Author Topic: उत्तराखंड पर कवितायें : POEMS ON UTTARAKHAND ~!!!  (Read 289959 times)

Bhishma Kukreti

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सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं
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Garhwali Poems by Satish Rawat
-
मौल्यार
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बहुत कठिन होंद
अपणि जड़ों से जुड्यूँ रैण
ये आधुनिक समाज मा;
पर बिना आधार का
कित्गा टिक्ला हम?
शब्दों की माला बणैकि
बण जाँदन
भला, मिठा अर्
खुदेड़ गीत,
मिल जाँद
परम्परा कु संगीत
अर् अपणि
जड़ों की "आवाज़"
प्रस्तुत होणा कु
अपणि बोली मा,
तब हमरी संस्कृति मा
ऐ जाँद
एक नयु मौल्यार.
28/05/2016
***
 
कित्गा पायी ! कित्गा ख्वायी !
-----------------------------------
कित्गा पायी !
कित्गा ख्वायी !
वक़्त भी
द्वी आँसू  र् वाई,
पुरखों की समलौण
दगड़्यों ! हमन
कौड़्यूँ का मोल
बेच द्यायी,
निमदरि, डन्ड्यालि हर्चि गेन
नौला, खाँदा लुकि गेन
जँदरि, उर्ख्यलि रकर्याणि छन
इखुलि हँसुलि, मुर्खुलि रै गेन
हर्चि ग्याँ हम भी
जमना का कौथिग मा,
नयु जमानो ऐ ग्याई
कनुकै लगौं हिसाब कि हमन
कित्गा ख्वायी !
कित्गा पायी !
25 June, 2016
***
 
धाद
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लोभ का धागा सुलझाँदा- सुलझाँदा
खुद ही यूँमा अलझि ग्यऊँ.
मनख्यूँ की यीं भारी भीड़मा
इखुल्या-इखुली रै मि ग्यऊँ.
कनुकै जाण अपणा पहाड़
शहरूँ का रस्तों मा रिबिड़ि ग्यऊँ.
उड़ साकू जख पंख फैलै की
इन खुला आसमान मि चाणू छऊँ.
डांडी-काँठी धाद लगाणी छन
ऐजा बाला अपणा गाँऊ.
29 June, 2016
***
 
सगैर
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भैर निरभगी बरखा बौलैणी,
भितर मन म्यारु झूरि गे.
दिन-रात लग्या छन सगैर,
आँख्यूँ की निंद नी पूरि ह्वे.
डाली-बोट्यूँ की टुटणा की आवाज़,
निरभागी स्वाड़ा मेरू प्राण डरै गे.
उड़ गेन धुरपालि की फटाली,
आज डैर मेरा साँसा थै हरै गे.
हे ! निरभगी चाल न चमsक,
कखि मेरी आँखीं न फूटी जै.
सरगा दिदा तेरी गिगड़तल्यूँ नs,
मेरा नौना-बालों की नींद टुटी गे.
नौना-बाला छाति मा चिपकी की,
तेरा रूप देखी भारि डैरि गे.
डाराणू छ रौला-गदन्यौं कू स्वींसाट,
गाड कित्गा मथी सैरि गे.
हे ! नरसिंग ठाकुर कख छाँ ?
हे ! नागर्जा हमथै बचावा.
स्वाड़ा, बरखा, चाल, गिगड़तल्यूँ थै,
हे ! पितृ देवतों अब रोकि द्यावा.
16/07/2016
***
 
पलायन कि पिड़ा
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भौत कठिन होंद
अपणौ से दूर रैण
कु नि चाँद कि
हम भी राँदा
अपणा ब्वे-बाब दगड़ि
वु हमsरा,
हम वूँका
सुख-दुःख का बणदा सहारा;
वु लग्याँ रँदिन सारा
कि कब आला म्यारा
हम थैं लगी राँद खुद
अपणौं की,
अपणा पहाड़ की,
अपणा गौं-गुठ्यार की;
खारा पाणि मs तैरणी
तिसळि आँखि
सुचणी ही रँदिन
कि कब आला वु दिन
जब हम भि हर घड़ि
अपणौं कु प्यार पै सक्वाँ,
अपणौं थै प्यार दे सक्वाँ.
02/08/2016
***
 
खड़्यंजौं कु बाटु
------------------
कबि कित्गा बेफिकर ह्वेकि
जाँदु छा मि यूँ बाटौं मs
झणि कित्गा बार सम्भळ्यूँ छ यूँ बाटौं कु मेथै
कई बार बचा यूँन मेथै लमड़ण से
आज कख हर्चि होलु
वु खड़्यंजौं कु बाटु ?
मि जाण चाणू छौं वेमा बेफिकर ह्वेकि,
अपणि मस्ति मs कुछ गीत गुनगुनै की,
एक लपाग इना अर् एक लपाग उना धैरि की,
कखिम उत्डे़-उत्डे़ की,
कखिम आँखा बूजि की,
कखिम मठु-मठु अर्
कखिम भागि-भागि की ;
पर क्य करण !
मि इन नि कैर सकदू
यूँ चिफळा सीमेंटेड रस्तों मs
मि इन नि जै सकदू.
11/08/2016
***
 
छुटु बाटु
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कंक्रीटूँ का जंगळ मs
धुक-धुक करणू छा
एक छुटा रस्ता कु बड़ु दिल,
10-12 मीटर कु ननु बाटु
30-35 डिग्री का कोण फर
जाणू छा नर्सरि मs,
माटा कु कच्चु संगड़ु बाटु
ऊबड़-खाबड़ सीधु बाटु
मुंड मs टकराणा डाळ्यूँ का फौंगा
तीर-ढीस जम्यूँ औड़ौ
माटा अर् घास की मिठि-मिठि खुशबू
खुद लगै ग्या पहाड़ की.
14/08/2016
***
 
सहारु
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भगवान जी !
कभि-कभि याद अंद्या तुम
भौत ज्यादा.
तुमरि रची सृष्टि
नि पछयाँण साक क्वी
कभि तऽ लगदो कि तुम साथ छाँ
अर कभि पड़ जाँदु एकदम अकेला
कभि तऽ रैंद मन खुश
अर कभि उदास
कभि रख देंदा तुम
कंधा मऽ  हाथ
तऽ दगड़्या जन सहारु लगदो
कभि-कभि रख देंदा तुम
जब म्यारा मुंड मऽ हाथ
तरपर-तरपर होंण बैठ जाँद
सुख का आँसू की बरसात
बण जाँदु मि एक ननु नौनु
भूल जाँदु सब ज्ञान-अज्ञान
बौगण बैठि जाँदु तुम दगड़
किलैकि मि जणदु छौं
तुमऽरा हाथों नऽ सम्भाल ही देण मेथै.
अब न तऽ डरदु छौं
अर न  ही घबराँदु 
ये जीवन मऽ तुमरु ही सहारु चाँदु.
तुम ऐ जँद्या जीवन मऽ -
कभि बुळख्या, कभि कमेड़ु,
कभि कलम, कभि पाटी,
कभि शब्द, कभि कल्पना,
अर कभि कविता कु रूप धरि की.
कभि नि कैर सकदो
इंसाफ अफु डगड़ ही
नि निकाळ सकदो टैम
अपणा वास्ता
मि चाँदु कि एक घड़ि खूब सोचूँ तुम थैं,
खूब बच्यौं तुम दगड़,
खूब एहसास करु तुमरु
बिल्कुल एकांत मऽ.
कभि आधार
तऽ कभि सहारु बण जँद्या तुम
स्थापित ह्वे जँदिन तुम मऽ
विचारूँ का गौं
बढण बैठ जाँद भावनाओं की लगुली,
खिल जँदिन शब्दूँ का फूल,
रंग जाँद जीवन
तुमऽरा ही रंग मऽ
प्रभु जी !
अपणा रंग इनी बिखराणा रैंया
हमऽरी धरती थैं
रँगू मऽ अपणा रंगिकि
सजाणा रैंया.
30/08/2016
***
 
एक कोशिश
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नि चल सकदो क्वी म्यारा
अरऽ क्वी तुमऽरा अनुसार,
जीवन मऽ अगना बढ़णऽ कु
कभि जीत तऽ
कभि स्वीकार भी करण पोड़दी हार
जीवन मऽ कखि-न-कखि, कबि-न-कबि
करण ही पोड़दू समझौता;
एक कोशिश करिकि देखद्याँ
कि मि चलु तुमऽरा
अरऽ तुम चलऽ म्यारा अनुसार.
27/08/2016
***
 
विकास का नाम पर
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कैका सुपन्यों कु पुँगुड़ कुर्चि की
पंडौ नि नचै जाव ,
कैका दिल मा भारि-भारि का
जड़खंद न धरे जाव ,
कैकि कुंगळि आँख्यूँ मा
रोलर नि चलये जाव ,
कैकि हत-खुट्यूँ थैं
मजबूरी का धागऽळ न बँधे जाव ,
कैका मासूम मन मा
सबळा, गैंति, जे.सी.बी. न चलऽये जाव ,
कैका नौना-बाळौं जन सैंत्या-पळ्या डाळा-बोटों मा
कुलऽड़ि न चलऽये जाव ,
पुरखौं कु खैरि खै-खै कि बसऽयूँ गौं
इन न उजऽड़े जाव ,
प्रकृति दगड़ छेड़-छाड़ करि की
इन विकास नि करे जाव ,
विकास का नाम पर
इन विनाश नि करे जाव.
08/09/2016
***
 
चकड़ेत
--------
लोग पौंछ गेन चाँद पर ,
हम टँगड़ि खिंचदा रै ग्यँवा.
एक कदम वु अगना बढ़िन ,
हम फाळ मरदा रै ग्यँवा.
 
     वु शान से बोलदन अपणि भाषा ,
     हम शरमाँदा रै ग्यँवा.
     वूँन जोड़िन एक-एक पायी ,
     हम पींदा-पिलाँदा रै ग्यँवा.
 
वु बण गेन बिजनस मैन ,
हम नौकरी मा अटक्याँ रै ग्यँवा.
ठाट-बाट ऐन वूँका हमऽरा भ्वार ,
हम अपणौं कु वाडु सरकै ग्यँवा.
 
     नि छाँ हम भि कै से कम ,
     अब चकडे़त इत्गा ह्वे ग्यँवा.
     ठुसगि-फुसगि लगैकि हम ,
     सभ्यूँ थैं अपणा वश मा कै ग्यँवा.
12/09/2016
***
 
लुट्टा-लुट
---------
हे जी !
भ्वारो-भ्वारो
माणा भ्वारो,
पाथा भ्वारो,
सुप्पा भ्वारो,
कण्डा भ्वारो,
दूण भ्वारो,
किट भ्वारो,
ठुपरा भ्वारो,
बिठळा भ्वारो,
ड्वारा भ्वारो,
कुठार भ्वारो,
उबऽरा भ्वारो,
ड्रम भ्वारो,
कंटर भ्वारो,
बन्ठा भ्वारो,
गागर भ्वारो,
जैरकीन भ्वारो,
लुठ्या भ्वारो,
कट्वरा भ्वारो,
चमचा भ्वारो,
सब्बि खाली चीज भ्वारो;
पर ये भण्डार थैं
जरा हमकु भी बचै कि रख्याँ
हम भी लैन मा छाँ
अफी-अफी न सपोड़ा
इन जुल्म नि कारो.
13/09/2016
***
 
हमऽरु टैम
---------
कभि तऽ उ दिन आलु
जब मनखि कूणा-काँणौं भटीन
भैर निकळि जालु
हरा-भरा डाँडा-काँठौं मा घोल बणालु
नौना-बाळौं थैं घौर ले आलु
अपणा घौर मा अपणौं दगड़ रालु
रोजगार पहड़ूँ मा पालु
हमऽरु पहाड़ आधुनिक सुख-सुविधाअों कु
मुल्क बणि जालु
दुनिया कु सबसे सुन्दर शहर मने जालु
कैका सारा नि रैण
ड्यूटी अपणि निभाँदा जावा
एक दिन जरूर
हमरु भि टैम आलु.
17/09/2016
***
 
दगड़्यों कि डाळि
---------------
मि सुचणू छा
कि व्हेगे होलि
व डाळि खूब बड़ि
ज्व लगा छा कैन
खल्याण मा
जख कट्ठा होंदा छा
गौं का सब्बि नौना-नौनि
खिलणा का वास्ता
खूब झुंटि खिलदा छा
वीं झपन्यळि डाळि मा
पर व दगड्यों कि डाळि
नि दिखेणी आज
हाँ ! वींकि जगा मा
बण ग्या पाणि का वास्ता
सीमेंट कु स्टैण्ड पोस्ट
जु जगा-जगा भटीन
दरकुणू छ
अर टुट्यू नळखा
पाणि कि जगा मा
आँसु बौगाणू छ.
18/09/2016
***
 
व्यस्तता का बाना
---------------
कित्गा रूप
धरिन तुमन,
कित्गा नाता
लगैन तुमन,
कित्गा धर्म
निभैन तुमन,
कित्गा सुख
देन तुमन,
कित्गा इशारा
कैन तुमन,
कित्गा भाषा
बिंगैन तुमन,
कित्गा खण्ड
खेलिन तुमन,
कित्गा सुपन्या
दिखैन तुमन,
कित्गा रस्ता
बतैन तुमन,
कित्गा ज्यूँरा
तुलैन तुमन,
कित्गा रूँदा
हँसैन तुमन,
मनखि कित्गा
चेतैन तुमन,
कित्गा धै
लगैन तुमन,
हे प्रभु !
हमऽरा बाना;
हम बिसिरि ग्याँ तुमथैं
व्यस्तता का बाना. 
18/09/2016
***
 
पहाड़
-----
पहाड़ !
तु कित्गा बड़ु छै
इत्गा विपदा झेली भी
झणि कब भटीन
अपणि छाति तानी
अपणु मुण्ड उठैऽ
शान से खड़ु छै
म्यारा प्यारा पहाड़,
सच, तु कित्गा बड़ु छै !
27/09/2016
***
 
ताकत
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चुप बैठी क्वी काम नि होंद
दुनिया घचकाणी रा, तऽ आराम नि होंद
जब गौळा- गौळा ऐ जा
तब जरूरि ह्वे जाँद
जवाब देण
जब फन उठाँद साँप कटणऽ खुण
तब वेका अगना
दूधै कट्वरि नि रखे जाँद
वेकि मुँडळि
गम बूटूँ नऽ  कुर्चे जाँद
कबि-कबि जरूरी ह्वे जाँद
जहरीला कीड़ा-मक्वड़ों थैं
वूँकि औकात बताण
कबि-कबि जरूरि ह्वे जाँद
दुन्या थैं अपणि ताकत दिखाण.
02/10/2016
***
 
आदत
-------
साब !
मीतैं आदत पुड़ी छ -
खटारा बसूँ मऽ
सफर कनै,
दफ्तर, संस्थानूँ मऽ
लम्बी लैनूँ मऽ लगणै,
छुटऽ-बड़ऽ बाबू-साबूँ की झिड़की खाणै,
बिनऽ धूपणऽ खुश कराणै
कोशिश कनै;
इलै मीतैं तुमऽरी व्यवस्था पर
क्वी आश्चर्य नि होंद
क्य कन साब !
नखरु मीऽ छौं
आदत नखरि पड़ि ग्या
व्यवस्था अनुसार चलणै.
11/10/2016
***
 
