Author Topic: Poems by Dr Narendra Gauniyal - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविताये  (Read 32281 times)

Bhishma Kukreti

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*********हौली रांडा फाट-फाट*********



कवि- डॉ नरेन्द्र गौनियाल की कविता

चौमास का दिन
कतगा भला,कतगा सुवान्दा
चरि तरफ फैलीं हर्याळ
पाणि कु तर-पराट
गदेरों कु छल-छलाट
चखुलों कु किल-किलाट

डांडी-कांठ्यों मा
कुयेड़ी लगीं घनघोर
ग्वैर ढूंढ़णा छन
अपणा-अपणा गोर
निर्भगी हौलु
कनु लग्युं च
बींदी गौड़ी कि घांडी
दूर बजणी च

ग्वैरणी लगाणी च धै
ये दगड्या ये हू ! ! !
इथैं कखि
म्यारा गोर बि छन
बार-बार धै लगाण पर बि
कुछ जबाब नि सुणेंदु

आखिर मा य फटकार दींद -
तांबा तौली,पितल़ा पैसी
हौली रांडा फाट-फाट
हमारू छाला कि कुयेड़ी
सरि-सरि छाट-छाट.
        डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित   


Bhishma Kukreti

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बिन कांडों का नि खिल्दा गुलाब****** गढ़वाली कविता



                 कवि नरेंद्र गौनियाल

बिन कांडों का नि खिल्दा गुलाब,मि जणदु छौं.
पण अपणा नसीब मा फूल ना,सिर्फ कांडा छन.

सुपिना त सुपिना ही च,असलियत से दूर.
ऊ नि आंदा असल मा त,स्वीणों मा सही.

वक्त की रफ़्तार तै,समझणु च जरूरी.
यु कमवख्त वक्त,कैका बाना रुक्दू नी.

कब तक रैलि इनि दूर,अन्ध्यरा का सहारा.
उज्यल़ा मा त मि दगड़ी रौंलू,छैल बणिकी.

कुछ बुना कि सजा,इन ना दे तू चुप रैकि.
सजा जु बि दीणे तिन,दे दे तू चट बोलिकि.

चुप रैकि बि सब कुछ,बोलि जन्दिन आंखि.
दिल कि बात दिल मा,दिखै जन्दिन आंखि.

आंखि चिट गुलाब सि,जनि कि धूल जईं होलि.
सच किलै नि बुन अपणी त, निंद ही हर्चि गे.

उंकी याद कबि दिल मा चुभदी,कबि कुतग्यळी लगान्द.
 वक्त-बे वक्त इनि कबि रुवांदी च,त कबि ख़ित्त हसांद.

डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित.
Modern Garhwali Literature Series

Bhishma Kukreti

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*********घुघूती का आंसू *********एक गढवाली कथा



