Author Topic: Burninig Issues of Uttarakhand Hills- पहाड़ के विकास ज्वलन्तशील मुद्दे  (Read 18456 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
1 hr · Edited ·

बल हर दा,

आखिर आपने भी अंदरखाने से मान ही लिया है कि आपकी सरकार के कामकाज से जनता खुश नहीं है, और यह हकीकत भी है कि राज्य सरकार के अब तक कामकाज से यह निश्चित है कि 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आप दुबारा सत्ता में आ पायें ! क्योंकि विस्वसनीयता का मामला अब धीरे धीरे पैठ खोता जा रहा है !

खैर हम ग्याडू तो मान ही रहे थे कि सरकार के अब लिए गए किसी भी फैसले से जनता में आपके राज काज को लेकर कोई खास उत्साह नहीं है, आपके भेदिये भी आपकों यह खबर दे ही रहे होंगे, अगर नहीं दे रहे हैं तो फिर वे जरुर आपको चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं !

बल दीदा, आप मुख्यमंत्री बने तो शायद कुछ ग्याडूओं को आस थी कि आप कुछ खास करेंगे जो सुशासन को तरसती जनता के लिए रामबाण होगी, लेकिन जैसे जैसे वक्त बीतता जा रहा है, जनता में एक बैचेनी सी घार कर रही है ! और करे भी क्यों न ?

मामला चाहे राजनैतिक फैसलों का हो या अफसरशाही पर लगाम कसने का, आप दोनों ही स्तर पर नाकाम ही रहें है ! राज्य की पत्रकार तथा जागरूक बिरादरी जो शासन की घटनाओं को बहुत नजदीक से देखती हैं, को उम्मीद थी कि आपके आने से अफसरशाही पर लगाम कसी जायेगी, लेकिन वे भी अब नाउम्मीद है ! आपके अब तक के शासन काल में भ्रष्ट अफसरों की मौज ही रही, मामला चाहे राकेश शर्मा या हरीचंद्र सेमवाल का हो या फिर अपनी ईमानदार छवि के लिएय पहचाने जाने वाले श्रीधर बाबू अन्दाकी या फिर एन० के० शर्मा का ! प्रशासनिक अफसरशाही की अराजकता का पिछले 14 साल का तिलिस्म अभी बरकरार ही है, और लगता नहीं कि आप इसे तोड़ पाओगे !

परसों केबिनेट में लिए गए फैसलों ने तो अब यह पुख्ता ही कर दिया है कि जो बात आप राज्य के विकास के संदर्भ में कहा करते थे, वो केवल मात्र कहने भर को ही थी, आप भी वही रणनीति अपना रहे है जो "चोर को कहे चोरी कर और साहूकार को कहे जगता रह" की होती है !

दीदा मैं तो इतना ही कह सकता हूँ, आपको कुर्सी के अगले ढाई साल मुबारक, मौक़ा लगा तो नये बंगले में ही मुलाक़ात की जायेगी !
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
August 12 · Edited
बल हरदा,

सरकार के समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव तथा सरकार में नए नये बने अपर मुख्य सचिव एस० राजू इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता को किस पैमाने से नापते है ये तो वे ही बेहतर जाने ?

उनके बारे में सुना था कि ये बहुत ही समझदार और काबिल अफसर हैं, लेकिन पता नहीं क्यों समाज कल्याण विभाग में अपने आज तक के लिए गए निर्णयों के लिए मुझे ये किसी सामान्य बुद्धि के अफसर भी नहीं लगे !

यकीन नहीं आ रहा है ना, मुझे भी नहीं हुआ था, लेकिन जब से सूचना अधिकार में प्राप्त में कुछ फईलो की टीपों और निर्णयों को पढ़ रहा हूँ तो समझ में आ रहा है कि क्यों उत्तराखण्ड मंत्रियों और उनके मुंह लगे भ्रष्ट अफसरों की चारागाह बना हुआ है !

