उत्तराखण्ड को समर्पितः उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच
दिनेश ध्यानी
उत्तराखण्ड पृथक राज्य प्राप्ति हेतु दशकों तक कई संगठनों और स्थानीय वासी-प्रवासी लोगों ने एकजुट होकर जो संघर्ष किया उसकी परिणीति 9 नवम्बर, 2000 में अलग उत्तराॅंचल राज्य के रूप में हुआ लेकिन आज लगभग आठ साल बाद भी उत्तराखण्ड जनता की अपेक्षायें और आकाॅंक्षायें कितनी फलीभूत हुई इसका आकलन उत्तराखण्ड के गाॅंवों से हो रहे पलायन तथा धरातल पर विकास की वीथिका को जानने और समझने के बाद स्वतः ही लग जायेगा। राज्य बनने के बाद कुछ तो हुआ है लेकिन आम जनता और शहीदों के बलिदानों का मान किसी ने भी नही रखा। राजनैतिक दलों और सरकारों से तो क्या अपेक्षा की जा सकती है लेकिन स्थानीय संगठनों खासकर जिनका गठन राज्य प्राप्ति के लिए ही हुआ था उनकी जिम्मेदारी बनती थी कि राज्य बनने के बाद विकास की नींव रखने के लिए आगे आते लेकिन राज्य बनने के बाद जैसे इन आन्दोलनकारियों को लगा कि अब तो विशुद्ध राजनीति करने का वक्त आन चुका है और उनमें से अधिकांश राजनैतिक दलों की गोद में जा बैठे। कुछ चाटुकार किस्म के मशखरे जो पहले भी स्वार्थ की राजनीति कर रहे थे और राज्य बनने के बाद भी सत्ता सुख भोगने को हकलान हो गये उनको चाठुकारितक के सिवाय कुछ न मिला। दलालों की एक फौज और लाल बत्तियों की बाढ़ राज्य का सपना नही था। जनता धरातल पर विकास चाहती थी दैनिक जीवन और पलायन जैसी विभीषिकाओं से निजात चाहती थी लेकिन न तो पलायन रूका और न विकास के नाम पर जनता को कुछ हासिल हुआ।
राज्य गठन के लिए अस्तित्व में आये चन्द संगठनों ने अपनी छवि तथा गरिमा को आज भी बचाये हुए है। उनमें एक संगठन है उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच यह मंच आज भी उत्तराखण्ड के सर्वांगीण विकास लिए संर्घषरत है। इस मंच को जिन्दा रखने के पीछे सर्मपण की भावन तथा अपने समाज के लिए कुछ कर गुजरने की सोच विद्यमान है। मंच के संस्थापक सदस्य श्री बृजमोहन उपे्रती तथा देवन्द्र सिंह नेगी ने 17 जुलाई, 1998 को संसद में लोकसभा दीर्घा सें पर्चें फेंककर उत्तराखण्ड आन्दोलन को जहां एक नई धार प्रदान की वहीं तत्कालीन केन्द्र सरकार को झकझोर कर रख दिया था। आज श्री देवेन्द्र सिंह नेगी का लम्बी बीमारी के बाद देहान्त हो गया है उनके परिजनों के लिए मंच अपने स्तर पर हर प्रयास कर रहा है। यों तो मंच का हर सदस्य और प्रत्येक इकाई अपनेआप में सशक्त और सर्मपित रहे हैं लेकिन इस मंच के पीछे जो मुख्य योगदान रहा है वह श्री उदय राम ढ़ौंडियाल जी का रहा है। उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के लिए उदयराम ढ़ौंड़ियाल ने अपना पूरा कारोबार दांव पर लगा दिया और आज भी उत्तराखण्ड के सरोकारों के प्रति किसी युवा से समर्पित हैं। परिसीमन का मुद्दा हो या गैरसैंण राजधानी बनाने की मांग हो, गंगोलीहाट में शराब माफिया द्वारा एक आन्दोलनकारी महिला के साथ बलात्कार का मामला हो मंच आज भी उसी पुरानी धार से जन सरोकारों को उठाता रहता है। लोक मंच के अभी तक अपनी अस्तित्व को बनाये रखने के पीछे इसका सुलझा नेतृत्व तथा मंच पर राजनैतिक महत्वाकांक्षा का हावी न होना मुख्य है। साथ ही मंच का अपना एक लम्बा सामाजिक सरोकारों का इतिहास भी रहा है।
