Author Topic: REMARKABLE ACHIEVEMENTS BY UTTARAKHANDI - उत्तराखंड के लोगों की उपलब्धियाँ  (Read 76810 times)

पंकज सिंह महर

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यह हमारे लिये गर्व की बात है कि उत्तराखण्ड मूल के चार लोगों को इस वर्ष भारत सरकार द्वारा पद्य श्री पुरस्कार दिये जाने की घोषणा की गई है।

१- श्री रंजीत भार्गव को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया गया है, इनके लिये उत्तराखण्ड सरकार द्वारा संस्तुति की गई। श्री भार्गव नैनीताल के पर्यावरण संरक्षण के लिये काम कर रहे हैं।

२- श्री दीप जोशी को समाज सेवा के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया गया है, इनके लिये दिल्ली सरकार ने संस्तुति की थी।

३- डा० विजय प्रसाद डिमरी को विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया गया है, इनके लिये आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा संस्तुति की गई थी।

४- श्री गोविन्द चन्द्र पाण्डे को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया गया है, इनके लिये मध्य प्रदेश सरकार द्वारा संस्तुति की गई थी।

उक्त चारों लोग वास्तव में उत्तराखण्ड के गौरव हैं और इन्होंने अलग-अलग प्रान्तों में रहकर अलग-अलग माध्यमों से देश की सेवा कर इस पुरस्कार को प्राप्त किया है। मेरा पहाड़ परिवार इनकी इस उल्लेखनीय उपलब्धि से गौरवान्वित होकर इन्हें अपनी शुभकामनायें प्रेषित करता है।

पंकज सिंह महर

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Dr. V P Dimri
     Director
     National Geophysical Research Institute (NGRI)
     Uppal Road, Hyderabad 500 007 (A.P.), India

     Adjunct Professor, UCESS, University of Hyderabad, Hyderabad
     Honorary Professor, Andhra University, Vizag
     Ph. +91-40-23434600(O), Fax: +91-40-23434651
     e-mail: director@ngri.res.in,dimrivp@rediffmail.com
   
       
  An internationally known geophysicist, Dr. V. P. Dimri, graduated from Indian School of Mines, Dhanbad joined NGRI in 1970. He served the institute in different capacities and then was appointed as Director (additional secretary grade) from 17th Oct. 2001 and continuing till date. He has international experience of R&D Institutes in Norway and Germany for more than 4 and 1/2 years. He designed major scientific programmes in sectors of ‘Energy security’, ‘Water security’, ‘Risk assessment’ and ‘Ocean studies’ and ‘Frontier research areas of international repute’.

Dr.Dimri used mathematical tools such as fractals and inversion for achieving significant contributions in precursory studies for earthquakes and exploration of hydrocarbons (Enhanced Oil Recovery) and groundwater. He has published more than 100 research papers in well-referred journals and authored following four books:

Deconvolution and Inverse theory: Elsevier Amsterdam, 1992 (highly cited)
Application of Fractals in Earth Sciences: AA Balkema, USA, 2000 (Ed.)
Fractal Behaviour of the Earth System, Springer, Germany, 2005 (Ed.)
Fractal Models in Exploration Seismics, Elsevier Amsterdam, 2007 (under preparation)


Selected Publications since 2005
Chamoli, A., Bansal, A.R. and Dimri, V.P., 2007, Wavelet and rescaled range approach for the Hurst exponent for short and long time series, Computer and Geosciences, 33, 83-93 (in press).


Bansal, A.R. and Dimri, V.P., Sagar, G.V., 2006, Depth estimation from gravity data using the maximum entropy method (MEM) and multi taper method (MTM), Pure and Applied Geophysics, 163, 1417-1434. 


Chamoli, A., Srivastava, R.P. and Dimri, V.P., 2006, Source depth Characterization of potential field data of Bay of Bengal by continuous wavelet transform, Ind. Jour. Mar. Sci., 35(3), 195-204.


Gupta H.K., Shashidhar, D., Periera, M., Mandal, P., Dimri, V.P., 2006, Prediction of an M~4 Earthquake in the Koyna region comes true!, Journal Geological Society of India, 68,149-150.


Dimri V.P. with others, 2006, Water sprouting phenomena observed in parts of Andhra Pradesh - an explanation, Journal Geological Society of India, 68,157-159.


Dimri V.P. with others, 2006, Oozing of water in parts of Andhra Pradesh, India, Current Science, 90(11) 1555-1560.


Bansal, A.R. and Dimri, V.P., Sagar, G.V., 2006, Quantitative interpretation of gravity and magnetic data over Southern Granulite Terrain using scaling spectral approach, Journal Geological Society of India.67, 469-474.


