी।  मदिरा , लहसुन , प्याज भी वर्जित था।
     सम्राट
राजा के शरीर रक्षकों को निश्चित वेतन मिलता था राजा देश भर में घूमता था दांडिन अनुसार राज्य में योजना बनती थी।  ऊर्जावान राजा के मंत्री सलाहकार थे। गुप्त सम्राटों के मंत्रिमंडल में राजकुमार , कुलीन मंत्री होते थे।  मंत्रिमंडल ही उत्तराधिकारी का चुनाव भी करते थे।  सूबेदार /राजयपाल सूबे के रक्षक थे।
अधिकाँश सम्राट जीवनकाल में ही अपने उत्तराधिकारी चुन लेते थे। यह नीति हर्ष काल तक भी विद्यमान रही थी।
  कई सौ प्रशासनिक अधिकारी गुप्त राज्य में कार्य करते थे उन्हें राजपुरुष , राजनायक , राजपुत्र या राजामात्य , महासामंत , म्हाकुमार आमात्य , महाप्रतिहारा , कंचुकी , अजनासन चरिकास आदि पद नाम दिए जाते थे।
       
( वी डी महाजन ,ऐनसियंट इण्डिया पृष्ठ 527 )




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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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           गुप्त काल में गणराज्यों की दशा व सर्वनाग विषयपति

        Republics in Ancient  Gupta Era History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 218               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

  यद्यपि गुप्त सम्राट एकाधिकार व केंद्रित शासन समर्थक थे तथापि कुछ राज्यों गणराज्य भी विद्यमान थे संभवतया इन  गणराज्यों के अधिपतियों ने गुप्त सम्राटों की आधीनता स्वीकार की होगी व राजयपाल रूप में स्वतंत्र कार्य करते रहे होंगे।  निम्न गणराज्य काल में कार्यरत थे -
मद्र गणराज्य - मध्य पंजाब (महाजन )
कुणिंद गणराज्य -- कांगड़ा घाटी (महाजन )  संभवतया कुणिंद राजयपाल के तहत सहारनपुर , हरिद्वार बिजनौर में भी रहे हों किन्तु बुलंदशहर के इंदौर ताम्र शासन से विदित होता है कि स्कंदगुप्त काल में सर्वनाग नामक व्यक्ति अंतर्वेदी (गंगा जमुना दोआब ) का विषयपति था।  अतः हरिद्वार सहारनपुर, बिजनौर  पर कुणिंद राजयपाल का सिद्धांत नहीं चल सकता है। सर्वनाग ही हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर व उत्तराखंड का विषयपति रहा होगा अधिक सटीक लगता है। (  डबराल )
 गोपेश्वर व बाड़ाहाट अभिलेखों से पता चलता है कि विकर्मी पांचवीं छठी  सदी में कर्तृपुर पर नागवंशी  स्थानीय शासक का शासन था व उत्तराखंड के श्चमी भाग व यामुन प्रदेश पर यदुवंशी नरेशों का शासन था (डबराल ) याने सर्वनाग वंश सत्य प्रतीत होता है
यौधेय - दक्षिण पूर्व पंजाब (महाजन )
अर्जुनानस -आगरा (महाजन )
प्रार्जुना - संकानिका व अभिर - मध्य देश )महाजन) 400 ईश्वी  के पश्चात ये सभी गणराज्य नष्ट से हो गए थे।

       

संदर्भ
वी डी  महाजन , अन्सियन्ट इण्डिया , पृष्ठ 525
शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास , भाग 3 , पृष्ठ 309



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      गुप्त काल में कर प्रशासन व सामन्य सुरक्षा प्रशासन

Revenue and Police in   Gupta Era , History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 219               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


          गुप्त काल में कर एकत्रीकरण व सामन्य सुरक्षा बल अलग अलग विभाग नहीं थे।  जैसे उत्तराखंड में पटवारी कर भी उगाहता है और  देखता है उसी तरह गुप्त काल में भी था।  इन विभागों के मुख्य अधिकारी -उपारिक , दशपराधिक , चौरोधारणिक , दंडिक , दण्डपाशिक , गौल्मिक , क्षेत्प्रांतपाल, कोटपाल , अंगरक्षक , और अयुक्तक, विनयुक्तक , राजक।
      उपारिक शब्द पर विद्वानों मध्य मतैक्य है।  बिहार पाषाण अभिलेख में उपरीक उपरीक कुमारआमात्य से पहले पयोग हुआ है। एक अन्य अभिलेख में उपरीक शब्द कुमार आमात्य व राजस्थानीय के पश्चात प्रयोग हुआ है। इतिहासकार भट्टाचार्य अनुसार उपरीक राजयपालों का अध्यक्ष होता था।

संदर्भ -वी डी महाजन - ऐन्शिएंट इंडिया पृष्ठ 527
 





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  गुप्त काल में न्यायपालिका और हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास

        Judiciary in   Gupta Era & History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   220             


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          अभिलेखों से गुप्त काल के न्याय विधान पर भी प्रकाश पड़ता है। न्यायिक अधिकारियों को महादण्ड नायक या महाक्षपतालिक कहा जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि महादण्ड नायक न्यायधीश व सेनापति का कार्य सम्भालते थे। महाक्षपतालिक संभवतया रिकॉर्ड कीपर या लेखवार होते थे।
     डा सालतोर अनुसार , अधिकारणा  संभवतया न्यायाय को कहा गया है। कुमारआमात्य,  भोंडगर व धनद पाक्षिक उपरीक के पद , अधिकार वा कार्य अलग अलग थे। ऐसा माना गया है कि अधिकारणा न्यायालय था जहां भूमि विवाद व अन्य विवाद सुलझाए जाते थे।  कालिदास ने धर्मस्थान का उल्लेख किया है संभवतया राजा जब न्याय करते थे उस स्थल को धर्मस्थल कहा जाता रहा होगा।
 

