Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 58228 times)

Bhishma Kukreti

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आंखुं  दोष दूर करणो अंजन व्याख्या

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  १३  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ४१   
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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(आँख अग्नि रूप च इलै आंख्युं तै सरैलौ  दोष  वात , पित्त अर कफ से भय बण्युं  रौंद।  विशेषकर कफ से )
सौवीरांजन प्रतिदिन आंख्युं  पर लगाण  चयेंद किलैकि यु आंख्युं कुण  हितकारी च ।   ये से आंख्युं तेजौ रक्छा  हूंदी ,येसे  आंखुं  दोष दूर नि हूंद।  आंख्युं  दोष दूर करणो अर आंखुं पाणी  दोष दूर करणो कुण  पांच अठौं  राति बलबल की अपेक्षा से रसांजन रातम प्रयोग करण  चयेंद।  १३ । 
आँख तेजोमय छन वूं  तैं  कफ से भय हूंद। इलै दिनम  तीक्ष्ण अंजन प्रयोग नि करण  चयेंद। तीक्ष्णांजन से दृष्टि दुर्बल ह्वे जांद। इलै सूरज तै नि सुहांदी
श्लेष्मा क निकळणो उपरान्त श्लेष्मा घटाण वळ  अर आंखुं  तै स्वच्छ करण वळ प्रयोग करण  चयेंद। जै प्रकार से धूळ  आदि ह्यूयं स्वर्ण मैलो हूंद तो तेल , वस्त्र आदि घुसण  से स्वर्ण  स्वच्छ  ह्वे जांद ऊनि मनिखौं आँख स्रोतांजन से निर्म्मल (वात  आदि से दूर ) आँख अगास तरां  चमकण लग जांद। १४ से १७ ।

 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

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धूम्रपान वैदकी भाग - १

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत)
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  १८  बिटेन  -३०  तक
  अनुवाद भाग -   ४२
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  (अनुवादम ईरानी, इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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धूम्रप्रयोग  विधि -
मेहंदी बीज,प्रियंगु पुष्प,काळो जीरो,नाग केशर,नखी,नेत्रबाला,सफेद चंदन , तेजपात,दालचीनी,छुटि इलैची,खस, पद्माक,ध्यामक,मुलैठी,जटामासी,गूगल,अगर,शक़्कर,बड़ छाल (बक्कल ) ,गूलर छाल, पिलखन छाल, लोध छाल,जल मस्ट , राल,नागरमोथा, शैलेय,कमल केशर,श्रीवेटक , शल्लकी,शुकबयी, सब तै पाणी दगड़  पीसिक  आठ  अंगुळ  लम्बी बत्ती  बणाइक  सरकंडा म सुखाण।  फिर बत्ती  तै घीम मिलैक नित्य दिन धूम्र पान करण  चयेंद। १८ -२२ ।
चर्बी, घी,माँ , तै जीवननीय गणों दगड़  मिलैक बत्ती बणै क रुक्ष व्यक्ति धूम्रपान कारो।  यु धूम्रपान नित्य दिन लैक  नी  च। २३ । 
 शिरम अवरुद्ध कफ दूर करणो  धूम्रपान -
अपराजिता,मालकंगनी,हरताल,मैन सिल,अगरु , कुष्ट,तगर, पत्रज,  पाणी  दगड़ पीसिक  बत्ती बणै सुखाई क धूम्र पान करण  चयेंद।  यु धूम्रपान शिरोविरेचन का वास्ता विरेचनिक धूम च। २४ । 
 धूम्रपान गुण -
सिरौ भारीपन , मूंडरू,सरवेदना, नाक भीतर सूजन,अधकपाळी, कन्दू ड़ पीड़ा,आंख्युं दुखण,हिक्का,स्वास, दमा,स्वरभंग,दांतों दुर्बलता, कन्दूड़ -आंख -नाक बगण ,नाक -मुख बिटेन दुर्गंध आण, दांत दुखण ,भोजन से अरुचि, जिवडु / दांत जकड़न, गौळ जकड़न,कण्डू (इना उना  नि  हल सकण ),खज्जी , मुख पर पीलोपन ,बाळू झड़न , बालुं  लाल हूण , अति छिंकण ,  अळगस, बुद्धिजड़, मूर्छा, अति नींद आण आदि  धूम्रपान  से भला ह्वे जांदन।  बाळ, सर की हड्डी,आँख,कंदूड़ ,स्वर , गौळ तै बल मिल्दो। 
बलवान  तै बी  बि वात , कफ से उत्तपन्न रोग -गौळ  से मथि , आंख , कान , नाक,  मुख , गौळ भितर , मुख  , मुंड संबंधी रोग  नि  हो का वास्ता धूम्रपान करण  चयेंद।   मुख से धूम्रपान  लीण  चयेंद अर नाक से भैर गडण  चयेंद।२५ -३० । 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


