Author Topic: Poem & Article written by Himansu Purohit-हिमाँशु पुरोहित की लिखी कविताये एव ले  (Read 4044 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are posting poem & articles written by Mr Himanshu Purohit. We hope you would like the articles & poem written by Mr Purohit. Mr Himanshu belongs to Rudraprayag District of Uttarakhand. He has written poem on various social issues and in garhwali language also.

Here is the first poem written by Mr Himanshu Purohit.

हिमाँशु पुरोहितक्या फर्क है
 मुझे तो
 मैदानों
 घाटियों
 नदी नालों
 और
 खाइयों को पार करके
 बस
 पहाड़ से पहाड़ तक का
 सफर तय करना है
 और
 जीवन भर खोजना है
 केवल
 यही एक सत्य कि
 पहाड आखिर
 जमीन होते हुए भी
 जमीन से ऊँचा क्योँ है
 और असमान छूते हुए भी
 जमीन से जुड़ा क्योँ है
 इन प्रश्नों का उत्तर
 इतना सरल नहीं कि
 भूगोल की एक किताब उठाकर
 तुम कह दो कि
 पहाड़
 काश्मीर से असाम तक
 फैली एक
 हिमालय पर्वत श्रृंखला है
 जिसकी सबसे ऊंची चोटी
 माउन्ट एवेरेस्ट  ८८४८ मीटर ऊंची है
 ये प्रश्न का कोई
 वांछित उत्तर नहीं है
 प्रश्न तो यह है कि
 जमीन से जुड़े रहते हुए भी
 आसमान को कैसे छुआ जाता है
 और
 जमीन होते हुए भी
 पहाड़ कैसे बना जाता है
 प्रश्न का उत्तर केवल पहाड से पहाड़ की यात्रा है
 और
 यात्री की हर साँस
 उसका अदम्य विश्वास
 और चोटी उसकी
 इस विश्वस्त यात्रा का
 वह चरम बिन्दु
 जहाँ वह
 जमीन
 आसमान
 और
 पहाड की यात्रा के सुख को
 एकाकार रुप
 देखता
 और
 महसूस करता है
 फिर एकसाथ
 और
 यही
 पहाड़ से पहाड़ तक की
 परम सुखदायी यात्रा का अन्त
 और
 यात्रा जारी है!
— with EUttarakhand EUttaranchal and 16 others. Photo: क्या फर्क है मुझे तो मैदानों घाटियों नदी नालों और खाइयों को पार करके बस पहाड़ से पहाड़ तक का सफर तय करना है और जीवन भर खोजना है केवल यही एक सत्य कि पहाड आखिर जमीन होते हुए भी जमीन से ऊँचा क्योँ है और असमान छूते हुए भी जमीन से जुड़ा क्योँ है इन प्रश्नों का उत्तर इतना सरल नहीं कि भूगोल की एक किताब उठाकर तुम कह दो कि पहाड़ काश्मीर से असाम तक फैली एक हिमालय पर्वत श्रृंखला है जिसकी सबसे ऊंची चोटी माउन्ट एवेरेस्ट  ८८४८ मीटर ऊंची है ये प्रश्न का कोई वांछित उत्तर नहीं है प्रश्न तो यह है कि जमीन से जुड़े रहते हुए भी आसमान को कैसे छुआ जाता है और जमीन होते हुए भी पहाड़ कैसे बना जाता है प्रश्न का उत्तर केवल पहाड से पहाड़ की यात्रा है और यात्री की हर साँस उसका अदम्य विश्वास और चोटी उसकी इस विश्वस्त यात्रा का वह चरम बिन्दु जहाँ वह जमीन आसमान और पहाड की यात्रा के सुख को एकाकार रुप देखता और महसूस करता है फिर एकसाथ और यही पहाड़ से पहाड़ तक की परम सुखदायी यात्रा का अन्त और यात्रा जारी है! height=403

M S Mehta
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By - हिमाँशु पुरोहित जय उत्तराखण्ड प्रवासि दगडियोँ ।

