राजेन भाई,
बहुत अच्छा विषय आपने इस मंच में उठाया है, वैसे संस्कार तो मानव जीवन में १६ होते हैं परन्तु इन संस्कारों को कितना स्वीकार किया जा रहा है, यह अलग बात है. मुद्दा यह है कि हम लोग, जिनका यह संस्कार हो चुका है, हम उसका कितना सम्मान कर पा रहे हैं क्योंकि जो चीज निभायी नही जा सकती उसका प्रयोग नहीं करना चाहिये. धर्म का अपमान भी नही होना चाहिये, जो निभा सकता है, उसी को यह सब कराना चाहिये, जनेऊ कराना तो आसान है, लेकिन बाद में उसमें गांठ लगा देना या उसे पकड़ कर संध्या पूजन नही कर पाये तो उसका महात्तम्य क्या रहेगा? इसलिये यही उचित है कि काम चलाने या करना है, करके फार्मेल्टी के लिये यह संस्कार कराने के मैं खिलाफ हूं....