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धूम्रपानौ आठ काल , लक्षण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय , ३१   बिटेन  - ३६  तक
  अनुवाद भाग -   ४३
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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मुख से धुंवापान  का समय  ब्रह्मा  श्रीन  बुल्यां  छन किलैकि यूं समौ  वात  अर  कफ प्रकोप दिखे जांद।  हौर समौ इथगा प्रकोप नि  दिखे जांद -
नयाणो उपरान्त, भोजन करणो उपरान्त , छिंकणो उपरान्त नाक , जीब साफ़ करणो परान्त, नस्य नसावर ) लेका , अंजन लीणो उपरान्त , मन जब पुळ्याणु हो , बिजण पर धूम्र पान लीण चयेंद।  ये प्रकार से  गौळ  से मथि वातजन्य अर कफजन्य रोग नि हूंदन। 
शीत गुणो कारण वायु कुपित हो त वातजन्य व्याधि  हूंदन।  इन अवस्था म स्नेहिक (घी जन मुलैम  ) धुंवा लीण  चयेंद  . जब सरैल रखो हो तो  रुखो हर्ता    स्नेहिक धुंवा लीण  चयेंद।  कफ तब हूंद जब सरैल म रुखा का आभाव हूंद।  इलै कफ नाशौ  बान वैरेचनिक  धुंवा लीण  चयेंद।  तीन प्रकारौ  धूम्रपान म नौ   घूँट सीमित करे गेन  अर्थात धूम्रपान म  नौ घूंट  से अधिक घूंट  नि  लीण  चयेंद। ३१-३३ । 
 उन त  धूम्र पान समय आठ बताये  गेन, तथापि बुद्धिमान तै अपण स्राईलो दोष वृद्धि, क्षय आदि विचार कौरिक  द्वी समय ही धूम्र पान लीण चयेंद।  स्नेहिक धुंवा दिनम एक समय, वैरेचिक धूम्रपान  तीन या चार दैं  इ लीण चयेंद बिंदी ना।  ३४। 
  सम्य धूम्रपाना  लक्छ्ण   -
हृदय /छाती , गौळ ,गौळौ मथ्या भाग , इन्द्रियां (आंख , नाक , कंदूड़ ) म स्वछता कु आभास हूण , मुंड हळको लगण , , दोष- वात , पित्त , कफ जनित दोषों शान्ति कुण यी सम्यक प्रकार से पियों धुंवा का लक्षण छन।  ३५। 
 बिंडी धूम्रपानौ लक्छण -
बैरो हूण , काणों या हीन दिखेण , गूंगापन , स्वर भेद वृद्धि या जीब से नि बुलेण , रक्तपित्त  विकार ,भरम ,  रिंग उठण  , यी उचित समय पर धूम्रपान नि करण  या बिंडी मात्रा म धूम्रपान लीण से हूंदन।  ३६। 


*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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Bhishma Kukreti

