"गौ मूत्र" के प्रयोग से समाप्त होने वाली व्याधियां :
प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य हरिओम शास्त्री के अनुसार गोमूत्र श्वांस, कास, शोध, कामला, पण्डु, प्लीहोदर, मल अवरोध, कुष्ठ रोग, चर्म विकार, कृमि, वायु विकार मूत्रावरोध, नेत्र रोग तथा खुजली में लाभदायक है। गुल्य, आनाह, विरेचन कर्म, आस्थापन तथा वस्ति व्याधियों में गोमूत्र का प्रयोग उत्तम रहता है। गोमूत्र अग्नि को प्रदीप्त करता है, क्षुधा [भूख] को बढ़ाता है, अन्न का पाचन करता है एवं मलबद्धता को दूर करता है। गोमूत्र से कुष्ठादि चर्म रोग भी दूर हो सकते हैं तथा कान में डालने से कर्णशूल रोग खत्म होता है और पाण्डु रोग को भी गोमूत्र समाप्त करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों का शोधन गोमूत्र में किया जाता है और अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन गोमूत्र के साथ करने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद में स्वर्ण, लौह, धतूरा तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से शुद्ध करने का विधान है। गोमूत्र के द्वारा शुद्धीकरण होने पर ये द्रव्य दोषरहित होकर अधिक गुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते हैं। रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं।