Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32278 times)

Bhishma Kukreti

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********झपाग *****



कवि-  डॉ नरेन्द्र गौनियाल




नेता जु बि कर्द,कुछ बि कर्द,हैंका तै क्य, 
 कुच्छबि ना, सिर्फ अपणी लद्वड़ी भ्वर्द.
 

चुप रे चुप,कुछ न देख,कुछ न सुण,
कुछ न बोल,निथर तब देखि ले !   

न तिन खाय,न मिन खाय,
किलै ह्वै तेरी हाय-हाय.

न कैर जादा तकणा-तकण,
 अरे न कैर जादा खचरोल. 
निथर कखि जुगा ना
रैलु, कुकर सि भोल.

तू समझदी  मि ना त क्वी बि ना
इनि बि क्याच तेरी पदनचरी
त्वीत छै यख फुन्यानाथ.

जब छाय तब तिन क्य काय,
त्यारा रैण पर हमन क्य पाय,
जत्गा छाय वो बि नि राय.

तू समझदी कि खचोरि कै
कुछ त ह्वै जालु.
पण लाटा,तू नि जणदि कि
पत्तल पर छेद ह्वै जालु.     

वूंकि याद हमन,जिकुड़ी मा धरीं.
वून हमर तरफ पीठ फर्कयीं.




      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित.

--


 
 


Regards
B. C. Kukreti

 

Bhishma Kukreti

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****धिक्कार ***(आंचलिक विषय की कविता )




कवि- डा नरेंद्र गौनियल, गढ़वाल


ये म्यारा उत्तराखंडी !
सुण ले ध्यान से
गुण ले ज्ञान से
ब्यालि तक तेरि
उछला-उछल
आज कख लुकि
कैका ऐथर झुकि
अहा !
कनु बिसरि तू
वूँ अपणों की पीड़
जौंन मुल्का बान
ख्वै अपणी जान
ये ल़ाटा !
कख हर्चि गैनी
त्यारा गीत
किलै बिसरि गे तू
अपणा नारा
ढयूं -ढयूं मा
कुर्च्याँ गारा

देख ले  !
यूंका ठाठ -बाट
मिली गे राज-पाट
जु करदा छा.
सदनि तेरि काट
रैगे जख्या-तखी
तू निर्भगी लाट
अरे !
यी त छन
तेरि हड्गी तोड़न वल़ा
तेरि नाक कटण वल़ा
तेरि ल्वे चटण वल़ा

तू बैठि गे
यूंका टंगणों मूड़
यूंका चुस्याँ
यूंका खत्यां
सूखा हड्गा चपांद
अफ्खुश्या
धिक्कार त्वे तै
डूब मारि दे
कै ढंडि मा
य फाळ मारि दे
कै भ्यालुन्द ....
     डॉ नरेन्द्र गौनियाल .....सर्वाधिकार सुरक्षित ...   

         
narendragauniyal@gmail.कॉम

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Bhishma Kukreti

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अन्तुरी मा त पहाड़ ही ऐला*******





कवि- नरेंद्र गौनियाल



[पहाड़ो के गीत; पहाड़ो की कविताएँ, गढ़वाल की गीत; गढ़वाली गीत;

गढ़वाली कविताये; उत्तराखंडी  भाषा में गीत, उत्तराखंड की कविताएँ ]


हैरी-भैरी छै पुंगड़ी जु कैइ दिन,
जख्या-दुबलू वख आज जम्युं चा.
जौंकि तिबारी मा लगदी छै कछ्डी,
हिन्सोली-किन्गोड़ी वख आज लगीं चा.

बुढया-बुढड़ी अर छवटा  नौनि-नौना,
इकुला-दुकला ही गौं मा रैगेनी.
बुढया बल्द अर ढांगी गौड़ी,
कूड़ी-छनुड़ी बि रीति ह्वैगेनी.

पुंगड़ी-पटली ह्वैगेनी बांजी,
सेरी-घेरी बि रुखड़ी ह्वैगेनी.
सगोड़ा-पतोड़ों मा जमदो कंडेया,
छूटा-पूटा निकज्जू ह्वैगेनी.

उन्द चली गैनी क्वी द्वार ढेकी
कैन ब्वे-बाब रखीं जग्वाल.
ढुन्गु फर्कैकी क्वी चली गैनी,
छट छोडि कि अपणो पहाड़.

गाड-गद्न्युं कु सुक्की गे पाणि,
डांडी-कांठी बि नांगी ह्वैगेनी.
पाणि मोला कु गौं मा ऐगेनी,
पंदेरा-नवल्यूं अग्यार नि रैनी.

दूध -घ्यू का सुकी गईं जळडा,
दारू गौं-गौं मा मिलण लगीं.
दूधि छोडि की पीणा छन नौना,
मूल़ा की कच्बोळी  का दगड़ी

सड़क-इस्कूल खुली की जगों मा
सभ्यता कु विस्तार ही हूंदा .
इन्नू फूटी गे ख्वारो हमारो
सभ्यता सर्र हरचण लगीं चा.