निंदि-बाळि
----------
कूणा बुढ़ड़ि आली
बाला तैं डराली
बाला डैरि जाली
खुचलि मऽ मेरि आलि
चुप से जाली
बेमाता आली
सुपन्यों का झूला झुलाली
बाला तैं हँसालि
पर्यूँ का देश लिजालि
निंदि-बाळि आली
बाला से जाली.
13/10/2016
***
 
भीख
-----
सड़की किनरऽ फुटपाथ मऽ
बैठी छा वऽ चुपचाप
भँय्य छा सिवळ्यू
एक ननु नौनू
मुण्ड झुकैकि दिखणी छा
एकटक वेतैं
अर आण-जाण वळा वींतैं
नि छा वींतैं परवाह कैकि
अर कैतैं वींकि
वींकु अपणा अगनै धर्यूँ छा
एक मैलु कट्वरु
व वखम बैठी भीख नि मँगणी छा.
16/10/2016
***
 
माँ
---
माँ दिनभरा काम-काज से
कतगा भी थकी ह्वा
फिर भी कोशिश करदऽ
जल्दी-से-जल्दी बण जा खाणु
नौना-बाळौं का सेण से पैलि
अगर से भि जा नौना-बाळा कभि
तऽ प्यार से
घचोळ-घचोळी
जोर जबरदस्ती करि
उठै दींद
अधनिंद मऽ ही खलै दींद खाणु
अर् छपछऽपि पड़ जाँद माँ पर
माँ सेण नि दींद कभि
बिना खाणु खयाँ.
16/10/2016
***
 
ओजोन पर ओळ
-------------------
पीलु-सि,
पक्यू-सि,
थक्यू-सि जून
फिर टँगे ग्या सरऽग मा;
ओजोन पर लगऽयाल
हमऽन कचाक
कैरयाल भरि-भरी ओळ;
कुज्याँण तब !
जबऽरि प्वाड़लु
बेहोश ह्वे कि यु जून
सड़्यू आम-सि
पत्त
धरति मा.
30/11/2016
***
 
पैलि अर अब
---------------
प्यार-प्रेम बण्यूँ रा
इलै पैलि
उजाड़ दींदा छा
बीचऽ कि दिवाल;
अब
चिणें जाँद
बीच मऽ दिवाल
कि प्यार-प्रेम
बण्यूँ रा. 
30/11/2016
***
 
संस्कृति
---------
हँसदा रँया
ख्यलदा रँया
नाम अपणु खूब कमऽयाँ
सदनि अगना बढ़दा रँया
खाणि-कमाणि खूब कयाँ
खूब फलि-फूलि जँया
हैरा-भैरा बण्याँ रँया
खुश रँया
सुखि-संति रँया
अपणि संस्कृति बचाण वळौं
जी रँया, जुगराज रँया.
25/12/2016
***
 
बड़ु मन
--------
छुटऽ मनऽ लऽ कबि
बड़ऽ काम नि होंदा,
सियीं आँख्यूँ का कबि
सुपन्य सच नि होंदा,
 
बड़ा मनखि से बड़ु
मन होंद,
बड़ऽ मनऽ लोग कबि
छुटा नि होंदा,
 
बिजी आँख्यूँ तैं
द्वी घड़ि खूब निंद आँद,
सियीं आँख्यूँ कि
निंद हर्चि जाँद,
 
पसीना बौगाण वळौं कि
कबि हार नि ह्वाई,
स्वाणा मनऽ भलऽ स्वीणा
कबि अधूरा नि राई,
 
सुपन्यों कि डाळि तैं
पाणि दींदा रावा,
सच ह्वाला सुपन्य एक दिन जरूर
लपाग तऽ  बढ़ावा.
30/12/2016
***
 
टौफ्यूँऽ डाळि
--------------
कित्गा खुज्याई
पर कखि नि पाई
व टौफ्यूँऽ डाळि
ज्व तुमऽरि छा लगऽयी
चौका तीर सग्वड़ा मा ;
 
जीं डाळि भटी लाँदा छा तुम
रंगलि-पिंगळि टौफि
अर बुल्दा छा कि -
अबि डाळि छुट्टि छ
जब बड़ि ह्वे जाली
तब बिंडि-बिंडि लौलु ;
 
तुम बुल्दा छा कि -
आज डाळि इत्गा बड़ि ह्वे ग्या,
आज जरा और बड़ि ह्वे ग्या,
आज झपन्यळि ह्वे ग्या,
अब बिंडि टौफि आण बैठ गेन;
 
जरा-जरा कैकि डाळि ज्वान
अर तुम बुड्या हूँणा रँया
अब नि दिखेंदा तुम
आँदा-जाँदा, बाटौं मा;
 
आँदा-जाँदा बाटा भटी
सदऽनी दिखणूँ राँदु
तुमऽरा गुठ्यारा तीरौ सग्वडु
यीं आस मा कि
कबि त दिख्येला तुम
अर तुमऽरि लगऽयी
टौफ्यूँऽ डाळि.
08/01/2017
***
 
फर्ज
-----
फूलूँ तैं त्वाड़ा न, खिलण द्यावा
वूँ तैं भि अपणौ दगड़ जिन्दगी अपणि जीण द्यावा.
 
हमन बणऽयीन कानून अपणि सुरक्षा खुण भौत
यूँ सीधा-साधा सजीवूँ तैं भि जीण द्यावा.
 
किलै चितौला हम सब्बि चीजूँ पर अपणु हक ?
जु राजि-खुसि जीणू वे तैं भि जीण द्यावा.
 
दुनियै दौड़-भाग मा रेगिस्तान-सि ह्वे ग्याँ हम
द्वी घड़ि सीधि-साधि प्रकृति दगड़ तऽ बितावा.
 
कीड़ा-मक्वड़ा भी स्वाणा रँदिन भौत
एक नजर टक्क लगैकि देखि तऽ द्यावा.
 
अधिकारूँऽ बात करदाँ बिन्डि, फर्ज कु निभालू ?
आशीर्वादै एक डाळि नयी पीढ़ी खुण लगै द्यावा.
31/01/2017
***
 
जीण
-----
मनखि अपणु फर्ज किलै जि भुलणू ह्वालु !
उळझ्या रिश्तौं कि गेड़ किलै नि खुलणूँ ह्वालु ?
 
ताजा फूलूँ-सि जिंदगी तैं किलै बासि करणूँ ह्वालु !
अपणि खुट्यूँ मा कुलऽड़ी कचाक किलै मरणू ह्वालु ?
 
अमीर बणी किलै अफु तैं बड़ु मनणू ह्वालु !
द्वी पैंसौं बान किलै अपणौं दगड़ लड़णूँ ह्वालु ?
 
सुख-चैना बान किलै अटगा-अटऽग करणूँ ह्वालु !
काळि कमै फारि नि होंद, किलै नि सुचणूँ ह्वालु ?
 
सौंगि जिंदगी तैं कर्जा बोझनऽ किलै दबाणूँ ह्वालु !
पचै नि सकण ये जन्म मा इत्गा, तऽ किलै खाणू ह्वालु?
 
मनखि, मनखि देखी फुकेकि म्वासु किलै बणणू ह्वालु !
दिमाग नि लगाणू, किलै कैका भकलौण मा आणू ह्वालु ?
 
छुटु-सि मनखि किलै आज भुँया नि दिखणू ह्वालु !
कित्गा मौका दींद प्रकृति पर जीण किलै नि सिखणू ह्वालु ?
07/02/2017
***
 
जिंदगी
--------
कभि वसंता फुलूँ-सि, कभि पतझड़ा पत्तौं-सि ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि रूड़ी घाम-सि, कभि छुयाँ पाणि-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
 
कभि बसगाळा पाणि-सि बौगद, कभि ह्यूँ-सि ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि फजला घाम-सि, कभि ब्यखुनी घाम-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
 
कभि रुमुक-सि इखुलि, कभि रात-सि शांत ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि पूर्णमऽसी जून-सि, कभि गैणौं जन टिमट्याँद जिंदगी.
 
कभि चखुलौं-सि च्वींच्याँद, कभि स्याळूँ-सि ऐड़ाँद जिंदगी;
कभि दुदाळ भैंसि-सि, कभि लताड़ गौड़ि-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
 
कभि खड़ि उकाळ-उँदार सि, कभि सैंणु तपड़-सि ह्वे जाँद जिंदगी;
कभि हैरि डाँड्यूँ-सि, कभि गम्म सरऽग-सि ह्वे जाँद जिंदगी.
 
कभि कित्गा रुवै अर कभि कित्गा हँसै जाँद स्वाणि जिंदगी;
सकरात्मक सोच रालि तऽ मुळ-मुळ हँसणी राँद जिंदगी.
10/02/2017
***
 
मनखीऽ खोज
---------------
इना-उना द्याखऽदी
वार-प्वार  द्याखऽदी
 
उबु-उंदु द्याखऽदी
ताळ-मथि द्याखऽदी
 
यख फुंडै द्याखऽदी
तख फुंडै द्याखऽदी
 
इख उंद द्याखऽदी
तख उंद द्याखऽदी
 
देश मा द्याखऽदी
विदेश मा द्याखऽदी
 
डांडा वार द्याखऽदी
डांडा पार द्याखऽदी
 
ईं धार द्याखऽदी
वीं धार द्याखऽदी
 
डाळी टुक्कु द्याखऽदी
रौल्यूँ उन्द द्याखऽदी
 
वल्या ख्वाळ द्याखऽदी
पल्या ख्वाळ द्याखऽदी
 
ये कूणा द्याखऽदी
वे कूणा द्याखऽदी
 
कखि तऽ मिलऽलु मनखि
गौं गुठ्यार द्याखऽदी
19/02/2017
***
 
विकासैऽ बारि
------------
हे डाँडि-काँठ्यूँ !
तुमऽरि खयीं खैरि सुदि नि जालि
एक दिन जरूर
यु बाँजि पुँगड़ि चलदि ह्वालि
गौं-गालौं मा खूब चखळ-पखळ रालि
कूड़ि-बाड़ि ख्यालऽला नना नौना-बाळा
घिंडुड़ि फिर घौरूँ मा घोल बणालि
दाना-सयणौंऽ धाद,
नना नौना-नौन्यूँऽ किलक्वरि सुण्यालि
रिबड़ी गौड़ि एक दिन
अपणा कीला पर आलि
बगऽत बदलऽण मा कित्गा टैम लगऽद !
विकासैऽ बारि ब्याळि वूँकि छा
भ्वाळ तुमऽरि बारि भि आलि.
25/03/2017
***
 
व्यस्त मनखि
------------
मनखि अब मनखि तैं, मुख नि लगाँद,
सुख-दुखै छ्वीं-बथा, कैमा नि लगाँद.
 
पैला दाना-सैंणा लुखूँऽ, भुक्कि याद आँद,
मनख्यात आज, मनख्यूँ तैं खुज्याणी राँद.
 
जरऽसि आराम पाणा बाना, सुख हर्चाणू राँद,
द ब्वाला ! अफु तैं, अफि से ही लुकाणूँ राँद.
 
लम्बा-चौड़ा रिश्ता-नाता, अब नि लगाँद,
तीन-चार मबतूँ तैं ही, अपणि कुटुमदरि बताँद.
 
उणिंदु सालूँ भटी छ, फिर भि व्यस्त इत्गा राँद,
अपणौंऽ ध्वार-धरऽम जाणौं, बगऽत भि नि राँद.
 
प्रकृतीऽ प्यारु मनखि, वीं से ही बचणूँ राँद,
सुचुदु छ ठगणूँ छौं औरूँ तैं, पर अफी ठगेणू राँद.
28/03/2017
***
 
मनखीऽ रूप
-----------
कबि ढुँगु-सि करकुरु
कबि ठूँसु-सि कुँगळु
कबि कागज-सि हल्कु
कबि घासाऽ बिठगा-सि गरु
कबि तवाऽ भैलौं-सि चमकिलु
कबि म्वासु-सि काळु
कबि मनखि-सि चालाक
कबि प्रकृति-सि सरल
ह्वे जाँद मनखि,
छुटा-स जीवन मा
कित्गा रूप
दिखै जाँद मनखि. 
05/04/2017
***
 
स्वाणि दुनिया
------------
दुनिया भौत स्वाणि छ, मनैऽ नज़रूँ से द्याखा त सही;
लेखीऽ प्राण हळ्कु ह्वे जाँद, क्वारा कागज मा ल्याखा त सही.
 
दुसरौंऽ मन मा क्या होलु? अफी नि सुचणु, पुछणै पहल कारा त सही;
भुरे हि जालि ऊलारऽ ल भांडि-कूंडि, जरा-जरा कै कि पाणि सारा त सही.
 
प्रकृति से स्वाणु क्वी नी दुनिया मा, प्रकृति से प्यार कारा त सही;
प्रकृतीऽ समण हम छाँ कूरै मेलि, स्यूँ सिक्यूँ तैं भँया धारा त सही.
 
हरि-भरि ह्वे जालि रूखि-सूखि जिंदगी, पितरूँऽ पुंगड़्यूँ मा हैळ लगावा त सही;
सुदि-मुदि नि ठगाण अफु तैं अफी, भला काम मा अफु तैं ब्यळमावा त सही.
 