 कथाकार - डॉ नरेन्द्र गौनियाल

हमर घर का नजदीक एक भ्यूंळ कि डालि छै.वैमा घुघुतु अर घुघूतीन एक घोंसला बणायु छौ,पण कैते बि भनक नि लगी.हम लोग घर का चौक मा झुल्ला कु गिन्दू ख्यल्दा छाया.एक दिन ख्यलंद दा गिन्दू डाळमा अटगी गे.रामू डाळ मा गे अर वैन गिन्दू निकाळी दे,पण इतना मा वैकि नजर एक दुफौन्क्य भौंटु पर पड़ी,जैम घुघूतकु घोसला बन्यूं छौ.घोसला मा चार अंडू छाया.ऊ जनि घोसला का नजदीक गे,घुघुतु अर घुघूती डाळी का टुख ऐकि गुटुर-गुटुर कन लगी गीं.
         रामू भुयां ऐ अर वैन सबि छोरी-छोरों तै बताए दे.तब एक-एक कैकि सबि डाळमा गैनीं अर अंडू द्यखण लगिगीं. क्वी-क्वी हथल्य़ाणा बि रईं..वैदिन खेलिकी सबि रुमुकीदा अपणा घर चलिगीं..हैंका दिन ऐतवार छौ.सबि ख्यलणा कु जल्दी ऐगीं.घोसला मा अंडू द्यखणे रौंस लगीं रैंदी छै.झाबर सिंह बि डाळमा गै.वैन द्वी अंडू हाथ मा पकड़ी,पण एक हाथ बिटि छूटिगे अर भुयां पड़ीकै फूटिगे.दग्ड़योंन बोलि कि क्य कैरि तिन यु.वैन बोलि कि मिन जाणि-बुझिकी नि फोड़ी.तुम कैमा नि बोल्यां.पल्य़ा ख्वाळ बोडी मा बि ना अर म्यारा ब्वे-बाब मा बि ना.
          लोक परम्परा मा चखुलों का प्रति विशेष प्यार-प्रेम,दया,अहिंसा कु भाव रैंदु छौ.सब बड़ा इनि समझांदा छाया कि घुघूता,घिनुड़ा,सटुला य  कैबि चखुला का अंडू नि फ्वड़न चएंद.जु फ्वड़दू च,वैकि आंखि फुटि जन्दिन.झाबर सिंह कि जिकुड़ी मा बि धमाक लगीगे कि कनि गलती ह्वैगे.मेरि मांजी उर्ख्यल़ा मा धान कुटणी छै.रोज कुटंद दा चखुला चौंलों का बियां टिपनौ ऐ जांदा छाया.आज बि घुघुतों कु घुर-घुराट अर घिनुड़ों कु चिंचाट हुयों छौ,पण एक घुघूती छ्वाड पर चुप, उदास सि बैठीं छै.वींकी आंख्यों अंसधरी लगीं छै.
           ब्यखुन्द दा मांजीन खांद दा पूछी,''ये तुम छोरी-छोरा चखुलों का घोसला मा छेड़खानी त नि करदा.'' मिन बोलि ,''ना मि त नि करदू,पण भ्यूंल़ा डाल मा घुघता कु घोल च.वैमा पैलि चार अन्डू छाया,ब्याळी झबरू से एक फुटिगे,अब तीन रैगीं''.मांजिन  बोलि कि,''ओहो ! तबी त मि स्वचनूँ छौ कि एक घुघूती चुप किलै बैठीं छै अर वींका आंख्यों मा अंसधरी बि अईं छै.''
             हैंका दिन जनि ब्यखुन्या छोरी-छोरा ख्यलणकु ऐनी,मांजी चट्ट एक कंडाळी कि मोटी ढींग लेकि ऐगे अर बोलि कि,''आज बिटि यख मा ख्यलना कु नि अयाँ.कैन बि घुघूती का घोल पर छेड़खानी करि त कंडाळी कि ढींग देखि लियां तब. कंडळी देखि कै सबि भाजि गीं.हैंका दिन बिटि वखमा क्वी बि ख्यलना कु नि आया. ना ही घोसला पर छेड़खानी करि.कुछ दिनों मा ही अण्डों से फतेला ह्वैगीं अर बाद मा बड़ा ह्वैकी फुर्र्र उडी गीं.
 
       डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित


Bhishma Kukreti

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*******वींका गलोड़ी मा तिल*******गढवाली कविता



कवि- डा. नरेंद्र गौनियाल

वींका गलोड़ी मा तिल,जब देखि मिल.
झिल-मिल,तिल-तिल,ह्वैगे मेरो दिल.

पैली छै बिगरैली लटुली,लंबी-सुनहरी.
मेहँदी लगण से अब,बदलीगे रंग-ढंग ही.

आंखि कळसिणि,बड़ी-बड़ी,जंगी बटन जनि.
अपणि त हर्चिन्द होश,वा द्यखदी च जनि.

ककड़ी का सि पिपरा,सुरसुरा कंदूड़ वींका.
ज्वानि को रंग बि,झल तौं मा दिखेंदा.

नकब्वड़ी पतळी, खड़ी,तोता का चूंच जनि.
ब्वलिंद कै तै कच्याणो, तैयार होलि जनि.

मुंगरी कि सि बीं,चमकीली दांत-पाटी.
रैंद डौर कि कबि, न दे कट काटी.

होंठड़ी वींकी लाल,नारंगी सि फ़ोळी.
रसीली,नशीली,डसीली,जिकुड़ी मा गोळी

अंगूल़ा वींका, सींक सि बरीक.
रंग चढकि लगदीं,तीर सरीक.

खुट्यू मा वींका, लगदीं पराज.
गौळी मा भडुळी,लगणि च आज.

खुद मा कैका ,वा होलि आज.
क्वी नि जणदू,वींकु यु राज.

डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित...