 आज का उत्तराखण्डी  युवा अपनी भाषा बोल नहीँ पाता परन्तु कच्ची पक्की गढवाली या कुमाँऊनी बोलने की कोशिश जरुर करता है । अपने गांव नहीँ जा पाता परन्तु हर पल एक बहाना खोजता है कि कब वह मौका आयेगा जब वो अपने घर गांव मेँ जाये । जब वो दिन आता है और रात आनंदबिहार से गाडी निकलती है तो सचमानो उसके दिल मेँ उठ रही उंमगोँ की लहरोँ का पता लगाना नामुमकिन है कितना खुश होजाता है वो । रात भर गाडी मेँ सोता नहीँ है हरिद्वार आते है गंगा की ठण्डी शीतलता ओर पहाडियोँ से रिसती ठण्डी हवायेँ । ओर जब सुबह 7 बजते हैँ तो पहाडोँ की चोटी पर सुरज की लालिमा मन मेँ एक सोँधी उमंग जगा देती है । खुशियोँ के साथ जब अपने गांव पहुँचता तो सबसे पहले अपने बडोँ को सम्मान देता है ओर गाँव के ठण्डे पाणी के धारे मेँ नहा धोकर , फिर उसके बाद भात ओर गहत की दाल ( जिसमेँ धी के साथ जखिया का तडका लगा होता है ) उसको बडे चाव से खा कर सो जाता है । बेचारा 3 -4 दिन की छुट्टी कब कट जाती है पता ही नहीँ चलता है । फिर वापसी का दुख उसको आखिर रात सोने नहीँ देता । रात भर रोने का मन करता है पर रो नहीँ पाता । और फिर एक सुबह हुयी जाने का दिन आ गया ।उसको फिर यहि याद आगया कि मैँ तो प्रवासी हो चुका हुँ । निकल पडा अपने गांव मुलक छोडछाड के एक अपने पुराने आवास मेँ और फिर वहि परायापन, पराया दिन  और और ऐसा लगता है उसको कि वह खुद से पराया हो चुका हो

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हिमाँशु पुरोहित उन्द्यारी उकालूं मा रडणु च मनखि ,बिरडी की नि जाणे जाणु च कनखि
 बिसिरिग्ये गोँ घाटों  की सार ,ब्वे बाबु ते चिट्टी ना  रैबार 
 
 पड़े लिखे  मनखि बणाई ,बुवारी खुजेते ब्यो करायी
 
 अब बथों दगडी हिटणु च , उन्दारियों का  बाटा
 नि बौड्याँ ह्वै गिं ,गों गोलियूं का लाटा
 हम बुड्या ये माटा माँ मिश्ये ग्येना
 दयो -देवता भी हम ते बिशरी ग्येना
   
 तेरी खातिर कन खेरी नि खाई ,ज्येठ का मैहना माँ भी चुल्लू जगाई
 नि जाणे कख कमी व्हेगी ह्वोली  ,नोनु बाटू बिरडी ग्याई
 
 नि आलू  लाटा तू बोडी की जब
 कु दियोलू कांधू ये सरील ते तब
 
 मरदी दों म्यारा जिकुडा माँ यु रोलु  उबाल
 नि बोड़ी तु म्यर  लाटा  ,पर बोड़ी ग्ये मेरु काल
 
                                            : हिमांशु पुरोहित
Photo: उन्द्यारी उकालूं मा रडणु च मनखि ,बिरडी की नि जाणे जाणु च कनखि बिसिरिग्ये गोँ घाटों  की सार ,ब्वे बाबु ते चिट्टी ना  रैबार पड़े लिखे  मनखि बणाई ,बुवारी खुजेते ब्यो करायी अब बथों दगडी हिटणु च , उन्दारियों का  बाटा नि बौड्याँ ह्वै गिं ,गों गोलियूं का लाटा हम बुड्या ये माटा माँ मिश्ये ग्येना दयो -देवता भी हम ते बिशरी ग्येना तेरी खातिर कन खेरी नि खाई ,ज्येठ का मैहना माँ भी चुल्लू जगाई नि जाणे कख कमी व्हेगी ह्वोली  ,नोनु बाटू बिरडी ग्याई नि आलू  लाटा तू बोडी की जब कु दियोलू कांधू ये सरील ते तब मरदी दों म्यारा जिकुडा माँ यु रोलु  उबाल नि बोड़ी तु म्यर  लाटा  ,पर बोड़ी ग्ये मेरु काल : हिमांशु पुरोहित height=302

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हिमाँशु पुरोहितBy - Himanshu Purohit

नारी ममता का आकर होती है
 एक बहन  का प्यार होती है
 मोहब्बत का इज़हार होती है
 एक बेटी का श्रृंगार होती है
 
