Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32280 times)

Bhishma Kukreti

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******बिष्ट बूबाजी******एक गढ़वाली कथा



कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल




काफलागैरी पिर्मू का ब्यो का दिन हम लोग न्यूतेर मा जाणा छाया.उकाळी का बाटा का बाद सड़क मा पहुँची के थ्वडी देर सुस्ताण बैठि गयाँ.सड़क का किनर पर एक अंग्रेजी अखबार कु टुकड़ा छौ. बिष्ट बूबाजीन भुयां बिटि अखबार कु पन्ना उठे कि द्वी हाथों मा पकड़ी अर दड़ा-दड पढ़न लगी गईं.मि हक्चक ऊंतई देख्दू रै गयूं.जु मन्खी अपणु नौं हिंदी मा बि बड़ी मुश्किल से लिखी सकदा छाया ,ऊ फ़टाफ़ट अंग्रेजी .....? मेरी त खोपड़ी चकरे गे.मिन समझी कि बूबाजी पर क्वी द्यब्ता य भूत ऐगे.मि पुछ्नु कि बूबाजी क्य ह्वै तुमते ? अर बूबाजी मुल-मुल हैंसदा अख़बार पढ़द रयान.बाद मा बताई कि अंग्रेज साब का दगडी सीखी थोड़ी-भौत.उन बूबाजी निरट अनपढ़ छाया.
           बहुमुखी प्रतिभा का धनी बिष्ट बूबाजी जमणधार गौं अर नजीक सर्या मुल्क का गार्जियन छाया.गौं कु गरीब-अमीर सब ऊंकु तै एक समान छौ.हर मवासा का दुःख-सुख मा ऊ शामिल हूंदा.सदाबहार मुल-मुल हैंसी का दगड ऊ लोगोँ कु बि खूब मनोरंजन करदा छाया.हाजिर जबाबी मा ऊंकु क्वी जबाब नि छौ.क्वीई बनावटीपन बि ना.अकबर का दरबार मा बीरबल का जनि ऊ सरि गौं-मुल्क मा मनोरंजन अर बुद्धि-विवेक कु खज्यनु छाया.दुःख-सुख,खैरि-बिपदा,ब्यो-बरात,पूजा-पाती हर मौका पर ऊंकु अलग ढंग छौ.उंकी छवीं सूणि कि लोग अपनों बड़ो से बड़ो दुःख बि बिसरि जांद छा.
          कुछ लोग समाज मा कब्बि-कब्बि इन बि पैदा ह्वै जन्दीन जु अपणा आप मा एक मिशाल बणी जन्दीन.इनि एक महान विभूति छाया गुजडू पट्टी का जमणधार गौं मा स्व० श्री खुशाल सिंह बिष्ट जि .अजी साब क्य बोलि सक्दान ..पण  समझो गजब कि पर्सनालिटी.हमन त ऊंका फुल्यां जूंगा अर अध् फुल्यों बर्मंड ही देखि.अपणा बचपन से लेकि ऊंका आखिरी दिनों तक हमन ऊंतई एक जनु ही देखि.
            गौं का हरेक परिवार दगड़ ऊंको निकट सम्बन्ध छौ.हर ब्यो-पगिन मा भण्डार (स्टोर) कि ड्यूटी उंकी ही रैंदी छै.हैंका का सुख से सुखी अर दुःख से दुखी होण वल़ो इनु इन्सान मिन हैंकु क्वी नि देखि.कैकि चीज पर क्वी निंगा ना. खाण -पीण मा भौत मितव्ययिता रखदा छाया. द्वी घुसळी सुबेर कल्यो का टैम पर अर द्वी राति खाणा का बगत.हौरि खाणो  जिद्द कन पर बोल्दा छा कि बुढ़ापा मा मशीनरी कमजोर पड़ी जांद.तुम लोग जवान छा,लक्कड़-पत्थर सब हजम कैरि सकदा.
            तब हमर गौं मा स्यारा(धान कि रोपणी ) मिलि जुली के लगदा छाया.बूबाजी सेरा लगाण वलोँ का वास्त रोटी,साग,परसाद बणान्दा छा.मर्द लोग पाटा सांदा अर ब्यटुला धान लगन्दा छाया.बूबा जि कि ड्यूटी,च्या पिलाने अर खाणु खिलाने रैंदी छै.सेरों मा इनु आनंद आन्दु छौ कि क्य बुन तब.(अब त सेरी-घेरी सब बांजी पड़ी गैनी.)
        बूबाजी समय का बड़ा पाबन्द छाया.सबेर जल्दी उठ्णु अर राति जल्दी से जाणु.खाली कबी नि रैंदा छाया. बैठि बैठि कै बि कुछ न कुछ करणु उंकी आदत छै.चौक मा बैठ्याँ जब लोग छवीं -बत्त लगान्दा,तब बि ऊ दगड़ मा थाड़ मा जम्यूं घास-पात चुंडदा छाया.खेती का काम तै ऊ बोल्दा छा कि यू कृषि कु पेपर छा सबसे बड़ो अर सबसे कठिन.पण छा यू कम्पलसरी...नौकरी-चाकरी,व्यापार,काम-धंधा सब कृषि का समणि कुछ नि छन.रुपया-पैसा त कुछ बि करि कै कमाए सकेंद पण बिन खेती का सब कुछ बेकार च.अगर खेती नि होलि त अनाज पैदा नि होलू.तब सरि दुन्या क्य खाली.?मंखिं त सदनि अन्न ही खाण.रुप्या खैकी पुट्गी नि भोरे सकेंदी.
             भारी ग़मगीन वातावरण तै बि ऊ अपणि स्वाभाविक हास्य वृति से हल्कू-फुल्कू बणे दीन्दा छा.गौं मा जब क्वी बुड्या -बुढडी  सख्त बीमार हून्दो त बूबाजी बोल्दा छा कि ,''टिकट त कटिण वलो च पण अबी जब तक सीट खाली नि हून्दी,तब तक कुछ नि हूंदू.जब ओर्डर ऐ जालो,तब अफु ही सटगंद बिन बतयाँ.ऊ बोल्दा छा कि ब्यटाओ ..मुर्दा का दगड बि आज तक क्वी नि गै.अर सदनी भूकी बि क्वी नि रहे.यू माया जाल इनु छा कि मुर्दा फुकी के कुछ देर मा ही मन्खी फिर काम-धंधा पर लगी जांद.
             अपणा आखिरी टैम पर जब बूबा जि बीमार ह्वैनी त ऊं खबर भेजि कि मै तै देखि जा.मि द्वी अनार कि बीं अर कुछ दवे ल्हेकी  घार गयूं.मिन बोलि कि बूबाजी तुम भौत कमजोर ह्वै गयां.तुमते इलाज का वास्त दिल्ली भेजि द्यून्ला.वख तुमरो नौनु,ब्वारि,नाती तुमरि देखभाल कारला.इलाज बि ठीक ह्वै जालो...बूबाजीण मेरो हाथ पकड़ी अर बोले,''बेटा मिन  अब कखि नि जानू.अब आखरी टैम ऐगे.जिंदगी भर ईं कूड़ी  मा रयूं.तुम सब्बि गौं वालो दगड़ जिंदगी बताई.तुम सब लोग म्यारा अपणा छा.सारा गौं अर मुल्क मेरो अपनों छा.मि दिल्ली चलि जौंलू त तुमन एकन बि मिताई लखड़ो नि दे सकणु.मेरी कुटमदरी वलों का भाग पर मेरी सेवा कनि होलि त ऊ मीम आला.जिंदगी कु दुःख-सुख मिन तुमारा दगड यख देखि त सिर्फ म्वार्ने खातिर दिल्ली किलै जौं.अप णा उद्गार व्यक्त करि कै ऊंको हस भोरी कै ऐगे.उंकी आन्ख्यूं मा मिन पैली बार आंसू कि धार देखि.मेरो मन बि दुखी ह्वैगे..मेरा बि आंसू टपगण लगी गईं. बूबाजिन बोलि,''बेटा मैते देखि गे तू.अब दवे कि जरूरत नि छा.बस जैदिन चलि जौंलू,जरूर एक लखड़ो धरनों ऐ जै. ऊंको प्यार,विश्वास अर इच्छा शक्ति देखि कै मि सन्न रै गयूं.बूबा जि का दगड उंकी घरवाली बि छै.बाद मा ऊंको नौनु,ब्वारी,नाती बि ऐगेनी.
             एक दिन ऊ ईं दुन्य छोडि कै चलि गईं.सरि गौं का लोग शोक मा डूबी गईं.देवलगढ़ नदी का श्मशान घाट पर  ऊंको अंतिम संस्कार ह्वै.मि बि लखड़ो दीणो गयूं.बूबा जि कि चिता धू-धू करि जळी गे.उंकी याद हमरि जिकुड़ी मा बसीं रैगे.ऊंका बिचार,संस्कार,प्यार-प्रेम सदनि याद आन्द..
            डॉ नरेन्द्र गौनियाल.. सर्वाधिकार सुरक्षित ...                     

Bhishma Kukreti

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*********शहीद बीरू हवालदार********एक गढ़वाली कथा.



कथाकार- डा. नरेन्द्र गौनियाल 


वै दिन बीरू कु रेस्ट छौ.वैका दगडया कि डयूटी छै.राजौरी सेक्टर मा कुछ फौजी बौडर तक भ्यजणो गाड़ी लिजाणी छै.ड्यूटी वलो दग्डयन बोलि कि आज मेरि तब्यत कुछ ठीक नी.बीरून बोलि कि तू आराम कैर,मि चलि जौंलू.ऊ चट्ट तैयार ह्वैकी गाड़ी लेकि चलिगे.बौडर मा जनि गाड़ी अपणा ठिकाना पर पहुँचण वली छै,वाँ से पैली ही छोप मा बैठ्याँ दुश्मन कु फायर खुलिगे.हमारा फौजी भयोंन मोर्चा संभाली कै जबाबी फायरिंग करे.बीरून गाड़ी हैंका तरफ सुरक्षित जगा मा घुमाणे कोशिश करे पण एक गोली वैका बरमंड मा लगी गे.कुछ लोगोँन मोर्चा समालि अर कुछन बीरू तै अस्पताल पहुँचने कोशिश करे,पण बीरू तै इलाज कि जरूरत नि पड़ी.ऊ मुल्क का वास्त शहीद ह्वैगे.
         ''जतो नाम ततो गुण'',य कहावत अपणा मुल्क का बीर सपूत बीरून पूरी करे.मौत हो त इनि. दुःख का दगड़ गौरव.वियोग का दगड़ अमरत्व.कारगिल युद्ध का दौरान अपणु क्षेत्र कु यू पैलू बीर छौ जैन बीरगति प्राप्त करे.जनि यूनिट बिटि बीरू कि शहादत कि खबर लैंसडाउन पौंछि पूरी छावनी मा मातम छैगे.यख ही गढ़वाल राईफल मा बीरू भर्ती ह्वै छौ २० साल पैली.दुःख का दगड़ छावनी मा फौजी वैकी शहादत पर फख्र बि महसूस करना छाया.बीरू कु पार्थिव शरीर लैंसडाउन पहुँची, तब वख बिटि सैनिक सम्मान का साथ शवयात्रा शुरू ह्वैगे.
               पौड़ी जिला मा नैनीडांडा विकास क्षेत्र,गुजडू पट्टी मा बसोली गौं मा स्व० तेजराम सुन्द्रियाल जि कु ठुलू नौनु छौ बीरू.दर्जा पांच तक डूंगरी मा पढ़णा का बाद दस पास  इंटर कॉलेज अदालीखाल बिटि करे.मि बि फख्र करदू कि बीरू शहीद मेरो क्लास फैलो छायो.दर्जा छै बि टि दर्जा आठ तक हम नजदीक ही क्लास मा बैठ दा छाया.नौ मा सेक्सन बदली गे.दस पास करिकै बीरू गढ़वाल रायफल मा भर्ती ह्वैगे.जब बि कबी छुट्टी मा घौर आन्दु छौ,तब खूब छवीं लगान्दु छौ फौजी जीवन कि.२० साल नौकरी करना बाद रिटेर्मेंट कि तैयारी करीं छै.जेठ कु मैना ऊ छुट्टी आण वालो छौ,अचानचक कारगिल युद्ध शुरू ह्वैगे अर छुट्टी कैंसिल ह्वैकी ड्यूटी राजौरी सेक्टर मा लगीगे,जख ऊ शहीद ह्वैगे.
               शवयात्रा लैंसडाउन बिटि कोटद्वार,नजीबाबाद,धामपुर ह्वैकी जनि काशीपुर पौंछि,भीड़ और जादा बढ़दी गे.काशीपुर मा पूरो बाजार बंद ह्वैगे.हजारों-लाखों कि संख्या मा जनता फूल-माला लेकि  शहीद बीरू तै श्रद्धांजलि देणी छै.काशीपुर बिटि रामनगर तक घंटों लगी गईं.रामनगर मा  पूरी सड़क भीड़ से भारी गे.हजारों लोग शहीद का दर्शन का वास्त जमा ह्वैगेनी.प्रशासनिक अधिकारी,सामाजिक कार्यकर्त्ता,राज्य आन्दोलनकारी संगठन,,महिला,छात्र,शिक्षक,कर्मचारी,नाना-ठुला सब ऐगीन.फूल मालाओं कि ढेर.बीरू हवालदार जिंदाबाद,,..बीरू त्यारो यो बलिदान,सदनि रालो हमते ध्यान..ये तरह का नारों का दगड़ शवयात्रा डूंगरी-बसोली का तरफ चल पड़ी.
             क्षेत्र का सांसद,विधायक,मंत्री,डीएम्,एसडीएम्,ब्लॉक प्रमुख,हौरि सबी जनप्रतिनिधि,समाजसेवी शवयात्रा मा शामिल ह्वैगीं.राति ८ बाजी जनि शवयात्रा बसोली गौं मा पहुची त गौं बि छावनी का रूप मा ही बदली गे.गौं मा खड़ू हूणों जगा बि नि छै.लैंसडौन बिटि बीरू कि घरवाली अर नौनु-नौनि बि दगड़ी ऐगे छाया.घार मा ब्वे-बाप छाया.
            सुबेर स्थानीय श्मशान घाट सल्डमहांदेव तक तीन घंटा मा शवयात्रा पौंछि.ये इलाका का सबी बाजार,स्कूल बंद ह्वैगी.सुबेर बि टि ही शहीद तै आखरी बिदाई देनो भारी जनसमूह जमा ह्वैगे.फौजी भयों सैनिक सम्मान का दगड़ शहीद तै अंतिम सलामी दे.बीरू कु १२ साला नूनं अपनों शहीद बुबा कि चिता तै मुखाग्नि दे...नारा लग्न रैं.--जब तक सूरज चाँद रालो..बीरू तेरो नाम रालो.
           द्वी-चार दिनों तक अख़बारों मा बीरू ही रहे.शहीद का आश्रितों अर परिवार का वास्त,गौं का वास्त कई सरकारी घोषणा ह्वैगीं.कुछ पूरी ह्वैनी अर कुछ उन्नी रैगेनी..कुटमदरी का आंसू बि हर्बी सुखन लगी गी.अपणी शहादत से ठीक एक साल पैली बीरू अपनों एक शहीद फौजी चिनवा  ड़ी  को बीर सतपाल सिंह को पार्थिव शरीर लेकि खुद ऐ छायो.तब ऊ एक बात बोलि गे छयो कि,''देश का वास्त शहीद हूणों हरेक फौजी को कर्तब्य अर दिली इच्छा हूंद.,पण इनु गौरव हरेक तै नि मिलदु..आखिर बीरून अपणी शहादत कि कामना पूरी करे अर अपनों मुल्क,गौं,ब्वे-बाप सब्यूं कु नौं रोशन करे.



