देबिया तू धन्य है
उस दिन इतवार था | मौसम साफ़ था | पत्नी के साथ मंत्रणा हुई- आज शरद से मिल आयें, जो कोलार रोड पर रहते थे| पत्नी ने फोन लगा कर बात की | शरद की बीबी से बात हुई | उसने कहा -शरद तो टूर पर गए हैं ,मैं घर पर ही हूँ आप आ जाइए | मैंने सोचा -शरद तो घर पर हैं नहीं,पत्नी को शरद के घर पर छोड़ कर मैं कुछ देर के लिए देबिया से भी मिल आऊँगा | देबिया ने कोलार रोड पर मकान बनवाया है-ऐसा उसने मुझे एक दिन न्यू मार्केट में मुलाक़ात होने पर बताया था | पता और फ़ोन नम्बर दे कर वह बोला था-कभी आना हो दाज्यू | मुझे वह दाज्यू कह कर ही संबोधित करता था | देबिया का पता और फ़ोन नम्बर ले कर हम कोलार रोड के लिए चल दिए |
शरद के घर पहुँचने पर शरद की बीबी और छोटी बेटी रुचिका ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया |
भूमिका(शरद की बड़ी बेटी ) नहीं दिखाई दे रही -मैंने पूछा |
वह ट्यूशन पढ़ाने गयी - उसकी माँ बोली |
पढ़ाने या पढ़ने?- मैं बोला | भूमिका इंजीनियरिंग के फायनल ईअर में थी |
वह दो लड़कियों को घर पर जा कर ट्यूशन भी पढ़ाती है-उसकी माँ बोली |
वाह !-मेरे मुंह से निकला | मैं बेचारे श्याम दत्त जी के बारे में सोचने लगा जिनका इकलौता लड़का एम. एस. सी. करने के बाद दिन भर घर पर पड़ा रह कर या तो टी. वी. देखता या मोबाइल पर मेसेज या बात करता या इन्टरनेट पर गेम खेलता | कभी-कभार जनरल नोलेज की किताबों के पन्ने भी पलटता , क्योंकि छोटी मोटी नौकरी उसको भाती नहीं थी | श्याम दत्त जी को रिटायर हुए एक साल से ज्यादा हो गया था | उनकी इकलौती चिंता लड़के को नौकरी में देखने की थी |
मैं कल्पना करने लगा-कितने खुश हुए होंगे श्याम दत्त जी जब उनके लड़के ने जन्म लिया होगा | संभवतः दूसरी संतान न होने का उन्हें कोई दुःख नहीं था | वंश चलाने को लड़का तो था ही | दूसरी ओर शरद की दूसरी लड़की होने पर लोगों ने कहा था- छि हाड़ि दुसरि लै चिहड़ि हैगे | वाह रे शरद की 'चिहड़ि'! वाह रे श्याम दत्त जी के कुलदीपक !
कुछ देर शरद के घर पर बैठने के बाद योजनानुसार मैंने देबिया को फोन किया | देबिया घर पर ही था | मैं देबिया के घर की ओर चल दिया | पता पास में था ही| एक दो जगह पूछने के बाद मैं गंतव्य तक पहुँच गया | घर के बाहर चार-पाँच स्कूटर और दो कारें खड़ी थीं | ओ हो दिवाली नजदीक है पत्तों की बैठक चल रही होगी -मेरा माथा ठनका | देबिया की लड़की,जो.एन.आई.टी. से एम.सी. ए. कर रही थी,ने दरवाजा खोला | देखते ही उसने मेरे चरण स्पर्श किए | मैं अचकचा गया और आशीर्वाद देना ही भूल गया | ऐसे संस्कारों की मुझे आशा न थी | हालांकि आगे और भी बहुत सारी विस्मित कर देने वाली बातें आने वाली थीं |
'बाबू! कका आ गए |' देबिया की लड़की बोली |
बाबू! कका ! फ़िर से मेरे अचकचाने की बारी थी - इस डैड,मोम,अंकल के जमाने में -बाबू,कका?