 होती तू जन्मो की साथी है
 रिश्तो को सच्चाई  से निभाती है
 
 मानो ,तो माँ बन कर जिन सिखाती है
 समझो ,तो संगनी बन कर लड़ना सिखाती है
 
 सहती है पीड़ा और दुःख
 देती दुसरे के जीवन को सुख
 
 भोग विलास का न तू कोई जरिया है
 तू तो ममता और स्नेह का दरिया है
 
 होती है जब जीवन में कठनाई
 देखि मेने ममता की तेरी परछाई
 उलझ जाता हूँ जब में किसी क्रोश में
 देती संगनी बन के सहारा ,मै आता हूँ होश में
 जाती है जब तू बचपन को छोड़ कर
 रुलाती है तू फिर आपनो को रिस्तो से जोड़ कर
 कभी देती है बंधन धागों का तू
 दे जाती है यादें बचपन की तू
 
 है सचाईयों की आस तू
 इंसानियत का विश्वास है तू
 
 ऐसी अजाब तेरी कहानी है
 नारी, सिर्फ तू ही मानवता की निशानी है
                             
 
                                 --हिमांशु पुरोहित Photo: नारी ममता का आकर होती है एक बहन  का प्यार होती है मोहब्बत का इज़हार होती है एक बेटी का श्रृंगार होती है होती तू जन्मो की साथी है रिश्तो को सच्चाई  से निभाती है मानो ,तो माँ बन कर जिन सिखाती है समझो ,तो संगनी बन कर लड़ना सिखाती है सहती है पीड़ा और दुःख देती दुसरे के जीवन को सुख भोग विलास का न तू कोई जरिया है तू तो ममता और स्नेह का दरिया है होती है जब जीवन में कठनाई देखि मेने ममता की तेरी परछाई उलझ जाता हूँ जब में किसी क्रोश में देती संगनी बन के सहारा ,मै आता हूँ होश में जाती है जब तू बचपन को छोड़ कर रुलाती है तू फिर आपनो को रिस्तो से जोड़ कर कभी देती है बंधन धागों का तू दे जाती है यादें बचपन की तू है सचाईयों की आस तू इंसानियत का विश्वास है तू ऐसी अजाब तेरी कहानी है नारी, सिर्फ तू ही मानवता की निशानी है --हिमांशु पुरोहित height=403

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हिमाँशु पुरोहित चला था एक राह लेकर , मंजिलो की ताक़ पर
 कि देखूँगा दुनिया का नया सवेरा ,आपनी ही आस पर
 पर चल रही थी जिन्दगी मेरी ,जैसे नदिया की साख पर
 बेखर रहे थे सपने मेरे ,जैसे पानी हो  उफान पर
 
 ले चला था पानी को संजो कर अपने हाथ
 टपक रहा था पानी जैसे बर्बादी की हो बरशात
 
 फिर पूछा मैंने नदिया से की कहाँ जाएगी ये जिन्दगी मेरी
 वो बोली ,जैसे गिरती हूँ मै खाई में कहीं वेसे बिखर ना जाये जिन्दगी तेरी
 
 तू बहता तो है पर सन्नाटे के साथ
 शायद खोज रहा है तू वो परछाई  जो रहे हमेशा  तेरे साथ
 
 मै सोचा ,सहमा ,समझता रहा ,शायद कौन होगी  वो मेरी परछाई
 जो होगी मेरी मंजिल और मेरे जीवन की सच्चाई
Photo: चला था एक राह लेकर , मंजिलो की ताक़ पर कि देखूँगा दुनिया का नया सवेरा ,आपनी ही आस पर पर चल रही थी जिन्दगी मेरी ,जैसे नदिया की साख पर बेखर रहे थे सपने मेरे ,जैसे पानी हो  उफान पर ले चला था पानी को संजो कर अपने हाथ टपक रहा था पानी जैसे बर्बादी की हो बरशात फिर पूछा मैंने नदिया से की कहाँ जाएगी ये जिन्दगी मेरी वो बोली ,जैसे गिरती हूँ मै खाई में कहीं वेसे बिखर ना जाये जिन्दगी तेरी तू बहता तो है पर सन्नाटे के साथ शायद खोज रहा है तू वो परछाई  जो रहे हमेशा  तेरे साथ मै सोचा ,सहमा ,समझता रहा ,शायद कौन होगी  वो मेरी परछाई जो होगी मेरी मंजिल और मेरे जीवन की सच्चाई height=403