Copyright@ Dr. Narendra Gauniyal           

Bhishma Kukreti

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*********दिव्यदृष्टि *********एक गढ़वाली ननि कथा



                  कथाकार- डॉ नरेन्द्र गौनियाल



[गढ़वाली कथाएँ, आधनिक गढ़वाली कहानियाँ, उत्तर भारतीय भाषाई कथाये, उत्तराखंडी कहानियां , गढ़वाली लघु कथा, आधुनिक गढ़वाली लघु कथा   लेखमाला]


शिवरात्रि कु दिन.सुबेर बिटि ही शिवजी का मंदिर मा पूजा-पाती शुरू ह्वैगे.खूब भीड़-भाड़,चहल-पहल.दिन भर बर्त्वयों कु आणु-जाणु लग्यूं रहे.व्रत धारी शिवलिंग पर बेलपत्र,दूध,गंगाजल ,फूल-पाती चढाणा रहीं. हरिद्वार मा दिल्ली रोड पर छायो यू मंदिर शंकर आश्रम का भितर.कॉलेज टैम पर हम बि यखी रैंदा छाया एक कमरा लेकि.
           आज शिवरात्रि कि छुट्टी छै.मेरो बि व्रत लियों छौ. नहे -धुये कि मंदिर मा चलि गयूं, आश्रम का  भितर ही भजन-कीर्तन चलना छाया.दिन भर भीड़ रहे. देर राति  तक  कार्यक्रम चलनु रहे.ब्यखुनी का टैम पर एक कखि भैर बिटि अयाँ  स्वामीजिन  प्रवचन करे.ऊ आश्रम मा ही एक कमरा मा रैणा छया.स्वामीजिन  शिवजि कि महिमा कु वर्णन करते-करते दिव्य-दृष्टि पर बि प्रकाश डालि अर बोलि कि ,''आध्यात्मिक शक्ति अर योग साधना से प्रभु का साक्षात दर्शन ह्वै जन्दीन.कुण्डलिनी जागृत करि कै दिव्य-दृष्टि प्राप्त ह्वै सकद.ईश्वर कि य कृपा  म्यार ऊपर बि च''.
           सबि श्रोता स्वामीजी का प्रवचन सुणि कै खुश ह्वैगीं.देर राति तक प्रवचन चलना रहीं.आज आश्रम कु गेट बि खुला छोडि दिए गे.राति एक बजी करीब फलाहार कैरि हम त से गयां.भक्तजन बि अपणा घौर चलि गैनी.आश्रमवासी बि से गईं.सर्या दिन भर व्रत अर भजन-कीर्तन से थकान बि ह्वैगे छै..इनि नींद पड़ी कि सुबेर तब उठां जब आश्रम मा गबलाट ह्वै.
            उठी के पता चलि कि  आश्रम का भितर कुछ ब्रह्मचारियों कि चोरी ह्वैगे.एक बक्सा क्वी लीगे,जैम रूप्या,लारा-लत्ता रख्यां छाया .इना-फुना सब देखि पण कखि नि मिलु.ह्वै सकद क्वी भगत करि गे कमाल.राति गेट जु खुला छौ.आश्रम का भितर-भैर सब जगा देखि पण कख मिलणु छौ?तब एक आश्रमवासिंन बोलि कि भै जरा ब्यालि वल़ा स्वामी जि तै पुछला..ऊ जणदा छन.सब बताई द्याला कि कख च  अर कु लीगे.पहुन्च्याँ महात्मा छन.ब्रह्मचारी वै कमरा मा गैनी.हम लोग बि दगड़ मा चलि गयां.स्वामी जि अबी तक सियाँ छाया.द्वार खुला छाया. ऊंतई उठाळी.अर बोलि कि यख त एक बक्सा चोरी ह्वैगे.कुछ बताई द्या..कख होलू..कु लीगु होलू.? स्वामी जिन उठिकै आंखि मेंडी अर सिरवाणा मा नजर मारि त ऊंको एक भगोया झोला जैमाँ रुप्या,अर भागोया वस्त्र आदि छा ,सब गायब.कमरा भितर देखि ,पण नि मिलो. भैर ऐकि देखा त स्वामीजी का जुत्ता अर जुराब बि नि छाया...ब्रह्मचारियोंन  बोलि-स्वामीजी क्य ह्वै ?स्वामीजी कि हालत द्यखन लैक छै..ब्रह्मचारी अपणा कमरा मा चलि गईं अर स्वामी बिचारु कपाल पकड़ी कै पटखाट मा बैठिगे .
                 डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित.