उत्तराखण्ड राज्य गठन के उदेश्य से लिए 14 जुलाई, 1994 को अस्तित्व में आये लोक मंच ने अपने गठन के साथ ही एक ऐतिहासिक पारी की शुरूआत की। पहली बार दिल्ली में गठित इस मंच ने महानगर दिल्ली में लाखों उत्तराखण्ड वासियों जिनमें अधिकांश सरकारी सेवाओं में हैं उन लोगों को जोड़ा। मंच का जो सबसे पहले आधार पत्र सामने आया उसमें कहा गया कि उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच मूलतः उत्तराखण्ड राज्य गठन के उदे्श्य को सामने रखकर गठित किया गया है तथापि मंच सामाजिक चेतना के निमित्त दलगत राजनीति से दूर, उत्तराखण्ड के निवासियों को एकता के सूत्र में बांधते हुए उनके सांसकृतिक, साहित्यिक, भाषायी, शैक्षिकतथा सामाजिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने के साथ-साथ उत्तराखण्ड के आर्थिक विकास के लिए नवीन बैज्ञानिक विचारधारा का प्रसारण करेगा। लोक मंच ने अपने गठन के साथ ही अपने उक्त उदे्श्यों तथा विचार को आकार देना शुरू कर दिया। चन्द महीनों में मंच ने दिल्ली, फरीदबाद तथा गाजियाबाद आदि में अपनी लगभग 52 शाखाओं का गठन करने के साथ ही मंच सबसे बड़ा गैर राजनैतिक संगठन बन गया। इन शाखाओं में सरकारी कर्मचारी तथा महिलाओं व युवाओं को विशेषरूप से जोड़ा गया।
सामाजिक गतिविधियों में मंच ने 15 सितम्बर, 1994 को उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के सर्मथन में सबसे पहले सांय सात बजे जन्तर मन्तर से संसद भवन तक एक विशाल मशाल जुलूश का आयोजन किया जिसमें महिलाओं और बच्चों की भागीदारी ऐतिहासिक रही। इस बीच 2 अक्टूबर, 1994 को दिल्ली आ रही रैली पर मुज्जफर नगर, नारसन में अमानवीय कृत्य किये गये दर्जनों आन्दोलनकारियों को मौत के घाट उतार दिया गया तथा कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। इस जघन्य अपराध से समूचा देश विचलित हो गया। लोक मंच के तत्वाधान में 8 अक्टूबर, 1994 को खटीमा, मसूरी, मुज्जफरनगर में हुए नरसंहार तथा आन्दोलनकारी महिलाओं पर हुए अत्याचारों के विरूद्ध बच्चों और महिलाओं ने संसद पर विशाल प्रदर्शन किया तथा राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया। इसी क्रम में 16 अक्टूबर, 1994 को, 22 अक्टूबर, 1994 को तथा 29 व 30 अक्टूबर, 1994 को भगतसिंह टर्मिनल से अमर जवान ज्योति तक विशाल मौन जुलूश, दीपावली का वहिष्कार तथा दिल्ली में अनेकों क्षेत्रों में जाकर जनविरोधी नीतियों तथा उत्तराखण्ड की शान्त जनता के साथ किये जा रहे जघन्य अपराधों के प्रति लोगों को जागृत किया। 9 नवम्बर 1994 को मंच ने उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान घायल आन्दोलनकारियों के इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल तथा चंड़ीगढ़ में 15 पन्द्रह हजार रूपये का आर्थिक सहयोग दिया। संसद के शीतकालीन सत्र में उत्तराखण्ड राज्य की मांग तथा आन्दोलनकारियों पर अत्याचारों के बारे में सांसदों को जागृत करने के लिए मंच एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मण्डल ने दिल्ली में 10 दिसम्बर 1994 