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हिमाँशु पुरोहित


ना छौँ मैँ कुमौनी ना गढवाली
 दिदा भुलो मैँ छौँ ठेठ पहाडी
 बुर्जगौँ का लगायां पखणा बल
 द्वि कोष पर बदल दु पाणी ,अर चार कोष पर वाणी
 पर मीँ घुमीँ सैरु जौनसार ,कुमौँ - गढवाल
 फिर भी बिसरि कि मैँ छौँ ठेठ पहाडी
 बालापन मा छोडयालि छौँ मुल्क और सभि धाणी
 ऐगी छौ परदेश, छौडि कि बुवै- बाबु की निशाणि
 लगणि छै खुद जिकुडा पर तै पहाड की
 पर ये पहाड नि छौँ रोजगार , या पीडा कैन नी जाणि
 खुदाणा छन रैबासी परदेश की धोँपेली मा
 छुदना छन प्राण ये पहाड की कखरालि मा
 याद औंदु सु हिलाँसु , बुंराश कु रसयाणु
 कबार खोला सु काफल कु ल्वौण मा चाखणु
 कोदा की रोटि मा लगँयु सु नौण भी प्राण झुरांदु
 डुबका अर झोई भात मा ज्यु खुदांदु
 अब त प्राण भी झुरी ग्ये ये परदेश मा
 नि रयेँदु हे पहाड त्यर बगैर कै हक्का देश मा
 म्यैरी भी अंगवाल बौटि च कि आखिरी सांस तखि ऐ ल्योलु
 मौरि मौरि मेँ अपण फर्ज निभोलु
Photo: ना छौँ मैँ कुमौनी ना गढवाली दिदा भुलो मैँ छौँ ठेठ पहाडी बुर्जगौँ का लगायां पखणा बल द्वि कोष पर बदल दु पाणी ,अर चार कोष पर वाणी पर मीँ घुमीँ सैरु जौनसार ,कुमौँ - गढवाल फिर भी बिसरि कि मैँ छौँ ठेठ पहाडी बालापन मा छोडयालि छौँ मुल्क और सभि धाणी ऐगी छौ परदेश, छौडि कि बुवै- बाबु की निशाणि लगणि छै खुद जिकुडा पर तै पहाड की पर ये पहाड नि छौँ रोजगार , या पीडा कैन नी जाणि खुदाणा छन रैबासी परदेश की धोँपेली मा छुदना छन प्राण ये पहाड की कखरालि मा याद औंदु सु हिलाँसु , बुंराश कु रसयाणु कबार खोला सु काफल कु ल्वौण मा चाखणु कोदा की रोटि मा लगँयु सु नौण भी प्राण झुरांदु डुबका अर झोई भात मा ज्यु खुदांदु अब त प्राण भी झुरी ग्ये ये परदेश मा नि रयेँदु हे पहाड त्यर बगैर कै हक्का देश मा म्यैरी भी अंगवाल बौटि च कि आखिरी सांस तखि ऐ ल्योलु मौरि मौरि मेँ अपण फर्ज निभोलु height=393

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इक रात आँखा बुजेंदी दौं सुप्निया माँ द्येखी
मिल म्येरु सुख कु पहाड़ ,
जख बांद इक किसान छई , सारी -पुन्गडी माँ हर्याल छई
बुणों माँ बुरांश छया ,क्यारियों मा हिलांस छया
गौं -गौलियों मौल्यार छई ,धरम -करम समान छई
पंदेरियों माँ छुयांल छई , बाणी -ब्वोली माँ मिठास छई
इक रात आँखा बुजेंदी दौं सुप्निया माँ द्येखी
मिल म्येरु दुःख कु पहाड़ ,
जख माटा का ठेकदार छ्या , और ढुंगो का सोदागार छ्या
इतिहासों मा देव भूमि छई , अर पत्रों माँ डाम भूमि छई
नेतों कु भ्रस्टा चार छयो ,और बोतलों माँ बिक्णु पहाड़ छयो
रोजगार जख सपाट छयो ,अर पहाड़ कु ह्वोणु विनाश छयो
इक रात आँखा बुजेंदी दौं सुप्निया माँ द्येखी
मिल म्येरु खुद कु मरुँ खुदेड़ पहाड़ ,
जख बाला पण की समलौण छई ,स्कूलया छ्वरों की कथ्गेर छई
ध्याणियों का बगदा आँशु छ्या ,रैबसी बोड़ना का सांसा छ्या
दाना -स्याणु कु इकुलांस पराण छयो , बेटी -बुवारियों कु खेरी छई
पहाड़ यूँ द्येखा उदास छयो ,पहाड़ियों क खेरी कु सेह्भगि छयो
इक रात आँखा बुजेंदी दौं सुप्निया माँ द्येखी
मिल म्येरु रुन्देड पहाड़
जख बाँझ का कट्यां डाला छ्या ,बुरांश का पतझड़ी झाडा छ्या
पाणी का रीता नौला -धारा छ्या ,गाड -गद्निया विष सामान छई
उकाली जण डांडा उंदयरी जण ह्वैगेणि पहाड़ कि माटी म्येरी डैमो माँ समे ग्येणी
बूण -पहाड़ों माँ कनु बज्र पड़िगेणि , झणि -कुझाणि म्येरु पहाड़ निर्बीज ह्वेगेनी