गढ़वाली कथाएँ, आधनिक गढ़वाली कहानियाँ, उत्तर भारतीय भाषाई कथाये, उत्तराखंडी कहानियां,  गढ़वाली लघु कथा, आधुनिक गढ़वाली लघु कथा लेखमाला जारी ... 

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*********भूख (हल्कार)******** एक गढ़वाली कथा

कथा --डा. नरेंद्र गौनियाल





द्वीई झण चार बीसी से जादा ह्वैगे छा पण इना-फुना खूब चलदा-फिरदा छाया.नौना-ब्वारि अर नाती-नातिणो का दगड़ भलि कटिनी छै जिंदगी. एक दिन अचणचक राति मा मंगल सिंह कि जिकुड़ी सियाँ मा ही बुजि गे.राति बुढडी तै कुछ पता नि चलि.बुढयन राति पाणि तक नि मांगु.सुबेर जब ब्वारि च्या लेकिगै त ससुर जि पर बाच न सांस.बुढडी झंपा,नौनु उदेसिंह,नाती-नतीन सब्यों हलोळी पण कुछ बि ना.हड़क ना मड़क.उदेसिंहन चिम्चा से पाणि डाळी पर घुटेणा का बजाय भैर जिकुड़ीउन्द खतिगे.ये ब्वे ! क्य ह्वै त्यार बाबा तै ?इनु बोलि कै बूडन ह्यळी मरणि शुरू करि दीं.किलकारी मारि कै बोलि-ये बुड्या कनु गै तू,मीं छोडीकै....मिन कनकै रैण..मी बि लीजा अफु दगड़...ये ब्वे..ब्यालि राति त खिरबोजा सागा दगड़ी द्वी घुसळी खएं अर एक गिलास दूध बि पे.अर यू राति मा ही क्य ह्वै  ? ब्वारी,नाती-नातिन बि रूण लगी गईं.किलकिलाट  सूणि कै गौं का बैख-  जनाना सबि ऐगीं.सब यी छवीं लगाणा रैं कि स्वां चलि गे बिचारो.म्वरंद दा क्वी परेशानी नि ह्वै.
                 घाम आणा का बाद शैय्या तैयार ह्वैगे.मर्द लोग तिथाण मा चलि गईं बुड्या तै फुक्णो अर बेटुला ऊंका घार मा बैठ्याँ रैनी. दिन मा पड़ोस बिटि च्या बणी कि ऐ. सब्योंन पे पण बुढडीन नि पे.नाती-नातिनो तै पड़ोसियोंन ही रोटी-सब्जी खिलाई दे.शोक मनाणो तै अपणो घार मा कुछ नि बणायीं.इन मा कैकु ज्यू ब्वल्द अर कुछ रस्म-रिवाज बि द्यखण पडदीं.
                 ब्यखुनी चार बजि करीब रौल बिटि लोग वापस ऐनी. ब्वारिन ओबरा मा च्या बणे.च्या पीकी सब लोग हर्बी अपणा घौर चलि गैनी.राति कुछ लोग फिर ऐनी बैठणो.पड़ोस कि एक बेटुलिन रसोड़ा मा जैकि रोटी-साग बनै दे.नाती-नातिनो तै खिलाई कि वींन बोलि कि तुम लोग बि खै लिया.सब लोग बाद मा अपणा घौर सीणों चलि गिन.बाद मा उमेदु बि खैकी सेगे.
                ब्वारिन सासु तै बोलि कि रोटी बणी छन,खैल्या..बुढड़ीन बोलि कि ना. ना .मीं से त नि खयेणु,तू खैले.दिन भर का नि खयान भूख त लगीं छै पण...कुछ देर मा सासुन फिर ब्वारी तै बोलि कि तू खैले.मीखुणि च्या बणे दे.भूख-प्यास से बुढडी कु गिच्चू सुखणू छौ..ब्वारिन च्या बणेकी दे .अर फिर बोलि कि ..एक रोटी खैल्या च्या का ही दगड़. लदोड़ी मा हल्कार त  भौत हुईं छै पण...फिर बि बूडन बोलि कि  ना ना मीतै भूख नी..तू खैले . ब्वारिन बोलि कि तुम नि खांदा त मि बि नि खांदु..भुकी से जांदू.इन बोलि कि व अपणो कमरा मा ऐगे.कुछ देर  बाद रसोड़ा मा गै अर चार रोटी सल् कैकि टुप्प सेगे.हैंका भितर बूड तै निंद नि ऐ.राति भर उनि रै हरकणी-फरकणी.
          सुबेर ब्वारिन च्या बणाई.च्या का बाद कल्यो रोटी पकै.आलू कु साग बि दगड़ मा छौ.सासु तै देकी बोलि कि अब त खै ल्या तुम.सासुन बोलि कि क्य कन तब खाणु त च.,निथर तिन बि रैंण भुकी.बूडन चार रोटी उनि सळकै दीं बिन चपयाँ.कुटमदरिन बि कल्यो रोटी खै अर लगी गईं अपणा काम-धंधा पर.आखिर पेट कि भूख कैन सहे सक.जै दिन य भूख मिटि जाली,वै दिन दुन्य ख़तम ह्वै जाली.                     

Bhishma Kukreti

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द्यखणु छौं कना जाणा छन लोग एक हैंका पैथर.
मै रै गयूं ये भिभडचल मा बि यखुल्या-यखुली.

उनु त रून्दा छन लोग अपणि तकदीर कु रूणु.
पण मिन त रोई कै सदनि बिगड़द ही देखि.

मै तै नि छा क्वी हक़ कैते बि कुछ बुनौ.
पण यू अंसधरी त मेरि अपणि छन.

मैं जैंयी डाळी तै रोज खाद-पाणि दींदु.
लोग वैका ही जलडा काटिकै लिजाणा रंदीन.

हमन अंध्यर मा जैतै जगदु मुछ्यलन बाटु दिखै.
उज्यल़ू हूण पर वो मुछ्याल़ू हमर बरमंड मा चुटेगे.

भगवान तेरि कुदरत कु गुलाब बि कनु.
लोगोँ तै खिल्दा फूल अर मै तै सिर्फ कांडा.

लोग ब्वल्दिन कबी त म्यारा धौला बि फूल़ाला.
पण तब क्य कन फूलि कै जब नि रैनि मौल्यार.