उम्मीद करता हूँ, आप आज की प्रेस की कांफ्रेस में देहरादून में बैठे मंत्री-संतरियों के मुंह लगे इन छुट्टे सांडो पर लगाम लगाने के लिए भी कुछ कड़वे निर्णय लेने की घोषणा तो आप कर ही दोगे l

ये अफसर वे है जो जब चाहे, जहाँ चाहे, मुंह मार आते हैं, इन्हें अपनी ठाण में चरने में उतना मजा नहीं आता जितना दुसरों का हक़ खाने में आता है और हद तो तब होती है जब ये अपने कुकर्मों का इल्जाम बैलों पर लगा देते हैं, जो दिन रात मेहनत भी करते हैं और सजा भी पाते है !

बल हर दा, ये उत्तराखण्ड में ही संभव है कि एक जूनियर अधिकारी अपने से 14 साल सीनीयर अधिकारी का बगैर लोकसेवा आयोग में जाये बॉस बन जाये......

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
August 11 · Edited
बल हर दा,

आज की प्रेस कांफ्रेस में आपका बयान सूना, आप कह रहे थे कि राज्य की जनता को कड़वी दवा पीने को तैयार रहना चाहिए ! काश आप यह भी बता पाते कि ये कड़वे घूँट हर बार जनता के हिस्से ही क्यों आते हैं ?

राज्य का एक आम नागरिक होने के नाते मैं भी राज्य के उन तमाम आम नागरिकों के साथ राज्य स्थापना के दिन से ही कड़वा घूँट पीने को अभिशप्त रहा हूँ, और महसूस कर रहा हूँ कि इन तेरह सालों में हम ग्याडूओं के हिस्से में सरकारों ने केवल कड़वे घूँट ही रख छोड़े हैं ! आपका राज आया तो सोचा एक जमीनी नेता इन साल दर साल के कड़वे घूँटो से निजात तो दिलाएगा ही, लेकिन ये क्या आप भी छ: महीने में ही थक गये ?

बल दीदा, आप जमीन से जुड़े हुए नेता है, आपने भी राजनीति में बहुत से कड़वे घूँट पीये थे, अब जाकर कुछ मनवांछित फल पाया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि आपके रहते हम ग्याडूओं को कड़वे घूँट पीने से मुक्ति मिल ही जायेगी, थोड़ी हम ग्याडूओं के अरमान भी समझने का प्रयास करो, हमारी भी इच्छा थी कि आप आये हो तो राज में बैठे देवतुल्य मंत्री संतरी भी कुछ कड़वे घूँट पीयेंगे !

क्या जमीनी नेता के राज में अब कड़वे घूँट पीने की बारी आपके मंत्रियों-विधायकों और अफसरों की नहीं है ? राज्य की बिगड़ी माली हालात के चलते क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ? अगर नहीं बनती है तो हम ग्याडू उत्तराखण्ड को अपनी नीयती मानकर कड़वा घूँट पी ही लेते हैं !

अगर आप अपनी सरकार की थोड़ी बहुत भी जिम्मेदारी मानते हैं तो फिर कल ही घोषणा कर दीजिये कि आगे से आपके विधायक मंत्री कोई वेतन भत्ते नहीं लेंगे ? आपके मंत्री भी अपने स्वयं के व्यक्तिगत घर में ही रहेंगे, वे अब सरकारी कोठियों का मोह त्याग देंगे, अपनी व्यक्तिगत गाड़ियों के रहते सरकारी गाड़ियों का उपयोग नहीं करेंगे ? अब वे हेलिकॉप्टर का प्रयोग तो कतई नहीं करेंगे, राज्य का दौरा अब वे कारों से ही करेंगे ? उनकी भारी भरकम सरकारी गाड़ियों को अब सार्वजनिक बोली में नीलाम कर दिया जाएगा, जिससे अच्छा दाम भी सरकार को मिल जाएगा ?