से लेकर 25 दिसम्बर 1994 तक विभिन्न दलों के सांसदों से मुलाकात की जिनमें सर्वश्री पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, जार्ज फर्नाड़ीज, अटल बिहारी बाजपेयी, तथा इन्द्र जीत गुप्त आति प्रमुख थे। मंच ने इन नेताआंें से उत्तराखण्ड राज्य की मांग को संसद में पुरजोर ढंग उठाने का आग्रह किया तथा उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों का दमन करने वाले अपराधियों को कठोर दण्ड दिये जाने का अनुरोध किया।
इसी प्ररिप्रक्ष्य में मंच ने दिल्ली में पहली बार 1जनवरी 1995 को संकल्प दिवस के रूप् में मनाया तथा इस दिन किदवई नगर-मेड़ीकल चैराहे के तत्कालीन विशाल मैदान में एक संकल्प महासभा का आयोजन किया। इस सभा में दिल्ली, गाजियाबाद, फरीदाबाद आदि से लगभग पच्चीस हजार प्रवासियों ने भाग लिया। मंच ने इसमें विभिन्न दलों के राजनेताओं को आमंत्रित किया जिनमें श्री चुरानन मिश्र, श्री सिकन्दर बख्त, आदि ने शिकरत की। इन नेताओं ने दलगत राजनीति से उठकर कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग को वे अपने दलों तथा संसद में उठायेंगे तथा उत्तराखण्ड राज्य के गठन में अपना समर्थन देने का वायदा किया। मंच ने सभा में पास प्रस्तावों मे कहा कि जब तक उत्तराखण्ड राज्य का गठन नही हो जाता तब तक मंच लोकसभा, विधानसभा एव शासकीय चुनावों का बहिष्कार करेगा तथा जनता से भी राज्य गठन तक किसी भी चुनाव में शिरकत नही करने का अनुरोध करेगा। मंच ने कहा कि जब तक उत्तराखण्ड राज्य का गठन नही हो जाता तब तक राज्य हेतु संर्घष किया जायेगा। वर्ष 1996 में मंच ने उत्तराखण्ड में मंच ने 10 मई 1996 को उत्तराखण्ड के कई संगठनों के ग्याहरवीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़ने का पुरजोर विरोध किया तथा इनकी कारगुजारियों पर एक श्वेत पत्र निकाला। 27 सितम्बर 1996 को मंच का एक 18 सदस्यीय प्रतिनिधि मंड़ल अक्टूबर 1996 में प्रस्तावित उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के बहिष्कार हेतु सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में गया तथा गांव-गांव जाकर मंच ने अपनी बात लोगों से कही तथा चुनाव के विरोध में तथा राज्य प्राप्ति के लिए एकजुट किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री देवगौड़ा द्वारा 15 अगस्त, 1996 को लाल किला प्राचीर से उत्तराखण्ड राज्य गठन के बारे में अस्पष्ट घोषणा के बाद मंच ने राजघाट पर 18 अगस्त 1996 से अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल का शुरू की, इसी दौरान मंच का एक प्रतिनिधि मंडल मंच के महासचिव श्री भवानन्द शर्मा के नेतृत्व में तत्कालीन गृहमंत्री से मिला तथा उनके द्वारा स्पष्टीकरण देने के बाद 19 अगस्त, 1996 को भूख हड़ताल समाप्त की गई।