जल्याँ पर लूण त क्वीबि छिडकी सकद.
कबी घाव पर मलहम लगैकी त देख.

दुन्या तै दीणु रैंदी तू सुद्दी अकल.
कबी हाल अपणा बि त देखा कर.

दिन दुपहरी मा लालटेन जलैकी क्य कन.
कबी अंध्यर मा चिमनी जलैकि त देख.

चुप रैकि बात बणद त ठीक च रे.
ब्वलण से बात बिगड़द त क्य फ़ायदा.

ऊंतई कख च फुर्सत कि याद करीं.
एक हम छौ कि कबी नि बिसर्दा.

तेरि दुआ च कि अबी तक छौ हम बच्यां.
निथर जालिम कि त कोशिश पूरी छै.
           डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित .

Bhishma Kukreti

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*******पहाडा कि नारी ! तू जाग-जाग !!********


कवि- डा. नरेंद्र गौनियाल

पहाड़ा कि नारी,पहाड़ा कि लाज .
त्यारा कान्ध्यों मा, भार च आज.

दरवल्य़ा ह्वैगेनी  मर्द आज.
तौंकू नि छा क्वी काम-काज.

अपणा पति तू, जब बाट ल्हेली.
ख़ुशी-ख़ुशी तू ,तब ही रैली.

नारी तू जाग,जाग तू जाग.
तिन बणोण खुद अपणो भाग.

पहाड़ा कि बेटी,ब्वारी सूणि ल्यावा.
नौनि-नौना तै  तुम, खूब पढ़ावा.

नौनि-नौना मा, नि कनु फरक.
निथर जाण पोडालू, घोर नरक.

बाळी नौनि तै,अबी नि पिचगावा.
तैंकू भविष्य तुम,पैली बणावा.

पढ़ी-लिखी कि बड़ी ह्वै जाली.
अपणि खुट्यूं खड़ी ह्वै जाली.

नौकरी पाली खुद ही कमाली.
दहेज़ कुंड मा तब नि ड़ूबाली.

एक से के ब्योला मिलाला.
बिन दहेज़ ब्योऊ कराला.

हंसी-ख़ुशी तब द्वी झण राला.
स्वस्थ-सुन्दर समाज बणाल़ा.

    डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित... 


Bhishma Kukreti

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*********हे दिदा !**********(म्यार पहाड़ कि व्यथा )



कवि - डा नरेंद्र गौनियाल

पाणि बोगी माटू बोगी ,बोगिगे मन्खी दिदा.
डालि -बूटी बि नि राली ,तब क्य होलू हे दिदा.
        गौं-गल्या सुनपट  ह्वैगीं,छनुड़ी रीति हे दिदा.
         डांडी-कांठी खरड़ी होलि,तब क्य होलू हे दिदा.
छोड़-तीरों पानौ घास ,पुन्गड़ी रुखड़ी हे दिदा.
सारी हर्बी बांजी होलि,तब क्य होलू हे दिदा.
          बल्द-भैंसी,गौड़ी ढांगी,हड्गी दिखेणी हे दिदा.
          ऐकि ली जालो कसाई,ठेला भरिकै हे दिदा.
बोडी-बोडा पहुँची गैनी, अस्सी-नब्बे हे दिदा.
एक दिन कडगच्च ह्वै जाला,तब क्य होलू हे दिदा.
          बिजुली पाणी,सब्बि धाणी,तौं खुणी च हे दिदा.
          ग्यूंकि दाणी पाणि हमखुण, ह्वैगे मुश्किल हे दिदा.
 डांडी-कांठी गाड-गदनी,कनि छन किराणी हे दिदा.
डाली-बूटी ढुंगी-गारी, सब छन बगणी हे दिदा..
          गौं की दीबा अर भुम्या,रक् रके की छन देखणा.
           यखकु मन्खी कखगे सट्गी,हम यख क्या जि कराँ
देबतों की भूमि सैरी,आज रागसों ल़ा घेरी दे.
कंस-रावण जन्मी गैनी,अब क्य होलू हे दिदा.
          जौं मा सौप्यूं राज-पाट,ह्वैगेनी निख्वर्या दिदा.
          खांदा-पींदा कन भुखारा,पड़ीगीं यून्तई हे दिदा.
लदोड़ी दणसट कैरिकै बि,ल्यावा-ल्यावा छन बुना.
माटु बि भसगैली यूंन ,अब क्य होलू हे दिदा.
          यूंन दुर्गत कैरि हमारी,बांठी करणा छन दिदा.
           हर्चि जाली भै-भयात,तब क्य होलू हे दिदा.
वोट मंगदा,चोट करदा,टुकड़ा-टुकड़ा छन कर्याँ.
क्वी भग्यान ऐकि हमते,जोड़ी जांदू हे दिदा.
          डॉ नरेन्द्र गौनियाल....सर्वाधिकार सुरक्षित...


Bhishma Kukreti

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*********फर्शी *********एक गढ़वाली कथा.