जीतैऽ पैलि फैड़ि होंद सोच, भलि सोचैऽ बिज्वाड़ जमावा त सही;
बोझ नि धरण कुंगळा दिल मा बिंडि, नना नौना-बाळौं जन ह्वे जावा त सही.
23/04/2017
***
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Garhwali Verses by Satish Rawat
 
 
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B.C.Kukreti


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Garhwali Poems By Satish rawat
सतीश रावत की गढ़वाली कविताएं




---1---
बितदी बिनसरि अर उठदू घाम
बिजदी डाँडी-काँठि, हर्चिदि ओंसs की बूँद
कित्गा भग्यान छन तिसलि आँखी
14/07/2016
***
 
---2---
कुछ लोग होंदिन बड़ा खतरनाक
हाथ कि लकीर पढ़ण मा  होंदिन उस्ताद
मुट्ठी बूजि कि रख्याँ भारे !
15/07/2016
***
 
---3---
अदs रातै फूल-फटगी जून
डाँडों का कुल़ैं का डाल़ा, चौड़ु बाटु
खुटों की भौत तेज रफ्तार
15/07/2016
***
 
---4---
नना नौना-बाला़
गरा-गरा बस्ता
खाली खल्याण
15/07/2016
***
 
---5---
फूलि गे लय्या, पँय्या फूल
हरि-भरि डाँडी-काँठी दुःख गेन भूल
मनिखि माचिस लेकि हुयूँ तैयार
15/07/2016
***
 
----6----
मैँगि शिक्षा
मनखि लाचार
छुटि-छुटि दुकान
15/07/2016
***
 
---7---
ब्यखुनि को घाम अछ्लै ग्यायी
गौड़ि-भैंसि छन रमणी, रुमुक पड़ि ग्यायी
घास भटि माँजी अबि नी आयी
15 July, 2016
***
 
---8---
क्यs बोलि
क्यs बींगि
किलै
17/07/2016
***
 
----9----
गौं मs  खँद्वार
शहरूँ मs उड्यार
रचनात्मकता रूणी
19/07/2016
***
 
---10---
रुमुक बिचsरि
दर्दs की मारी
फ़िर ऐ ग्यायी
20/07/2016
***
 
---11---
झपन्यल़ि डाल़ी
रूड़ि कु घाम
कुलड़ि मs धार
20/07/2016
***
 
---12---
मिंढगा टर्रराणा, चिल्गsट च्वींचाणा
गैणों की आँखि बेचैन
आज जून नि दिखेणी
21/07/2016
***
 
---13---
डाँड्यूँ मा कुयेड़ि, बरखा कु झमणाट
खुट्यूँ मा कादैई
गयीं छन भ्याल़
22/07/2016
***
 
---14---
झपन्यल़ि डाल़ि का छैलु बैठी
जलड़ा खर्वाड़ा ना
हैरा-हैरा सुपन्या त्वाड़ा ना
23/07/2016
***
 
---15---
भुला ह्वे अकलबंद, बिगल़े ग्या
जब भटी भुला कु ब्यो ह्वे ग्या
म्यारु भुला स्वारु बण ग्या
24/07/2016
***
 
---16---
कंक्रीट का जंगल
डाल़ौं कू नाश
कित्गा विकास
24/07/2016
***
 
---16A---
बिवैं खुट्यूँ मा
बवै पुंगडौं मा
आदिम ठ्यक्कौं मा
25/07/2016
***
 
---17---
सूर्य अस्त ह्वेगे
किसाण घौर ऐगे
मनखि गोल़ ह्वेगे
25/07/2016
***
 
---18---
कुंगल़ा सुपन्या
कच्ची सड़क
कच्ची की भरमार
25/07/2016
***
 
---19---
घाम अछया रौनक बढ़ि गे
छोर-छवारों की खूब बार पड़िगे
समाज सुधरणs कि सुध कैथै
25/07/2016
***
 
---20---
भैर
लोग नौनौं तैं गढ़वळि बुन-बिँगण सिखाणा
भितरा सिर्फ़ हिन्दी मा बच्याणा
26/07/2016
***
 
---21---
हे ब्यटा जरा इना ऐ
राम बहादुर भटी जरा एक शीशि लै
ब्यटा नs एक ढकणि, रस्ता मा ही चटकै दे
27/07/2016
***
 
---22---
मि पहाड़ ठगे ग्यों सदानि
कबि काम नि आयी अपणि हि ज्वानी
काम नि आयो अपणू पाणी
27/07/2016
***
 
---23---
पिड़ा मन की कनुकै बिंगाण
भैर बरखा थमेणी नी छ
आँख्यूँ मा पाणि कनुकै आण
27/07/2016
***
 
---24---
दारु  नs कैकी मवसि बणायी
तिल-सि हँसायी, ताड़-सि रुलायी
दा रु नाम सुदि नि पायी
28/07/2016
***
 
---25---
डाँड्यूँ मs खिल्यूँ सूरज-फूल
चखुलौं कु खिगताट नयु मौळयार लैगे
ग्वाया लगाँदु नयु दिन ऐगे
28/07/2016
***
 
---26---
समान शिक्षा जरूरि करि द्यावा
होनहार नौजवानू थैं वूँकु हक दे द्यावा
दगड़ सभ्यूँ थै चळण द्यावा
28/07/2016
***
 
---27---
सामान्य वर्ग का भाग मs क्या
वेकू भाग तs 
भाग ग्या
29/07/2016
***
 
---28---
तिसळि धरती
सौंणा कु मैना
बादळ बणि कि ऐ जावा
29/07/2016
***
 
---29---
जोगी भेष मs मँगणौं ऐन
वूँका ठाट-बाट, हम छाँ बेचैन
मँगणा दिन अब राजौं का ऐन
29/07/2016
***
 
---30---
राजा बण गेन रंक
बजाणा छन सूखा शंख
किरम्वळौं फर ऐ गेन पंख 
29/07/2016
***
 
---31---
म्यारु कसूर इत्गा ही राई
आँसू, आँख्यूँ मा हि समै गेन
दुनिया नs  निष्ठुर बोलि द्यायी
30/07/2016
***
 
---32---
दानि आँखि
छुटा-छुटा सुपन्या
बड़ा-बड़ा मनख्यौं, सच करि द्यावा
30/07/2016
***
 
---33---
बैख बण गेन मूसा
जनना बिरळा बण गेन
दूधs कि पत्यलि अब न लुकैन
30/07/2016
***
 
---34---
त्वा ! य कन दिखावटी दुनिया
होटल मs  लुटेकि टिप देकि आणा छन
रेड़ि वळा दगड़ भुज्जि  मुल्याणा छन
31/07/2016
***
 
---35---
दीणै तs शिक्षा, रोजगार द्यावा
नना-नौना-बाळा नि रै ग्याँ हम
टॉफी, लैमचूस, खिलौणा नि पकड़ावा
31/07/2016
***
 
---36---
आवा सबि एक ह्वे जौला
ये कॉमन्युकेशन अर जनरेशन का गैप मs
प्यार कु गबिलु भोरि द्योला
01/08/2016
***
 
---37---
वु दानौं कु दिल दुखाणा छन
अर् अपणा सुख का वास्ता
पितsर पुज्याणा छन
01/08/2016
***
 
---38---
सौंगु बाटु
भरि-भरि कु भ्याळ
सिंवळि लगी छ
02/08/2016
***
 
---39---
रकर्याणी आँखि, तंगत्याणी छन खुटि
भीटा जपकै-जपकै कि जिंदगी कु रस्ता
संगड़ु भौत, कब तक कट्यालो
02/08/2016
***
 
---40---
वूँ फर अयूँ जोश
खुट्यूँ मs नी छ टेक
बुज्या पुड़्याँ बेहोश
02/08/2016
***
 
---41---
घ्यू की माणी
अाँख्यूँ मs पाणी
मनख्यूँ कु अकाळ
02/08/2016
***
 
---42---
खड़-खुड़ु बाटु
बाँजु माटु
रिबड्याँ लोग
02/08/2016
***
 
---43---
कुछ रिश्ता होंदन खून का रिश्तौं से बड़ा
कु कन समझsद
अपणि-अपणि सोच छ
03/08/2016
***
 
---44---
बौगदा पाणी कख तक जैली
बरखा बणि कि तू मेम ही ऐली
जन्म-भूमि थैं कन बिसरैली
03/08/2016
***
 
---45---
अगोळ तिमला अब नि जमावा
नया जमsना थै तुम ठगै नि सकदा
नयी पौध अब रोपि द्यावा
04/08/2016
***
 
---46---
स्वर्ग से सुंदर म्यारू गौं
भैर उन्दा भितsर ऐनी
मि भितरs कु भैर उन्द छौं
04/08/2016
***
 
---47---
काचा लखड़ा
बुढड़ी आँखीं
खैरि का आँसू
04/08/2016
***
 
---48---
चौक मs जम्यूँ दुबुलु
बंद दरवजौं देखि की
चिफळि देळि फटकरे ग्या
05/08/2016
***
 
---49---
कठिन जीवन, सौंगा लोग
सौंगु जीवन, कठिन लोग
सौंगा-कठिन मs फँस्या लोग
05/08/2016
***
 
---50---
भागीरथी भटी बौगि
यमुना मs आयी
मैणा मs माछी तड़पी ग्यायी
05/08/2016
***
 
---51---
पितsजि कु पुँगड़ू
बण गे फाँगू
जब भटी वाडु बीच मs आयी
05/08/2016
***
 
---52---
कित्गा सुपन्या सियाँ रै जँदन
कबि गुरु नि मिल्दा
कबि चेला नि मिल्दा
07/08/2016
***
 
---53---
जिंदगी की बैलेंस सीट नि ह्वे साक टैली
कबि सम्पत्ति जादा
कबि उत्तरदायित्व जादा
07/08/2016
***
 
---54---
स्कूल जाण दाँ भी रूँ
स्कूल भटी जाण दाँ भी रूँ
आँसू कु फर्क बिंगै ग्या स्कूल
08/08/2016
***
 
---55---
आँसू भैर ऐ गेन
आँखि तिसळि रै गेन
डॉक्टर बुलणा छन मोतिया बिंद पड़ि गेन
08/08/2016
***
 
---56---
ढक्याँ दरवsजा
गुड़्या मनखि
बंद विचार
08/08/2016
***
 
 
---57---
वूँन चाँद मs ज़मीन लियाल
पृथ्वी का अच्छा दिन आण वळा छन
जून बिचरि कु ज्य ह्वालो तब
08/08/2016
***
 
---58---
दथड्यूँ की छुणमुण
बाँदू की गुणमुण
बरखs की रुणझुण
09/08/2016
***
 
---59---
खेल-तमsशs खतम ह्वे गेनि
हम बिज्याँ रै ग्यँवा
सुपन्या सियाँ रै गेनि
10/08/2016
***
 
---60---
छुटि-छुटि आँखी
बड़ा-बड़ा सुपन्या
कड़ा-कड़ा बोझ
10/08/2016
***
 
---61---
दिदौं ! न बदला म्यारु अर्थ
नौना-बाळौं थैं मे दगsड़ खिलsण द्यावा
मेथैं बचपन ही रैण द्यावा
10/08/2016
***
 
---62---
हमsरि पिड़ा, हमsरु सुख
तुमsरु सुख, तुमsरि पिड़ा
तुमsरा शहर, हमsरा गौं
12/08/2016
***
 
---63---
भैजि लग्याँ छन सार
पिलै दींदू क्वी द्वी घूट
चल जाँदू अपणा ड्यार
13/08/2016
***
 
---64---
सरकार दीणी सब्सिडी
कागजूँ का गरीब उठाणा फैदा
भूखु भूखs नs मुरणू
13/08/2016
***
 
---65---
पिरपिरु मनखी
पिरपिरि बात
पिर्रु प्राण
13/08/2016
***
 
---66---
मेहनत कु पसीना
खैरि का आँसू
पहाड़ की नारी
14/08/2016
***
 
---67---
आजाद ह्वे गेन
भारत माँ का वीर सपूत
हमsरि आजादी का बाना
14/08/2016
***
 
---68---
बोडि नs नीर करि
चौबट्टा मs धोळि
खिखराणs नs अफी मोरि
14/08/2016
***
 
---69---
ब्वाडाजी फर नरसिंग प्रकट ह्वाई
गूणि, बांदरूँ की बार पड़ि ग्यायी
धुपsणु दिँदरु क्वी नी पायी
15/08/2016
***
 
---70---
मिन त  अपणु फर्ज निभायी
माँ का दूधs कु कर्ज चुकायी
दगड़्यों सदनि कु यख रायी
15/08/2016
***
 
---71---
कबि-कबि जरूरी ह्वे जाँद
बीच रस्ता मs ढुंगु होण
क्वी आसमान देखी त नि जालो
16/08/2016
***
 
---72---
भौत तेज ह्वे गेन बाँदर
रुसड़ा भटी रुठि तक ली जाणा छन
मनख्यूँ देखी डरणा न, डराणा छन
17/08/2016
***
 
---73---
भै-बैणौं कु प्यार
बचपन की मिठि-मिठि याद
रखड़ी कु त्योहार
18/08/2016
***
 
---74---
जख्या क्वी नि बुतsण चाँदो
साग-भुज्जी मs तुड़का देकी
स्वाद हर-क्वी लीण चाँदो
18/08/2016
***
 
---75---
बोडा-बोडी लग्या छन सारा
दिल्ली भटी अयूँ वूँका नौना कु दगड्या
वू सारा ही लग्या रैन
19/08/2016
***
 
---76---
नि होंण निराश
जम ही जँदिन जलड़ा
डाळु ह्वा या मनखि
19/08/2016
***
 
---77---
आवा जून मs हरियाळि बूति द्योला
जून थैं जून जन बणै द्योला
सरगs कि आँख्यूँ का गैणा बणि जौला
19/08/2016
***
 
---78---
गिचा बुबs कु क्य जाँद
सुदी नि छन वु विकसित
जित्गा गुड़, उत्गा मिठु
20/08/2016
***
 
---79---
काका टरकिण्यूँ मs रै गेन
अफु नौणs कि गुँदsगी भी नि चाखि
घ्यू कि पाथि क्वी और ही खै गेन
20/08/2016
***
 
---80---
हैरि धरती
पिंगळि फ्योलि
रँगीलो मिजाज
20/08/2016
***
 
---81---
जाति-भेद करी आपस मs लड़ै गेन
अफु बण गेन सुपन्यों का राजा
हमsरा सुपन्या भी चोरि गेन
21/08/2016
***
 
---82---
मोल-भौ नि करणूँ अपणौं दगड़
कुछ चीज़ सस्ति, कुछ मैंगि होंदिन
पर अपणा तs अपणा ही होंदिन
23/08/2016
***
 
---83---
वूँन कुंगळि डाळि कु टुक्कु चूँडि द्या
द्वी-चार दिन मs औरि छौंका फुटि गेन
डाळि और भी झपन्यळि ह्वे ग्या
23/08/2016
***
 
---84---
रचण पोड़लि एक नयी कथा
लीण पोड़लु एक नयु अवतार
म्यारा प्रभु तुमथैं एक और बार
24/08/2016
***
 
---85---
जीण अगर हमथैं ऐ जाँदू
खुस्यूँ कु ड्वारू भुर्यूँ राँदु
जीवन, खाली बन्ठा-सि नि हिलणू राँदु
24/08/2016
***
 
---86---
सुख की खोज
सुख ग्या सुख
सुख नि मौळ
25/08/2016
***
 
---87---
भैरऽ  कु बाटू साफ ह्वे ग्यायी
भीतरऽ कु बाटू मैले ग्यायी
गुज्यरु त उनि-कू-उनि रै ग्यायी
26/08/2016
***
 
---88---
मि आम ही ठीक छौं
नि हर्चाण चाणू छौं मिठास
नि बणण चाणू छौं खास
03/09/2016
***
 
---89---
इखुलि नि छ्वाडा दानौं थैं
टैम छ लेल्या आशीर्वाद
बाद मा ही आँद औंळा कु स्वाद
03/09/2016
***
 
---90---
कन आँद दिन कन जाँद
बार-त्योहारूँ कु पता नि राँद
छुटि-सी जिन्दगी कमरा पुटुग कटे जाँद
03/09/2016
***
 
---91---
द्वी आँसु सुख
द्वी आँसु दुःख
सुख-दुख मा जीवन सुख
03/09/2016
***
 
---92---
म्यारा नौना नऽ बसयाल परिवार
बणऽयाल राशन-कार्ड
सदस्य- वू , वेकि ब्वारि अर मेरी नातिण
03/09/2016
***
 
---93---
उळझ्यूँ धागू इन न तोड़ा
ममत्याणा छाँ कुछ करणा कु तऽ
यीं उळझ्यीं गेड़ खोला.
05/09/2016
***
 
---94---
सितराज का फूल
इगास-बग्वाळ
गौड़ि कु व्रत
06/09/2016
***
 
---95---
लूण-रुट्ठि डाळा टुक्कु
होटलूँ कु खाणु फीकु
खुट्टा सातौं आसमान पर
06/09/2016
***
 