आगे से अब मंत्री विधायक बीमार पड़ने पर विदेशों में इलाज कराने के बजाय राज्य के ही सरकारी अस्पतालों में अपना व् अपने परिजनों का इलाज करवाएंगे ! आपके द्वारा राज्य के खजाने पर अनावश्यक रूप से बोझ बनाये सभी संसदीय सचिवों के पद भी खत्म कर दिए जायेंगे ? रिटायरमेंट के बाद सरकार में विभिन्न पदों पर पिस्सुओं की तरह चिपके रिटायर अफसरों को घर का रास्ता दिखाया जायेगा ? विधायकों की पेंशन भी आप खत्म कर ही दोगे ? राज्य के खजाने पर भार बने पूर्व मुख्यमंत्रियों की सभी सुविधायें भी आप खत्म कर ही दोगे ? कल से विधायकों-मंत्रियों के आगे पीछे च्यांय-प्यांय करती अनावश्यक रूप से दौड़ने वाली पुलिस की गाड़ियां भी नहीं होंगी ?

बल दीदा, आप से ज्यादा की उम्मीद तो नहीं है बस इतना ही कर दोगे तो हम ग्याडू कोइ भी कड़वा घूँट पीने को तैयार हैं ?

कितना अच्छा होता कि देहरादून में बैठकर आप हम ग्याडूओं की बात सुन पाते ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
August 11 · Edited
आखिर ये कड़े फैसले कैसे होते हैं ?

न जाने वह दिन कब आयेगा, जब सरकारी तंत्र को जवाबदेह और कर्तव्यनिष्ठ बनाये जाने के लिए कड़े फैसले असल रूप से अमल में लाये जायेंगे ? राज्य की जनता के दुर्भाग्य से पिछले 14 सालों में उत्तराखण्ड की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस-भाजपा की सरकारों ने प्रदेश की खैरख्वाह होने की बातें तो की, और दावे और वादे भी बहुत किये, लेकिन जब कड़े फैसलों को बुनियादी तौर पर धरातल पर उतारने की बारी आई, तभी वर्तमान सहित सभी सरकारों की हवा निकल गयी !

फिर भी यदा कदा यदि कोई अफसर सरकार के मुखिया द्वारा दिए गए बयान के आधार पर कार्यालयों में व्याप्त अव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने की कवायद करता भी है तो खुद सरकार के राजनैतिक मुखिया ही उन्हें कदम वापस खींचने को मजबूर कर देते हैं, जाहिर है कि जिस अफसर ने आदेश जारी किए थे, उन्हें भारी मन से उसे वापस लेना पड़ता अगर वह अपनी बात पर अड़ा रहता है तो उसे असमय ट्रांसफर जैसी जलालत भी झेलनी पडती है । अब तक सरकार ने अच्छे काम करने वाले किसी भी अधिकरी की पीठ थपथापाई हो कम ही देखने में आया है, हाँ जनहित के काम करने वाले अधिकारियों ने बे बुनियाद आरोपों के आधार पर निलम्बन जैसी जलालत बहुत सही है इस बात में शायद उत्तराखण्ड दूसरे राज्यों का रिकॉर्ड तोड़ देगा !

राज्य में ऐसा कई बार हुआ है, ऐसे में इन अफसरों के पास व्यक्तिगत फजीहत झेलने के सिवा और कुछ नहीं होता है, सचिवालय प्रकरण और डीएम देहरादून के आदेशों को भी इसी परिप्रेक्ष में देखा जाना चाहिए ! ये बात अब पुष्ट होती दिख रही है कि कतिपय अफसर अगर व्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास करेंगे भी तो इस बात कोई गारंटी नहीं कि उन्हें दबाव में पांव पीछे नहीं खींचने पड़ेंगे । सच्चाई यह है कि एक तरफ सरकार व्यवस्था बनाने की बात करती है और दूसरी तरफ अपने फैसलों को बगैर आगा पीछे सोचे उलट देती है ।