मेरा प्रवासी भै-बन्दों सूणा,
चाहे छा तुम दुन्या कैबि कूणा.
तुम ख़ुशी से कमावा अर खावा
कब्बि -कब्बि तुम पहाड़ बि आवा.

अपणि ब्वेई त अपणि ही हूंद,
अपणि भूमि बि अपणि ही हूंद.
रिंगदा-रिंगदा कखि-कखी बि जैला
अन्तुरी मा त पहाड़ ही ऐला...
      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित.


पहाड़ो के गीत; पहाड़ो की कविताएँ, गढ़वाल की गीत; गढ़वाली गीत;

गढ़वाली कविताये; उत्तराखंडी भाषा में गीत, उत्तराखंड की कविताएँ जारी ....

Bhishma Kukreti

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****एक खुदेड़ गीत-कविता***



कवि - डा. नरेंद्र गौनियाल   




सौणि सलोणि,मेरी सटूली.
कलसिणि आंखि झपन्यळी लटूली

आंख्युं मा तेरि,मै छौं बस्योंऊ.
तेरा रंग मा ,कनु छौं रस्योंऊ.

बड़ी-बड़ी आंखि,पतळी कमर.
लगी जयां त्वैते, मेरी उमर.

कन्दुड़ों मा तेरा,झुमका सुहान्दा.
धक्-धक् दिल मेरो, त्वैते बुलान्दा.

चमकीली दांत-पाटी गोल गलोड़ी.
कनि भलि लगद सोन्याळी ठोड़ी.

तेरा बाना मिन, क्य-क्य नि छोडि.
दगड़ वालों कु, दगड़ो बि छोडि.

तेरि याद औंद,मि बौल़ेई जांदू.
तेरि फोटू देखि,मि चैन पांदू.

जिकुड़ी मा मेरी गबल़ाट हूँणी.
तू भी छै तनि,इनु मिन सूणी

अपणी यी छवीं,कैमा लगेली.
अपणा यी हाल, कैमा बतैली

मौल़ो ही मन तेरो,कुंगल़ो ही गात.
कनु भलु होलू,तेरो-मेरो साथ.

मीठी-मीठी छवीं,भलि-भलि बात.
आंखि झपगिंद,कटि जान्द रात.

तेरि चलक्वार से,मै बि ह्वै गयूं लाल.
त्वेन  कनु ढ़ोळी, मैं म यू जाळ.

जिंदगी कु मोड़ यू,कनु भारी खोळ.
मैतै ह्वैगेयी, कनु  घंघतोळ.

तेरि याद आली त,आग भभराली.
गौळी मा मेरी, भडुळी लगाली.

तेरि खुट्यूं मा बि ,लगाली पराज.
कसिकै करिली तू, काम -काज

कनु तेरो दिल च,कनि तेरि काया.
जोगी का मन मा बि,बसिगे माया

मेरा मनै की, तू छैयी राणी.
हमरि य बात,कैन नि जाणी.
      डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित....


Bhishma Kukreti

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*****जोगण कु उपकार *****एक गढ़वाली कथा.


  डॉ नरेन्द्र गौनियाल.