           कथाकार- डा. नरेंद्र गौनियाल


सफ़ेद धोती,सफ़ेद कुर्ता,कबरिणी-डबरिणी फतुगी अर कांधी मा लाल गमछा पंडजी पर खूब खिल्दु छौ.कपाल मा लगीं चन्दन की लाल-पीली पिठे त 'सून मा सुहागा'.खानदानी पंडित का साथ, इलाका का नामी-गिरामी मन्खी.कर्मकांडी होणा का कारण जात-पात को कुछ जादा ही ख्याल करदा छाया.उंकी अपणी एक अलग फर्शी छै.वै पर तम्बाकू कै हैंका तै नि खाणि दीन्दा छाया.मेहमानों का वास्त एक हैंकि फर्शी,अर एक चिलम-सजुडा  छौ.गस्त मा बि अपणि एक छवटि चिलमणि धरीं रैंदी छै.जजमान लोग,कामी-काजी सब्बि ऊंको भौत मान-सम्मान करदा छाया,पण जरा ऊंका च्व्ख्यापन से डरदा छाया.
           एकदा धन्नू लोहार कु नौनु घंतू छवटा नौन्यालोँ का दगड़ पिट्ठू खेलदा-खेलदा गिन्दू ल्य़ाणा का वास्त गलती से उंकी तिबारी मा चलि गे.वैका खुटन पंडजी  की फर्शी भुयां लट्गीगे.छवटा नौन्यालोंन हल्ला मचे दे अर य बात सरि गौंमा फैलिगे.पंडजी जब गश्त बिटि घार ऐनी  त य बात ऊंका कंदुणों मा चलिगे.ऊंतई भौत गुस्सा ऐ अर ऊंन धन्नू लोहार तै अपणा घार बुलाए.धन्नू बिचरु डरदु-डरदु ऐ अर वैन हाथ जोड़ी कै माफ़ी मांगी.वैन अपणु काल़ू टुपला पंडजी की खुट्यूं मा धरि कै बोलि,''ननु छवारा से गलती ह्वैगे.'' पण पंडजी नि माना अर बोले,''ईं फर्शी तै तू ही लीजा.अर एकी कीमत द्वी सौ तीस रुप्या दे दे.मि हैंकि ले औंलू.अब य फर्शी म्यार काम की नि रैगे.धन्नू बोले,''तुमारा ही लूण-गुड से पल्याँ   छौ.माफ़ करि द्या.'' पण पंडजी टस से मस नि ह्वाया अर ऊंन फर्शी धन्नू का तरफ चुटे दे..आंख्यूं मा डब्ब-डब्ब अयाँ आंसू फुंजदा-फुंजदा धन्नू फर्शी लेकि अपणा घौर चलिगे.द्वी सौ तीस रुप्या कख बिटि ल्यूं अचनचक... स्वच्दा-स्वच्दा वैकु ध्यान लुवनी कि हंसूळी पर चलि गे.घार ऐकि वैन हंसूळी सुनार मा बेचिकै पंडजी का रुप्या दे दीं.घंतू तै पकड़ी कै खूब चट्गे दे.अर बोले,''निकळ जा तू घार बिटि.तिन आज सरि गौंमा मेरी नाक कटै दे''. घंतू राति रूंदा-रूंदा बिन खाणु खयां ही सेगे.वैकि निंद बार-बार टुटी जाणी छै.ऊ यु ही स्वचणु रहे कि अब क्य करलू,कख जौंलू?
           रतबियन्य मा जनि धन्नू उठिकै दिसा-फरागत गै,घंतुन वैकी फतुगी का खीसा जपगे अर डेढ़ सौ रूप्या खसगे दीं..यु वैकी ब्वैकी हंसूळी बेची कै पंडजी का रूप्या देकी बच्यां छाया.जब तक धन्नू हाथ-मुख ध्वेकी कि ऐ तब तक घंतू चम्पत ह्वैगे.ऊ सुबेर जडाऊखांद बिटि छै बजी वळी बस से रामनगर चलिगे.पुछदा-पुछदा दिल्ली वळी बस मा बैठिकी ब्यखुन्या पांच बजी आनंदविहार बस अड्डा पहुँचीगे.वख जैकि वैकि आंखि रकरे गीं.वैकी समझ मा नि आई कि कै रास्ता भैर निकलूँ. आखिर कुछ मुसाफिरों का पिछ्नैं -पिछ्नैं ऊ भैर ऐगे.एक प्राईवेट बस वल़ो बुनू छौ,''सेवानगर,लोदी रोड,प्रेमनगर.'' वैन सूणि अर चट बस मा बैठिगे.कंडक्टरन पूछे,''कहाँ जाना है ?  घंतुन बोलि,''सेवानगर जाण,माधु भैजी का क्वाटर मा.'' कंडक्टर तै ख़ित्त हैंसी ऐगे. वैन घन्तु कु गिचु देखि अर वैन पांच रूप्या कु टिकट दे दे.
           सेवानगर मा उतरी कै ऊ फिर रिंगण बैठिगे इना-फुना,पण माधु दा कु क्वाटर नि मिलो.माधु वैकु ठुलू मामा कु नौनु छा जु एक सरकारी दफ्तर मा चपडसी लग्यूं.घर बिटि आन्द दा मारामारी मा ऊ माधु कु क्वाटर नंबर ल्य़ाणु बिसरिगे.रिंगदा-रिंगदा द्वी घंटा ह्वैगीं.हर्बी रुमुक पड़नि शुरू ह्वैगे.चरि तरफ चमाचम लाइट जळणी छै.वैन चलदा-फिरदा लोगोँ तै पूछी पण सब्युंन यी बोलि कि कै ब्लॉक मा,कतगा नंबर च ? आखिर घुमदा-घुमदा ऊ सेवानगर सब्जी मंडी मा पहुँचीगे.वख वैन देखि कि गढ़वळी भौत छन.वैते कुछ सहारो मिलगे.इना-फुना द्यखदा अचणचक वैते धनुली बौ टिमाटर बिरांद दिखेगे. ऊ चट वींका समणी ऐ अर बोलि,''सिमनी बौ.'' धनुली हकचक रैगे कि यु कु ऐगे.वींन वैतै नि पछ्याणि अर द्यखणि रै. वा स्वचणि रै कि कु होलू यु जलांगण.घंतुन बोले,''मि घंतराम छौं बौजी,गनधार  गौं कु.तुमरु द्यूरू'.'धनुली तै तब कुछ याद ऐ.वींन बोले,''हाँ रे तू तो तब भौत छोटा था,जब हम एकदा घार आये थे.अब तो तू जवान ह्वै गया है''.फिर वींन साग-पात ले अर घन्तु तै दगड़ मा लेकि क्वाटर मा ऐगे.भैजी तै सेवा लगौणा बाद वैन अपणि आप-बीती सुणाई अर बोले,''अब त मिन कतई घौर नि जाणु,मै तै अपणा दगड़ ही रखा अर कखि नौकरी पर लगाई द्या.माधुन बोले,'तू अबी छवतू छै.' पढ़ी-लिखी ले.घार चलि जा अर बाद मा ऐ जैलू''.घंतुन बोले,''भैजी अब त मि घौर कतई नि जण्या''. वैन ह्यळी लगाई दीं.धनुलिन वैते समझाईकि चुप कराइ दे.राति खाणु खैकी ऊ सेगे..आधा-राति मा स्वीणो मा ऊ बबणाणों छायो,''हमारू पिट्ठू बणिगे.मिन कुछ नि कारो,मै तै नि मारा.'' माधु अर धनुली कि निंद खुली त देखि कि घन्तु बबडान्दा हाथ-खुटा बि झट्गाणू छौ.माधुन वैतई हैंका हैड पडाळी दे.
           माधु की द्वी नौनि छै.दिन भर ऊ उंकी देखभा ळ करदू छौ.हर्बी ऊ धनुली का दगड़ काम-धंधा बि सीखी गे.धनुली चार-पांच महीना बाद फिरि हुण्या छै.कुछ दिन बाद त खाणु -पीणु,लत्ता-कपडा,झाड़ू-पोंछा सब कुछ घन्तु ही करदू छौ.पैली त वती गैस जा ल़ा नि बि नि आंदी छै,पा न अब ऊ एक्सपर्ट ह्वैगे.खुशकिस्मती से यींदा धनुली कु नौनु ह्वैगे.माधु अर धनुली कि ख़ुशी जनु कि घन्तु ही लेकि आई.घंतुन स्वीली कि सेवा-पाणि से लेकि पुरु घर समाळी दे.
             कुछ दिन बाद घंतुन बोलि कि भैजी मि तै कखि नौकरी मा लगाई द्या.माधुन बोले,''भुला घंतराम तू कुल आठ पास छै.जादा पध्यूं हूंदू,य फिर आई टि आई करीं हून्दी त नौकरी चट लगी जांदी,पण इनि हालत मा क्य होलू ?फिरबी तू फिकर नि कैर.मि कोशिश करदू.तीन साल तक घन्तु भाई-बौजी कि ही सेवा मा लग्युं रहे.तब माधुन घन्तु तै एक साब कि कोठी मा लगाई दे.यख वै तै खायी-पेकि पांच सौ रूप्या मिलणा शुरू ह्वैं.वै तै कोठी मा ही एक सर्वेंट क्वाटर मिलि गे.अब घन्तु का भला दिन शुरू ह्वैगीं.