राज्य में धीरे धीरे यह परिपाटी बनने जा रही है कि भविष्य में अफसर अब विभागीय मंत्रियों और मुख्यमंत्री के आदेशों को कभी गंभीरता से नहीं लेंगे,मंत्रियों और मुख्यमंत्री के आदेश की असल जगह अब फाईल नहीं डस्टबीन होगी,क्योंकि प्रशासन में बैठे वरिष्ठ अफसरों को पता है कि कमजोर और लुंजपुंज राजनैतिक नेतृत्व कब अपने आदेशों से पलटी मार जाये इसका कोई भरोषा नहीं, तो अपना नाम आगे कर क्यों सहकर्मियों और जनता के बीच किरकिरी करवाई जाये ?

लगता है इस प्रदेश की नियति ही यह बन गयी है कि नेता-अफसर अपने में मस्त, जनता राम भरोषे ! कभी कभी लगता है विजय बहुगुणा ने ठीक ही कहा था कि संकट के समय राज्य की जनता को मदद की बाट जोहने के बजाय भजन करने चाहिए, जब राज्य के हालात ऐसे हो तो इससे बेहतर और किया भी क्या जा सकता है ?

फिर भी राज्य के मुख्यमंत्री हरीश रावत कड़े फैसले लेने को कह रहे हैं तो विश्वास करने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री के दिए बयान की भी कोई अहमियत होती है, लेकिन यह देखना होगा कि मुख्यमंत्री के कड़े फैसलों की गाज किन अधिकारियों पर गिरती हैं, क्योंकि अब तक इतिहास रहा है कि राज्य में ईमानदार और कर्मठ अफसर ही कड़े फैसलों से प्रताड़ित हुए हैं, बेईमानों ने तब भी मौज ही काटी है ! विभागीय प्रमुख सचिवों ने मुख्यमंत्री के आदेशों की आड़ में व्यक्तिगत खुन्नसों को ज्यादा तरजीह दी है, राज्य हितों को कम ?

उम्मीद कर करें इस बार ऐसा नहीं होगा....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
August 10 · Edited
रक्षा बंधन के मायने !

अब यह पर्व भी पता नहीं क्यों प्रतीकात्मक और बाजार का शिकार हुआ जा रहा है,मुझे यह भावनाओं का पर्व कम, अब दिखावा ज्यादा लगने लगा है, हो सकता अभी भी कई लोग इसे भावनाओं को मजबूत करने वाला पर्व मानते हों, लेकिन मेरा मानना है की भावनाओं को मजबूती के लिए किसी खरीदे गए तागे या बहुमूल्य राखी की जरुरत नहीं होती, क्योंकि भावनायें तो अनमोल होती है !

इस पर्व पर मुझे उन बहनों के रवैय्ये पर भी सख्त एतराज है जो खुद तो पर्याप्त रूप से सुरक्षित हैं, मगर अपने चौतरफा असुरक्षित दूसरी बहनों की सुरक्षा के प्रति बेहद असंवेदनशील हैं, और अपनी मित्र मंडली में उनकी बेचारगी पर ताने मारने से भी नहीं चूकती । ये बहनें अपने पर थोड़ा संकट आने पर आस पास की किसी बहन का जीवन तो छोड़ो वे अपनी सगी बहन के जीवन को भी दांव पर लगा देती है !

मुझे उन तमाम बैगरत भाइयों से भी बहुत नफरत है, जो पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अपने निजी स्वार्थ और हितों के बदले ससुराल में पिट रही, या पूर्व में पिटती रही अपनी बहन को बचाना तो दूर रहा उलटे बहन के जीवन, मान सम्मान तथा हितों की भी दलाली कर जाते हैं, और जब बहन शिकायत करे तो उलटे उसे अपने पति और उसके परिवार से समझोते के लिए तैयार करते है !