कुछ दिन पैली ही जोगण दीदी जांठि टेकी  हमारू घौर मा ऐछे. मेरी ब्वैन दीदी तै सुबेर कल्यो रोटी का टैम पर ढबोण्या रोटी दगड़ मूल़ा अर छीमी कु साग दे.जोगणदी जब बि कब्बि औंदी छै,मेरी ब्वे खाणु- पीणु जरूर दीन्दी छै.अर घार मा लिजाणो बि दीन्दी छै.आज जोगणदी न बोली की ब्वारी !द्वी क्वासा मर्च दे दे.ब्वैन थ्वड़ीसी मर्च,ग्यूं कु पिस्स्युं अर  कंकरेल़ू लूण दे.
     पैली त बिचारी काम-काज का टैम पर खूब औंदी छै अर मदद करदी छै.ग्यूं,झुन्गोरा,मंडुआ,की दाँय मा खूब लगीं रैंदी छै.भट,मास,गैथ,चुआ,काण-मास सब कुटे दीन्दी छै.हर चीज  से थ्वडा-थ्वडा मिलि जांदू छौ.लूण,गुड,साग-पात,नाज-पाणि की कुटरी बाँधी कै दीदी ब्यखुन्या अपणा घौर चली जांदी छै.पैली त बिन काम कर्याँ कुछ नि मंगदी छै,पण अब बुढ़ापा का कारण  कुछ नि कैरि सकदी छै.ये वास्त जब बि औंदी,कुछ नकुछ दे दीन्दा छाया.
गौं मा सुणे कि जोगण दी बीमार पडीं.खाणु-पीणु बंद ह्वैगे.पास-पड़ोस वलोंन बगत-कुबगत मुंगणी कु पाणि दे.मंततु पाणी अर च्या बि दे.पण हर्बी-हर्बी हालत जादा खराब हून्दी गे. अर एक दिन सुबेर भितर म्वरीं ही देखि
जोगण का दगड़ अपणो क्वी नि छौ. बालपन मा ही ब्यो का बाद द्वी नौनि ह्वैगीन.अर निर्भगी इनि कि जवानी मा ही नौन्यूं कु बुबा अचंचक्क बिमार पड़ी कै मरि गे.जवैं ख़तम होना का बाद  सौरास मा क्वेई नि छौ देख-भाल करन्य.कै तरीका से द्वी नौन्यूं का हाथ पिला कैरिकै व बेफिक्र ह्वैगे. यकुलो जीवन वो बि विधवा को ,जीणु कठिन ह्वैगे. कब्बि भूखा-प्यासा दिन बि कटण पडीं.आखिरकार व अपणो मैत जमणधार ऐगे.कुछ दिन अपणा मैत्यों का दगड़ रैणा का बाद वींन गौं मा ही एक कूड़ी मा ठिकणो बनै  दे.वीं कूड़ी वल़ा नौकरी-चाकरी मा देरादूण चली गे छाया.तौन जोगण तै एक ओबर दे दे रैणो.
हमन त जोगण दी तै सदनि वीं ओबरि मा ही देखि. अचार-विचार ठीक हूँणा का कारण कैन बि कब्बि वीं पर अंगल़ू नि उठाई.अप नि क्वी खेती-पाती नि छै,पण लोगों का दगड़ काम करी कै ही गुजर-बसर ह्वै जांदू छौ.सब लोग खुला मन से दे दीन्दा छाया.मेरी ब्वे बि राशन-पाणि ,पुरणि धोती-बन्यान सब दीन्दी छै.अपणि कुटम्दरी मा ब्यो-बंद का टैम पर दक्षिणा,नै धोती-अंगडु बि दीन्दा छाया.जोगण दी तै तम्बाखू पीणे आदत छै,ये वास्त घर्या तम्बाखू बि लिजांदी छै.
पड़ोस वालों जब जोगण सुबेर मरीन देखि ट खबर सारी गौं मा फैली गे..अरे !.जोगण मरि गे.....जनु नाम.तनि बिचरी जोगण.अपनों-पर्या क्वी बि ना .लोगोंन सोची कि बूडा का भितर जी क्य मिलन. गौं का दाना -सयाणों न बोली कि खतड़ी-कम्बळी भैर धारा.बिष्ट बूबा जी न बोली कि देखि ल्या कुछ छा कि ?निथर कफ़न त ल्याणु ही च.हैंका दिन कूड़ी बि त चुख्याण. मौ-मिटोंण त कर्ला.
सरि गौं का दाना-दिवना,बैख-ब्यटुला कट्ठा ह्वैगीन.भितर जैकि बुढड़ी तै भुयां धरी कै ढिकण -डिसाण उठाई.डिसाण मूड़ रुप्या मिलि गैनी.लोगन सोची चलो ठीक ह्वैगे.कफ़न का पैसा त कम से कम बुढड़ीन धरयां छाया.कैको बि नि लीगि परलोग.सर्या गौं क लोग गैनी अर जोगण तै फूकी कै ऐगेनी.
बाद मा सरी गौं क लोगोँन ओबर बिटि एक-एक समान भैर करी.पुराना झुल्ला-झुल्ली,भांडी-कूंडी भैर निकाली कै देखि.भितर तीन ढ्वकरों   मा धान,तीन मा ग्यूं,एक मा चौंल,एक कनस्तर मा सोयाबीन.छवटा-बड़ा कतगे भांडों मा मास,रयांस,गैथ,भट,मंडुआ,झुन्गोरू धर्यूं मिलि गे. एक द्वी किलो कु डब्बा घर्या घ्यू कु बि मिलि...फिर एक डब्बा मिलि.वैपर भैर बिटि एक झुला लपेट्यूं छायो.जब खोली त वै पर कतगे रुप्या मिलि गईं.एक-एक करी गैणीइ त पट्ट डेढ़ हजार.लोग छवीं लगाणा कि जोगण अपणो काम-काज  अर कूड़ी चुख्याणो सब इंतजाम करिगे.अब त सब खाणु-पीनु बि ह्वै जालु अर बोक्ट्या बि ऐ जालो.
सब लोग हक़-चक तब रैगेनी जब एक हैंका डब्बा पर हौरि रुपया मिलिनी.गिणदा -गिणदा  पट्ट १६ हजार.अलग-अलग मुखै बनि-बनि बात.कब बिटि जमा करनी रै होलि जोगण यू सब..के खुणी करी होलू..
दसवों दिन भितर चुखेकी गौं वालों हलवा-परसाद,पूरी-सब्जी खै.एक बोक्ट्या बि मरे गे.इनि चखळ-पखळ त भला-भलों कि दावत मा बि नि हून्दी.सब काम निबटि कै मीटिंग ह्वैगे.भितर कि राशन-पानी जु बचि गे वैतई द्वी हजार मा बेचिदे.अब सवाल यू ह्वै कि यूं रुप्यूं कु क्य कन.?जोगण कि एक बेटी बम्बई अर एक दिल्ली रैंदी छै..पण कैकु अता-पता नि छौ.कब्बि जोगण तै द्यखणो बि नि आया.गौं क पञ्च-परवाण  सब्यों ण आखिर यू फैसला ले कि गौं कि इस्कूल हुईं च उजड़न्य.स्टील कि चादर ल्हेकी मरम्मत ह्वै जाली.गौं वालों सालों बिति इस्कूल कि चूंदी पातळ ठीक नि कारी सकी,अर जोगण बिचारी एक ही झट्गा मा गौं क नौन्यलों क वास्त इतनो बड़ो काम करी गे.जोगण कु ये उपकार तै गौं कि द्वी-चार पीढ़ी का लोग कम से कम याद त रखी सक्दन.जैका कफ़न का वास्त कपडा अर झ्वपडा चुख्यानो वास्त गौं वाला परेशान ह्वै गे छाया,वींन इस्कूल कु जीर्णोद्धार करी कै सर्या गौं चुखे दे.