              घन्तु अब अपणा ब्वे-बाब तै मन्योडर भ्यजण लगी गे.घन्तु का गौं का दगडया दस-बार मा फेल ह्वैकी सुद्दी लट्गीणा रैगीं अर ऊ गौं बिटि भज्युं छवारा मन्योडर भ्यजण लगी गे.जब-जब धन्नू लोहार मन्योडर फॉरम मा अंगुठो लगैकी रूप्या अपणि खीसी मा धर्दु छौ,तब-तब वैकि आंख्युं मा पाणि ऐ जांदू छौ.अपणा हाथों तै ऐथर कैरिकै ऊ द्यख्दु छौ कि यूंली ही मिन अपणो बाल़ो नौनु तै थींचु छौ.हस भरिकै वैकि आंख्युं मा पाणि ऐ जांदू छौ.वैन घन्तु का वास्त एक चिट्ठी भेजवाई,''तेरि ब्वे बुनी च कि मै तै अपणा घन्तु कि खुद लगीं.टक लगेकि  कुछ दिनौ वास्त घार ऐजा.''चिट्ठी पढ़ी कै घन्तु तै बि खुद लगी गे,पा ण गौं कु नौ सु णि कै जनि फर्शी कि याद ऐ , वैका बदन पर झर कांडा बबरी गीं.वैन जबाब भेजि कि मितै अबी छुट्टी नि मिलणी छन.
            कुछ दिनों का बाद घंत राम कि सेवा से खुश ह्वैकी साबन वै तै अपणी फैक्ट्री मा चौकीदार लगे दे.एक कमरा -कीचन वा ल़ो क्वाटर बि मिलि गे.अब त घन्तु  असली घंत राम बा णी गे.ऊ फैक्ट्री कि बर्दी मा भौत बढ़िया दिखेंदु छौ.हर्बी ऊ खूबसूरत जवान ह्वैगे.बैशाख का मैना वै तै इक्कीस साल पूरा ह्वैगे छाया.जात-बिरादरी का लोग अब वैका क्वाटर मा घुसी ण लगी गीं.ऊ स्ब्यों कि इज्जत-खातिर करदू छौ.जब भी माधु का क्वाटर मा जांदू छौ,वैका नौनूं का वास्त टॉफी,चौकलेट,सेब-संतरा जरूर लिजांदु छौ.माधु का पास अब घन्तु का बाना कतगे रिश्ता आणा शुरू ह्वैगीं.पण ऊ सब्यों तै टळणु रहे.दरअसल वैकि अपणी एक स्याळी छै,जेंका का  दगड़ ऊ घन्तु कु जंकजोड़ कन छंदु छौ.माधु कि ब्वारी धनुली कि जिद्द छै कि घन्तु कु ब्यो मेरी भुली चंपा का दगड़ ही कन..माधुन अपणी स्याळी सिलायी-बुनाई  सिखणा बहाना से दिल्ली अपणा पास बुलै दे.
           चंपा घार बिटि त सुद्दी आईं छै त्यूरण्या ह्वैकी,पण दिल्ली मा चार दिन मा ही वीं पर चल्क्वार ऐगे..गौंकि कळपट्ट छोरी का कुछ दिन मा ही गल्वडा लाल ह्वैगीं.वींतै ये साल सत्रह साल पूरा ह्वैगे छाया.ये बीच ऐतवार का दिन घंतु सेवानगर ऐगे.वैकि बौजिन बोलि कि मेरी ताब्यात कुछ ख़राब च.तू जरा सब्जी मंडी चलि जा ,साग-पात ले आ.मीत-माछी बि लेलु त ले ऐ.चंपा तै बि दगड़ लीजा.घूमी कि ऐ जाली वा बि.दीदी का बुन पर चंपा नयो सूत पैनी कि सेंत चिद्की कै दगड़ मा चलिगे.द्वी गप शाप लगन्दा चलि गीं.एक जगा मा घंतुन वींतै दूध-जलेबी खिलै.सब्जी लेकि आन्द दा चौकलेट बि खिलै. राति चंपा ही खाणु  बणाण लगी गे.बीच-बीच मा घंतु बि कीचन मा घुसेणु रहे.धनुली जाणि-बुझिकै बौगि ह्वैगे.खांद बगत माधुन मजाक करे कि आज त घंतु रे ! खाणु कुछ जादा ही स्वादिस्ट हुयूं.घंतु बात समझी गे अर चंपा बि शर्मैकी किचन मा चलिगे.खाणु खैकी कुछ देर बाद घंतु अपणा घौर चलि गे.राति बड़ी देर तक वैतै निंद नि आई. वैकि आंख्युं मा रात भर चंपा ही रिंगणी रहे.अर यख चंपा का हाल बि कुछ  इनि छाया.राति बड़ी देर तक वल्या-पल्य हैड पलटणी रहे.सुबेर बिन सियाँ वींकी आंखि कुछ लाल सि हुईं छै.
             अब त घंतराम हर इतवार चंपा तै मिलणा बाना माधु का घौर चलि जांदू छौ.कब्बि त बीच मा बि ऐ जांदू छौ.चंपा तै बि हर इतवार कि इंतजारी रैंदी छै.माधु अर धनुली ईं बात से खुश ह्वैगीं कि घंतु अर चंपा एक दूसरा तै पसंद करदीं.कुछ दिन बाद माधुन घंतु का बूबाजी तै बुलैकी द्वीयोंकु रिश्ता पक्कू करि दे अर दशहरा का दिन दिल्ली मा ही ब्यो बि ह्वैगे.घंतु घर-गृहस्थी मा रमी गे.चंपा वै तै मनपसंद ब्वारी मिलिगे.द्वी साल बाद वैकु नौनु ह्वैगे.हर्बी तनखा बि भलि ह्वैगे.अब ऊ एक इज्जतदार आदिम बणीगे.
           दिल्ली मा गौं का प्रवासी बंधुओं कि संस्था''विकास समिति लमधार''को वै तै उपमंत्री बणये गे.महीना कि हर मीटिंग मा ऊ जांदू छौ.एक दिन जब ऊ मीटिंग मा गए,तब वै पता चलि कि गौं बिटि पंडितजी एक जजमान का घौर अयाँ छाया.दूसरा जजमान का क्वाटर मा जांद बगत बस से उतरंद दा भुयां पडिगीं अर कपाळ मा भौत चोट लगीगे.ल्वे-खाळ हालत मा अस्पताळ भर्ती कर्यूं.अब्बी ऊ सफदरजंग मा इमरजेंसी मा छन.ल्वे भौत गिरण से हालत खराब च.डाक्टर खून कि व्यवस्था का बान बुना छन.मीटिंग बंद करि कै सब लोग ऊंतई द्यखणो चलि गीं.पंडत जी अबी बेहोश पड्यां छाया.खून दीणकि बात सूणी कि कुछ लोग खिसगी गीं. अपणो बौंल़ू उब कैरि घंतुन डाक्टर से बोलि,''मेरी खून निकाल़ा,जतगा चएणी''.देखा -देखि कुछ हौरि बि तैयार ह्वैगीं,पण बाकी लोगोँ कु खून मेल नि कारो,सिर्फ घंतु कु खून मैच करि.घंतु कि एक यूनिट खून पन्डतजी तै चढ़ीगे.वैका बाद घंतु अपणा क्वाटर मा चलिगे.
           कुछ दिन बाद पंडितजी ठीक ह्वैकी अपणा एक जजमान का घर आर के पुरम ऐगीं.जब ऊं तै पता चलि कि घंतु  का खून से उंकी जान बचि त ऊंका आंख्युं मा डब्ब-डब्ब पाणि ऐगे.भौत साल पैली करीं अपणि गलती पर ऊंतई खुद से नफरत सि ह्वैगे.ऊ तुरंत शाम दा घंतु का क्वाटर मा एक डब्बा मिठाई लेकि पहुँची गीं.क्वाटर मा पहुँची कि घंतू तै भट्ट अंग्वाळ डाळी दे.घंतू अर पंडितजी द्वीयों कि आन्ख्यों मा पाणिकि धार ऐगे.पंडित    जिन बोलि,''बेटा मि तै माफ़ करि दे.' तेरो यु एहसान मि....'' घंतुन बोलि,''इन ना बोला.आप हमारा पूज्य छन.मिन क्वी एहसान नि करि.यु त मेरो फर्ज छा.मि आज जु कुछ बि छौं सिर्फ आप कि कृपा से छौं.'' पंडितजिन बोलि,'' ना ना ब्यटा मि तै अब जादा शर्मिंदा नि कैर..तेरो यु एहसान मि कबी पुरु नि करि सकदु.'' घंतुन बोलि,''एहसान त आपन करि मी पर.तुम फर्शी का बाना बबंडर नि करदा त मेरो बुबन मीतै नि मरणू छौ, तब मिन भाजि कै दिल्ली नि औणु छौ.अपण बुबा का दगड़ अनस्यळ मा ही घैण लगाणु छौ.भाजि कै ऐग्युं त एक गफ्फा ठीक से खाणू छौं.
            कुछ दिन बाद पंडित जि गौंमा वापस ऐगीं.ऊ एक डब्बा मिठाई कु धन्नू लोहार का घर बि लेकि गैनी अर बोलि कि, ''धन्नू मेरि फर्शी मी तै दे दे.मेरी आंखि खुलि गैनी..मी अपणि गलती पर भौत शर्मिंदा छौं''.ऊंन एक हजार रूप्या धन्नू का खीसा मा धरीं अर खटुली मूड़ धरीं फर्शी तै लेकि अपणा घौर चलिगीं.अब पंडितजि रोज तिबारी मा बैठि कै खुटी मा खुटी धरि गुड़-गुड़-गुड़ लग्यां रंदीन.
             डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...     