मुझ नाज है उन भाई और बहनों पर जो समाज में भाई और बहन के हितों को संरक्षित रखने के लिए दलाली के बजाय अपना सर्वस्व त्यागने को हमेशा तत्पर रहते हैं, अब समाज उन्हें गाली दे या मौत ऐसा समाज मेरे ठेंगे पर ! दौलत तो फिर भी आ जायेगी, रिश्ते कैसे आयेंगे ?

पढ़ रहे हो ना समाज के ठेकेदारों, बहन-बेटियों की दलाली कर अपने हितों को साधने वालो, ये पोस्ट याद रखना जब तुम्हारी बहन-बेटी जान से जायेगी, उस दिन तुम्हे मेरी बात जरुर याद आयेगी,, काश बहनें भी रक्षाबंधन का सही अर्थ समझ पाती और उस भाई और बहन के रिश्ते की असलियत को पहचान पाती, जो अपने स्वयं के हितों को संरक्षित रखने के लिए अपनी पीडीत बहन के हितों को भी दांव पर लगाने से नहीं चुके ?

क्या ये दुनियां ऐसे ही रिश्तों पर चलती रहेगी, क्या बहन हमेशा ठगी जायेगी ?

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चन्द्रशेखर करगेती
August 9
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी !

सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ,
अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी !

हर तरफ़ भागते दौडते रास्ते,
हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी !

रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ,
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी !

ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र,
आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी !

लाजवाब - निदा फाजली

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अँधेरे में रोशनी तलाशता एक शिक्षक.......
सरकारी मदद की आस छोडी, देखने की क्षमता गवाँ चुकी छात्रा पर लगा दिया सब कुछ.......

स्कूल में शिक्षक की नौकरी तो सभी करते हैं, लेकिन अध्यापन के साथ सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले बिरले ही होते हैं । ऐसी ही एक मिसाल पेश की है कि सुदूर पिथौरागढ़ जिले के एक स्कूल में तैनात शिक्षक रवि बगोटी ने । बगोटी ने स्कूल की ही एक छात्रा रबीना की आंखों में रोशनी भरने का बीड़ा उठाया है । पिछले करीब सात महीने से वे सरकारी सिस्टम के अंधेरे से मुठभेड़ करते रहे । पर उम्मीद नहीं बंध सकी । सरकारी मदद की आस छोड़ी और खुद ही उजाले की राह बनाने की जद्दोजहद में जुट गए । अब कहीं जाकर निराशा का अंधेरा उतर रहा है । सोशल मीडिया पर छेड़ा गया उनका कंपेन असर दिखाने लगा है । कारवां बढ़ रहा है और मदद के लिए हाथ उठ रहे हैं । एम्स ने रबीना की रोशनी लौटाने की कीमत एक लाख रुपये लगाई है । रबीना के माता-पिता इतने गरीब हैं कि उनके लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करना ही महाभारत है । इलाज का सारा दारोमदार संवेदनाओं पर टिका है । इन्हीं संवेदनाओं ने शिक्षक बगोटी और उन जैसे संवेदनशील शिक्षकों को इस अभियान को चलाने की प्रेरणा दी है । आम तौर पर जिस पहाड़ में शिक्षकों के बारे में ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर चर्चाएं होती हैं वहां बगोटी सरीखे शिक्षक अपने होने की अलग और अनूठी वजह पेश करते हैं ।