        डॉ नरेन्द्र गौनियाल.....सर्वाधिकार सुरक्षित...       
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Bhishma Kukreti

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डाक्टरों  उवाच

(गढ़वाली कविता )

कवि - डा.नरेंद्र गौनियाल



 
सुणो भाई-बंधो तुम मेरी बता.
लिक्विड-टिंचरी से तोड़ो नाता.

शराब पीकी जु घूमणा रंदीन.
दुनिया की गाळी खाणा रंदीन

ठर्रा कु पाणि अब छोडि दीण.
कच्ची शराब कभी नि पीण.

शराब एक मीठू जहर.
बर्बाद ह्वैगीं गांव-शहर.

नि पीणी भैजी कभी शराब
दशा नि होलि तब खराब.

बर्बाद सब घर शराब काद.
जुत्ता बि कबी शराबी खांद.

आंखि लाल लदोड़ी थुमार.
अकल मा माटु कनु यू प्वाड.

बच्चों की हालत बिगड़ी जांदा.
खाणा कु बिचारा कुछ नि पांदा

खुद त रोज पीणा रंदिन.
नांगा-भूखा नौन्याळ रंदीन.

रात-दिन जु बि  पीणा रंदीन.
अपणि घरवळी थिचणा रंदीन

मदमस्त ह्वैकी बुद्धि कु नाश.
भलु मन्खी क्वी नि आन्दु पास.

थूका-थुकी सब कर्द समाज.
छोडो शराब बचाओ लाज.

नशा करणु नि हूंदू भलु.
मद्यनिषेध कसिकै ह्वालु.
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित.....


Bhishma Kukreti

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*******बंदरी ******एक गढ़वाली ननि कथा.******

 

कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल

 