Bhishma Kukreti

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*********पैलि अपणु मुख ऐना मा त देख -गढ़वाली कविता



कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल

[गढ़वाली गीत , गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली पद्य साहित्य]


हैंका मुख पर झुवाल देखि, तू ख़ित्त ना हैंस.
अरे लाटा ! पैलि अपणु मुख,ऐना मा त देख.

इन ना चुटावा सिक्कों तै, सुद्दी जख-तख.
तुमारा ये शौक से त ,ग़दर-गै मची जाली.

अब त कटेणी च जिंदगी,बस उदास सी.
हंसण-ख्यलणा का दिन, अब त चलिगीं

तू वख मि यख त बोल, मिलि सकला कख.
एक लपाग बि भैर आणु ,कैका बस मा नीं.

कुछ मन मा च त्यारो त ,बोलि दे तू चट.
 ये लाटा ! फिर कबि ,मौका मिल ना मिल

आंदा-जान्दों तै पुछ्दां,ऊंतई बि देखि कखि.
नि बि दिखेंदा त गाणि त, हम कैरि सकदां.

मिटे सक दुन्या कु अन्ध्यरू,इनु त क्वी नि करदू.
बस सुद्दी सब अपणि-अपणि,दुकान चलाणा छन.

उंकी फितरत च कि ऊ, सिर्फ अपणा मन कि कर्दिन.
अपणा मन कि बात च कि मि, कुछ बोलि नि सकदु..

डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित   


गढ़वाली गीत , गढ़वाली कविताएँ, गढ़वाली पद्य साहित्य

Bhishma Kukreti

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*******जिकुड़ी मा लग्यूं तीर ******
         कवि--डॉ नरेन्द्र गौनियाल
जिकुड़ी मा लग्यूं तीर अब त,प्राण लेकि ही रालो.
जब तलक चुभ्यूं च रैणि दे,इनि बूज सि छेद पर.

वींकी याद धरीं,जिकुड़ी का एक कूणा मा कुटरी सि.
अब  क्वी घचोर्याँ ना,फूटि जालि नासूर बणिकि.

मि बुनूं छौं त बुन दे,यु मेरो दिल कु गुबार च.
त्वे तै पीड़ च त सैले ज़रा,यु तेरो इम्तहान च.

इनु ना रुसै तू हमसे,कबि गलती से बि.
याद आलि जब त्वे,त तू सुरुक ऐ जै.

द्याखा छा जु सुपिना,ऊ सुपिना ही रैगीं.
जौंका बाना छौ खटेणू,ऊ आग बणिगीं.

य दुन्य बि कनि च,अपणोंन ही मारि लूट.
आंखि खुली पता चलि,माया जाळ यु झूठ.
          डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित 

Bhishma Kukreti

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********याद जब तू करणी रैलि********


               कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल



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जिकुड़ी य धक-धक, धड़कणी रैलि,
तेरो नौं य जब तक,इनि लीणी रैलि.
त्वे बिसरणु च अब, भौत मुश्किल,
जिंदगी य बस इनि,कटिणी रैलि.

उनु त कतगे होला,फिरबी तू होलि यखुली,
मि सदनि दगड़ मा,जब तू याद करणी रैलि.
तेरि याद का सहारा,इनि कटि जाला यु दिन,
मन की पीड़ मन मा,जिंदगी ख़ुशी से कटेली.

सुख कि जूनी इनि चमकणी रैलि,
दुःख कि बदळी इनि हटणी रैलि.
जिंदगी कु बाग़ इनि महकणू रालो,
प्रेम कि खुशबू इनि आणी रैलि.

मन का फूल इनि खिलणा राला,
धीत कि प्वतळी इनि उड़णी रैलि.
दुःख का दिन मि इनि बिसरि जौंलु.
याद जब तू इनि  करणी रैलि.

    डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित   
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Bhishma Kukreti

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*********अजुकि बात हुईं च आज लोग क्य बुना छन********

                           कवि -डॉ नरेन्द्र गौनियाल

अजुकि बात हुईं च आज,लोग क्य बुना छन.
ठुला मास्टर जि दारू पेकि,नाळी मा पड्यां छन.

खेती-पाती चौपट,पुंगड़ी-पटळी बांजि पडीं छन.
खुटों मा खुटा धरी,दिनरात सीरियल दिखेणा छन.

अजुकी बात हुईं च आज,लोग क्य बुना छन.
ब्याल़कि घसकटा ब्वारि,आज नेता बण्या छन.