अंधेरे को अपनी नियति मान चुकी एक छात्रा में रोशनी की आस जगा रवि बगोटी बेहद पॉजिटिव हैं । राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चौखाल मुनाकोट में तैनात ये शिक्षक कहता है,पहले दिन से ही ठान लिया था कि रबीना की आंखों को अच्छा करके ही दम लूंगा । सिस्टम की भूलभुलैया ने कई बार तोड़ने की कोशिश की, लेकिन साथियों ने सहारा दिया । रबीना की आंखें ठीक होंगी तो अगला अभियान उसकी दो अन्य बहनों के लिए छेड़ंगा । दरअसल, गरीब परिवार की रबीना की पांच बहनें हैं जिनमें से दो और बहनों की रोशनी इलाज के अभाव में तकरीबन पूरी तरह जा चुकी है । बगोटी कहते हैं, रबीना को पढ़ने के लिए पुस्तक को आंखों से लगभग सटाना पड़ता है । जिस तरह से वो शब्दों को पढ़ने के लिए संघर्ष करती है, वो देखना बहुत पीड़ादायक होता है । मैंने उसी दिन से ठान लिया कि उसकी आंखों का इलाज कराने की कोशिश करूंगा ।

एक चिकित्सक डॉ. राजेन्द्र तिवारी को दिखाया । उनकी सलाह पर रबीना को पिथौरागढ़ अस्पताल ले गए । वहां से हल्द्वानी पहुंचे । जहां चिकित्सक ने कॉर्निया रिप्लेसमेंट करने का सुझाव दिया । डॉक्टर साहब ने एम्स में बात भी कर ली । लेकिन इलाज का खर्च एक लाख रुपये था । साथी शिक्षकों के वित्तीय सहयोग से रबीना को जहां-जहां हो सकता था वहां-वहां दिखाया । इस दौरान ये सुझाव आया कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत रबीना का मुफ्त इलाज हो सकता है । लेकिन देहरादून पहुंचने पर अधिकारियों ने बताया कि कॉर्निया का इलाज योजना में शामिल ही नहीं है। इस सारी दौड़-भाग में सात महीने निकल गए । इस जद्दोजहद से एक सरकारी शिक्षक का सरकारी सिस्टम से भी भरोसा टूट गया । आखिरकार उन्होंने सहयोग के लिए सोशल मीडिया पर कंपेन शुरू किया। फेसबुक व व्हाट्स एप पर छेड़ा गया ये अभियान असर दिखाने लगा है । मदद के लिए हाथ उठे हैं । दिल्ली से गीता सौन नाम की एक महिला ने एम्स में एप्वाइंटमेंट भी फिक्स करा दिया । सोमवार को एम्स में रबीना का चेकअप होगा । लेकिन ये अभी आधी जंग है। पूरी जंग तभी पूरी होगी जब रबीना अपनी आंखों से देख पाएगी ।

सलाम है रवि बगौटी के सरोकारों को, काश शिक्षक संघों के पदों पर नजर गडाये शिक्षक नेता भी ऐसे उदाहरण दे पाते.....

साभार : दैनिक जनवाणी में Rakesh Khanduri की रिपोर्ट

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Mahi Singh Mehta 
 

बेरोजगारो की कुटाई करना हरीश रावत जी के सरकार के अब आम बात हो गयी! हफ्ते दो हफ्ते में बेरोजगारो की कुटाई की जाती है उत्तराखंड में
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'नौकरी मांगी तो पहले हुई पिटाई, फिर दी दवाई

शिक्षकों की भर्ती में पद बढ़ाने की मांग को लेकर सचिवालय कूच करते बीएड टीईटी प्रशिक्षित बेरोजगारों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। इसमें 12 से अधिक बेरोजगार घायल हो गए, जिन्हें कोरोनेशन अस्पताल पहुंचाया गया। पुलिस ने बेरोजगारों के जुलूस को सचिवालय से पहले ही बैरिकेडिंग लगाकार रोक लिया। बेरोजगारों के बैरिकेडिंग को पार करने की कोशिश की तो पुलिस ने लाठियां बरसानी शुरू कर दी। (amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बल हर दा,
जनता से जुड़े फरमानों की ही दुर्गति क्यों ?