मुजफ्फरनगर, मसूरी , खटीमा तथा नारसन कांड़ों के विरोध में मंच ने मंण्डी हाउस से संसद भवन तक मौन जुलूश तथा धरना आदि समय-समय पर आयोजित किये। राजधनी के मंद्ेपर मंच समबैचारिक संगठनोें के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहा है। आज भी मंच का अपने समाज से जुड़ाव ही नही आपस में सभी के दुख सुख में भी काम आ रहा है।समाज के किसी भी भी सदस्य को यदि किसी प्रकार की सामाजिक तथा राजनैतिक आवश्यकता महसूस होती है तो मंच आगे बढ़कर सहयोग करता है। मंच का स्पष्ट मानना है दिल्ली में प्रवासी उत्तराखण्ड वासियों को अपनी राजनैतिक तथा सामाजिक पहचान को बनाने लिए आगे आना होगा। इस हेतु राजनैतिक दलों को अपनी कीमत तथा महत्व को समझाना होगा। इस दिशा में कारगर उपाय तथा कार्य किया जाना है। मंच इस विषय पर गंभीर है तथा निकट समय में इस विषय पर आन्दोलनकारी संगठनों तथा प्रवासी बंधुओ से एक सेमिनार के माध्यम से मुखातिब होने का मंच का विचार है। विगत में टिहरी बांध पीड़ितों ने जन्तर-मन्तर पर अपनी मांगों के समर्थन में जो धरना दिया उसमें मंच के संगठन सचिव श्री बृजमोहन उपे्रती ने मंच तथा व्यक्तिगत स्तर पर पूरे धरने का आयोजन तथा लगभग अस्सी आन्दोलनकारियों के खाने,ठहरने तथा दवाई आदि की व्यवस्था की। आन्दोलनक के दौरान एक आन्दोलनकारी महिला की मौत हो गई उसके परिजनों कोे मंच ने सरकार से उचित मुआवजा तथा सहयोग दिया। इस कार्य में श्री बृजमोहन उपे्रती ने जो सहयोग दिया उसका समाज के सभी वर्गों तथा विशेषर गाजणा से आये आन्दोलनकारी लोगों ने आभार प्रकट किया। पर्वतीय टाइम्स के सम्पादक स्वर्गीय मदन जोशी की पुण्य तिथि पर मंच ने 29 जुलाई, 2006 को दिल्ली में वर्तमान परिपेक्ष्य में आंचलिक पत्रकारिता पर एक विशाल गोष्ठी का आयोजन किया।
पेशावर के महानायक तथा पेशावर कांड़ के प्रण्ेाता वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली सहित उनके तमाम साथियों के परिजनों तक पहुॅंचने का मंच का विचार है तथा इन वीर सेनानियों के परिजनों को हर स्तर पर सहयोग आदि की यदि आवश्यकता हो तो मंच उस हेतु प्रयास करेगा। मंच के अध्यक्ष श्री उदयराम ढ़ौंड़ियाल का कहना है कि हम यदि अपने पूर्वजों का सम्मान नहीें करेंगे तो हम अपने को सामाजिक किस आधार पर मान सकते है। इस परिपेक्ष्य में मंच ने 20 अपै्रल, 2008 को गढ़वाल भवन नई दिल्ली में पेशावर कांड़ की पूर्व संध्या पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया इस सम्मेलन में समाज के कई गण्यमान्य व्यक्तियों सहित कई पत्रकार, साहित्यकार तथा राजनेताओं ने शिकरत की सभी ने मुक्त कंठ से मंच के प्रयासों की भूरि-भूरि सराहना की। मंच की ओर से उत्तराखण्ड सरकार से मांग की गई है कि पेशावर के महान नायक वीर चन्द्र सिंह गढवाली की आदमकद मूर्ति विधानसभा परिसर में स्थापित की जाये तथा पेशावर के वीर सैनिकों के परिजनों को नौकरी तथा उनके नौनिहालों को निःशुल्क शिक्षा दी जाये।
कहना न होगा कि उत्तराखण्ड राज्य लोक मंच आज भी सामाजिक सरोकारों तथा उत्तराखण्ड के सर्वांगीण विकास के लिए कार्यरत है तथा सभी आन्दोलनकारी संगठनों को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहा है। मंच का मानना है कि अभी उत्तराखण्ड में आन्दोलन की आवश्यकता है तथा सभी आन्दोलनकारी संगठनों को एक जुट होकर राज्य के विकास के लिए, पलायन रोकने, उद्योग स्थापित करने तथा राज्य के सामाजिक, सांस्कृतिक तथा भाषायी आधार बचाये रखने के लिए संर्घष करना होगा। लोक मंच आज भी जन सरोकारों के प्रति कृतसंकल्प है।