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    धूम्रपान कब कब वर्जित च

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ३७  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ४४
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बिंडि  धूम्रपान से उत्प्न्न   बिकारों चिकित्सा
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बिंडी  धूमपरपानै  स्थिति म घी पिलाण अच्छा च।  नाक म नतस्य , आँखोंम अंजन लगाण  चयेंद अर संतर्पण करण वळ स्निग्ध्द कर्म करण  चएंदन।  पित्तक कारण जख रक्त दोष ह्वावो उख शीतल चिकित्सा, शीतल स्पर्श , शीत शक्ति से बण्या द्रव्यों  से बणी औषधि, नकसीर /नस्य,अंजन , आदि  कार्य करे जाण चयेंद।  श्लेष्म प्रधान (सींप प्रधान ) पित्ते  अवस्था म रुक्ष गुण वळ द्रव्यों से नस्य व अंजन करण  चयेंद।  ३७-३८ । 
कौं कौं  पुरुषों कुण  धूम्रपान निषेध च
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 विरक्त विरेचन लियूं  हो , रूखो  या स्नेह वस्ति कर्म लियुं हो , रक्त दोष वळ, विषन पीड़ित हो , शोकातुर मनिख, गर्भणी, थक्यूं, नशा म हो , जु अजीर्णवस्था हो ,  जै रातम निंद नि आंद हो , बेहोश हो , जै तै रिंग लगणी हो , तिस्या, धातु क्षय कारण हीन  हो , क्षत रोगी , शराब पियूं हो , दूध पियूं हो , घी तेल पियूं  हो , शहद खायुं हो , दै दगड़  चौंळ खयां  होवन , रोष म हो , गौळ सुख्युं हो , आंखम  तिमिर रोग हो ,  सर पर चोट हो , शंखक रोग हो , रोहणी रोग (डिप्थेरिया ) हो , प्रमेह , मद्यपान, आदि अवस्थाओं म धूम्रपान नि करण चयेंद।   जु   क्वी अज्ञान वश धूम्रपान कारो तो धूम्रपान से कुपित वात दोष अर रोग बढ़ जांदन।  दगड़म मथ्याक रोग हौर  बढ़ जांदन अर अकाळ  म इ रोगी ह्वे जांद ।  ३९ - ४३। 