पूरे देश में उत्तराखंड को लेकर ये धारणा बन चुकी है कि यहां कुछ भी संभव है । ये वो प्रदेश है जहां 10 साल में पांच-पांच प्रमोशन हो जाते हैं । कभी तख्तापलट हो सकता है । हड़तालों और आंदोलनों के नए कीर्तिमान बन सकते हैं । सरकार में पैठ है तो कत्ल का मुजरिम जेल की सलाखों से बाहर आ सकता है ।

मगर जब मसला बेरोजगारों को रोजगार देने से जुड़ा हो, अस्पताल में डॉक्टरों की तैनाती का हो, दूर गाँव के स्कूलों में शिक्षक भेजने का हो, गांवों को सड़कों से जोड़ने का हो तो इन तमाम मुद्दों की फाइल सत्ता की टेबल पर गोल-गोल घूम कर कहां गुम हो जाती है, कोई नहीं जानता । हद तो ये कि राज्य के मुख्य सचिव एक फैसला करते हैं और उसे दो दिन लागू करने का फरमान सुनाते हैं और सवा दो महीने तक ये फरमान सचिवालय में टहलता रहता है । आखिर जनता से जुड़े फरमानों की ही ऐसी दुर्गति क्यों होती है ?

बहुत से फरमान जिनका सीधा संबंध आम जनता के जीवन और आवश्यकताओं से होता है, उनको मंजूरी दिए जाने की फाईलें सचिवालय के अनुभागो में बैठे समीक्षा अधिकारियों से लेकर अपर सचिव की टीपों से भरकर मंजूरी की आस में बस ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चढाई चढती रहती हैं, उसे समयबद्ध मंजूरी नहीं मिल पाती है । अगर मामला खनन के पट्टे का हो, स्टोन क्रशर की मंजूरी का हो, आबकारी नीति में खेल का हो, जमीनों के सौदे का हो, लैंडयूज चैंज का, मास्टर प्लान में बिल्डर को फायदा देने का हो तो सचिवालय से फरमान रातोंरात जारी हो जाते हैं !

मसला सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है । विभागों में अपनों के प्रमोशन कब हो जाते हैं, तरक्की की राह खोलने के लिए नए पदों का कब सृजन हो जाता है, पात्र लोगो को इसकी खबर भी नहीं लगती । सचिवालय में बैठे बाबु से लेकर अफसर तक जब कथित गेम से जुड़े मसलों को निपटाने में तेजी दिखा सकता है तो जाहिर है कि अगर वो चाहे तो उनका रुख जनता से जुड़े मुद्दों पर भी उतना फास्ट हो सकता है । मगर ये सब तभी मुमकिन है जब विभागीय मंत्री और बड़े साहब ऐसा चाहने लगेंगे । ये कड़वी सच्चाई है कि तमाम हुक्मरान सब जानते हैं, मगर सिस्टम मायाजाल के वे भी गुलाम हो चुके हैं ।

बल दीदा, हम ग्याडूओं के धीरे धीरे अब समझ में आ रहा है, नौछमी और कमीशन की मीट भात के बाद इस राज्य में पकने को और भी बहुत कुछ बचा हुआ है,जिसे इन दिनों आप और आपकी टीम पका रही है, समय के साथ यह पका हुआ तो बाहर आएगा ही......

साभार : दैनिक जनवाणी में Rakesh Khanduri की रिपोर्ट से

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चन्द्रशेखर करगेती
11 hrs · Edited ·

आप समझ रहें हैं ना, प्रशासनिक अराजकता का राज्य बनता जा रहा है उत्तराखण्ड !!