ब्वे-बाप बचपन मा ही स्वर्गवासी ह्वैगे छ्या.अब त उंकी अन्द्वार बि बिसरि गे.हम  छवटा-छवटा सि इस्कूल जान्द दा सदनि बंदरी तै सड़क का किनर गोर-बखरा चरांद द्यखदा छ्या.ऊ तब बि आण-जाण वलों अर इसक्वल्या छोरों मा बीड़ी मंगदु छौ.पुराणा,थेकल्यां लारा,मैल से चिपक्याँ लटुला अर बारा सींकों कु एक टुट्यू  छतल़ू बस यी छै वैकी पछ्याण. 
           काका-काकीन अपणा नौनौं तै त इस्कूल भेजी पण बंदरी तै ग्वैर बनै दे..द्वी यकुळी रुखु-सुखु एक गफ्फा का बदल ऊ दिन भर काम-काज मा जुट्यों रैंदु.राति ऊ छनुड़ा मा ही से जांदू अर सुबेर गोर-भैंसों कु मोल सोरी कै थुपड़ी लगान्दु..घौर मा ऐकि लखड़ू-पतड़ू,खैड-कत्यार सोरणु,नवाल़ा बिटि तीन-चार कसेरा पाणि ल्याणु,इनि कतगे छवटा-म्वटा काम करदू छौ. ग्वर म्यलाक से पैली भैंसों तै पाणि देकी मारा मारि मा द्वी-चार गफ्फा भात सळकैकि कांधी मा कुल्याड़ी अर कमर मा ज्यूड़ी लसगे कि गोर-बखरों तै मेली कै डांड ल्ह़ी जांदू.बस वैकी रोज कि य ही दिनचर्या छै.
            इस्कूल भले ऊ कबी नि जै सको,पण इस्कूल जान्द बगत सदनि इस्क्वल्या छोरों तै द्य्ख्दु छौ.इस्कूल जाणे-आणे टैम पर ऊ गोर-बखरों तै सड़क का नजीक ले आन्दु छौ.इसक्वल्यूं अर आंदा-जांदा लोगोँ से ऊ रोज बीड़ी मंग्दु छौ.द्वी बीड़ी मांगी कै ऊ एक तै कंदूड मा लगे दींदु अर हैंका तै जलाणो माचिश बी मंग्दु छायो.बीड़ी सुल्गैकी ऊ मुंड हलैकी मुल-मुल हैन्सदु.बीड़ी का दगड़ द्वी-तीन तिल्ली बी मंग्दु छौ.बाद मा कैइ  चिफल़ा ढुंगा पर कोरि कै बीड़ी जलांदु छौ.
            पौड़ी बिटि डीएम् साब धुमाकोट-नैनीडांडा  का दौरा पर अयाँ छया.ऊ धुमाकोट तहसील बिटि जीप-गाड़ी से अदालीखाल पी डब्ल्यू डी  बंगला मा जाणा छया.संगल्या खाळी का समणी बंदरी तै जीप औंद दिखे.वैते बड़ी देर बिटि बीड़ी कि तलप लगीं छै.पैली द्वी-तीन पैदल जाण वलोंन वैतई बीड़ी नि दे.एक ठ्यल्ला बि गै,वैन बीड़ी त नि दे पण काल़ू धुंवा वैका समणि छोडि कै घ्वां चलिगे.
             बंदरी तै जनि जीप औंद दिखे,वैकी तलप और बढ़ी गे.वैन सड़क मा खड़ू ह्वैकी दूर बिटि ही हाथ हिलाणु शुरू करी दे..वैन सोचि कि कखि यू बि खसगी नि जा.डरैबरन दूर बिटि ही खूब हौरन बजाई ,पण बंदरी टस से मस नि ह्वै..ऊ गाड़ी रुकाणो हाथ हिलाणु रहे.डीएम् साबन सोचि कि क्वी जादा परेशान होलू..ऊंन डरेबर तै रुकणो इशारा करी.गाड़ी रोकी कै साबन पूछी--क्या बात है ?कोई परेशानी है.?.बंदरी न मुल-मुल हंसी कै बोली--कुछ न यार ..एक बीड़ी पिलाई दे.
              डीएम्  साब वैकी पूरी बात त नि समझा पण जाणि गईं कि यू बीड़ी मांगणु.ऊंन अपणो अर्दली तै इशारा करी.डरेबर ब्वल्द ,''चलते हैं सर,कुछ नहीं है.ऐसे ही पागल आदमी है.''.बंदरी न फिर बोलि-दे-दे यार दे दे.,क्य बिगड़णु तब....डी एम् साब का ब्वलण पर अर्दलीन  सिगरेट कि डब्बी निकाळी अर द्वी बत्ती दे देनी..बंदरीन एक सिगरेट अपणा कन्दूड़ मा लगे अर हैंकि गिच्चा मा लगे कि बोलि--सल़े डब्बा बि त होलू.? अर्दलीन  लैटर  निकाळी कै सिगरेट जलै दे..डरेबरन गाड़ी start करी दे..बंदरी सिगरेट कि कश मरदू ,मुल-मुल हैन्सदु तब तक हाथ हिलांदु रहे,जब तक गाड़ी ढैया का पली तरफ नि चलिगे.
 

           डॉ नरेन्द्र गौनियाल   ....सर्वाधिकार सुरक्षित . 

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Bhishma Kukreti

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******हिसाब*****गढ़वाली ननि कथा.