---96---
सीधी बात समझ नि आ
डुण्डि चिफळि बात मन मा समै ग्या
कैकु दोष नी गिच्चि कु फर्क रा
09/09/2016
***
 
---97---
फागुण मैना
नयी-नयी ब्योली
फ्योलि कु फूल
10/09/2016
***
 
---98---
धार मा गैणू
कुरमुरि बिनसर
बेटी-ब्वारी किसाण
10/09/2016
***
 
---99---
बसगळ्या औड़ौ
सँगुड़ु बाटु
हैरि-हैरि खुशबू
12/09/2016
***
 
---100---
खैरीऽ गौं लगदन अपणा
सुख-सुविधाऽ शहर उपरि-अजाण
म्याळै-सि खुशबू कनकै लेन्टर मा आण
12/09/2016
***
 
---101---
देवकी बणिकि फोटो खिंचै गेन
कान्हा कि कुँगुळि अँगुळि हममा थमै गेन
डाळौं कि बिज्वाड़ रोपिकि बँहड़ा पोड़ गेन
13/09/2016
***
 
---102---
कित्गा भि द्या भगवान पर
अपणु रूणु रूणऽ की आदत नि जाँद
चुप्फा मा दलेदर हँसणू राँद
13/09/2016
***
 
---103---
चुल्लु जगणूँ एक कूण
बोडा-बोडी रँदन हैंका कूण
नौना की कोठी मा अलग कमरा डॉगी खुण
13/09/2016
***
 
---104---
लिखऽयाली वसीयत
सुपन्या , सुख , खुस्यूँ की
तुमऽरा नाम
14/09/2016
***
 
---105---
हरि-भरि डाँडि-काँठि
सौन्दर्य अपार
मनख्यूँ कु अकाळ
14/09/2016
***
 
---106---
कोफणि गौं सौ मौ
कुल जनसंख्या द्वी सौ
तीन बीसि से मुड़ि क्वी नि छौ
15/09/2016
***
 
---107---
बोडी नऽ आँखौ खैड़ गड़दरु नि पायी
भाभी थैं आ छींक
भैजी डॉक्टर ले आयी
15/09/2016
***
 
---108---
चेला कि लगुली अळझी जाली
गुरु रूपी अगर ठँकरी नि घंट्याली
कखड़ि का बीजूँ नऽ दुनिया देखि याली
17/09/2016
***
 
---109---
काँडा हँसण नि देंदा
फूल रूण नि देंदा
कट्वरि कि डाळि मुळ-मुळ हँसणी
17/09/2016
***
 
---110---
कुँगळा काँडा
मुरझ्याँ फूल
समय बड़ु बलवान
17/09/2016
***
 
---111---
म्यारु मुण्ड
तुमऽरु हाथ
सहारा कि बरसात
17/09/2016
***
 
---112---
गौं मा बड़ा दिन
सभ्यूँ दगड़ मुलाकात
शहरूँ मा झट पड़ जाणी रात
18/09/2016
***
 
---113---
मेहनत करण वळौं कु हाथ न रोका
बढ़ण द्या अगना टँगड़ि न खींचा
तुम देळि कि ढुँगि चिफळि करदा रा 
21/09/2016
***
 
---114---
सीधु-साधु पहाड़
हिसाब नि मँगणू
चाणूँ हमऽरि आड
21/09/2016
***
 
---115---
कित्गा कमायी
कित्गा लुटायी
काम केवल बचऽयूँ आयी
21/09/2016
***
 
---116---
फूलूँ हँसणू
काँडौं रूँणु
डाळि चुट पछ्याँण ग्या
21/09/2016
***
 
---117---
पौड़ीऽ धार मऽ सूरज आयी
बरफ चाँदि-सि चमकी ग्यायी
जेमोऽ मोटरौ हौरन बजि ग्यायी
21/09/2016
***
 
---118---
तेरि मुखड़ि जूनै टुकड़ि
गाळा मऽ गैणौं का गैंणा
सूरज ये सौन्दर्य से दूर
21/09/2016
***
 
---119---
जब छा तब बरबाद कायी
अब नी छ तऽ लाळसा रै ग्यायी
टैम कबि हँसै तऽ कबि रुवै ग्यायी
23/09/2016
***
 
---120---
जित्गा टैम देला
उत्गा सुख पैला
दुखै घड़ि मऽ बतै गेन भगवान
23/09/2016
***
 
---121---
जिकुड़ि फुक्या
गाळि बण आशीर्वाद
धुरपळि मऽ कैक्टस हँसणान
24/09/2016
***
 
---122---
ठुपरौं मऽ भुर्याँ सुपन्या
शहरूँ मऽ खते गेन
उकरि हौरी-हौर सुपन्या पतड़े गेन
24/09/2016
***
 
---123---
हिन्दी साहित्य मऽ एम. ए. कायी
एक लाळसा दिल मऽ रै ग्यायी
बजार मऽ गढ़वाली साहित्य उपलब्ध नि छायी
24/09/2016
***
 
---124---
ब्वे कि गाळि
बुबऽ कि मार
पैंछु नि लौटाँद स्वार्थी संसार
25/09/2016
***
 
---125---
दिल मऽ जहर रालो
तऽ असर जरूर दिखालो
ननऽ नौना-बाळौंऽ भविष्य क्यऽ ह्वालो
26/09/2016
***
 
---126---
इत्गा बड़ि दुनियऽ मऽ 
कठऽ नि ह्वे साक
एक अंज्वाळ प्यार
26/09/2016
***
 
---127---
डाळा छन फुड़ेणा
हर्चैकि पसीना
खुजयेणू छ भाग
27/09/2016
***
 
---128---
दिल्ली भटीन चल भारी-भरकम योजना
गौं मऽ आँदा-आँदा ह्वे ग्या हळ्की
जौंका बान आ वु हैंकि हाड़ नि फरकिन
27/09/2016
***
 
---129---
वूँन नि करि क्वी डिमाण्ड
ब्योली ओर ह्वे गेन गरीब
ब्योला वळौं का ऐ गेन ठाठबाट
27/09/2016
***
 
---130---
कित्गा स्वाणि प्रकृति
दुन्या भरौ सुख दुनिया मऽ
जब जीण ही नि आ क्य कन तब
28/09/2016
***
 
---131---
जून जन जींदु जु
तऽ चमकुदु कित्गा दिन
हर क्वी सूरज नि होंद
28/09/2016
***
 
---132---
राति बोडि कणाणी
दिन मऽ काम-काज फर लग जाणी
"मीन नि रै सकऽण छा दिल्ली" अपणु मन व्यळमाणी
29/09/2016
***
 
---133---
चखलौं च्वींच्याट उठाणू
खिड़की रस्ता घाम बुलाणू
धूळा कणूँ थैं नचदा देख ल्या
29/09/2016
***
 
---134---
पूषौ मैना ऐ ग्यायी
दान मँगणौ म्यारु भैजि नि आयी
बैंड-बाजौं जमऽनु ऐ ग्यायी
30/09/2016
***
 
---135---
गैणौं झिमलाट
हवौ फफराट
अग्यठि जगणी गुठ्यारा तीर
30/09/2016
***
 
---136---
घाम न हवा
डाळि न बोटि
उजणा छाँ बंद कमरौं मऽ
30/09/2016
***
 
---137---
नखरा विचार
हमऽरा काळ
अपणु हि टैम अफी खयाल
30/09/2016
***
 
---138---
घिंडुड़ी आँख्यूँ मऽ
आँसु ऐ गेन
देखी खालि गुठ्यार
30/09/2016
***
 
---139---
वूँन द्या
टेढ़ा सवालूँ
सीधु जवाब
03/10/2016
***
 
---140---
नखरा बोल बोली
नखरा कना छन
अफथैं ही खूब बताणा छन
04/10/2016
***
 
---141---
रस्ता चल्दा-चल्दा
पतेड़ दींद कई किरम्वळा
हमऽरि टकटिकि धौंण
04/10/2016
***
 
---142---
ऊँचि डाँडि-काँठ्यूँ मऽ
चाँदीऽ चदरी
क्व होलि सुखाणी
04/10/2016
***
 
---143---
हैरा-भैरा बुग्याल मऽ
खिलणी ओंस
घाम देखी झट लुक ग्यायी
05/10/2016
***
 
---144---
धरति देखीऽ ढाँढु बरखि
मनखि देखीऽ लुकि
सचेकी कित्गा बदले ग्याँ हम
05/10/2016
***
 
---145---
अम्यळीऽ डाँडा
सफेद बरफ मऽ
सूनौ पाणी कु चढ़ै गे होलु
06/10/2016
***
 
---146---
गुँदक्यळा हिसरूँ रस्याण
अँदळि लगी डाळि
बौंळि कनुकै छुडाण
06/10/2016
***
 
---147---
बरखौ झमणाट
भटूँ तटड़ाट
बुखंदरौं किबलाट
06/10/2016
***
 
---148---
खँतड़ि पुटुग बैठी बहस न कारा
अछ्यणि मऽ जरा मुँडळि तऽ धारा
फिर बौर्डरै बात कारा
06/10/2016
***
 
---149---
दूर नी दिल्ली
मंजिल नजदीक
धैर द्या बस द्वी और लपाग
07/10/2016
***
 
---150---
पीठु कुटेणू घम्म-घम्म
चूड्यूँ छमणाट छम्म-छम्म
भैजी ब्योऽ मऽ रंगत अयीं
08/10/2016
***
 
---151---
चूनै रुठळि इन न ढकावा
खैर खैयीं छ तुमऽरी भारी
गौड़ा बाँठै एक खँडिकि खाणि द्यावा
09/10/2016
***
 
---152---
बरखा आयी
प्रकृति नयायी
चोळि तिसळि रै ग्याई
14/10/2016
***
 
---153---
छुटि-छुटि बातूँऽ ख्याल राखा
बड़ि-बड़ि बात बण जाली
जीणु सौंगु ह्वे जालो
14/10/2016
***
 
---154---
टरकऽणि कैर-कैरी पुकाण वलौं का
जलड़ा ढीला ह्वे गेन
वु साब बणौ शौक रखऽण बैठ गेन
18/10/2016
***
 
---155---
ब्यखुनी घाम झट अछळे ग्याई 
मिठि-मिठि खुशबू कुरै दगड़ आयी
रातै राणी अंध्यरा मऽ लुकि ग्याई
18/10/2016
***
 
---156---
कभि-कभि परदा जरूरी ह्वे जाँद
कभि-कभि दूरि भि नजदीक लाँद
तड़तड़ा घामौ मरुस्थल मऽ पाणि दिख्याँद
19/10/2016
***
 
---157---
बातूँ से मुकुरण सौंगु
कठिन वूँ पर डट्यू रैण
बिना वसूलूँऽ क्या जिंदगी
19/10/2016
***
 
---158---
खोल द्या ज्यूड़ा
तोड़ द्या सँगुळा
कैका गुठ्यारा गोर नि छाँ
20/10/2016
***
 
---159---
पिंडळू पत्ता
पाणी खेल
मोती म्यालौं मऽ घामै झैळ
22/10/2016
***
 
---160---
जब गाळा-गाळा ऐ जाँद
तब बागै डैर नि राँद
नयु अध्याय शुरु ह्वे जाँद
23/10/2016
***
 
---161---
भाँडि भुरे गेन बँदर्यूं नऽ
अब कनकै बौगदू पाणि बचाण
रूड़ी मैना दगड़्या हमन फिर तिसळु रै जाण
24/10/2016
***
 
---162---
चला अपणू कद बढ़ौला
छुटि सोच त्यागी द्योला
जरऽसि बड़ा बण जौला
27/10/2016
***
 
---163---
काफुळ पाका मीन नि चाखा
कन खैरि खै की भोरि छा काण्डी
खैरीऽ भौ मा बिक नि साका
29/10/2016
***
 
---164---
यूँकि मुण्डळि इन हुँच्याई
कखड़ि तऽ खाई-खाई
लगुलि भि उपाड़ द्यायी
29/10/2016
***
 
---165---
उरख्यळाऽ पाणी
घिंडुड़ि नयेणी
घामै झैळ आणी-जाणी
31/10/2016
***
 
---166---
छुँय्यौ पाणी अँज्वळ्यूँन प्यायी
सरैल बगछट पर मन नि भुर्याई
खारू पाणी आँख्यूँ मऽ आयी
31/10/2016
***
 
---167---
जिकुड़ि मऽ राला भला विचार
भला रौला अफु, घौर, संसार
अबटा लिजाँदा बुरा विचार
01/11/2016
***
 
---168---
बगऽत आण पर जवाब मिल जाँद
सबतैं जवाब बगऽत दे जाँद
प्रभु ! सभि बुल्याँ मिठा-मिठा बोल
01/11/2016
***
 
---169---
लिच्चा कुमुर चिपकी गेन
विचऽरा कित्गा खुद्'या रैन
जब धुळिन फुंडु दणमुण र्'वेन
01/11/2016
***
 
---170---
मुंडळि हिलाणी ग्यूँ की डाळी
मिठि-मिठि छ्'वीं-बथा हवा दगड़ लगाणी
दगड्या वींकी दाथि पळ्याणी
01/11/2016
***
 
---171---
कटे जँदिन खैरी बाटा
कदम न र्'वाका
मौळि जालि खुटि छाळा न द्याखा
03/11/2016
***
 
---172---
मशीनूँ पर ह्वे ग्या  भर्'वँसु
पास ह्वे गेन रोबोट
मनखि ह्वे गेन फेल
04/11/2016
***
 
---173---
बोल-बाला तऽ बड़ा कु हि राँद
सब जगा  छ्'वटु  हि मरे जाँद
बड़ु माछु  छ्'वटि  माछि तैं घूळि जाँद
05/11/2016
***
 
---174---
न सूरज घबराँद
न जून घबराँद
द्वी घड़ीऽ त जीवन मऽ ग्रहण आँद
05/11/2016
***
 
---175---
ड्वारा रै गेन रीता
च्यूला ह्वे गेन ढिल्ला
बटुवा ह्वे गेन टैट
06/11/2016
***
 
---176---
साफ-सफै राली
नयी तकनीक आली
सदनि इनि जीण क्या
12/11/2016
***
 
---177---
घैणा रुप्या, घैणि कड़ऽकताळ
घैणा, गैंति, सबळा हँसणान
सियाँ सुपन्या कुबळाणान
12/11/2016
***
 
---178---
एक इन मशीन बण जाँदि
सुख-शांतीऽ रैबार फैलाँदी
दुख-दर्द तैं थमथ्याणी राँदि
13/11/2016
***
 
---179---
गुरुजी पिड़ा चेला नि जाणी
चेलैऽ पिड़ा गुरुजी नऽ  पछ्'याणी
सूनाऽ गुरुजी, चेला सूनौ पाणि
13/11/2016
***
 
---180---
बादळूँऽ टोली खिलणी होली
सूरज दगड़ सतरंगी होली
दगड्या धार मा घाम तपणा होला
15/11/2016
***
 
---181---
लीसाऽ आँसू डाळी  र्'वाई
हैरू-भैरु जंगळ फुक्याई
कुळैंऽ डाळीऽ टुक्कु उल्लू  र्'वाई
16/11/2016
***
 