कल विधनसभा में प्रश्नकाल के दौरान प्रदेश के राजस्व एवं भू प्रबंधन विभाग की जमकर पोल खुली । इसे उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि पिछले चौदह वर्षों में किसी भी मुख्यमंत्री एंव राजस्व मंत्री रहे राजनेताओं में इतनी प्रशासनिक समझ नही थी कि राजस्व महकमे जैसे महत्व महकमे के मर्ज को समझ पाते, अगर सच में ही अगर कोई लायक रहा होता तो पुरे राज्य में नायब तहसीलदारों और तहसीलदारों के करीब 85 फीसदी नियमित पद रिक्त नही होते l

यह गौरतलब है कि राज्य का नब्बे फीसदी हिस्सा पहाड़ी है और पहाड़ों में अपराध नियंत्रण के साथ-साथ भू प्रबंधन का जिम्मा देख रहे लेखपालों के भी पुरे राज्य में लगभग 50 फीसदी से अधिक पद खाली हैं । यह ताज्जुब की बात है कि बीते आठ वर्षों में इनकी भर्ती के लिए किसी भी सरकार ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किये और ना ही वर्तमान सरकार इस दशा में प्रयासरत है ।

बुधवार को विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान सत्ता पक्ष के ही विधायक ललित फर्स्वाण की ओर से तहसीलदार और नायब तहसीलदारों के रिक्त पदों और उनकी तैनाती को लेकर पूछे गए प्रश्न पर सरकार से जवाब देते नही बना ।

यह राज्य के वर्तमान राजस्व मंत्री यशपाल आर्य और प्रमुख सचिव राजस्व का नकारापन ही है कि वर्तमान में पुरे प्रदेश में नायब तहसीलदारों के 132 सृजित पदों के सापेक्ष केवल मात्र 22 नायब तहसीलदार ही तैनात हैं, तहसीलदारों के 103 सृजित पदों के सापेक्ष केवल मात्र 19 ही तैनात हैं ।

यही हाल मुख्यमंत्री हरीश रावत और अपर मुख्य सचिव एस० राजू के नेतृत्व वाले समाज कल्याण विभाग का भी है, पुरे राज्य में जहाँ वर्तमान में 13 पूर्ण कालिक समाज कल्याण अधिकारी होने चाहिए थे, जिनके द्वारा जिला कार्यालयों का सञ्चालन किया जाना था, लेकिन राज्य निर्माण की तिथी से लेकर वर्तमान तक राज्य के किसी भी एक जिले में एक भी नये पूर्णकालीक जिला समाज कल्याण अधिकारी तैनात नहीं हुई है l

आज राज्य की 80 फीसदी जनता को लाभान्वित करने वाले समाज कल्याण विभाग के जिला कार्यालय नेताओं और अफसरों के चहेते नकारा एंव ग्राम पंचायत स्तर क तृतीय श्रेणी के कर्मिकों के कब्जे में हैं,जिन्हें अवैधानिक रूप से आहरण वितरण अधिकार भी अपर मुख्य सचिव एस० राजू द्वारा दिए गये हैं, जिनके चलते विभाग द्वारा रज्य की गरीब जनता को लाभान्वित करने हेतु केन्द्र व राज्य वित्त पोषित योजनाओं में नित नये-नये घोटालों की खबरें सामने आती जा रही है l

समाज कल्याण विभाग में प्रशानिक अराजकता का आलम यह है कि जूनियर अधिकारी नेताओं और अफसरों से मिलीभगत कर विभाग के उच्च पदों पर आसीन है और सीनीयर अधिकारी या तो घर बैठे हैं या फिर निम्न स्तर पर कार्य करने को मजबूर है, और यह सब ‪#‎हरीशरावत‬ की सरकार में हो रहा है जिन्हें हर समय जमीनी राजनेता कह कर प्रचारित किया जाता रहा है !

अब #हरीशरावत सरीखे जमीनी राजनेता के नेतृत्व में प्रदेश की जनता से सीधे रूप से जुड़े विभागों में ऐसी मनमानी और प्रशासनिक अराजकता हो तो समझा जा सकता है ‪#‎उत्तराखण्ड‬ किस गर्त की और जा रहा है, और सीधे-सीधे जनता का गुनहगार कौन है ??

 

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