                  कथा--- डा. नरेंद्र गौनियाल 


हमर गौं का बगल मा च मैलगाँव.यख छाया एक संतू काका अर उंकी घरवाळी सावित्री काकी.काकी त अब भग्यान ह्वैगे अर काकाजी भाबर अपणि नौनि का दगड़ चली गैनी.संतू काका पोस्टमैन छाया.सरकारी नौकरी  छै पण अपणा गौं से दूर.एक हफ्ता मा ही घौर आंदा छाया.
         सावित्री काकी गौं मा ही काम-काज मा घुसेणि रैंदी छै.शरीर भौत कमजोर पण लोभ तै कख औंद चैन.लगीं रैंदी छै रक्कोडिकी.कुछ काका बि चैन से नि रैणी दींदु छौ. छुट्टी का दिन ही लग्यूं रैंदु छौ घचर-घचर. यख मा इनु ना,वख मा उनु ना.काकी का तिन्गड़चा लगे दींदु छौ.जोग बि इनु खोटु कि एक नौनि का पिछ्न्या  हैंकि नौनि.बर्स्वन्या ह्वैगैनी पण एक बि सारू सि ना.काका-काकीन बि एक नौना का बाना नौन्यूं कि थुपड़ी लगे दे.पट्ट छै छोरियों का पिछ्नाएँ एक ह्वै बि पण ऊ नि राई.
        अब त काका -काकी द्वी जनकि बौल्ये गईं.बड़ी मुश्किल से कुछ महीनों मा ठीक-ठाक ह्वैनी. पण हे निर्भगी जोग ! काकी तै राजयक्ष्मा रोग (टीबी )ह्वैगे.काकाजिन इलाज करी पण कबी कखी,कबी कखी.ठीक से इलाज नि ह्वै.आखिर काशीपुर अस्पताल मा जैकि एक्स-रे,खून-बलगम जांच का बाद टीबी कु इलाज शुरू ह्वै.कुछ दिन इलाज का बाद काकी का मुख पर कुछ पाणि ऐगे.काकाजीन हर्बी फिर लापरवाही शुरू करी दे.एक साल तक लगातार इलाज नि ह्वै.अर काकी फिर बिमार पड़ी गे.तब काकाजी एक दिन दवे कि पर्ची लेकी ऐगेनी.
        काकन बोली -डॉ साब नमस्कार.
        मिन बोली -काकाजी नमस्कार .क्य हाल छन. कनि च अब काकी ?
         काकाजिन बोली-अरे ब्याटा क्य बुन.काकी त फर भौत बिमार पड़ी गे.
         मिन बोली-तुमन बाल इलाज नि कारू पुरु.टीबी कु इलाज साल भर करदा त काकी बिलकुल ठीक ह्वै जांदी.
         काकाजिन बोली-अरे डॉ साब क्य बुन तब.ह्वैगे गलती.पण अब त हालत भौत खराब च.
         मिन बोली-तुम तुरंत ऊंतई अस्पताल लिजावा अर भर्ती करी द्या.
          काकाजी-अब त क्वी उम्मीद नि छा.तुम ईं पर्ची से द्वी दिन कि दवे दे द्या.तब बचीं रैली त देखि ल्यूला.
मिन ऊंतई द्वी दिन कि दवे दे.काकाजीन  पूछी कि कत्गा ह्वै.? मिन बोली कि चालीस रुपया ह्वैगेनी.काकाजिन अपनों बटवा निकाली कै सौ रुपया कु नोट हैंका हाथ पर रखी,दस रुपया देकी बोली-बाकी हैंका दिन..मिन बोली काकाजी तुमारा हाथ मा त यू सौ रुपया छन.काकाजिन बोली-ब्याटा क्य बुन तब.आज मेरो ठुलू जंवाई अर समधी अयाँ छन वींकी खबर लीणो.तौन एक अद्ध्या त जरूर ही पीण.अर कुछ रुपया बचि जाला त  दगड़ मा नमकीन कि थैली बि त लीण.



Copyright @ Dr .Narendra Gauniyal

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*********आक्रोश*********एक गढ़वाली कविता.



कवि -  डॉ नरेन्द्र गौनियाल




पहाड़ अर पहाड़ी
द्वीइ हूणा छन नांगा
डाळी कटे
मन्खी भागा
पहाड़ नांगा

जगा-जगा मा
दारू कि
सरकारी दुकनि
दिन-रात पींदा
लटगिंदा-फर्किन्दा
बबडान्दा
हुयाँ रंदीन जांगा
पहाड़ी नांगा

व्यवस्था !
टक लगे सूण!!
ईं चिमुडतीं गिच्ची
अर अधपेट पुटग्यूंन
क्य कन्न हमन
सि दारू पेकि ?

आज
हमते चएंद
पुरू अनाज
सि सोमरस
त्वैते ही बिराज

तेरि बराबरी 
हमन क्य कन्न
त्यारा छन 
सि लग्यां ग्यल्का
अर हमारा सुक्सा

तेरि गाड़ी
हमरि नाड़ी
त्यारा हाथ
हमरि गैळी
तेरि जान 
हमारो जंजाळ
तेरि मौत
हमरि मुक्ति
त्यारो भोग
हमारो भाग
हमारो जोग
तेरि जुग्ति

त्वे खुणि
बिजुली-पाणि सब्बि धाणि
हम खुणि सिर्फ
गाणि ही गाणि

हमारा हाथों से लम्बा छन
त्यारा कळदार
तौंकी पकड़ जादा मजबूत च
हमरि मुठ्यों कि पकड़ से

तेरि तिकड़म
कैरि जान्द काम तमाम
अर चूंदा-चूंदा सुकि जांद
हमरि सुकीं हडग्यूं कु
अस्यो-पस्यो

पण देख !
अब हमरि
आंखि खुलि गैनी
अब हम चेति गयां
अब हम
लूछि सक्दन
अपणु गफ्फा
अपणु नफ्फ़ा..


  डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित

Bhishma Kukreti

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*********पिठाई*********एक गढ़वाली कथा.

 

                    कथाकार - डा. नरेंद्र गौनियाल 

 

[गढवाली लघु कथा, उत्तराखंडी लघु कथा , मध्य हिमालयी भाषाई लघु कथा, हिमालयी भाषाई लघु कथा, उत्तर भारतीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा,भारतीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा,भारतीय उप माहाद्वीप की क्षेत्रीय भाषाई लघु कथासार्क देशीय क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा;दक्षिण क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा;क्षेत्रीय भाषाई लघु कथा लेखमाला]

 


बरखा नि ह्वैत गौं वलों कि सगोड़ी सुकि कै तड़म लगीगे.गौं का लोग रोज कूली कु पाणि पैटाणो जएँ,पाणि लेकी ऐं,पण कुछ देर मा ही पाणि अपणा आप बंद ह्वै जाव.शुरू मा कुछ पता नि चली,पण बाद मा असलियत कु पता चलि गे.रौखड़ मा धर्यूं पाणि कु पन्दाल़ो जब भुयां कट्यों मिलि त लोगोँ तै शंका ह्वैगे कि क्वी ये काम तै जाणि -बुझि कै कनूं.
           एक दिन जब गौं का लोग पन्दाल़ो बणेकि पाणि पैटाणो गैनी त नंदू मथि अपणा घौर बिटि गाळी देण बैठ.वैन बोली -''यख बिटि फुंड चलि जाव, निथर मिन तुम घंट्याणा छौ. तब जैला ल्वे चट्दा-चट्दा.'' वैन गौं वलोँ तै गाळी बि दे.वैकी गाळी -ढाळी सूणि कै लोगोँ तै गुस्सा ऐगे.कुछ  वैतई पटगाणो बि गैनी ,पण वो अपणा भितर चलि गे.गौं वल़ा पाणि पैटेकि ले ऐनी.राति फिर पाणि बंद ह्वैगे.नंदून फिर पंदाल़ो काटी कै कूल तोड़ी दे.
           गौं वलोँन प्रधान जी का घौर मीटिंग करे अर पटवारी जी तै खबर देकी धुमाकोट तहसील मा रिपोर्ट करी दे.एक कॉपी डीएम् तै बि भेजी दे. हैंका दिन पटवारीजीन ऐकि पैली खाणु-पीणु करी अर तब गौं वलोँ दगड़ जैकि कूल कु निरीक्षण करे.नंदू तै बुलाई कि खूब हडकाई..द्वी-चार चटग बि लगैनी.अर बोली ''ये सूणि ले तू ! आज बिटि पाणि पर ना छड़े..दुबारा पाणि तोड़ील़ू त हथकड़ी लगैकी लैंसडौन भेजी द्योंलू''.नंदुन बोली-''न . न .साब ! मि त कुछ बि नि करदू.यूं लोगोँन  पाणि लिजैकि कि मेरो घास लतोड़ी दे.पाणि पर क्वी ग्वैर छेडदा होला''.फिर लोग पाणि पैटे कि ऐगेनी.पटवारीजी तै गौं मा च्या पिलैकी जांद दा पिठे लगैकी भेजी दे.
          सबी लोग निश्फिकर ह्वैगे छ्या कि पाणि अब बंद नि होलू.द्वी-तीन दिन तक पाणि ठीक ऐ.पण तीसरा दिन फिर चुकापट .द्वी-तीन नौना पाणि ठीक करणो गैनी त नंदून मथि बिटि गालि देकी घंट्याणु शुरू करी दे.नौना दौड़ी कै वापस ऐनी अर बताई कि पाणि फिर तोड़ी यालि.अर नंदू घंट्याणो बि ऐ.गौं वलोंन एक आदिम पटवारी कि चौकी मा भेजी.पटवारीजी चौकी मा नि मिला.पण पता चलि कि द्वी दिन पैली नंदू बि चौकी मा आयूं छौ.
           दरअसल यू पाणि एक छोया बिटि नंदू कि सिमर्य पुन्गडी ह्वैकी आन्दु छौ.नंदू का बुबाजी का टैम से  ही ये पाणि तै लमधार का लोग पीणा   का दगड़ गोर-भैंसों तै पिलाणो अर सगोड़ी-पतोडीयों मा चरणों काम ल्यान्दा छाया.नंदू पैली त कुछ नि ब्वल्दु छौ,पण हर्बी लमधर्यों का  सगोडा -पतड़ा देखि कै वैकु मन फुके गे.वैकी कूड़ी का मैला तरफ कोनाकोट का लोगोँन बि वैते फुल्से  दे कि त्यारा पाणि से बन्या छन यू लमधर्य फुन्यनात.कबी त्वेकू बि भेज्दीन मूल़ा कि जैडी,प्याजों का घिन्डका,आलू का बियाँ ,गोभी का फूल.नंदू कु बि ख्वपडा घूमी गे.