संदर्भ वी डी महाजन ऐनसियंट इण्डिया पृष्ठ 528 , 529




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       हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास परपेक्ष्य में गुप्त काल में  सामाजिक व्यवस्था

Social and Economic Condition in   Gupta Era and History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  221               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         प्राचीन काल सामान ही हिन्दू तीन भागों में बनते थे - ब्राह्मण , क्षत्रिय , बणिक  शिल्पका।   चार आश्रम नियम लागू थे।  राजा समाज का सर्वोच्च मानव था। राजा को वर्णव्यवस्था रक्षक कहा गया है।
   विवाह सगोत्री होते थे किन्तु अन्य गोत्र में विवाह अमान्य नहीं थे याने अंतर्जातीय विवाह अमान्य नहीं थे।
    ब्राह्मण व वैश्यों उच्च सम्मान प्राप्त था।  ब्राह्मण व क्षत्रियों मध्य सरल व गाढ़े संबंध थे। ब्राह्मण को उच्च सामाजिक सम्मान प्राप्त था।
    ब्राह्मण  शिक्षा अनुसार कई उपजातियों में बनते थे जैसे यजुर्वेदी , चतुर्वेदी , सामवेदी , अथर्वेदी आदि
        ब्राह्मणों को क्षत्रिय जमींदार बिना कर के भूमि देते थे व ब्राह्मण शिक्षा व चिकित्सा प्रदान करते थे। ब्राह्मणों में भारद्वाज , कश्यप , कण्व आदि गोत्र प्रचलित थे।
      क्षत्रिय द्विज याने यज्ञोपवीत धारण कर सकते थे।
 शिल्पकारों (शूद्र ) में कई जातियां कार्य अनुसार थे और चांडाल सबसे कमजोर जाती थी जो नगर से बाहर निवास करते थे किन्तु उनके बगैर किसी द्विज का कार्य संभव न था। छुवाछुत का बाहुल्य था। 




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Bhishma Kukreti

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       हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास परिपेक्ष्य में गुप्त काल का प्रशासनिक ढांचा

Administration in  Gupta Era  & History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  222               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

  गुप्त काल में प्रशासन अनुकरमगत रूप से उप्पर से नीचे तक विभाजित था।
 सबसे ऊपरी पायदान में राज्य था जिसे राज्य , देश , राष्ट्र , पृथ्वी या अवानी  कहा जाता था।  राज्य प्रदेशों या भुक्तियों अथवा प्रदेशों में विभाजित था। प्रांत या भुक्ति विषयों में विभक्त किये गए थे।  विषयों के प्रशासकों को विषयपति कहा जाता था।  विषयपति की सहायता हेतु चार अधिकरण्य होते थे जिन्हे नगरश्रेष्ठ , सार्थवाहा , प्रार्थमकुलिका , प्रार्थम कायस्थ कहा जाता था।  नगरश्रेष्ट वैश्यों  प्रतिनिधि होता था। सार्थवहा व्यापरियों का प्रतिनिधि होता , था प्रथम कुलिका कलाकारों का प्रतिनिधि होता था तो प्रथम कायस्थ लिपिक होता था।
  विषयक के भाग को वीथी कहते थे तो गाँवों के संघ को पेठका या सौरक कहते थे।  गाँव के निम्न भागों को अग्रहारा या पुट्ट कहा जाता था।
       





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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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      हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में गुप्त कालीन जनपदीय प्रशासन

   District Administration in Gupta Era and History of Haridwar, Saharanpur, Bijnor
Ancient  Gupta Era in context History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -    224             


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

   विषयपति हेतु कई सहायक होते थे जो जनपदीय प्रशासन के उत्तरदायी थे यथा -
पद  --- कार्य
महातार ---  वरिष्ठ ग्रामीण
ग्रामिक ----- ग्राम प्रधान
साौलकिक ---- आयात शुल्क एकत्रीकरण धिकारी
गौल्मिक -- वन व किला अधिकारी
अग्रहारिक -------क्षेत्रीय कुल अधिकारी
भंडाग्रधिकारी ---- कोष अधिकार
वटक पुसतपल  ------------    वित्तीय लिपिक या लेखवार
नगर प्रशासन
नगर अधिकारी को पुरपाल या नगर रक्षक कहा जाता था। कहीं कहीं पुरपाल ऊपरी का संदर्भ भी मिलता है
दासपुर अधिकारी को दासपुर पाल कहा जाता था। नगर प्रशासन हेतु नगर परिषद थी। धर्मशाला अधिकारी को अवस्थिक कहा जाता था।


       





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      गुप्त कालीन ग्राम प्रशासन व हरिद्वार , सहरानपुर , बिजनौर इतिहास

Village Administration in   Gupta Era in context History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   225             


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         गुप्त काल में ग्रामिक गाँव का प्रधान प्रशासक होता था।  ग्रामिक के अतिरिक्त सहयकों में सूचना आदान प्रदान हेतु  दूत , सीमारेखांकन व विवाद निबटारे हेतु सीमाकरमाकर , लेखक , दंडिका , चौरराधारणिक , सताभाट  थे।  ग्राम परिषद के भी संदर्भ उपलब्ध हैं। उपरोक्त अधिकारियों के कर्तव्य व  अधिकार पर विशेष प्रकाश नहीं पड़ता है। 





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