---182---
उकळी बाटु, थक्यूँ सरैल
ज्वान खुज्याँदा रै गेन
बुढ़डी़ डाळी-बोट्यूँऽ छैल
18/11/2016
***
 
---183---
कब आला बादऽळ, कब बरखा आली
मैला डाळा-बोटों तैं कब नवाली
तिसऽळि चोळि कब चुप ह्वाली
23/11/2016
***
 
---184---
अजाण पराण
कबि फीकु, कबि मिट्ठु बणी
जिन्दगीऽ कड़ु सच बताँद
23/11/2016
***
 
---185---
बादळूँ बीच मुखड़ि लुकाई
जून छुईमुई-सी सरमै ग्याई
मनखी मन ढुँगु किलै ह्वाई
23/11/2016
***
 
---186---
मंगसीर मैना
फूल घाम तपणौ ऐना
चटकताळा घाम मऽ हीटर चलणा रैनऽ
26/11/2016
***
 
---187---
फूलूँन पूछी किलै छाँ उदास
आवा घाम तापा, छ्'वीं-बथा लगावा खास
वु बैठ नि सकिन व्यस्तताऽ बाना
26/11/2016
***
 
---188---
दिमाग नि लगा, भकळाण म गैन
अपणऽ हि खुटौं पर कुलऽड़ि चलैन
चकडे़त स्याळ धार मऽ र्'वेन
27/11/2016
***
 
---189---
खेल-खेल मा रुमुक ह्वे जाँण
माँजीऽ चौका तीर भटी धै लगाण
कन डैर जाँदु छायु बाळु प्राण
Copyright © सतीश रावत
27/11/2016
***
 
---190---
माँ रखऽद छुटि-छुटि बातूँऽ ख्याल
बड़ि-बड़ि बात सौंगि ह्वे जँदिन
माँ  पछ्'यणदि  छ छुटा मनैऽ बड़ि बात
28/11/2016
***
 
---191---
डाळि सुख पर आस नि गाई
सेवा-भक्ति मऽ क्वी कमि नि ह्वाई
छौंका फुटिन, नयु मौळ्यार आयी
02/12/2016
***
 
---192---
शॉर्टकट इत्गा पसंद आई
अपणा ढंग से परम्परा चलाई
पाथु बिचऽरु, माणु ह्वाई
04/12/2016
***
 
---193---
शहरैऽ मुँगरि मळमळि ह्वाई
पुटुगु भुर्या पर मन रीतु राई
गौं का माटौऽ स्वाद नि आई
05/12/2016
***
 
---194---
गरीब जखा-तखी
चकड़ेतूँऽ बार
योजनौंऽ पकड्ँयू रा सदनि कपाळ
05/12/2016
***
 
---195---
रँगिला-पिंगला फूल छाँ.
हम नऽ, कलम बुलणी.
हम सब्बि समाजाऽ अंग छाँ.
06/12/2016
***
 
---196---
डॉलरऽन उगड़िन भीटा
रुप्यऽन मरिन फळ्ळि
कैशौऽ बैलेंससीट मऽ जगा नि रा ह्वलि
06/12/2016
***
 
---197---
प्रकृति जन स्वाणा हम ह्वे जाँदा
हमऽरु भि जीणु सफल ह्वे जाँदु
हम भि मनखि बण जाँदा
08/12/2016
***
 
---198---
जमीन छोड़ी आसमान लँफ्याँण
जमीन भटी आसमान लँफ्याँण
जमीन आसमानौऽ फरक
08/12/2016
***
 
---199---
माटु उड़ नि जा कखि, डाळि लगौला
पुँगडौंऽ तीर ऊँचि डिमडाळ बणि जौला
कब तक बीजौऽ बि पैंछु मँगणा रौला
12/12/2016
***
 
---200---
रात बिजि ग्या दिनऽ बाना
घाम अछे ग्या जूनऽ बाना
हम लड़णा रै ग्यों अपणऽ बाना
18/12/2016
***
 
---201---
बरखा हूणी
धुरपळि चूणी
स्वारा बाँठु मँगणान
24/12/2016
***
 
---202---
तुम छाँ डाळि-बोटि, गाड-गद्न्यूँ मा
तुम छाँ उचि-निसि डाँडि-काँठ्यूँ मा
हम राँका लेकि खुज्याणा छाँ मैदानूँ मा
24/12/2016
***
 
---203---
हळतुडै़ न  कारा परम्परा निभावा
म्यारु ससुराल परदेश
वखौ लड्डु न, अरसा बणावा
24/12/2016
***
 
---204---
ढुँगु प्राण
रूँदि आँखि
हँसदा लोग
30/12/2016
***
 
---205---
हैरि पुँगड़ि पिंगळि ह्वेन
लय्याऽ फूल फूलि गेन
खुटौंऽ काँडा निकळि गेन
02/01/2017
***
 
---206---
पूषौऽ मैना लय्या फूलि अफार
रंगिला-पिंगला फूलूँ पड़ि बार
फूलूँ मुखड्यूँ मा तुमरि अन्द्वार
03/01/2017
***
 
---207---
स्वाळि-भूड़ि, पूरि-पक्वड़ि पकै दिंया
जरा अपणु भि त्योहार मनै दिंया
अपणि परम्परा पर भी कुछ कृपा कैर दिंया
13/01/2017
***
 
---208---
प्रदूषण तैं दवऽयूँन मिटाणा छाँ
घिंडुड्वी आँसु देखी दया खाणा छाँ
अफु तैं अफी मारी, अफी बुथ्याणा छाँ
15/01/2017
***
 
---209---
चोळि ! तेरि खैरि बींगऽलु कु
सुदि नऽ  हैंस
अछेकी नऽ रू
16/01/2017
***
 
---210---
टैम-टैमै बात
उबरीऽ गुरुजी मार
आज लगऽद प्यार
24/01/2017
***
 
---211---
फ्योलि-सि मुखड़ी
ह्यूँ-सि दँथुड़ी
कित्गा नैसर्गिक छन डाँडि-काँठि
25/01/2017
***
 
---212---
बोल कड़ा कभी ब्वला ना
रिश्ता-नातौं तैं तर्वऽजू मा त्वाला ना
टुटी माळै मेल्यूँ पत्याड़ा ना
28/01/2017
***
 
---213---
फूल हर्चिन, फल ऐन
फौंका निसऽ हूँदा गैन
मनखि तखणेंणा रैन
29/01/2017
***
 
---214---
बाछी मोळ, जौ कि हरियाळिल
मोड़सँगारूँ तैं प्रकृति-सि सजौला
वसंत पंचमी त्योहारौ, आवा प्राकृतिक बण जौला
01/02/2017
***
 
---215---
हम कर्करा ढुंगऽ
प्रकृति नौण-सी
सै नि सकद हमऽरऽ पापूँऽ ताप
07/02/2017
***
 
---216---
क्वी कैथै सुदि नि खलाँद
यु सुचणौ कलियुग मजबूर कैर जाँद
मनखि बिचऽरु टपराणू राँद
10/02/2017
***
 
---217---
ह्यूँ पड़ि, ह्यूँद आयी
हैरि मुखड़ि गोरि ह्वाई
काजऽळौ टीका किलै नि लगाई
10/02/2017
***
 
---218---
हर्चण भि पुड़द, पाणा बाना
हरऽण भि पुड़द, जितणा बाना
जितऽण ही पुड़द, जीणा बाना
13/02/2017
***
 
---219---
पत्तौं नऽ माँग बाँठु अलग ह्वेन
डाळ्यूँऽ आँख्यूँ मा अँसऽधरि ऐन
मुंडाऽ मुकुट खुटौं मुड़ि पतड़ेन
13/02/2017
***
 
---220---
मंगसीरा मैने घामै झैळ
जेठा मैने आमै डाळी छैल
पैंछु त्यारु प्रकृति लौटा कैल
13/02/2017
***
 
---221---
बिरऽणि संस्कृति बचा, अपणि डुबाई
अपणि ताकत अफी लूछि द्याई
खलि बंठा इना-उना लटकेणू राई
14/02/2017
***
 
---222---
मुळ- मुळ हँसणू बुराँस
खित-खित हँसणू बथौं
टूरिस्ट रकरे गेन देखी खालि गौं
17/02/2017
***
 
---223---
टुट्याँ फूलूँ आँखि हँसणी रैन
हँसणै पिड़ा जाण नि कैन
आँखि-हि-आँख्यूँ मा आँसु समैन
17/02/2017
***
 
---224---
डाळि नि पचै साकि इत्गा प्रदूषण
ऑक्सीजनौऽ भंडार मँगणू जीणौ ऑक्सीजन
मनखीऽ मन मा जमणू कार्बन
19/02/2017
***
 
---225---
छैंदा पाणि कब तक तिसऽळा रौला
हमऽरा टैक्साऽ पैंसा कख जाणा होला
कनकै विकासाऽ गीत लगौला
21/02/2017
***
 
---226---
हमऽन का पलायन अपणौंऽ बाना
सुपन्य दिखिन दुनिया दगड़ चलणा बाना
खैरि खा, खैरि खतम करणा बाना
23/02/2017
***
 
---227---
कर्मूंऽ फल पैलि चितै जाँदा
पापाऽ घाड़ा रीता राँदा
हम भी मनखि बण जाँदा
26/02/2017
***
 
---228---
स्वाणि डाँडि-काँठि, रौंतेला गौं
अपणा बाँठै हवा, पाणि, बिजली बँटणू छौं
फिर भि खैरीऽ जोग सरणू छौं
05/03/2017
***
 
---229---
हँसदा-ख्यलदा बरखा आयी
प्रकृति नऽ स्वाणि धुन बणायी
मनखि रा सूखु, मन भिज ग्याई
10/03/2017
***
 
---230---
रंगिला-पिंगळा रंग बण जौला
मुखड़्यूँ मा मुस्कान लौला
द्वी घड़ि अफुतैं बिसरि जौला
11/03/2017
***
 
---231---
माटौऽ मनखि खट टुट ग्यायी
ढुंगौऽ मनखि करकुरु राई
आँसु तऽ मनखि नऽ ही बौगाई
13/3/2017
***
 
---232---
मंगसीरा मैना घाम बणी औलू
जेठा मैना छैल बण जौलू
पितरूँ तैं मनल्या तऽ दगड़ु निभौलु
13/3/2017
***
 
---233---
सुबेर गुठ्यार मा ऐ जाँदि
सुख-दुखैऽ छ्वीं-बथा लगाँदि
घिन्डुड़ि ! कब तेरि याद नि आँदि ?
20/3/2017
***
 
---234---
बिनसिरि ह्वे प्रकृति बिजि ग्यायी
मनखीऽ निंद पूरि नि ह्वायी
सुन्दर सुबेर हर्चै द्यायी
21/3/2017
***
 
---235---
तुमतैं पैलि पछ्याण जाँदा
सबसे अगनै हम राँदा
क्वीला; हीरा बण जाँदा
23/03/2017
***
 
---236---
फूलूँ नऽ ब्वाली हँसणा रावा
काँडौं नऽ ब्वाली चुभणा रावा
डाळि नऽ ब्वाली दगड़ु निभावा
23/03/2017
***
 
---237---
मि, मि नि राँदु
तू, तु नि राँदि
मनख्यातै लगुलि बढणी राँदि
25/03/2017
***
 
---238---
जिन्दगी मुळ- मुळ हँसदि बिंडि बार
कित्गै दाँ जीत मिल्द, कित्गै दाँ मिल्द हार
कित्गा स्वाणु छ संसार
16/04/2017
***
 
---239---
ज्यूँदा रौला तऽ ऑक्सीजन द्योला
मोरि जौला तऽ ठँकरा बण जौला
मनख्यूँ जन मनख्यात निभौला
19/04/2017
***
 
---240---
माटाऽ खेल अब नि दिखेंदा
तिड़ी गल्वड़ि अब नि दिखेंदी
बचपन सँयणु होण बैठ ग्या
22/04/2017
***
 
---241---
जरा मि निसु ह्वे जाँदु
जरा तु निसु ह्वे जाँदि
मनख्यातै सग्वड़ि हैरि-भैरि राँदि
28/04/2017
***
 
---242---
द्वी लपाग तुम बढ़ावा
द्वी लपाग हम बढ़ौला
दुनिया से अगनै निकळ जौला
30/04/2017
***
 
---243---
साँस मठु - मठु चलणी राली
जीवन तैं सर-सर पळणी राली
ग्लेशियरूँऽ जिकुड़ि पिघऽळणी राली
03/05/2017
***
 
---244---
क्वी साथ द्या, नि द्या
मेहनत रंग जरूर लाँद
खैरिऽ जोग कैकु नि आँद ?
05/05/2017
***
 
---245---
अब न चिट्ठी, न पार्सल आँद
जिकुड़ि सारा अब नि लगी राँद
समाज मा व रौंस अब नि दिख्याँद
09/05/2017
***
 
Copyright © सतीश रावत
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-
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली , तीन पंक्ति कविता ; चमोली  गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य तीन पंक्ति , तीन पंक्ति कविता ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य तीन पंक्ति , कविता ;टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य तीन पंक्ति , कविता ;उत्तरकाशी गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य तीन पंक्ति , तीन पंक्ति कविता ; देहरादून गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली पद्य तीन पंक्ति , तीन पंक्ति कविता ; 
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  स्वच्छ भारत ; स्वच्छ भारत ; समर्थ गढ़वाल
 
 
 
गढ़वाल सतीश रावत के  आधुनिक लोकगीत/कविताएं , नज्म ;  , उत्तरकाशी गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म;  टिहरी गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म; रुद्रप्रयाग गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म, चमोली गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म, , सलाण से गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत; पौड़ी तहसील से  गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत कविताएं , नज्म, ; लैंसडौन तहसील  गढ़वाल से आधुनिक लोकगीत , कविताएं , नज्म
 
Garhwali verses, Garhwali Folk Songs, Garhwali Poems
 
Garhwali Verses by Satish Rawat
 
 
 

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Garhwali Poem By Devesh 'Admi'


*ज्यूंदाल*          भान-०१
-
देवेश 'आदमी '

प्र-०१         दिनांक-०८/०५/२०१७
---------------------------------------
*किलै तुम चुल चुल नोनों कु बाटु हेरणा कु जाणा छौ,,*
*बैठ्यां रौ ज़िंगला म ठाट से किलै खैर खाणा छौ,,*

*खुंटी म टाँकि दयौ अब अपुड़ खैरि कु थोला,,*
*टयक्वा थामो चलो तुमरि खैरि थै भँवलुन खैतिक ओला,,*

*कुजणों खु किलै पुटग हि पुटग ख़ुमसेणा रुमणाणा छौ,,*
*कुटुल लेकि किलै अफु कु खडोल खुज्याणा छौ,,*

*जुनखेलि नि ह्वै ग्विनलण नि ये भैर रात हुईं भारी,,*
*आवो फरसि छल्याव बैठ्यां रौंला तुमरि तिबारी,,*

*भटगै अपुड़ द्वारों पर गंज्योंल कु अङ्गु लगावो,,*
*फूको फुंड जु ह्वैल अपुड़ भाग म सजला फर सोड लगावो,,*