कका नहीं ताऊजी बोल पगली - देबिया बोला | लड़की मुस्कुरा दी |
मेरे , ड्राइंग रूम में प्रवेश करते ही अनेक मिश्रित आवाजें आईं- आओ हो दाज्यू, ओ हो महाराज,जै हो आदि |मेरी आशा के अनुरूप वहाँ छः-सात पहाडी इकठ्ठा थे |'हाई! पत्त तो देखीण नी लागी रै हो' मैंने बोला | सभी ठहाके लगा कर हंसने लगे |
'लाओ हो गड्डी लाओ आज दाज्यू कें लै खिलेई दिनूं'- एक बोला | सभी परिचित लोग थे और जानते थे कि मैं पत्ते नहीं खेलता | देबिया बोला- फिकर मत करो दाज्यू अगले इतवार पत्तों की मीटिंग भी बैठेगी,आज तो कमिटी की मीटिंग है | देबिया के मार्गदर्शन में आज से तीस-पैंतीस साल पहले दस लोगों ने एक कमिटी बनायी थी जो अब भी चल रही थी | तब ये सभी लोग पास-पास ही रहा करते थे | सभी की छोटी-छोटी तनख्वाहें थीं| तब दस- दस रूपये प्रति सदस्य प्रति माह ले कर इन्होंने यह कमिटी गठित की थी | आज भी यह राशि मात्र सौ रूपये प्रति सदस्य प्रति माह ही है | इस कमिटी के कुछ नियम थे जिनका सख्ती से पालन हुआ | कमिटी की मूल जमा राशि को इन पैंतीस सालों में कभी कम नहीं होने दिया गया | अर्थात यह राशि प्रति माह बढ़ती ही जाती है | हाँ इस राशि को कमिटी के सदस्यों को या कमिटी के सदस्यों की जमानत पर बाहरी व्यक्तियों को, जो प्रायः पहाड़ी ही होते हैं, ब्याज पर दिया जाता है और उस ब्याज से प्रतिवर्ष दीवाली पर सदस्यों को उपहार या नगद वितरण किया जाता है | यही नहीं ये लोग यदा कदा इसी ब्याज के पैसों से भ्रमण या पिकनिक भी जाते हैं | प्रतिमाह बारी बारी से सदस्यों के घर पर मीटिंग होती है जिसमें चाय के साथ पकोड़ी,आलू के गुटके, माँस (उड़द) के छेद वाले बड़े (दही बड़े नहीं), पुए,सिंघल,ककडी का रायता अदि पहाडी डिशें ही परोसे जाने की बाध्यता है | ये सब नियम देबिया के दिमाग की उपज हैं | इस कमिटी का एक बहुत ही शानदार नियम था,जिसका पालन अब उतनी मुस्तैदी से नहीं हो पाता, लेकिन काफी कुछ होता है - कोई सदस्य यदि गाँव जाता तो उसके घर की रखवाली की जिम्मेदारी अन्य सदस्यों पर है | यदि सदस्य की पत्नी मायके गयी है तो उसके भोजन की व्यवस्था अन्य सदस्य देखता है | यदि कोई बीमार है और अस्पताल में भर्ती है तो बारी बारी से सदस्य उसको अटैंड करते हैं |
थोड़ी देर में देबिया की लड़की नाश्ता ले कर आ गयी | सिंहल, पुए और ककड़ी का रायता था | सिंहल मेरी कमजोरी है -तुरंत सिंहल पर झपट पड़ा |
टेस्टी हो रहे हैं हो- मैं बोला |
बेटी ने बनाए हैं -देबिया बोला |
ताऊजी मैंल बणाईं-देबिया की बेटी वहीं खड़ी थी |
यार देबी तुम तो कमाल के आदमी हो | आज के बच्चों को भी पहाड़ी सिखा रखी है, सिंहल बनाना भी जानते हैं, पहाड़ी भी बोलते हैं |
देबिया गंभीर हो गया- दाज्यू हम लोग तो पहाड़ में पले-पढ़े | हमारा बचपन वहाँ बीता | हमें इस लिए वहाँ से लगाव है | लेकिन इस पीढ़ी के लिए तो लगाव का कोई आधार ही नहीं ठैरा | हममें से कई लोगों के बच्चों ने तो पहाड़ ठीक से देखा तक नहीं | इनमें अपनी संस्कृति,अपनी बोली से लगाव पैदा करने के लिए तो हमें ही कोशिश करनी पड़ेगी | मैं तो ख़ुद यह कोशिश करता हूँ, हमारी कमिटी के सभी सदस्य भी ऐसी कोशिश कर रहे हैं | आपने मेन गेट से दरवाजे तक ऐपण देखे होंगे | ये भी आयल पेंट से मेरी लडकी ने ही दिए हैं |
नाश्ता-चाय और गप-शप के बाद जब जाने की तैयारी हुई तो देबिया ने मुझे अपना घर दिखाया | घर छोटा पर सुंदर और सजावट सुरुचि पूर्ण थी | छत भी दिखाई | छत पर सोलर हीटिंग सिस्टम का प्लांट लगा था | सोलर कुकर में कुछ पक रहा था | तीन सोलर लालटेन धूप में चार्ज हो रहीं थीं | यह सब देख कर मेरी प्रतिक्रिया थी - यार देबी तुमने तो सारे ही सोलर आयटम इकठ्ठा कर रखे हैं |' दाज्यू मेरी समझ में नहीं आता' -' देबिया बोला - 'लोग सोलर एनर्जी का उपयोग करने में इतने उदासीन क्यों हैं ? इससे बिजली और गैस के साथ-साथ पैसों की भी तो बचत होने वाली ठैरी| मैंने तो अपने घर में गैस लायटर भी नहीं रखा है हो| गैस लायटर से गैस ज्यादा खर्च होती है | इस लिए माचिस से गैस जलानी चाहिए |' मैं देबिया की बातें सुन कर स्तब्ध था |
छत से नीचे उतर कर मैंने देखा कि देबिया ने छोटे से गार्डन में तुलसी उगा रखी थी | दूसरे घरों में जहाँ गमलों में तुलसी दिखती है वहीं यहाँ गार्डेन में तुलसी थी | इसके आलावा नीम का एक पेड़ भी था जो अभी ज्यादा बड़ा नहीं हुआ था जबकि आस-पास के घरों में खूबसूरती के लिए अशोक के पेड़ लगे थे | इसके बारे में देबिया का तर्क था पर्यावरण शुद्धि और गुणों के आगे खूबसूरती को महत्त्व नहीं दिया जा सकता | नीम और तुलसी हमारे दैनिक जीवन में अनेक घरेलू उपचारों के काम आते हैं जबकि अशोक खूबसूरती के अलावा किसी काम नहीं आता | यही नहीं देबिया ने वाटर हार्वेस्टिंग के अंतर्गत बरसाती पानी के संरक्षण का भी प्रबंध कर रखा था | वाटर हार्वेस्टिंग के बारे में सुन-पढ़ तो रखा था किंतु देखा आज पहली बार |
देबिया के घर से लौटते हुए मैं उसके प्रति श्रद्धावनत था | मैं मन ही मन बोल उठा - मैं तो तुझे आदर्श पहाड़ी ही समझता था तू तो आदर्श हिन्दुस्तानी निकला रे देबिया ! देबिया तू धन्य है |