            नंदू कि कूड़ी लमधार अर कोनाकोट का बीच मा यकुलो धार मा छै.कोनाकोट वालों का दगड़ वैका झगडा रैंदा छाया जबकि लम्धार वालों दगड़ भलि पटदी छै.कोनाकोट वलोंन  चाल खेली कि लम्धर्यों का दगड़ वैका झगडा कन कै करे जएँ.बस नंदू ऊंका बखाण  मा ऐगे.गौं वाला जनि फिर पाणि पैटाणो गयीं,ऊ सरी कुतमदरी दगड़ ऐकि गाळी देण बैठगे अर घंटी चुटाण लगी गे.चार-पांच लोग मथि वैका घार गैनी पण तब तक वैन भितर जैकि द्वार ढकी दे.अपणी कज्यणि तै ऐथर करी दे.भितर बिटि बोले,,''अपणी ब्वे का मैसो..आवो त सै तुम.जणेका कि मुंडली गण्डकी द्यून्लू .कुलाड़ू देखि लियां हाँ.'' गौं वालों सोची कि कखी कुछ बात नि बिगड़ी जाव,ये वास्त ऊ वापिस ऐगेनी.
           दुबारा डीएम् का पास रिपोर्ट करेगे. अबरी दा कानूनगो अर पटवारी द्वीई ऐनी.नंदू जंगल भाजी गे.कानूनगो साबन बोली कि पटवारी जी तुम वैते सम्झैकी  मामलो ठीक करी दियां .झगडा बढाणु ठीक नि छा.गाँव वलोंन  ऊंतई बि खिलाई -पिलाई कि जांद दा पिठाई लगाई.ऊंका जाणा का बाद पटवरीजिन बोली, ''अब एन नि मणि त समझो कि जेल कि ही हवा खालु.''.जांद बगत फिर पटवारी जी तै पिठे लगान पड़ी.
           दिन बितदा गैनी पण पाणि कु मामलू नि सुलझू.अर्जी-पुर्जा चलना रैनी.एक दिन फिर पटवारी ऐगे.गौं वाला अब त परेशान ह्वैगे छाया.परधान सदानन्द जी अर दाना-दीवना सब्योंन एक जुट ह्वै कि बोलि,''पटवरीजी  पैली तुमन बोलि छौ कि दुबारा पाणि तोडालो त वैते जेल भेजि द्योंलू.अब क्य ह्वै ?'' पटवरीजीन बोलि,''देखो भै ऊ अपणी पुन्गड़ी बिटि नि आणि दींदु त हम बि क्य कैरि सकदा.''वैनत सर्या गौं पर फौजदारी केस करी यालि छौ.मिन वैतई समझाई कि चुप करे.निथर तुम सरि गौं का ही जु रैंदा तब जेल.''परधानजिन बोली कि बिन मर्यां -त्वडयाँ   केकु फौजदारी केस ..?पटवरिन अपणी घुमौदार मूंछ मलासी अर बोली,''अरे साब परधान जी ! वैका घर जांठा-बलिंडा लेकि त गया छन लोग.ह्वै सकद द्वी-चार धड़क लगे बि होलि..ऊ त इनु बि बुनूं छौ कि वैकी कज्यणि पर भी छेड़खानी करे.गुलोबंद अर कंदुडा का मुंदडा बि ली गैनी.''परधानजीन बोली,''पटवारी जी यू सब झूठ च.तुम इनु किलै बुना छौ.?.  गौं वलोंन बोली  कि पटवारी जी यू क्य लगणा छौ तुम, कंडली कु सि पात ..द्वी तरफ.?.पटवरिन  बोली,''देखो.,''जतगा दा तुम लोगोँन पिठाई लगाई,मिन तुमर तरफ बोलि,पण जब नंदू बि हौरि जादा पिठे लगे दींद त मि वैका  तरफ आंखि नि बूजि सकदु.'' पिठाई कु कमाल अर पटवारी कि बेशर्मी देखि कै गौं वला हक्चक रैगैनी.अबरी दा पिठाई नि लगाई..पटवारी पिछ्नैं ह्यर्दा-ह्यर्दा अपणी चौकी तरफ चलिगे..हैंका दिन पता चलि कि पटवारी कि बदली ह्वैगे.अर एक मैना बाद ही नौकरी से सस्बैंड ह्वैगे.कुछ दिन बाद ही गौं मा पानी का नल ऐगेनी.अब कूल का पाणी कि जरूरत बि नि रै.झगड़ा खुद ख़तम ह्वैगे.
                                डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित......   


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