Bansal, A.R., Rao, V.K., and Dimri, V.P., Heterogeneities in Continental Crust Derived from Gravity Data in Kutch (India), an intraplate seismic region, Gondwana Research (Submitted and Revised).

Bansal, A.R., and Dimri, V.P., 2005, Depth determination from nonstationary magnetic profile for multi scaling geology, Geophysical Prospecting, 53, 399-410.

 
साभार- http://www.uohyd.ernet.in/academic/specialized_centres/UCESS/VPDimri.html

पंकज सिंह महर

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गोविन्द चन्द्र पाण्डे उत्तराखण्ड प्रान्त के मूल निवासी हैं। उनका जन्म १९२३ में प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ। वह एक लेखक और भारत के प्राचीन इतिहास के प्रमुख विद्वान हैं। उन्होंने वेदकाल और बौद्धकाल पर बहुत कार्य किया है, और इन विषयों पर कई ग्रन्थ लिखे हैं। वह इतिहास, संस्कृति और दर्शन के सुविख्यात चिन्तक हैं।

वह राजस्थान एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के आचार्य और विश्वविद्यालय-कुलपति रह चुके हैं। वह इलाहाबाद संग्रहालय समिति और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के अध्यक्ष रहे हैं।

वैदिक संस्कृति, धर्म, दर्शन और विज्ञान की अधुनातन-सामग्री के विश्लेषन में आधुनिक पाश्चात्य एवं पारम्मपरिक दोनों प्रकार की व्याख्याओं की समन्वित समीक्षा वैदिक संस्कृति में की गयी है।

पाण्डे जी के बारे में जानने के लिये देखें- http://apnauttarakhand.com/govind-chandra-pandey/

पंकज सिंह महर

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जब वह बातें करते हैं तो मानो मलयाचल की सुख-शीतल सी बयार बहती है और हरि का नाम सुमिरे बिना उनका दिन अधूरा रहता है। नदी, जंगल, पेड़, पहाड़ और जीव-जन्‍तु उनकी बेपनाह चाहत हैं। जीवन में सुख की मिठास तो है ही लेकिन दुख का पहाड़ टूटने पर भी वह डिगते नहीं। उनके नाम के आगे कुंवर दर्ज होता है मगर देख लीजिये तो अलमस्‍त फकीर नजर आते हैं। वैभव-विलासिता के प्रदर्शन से उन्‍हें एलर्जी सी है। पिछले पांच दशक से डा. रणजीत भार्गव नदी, जंगल, पेड़, पहाड़ और जीव-जन्‍तुओं की सलामती की जंग लड़ रहे हैं। एक मर्तबा दुधवा के टाइगर बिली अर्जन सिंह ने पूछा- रणजीत भार्गव से मिले हो कभी ! मैंने कहा- मिला ही नहीं, काफी कुछ जिया भी है उनके साथ। सीखने को भी खूब मिला उनसे। बिटटू सहगल से मेरा परिचय उन्‍होंने ही कराया था। बिली बोले- सरकार को रणजीत के काम की पहचान करनी चाहिए। अगर नहीं की तो जंगल और जन्‍तुओं की हिफाजत के लिए आगे आने में लोग सकुचायेंगे। काश ! बिली आज जीवित होते तो बहुत खुश होते। डा. रणजीत भार्गव को  पद्मश्री दिये जाने का ऐलान कर दिया गया है।
कल पद्म पुरस्‍कारों की सूची देखकर एकबारगी ठिठका। लगा- ये तो अपने भाई साहब हैं डा. रणजीत भार्गव। यह भी संयोग था कि फोन बजा- आवाज रणजीत भार्गव की थी। उनकी खुशी का पारावार न था मगर आवाज में एक तल्‍खी थी। पद्मश्री मिली उनको और बधाई दे रहे थे हमको। तल्‍खी थी सरकार द्वारा उनके कामकाज की बहुत देर से शिनाख्‍त होने पर। आज सुबह अखबार देखे तो सिवाय दैनिक जागरण, किसी ने उन्‍हे पद्मश्री मिलने का लखनऊ के नजरिये से नोटिस ही नहीं लिया। पद्म अलंकरणों की सूची में उनके नाम के बाद दर्ज था उत्‍तराखंड। यूपी के पत्रकार बेफिक्र रहे कि डा.रणजीत भार्गव तो उत्‍तराखंड के हैं और उत्‍तराखंड के पत्रकार उन्‍हें लोकेट नहीं कर पा रहे थे।   
अपने दौर की नामचीन हस्‍ती मुंशी नवल किशोर के प्रपौत्र डा.रणजीत भार्गव को प्रकृति और वन्‍यजीवों से इस कदर लगाव है कि बस पूछिये मत। शिकारियों के बीच रहकर भी उन्‍हें नफरत रही शिकार से। दस बरस लखनऊ विश्‍वविद्यालय में राजनीति शास्‍त्र पढ़ाते-पढ़ाते मन उचटा सो पहुंच गये जंगल, जीव-जन्‍तुओं के बीच। हालांकि जंगल और जीव-जन्‍तुओं से उनका लगाव बचपन से ही था। सादगी और विनम्रता कूट-कूट कर भरी है उनमे। जिम कार्बेट साहब उनके लिये देवता का दर्जा रखते हैं। डा.रणजीत जब बोलते हैं तो लगता है जंगल में आ गये हैं आप। एकदम सजीव वर्णन, एक शब्‍द चित्र सा उपस्थित कर देते हैं। 1980 में जर्मनी के राष्‍ट्रपति ने उन्‍हें 'आर्डर आफ मेरिट' से नवाजा तो 1998 में नीदरलैण्‍ड के राजकुमार द्वारा प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए उन्‍हें 'आर्डर आफ गोल्‍डेन आर्क' से सम्‍मानित किया गया। फिर भी डा.रणजीत अपने ही मुल्‍क में बेगाने रहे।
एक शाम फोन आया। कीनिया से बोल रहे थे डा.रणजीत। चहचहाते हुए कहने लगे- जानते हो इस वक्‍त कहां हूं! जिम कार्बेट के ठीक सिरहाने। यहीं ग्रेव में सो रहे हैं वह। उनकी कब्र काफी क्षतिग्रस्‍त है। उसे दुरुस्‍त करवाने के लिए जो बन पा रहा है, करने जा रहा हूं। मैने सोचा विलक्षण हैं भाई अपने डाक्‍टर साहब। बेटे को पद्यश्री दिये जाने के ऐलान से रानी लीला रामकुमार भार्गव गदगद हैं। सूबे की वह पहली महिला हैं जिन्‍हें पद्यश्री से नवाजा गया था। कहने लगीं- बहुत अच्‍छा हुआ। दिन-रात लगा रहता था रणजीत। कम से कम सरकार ने पहचाना तो उसका काम। लेकिन डाक्‍टर साहब। शिकारी जाग रहे हैं और शेर मारे जा रह हैं। पद्यश्री मिलने के बाद शांत होकर मत बैठ जाइयेगा। अपने नाम की साथर्कता सिद्ध कीजिये। रण+जीत = रणजीत। आमीन।


