Author Topic: Our Tradition Vs. New Generation - हमारे संस्कार: आज की पीढी को कितने स्वीकार्य  (Read 22800 times)

Rajen

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 हमारे संस्कार -  आज की पीढी को कितने स्वीकार्य

गुनी जन,
उत्तराखण्ड को प्राचीन काल से ही देवभूमि कहा जाता है।  जाहिर है देवभूमि में कर्मों एवम संस्कारों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी.  आइये चर्चा करें कि आज की पढी-लिखी पीढी की नजरों में हमारे परम्परागत संस्कारों की क्या अहमियत है?  वे उनसे कितने प्रभावित हैं और कितना सम्मान करते हैं उनका।  

      एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्कार है "उपनयन संस्कार" । इसे जनेऊ-संस्कार भी कहते हैं क्यौंकि इस दिन से बालक जनेऊ धारण करना शुरू करता है। यह संस्कार गावों में आमतौर पर ९ - १२ वर्ष के बालकों का किया जाता है। व्रत ग्रहण करने तथा व्रत से बंध होने के कारण यह संस्कार व्रतबंध भी कहा जाता है । गुरु के समीप उपनीत होने से उपनयन संस्कार कहा जाता है । इसी दिन से बालक को चुटिया, जनेऊ धारण करने तथा संध्या करने का अधिकारी माना जाता है। इस संस्कार के बाद वह बडे-बूढों के साथ कतार में बैठ कर भोजन करने का अधिकारी भी हो जाता है।  विद्यारंभ व वेदारंभ यहीं से प्रारम्भ होता है । उत्तराखन्ड में यह संस्कार बड़े धूमधाम से दो दिन तक मनाया जाता है । पहले दिन ग्रहजाग, दूसरे दिन उपनयन एवम अनेकानेक कर्म किये जाते हैं ।  इस काम में बहुत धन खर्च होता है ।  एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस बालक का उपनयन संस्कार किया जाता है, उसे एक बहुत जटिल प्रक्रिया से गुजरना पढ्ता है जो कि मैं समझता हूं कि बहुत कष्टदायक भी है। इस संस्कार में अपने सभी सगे-सम्बंधी जनों के साथ-२ समस्त ग्रामीणों को भी दो दिन तक भोजन कराया जाता है।  प्रत्येक अभिभावक अपनी सामर्थ्यानुसार इस सम्स्कार को परिपूर्ण करते हैं।

         आज के समय में इस संस्कार की कितनी प्रासंगिकता है?  कितने युवक हैं जो शहरों में रहते हैं और परम्परागत ढंग से इस संस्कार को सहर्ष स्वीकार करते हैं?

             कॄपया आप इस चर्चा को आगे बढायें।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Rajen Ji,

This is good topic to discuss. I have slightly changed its heading in english also.

It is really a challenge for new generation to carry forward the cultural values of ours. However, there are certain things which today's generation is not accepting. See in old days, people used to have "Chutia", now-a-days no body wants to keept it. In gone days, people used to take of some cloths while having meal and now hardly anyone follow this.

First of all, it is the moral duty of our preachers to explain the reasons behind following any thing in our cultural / tradition. Until or unless new generation do knot come to know about them and if we try to impose any tradition on them, they will evade from it.

In nuthsell, i would say that new generation do not want to follow certain practices of tradition which they feel difficult to follow.

Rajen

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आपने उचित कहा.
प्रश्न स्वीकार्यता के साथ-२ इसकी प्रासंगिकता का भी है.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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« Reply #3 on: November 27, 2007, 02:25:28 PM »
Rajen ji aapka likha to main padh nahi paya kunki cell se online hun Mehta ji ki baton se main sahmat hun

Rajen

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Kyoun ji, khaalee cell se kyoun online hain? Torch kahan gayee? ;D

Rajen ji aapka likha to main padh nahi paya kunki cell se online hun Mehta ji ki baton se main sahmat hun

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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« Reply #5 on: November 27, 2007, 07:20:36 PM »
sir ji main jara bahar hun

पंकज सिंह महर

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राजेन भाई,

बहुत अच्छा विषय आपने इस मंच में उठाया है, वैसे संस्कार तो मानव जीवन में १६ होते हैं परन्तु इन संस्कारों को कितना स्वीकार किया जा रहा है, यह अलग बात है. मुद्दा यह है कि हम लोग, जिनका यह संस्कार हो चुका है, हम उसका कितना सम्मान कर पा रहे हैं क्योंकि जो चीज निभायी नही जा सकती उसका प्रयोग नहीं करना चाहिये. धर्म का अपमान भी नही होना चाहिये, जो निभा सकता है, उसी को यह सब कराना चाहिये, जनेऊ कराना तो आसान है, लेकिन बाद में उसमें गांठ लगा देना या उसे पकड़ कर संध्या पूजन नही कर पाये तो उसका महात्तम्य क्या रहेगा? इसलिये यही उचित है कि काम चलाने या करना है, करके फार्मेल्टी के लिये यह संस्कार कराने के मैं खिलाफ हूं....

Rajen

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ओ हो, ये बात है.  अपना खयाल रखियेगा.
Please take care of yrself.

sir ji main jara bahar hun

Rajen

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बात आपकी बिल्कुल ठीक है पंकज जी.  लेकिन हमारी मान्यताओं का क्या? 
वैसे भी आज के बदलते युग में बहुत कुछ वदल रहा है फ़िर संस्कॄति और संस्कार भी बदलते हैं तो इसमें बुराई क्या है.  जैसा आपने कहा, संस्कॄति और संस्कार वही ठीक हैं जो आसानी से निभाये जा सकें।

राजेन भाई,

बहुत अच्छा विषय आपने इस मंच में उठाया है,   
 जो निभा सकता है, उसी को यह सब कराना चाहिये,  ....


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir Ji,

In the speed of modernization, changes are taking place in all the tradition. Take it Sardar Ji log, a lot of Sardarji's are bound to leave pagdi (turban). Similarly, some old traditions of ours are also changing.

There are some demerits behind is also which i have already explained.

 

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