 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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धूम्रपान विधि व चिलम नळिका लम्बाई विधान 
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत)
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ४४   बिटेन  - ५०  तक
  अनुवाद भाग -   ४५
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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धूम /धुंवां कन पीण  चयेंद -
विरक्तादि से भिन्न, बारा वर्ष से उब, नयाणो समय आदि म नासिका दोष वळ या आँख म आश्रित हूण पर नासिका /नाक से धूम्रपान कारो।  कंठ या गौळ  दोष म मुख से धूम्रपान करण  चयेंद। जु धुंवा नाक से लिए गे हो वै तै मुख से भैर गडण  चयेंद अर नाक से ना।  किन्तु मुख से धुंवा पीण पर धुंवा नाक से भैर  नि गडण।  मुख से लियुं  धुंवा मुख से ही भैर  गडण  किलैकि  नाक से भैर गडणम आंखों पर हानि हूंद।  ४४ -४५। 
 धूम्रपानौ  आसन -
अकुटिल सरैल  आंख , हथ पाँव सर, पीठ , ग्रीवा , सीध रखिक , धूम्रपानम मनोयोग  करि  भल प्रकार से , शांत बैठिक तीन तीन सुट्टा /दम  एक दगड़ी मरण  चयेंद।  कुल नौ समय  पीण  चयेंद , पींद समय नाकौ एक दुंळ बंद कर लीण , ये प्रकार से द्वी नासिकौं  से  हीन  से हीन  समय  धुंवा लीण  चयेंद।४६।   
धूम्रपान नळिका / नळी -
वैरेचनिक  धूम्रपान म  नेत्र नळी  २४ अंगुळ  हूण  चयेंद।   स्नेहिक धूम्रपान  कुण  नळी  ३२ अंगुळ की हूण  चयेंद।  प्रायोगिक धूम्रपान की नळी ३६ अंगुळ की हूण  चयेंद।  ४७। 
नळिका  की संरचना -
पर्व गाँठ गिरह सीधे तीन सीधी गिरह वळि गिरहों  पर ठीक प्रकार से मिलीं हो , अर अगनै   मुख पर बेर सामान नळिका हूण  चयेंद।  नळिका  बणाण  वळो  द्रव्य बि वस्ति की नळिका  जन ही हो।  ४८
चौबीस या छतीस अंगुळ लम्बी नळिका  म दूर से आणौ कारण तीन गिरह गांठ  हूणौ  कारण धूम्र को तीक्ष्णता /कटास  हीन  ह्वे जांद अर  बेर जन मुख से धुंवा एकदम वेग से नि आंदो।  अर उचित समय व मात्रा म लियुं  धुंवा इन्द्रियों तै हानि नि पंहुचांदो। 
उत्तम प्रकार  का धूम्रपान का लक्षण -
जब उरस्थल (छाती ), गौळ म ,सरम हळ्को पन  आयी जावो व कफ पतळु  ह्वे जावो तो धामंडपाण तै उचित समजण  चयेंद।  ४९, ५०।   
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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      नस्य कर्म  अर  लाभ
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ५१  बिटेन  -६०  तक
  अनुवाद भाग -   ४६ 
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अयोग्य रूप से धूम्रपान का लक्षण -
जै मनिखो स्वर स्वच्छ  नि  हो , गौळम कफ ह्वावो, सर म जकड़न अर्थात भारी हो , अर्थात मनिखौन धूम्रपान ठीक से नि पे।  ५१। 
अति धूम्रपानौ लक्षण -
तळुक,  सर , गौळ , शुष्क या रूखा  ह्वे जावन, अर जळन ह्वावो , मनिख तै तीस लगो , रिंग उठो, नाक ब्रिटेन रक्त आवो , सर घुमणु  हो , इन्द्रियों म जळन हो तो यी अति धूम्रपानौ लक्छन  छन।  ५२, ५३। 
नस्य प्रयोग -
आँख , ग्रीवा से मथ्याक  आंग  कंदूड़ , नाक आँख , मुंड धूणो कुण अणु स्रोतस यूं कुण  हितकारी ,अणु तेल(औषधियुक्त तेल ) तै मनिख सौण -भादों ,अषाढ़ -सौण ,असूज   -कातिक , वसंत यूं तीन समयम  जब अगासम बद्दळ नि  ह्वावन , अगास स्वच्छ हो तो वे समय नस्य कर्म करण  चयेंद।  जु मनिख नस्य कर्म तै उचित प्रकार व उचित समय म करद वैक न तो आँख ना , ना कंदूड़  अर  ना इ नाक म पीड़ा हूंद।  वैक मुंडौ बाळ ना तो सफेद ना हि भूर हूंदन , ना ही दाढ़ी-मूछ सफेद हूंदन।  बाळ झड़दा नीन अपितु बढदा इ जि  छन।  नस्य लीण  से  ग्रीवा (गर्दन ) अकड़न, मुंडरु, मुखौ लकवा, जवड़ों जकड़न,नाका रोग , मुंड हलण/डगडग्याण जन रोग शांत ह्वे जांदन। 
 नस्यप्रयोगन  नाड़यूं , धमन्यूं , मुंडै अस्थि, स्नायु , सूक्ष्म शिरा, सर का बंधन, अधिक बलशाली ह्वे जांदन।  मुख्य प्रसन्न अर चमकदार ह्वे जांद, स्वर मिठी,तरल, स्पष्ट, स्थिर , तेज,गंभीर ह्वे जांद अर सब इंद्री  निर्मल स्वच्छ , बलशाली ह्वे जांदन ।  नस्य कर्म करण  वळ पर ग्रीवा से मथि रोग अचाणचक नि  हूंदन।  नस्य करण से उत्तभाग , नाक,आँख, मुंड , गळ अर अन्य मथ्या अंगों म झुर्री नि पड़दन।  ५४- ६०।   
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
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    अणु तैल निर्माण व नस्य कर्म विधान