Bhishma Kukreti

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************चुप बि कारा,मानि जावा.************(जनसँख्या वृद्धि अर लिंग भेद पर एक रैबार )

 

कवि- डा, नरेंद्र गौनियाल


एक द्वी ही भौत छन,नौनु हो या नौनि दा.
होलि मुश्किल सैंतणा की,निथर तब हे दिदा.
             बिंडी ह्वाला तब क्य खाला,पुट्गी राली खाली दा.
              सबि नंगा-भूखा उन्नी राला,तब क्य होलू हे दिदा.
ल्यखणु-पढणु, झुल्ला-गफ्फा,आलो कख बिटिकी रे.
 फिर एक बन्दा अर सौ धंधा,तब क्य होलू हे दिदा.
               भर्ती हूणू इस्कुलों मा,ह्वैगे मुश्किल यूं दिनों.
                ढेबरा-बखरा ही चराला,नौनि-नौना हे दिदा.
नौनि-नौनु एक ही छा,फरक तुम कुछ नी करा.
एक नौना का ही बाना,थुपड़ी नौन्युंकि ना लगा.
                छैंयी पडीं गलोड्यों मा वींकी,आंखि बैठीं क्वार छन.
                 फिर एक बि हैंकु ह्वै जालु,तब क्य होलू हे दिदा.
मेरि बात सूणि ल्यावा, टक लगैकी ध्यान से.
हाथ ज्वड़दू चुप बि कारा,मानि जावा हे दिदा..
               डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित

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कतगा महान छौ रे भज्ञान, गुजडू को थानी.*******


कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल


कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.
नारंगी कि दाणि मिठी भग्यान,नारंगी कि दाणी.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

खैंडी जालि खाई गैरी भग्यान,खैंडी जाली खाई.
आजादी का बान त्वेन भग्यान,कनि लड़ी लडाई.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

खाई जालो केला देसि भग्यान,खाई जालो केला.
कतगा बार गैन जेल भग्यान,गांधीजी कु चेला.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

चदरी कि खाप चौड़ी भग्यान,चदरी कि खाप.
यूजर्स कि गाड़ी चलि भज्ञान ,तेरा ही प्रताप.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.

खाई जालो पान देसि भग्यान,खाई जालो पान.
इस्कूल बणेन त्वेन भग्यान,मुल्क का बान.
कतगा महान छौ रे भग्यान,गुजडू को थानी.
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल  सर्वाधिकार सुरक्षित.(डूंगरी गांव,पट्टी गुजडू,पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्व०थान सिंह नेताजी कि याद मा )


 

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