सैनिक का आग्रह
रोको मत, मेरा पथ
मुझको जाना है प्रिय मुझको जाने दो
किसकी का ऋण है मुझ पर
उस ऋण को चुकाने दो !
अधरों पे मुस्कान
नयनो पे नीर ना हो
सनद रहे ये बेला
प्रिय इस पल को मत जाने दो ...
रोको अपना रुदन क्रन्दन
प्रिय मुझको समझो
देसा है पहला प्रेम मेरा
उस प्रेम को कलंकित मत होने दो ...
प्रिय , तुम तो प्रिय हो मेरी
भारत माँ धरती है मेरी
सरहद पे दुसमन है खडा
माने पुकारा आज नुझे है
ला ओ रण रोली प्रिय
माथे पे तुम मेरी आज लगवा दो ...
उठो.....बन पध्मानी चूडावत
हंसते हंसते बिदा करो
ये सौगात रहेगी संग मेरे
आज तुम ये सौगात बार दो ...
जीबित राहा तो मिलेंगे
छितिज और अम्बर की तरह
अगर बीरगति प्राप्त हुई तो
मरुंगा एक शैनिक की तरह
प्रिय इस अवसर को तुम
मत अपने हातो से जाने दो .....
प्रिय रोना नही सौगंध अहि तुम्हे
मुस्कुराते रहना सदा
पार्थिव सरीर को मेरे
करना तुम हंसते हंसते बिदा
बोलो-- बोलो करोगी ना
?
चलते चलते एक एहसान
तुम मुझ पे कर दो ..... !
परासर गौड़
५ मई ०२ को १४.०० बजे !