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ६१  बिटेन  -  ६८ तक
  अनुवाद भाग -   ४७
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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अणु  तैल  निर्माण विधि -
चंदन , अगर , तेजपत्ता, वायविडिंग,  बेल  वृक्ष  -जड़ , नीलकमल, पुण्डरीक,श्वेत कमल , छुटि इलैची, किनग्वड़ौ  बक्क्ल,  मुलेठी,बलाखरैटी, नेत्रबाला,जंगी,हरड़, केवलमुस्ता, दाळचिन्नी,नागरमोथा , अनंतमूल, शालपर्णी, जायन्ती, पीठवर्ण, देवदारु, शतावर,रेणुकाबीज, बड़ी कटेरी, छुटि कटेरी, साल्ल्की, कमल केशर, यूं सब तै  सौ गुणा बरखापाणी म पकाण  चयेंद अर दशांस रौण  पर क्वाथ तै उतार ल्यावो।  अब  छण्ययूं क्वाथ का दस भाग कारो , प्रत्येक तै तैल सिद्ध कारो , फिर वै इ तेल म दुसर भाग , फिर तिसर भाग तैल अर इनि  दसों भाग तै सिद्ध कारो।  ा अंत म  दशवां  भाग क तैल  का बराबर दूध  मा क्वाथ  मिलाई द्यावो।  यु नस्य कर्म हेतु अणु  तैल निर्माण विधि च।  ६१-६५। 
ये तैला द्वी  तोला मात्रा लेकि सिर क तेल लगायिक चिपुळ  कारो , पसीना लेकि , तब रुई फांक से  तीन दैं नस्य करण  चयेंद।  ये द्वी द्वी  त्वाळा से तीन तीन  दिन का अंतर् म नस्य करण चयेंद, अर्थात तीन दिन छोड़ी पंचों दिन।  ये प्रकार प्रत्येक ऋतू म कुल सात बार नस्य लीण  चयेंद।  ये तैल  का नस्य लीण  वळ  मनिख तै वायु झोंका म ,खुली वायु म रौण  चयेंद।  शरीर तै गरम रखण  चयेंद , जितेन्द्रिय /ब्रह्मचारी रौण  चयेंद।  यु तैल वात , पित्त अर कफ तिनि  दोषनाशी च अर सभी इन्द्रियों तै बल दिँदेर च। जु नियमित रूप से ये तेल से नस्य करदो  वै  तैं  उपरोक्त लाभ मिल्दो।  ६६ -६८। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

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     दंत धावन / स्वच्छ करण विधान अर मुखवास

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ६९   बिटेन  -७५  तक
  अनुवाद भाग -   ४८
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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दंत -  धावन समय -
कसैले, कड़ु ,नीम आदि तीखो , तेजबल , जियापोता आदि रसयुक्त दांतुन तै अगवाड़ी चबैक या कूटीक अर्थात नरम बणैक मसूड़ों तै जो हानि नई पौंचावो स्यां से सुबेर बिजिक  अर स्याम दैं  सीण  से पैलि  दांतुन करण चयेंद।  ६९।
दांतुन धावन लाभ -
दांतुन   सड्याण   , दुरसवाद , जीबि अर दांतों मैल , अर मुखौ सड्याण  दूर करदन।  दांतुन करण  से मुख म सुगंध , मुखम रूचि अर प्रसन्नता अर खाणा खाणो ज्यू  बुल्यांद।  ७०।
जीब स्वच्छ करणौ ब्यूंत -
जीब तै खरोचणौ  कुण   सोना , चांदी ,   तामै , रांगो , जस्ता , पितळ , लोखर की खुण्डी  , टेड़ी   जीबी हूण चयेंद।  जु मैल जीबी पैथर , स्वास रोकू  या दूषित करण  वळ  मैल  तै ईं जीबीन खुरचण  चयेंद  अर मैल  भैर कर देण  चयेंद  ।  ७१, ७२ । 
दांतुनs  कुण  उत्तम डाळ -
नाटो करंज , कनेर,आक, जूही, अर्जुन, आसन, या यूंक  जन  वृक्ष नीम , तूंग ,  जन  वृक्ष दाँतुनs  कुण  उत्तम वृक्ष छन। 
निर्मल मुख भूख इच्छा , मुख म सुगंध का वास्ता जायफल, कुटुकफल , सुपारी,लौंग, शीतल चीनी, पान, कपूरवृक्षौ  गूंद , छुटि इलैची मुख म धरण  चयेंद।  ७५
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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तेल -गरारा , , मुंड -सरैलौ, कंदुड़ुन्द , खुटुं  तेल  मर्दन विधान