*बिरौलि का छौनों सि कख नचण अब हमन,,*
*अफु मुंड मूंडो अपुड़ अब सदनि कै थै बुलाण तुमन,,*

*गिचु न उगाड़ो लोखों दगड टप टोप मारिक रावो,,*
*बख्त ह्वै गे उंद जाणा कु क्याडा मुच्छयलु खुज्यावो,,*

*श्वारों कु छक्वै बोल कैरिक मिन नोनों थै लिखा पढ़ाई,,*
*कुटुल दथुड घस्यूड अफु बणेक मिन ब्वारी थै काम अडाई,,*

*उकाल त कटे ग्या झकरा अर खग्वटु सब झेड गेन,,*
*नोना बाला बिसिर गेन अब सब गदन तैर गेन,,*

*अब कैल नि आण हमर खांखरा कु तसला क खर्या अर बूखु ख़त्णा कु,,*
*क़्वी हम थै हेर न देख पर फर्ज च हमर सब्यों थै अपुडों जन संतणा कु,,*

*हमन चुरमणि का दिनों म भि फुंगड़यों म भडडू खुज्याई,,*
*आज खीर का दिन येन त नयार म पाणी भि मूल्याई,,*

*क्या बिगड़ीं छै हमरि खैरि खाकि हमन क्या पाई,,*
*इन भि क्या करीं रै होल हमर जु आज हमर क़्वी नि राई,,*

-------------------------------
म्यारा ब्वै बाबों क खैरी का दिन,,,
*देवेश आदमी*
----------------------------------------

*ज्यूंदाल*               भान-०२
*प्र-०२।।  दिनांक ०९/०५/२०१७
----------------------------------------
*इबरी आज हमन सिन किलै रैण छाई,,*
*द्वी ग़फ़्फ़ा हमन भि खटुलम खाण छाई,,*

*नात्यों का दिनों म हम कुकर बिरौला सेंतणा छौ,,*
*बुडेन बख्त हम गुज्यरों म बोलेणा छौ,,*

*काखड़ जन बांक हुई लव्खों क चौखम् सुबेर ब्यखुन,,*
*कुजाण पदमेश्वर जमनु कनख्वे बदलेन स्याखुन,,*

*आज हम अपुड़ ड्यार म पतरोल बणि ग्यों,,*
*छि बै हम ज्यूंद म हि घरभूत सि पुजै ग्यों,,*

*यु जून भि हम खुण अखोड जन काठि ह्वै ग्या,,*
*गॉँव गुठयार छि बै खाड़ू जन माठि ह्वै ग्या,,*

*हमरा खैरि क दिनों खुण मुरदु मुरदु भि रात नि खुलणि,,*
*जु आणु झट मंथा म उ जम्मा अपुड़ मुठगि नि खुलणि,,*

*मचाक त जिकुड़ी म अब सदनि कि पोडि गे,,*
*होरि भि छन प्रदेश म बस्यां जु बख्त पर ड्यार बोडि गे,,*

*अरे जै भोंट म बैठ्यां छौ तुम वै थै गिंडाणा छौ,,*
*खैरि क दिन हमन कटी अर तुम सुसरस्यो थै अपुडाणा छौ,,*

*अब बुबा रै बैकुंठ भि पोंछि जौंला त औलाद नि मंगला,,*
*भुर जु करीं होल कैकु त ई दुन्या म अफि हम भ्वग्ला,,*
----------------------------------------
मेरा ब्वै बुबा क खैरि क आँशु,,

*देवेश*


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Bhishma Kukreti

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Satirical Garhwali Poem by Payash Pokhara
-
विकास का नौ चार लैन
*******************
डिलि-द्यारादूणा ल म्यारा भय्यूं थैं इनु रुजगार द्याया |
आज म्यारा गांवा कि इक्कैक घर-कूड़ि खंद्वार ह्वाया ||
ठिट्ट चुलखन्दिम तक काळि डमरौण्यां सड़क पौंछे याल |
गांवा कि खुट्टि भैर रड़ाणा को कन सौंगि सौंग्यार ह्वाया ||
आळौ मा द्यू बतूलु,जळ्वठौं मा चिमिनि नि चमकदि अब |
गांवा का सूरज फर त चुकापट्ट अंध्यरौं की अंद्वार आया ||
घम-पाणि बिजिलि(1) त अब सरकरि पिनसनेर ह्वै ग्याई |
तू ये वैम मा नि रै कि त्यारा गौं मा कभि उदकांर ह्वाया ||
(1) सौर ऊर्जा-पन बिजली
@पयाश पोखड़ा |

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Bhishma Kukreti

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Garhwali Poems by Payash Pokhara
पयाश पोखड़ा की गढ़वाली कविताएं , शेर, गजलें
-
विकास का नौ चार लैन
*******************
डिलि-द्यारादूणा ल म्यारा भय्यूं थैं इनु रुजगार द्याया |
आज म्यारा गांवा कि इक्कैक घर-कूड़ि खंद्वार ह्वाया ||
ठिट्ट चुलखन्दिम तक काळि डमरौण्यां सड़क पौंछे याल |
गांवा कि खुट्टि भैर रड़ाणा को कन सौंगि सौंग्यार ह्वाया ||
आळौ मा द्यू बतूलु,जळ्वठौं मा चिमिनि नि चमकदि अब |
गांवा का सूरज फर त चुकापट्ट अंध्यरौं की अंद्वार आया ||
घम-पाणि बिजिलि(1) त अब सरकरि पिनसनेर ह्वै ग्याई |
तू ये वैम मा नि रै कि त्यारा गौं मा कभि उदकांर ह्वाया ||
(1) सौर ऊर्जा-पन बिजली
@पयाश पोखड़ा |
"चांठौं का घ्वीड़"
*************
स्यो जो राजपथ मा सुरक कै डुंकरतळि मरणा छन |
स्यो जो इण्डिया गेट मा चाणा मुंगफ्वळि क्वरणा छन |
परदेसा की चौंप लगण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो पर्वठी ल्हेकि दुधकि लैनम खड़ु हूयूं च मदर डेरी |
स्यो जो ओगळ पळिंगा का भौ पूछणु च रेड़िम बेरी बेरी |
घ्युवा की कम्वळि फुटण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो पैरणा छन पिनसिनि हील्यूं का उचा उचा सैंडल |
स्यो जो भग्यनि घुमाणि छन दिनरात मारुति का हैण्डल |
घास लखड़ु की बिठिगि उफरण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो बीस गज जागा मा चारदिवरि अर पौ धराणु चा |
स्यो जो कर्जपात कैकि कज्यणि थैं सबुकि बौ बणाणु चा |
वनसैड ओपन पलाट कु बयनु दीण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो खड़ा छन कैदि स्यूंद गाडिक कोट पैंट टै लगैकि |
स्यो जो नड्डा जननि थैं बुलाणा छन अंग्रेजिम धै लगैकि |
अपणि गढ़वळि एड़िकै बिसरण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो बड़ बड़ा पुटगौं का छ्वटा अफसर बण्यां छन |
स्यो जो कुक्कर काखड़ौं का भि भलिकै पछ्यण्यां छन |
अपणि पुरणि पछ्याण लुकाण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो गढ़वळि संस्था सोसैटि को पैसा कठ्ठा कना छन |
स्यो जो रुम्कदां छक्वै दारु पीणा खुण छम्वटा कना छन |
झांझि दर्वळ्यौं की कछिड़ि लगाण से पैलि--
सी छाया चांठौं का घ्वीड़ ||
स्यो जो खद्दर कु डमडुमु कुरता पैरिक आणा जाणा छन |
स्यो जो नेताजि का डडुळू पणै बणिक दरि बिछाणा छन |
जिन्दावाद जिन्दाभात टिण्डाभात खाण से पैलि--
सी छाया चांठौ का घ्वीड़ ||
स्यो जो चार आख़र जोड़ि जोड़ि सिक्कासैरि कना छन |
स्यो जो दिल्लि मा बैठिक गढ़वाळा की खैरि ब्वना छन |
"पयाश" पोखड़ा का गीत गज़ल बणाण से पैलि--
सी छाया चांठौ का घ्वीड़ ||
@ पयाश पोखड़ा |

=
***************************************
ज़िंदगि कु "पयाश", बस ! इत्गै हिसाब-किताब चा |
फ़ज़ल स्यवा-सौंळि अर ब्यखुन्यां समन्या साब चा ||(1)
सदनि वो उत्यड़ु फर उत्यड़ु लगाणु राया |
म्यारा गळ्या कु ढुंगु मि बाटु बताणु राया ||(2)
@पयाश पोखड़ा |
=
जिंदगि- एक गज़ल
****************

गंगाजि का जौ हुईं च जिंदगि |
बिरणौ का नौ हुईं च जिंदगि ||

हाथ जोड़ि खड़ाखड़ि छवां |
द्यप्तौं कु ठौ हुईं च जिंदगि ||

रोज़ नै-नै कीला ज्यूड़ि बांध |
गुठ्यारा की गौ हुईं च जिंदगि ||

मौळि नि कभि जो नासूर |
कन गैरा घौ हुईं च जिंदगि ||

तेरि खुद ज़िकुड़ि मा बिनांद |
शूळ-पिड़ा डौ हुईं च जिंदगि ||

धुरपळि धरिं छन मुण्ड मा |
कूड़ो कि पौ हुईं च जिंदगि ||

त्यारु जि नि राई क्वी सैं-गुसैं |
सर्या गौं कि बौ हुईं च जिंदगि ||

गौं-गळ्या खालि च मुलक मा |
सूना का भौ हुईं च जिंदगि ||

सितगा नि तक्ण्यौं रे किदला |
सिक्कासैर्यूं की मौ हुईं च जिंदगि ||

सस्ता मैंगा कि बात नि "पयाश" |
टका सौ-सौ हुईं च जिंदगि ||

@पयाश पोखड़ा |

===================

एक गीत गंज्यळि
**************
ग्वाया लगांदा चौमासा थैं देळि उगड़णि दे |
लगुलि रितु बसन्त कि ठंग्रि मा चढणि दे ||
फोळि सि हुटण्यूं की डिमडल्यूं थैं ठसोळिक |
दळम्यां का बियौं थैं मुलमुल हैंसणि दे ||
फीकि मळमळि अर बकळि सि जीभि मा |
हिंसोला किनगोड़ा कि मिठ्ठी बूंद तरकणि दे ||
उल्यरा दिनु थैं अभि सौरास नि पैटैई |
दिन चारेक रंगमत मैना थैं मैता मा रणि दे ||
धगुला झिंवरा ज़िकुड़ि थैं आंख्यूं मा पैजमी |
स्वीणो थैं चूड़ि फूंदा अर बिन्दी पैरणि दे ||
क्वीनों ल घचकाणि च या छमना हवा |
मीथैं थड्या चौंफला गीतु दगड़ उडणि दे ||
दुख खैरि फर अब खुटळि जिबाळ लगैदे |
बौळ्या बणकै पयाश थैं गौं मा रिटणि दे ||
@पयाश पोखड़ा |
===================
दिवंगत पूरण पन्त "पथिक" की मधुर स्मृति थैं समर्पित एक गज़ल---"ख्वज्णा रवां"
*******************************************

सर्या ज़िन्दगि जारु-जख्यरु, जीम-जिमदरु ख्वज्णा रवां |
हम त म्वरण से पैलि अपणो पछतौ दिदंरु ख्वज्णा रवां ||
नवळि तुलबुल भ्वरिं अर पंद्यरि भि दिनरात खत्येणि चा |
वार ध्वार चोळि सि तिसळु वे पाणि पिंदरु ख्वज्णा रवां ||

कौळ्यण्या घळतण्या छुयुं मा जीब तिड़क्वळै सि ग्याई |
हम त सदनि वीं टटमरिं दाणि मेळु-घिंघरु ख्वज्णा रवां ||

बाळापना की वा कूड़िबाड़ि गोठपल्ला अर गौड़ि बाछी |
चिफ्ळदि उमर मा भि सुपिन्या बैलु बिंदरु ख्वज्णा रवां ||

आंखि मेरि रुणि छे पर आंख्यूं मा इ आंसु कैका रै होला |
गळ्वड़ियूं मा अटकीं आंसु बूंद मा वे रुंदरु ख्वज्णा रवां ||

अब न याद न पराज़, न भटुळि न आग घुघरांद "पयाश"|
झणि किलै आज भि वे ज़िकुड़ि लुछदरु ख्वज्णा रवां ||

@ पयाश पोखड़ा |

=======================

----------- गज़ल----
****************************************

कब क्य कै साक दूधल वीं दै कु |
दुन्यां मा कब ह्वै साक क्वी कै कु ||

लोग जै भग्यान थैं सौकार बताणा छन |
मीथैं त जम्मा नि लागु वो द्वि ढै कु ||

आग मुंजैकि मवार न्यूतणा छन जो |
कभि नि द्याखु वूंका चुलम क्वी तैकु ||

सुण्यां कु अणसुणु कैकि बौग सरणु जो |
चुप रौ, अब क्य कन तेरि सीं धाद धै कु ||

डाळि बोटि फूलु दगड़ खुपसट कनि छन |
कुटमणों फर प्वत्ळ्यूं कु प्यार च नै नै कु ||

एक ब्वै एक बब्बा एक ल्वै च पर तैभि |
न भै म्यारु ह्वै साक कभि न मि भै कु ||

हिक्वळि फील्यूं की नस नाड़ि न्यूरेणि छन |
मेरि ईं सूळ पिड़ा क्य समझलु क्वी हैंकु ||

================

एक गौंछ्यळु गीत इनु भि..........
("घंजीर" भै साबा की खुचिल 'अंज्वाळ' पांचेक ध्वळनु छौं !)

छुयुँ-छुयुँ मा कबरि-कबरि,
छुवीं ऐ जालि जबरि हमरि,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो……
आँसु ल डबळईं आँखि तुमरि !!!

से उठिकि सुबेर ल्याकि,
सुपन्यळ्या आँखि ध्वै-धाकि,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो......
मेरि शकल लुकंईं तेरि आँखि !!!

मेरि खुद ल्हेकि ऐलि बरखा,
आँख्युं मा आँसु बूँद सरका,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो.......
गळ्वड़्युं मा आँसु की तरका !!!

मेरि खुद जबरि त्वै लगालि,
टपराँदि आँखि मी ख्वज्यालि,
ख्याल राखि क्वी नि द्याखु हो......
घुट्ट-घुट्ट भटुळि त्वै लगालि !!!

दगड़्यों दगड़ त्यारा गौं,
तु सुणलि कि मि भि औं,
ख्याल राखि दौड़ि नि जै हो......
बिना चुन्नी अर नांगा पौ !!!