यूंकि देखो क्य मत मरीं,बेशरम बण्या छन.
नौकरी-ठाठ-बाट वल़ा,बीपीएल बण्या छन.

अजुकी बात हुईं च आज,लोग क्य बुना छन.
अमीरों तै राहत,गरीबा कागज वखी फस्यां छन.

महंगाई कि मार,जनता लगीं सार,नेता सियाँ छन.
कतगै दा घचोरिकी बि निरभै,कूण सियाँ छन.

अजुकी बात हुईं च आज,लोग क्य बुना छन.
टिटपुन्ज्य बि अब त सबि,लाटसाब बण्या छन.

कूड़ी-पुंगड़ी बांजी,मन्खी लापता हुयां छन.
घर गौं मा सुंगर-बांदर,चौकिदरी कना छन.

अजुकी बात हुईं च आज,लोग क्य बुना छन.
बांजा खत्तों मा बल,अब त रिसौर्ट बणणा छन.

घिनुड़ी-घुघूती हर्चिगीं,अबाबील उड़णा छन.
घर-घर मा भितर जैकि,घोसला बणाणा छन.

अजुकी बात हुईं च आज,लोग क्य बुना छन.
सीधों कि कुगत अर, बदमाश आनंद कना छन.

          डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...सर्वाधिकार सुरक्षित

Bhishma Kukreti

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********मेरि मांजी********(पलायन कि पीड़ --एक गढ़वाली गीत-कविता)


           कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

[गढवाली गीत, गढ़वाली कविता, उत्तराखंडी गीत, उत्तराखंडी कविता, हिमालयी गीत , हिमालयी कविता ]

तेरा हाल देखि मांजी, मेरि गैळी उबाई.
टप-टप मेरि आंख्यों,पाणि ऐ ग्याई.

कनि छै ब्वे तू यखुली,यखुली-यखुली.
ससुराल चलि गैनी,सबि दीदी-भुली

चलि गैना परदेश,मेरा भाई-भौज.
तू छै ब्वे अफु रूणी,बैठ्याँ हम मौज.

पुंगड़ी-पटळी सबि,फुंड राख बांजी.
यकुलो जीवन कसिकै ,रैलि तू मांजी.

लाचार छौं मेरि मांजी,मि जि क्य करदु.
यख-वख कख-कख,मन मि धरदु.

मन त करद मांजी, मि बैठूं तेरो पास.
मेरि बाटी ह्वैगे न्यारी,कनि पड़ी फांस.

फागुणा का मैना मांजी,पुंगड़ी मा रैली.
डाल़ा फ्वड़दा तेरा हाथों,पड़ी जालि छैळी.

मौल्यारा का बगत बि,निंद त्वे नि आली.
हाथ-खुटी दुखाली तेरि, पिंडळी पिड़ाली.

हाथ-खुटी तिड़ी होलि,कसी कै हिटाली.
तेरि नांगी खुट्यूं मांजी,गारी बिनाली.

गौं-गल्यो कि दीदी-भूल्यो,मेरि ब्वे बि देख्यां.
लखडु-पाणि कि बि कुछ, तुम मदद करि दियां.

गाँव का दीबा-भूम्यां,तुम दैणा हुयाँ.
मेरो घर-गौं मा सबि,राजी-ख़ुशी रैंया

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल ..सर्वाधिकार सुरक्षित (narendragauniyal@gmail.com )

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********गढ़वाली छिटगा *********


कवि-डॉ नरेन्द्र गौनियाल

    ***बोर्ड इम्तहान***


सळ इनैं
सळ फुनैं
भैर-भितर
दौडा-दौड़
पटासुल्कणि
अर
छित्यकी
धारा एक सौ चवालीस.

***पुलिस***


कठबांस
मांकी-धीकी
आंसू गैस
तैड़ गोली
अर
मैना-मैना
च्या पाणि.


***पाणि विभाग****


फ्री टोंटी
यकुल्य़ा बाण
ब्लीचिंग पौडर
अर 
 माछयों कु सुरा.


***सरकारि अस्पताळ***


भैर बंगला
भितर कंगला
सफ़ेद गोळी
अर
सफ़ेद गुबारा.


***दारू***


पीणु-पिलाणु
लड़णु-झगडणु
बकणु-बहकणु
लटगिणु-फरकिणु
निकमी गाळी
गन्दी नाळी
अर
 खीसा खाली.

     डॉ नरेन्द्र गौनियाल..सर्वाधिकार सुरक्षित

 

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