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ७६  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ४९
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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तेल गरारा
तेल गरारा से  जबड़ों  (जिबा ड़ ) तैं  बल मिल्दो, वाणी , स्वर , ध्वनि तैं  शक्ति मिलदी, मुख,  गल्वड़  आदि म चमक /वृद्धि, उन्नति, अर रसों  भली  भांति ज्ञान  हूंद  अर अन्न भक्षण रूचि बढ़दि।  तेल -गरारा करंदेर कु गौळम खुश्की, रुखोपन  नि हूंद , हूंठ फटणो आशंका हीन हूंद।  दांत शीघ्र  हि नि झड़दन  बल्कणम यूंको जलड़ बि बलशाली हूंदन अर दांतोम डाउ नि हूंद , खटै से खट्ट नि हूंद अर कैड़ो वस्तु  बुकाण म बि सक्षम ह्वे जांदन।  ७६-७८।

   मुंड पर तेल मालिसौ   लाभ  -
प्रतिदिन मुंड पर तेल मालिस से मुंड पीड़ा नि हूंद, बाळ नि झड़दन , बाळ कुसमय सफेद नि हूंद  . तेल मालिस से मुंड हड्डी बलशाली  हूंदन अर बाळुं जड़ शक्तिशाली हूंदन, बाळ काळ अर लम्बा रौंदन।  आँख,  कंदूड़  जन इंडिय स्वच्छ हूंदन।  चैन से नींद आंद (अर्थात  तनाव हीन हूंद )  । मुंड पर तेल मालिसौ यी लाभ छन। ७९ -८१। 
कंदूड़ुंद तेल डाळणो लाभ -
प्रतिदिन कंदूड़ुन्द तेल डाळण  से कंदूड़ो रोग , ग्रीवा  (गरदन ) जकड़न नि हूंद, जबड़ाभिंचण नि हूंद,  ऊंचोसुणन नि  हूंद  अर बैरोपन हूणो अवसर नि हूंदन।  ८२।
सरैल पर तेल मालिस विधान -
जै प्रकार से तेल /स्नेह द्रव्य से घौड़  अर  तेल मर्दन से चमड़ा  बलशाली अर  चिपुळ अर  जै प्रकारन तेल चुपड़न से गाड़ी धुरी बलशाली ह्वे जांदन  अर  दुःख  सैण (सहन ) लैक ह्वे जांदन ऊनि सरैल पर तेल मर्दन से सरैल दृढ , बलशाली अर त्वचा /चमड़ी  कोमल ह्वे जांद।  वायु रोग शांत ह्वे जांदन अर सरैल दुःख सैण  लैक ह्वे जांद (इम्मयूनिटी वृद्धि ) अर  व्यायाम व परिश्रम करण लैक  ह्वे जांद  . ८४ -८५। 
अन्य इन्द्रियों बनिस्पत त्वचा /लुतुक म वायु आधिक्य रौंद अर स्पर्श ज्ञान बि त्वचा /लुतुक  से इ हूंद , िलै त्वचा पर तेल मर्दन लाभकारी च , इलै मनिख तै  यि करण इ चयेंद। 
तेल मालिस  कारण त्वचा  की चोट सैणो  शक्ति बढ़द ,किलैकि वायु शांत हुयीं रंदी तो आघात जु  वायु तै कुपित करदो बि कुपित नि कौर  सकद।  इलै अचाणचक आघात अर परिश्रम से बि विकार नि हूंद। 
नित्य तेल मर्दन से लुतकी/त्वचा  कोमल , उत्तम स्पर्श ज्ञान वळि , अर  मनिख सुघटित अंग वळ , बलशाली सुंदर शरीर वळ  ह्वे  जांद।  इन मनिख पर वृद्धावस्था बि शीघ्र नि आंद ।  ८६ -८७। 
खुटुं तेल मर्दन -
खुटुं विशेषरूप से तंतु पर तेल मर्दन से खरखरोपन , शुष्कता/खुश्की, रुखाई, थकान, अर खुटुं  से जाण  जन विकार शीघ्र ठीक ह्वे  जांदन।  खुटुं  म तैल मर्दन से कुंगुळपन आंद अर खुट बलवान व स्थिर (कमण नि हूण ) ह्वे जान्दन।  यांको अतिरिक्त आँख बि निर्मल  ह्वे जांदन अर खुटुं    वायु बि  शांत ह्वे  जांद।  प्रतिदिन खुटुं  तेल मालश करण से मनिखो खूट कुंगळ रौंदन अर पानफ फटणो  रोग नि हूंद , अर शिरा व धमनी (मांश पेशी ) संकुचित बि नि हूंदन।  ८८ - ९०। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
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चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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चरक संहिता म उबटन , स्नान,  वस्त्र, माला   आदि विधान