चौबट्टा मा छट्ट छोड़ि गैन जो हथ छड़ैकि |
"पयाश" ज़रा बाटु बतै दे वूंथैं ठिट्ट घनै कु ||

@ पयाश पोखड़ा ||

===================

"सुबेर नि हूंदि" (गज़ल)
******************

काम काज़ा की अब कैथै देर नि हूंदि |
अजकाल म्यारा गौं मा सुबेर नि हूंदि ||

घाम त तुमरि देळिम कुरबुरि मै बैठु जांदु |
अगर सूरज़ थैं बूण भजणा कि देर नि हूंदि ||

खोळ्यूंं का द्यप्ता भि दगड़म परदेस पैट जांदा |
जो गौं गळ्यां मा घैंटी डौड्ंया की केर नि हूंदि ||

गुठ्यारा की गौड़ि अपणि बाछि थैं सनकाणि चा |
द्विया खळ्कि जांदा जो या दानि गुयेर नि हूंदि ||

द्यप्तौं का ठौ का द्यू बळ्दरा भि हर्चिगीं कखि |
द्यप्तौं का घारम बल देर च पर अंधेर नि हूंदि ||

जब बटैकि उज्यळौं मा रैणा कु ढब ऐ ग्याई |
अंध्यरौं मा गांवा की मुकजात्रा बेर बेर नि हूंदि ||

होलि तू दूणेक,नाळेक,पाथेक,सेरेक परदेस मा |
जलमभुमि कभि अपणों खुण सवासेर नि हूंदि ||

जो बैठिगीं, वो बैठिगीं भग्यान वे खैरा चमसू |
'पयाश' बांजि पुंगड़ियूं मा क्वी हेरफेर नि हूंदि ||

@ पयाश पोखड़ा ||

==============

गज़ल
******
उजड़्यां चौका चुलौं मा किर्याण हि किर्याण चा |
क्वी बतावा त सै, यो गांव चा कि तिथाण चा ||
म्वर्यां ल्याक लमपसार हुई च जो चिलौ पराळ मा |
सुन्यपात प्वड़िं जिदंगि को इनु ढकीण डिस्याण चा ||
बिसर्यामा भि नि मोरि जै कखि तू ये गांव मा |
यख त काणा गरुडू अर सड़्याण हि सड़्याण चा ||
अहेड़ समैणा झिंवरा निन्यरा मंगळेर बण्यां छन |
बरैनाम मनखि यख खालि हुयूं चौकु खल्याण चा ||
अत्वणि बत्वणि घाम पाणि बर्खि बर्खी लूछि गैन |
त्यारा गांव गळ्या की 'पयाश' रईं क्य पछ्याण चा ||

@पयाश पोखड़ा |
============
गज़ल
*******
च्यकच्यईं ज़िकुड़ि फर गज़ल लेखि जैई |
ब्यखुन्यईं मुखड़ि फर फ़ज़ल लेखि जैई ||
रैबार मीलू नि मीलू पर टक लगैकि |
चिठ्ठीम अपणि असल कुसल लेखि जैई ||
सर्या गाँवा की नज़र त्यारा मुख लगीं चा |
अपणां नांवा की क्वी मसल लेखि जैई ||
देळि लंघयाँ त्वै कत्गै ज़मना बीति गैन |
रड़दि फटळि फैड़्यू की सकल देखि जैई ||
द्वि कौड़ि को सगोर नि राया जौं फर |
वेका नौ म्यारा बाँठा की अकल लेखि जैई ||
अब नि करदी क्वी आँखि कैथै जग्वाळ |
ब्वग्दा आँसु कि चखळ पखल देखि जैई ||
अपणा मुरक्या जोग फर कतै नि रुसाणु |
दगड़्या "पयाश" को भाग पंजल लेखि जैई ||
©पयाश पोखड़ा |
=========
एक कौथिगेर गज़ल........

तू पुंगड़्यूँ का बीच जमीं,
हैरि-भैरि मरसू छे !
मि त फाँगों मा यखुलि खड़ु,
सुख्यूँ सि मरसेट छौं !!
तू बड़ा-बड़ा डूण्डों की,
झंग्वरा की बोट छे !
मि त गोर ऐथर ध्वळ्यूँ,
भुकमर्या सि झुंगरेट छौं !!
तू भड़भड़ि मिट्यौण्या,
 बीड़ि की सि सोड़ छे !
मि मस-मस कै फुकेन्दि,
पनामा की सिगरेट छौं !!
तू ब्यावा की रमछोळ मा,
फ्यारा अर ग्वतराचार छे !
मि घुळिअरगा की खुट्टा धुवै,
अर बुढण्युँ की ससभेट छौं !!
तू फुर्र उडदि घिंडुणी सि,
चंट-चंखड़, च्वीं-च्वीं छे !
मि सदनि कु मंगत्या सि,
लोया, लाटु लमलेट छौं !!

==============

एक गज़ल इनि मेसिकि भि ।
**************************
जिदंगि मा नकन्यट च तबरि तक।
जिकुड़ि मा सकस्यट च जबरि तक ॥

जिदंगि मा रकर् यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा धकध्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा डंगड्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा घमघ्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा लकल्यट च तबरि तक ।
ज़िकुड़ि मा छकछ्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा बगछ्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा खुपस्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा गंगज्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा थकथ्यट च जबरि तक ॥
जिदंगि मा ककड़्यट च तबरि तक ।
जिकुड़ि मा धमध्यट च जबरि तक ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
==========

गढ़वळि गज़ल ।
***********************************
क्य पुछदि अपणि पुंगड़्यूं का हाल भुला।
द्वि मेलि जख्या नि जामि ये साल भुला ॥
गौड़ि न भैंसि न घ्यू न दूध न क्वी लैंदु ।
बिसरि ग्यौं झणि कब छांच छ्वाळ भुला।
बिणसि गैन मवार पणसि गैन बूण मनखि,
निरदया परदेसा ल इनि घात घाल भुला।
उंदर्यूं का बाटा सबि पैट्यां छन लगालगि,
कटेदिं नि बल रैस्यरा की उकाळ भुला ॥
अब त आंख्यूं थैं भि रुणा मा डैर लगद ।
रात्यूं अहेड़ रुंद दिनमान स्याळ भुला ॥
तैकु न कल्यौउ न पौंणा बरत्यूं कु रस्वड़ू,
अब नि तड़ेदीं वो चांदण तिरपाल भुला॥
जो आंखि त्वै धार पोर जांदा द्यखणि रैईं।
वी आंखि लगी छन त्यारा जग्वाळ भुला।
तू मेरि सांग फर कांध लगाणु को नि ऐई।
छैंछी आबत अस्नौ चार डुट्याळ भुला।
छज्जा मा बैठिक क्य ह्यरणु छे 'पयाश' ।
नि दिखेंदा चखुला चौका तिर्वाळ भुला ॥
© पयाश पोखड़ा ॥

==============
गज़ल
******
आंख्यूं मा आंसु सि छ्वळै त ग्या होलु ।
आदिम च वो कखिम फ्वळै त ग्या होलु ॥
छुवीं बथुम सदनि मौल्यार कख रै साक। जिकुड़ु च यो कखिम कळै त ग्या होलु ॥
पुरणा तुरणा लारा लत्ता कै कामा का ।
बटन च वो कखिम ग्वळै त ग्या होलु ॥
ब्याळि तक बड़अद्मै मा भयां नि द्याखु ।
माटु च वो कखिम घ्वळै त ग्या होलु ॥
कामा कु न काजा कु द्वि सेर नाजा कु ।
प्यटपाळ च वो कखिम पळै त ग्या होलु॥
औलदि का बाना जु लंगड़ ल्हीणु राया ।
म्वरधार च वो कखिम ध्वळै त ग्या होलु।
सदनि इकसनि चलक्वरा दिन कख रदीं।
घाम च वो कखिम स्यळै त ग्या होलु ॥
सर्या जिदंगि दुन्या थैं जणदा पछ्यणदा ।
"पयाश" कखिम घंघत्वळै त ग्या होलु ॥
©पयाश पोखड़ा ॥
===============
गज़ल
******
ढुंगु सि दिल बरैनामा कु ।
काजा कु न कै कामा कु ॥
त्वै बिसरणा की चाना मा ।
न क्वी ज्यू कु न जामा कु ॥
ब्यखुनि फज़ल अंध्यरौं मा ।
क्य कन द्वफरा का घामा कु ॥
माया दगड़म लगैकि ढबैकि ।
किळै डरणा छीं बदनामा कु ॥
'पयाश' नि उत्ड़्यौ सित्गा भि ।
सीं बड़अद्मै मा खामखामा कु ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
=================
विधान सभा चुनौ-२०१७(उत्तराखण्ड)
**********************************
वोट दीण से पैलि जरसि--?
कि तुमरु भोट मंगदरु ----
स्यो गढ़वळिम बच्याणु च तुम दगड़ ।
स्यो गढ़वळिम भासण दीणु च ।
स्यो गढवळि रीति रिवाज/नाता रिश्तों कु जणगुरु चा ।
स्यो दरजा पांच तक अपरा गांवा की प्रैमरि इसगोला म जयूं चा ।
स्यो विदान सभा का कै गावा कु चा ।
से कु फटलों अर ढुंगों की कूड़ि अभि तलक गांव मा छैं च ।
से कु अपड़ा गांवा मा आणु जाणु छैं च ।
स्यो विदान सभा का सबि गांवा का नाम जणदु चा ।
स्यो तैळ्या मैळ्या सारी मा बुतीं फसल पात अर बीजा कु धर्यां नाजु कु नाम जणदु चा ।
स्यो उकळि हिटदा दा सुसगरा त नि भ्वनु चा ।
स्यो कुरता सुलार दगड़ रबड़ सूल पैरद।
स्यो कतगा ब्यो बरतियूं मा न्यूतु दे ग्याई।
स्यो कतगा बरसी छपिण्डी जगर्यूळ द्यप्त्यूळ मा दिख्याई ।
==================
गज़ल
*******
दिदा दुन्या दिख्यां दुन्यदरि
बताणा छन ।
अपणु बिरणु माल थैं सरकरि
बताणा छन ॥
बघनखा पैर्यां छन हथुकि अंगुळ्यु मा ।
सर्या मुलक मा अपणि रिस्तदरि
बताणा छन ॥
दिनमान छुयूं मा जौंकु गिच्चू नि पटांदु ।
वो छुयांळ हमरु बच्याणु थै बिमरि
बताणा छन ॥
लंग्वट्या यार लंग्वटु बेचि भाजि ग्याइ ।
अजकाल दगड़्यों थैं लोग ब्यौपरि
बताणा छन ॥
अंधु घोल छोड़िकै अकाळ म्वार बब्बा।
सैंति पाळि सितरा करौ वींथै बिचरि
बताणा छन ॥
नश म गुंग बणि आंख्यूं मा फूल पोड़िगे ।
चुड़ापट्ट दीन द्वफिरि थैं कुरबरि
बताणा छन ॥
बल 'पयाश' की सिरमथि बीए पास चा ।
गौं गळ्या मा ब्वारी थैं भारि चरचरि
बताणा छन ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
========
ऐगीं नेताजी भारे !!
*****************
करळि सुफेद ट्वप्लि पैरिक,
त्वै पुजणा को ऐगीं ।
त्यारा तिड़क्वळ्या तव्वा मा,
भट भुजणा को ऐगीं ॥
अंग्वठा दिखै ग्या छायो जो,
चुनौ जीतणा का बाद ।
फेरि त्यारा गळ्या मा त्यारु,
अंग्वठा चुसणा को ऐगीं ॥
कभि नि धराई छायो मिल,
तैल्या मैल्या ख्वाळ अंठा मा ।
भोटु का लिबद गौं गळ्या मा,
सबुथैं लुछणा को ऐगीं ॥
अभि तलक त नि चिताई कैल,
त्यारा पस्यौ कु मोल ।
आज त्यारा ल्वै दगड़ फेरि,
कत्तल रुजणा को ऐगीं ॥
फ्यफ्नौं की दळखा बिवयूं फर,
लीसू लगाणाकु को आया ?
त्यारा मुक नजर लगैकि,
आंखि बुजणा को ऐगीं ॥
गैरहळ्या ब्वै छोड़िक कांधिम,
भारत माता ब्वकुणु रै ।
त्यारा बाटों मा उज्यळु द्यख्दै,
बतुलु मुंजणा को ऐगीं ॥
रौलि गदनि कूल नवलि पंद्यरि
अर आंखि बिसगीं छन ।
स्यूं कुड़गटीं गल्वड़ियूं ऐथर कैर,
आंसु फुंजणा को ऐगीं ॥
हम त सदनि दुख पिड़ा की
दाळ बिराणा रवां ।
आज छीमी का म्याला बणि
भड्डुंद उजणा को ऐगीं ॥
त्यारा तिड़क्वळ्या तव्वा मा,
भट भुजणा को ऐगीं ॥
©पयाश पोखड़ा ॥
====
त मिल क्य कन ?
**************
तेरि आंख्यूं मा आंसु की पंद्यरि नवळि,
त मिल क्य कन तब ?
बगत की हत्थ्यू मा थमीं दाथी थमळि,
त मिल क्य कन तब ?
कभि नि ज्वाड़ा हथ द्यप्तौं का ठौ मा,
तू रेची ल्हे देळिम अपणि मुण्ड कपळि,
त मिल क्य कन तब ?
ओगळ पळिंगु टुकुलु द कख कि छुवीं,
त्यारा भागम त सदनि भुज्जी कंडळि,
त मिल क्य कन तब ?
अधीतु नि हो जरा ग्वत्राचार त हूण दे,
भुला तिल पैलि खोळ्याल स्य बड़डलि,
त मिल क्य कन ?
जामण मंगदरौ की लैन च सुबेर बटैकि,
जो तुमरा ठ्याकुंद खट्टि दै नि जमलि,
त मिल क्य कन ?
ठुलि ब्वारी थैं परदेस पणसै गे 'पयाश',
ननि ब्वारी घारम खपलि कि नि खपलि,
त मिल क्य कन ?
©पयाश पोखड़ा ॥
==

अणत्वसि राया म्यारु मन,
तेरि मयळ्दु माया का लिबद ।
कभि आख़र नि मीला मिथैं,
कभि हर्चि गैन म्यारा शबद ॥
© पयाश पोखड़ा ॥
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Bhishma Kukreti

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शादी के सात बचनों का छंदयुक्त गढ़वाली अनुवाद
-
भवानुवादक - कृष्ण कुमार ममगाईं
-
 
ब्यो का 7 बचन गढ़वाली स्लोक :
=
जु शादिसुदा झन उ फेरौं का यूँ 7  बचनू थैं मनन कैरा अर जौंका ब्यो हूंणा छन उ रियलसल कैरा।  संस्कृत का मन्त्रु कु यु  गढ़वाली ड्राफ्ट रूपान्तर जन चा ।
प्रथम वचन:
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
 
                     याने   (गढ़वालिम)   
 
तीर्थुम बरतुम यज्ञोंम पाठुम,
दगड़ी रखल्य जू अपणां हि साथम ।
वामांग मा औलु तभी तुम्हारा   
पैलू बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
द्वितीय वचन:
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!

                     याने  (गढ़वालिम)
 
अपड़ा ब्वै-बब्बु जन म्यारा भि मनल्या,
मर्यादा जन सब्बी कर्म कल्या ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा   
दुसरू बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
तृतीय वचन:

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!

                     याने   (गढ़वालिम)
 
जीवन कि तिन्नी अवस्थौं म मेरी,
मेरु जु पालन करल्या त ब्वाला ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा     
तिसरू बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
 

चतुर्थ वचन:

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!

                     याने  (गढ़वालिम)
 
कुटुम्ब पालनकि सबि जुम्मेबारी,
लींदा प्रतिज्ञ उठांणा कि सारी ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा     
चौथू बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
पंचम वचन:

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!