update by-हिमाँशु पुरोहित सुमाईयां

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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October 29 near New Delhi
जख स्कूल खुलिन , तख कुड़ी णि रयिं
जख गों छ्या ,तख वीरान हेंव गयीं
जख मनखि कु प्यार छौ , तख जियुंदा मसाण एगीन
जख डांडियों मा मोल्यार छे यि , तख बूँण क्विराल ह्वेगिन
अब , तुम ही बतावा हे दिदो !
अब डेरू कख बनोण ?

बाटा तिरवाल गोला वाथ्यार , अब बाज़ार ह्व़े ग्येनि
छोटा मोटा चा गि दुकान , बड़ा होटलों मा तब्दील ह्वेगेनि
मन्खियों मा मनख्यात णि ,पूंगडियों मा अनाज णि
बोल्तालों मा मुल्क बिकिग्ये , वोटों कि क्वे औकात णि
अब , तुम ही बतावा हे नेतों !
अब डेरू कख बनोण ?

सुनसान अब गदेरा हवेग्याँ , पाणी कु अब क्वे धारू णि
तिसन प्राण झुरी गयें , गनोणों तै क्वे राजी णि
चार मनखि भि गौ मा णि छिं ,अर , जु छां सी क्वे कामा णि
सुबेर उठी तै छारु (दारू ) पियोणा , ड्योरा दियोखा आनाज णि
अब , तुम ही बतावा हे दरोल्यों !
अब डेरू कख बनोण ?

:" हिमाँशु पुरोहित सुमाईयां "

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कनु मन खुदाणु च आज ,बैरी ज्यु यनु झुराणु च आज
बोल्यां जन अफु मा बबराणु च बल , चल हिट डेरा पैटी जाला

तौं गौं -गौलियों गा बीच , उडदा ठंडा बथौं ग बीच
जख डांडी -कांठी हर्याली ह्वौ ,अर मनख्यात वखे मयाली ह्वौ

तौं हरयां भरयां कठ्यों मा , फूलों गि तौं घाटियों मा
जख आँखा खुल्दी परडी स्येल , जन उकळी बाटा कि ठंडी छैल

तौं गाडी -गदन्यों का छछराट मा , ऊंचा डांडियों कि काखियों मा
जख निस्सा गंगा कि छै धारा , ऊँचो ह्यूं चलि पहाड़ा

तौं धार मा गा बथौं मा ,ठंडु बथौं सुर -सूर्यों मा
जख रात डांडा मा गा रांका , ऊँचा आगाश का गैणा

: हिमांशु पुरोहित "सुमाईयां "

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घुट -घुटी रवोणु हे माँ , मि घुट -घुटी रवोणु
बिराणा मुल्क ऐकी माँजी ,घुट -घुटी रवोणु

खुद मा त्येरी पराण भि खुदाणु छै
बालपने समलौण याद आणि छै
कनु त्येरा हाते कि क्वोदे रवटि खांदू छौ
नॉण लगीं रवटि मा ज्यु मचलंदों छौ

तपदा घामो जब तु घासा भारा ल्यांदी छै
पल्यौख टेकि तै झोई -भात बणोड़ि छै
भात खै तै में लमतम करी स्येजन्दु
ब्यखनि दागड़यों दगड़ी खेलि लागोंदों

रात मा त्येरी छुई सुणी क मि आँखा टपरांदु
त्येरी सांखी मा मोंड धोरी कि स्ये जांदू

अब णि तनि दिन रयां ,ना सि बार रयां
ना सि छुई रयिं , ना तनि गीत रयां

त्येरी खुद भी मि अब ज्यूँरा जन तड़पांदी
त्येरी आँखों कु पाणी म्येरु खूण सुखोंदी

मि बोडलू इक दिन सब कुछ छवोड़ि क त्वै मा
बस मुठ बोटीक रखी , नौनु आलू बोडिक त्वै मा

:हिमांशु पुरोहित "सुमांईया "

 

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