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ९१  बिटेन  ९८  तक
  अनुवाद भाग -   ५०
गढ़वाली म सर्वाधिक  अनुवाद करण  वळ अनुवादक  - आचार्य  भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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उबटन लाभ -
सरैल पर उबटन (बेसण अदि लपोड़न )  मलन से शरीरै  गंद-बास ,  भारीपन , अळगस ,  खज्जी, मैल, भोजन अरुचि, पसीना , घिणाण  दूर हूंद। ९१। 
नयाणो  लाभ व विधान -
नित्य नयाणन पवित्रता, शक्ति, दीर्घायु मिलदी।  नयाणन थकौट /श्रांत, स्वेद (पसीना ), मेल दूर ह्वे जांद।  नयाणन बल , तेज /कांटी म  विशेष वृद्धि हूंद। ९२। 
स्वच्छ वस्त्र पैरणो लाभ व विधान -
निर्मल , स्वस्छ वस्त्र पैरणन कमनीयता, सुंदरता , यश , कीर्ति , दीर्घायु मिलदी।  स्वच्छ वस्त्र दरिद्रता दूर करदी अर चित्त प्रसन्न करदन।  स्वच्छ वस्त्रों  प्रशंसा  राजाओं सभा म बि हूंद।  ९३।
सुगंधमाला /पुष्पमाला लाभ व विधान -
सुगंधित पदार्थ प्रयोग, पुष्प माला अदि ग्रहण से  बल , सुगन्धि , दीर्घायु, मिलदी।  यूंक धारणन कमनीयता, पुष्टि,अर बल आंदो।  माला धारणन मन प्रसन्न रौंद अर दरिद्रता जांदी रौंदी। ९४। 
रत्न आदि विधान -
  रत्न हीरा आदि का आभूषण  पैरण  धनी अर  भाग्यवान का चिन्ह छन।  यूंक धारण करण मंगलकारी आयु वर्धक, शोभा दायी  हूंद।  यूंका धारण करण  से सब व्यसन , सर्प काटणो विप्पति नष्ट हूंदी।  आभूषण धारण से मन प्रसन्न रौंद , सुंदरता आंदि , अर आज कांति , कीर्ति बढ़दी।  ९५।
आवश्यक शुचि कर्म -
पुनः पुनः मल त्याग का उपरांत शुचि करण से मेघा वृद्धि , दीर्घायु, पवित्रता मिलदी अर दरिद्रता व पाप नाश हूंद।  इलै खुट , मल मार्ग  अर उपस्थ, सरौ सात छेद ( द्वी आँख , द्वी नाक, मुख , द्वी कंदूड़ ) पुनः पुनः स्वच्छ करण चयेंद।  ९६। 
केश कर्तन -
केश , दाढ़ी कटण , नंग कटण अर यूंक श्रृंगार से  पुष्टि, पुरुष्वत, दीर्घायु मिलदी अर रूप बि  सुंदर व स्वच्छ बण जांदो। ९७ ।
जुत पैरण से लाभ -
जुत पैरण आँखों कुण हितकारी , त्वचाकुण लाभकारी अर कीड़ारक्षक हूंद ार बल , पराक्रम ,सुख व पुरुष्वत्व दिँदेर हूंद।  ९८। 
 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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