साभार-http://chaumasa.blogspot.com/2010/01/blog-post_26.html

पंकज सिंह महर

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दीप जोशी भारत के एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जिन्हें सन् २००९ का रमन मैगसेसे पुरस्कार प्रदान किया गया है।

दीप जोशी "प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन" (प्रदान) नामक अशासकीय संस्था के सह-संस्थापक हैं। फिलहाल वे ग्रामीण गरीबों के लिए कार्यरत तथा स्व सहायता समूहों को आगे बढ़ाने में जुटे एनजीओ के स्वतंत्र सलाहकार हैं। वे मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) तथा स्लोन स्कूल, एमआईटी से मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल कर चुके हैं। उन्होंने सिस्टम्स रिसर्च इंस्टीट्यूट और फोर्ड फाउंडेशन के साथ काम किया है तथा ग्रामीण विकास व आजीविका प्रोत्साहन में करीब 30 वर्षे का अनुभव है। वे सरकार को गरीबी उन्मूलन रणनीति में भी सलाह देते हैं।

दीप जोशी का परिचय- http://www.merapahad.com/deep-joshi-gets-ramon-magsaysay-award/

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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wow daju, 81 Padmashree me se 4 pahadiyo ko meele......jai ho daju

Congrates to all awrdees....

Devbhoomi,Uttarakhand

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Pankaj ji is jaankari ke liye dhnywad, or un sabhi hastiyon ko bdhai

Kanika Bhatt (Devbhoomi)

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very nice information....and really good to know that we have lots of  great personalities of uttrakhand with us..
proud to be a uttrakhandi..!!!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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PADAM SHREE DR RANJIT BHARGAVA, UTTARAKHAND 2010- ENVIRONMENT PROTECTION
« Reply #198 on: January 27, 2010, 10:48:42 PM »

PADAM SHREE DR RANJIT BHARGAVA, UTTARAKHAND - 2010
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Dr. Ranjit Bhargava, Uttarakhand has been given Padam Shree for year 2010 for his remarkable work in the field of Environment Protection.

Many-2 congrulations to Dr Bhargava.


Harish Rawat

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really ....proud to be a pahadi....
सभी हस्तियों को पदम श्री मिलने  की बधाई .....

 

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