                     याने  (गढ़वालिम)
 
घर-भैरा कामुम कै भी व्यवहारम,
खर्चा कनम जू मीं थैं भि पुछल्या ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा     
पांचौं बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
षष्ठम वचनः

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!

                     याने  (गढ़वालिम)
 
अपमान नी कल्या दगड़्यों क बीचम,
जुवा आदि ब्यसनौ से रैल्या दूर ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा     
छट्टू बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
सप्तम वचनः

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!

                     याने   (गढ़वालिम)
बक्की जननौ थैं माँ जन्न मनल्या
अर हमरा प्रेमम हैंकै नि स्वचल्या ।
वामांग मा औलु तभी तुमारा     
सातौं बचन यो ब्वल्दा कुमारी  ॥
 
Of and By  : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: [जै भैरव नाथ जी की ]
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Bhishma Kukreti

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.
गढ़वाली कुण्डलियाँ   {गढ़वलिम}
.
   
.
उत्तर दिशम च देश का    तभि ता उत्तराखंड ।
बंणाद बंणाद ये थईं    कतगौंन फ्वड़नी मुन्न्ड ॥

कतगौंन फ्वड़नी मुन्न्ड  राज्य त बंणि ही ग्याया ।
फरक द्यखीणू कुछ नी  जन की तन च काया ॥

ब्वल्द कृष्ण ममगाईं   हूंन्दु क्वी इन्नू पुत्तर ।
कैकी काया पलट    दींदु कुछ सुन्दर उत्तर  ॥  {७}
.
.
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}

 
गढ़वाली कुण्डलियाँ   {गढ़वलिम}
.
 {On : डिलीट कैर कै बार}
.

झूठ ब्वन्नु आसान का  ये विज्ञानन  यार ।
सफेद झूठ बोली की   डिलीट कैर कै बार ॥ 
.
डिलीट कैर कै बार सबूत कुछ भी नी रांदा ।   
तकनीकी इन छन की सच भी झूठ दिखींदा ॥ 
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं   अरे तू दाड़ि न कीट ।
करले मुन्ड कपाल  झूठन सदनि रांण झूठ ॥  {११}
.
.
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}

 
गढ़वाली कुण्डलियाँ   {गढ़वलिम}
.
 {On : पाड़न कन्नि द्वी भौ }
.

डांडा कांठा हमरा छन  वादी छन कश्मीर ।
कुलैं कु लीसु हम खुणे  ऊँ कू केसर खीर ॥   
.
ऊँ कू केसर खीर  बिगाड़ी क्या जी हमना ।   
वख ता  सेब बदाम  यख त दलम्या भी नीना  ॥ 
.
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं   लगनि ई कन्ना कांडा ।
पाड़न कन्नि द्वी भौ  हम्म थैं पोड़ी डांड ॥   {१३}
.
.
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}
 

 
गढ़वाली कुण्डलियाँ {गढ़वलिम}
{On : भदैली गौ माता }
.
गौ माता की सेवा त   पुण्य कु काम च भाई ।
भदैला गौड़ौ फिर किलै   त्यगदन हमरी माई ॥
 .
त्यगदन हमरी माई   वे गौड़ौ चा क्या दोष ।
 भदौम बियेकि चुचों   वे फर क्यांकु रोष ॥
 .
ब्वल्द कृष्ण ममगाईं   छोड़ा बेकारै बार्ता ।
अब न छ्वड्यां कब्बी   कै भदैली गौ माता ॥ {*8*}
.
.
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}
बुजर्ग त सरप्लस
 
एक उ जमनु छौ
जब बड़ौं कि कदर
राय मशवरा का वास्ता
जरूरि समझे जांदि छै।
आज बड़ा बूढ़ौं कि कदर
कख रै गि ।
रांण भि कनम छै
गूगल जु ऐ गि ।
सब्बि धांणि  वे मै पुछणैनी
बुजर्ग त सरप्लस ह्वे गेनी ।
 
 
Of and By : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: {जै भैरव नाथ जी की}

 
मेरो गांव मोल्ठि च
.
म्यारा गौं कु नौ मोल्ठि च
तु अपड़ा गौं कु नौ जणिदि छै ।
नि जंणदी ।
जबाब मी पता च
तिन ब्वन कि
हमता यखि पैदा ह्वै छा ।
अरे चुचा करौं
कम से कम अपड़ा गौं कु
नौ, पट्टी अर  जिला त याद राखा
परमानेन्ट होम टाउन च उ ।
बगत प्वण पर
डौमिसाइल सर्टिफिकेट कू कन भगदां ।
अर फिर देर सबेर
दाखिल खारिज भि त हूंदा ॥
 
Of and By  कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म]:: [जै भैरव नाथ जी की ]
 
******************  ॰ 

--
 

Thanking You with regards

B.C.Kukreti


Bhishma Kukreti

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गढ़वाली दोहा  ““पखणौं  का  बुखणां””
.

Garhwali Couplets by Krishan Mamgain

दोहा लम्बर 161 :
.
गुरु त गुड़ ही रै ग्यया 

च्याला शक्कर बणिं जांद ।

फिर भी चेला गुरुम ही   

गुर सिखणूं कू आंद ॥ [१६१]

.

 
दोहा लम्बर 162 :
.
तू ठगणी कू ठग छई   

मी जाती कू ठग ।

पार नि पै सकदू मेरू

कोशिस कैर जतग ॥ (१६२)


दोहा लम्बर 155 :
.
नाच नचणु त आंद नी 

करलु बतांदा चौक ।

अपणीं कमी छुपांण कू   

बाना  हुंदन  भौत  ॥ (१५५)

.दोहा लम्बर 143 :
.
शक कु इलाज हूंद नी 
हो लुकमान हकीम  ।

शक से पीछु छुड़ाण मां 

फेल सभी स्कीम ॥ [१४३]

.

दोहा लम्बर 127:
.
हैंककु  लाटु हंसांदु चा   

अपड़ू  लाटु रुलांद ।

दुनियां की या रीत चा 

दुख बस अपड़ु सतांद ॥ (१२७)

.

दोहा लम्बर 105:
.
कैकि मरीनी गैबणीं   

लैंदी कैकि खांद ।

ईं शरम कू बाग यू 

दिनम गौंम नी आंद ॥ (१०५)

.

 

 

 

 

 

 

दोहा लम्बर 144 :
.
अपड़ु हि सूनू खोटु रा
कै पर दींण क्य दोष ।
आस त इन्नी कै नि छै
बैठ्यां छां खामोश ॥ [१४४]

 

दोहा लम्बर 120:
.
क्या कन ये नौन्याल कू
अपड़ि मस्ति मां रांद ।
काम काज कुछ करदु नी
हगदिदां गीत लगांद ॥ (१२०)

 

दोहा लम्बर 69:


अन्ध्यरी और बिन्दरि का     

भितरकि जंणद नि छाय ।

अल्ट्रसौंड पर कांडा लग्या 

भ्रूण हत्य पनपाय ॥ (६९)

 

दोहा लम्बर 60:


कन भग्यानका भाग की 

मिलदि खणीं च खाड ।

निरभगि थैंत दबाणुं कू   

मिलदू नी चा माटु ॥ (६०)

 

बाकी फिर कभी अगले अंक में ........

 
Of and By  : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म]  :: {जै भैरव नाथ जी की }

--
 

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B.C.Kukreti


Bhishma Kukreti

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  श्रीमदभगवतगीता (गढ़वाली 
-

-Translation By Krishna Kukmar Mamgain


श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 1 : श्लोक 1 : (श्लोक गढ़वलिम भि )

 

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥

.

श्लोक गढ़वलिम :
.

धर्मछेत्र्म   कुरुछेत्र्म

युद्ध  करनू    खड़ा हुयाँ ।

म्यारा अर पांडू का नौना

क्या कना छन  संजया  ।।१/१॥

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 17: श्लोक  23 :   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.         
ॐ, तत्, सत् तीन शब्द इ
ब्रह्म सूचक शब्द छन ।

यूँ हि शब्दु से शुरू शुरू मा

यज्ञ, ब्राह्मण, वेद बंण्णिं ॥ [17:23]

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 17: श्लोक  24 :   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम्‌॥
.
श्लोक गढ़वलिम
:.         
तब्बि त आरम्भ हुंदन
यज्ञ, तप अर दान की
सब्बि क्रिया बमुंणु द्वारा
ॐ का आह्वान से ॥ [17:24]

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 2 : श्लोक 38 : (श्लोक गढ़वलिम भि)

.
सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.
जय पराजय लाभ हानी
सुक्ख दुख समझ समान ।
सोचि की इन युद्ध कैर
पाप कू च यो नि काम ॥2/३८॥
**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 12 : श्लोक  15 :   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.       
 

क्षुब्ध हूंदु नी जैसे क्वी भी
अर जु कै से नि हून्द क्षुब्ध ।
सुक्ख दुक्ख भय उद्वेग से
मुक्त चा जू प्रिय च मीं ।  [12:15]
**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 4 : श्लोक 3 : (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्‌ ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :
.

सखा छै अर भक्त छै तू
ये वजह बतलाय त्वे ।
उत्तम रहस्य ये पुरातन
योग ज्ञान कु अर्जुन ॥ [४:३]

**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय - अध्याय 4: श्लोक 17: (श्लोक गढ़वलिम भि)
.

कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥

.
श्लोक गढ़वलिम :
.
कर्म तत्व भि जणन चैंदा
अर जणन चैंद बिकर्म भी ।
अकर्म गति भी जणन चैंद
क्योंकि छ गहन गति कर्म की ॥ [४:१७]
**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 4: श्लोक 9:  (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः ।
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :

.

दिब्य जन्म अर कर्म म्यारा
जंणदु जो च अर्जुन ।
देह त्यागी मींमै आन्दा
पुनर्जन्म नि लीन्द ऊ ॥ [४:९]
.

**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 2: श्लोक 17:  (श्लोक गढ़वलिम भि)

.
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
.
श्लोक गढ़वलिम :
.

नाश रहित त खालि वी च
जै मां दुनिया ब्याप्त चा ।
इना अविनाशी कु नाश
कन्नु क्वी नि समर्थ चा ॥२/१७॥
**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता
अध्याय 1 : श्लोक 26 :
.
तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥
श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
.
श्लोक गढ़वाली म :
.

अर्जुन द्यखदा द्वी पाल्यूं
चच्चा, दादा, मम्मा, भै ।
गुरु, नाती नतणौ मित्रों
स्वसरों देखी दंग रै ॥१/२६॥
**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 3 : श्लोक 5: (श्लोक गढ़वलिम भि)
.
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्‌ ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
.
श्लोक गढ़वाली म :
.

क्वी भि मनिख रै नि सकदू
बिना कर्म कब्बि भी ।
बशीभूत च प्रकृति का अर
कर्म करनू बाध्य चा ॥३/५॥
**************************************************************** 
 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 2 : श्लोक 23 :

.

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

.

श्लोक गढ़वाली म :

.

 

न शस्त्र काटी  सकदु ईं

न आग फूकी सकदि ईं ।

न पांणि ही भिगै सकद

न हवा सोखी सकदि ईं ॥२/२३॥

**************************************************************** 
 

 

 

 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 10: श्लोक 22:   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः ।
इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ [१०/२२]

.

श्लोक गढ़वाली म :

.       

बेदु मा साम बेद छौं मी

देबू मा मी इन्द्र छौं ।

इंद्रियूं मा मन छौं मी

अर समस्त जीवुम चेतना ॥ [१०/२२]

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 14: श्लोक 17:   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥ [१४/१७]

.

श्लोक गढ़वाली म :

.       

सतोगुण से ज्ञान उपजद

रजोगुण उपजान्द लोभ ।

अर तमोगुण से उपजद

अज्ञान, मोह अर प्रमाद ॥  [ १४/१७]

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 4: श्लोक 8:   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

.

श्लोक गढ़वाली म :

.       

भक्तु कू उद्धार करनू

बिनाश करनू दुस्टु कू

अर धर्म स्थापना करनू

प्रकट हूंदु जुग जुगम मी ॥ [४:८]

**************************************************************** 
 

अध्याय 15: श्लोक 12:   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्‌ ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्‌ ॥ 

.

श्लोक गढ़वाली म :

.       

सूर्यो तेज जु सैरि दुन्या

थैंकि करदा दीप्तिमान

अर जु चाँद अर अग्निम च

वे तेज भी मेर्वी समझ ॥ [१५/१२]

**************************************************************** 
 
 

 

 

 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 18: श्लोक 66:   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
.

श्लोक गढ़वाली म :

.       

सब्बि धर्मूं त्याग कैकी

शरण मेरी ऐ जा तू

सब्बि पापु से मुक्त त्वेथैं

कैरि द्यूलु फिकर नि कैर ॥ [१८:६६]

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 10: श्लोक 37: (श्लोक गढ़वलिम भि)

 

वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जयः ।
मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥ [अ0 १०: श्लो0 ३७]

 

श्लोक गढ़वलिम :

.

बृष्णिबंश्यूम मि बासुदेब छौँ

पांडऊंम छौँ मि धनन्जय ।

मुन्यूं मा मी ब्यास छऊं

अर कब्यूं मा शुक्राचार्य छौँ ॥ [10/37]

**************************************************************** 
 

 

 

 

 

 

 

श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 7: श्लोक 9: (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥ [अ0 ७: श्लो0 ९]
.

श्लोक गढ़वलिम :

.

पृथ्विम पवित्र गंध छौं मी

तेज छौं मी अग्नि मा ।

जीवन छौं सब्बी प्राण्यूंमा 

अर तपस्यूं म तप छौं मी ॥ [७:९] 

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श्रीमद्‍ भगवद्‍ गीता

अध्याय 10: श्लोक  25:   (श्लोक गढ़वलिम भि)

.

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌ ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥
.

श्लोक गढ़वाली म :

.

महर्षियूं  मां भृगु छौं मीं

वांण्यूंम छौं मीं ओंकार ।

यज्ञ्यूंम जप कीर्तन छौं मीं

अर स्थावरूंम  हिमालय ॥ [१०:२५]

 

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Of and By  : कृष्ण कुमार ममगांई
ग्राम मोल्ठी, पट्टी पैडुल स्यूं, पौड़ी गढ़वाल
[फिलहाल दिल्लि म] :: [जै भैरव नाथ जी की ]
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Garhwali Poems by Sunil Bhatt

"बड़ु गुरू घंटाल"
-
By Sunil Bhatt
=

बाघै खाल,
निकलणु वालु,
ऊ दिल्ली वालु,
भौतै होश्यार
चितौंदू छौ अफुतैं।

देखो जी, यह लो जी,
बोलो जी, कैरि जी जी,
निपट्ट  ईमानदार
बतौंदू छौ अफुतैं।

ह्याँ बल......
"तू ठगणी कु ठग
अर मी जाति कुईई ठग"
हे ब्वै मिन त चितै जणी "यु"
भ्रष्टाचारियोंकु काल छ,
दा निराश ह्वैली ये कुणै..
हे यु बी भै बड़ु गुरू घंटाल छ।।

स्वरचित/**सुनील भट्ट***
10/05/2017

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